रविवार, 27 अक्तूबर 2019

आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ। आज राकेश खण्डेलवाल जी, तिलक राज कपूर जी, गिरीश पंकज जी, नीरज गोस्वामी जी और सौरभ पाण्डेय जी के साथ मनाते हैं दीपावली का यह त्यौहार।



आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ। इस बार दीपावली में जब बाज़ार जाएँ, तो इस बार देखें अपने आसपास कि क्या सुंदर परिकल्पना है इस त्यौहार की, कि समाज के हर वर्ग, हर प्रकार के व्यवसायी, हर प्रकार के श्रमिक, हर किसी के लिए यह त्यौहार कुछ न कुछ लाया है। यदि और ग़ौर से देखेंगे तो पाएँगे कि सड़क के किनारे बैठ कर खील-बताशे बेचने वाली बूढ़ी सुखिया देवी से लेकर, जगमगाती ज्वैलरी शॉप में बैठे स्वर्णकार तक, सब मिलकर एक प्रकाश स्तंभ को रच रहे हैं। इस प्रकाश स्तंभ में अलग-अलग स्तरों पर सब अपने-अपने दीपक लिए खड़े हैं। सब एक-दूसरे से जुड़े हैं, इस प्रकार कि उस जुड़ाव का जोड़ दिखाई ही नहीं देता। प्रकाश द्वारा लगाया गया जोड़ आत्मा के स्तर पर होता है, इसलिए वो दिख भी नहीं सकता। भारतीय संस्कृति द्वारा समाज के हर व्यक्ति के सहयोग से बनाए गए इस प्रकाश स्तंभ का नाम ही होता है दीपावली। दीपावली का समग्र अर्थ है परिजन, नातेदार, रिश्तेदार, परिचित, मित्र, पड़ोसी.. वे सब जिनसे मिलकर हम ‘मैं’ से ‘हम’ हो जाते हैं। प्रकाश का अर्थ ही है ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर बढ़ना। दीपावली हमारे जीवन में आकर हमें ‘मैं’ से ‘हम’ हो जाने का ही पाठ पढ़ाती है। आइए इस दीपावली को ‘मैं’ से ‘हम’ और ‘हम’ से ‘हम सब’ की ओर बढ़ें... बढ़ते रहें... बढ़ते ही रहें। 



उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे




राकेश खण्डेलवाल


चले ये सोच कर भारत, वहाँ छुट्टी मना लेंगे
पुरानी याद जो छूटी हैं गलियों में उठा लेंगे

वहाँ पर पाँव रखते ही नयन के स्वप्न सब टूटे
जो कल परसों की छवियाँ थी सभी इतिहास में खोई
कहीं दिखता न पअपनापन उमड़ती बेरुख़ी हर सू
नई इक सभ्यता के तरजुमे में हर ख़ुशी खोई
वो होली हो दिवाली हो, कहें हैप्पी मना लेंगे
मिलेंगे वहात्सेप्प संदेश तो आगे बढ़ा देंगे

कहीं भी गाँव क़सबे में, न परचूनी दुकानों पर
खिलौने खाँड़ वाले साथ बचपन के, नहीं दिखते
न पूए हैं मलाई के, न ताजा ही इमारती हैं
जिधर देखा मिठाई के चिने डिब्बे ही बस सजते
यहाँ जो मिल रहा उसको वहीं फ्रिज से उठा लेंगे
चलें मन हम ये दीवाली जा अपने घर मना लेंगे

हमारे पास हैं मूरत महा लक्ष्मी गजानन की
घिसेंगे सिल पे हम चंदन, सज़ा कर फूल अक्षत भी
बना लेंगे वहीं पूरी कचौड़ी और हम गुझिया
बुला कर इष्ट मित्रों को मनेगी अपनी दिवाली
पुरानी रीतियाँ को हम पुनः अपनी निभा लेंगे
उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे
पुराने बाक्स से लेकर उन्हें फिर से जला लेंगे


