गुरुवार, 6 जनवरी 2022

आइए आज मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर, अश्विनी रमेश जी और गुरप्रीत सिंह के साथ।

 हर आयोजन की अपनी गति होती है, जो भी प्रारंभ होता है उसे धीरे-धीरे समापन की तरफ़ बढ़ना ही होता है। हमारा यह तरही मुशायरा भी अब समापन की तरफ़ बढ़ रहा है अगले एक-दो अंकों के बाद इसका समापन हो जाएगा। उधर सारे विश्व में एक बार फिर से महामारी का प्रकोप दिखाई देने लगा है। आइये प्रार्थना करें कि महामारी का स्वरूप इस बार पिछली बार की तरह भीषण नहीं हो। सब स्वस्थ रहें, सानंद रहें।
 यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
 आइए आज मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर, अश्विनी रमेश जी और गुरप्रीत सिंह के साथ।
 
डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर
कहाँ रह गये हो चले आओ हमदम
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
दिसम्बर महीना कड़ाके की सर्दी
दिखाती है पारा गिरा कर वो दमख़म

घने कोहरे में वो सूरज छिपा है
धरा पर बिछी मोतियों जैसी शबनम
दुबक कर रहें हम रजाई के अंदर
मिले गर्म कॉफी तो बदले ये आलम

हवाएँ ये ठंडी लगें जब भी तन को
ये नश्तर सी चुभती करें साँसें बेदम
मतले में ही बहुत अच्छे से गिरह को बाँधा गया है, सच कहा है कि जब भी मौसम बदलता है तो सबसे पहले अपने प्रिय की ही याद आती है। अगले ही शेर में सर्दी द्वारा पारे को गिरा-गिरा कर अपना दमख़म दिखाने की बात कह कर मौसम का चित्रण बख़ूबी किया गया है। घने कोहरे में सूरज का छिप जाना और धरती पर शबनम के बिछने का बिम्ब सुंदर है। और सर्दियों में गर्म कॉफ़ी का मिल जाना तो किसी अमृतपान से कम नहीं होता है।  और अंतिम शेर में सर्दियों की तीखी हवाओं का दृश्य बहुत सुंदरता के साथ रचा गया है। सच में यह हवाएँ किसी नश्तर की तरह ही चुभती हैं। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

अश्विनी रमेश
न पूछो अजब हिज्र की ये शबे गम
गुज़रती है कैसे ये बस जानते हम

बहुत कम है सर्दी रजाई न ओढ़ो
पहाड़ों पे इसकी ज़रूरत है हरदम
जहाँ माइनस ताप रहता है क़ाज़ा
नहाए बहुत सर्दियों में वहाँ हम

लिए ज़िन्दगी में कई रिस्क हमने
रहे हम किसी से कभी भी नहीं कम
कहानी हमें माँ सुनाती बहुत थी
कटी सर्द रातें मधुर था वो आलम

रहे मस्त हम तो रूहानी नशे में
ज़रा भी नहीं हमको इसका कोई गम
 सर्दियों के मौसम में अगर हिज्र भी आकर मिल जाए तो वह रातें कैसे गुज़रती हैं, यह केवल वही जान सकता है जिस पर वह रात गुज़र रही है। और यह भी सच है कि ज़रा सी सर्दी में रज़ाई ओढ़ कर बैठ जाने वाले क्या जानें पहाड़ों की सर्दी। क़ाज़ा नाम की जगह के बारे में शायर कह रहा है कि वहाँ माइनस तापमान में भी लोग नहाते हैं। माँ की कहानियों के सहारे सर्दी की रातों को काटने का दृश्य बहुत सुंदर बना है, सच में वे रातें कैसे कट जाती थीं, पता ही नहीं चलता था। और जो भी व्यक्ति अपने अंदर के नशे में गुम रहता है उसे किसी भी बात की चिंता या परवाह भला कब होती है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

गुरप्रीत सिंह
उठाया है दिल ने बग़ावत का परचम।
सभी ख्वाहिशों से ये मांगे है फ्रीडम।
मेरी ज़िंदगी में तेरी अहमियत है,
बशर से कहीं बढ़ के और रब से कुछ कम।

