शनिवार, 22 अप्रैल 2023

आइए आज से ईद का तरही मुशायरा आयोजित करते हैं गिरीश पंकज, धर्मेंद्र कुमार सिंह, तिलक राज कपूर-नीरज गोस्वामी, रेखा भाटिया और डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर के साथ।

ईद मुबारक, ईद मुबारक, सबको ईद मुबारक। ईद का चाँद कल नज़र आ गया है और आज ईद हो गई है। पवित्र रमज़ान का महीना इबादत करते हुए बीता है और अब उस इबादत के फल के रूप में ईद का यह त्यौहार सारी दुनिया को अता हुआ है। इस ईद पर बस यही प्रार्थना की जाए कि नफ़रतों का जो दौर चल रहा है, वह बीत जाए। प्रेम, करुणा, शांति का हर तरफ़ बोलबाला हो। आपसी प्रेम की गंगा एक बार फिर से बह उठे, आमीन।

"हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है”
आइए आज से ईद का तरही मुशायरा आयोजित करते हैं गिरीश पंकज, धर्मेंद्र कुमार सिंह, तिलक राज कपूर-नीरज गोस्वामी, रेखा भाटिया और
डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर  के साथ। 

गिरीश पंकज
वो मेरे दर पे आए हैं, हमारा क्या मुकद्दर है
यहाँ तो ईद है दुहरी अजब दिलकश ये मंज़र है
कभी मैं चाँद को देखूँ कभी सूरत तेरी देखूँ
"हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है"
मिलाए दिल से जो दिल को वही दिलदार कहलाए
वो क्या जानेगा दिल की बात जिसका दिल ही पत्थर है
मिलेंगे खोल के दिल को हमारा फ़र्ज़ है यह तो
हमारे दिल में जो अंदर वही तो सोच बाहर है
उसे ही ईद, होली या दिवाली खूब जमती है
फकीरी में भले हो आदमी दिल का सिकन्दर है
मुझे सेंवई खिला दो आज कल गुजिया खिला देना
मुझे मालूम है इनमें महब्बत की ही शक्कर है
जिसे मज़हब या धर्मों की दिवारें बाँध ना पाईं
वही पंकज हमारा रहनुमा है या के शायर है
मतले में ही बहुत अच्छे से दुहरी ईदका मंज़र सामने आ रहा है। और उसके बाद अगले ही शेर में गिरह को पारंपरिक तरीक़े से बहुत अच्छे से बाँधा है। दिलदार और पत्थर दिल की तुलना करता हुआ शेर सुंदर है। और दिल में अंदर और बाहर एक सा रहने की बात एकदम कमाल है। दिल का सिकन्दर होने की बात एकदम सही कही है, पर्व मनाने के लिए यही होना पड़ता है। सेंवई और गुजिया का तुलनात्मक अध्ययन करता शेर बहुत सुंदर है। और उतना ही सुंदर मकते का शेर है। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।

धर्मेन्द्र कुमार सिंह
समर्पित इश्क़ है जिसका वही शिव, सत्य, सुंदर है
किसी का हो न पाया जो समझ लेना वो पत्थर है
कहो जब न्याय कर ऐ दिल बताता ख़ुद को नौकर है
मगर जब-जब हो तड़पाना ये बन जाता कलेक्टर है
भले ही विश्व को लगता सदा वो व्यक्ति औघर है
ये दुनिया प्यार में त्यागी है जिसने चंद्रशेखर है
उसी से है मेरी दुनिया उसी पे खत्म है दुनिया
जिसे अपना कहा दिल ने वही रब के बराबर है
उसी का प्यार बन छाया रखे महफूज गर्मी से
बने बरसात में छतरी तो सर्दी का भी स्वेटर है
चुराकर ले गया नज़रों की सरहद पार वो दिल को
लगे मासूम सबको पर बड़ा ही दक्ष तस्कर है
मैं जिसमें तैरता हूँ, खेलता हूँ, डूब जाता हूँ
नहीं वो हुस्न का दर्या वो यादों का समंदर है
जिसे कहती है दुनिया धर्मपत्नी, श्रीमती, बीवी,
वो दिलबर है, वो रहबर है, वही मेरा मुकद्दर है
वो आया शाम को छत पर तो रब के मुँह से ये निकला
हिलाल-ए-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
मेरी तन्हाईयों को थामकर जिंदा रखे `सज्जन'
किसी के साथ गुजरे थे जो उन लम्हों का गर्डर है
वाह क्या कमाल का मतला है धर्म को दर्शन की राह दिखाता हुआ शेर। कमाल। नौकर और कलेक्टर की तुलना करते हुए क्या कमाल इश्क़ का हुस्ने-मतला कहा है। और अगले ही शेर में औघर और चंद्रशेखर की तुलना करता एक और सुंदर हुस्ने-मतला।जिसे अपना कहा दिल ने वही रब के बराबर बहुत सुंदर। दक्ष तस्कर वाला शेर तो एकदम सुंदर बना है क्या कमाल क़ाफ़िया। पत्नी के लिए कहा गया शेर मिसरा सानी में अद्भुत समर्पण के साथ सामने आया है। और गिरह का शेर तो एकदम कमाल बना है। मकते के शेर में एक बार फिर सुंदर क़ाफ़िया। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।
 