आज की दीपावली के लिए इससे अच्छा और क्या गीत हो सकता है। प्रवास में बसे हुए गीतकार को जब अपना देश याद आता है तो अपने आप ही गीत बन पड़ता है। पहले ही बंद में सोशल मीडिया के कारण त्यौहारों का जो हाल है उस पर विदेश में बैठा हुआ कवि भावुक होकर अपनों को याद कर रहा है। दूसरे बंद में एक बार फिर स्मृतियों के गलियारे में भटकते हुए वही बातें याद आ रही हैं। वो मिठाई की दुकानें जो बचपन की यादों में बसी हुई हैं पर अब जो कहीं नहीं हैं, वह सारी दुकानें कवि को याद आ रही हैँ। और अंतिम बंद में वहीं विदेश में ही प्रवास के दौरान कवि मन अपनी दीवाली को मनाने का तरीके तलाश कर अपने आप को दिलासा दे रहा है। बहुत अच्छा गीत वाह वाह वाह। 


तिलक राज कपूर

सभी परिवार में, हिस्‍से अगर, अपने तलाशेंगे
नहीं दिन दूर, जब तन्‍हाई में, रिश्‍ते तलाशेंगे।
हम अपने अनुभवों की खुश्‍बुएँ भर दें किताबों में
इन्‍हीं में दृश्‍य अनदेखे, कई बच्‍चे तलाशेंगे।
समय के साथ सीखा है गरल पी कर भी जी लेना
हमारे बाद कैसे आप हम जैसे तलाशेंगे।
इन्‍हीं गलियों से होकर, रोज ही, गुजरा हूँ मैं, लेकिन
मुझे अब से, दरीचे और दर, इनके तलाशेंगे।
कभी फुर्सत मिलेगी तो चलो हम साथ बैठेंगे
बिताये थे जो मिलकर फिर वही लम्हे तलाशेंगे।।
यहाँ हर पल नये संबंध बनते और मिटते हैं
हमेशा के लिये संबंध हम कैसे तलाशेंगे।
चले आओ, अंधेरी कोठरी, यादों भरी खोलें
“उजालों के लिये मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे”।

मतले के साथ ही जैसे हमारे ख़राब होते समय पर जैसे हम सब की पीड़ा को व्यक्त कर दिया गया है। सच में हिस्से और अपने में से हमें कुछ एक ही मिलना है। ओर अनुभव की ख़ुशबुओं से किताबों को आने वाली पीढ़ी के लिए महका देने की भावना तो एकदम कमाल है। और कमाल के शेर में जो बात कही गई है कि गरल पीने वालों को कल बस तलाशती ही रह जाएगी यह दुनिया। वाह। गलियों दरीचों वाला शेर तो जैसे कलेजे को चीर कर अंदर उतरता चला गया है। यह मुशायरे का हासिल है। हमेशा मिटने और बनने वाले दौर में स्थाई की तलाश करना सच में बेमानी है। और अंत में गिरह का शेर भी एकदम कमाल है। लेकिन जो शेर मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ वह तो वही है मुझे अब से दरीचे और दर इनके तलाशेंगे। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।


गिरीश पंकज

अंधेरा भाग जाएगा हमी रस्ते तलाशेंगे
"उजाले के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे"
बुरे लोगों की है बस्ती मगर विश्वास है हमको
मिलेंगे लोग अच्छे हम अगर अच्छे तलाशेंगे
चलो चलते चलो इक दिन ज़माना साथ आएगा
अभी जो दूर हैं हमको वही अपने तलाशेंगे
बना दें राह उजली हम चले जिस पे नई दुनिया
हमारे बाद वो रस्ते नये बच्चे तलाशेंगे
जो हैं खुद्दार वो भूखे मरेंगे झुक नहीं सकते
कभी दरबार में जाकर नहीं टुकड़े तलाशेंगे
अगर टूटेगा इक सपना नया फिर से गढ़ा जाए
हमारा हौसला है नित नये सपने तलाशेंगे
अंधेरा दूर करने एक दीया ही बहुत पंकज
 मगर हर हाथ में दीपक लिये बंदे तलाशेंगे