उमीदें कई इस में बसना तो चाहें,
मगर मेरे दिल से निकलता नहीं गम।
मेरे दिल की धड़कन की ढोलक बजे है,
तू जब अपनी आवाज़ से छेड़े सरगम।

नहीं निकला जब तक हद ए जीस्त से मैं,
मुझे हांकता ही गया है तेरा गम।
तेरे वस्ल की आस जो खाट पर थी,
कि इस पूस में उसने भी तोड़ा है दम।

जो तस्वीरें स्नोफ़ाल में ली थीं हमने,
जलाती है सीना अब अपनी वो अल्बम।
मतले में ही बहुत अच्छे से हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी का बहुत ही सुंदरता के साथ उपयोग किया गया है। किसी की हमारी ज़िंदगी में अहमियत सच में वही होती है कि इंसान से कुछ ज़्यादा तथा ईश्वर से कुछ कम, बहुत ही अच्छे से इस सच को चित्रित किया है। दिल में उम्मीदें तभी आ सकती हैं, जब ग़म वहाँ से बाहर निकले सुंदर बात।दिल की धड़कन को एकदम ढोलक की तरह बज उठने का प्रयोग बिलकुल नया है, बहुत ही सुंदर। वस्ल की आस का खाट पर होना और उसका दम तोड़ देना, खाट का नए तरीके से प्रयोग किया  गया है।अंतिम शेर में बफ़बारी की तस्वीरों को देख कर सीने में आग लग उठने का बिम्ब बहुत सुंदर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
तो यह हैं आज शायरों की सुंदर रचनाएँ, इनका आनंद लीजिए और दाद दीजिए। मिलते हैं अगले अंक में कुछ और रचनाओं के साथ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय,सुबीर जी ने मेरी ग़ज़ल के तीसरे शेर में प्रयुक्त "क़ाज़ा"शब्द के बारे में लिखते हुए बिल्कुल सही कहा है कि शायर क़ाज़ा नाम की जगह के बारे में कह रहा है तो आपकी दिलचस्पी के लिए यहां और स्पष्ट कर दूं कि "क़ाज़ा" नाम की जगह हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति ज़िले के स्पीति सब डिवीज़न का हेडक्वार्टर है । ये ट्राइबल एरिया है जिसकी सीमा हिन्दोस्तान चीन (तिब्बत)बॉर्डर के साथ लगती है। इस जगह का तापमान जनवरी की रातों में तो माइनस 28 तक रहता है और दिन में भी माइनस में तापमान रहता है जनवरी में । जब में क़ाज़ा में एस 0 डी0 एम0 के रूप में पोस्टेड था तो जनवरी में भी रोज़ नहाता था वहां जबकि सभी ऐसे तापमान में रोज़ नहाने का नहीं सोचते। इसलिए यह एक हकीकी शेर है और ग़ज़ल में प्रयुक्त ज़्यादातर शेर हकीकी ज़िन्दगी के हैं।

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  2. लाज़वाब रचनाएँ साथी रचनाकारों की। बहुत-बहुत बधाई सभी को

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  3. मौसम इधर एकदम सर्द बना हुआ है, और आज के शायरों ने मूड फ्रेश कर दिया है. वाह तरही वाह।
    आप तीनो को बहुत बहुत बधाई

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  4. आज के तीनों ग़ज़लकारों को सर्दी में डूबी उनकी प्रस्तुतियों पर बहुत-बहुत बधाई।

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  5. अश्विनी जी की ग़ज़ल आज यहां माइनस आठ डिग्री सेल्सियस के माफॉल में पढ़ी तो और भी असरदार लगी.
    गुरप्रीत जी का शेर-- मेरे दिल की धड़कन की ढोलक-- वाह
    रजनी जी का प्रत्येक शेर सामयिक है
    सभी को बधाई और शुभकामना

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  6. आदरणीय रजनी जी एवं आदरणीय अश्विनी जी और गुरप्रीत जी तीनों ने कमाल की रचनाएँ लिखी हैं। बहुत बहुत बधाई तीनों रचनाकारों को।

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  7. ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार आप सभी को 🙏

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