तिलक राज कपूर और नीरज गोस्वामी
करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि ईद आई
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि ईद आई
किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें
कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि ईद आई
कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा
खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि ईद आई
तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें
उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि ईद आई
हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल
अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि ईद आई
बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की
जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि ईद आई
अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज'
हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि ईद आई
यह मूल रूप से नीरज गोस्वामी जी की ज़मीन है, जिस पर आधी खेती भी उनकी ही है, बस रदीफ़ का फ़सल तिलक राज कपूर जी ने लगा दी है। होली के अवसर पर नीरज गोस्वामी जी द्वारा लिखी गई सुप्रसिद्ध ग़ज़ल में ईद का रदीफ़ लगा कर उसे ईद की ग़ज़ल बना दिया है तिलक राज कपूर जी ने। और क्या कमाल किया है। यही तो हमारा भारत है, जहाँ होली और ईद में कोई फ़र्क़ नहीं होता । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। वाह वाह वाह, सुंदर ग़ज़ल।

रेखा भाटिया
बची ख़्वाहिशें
ख़्वाहिशों के जंगल से चलकर
आज बची हुई ख़्वाहिशें नूरानी हैं
धरती में कुछ दबी थीं कुछ खिलीं
हर ख़्वाहिश दरख़्त की एक कहानी
वक़्त की लताओं से है लिपटा हुआ
एक वजह है हर दरख़्त का खिलना
हर वजह हर दरख़्त की बनती कहानी
एक इंसानी जीवन हज़ारों ख़्वाहिशें
अरबों इंसान धरती पर, अनगिनत हैं
ख़्वाहिशें बची हुई कैक्टस बन उगी हैं
दश्त बन धरती फट रही फिर बची हैं
ख़ुश्क रूहें अनजान हैं अब भी प्यासी
मुंतज़िर इबादत में माँगते हैं दुआएँ
हर दिन ईद हो जाए हर रात में हिलाल
गए साल की गुज़री ईद पर थोड़ी ज़्यादा
रूहें हुई थीं ख़ुश्क दिल के बियाबानों में
रिश्तों के परिंदों ने साँसें छोड़ी बेदम हो
इंसानों ने तोड़ा है रिश्ता क़ुदरत से अब
आज ईद है बची नूरानी ख़्वाहिशों की
रात घिर आने पर हर घर नूरानी ख़्वाहिशें
हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुन्नवर है !
यह कविता असल में एक दुआ है। हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं, उस दौर में एक काँपती हुई दुआ। जहाँ दुनिया में हर तरफ़ अशांति फैली हुई है वहाँ यह दुआ एक अमन की उम्मीद में थरथरा रही है।  उन नूरानी ख़्वाहिशों की ईद है, जिन्होंने अभी तक दुनिया के बेहतर हो जाने की उम्मीद का दामन छोड़ा नहीं है। यह रिश्तों के उन परिंदों की ईद है, जो बेदम हो रहे हैं, पर अभी भी दुआ माँग रहे हैँ दुनिया की बेहतरी के लिए। यह कविता ईद की असल कविता है। बहुत ही सुंदर कविता, वाह वाह वाह।

डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर
हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
नहीं है चाँद तन्हा तारों का भी लाव लश्कर है
रखें विश्वास जो तुझ पर वही क्यों पाते हैं पीड़ा
अभागे पूछते तुझसे ख़ुदा कैसा मुक़द्दर है
सियासत तो सदा मोहरा बना कर छोड़ती आई
नहीं है डर पड़ोसी का सियासत का हमें डर है
अगर बाँटेगा वो तो बस मुहब्बत ही वो बाँटेगा
भरा जिसके सदा दिल में मुहब्बत का समंदर है
मिटा कर भेद आपस में मुसलमां और हिंदू का
मुबारक ईद में डूबा मनाता जश्न घर घर है
मतले में ही बहुत सुंदरता के साथ गिरह को बाँधा गया है। चाँद के साथ तारों का लाव लश्कर भी आया है। जिन लोगों को ख़ुदा पर भरोसा है उनको ही पीड़ा मिलती है यह प्रश्न जायज़ है। सियासत पर गहरा व्यंग्य लिये हुए है अगला शेर। सच कहा जिसके दिल में मुहब्बत का समंदर हो वह तो मुहब्बत ही बाँटेगा। और अंत में त्यौहार के अवसर पर धर्मों के भेद को मिटाता हुआ शेर। वाह वाह वाह, बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।

तो आज के शायरों ने रंग जमा दिया है। सेंवई खाते रहिए और दाद देते रहिए। मिलते हैं बासी ईद में कुछ और रचनाकारों के साथ। तब तक सबको ईद मुबारक।

24 टिप्‍पणियां:

  1. गिरीश पंकज जी:
    जिसे मज़हब या धर्मों की दिवारें बाँध ना पाईं
    वही पंकज हमारा रहनुमा है या के शायर है
    मुहब्बत का पैग़ाम लिये आपकी ग़ज़ल प्यारी लगी. इंसानियत ज़िन्दाबाद.

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  2. धर्मेन्द्र कुमार सिंह:
    समर्पित इश्क़ है जिसका वही शिव, सत्य, सुंदर है
    किसी का हो न पाया जो समझ लेना वो पत्थर है

    वो आया शाम को छत पर तो रब के मुँह से ये निकला
    हिलाल-ए-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है

    अजब तसव्वुर है, ग़ज़ब काफियों में पिरोया है ग़ज़ल को. सुब्हानल्लाह.

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  3. तिलक राज कपूर और नीरज गोस्वामी:

    करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि ईद आई
    हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि ईद आई

    "मिली है क्या ग़ज़ब जोड़ी यह ईद आई बहार लाई"

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  4. रेखा भाटिया:

    आज ईद है बची नूरानी ख़्वाहिशों की
    रात घिर आने पर हर घर नूरानी ख़्वाहिशें
    हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुन्नवर है !

    आमीन.



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  5. डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर
    हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
    नहीं है चाँद तन्हा तारों का भी लाव लश्कर है

    मिटा कर भेद आपस में मुसलमां और हिंदू का
    मुबारक ईद में डूबा मनाता जश्न घर घर है

    आमीन। (ख़ुदा करे एसा ही हो).

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  6. गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल में
    हमारे दर पे वो आए, हमारा क्या मुकद्दर है
    यहाँ तो ईद है दुहरी अजब दिलकश ये मंज़र है
    की दुहरी ईद का लाजवाब मंजर

    कभी मैं चाँद को देखूँ कभी सूरत तेरी देखूँ
    "हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है"
    में चांद के साथ महबूब की चांद सी सूरत की खूबसूरत कल्पना

    मिलाए दिल से जो दिल को वही दिलदार कहलाए
    वो क्या जानेगा दिल की बात जिसका दिल ही पत्थर है
    में दिलदार और पत्थर की अनुभवी तुलना

    मुझे सेंवई खिला दो आज कल गुजिया खिला देना
    मुझे मालूम है इनमें महब्बत की ही शक्कर है
    में मुहब्बत की शक्कर की का प्रयोग

    बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई। बहुत बहुत बधाई।

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  7. वाह ! हर रचना लाज़वाब । बहुत ख़ूब सभी के शेर । सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

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  8. धर्मेन्द्र जी की ग़ज़ल
    समर्पित इश्क़ है जिसका वही शिव, सत्य, सुंदर है
    किसी का हो न पाया जो समझ लेना वो पत्थर है
    क्या कमाल का शेर कहा, वाह

    कहो जब न्याय कर ऐ दिल बताता ख़ुद को नौकर है
    मगर जब-जब हो तड़पाना ये बन जाता कलेक्टर है
    प्रशासनिक ताकत के प्रयोग में कंट्रास्ट का खूबसूरत चित्रण

    भले ही विश्व को लगता सदा वो व्यक्ति औघर है
    ये दुनिया प्यार में त्यागी है जिसने चंद्रशेखर है

    स्वेटर और तस्कर जैसे शब्दों का काफिया प्रयोग, पत्नी की मुकद्दर रूप में व्याख्या, वाह