मतले में ही बहुत सुंदर तरीक़े से अत्यंत सकारात्मक गिरह बाँधी है। गिरीश जी पिछले दिनों अस्वस्थ रहे उसके बाद भी सबसे पहली ग़ज़ल हमेशा की तरह उनकी ही प्राप्त हुई। अगले ही शेर में सकारात्मकता अपनी चरम पर है अच्छे लोगों की तलाश करेंगे तो अच्छे ही मिलेंगे, जीवन का इससे अच्छा मंत्र और क्या हो सकता है। पूरी ग़ज़ल सकारात्मकता से भरी हुई हे अपने से बाद में आने वाली पीढ़ी के लिए उजालों को  छोड़ना वाह क्या सोच है। जो हैं खुद्दार वाला शेर मुझे स्तब्ध कर गया। किसी मामले में अनिर्णय की स्थिति में था, लेकिन इस शेर ने जैसे मुझे निर्णय का हौसला प्रदान कर दिया। शुक्रिया इस शेर के लिए। आगे के दोनों शेर जैसे हौसलों के शेर हैं। जीवन के संघर्ष में हमेशा लड़ते रहने का हौसला देते हुए। वाह वाह वाह क्या सुंदर ग़ज़ल है। गिरीश जी के पूर्ण स्वस्थ होने की हम सब की तरफ़ से मंगल कामनाएँ। 


नीरज गोस्वामी

बिना दस्तक जो खुल जाएँ वो दरवाज़े तलाशेंगे
जो रिश्तों को हैं गर्माते वो दस्ताने तलाशेंगे
वो जो कुछ बीच था अपने न जाने क्यों कहाँ छूटा
चलो वादा करें दोनों उसे फिर से तलाशेंगे
समाये तू अगर मुझमें समा मैं तुझ में गर जाऊँ
बता दुनिया में हम को लोग फिर कैसे तलाशेंगे
हज़ारों फूल कलियाँ तितलियाँ देखो हैं गुलशन में
मगर कुछ सरफिरे केवल यहाँ कांटे तलाशेंगे
अंधेरों को मिटाने में रहा नाकाम जब सूरज
उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे
यही खूबी हमारे दुश्मनों की हमको भाती है
हमेशा हार कर भी वार के मौके तलाशेंगे
समझना तब हकीकत में ये दुनिया जीत ली तूने
कि तेरे बाद जब घर में तुझे बच्चे तलाशेंगे 

नीरज जी का अपना ही अलग अंदाज़ होता है वे जिस प्रकार कहते हैं उसका कोई मुकाबला नहीं है। मतले में ही अंदाज़ लग जाता है कि क्या कमाल की ग़ज़ल कही जाने वाली है। मतला पूरी तरह से नीरज जी के रंग में रँगा हुआ है।क्या ख़्याल है। अगले ही शेर में वो जो कुछ बीच में था उसके छूटने और फिर से तलाशने की बात बहुत कमाल है। एक दूसरे में समा जाने की कल्पना बहुत ही कमाल है। सच में इसके बाद एक-दूसरे को तलाशने की बात सुंदर है कौन तलाश सकता है ।और नकारात्मकता पर गहरा व्यंग्य कसता हुआ शेर जिसमें कुछ सिरफिरों द्वारा केवल कांटे तलाश किए जाने की बात कही गई है। अंधरों को मिटाने में नाकाम रहे सूरज की गिरह जैसे हमारे समय पर एक गहरा राजनैतिक व्यंग्य है।  और दुश्मनों की प्रशंसा में कहा गया शेर नीरज जी के ही बस की बात है। क्या सलीक़े से दुश्मनों को लपेटा है। और अंतिम शेर एक बार फिर आँखें भिगो देता है, जैसे तिलक जी के शेर ने किया था वही इस शेर ने किया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह। 


सौरभ पाण्डेय

सिरा कोई पकड़ कर हम उन्हें फिर से तलाशेंगे
इन्हीं चुपचाप गलियों में जिये रिश्ते तलाशेंगे 
अँधेरों की कुटिल साज़िश अगर अब भी न समझें तो
उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे
कभी उम्मीद से भारी नयन सपनों सजे तर थे
किसे मालूम था ये ही नयन सिक्के तलाशेंगे !
दिखे है दरमियाँ अपने बहुत.. पर खो गया है जो
उसे परदे, भरी चादर, रुँधे तकिये तलाशेंगे
हृदय में भाव था उसने निछावर कर दिया खुद को
मगर सोचो कि उसके नाम अब कितने तलाशेंगे ?
चिनकती धूप से बचते रहे थे आजतक, वो ही-
पता है कल कभी जुगनू, कभी तारे तलाशेंगे
मुबारक़ हो उन्हें दिलकश पतंगों की उड़ानें पर
इधर हम घूमते ’सौरभ’ बचे कुनबे तलाशेंगे 

मतले में ही जीवन की छूटी हुई डोर के सिरों को पकड़ कर यादों के गलियारे में भटकने का बहुत ही सुंदर प्रयोग है। और अगले ही शेर में बहुत ही कमाल के जोड़ के साथ गिरह बाँधी गई है। एक गहरा राजनैतिक व्यंग्य है इस शेर में । बहुत ही कमाल निर्वाह हुआ है तरही मिसरे का। और अगला शेर एक बार फिर से राजनैतिक कटाक्ष से भरा हुआ है। लेकिन अगले शेर में प्रेम के उस पड़ाव का बहुत सुंदर ​चित्रण है जिस पड़ाव में आकर प्रेम छीजने लगता है। परदे चादर और तकिये का प्रयोग ग़ज़ब है। अगला शेर देश प्रेम को समर्पित शेर है। और कुर्बानी की बात को बहुत अच्छे से महिमा प्रदान करता है। चिलकती धूप से बचने वालों को जुगनू और तारे तलाश करना वाह सुंदर प्रयोग। मकते का शेर भी बहुत सुंदर है। सच में यहाँ दो प्रकार के लोग होते हैं एक वो जो उड़ते हैं और दूसरे वो जो ज़मीन से जुड़ रहते हैं। शायर दूसरे प्रकार का होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह। 




आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ। आज राकेश खण्डेलवाल जी, तिलक राज कपूर जी, गिरीश पंकज जी, नीरज गोस्वामी जी और सौरभ पाण्डेय जी के साथ मनाते हैं दीपावली का यह त्यौहार। आप सब स्वस्थ रहें, सुखी रहें और परिवार के साथ इसी प्रकार त्यौहारों पर आनंद करते रहें।

34 टिप्‍पणियां:

  1. राकेश खण्डेलवाल, तिलकराज कपूर, नीरज गोस्वामी और सौरभ पाण्डेय की रचनाओं के क्या कहने। मेरे लिए जो टिप्पणी की, वह अनमोल है। आभार।

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  2. आज दीपोत्सव पर आ0 राकेश खण्डेलवाल जी जी आधुनिकता पर तंज कसते हुए सुंदर गीत प्रस्तुत किया है।आ0 तिलक राज कपूर जी ने ग़ज़ल के मतला में बहुत सुंदर बात कही है कि आज के नौजवान कुछ बनते ही अपना हिस्सा ले अलग होना चाहते हैं तो अकेले पड़ने के शिव उन्हें कुछ भी मिलने वाला नहीं।
    आ0 गिरीश पंकज जी ने बहुत ही सकारात्मक ग़ज़ल कही है कि अच्छाई तलाशने वालों को अच्छाई मिलती है। आ0 नीरज गोस्वामी जी की तीखे तेवर की ग़ज़ल मुशायरा लूट रही है। आ0 सौरभ पांडे जी को अपने सदाबहार अंदाज़ की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई।