    तरही मिसरे का खूबसूरत प्रयोग हुआ। वाह

    मक्ते के शेर में इंजीनियर द्वारा गर्डर का खूबसूरत प्रयोग, वाह
    पूरी ग़ज़ल में काफिया के अनूठे प्रयोग देखने को मिले।
    बधाई हो धर्मेंद्र जी।

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  9. नीरज जी ने यहीं कुछ समय पूर्व होली की तरही पर इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कही थी कि उसमें होली का उल्लास बखूबी समाया हुआ था। पिछले दो साल से इस गज़ल ने धूम मचा रखी है और था ग़ज़ल मुझ तक वरिष्ठ कवि गोपाल दास 'नीरज' जी के नाम से भी कई जगह से पहुंची। जब ईद की यह तरही घोषित हुई तो मैंने देखा की मूल ग़ज़ल में रदीफ के अंश 'होली है' को 'ईद आई' मात्र कर देने से यही ईद की ग़ज़ल हो गई। मूल ग़ज़ल इतनी खूबसूरत थी इसे ईद की ग़ज़ल में बदलने की गुस्ताखी करने से खुद को नहीं रोका। ग़ज़ल पूरी तरह नीरज भाई साहब की है और हमेशा रहेगी।
    इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए नीरज भाई को हृदय की गहराइयों से बधाई।

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  10. रेखा भाटिया जी ने काव्य के उस रूप की प्रस्तुति की है जो कहता है कि 'उम्मीद का दिया हूं, हर हाल में जियूंगा'
    भाव-प्रस्तुति अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है।

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  11. डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी की ग़ज़ल के मतले के शेर में तरही मिसरे को तारों के लाव लश्कर के माध्यम से खूबसूरत विस्तार दिया गया है। फिर बहुत खूबसूरत बात कही कि जिसके दिल में मुहब्बत का समंदर है वह मुहब्बत ही बांटेगा। अंतिम शेर में हिंदू मुस्लिम एकता की एक लंबी परंपरा के प्रति बहुत खूबसूरती से आश्वस्त किया है। बहुत-बहुत बधाई डॉक्टर रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी।

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  12. ईद के मुबारक मौके पर सभी रचनाकारों ने रंग जमा दिया। आदरणीय गिरीश जी, तिलक जी, रेखा जी एवं रजनी जी को बहुत बहुत बधाई इन सुंदर रचनाओं के लिए।

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  13. आदरणीय चरनजीत जी किन्हीं तकनीकी कारणों से टिप्पणी पोस्ट नहीं कर पा रहे हैं। उनके द्वारा मोबाइल पर भेजी गई टिप्पणी प्रस्तुत है।

    प्रिय धर्मेन्द्र कुमार जी ! आप की गज़ल अत्यंत सुंदर व प्रभावशाली लगी । आपकी कल्पना की उड़ान गगनचुंबी व शब्दों का चयन कमाल का लगा । समर्पित इश्क़ है जिसका वही शिव सत्य सुंदर है .... क्या जानदार शुरुआत की है आपने ! पूरी गज़ल में जान डाल दी । बहुत आनंद आया । धन्यवाद व बधाई !!! .. .... चरनजीत लाल, यू . एस. ए.

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    1. धर्मेंद्र जी, सहायता के लिए धन्यवाद !

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  14. आदरणीय तिलक राज जी हृदय से आभार 🙏😊

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  15. आदरणीय तिलक राज जी हृदय से आभार🙏😊

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  16. रेखा जी !
    आपकी ईद के अवसर पर प्रकाशित कविता “बची ख़्वाहिशें” जो आपने पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर ईद के अवसर पर भेजी, अति सुंदर व मनमोहक लगी ! हिंदी व उर्दू शब्दों का मिश्रण बहुत प्यारा लगा जो आपकी कुशलता का परिचायक है ! शब्द चयन अति सटीक व कल्पना की उड़ान का जवाब नहीं ! पढ़ कर आनंद आया ! धन्यवाद ! बधाई ! 💐🌺🌈💕 …चरनजीत लाल, यू.एस.ए

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  17. सभी रचनाएँ पढ़ीं , एक से बढ़ कर एक उम्दा उच्च स्तर की रचनाएँ। पंकज जी के ब्लॉग पर लिखने से ज़्यादा दूसरे लेखकों को पढ़ने और सीखने का सुख है ,यही बात इस ब्लॉग को ख़ास बनती है। सभी रचनाकारों को उम्दा रचनाओं के लिए अनंत बधाई ! सभी रचनाकारों और पाठकों का दिल से धन्यवाद

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