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  3. कहीं भी गाँव क़सबे में, न परचूनी दुकानों पर
    खिलौने खाँड़ वाले साथ बचपन के, नहीं दिखते
    वाह राकेश जी

    जो हैं खुद्दार वो भूखे मरेंगे झुक नहीं सकते
    कभी दरबार में जाकर नहीं टुकड़े तलाशेंगे

    वाह गिरीश भाई क्या खूब शेर कहा।

    हम अपने अनुभवों की खुश्‍बुएँ भर दें किताबों में
    इन्‍हीं में दृश्‍य अनदेखे, कई बच्‍चे तलाशेंगे।
    बहुत खूब तिलक जी ने कहा।

    हज़ारों फूल कलियाँ तितलियाँ देखो हैं गुलशन में
    मगर कुछ सरफिरे केवल यहाँ कांटे तलाशेंगे
    वाह! वाह! नीरज जी क्या शेर कहा ।

    अंतिम शायर ने भी अच्छा कहा है।





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    1. आपसे मिली सकारात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद, अश्विनी भाईजी.
      शुभातिशुभ

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  4. मैं शायर तो नहीं... यह बात मुझ पर बिल्कुल खरी उतरती है लेकिन जब से मैं इस ब्लॉग पर आया मुझे थोड़ी बहुत शायरी आ गई... आज मैं जो कुछ भी हूं वो इस ब्लॉग की बदौलत ही हूं, जो भी लिख पा रहा हूं उसके पीछे यह ब्लॉग और पंकज सुबीर ही हैं. यह ब्लॉक नहीं होता तो मैं सिर्फ एक रूखा-सूखा इंजीनियर ही रह गया होता.. मैं अपने आप को खुशकिस्मत समझता हूं कि मुझे इस ब्लाग ने दिग्गज रचनाकारों के साथ खड़े रहने का मौका दिया है.

    आदरणीय राकेश जी की तारीफ में तो अल्फाज ही कम पड़ने लगे हैं...एक के बाद एक तीसरी रचना उनकी पढ़ने को मिली है यह कहना मुश्किल है कौन सी रचना सर्वश्रेष्ठ है... तीनों ही नयापन लिए हुए हैं और इससे यह पता लगता है श्री राकेश खंडेलवाल किस पाए के गीतकार हैं हम खुशकिस्मत हैं कि वो इस ब्लॉक पर आते हैं और अपनी रचनाओं से हमें भाव विभोर कर जाते हैं

    तिलक राज कपूर क्या हैं ये मेरे लिए कहना मुश्किल है हम दोनों की जोड़ी वैसी ही है जैसे कभी लॉरेल और हार्डी की हुआ करती थी... हम दोनों मिल जाएं या फिर कभी मोबाईल पर बात करें तो सिर्फ और सिर्फ ठहाके ही आपस में इधर से उधर होते रहते हैं.. तिलक जी इतने प्रतिभाशाली हैं कि उसका बयान करना मुश्किल है ...
    आज की मेरी ग़ज़ल उन्हीं की मेहरबानी से मुकम्मल हुई है... मैंने उनसे बात की थी और उनसे पूछा कि मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा तरही में क्या ग़ज़ल कहूं? कैसे कहूं ?तो वह बोले मैं अपनी गजल आपको भेजता हूं आप उसे पढ़े शायद कुछ मदद मिले... यकीन मानिए उसे पढ़कर ही मैं इस लायक हुआ कि अपनी ग़ज़ल कह सका

    गिरीश भाई इस ब्लॉक के पुराने बाशिंदे हैं और हम इनसे हमेशा आनंदित होते आए हैं "बना दे राह उजली हम चले जिस पर नई दुनिया, हमारे बाद वो रस्ते नए बच्चे तलाशेंगे,वाह जी वाह क्या कहना गिरीश पंकज भाई वाह वाह वाह

    सौरभ पांडे तो इतने दिल के करीब हैं कि इनके बारे में कुछ भी कहने लगूं तो कहता ही चला जाऊं...बिना रूके...सौरभ बहुत ही प्यारे इंसान है और हमने उनके साथ पंकज जी की ग़ज़ल कक्षा में बैठकर शायरी सीखी थी आज इनका अलग मुकाम है "अंधेरों की कुटिल साजिश अगर अब भी न समझे तो, उजालों के लिए मिट्टी के फिर दिए तलाशेंगे... जिंदाबाद भाई जिंदाबाद मजा आ गया.

    इस बार की तरही के लिए पंकज भाई आपको प्रणाम बारंबार प्रणाम...जय हो

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    1. आपकी सदाशयता का हार्दिक आभार, नीरज भाई..
      जबकि सच्चाई यह है कि आपका सान्निध्य और आप द्वारा हुआ बखान ही माहौल के सकारात्मक हो जाने की आश्वस्ति है.
      जय-जय

      हटाएं
    2. अब यहाँ! चलो फ़ोन पर ही ठीक रहेगा।
      अपनी ऊर्जा, स्नेह और जिंदादिली बनाये रखें।

      हटाएं
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को     "भइया-दोयज पर्व"  (चर्चा अंक- 3503)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. # राकेश खण्डेलवाल जी:
    कहीं भी गाँव क़सबे में, न परचूनी दुकानों पर
    खिलौने खाँड़ वाले साथ बचपन के, नहीं दिखते
    न पूए हैं मलाई के, न ताजा ही इमारती हैं
    जिधर देखा मिठाई के चिने डिब्बे ही बस सजते
    यहाँ जो मिल रहा उसको वहीं फ्रिज से उठा लेंगे
    चलें मन हम ये दीवाली जा अपने घर मना लेंगे

    ग़ज़ब का अंदाज़े बयां है आपका, तसव्वुर में क्या-क्या दिखला देते है। शब्दों के जादूगर है, कहां-कहां की सैर करवा देते है!

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  7. # तिलकराज कपूर जी:
    "यहाँ हर पल नये संबंध बनते और मिटते हैं
    हमेशा के लिये संबंध हम कैसे तलाशेंगे।"
    संबंधो, रिश्तों और यादों को 'तलाश' के साथ ख़ूब अच्छे से गूंठा है आपने।
    आप गुरु के मुक़ाम पर है, आपके कलाम पर तब्सरा कैसे करे?
    (मिले न काफिये मौज़ूं, रदीफे होती शर्मिंदा
    गुरुवर के सुख़न से फिर खरे-पक्के तलाशेंगे)

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    1. आपकी मोहब्बतों और इनायतों का तहे-दिल से शुक्रिया। काश् हर आदमी आपके जैसा जिंदा तबीयत हो।
      मैं तो यहाँ कुछ सीखने आया था और अभी भी सबको पढ़कर सीख ही रहा हूँ।

      हटाएं
  8. # गिरीश पंकज जी:

    जो हैं खुद्दार वो भूखे मरेंगे झुक नहीं सकते
    कभी दरबार में जाकर नहीं टुकड़े तलाशेंगे
    अगर टूटेगा इक सपना नया फिर से गढ़ा जाए
    हमारा हौसला है नित नये सपने तलाशेंगे

    होसलों और उमंगों से भरपूर कलाम। कामयाब ग़ज़ल, बधाई।
    -------------------------------
    सौरभ पाण्डेयजी:
    सिरा कोई पकड़ कर हम उन्हें फिर से तलाशेंगे

    कमाल का मिसरा रचा है, नाज़ुक ख्याली का जवाब नही। बहुत ही ख़ूब। नये अंदाज़ के अश्आर है।

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  9. नीरज गोस्वामी जी:

    बिना दस्तक जो खुल जाएँ वो दरवाज़े तलाशेंगे
    जो रिश्तों को हैं गर्माते वो दस्ताने तलाशेंगे

    कल्पनाशीलता ने ही आपको शायर बनया है। यह आपकी मुन्कसिर मिजाज़ी है कि आप एतराफ़ नही कर रहे(जैसा की आपकी टिप्पणी में बयान है)।

    गुरु को श्रेय देना आपकी शालीनता है।

    (विचारों पर जमी हो बर्फ, न लफ़्ज़ों से मिले यारी
    सुख़न पढ़ कर गुरु के फिर नये रस्ते तलाशेंगे)

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  10. भाई जान मेरी तारीफ में आपकी मुहब्बत ज्यादा है हकीकत कम...ये मुहब्बत बनाए रखें...������

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  11. दीपावली के रोज़ जिस तन्मयता से तरही मुशायरे का यह अंक प्रकाशित हुआ है वह इस पटल के दायित्व-भाव का ही द्योतक है. इस अंक में प्रस्तुत हुए आला शायरों के साथ मुझे भी सम्मिलित कर मुझ नाचीज़ को बहुत ही मान दिया गया है. इस हेतु मैं पंकज भाई और की उनकी टीम का हार्दिक आभारी हूँ.


    आदरणीय राकेश भाई की इस मुशायरे की तीसरी प्रस्तुति भी उनकी पहली दो प्रस्तुतियों की तरह विशिष्ट है.
    अपनी धरती, अपने समाज से दूर बसे भारतीयों के द्वारा अतुकान्त परिस्थितियों में भी अपने त्यौहार मनाने के प्रयासों एवं अपनी परम्पराओं के निर्वहन हेतु किये जाने वाले समझौतों का मार्मिक बखान है. हार्दिक बधाई, आदरणीय.


    आदरणीय तिलकराज भाईजी की ग़ज़ल सामाजिक और पारिवारिक विडंबनाओं और आजके व्यवहारों या जीने के तरीक़ों पर बराबर समझाइश के साथ प्रस्तुत हुई है. मतले से ही ग़ज़ल अपनी दिशा तय कर देती है. तभी ऐसा शेर संभव हो पाता है -

    समय के साथ सीखा है गरल पीकर भी जी लेना
    हमारे बाद कैसे आप हम जैसे तलाशेंगे
    कमाल कमाल कमाल !
    तिलकराज भाईजी. इन भावों को शाब्दिक करने केलिए हार्दिक धन्यवाद. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ


    आदरणीय गिरीश पंकज जी में एक सफल व्यंग्यकार भी जीता जिसकी ख़ुराक़ ही अपने आस-पास की विसंगतियाँ हैं. लेकिन क्या ही कमाल के कौशल से उनके शायर ने सकारात्मक भावों को उभारा है. बहुत ख़ूब, आदरणीय गिरीश भाईजी. हार्दिक शुभकामनाएँ


    आदरणीय नीरज भाईजी की सदाशयता और रचनात्मकता का जो रूप इस पटल के ज़रीये हमसबने देखा-समझा है, उसके अलावा भी मैं इस मामले में भाग्यशाली रहा हूँ. यह नीरज भाई की प्रकृति और इसकी सकारात्मकता ही है जो ऐसे शेर आपसे संभव हो पाते हैं -

    हज़ारों फूल कलियाँ तितलियों देखो हैं गुलशन में
    मगर कुछ सिरफिरे केवल यहाँ काँटॆ तलाशेंगे
    वाह नीरज भाईजी, वाह ! हार्दिक बधाइयाँ .. आप ऐसे ही बने रहें. शुभ-शुभ

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    1. आपका बहुत-बहुत आभार।
      रात आधी बीत जाने पर विचार जिस भाव को जन्म दे वही शायद सुबह तक के लिए स्थायी हो जाता है। इस ग़ज़ल में यही हुआ। ग़ज़ल कहते समय संबंधों में अंधियार कुछ इस प्रकार छाया कि और कुछ कहते न बना।

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  12. ख़ूबसूरत भावों को संजोये राकेश जी के गीत, ऐसा लगता है कि गीत उनमें कुछ ऐसे रच बस गये हैं कि उनका सामान्य संवाद भी गीतात्मक होता होगा। जैसे दृश्य की प्रतीक्षा में आतुर कलम दृश्य सामने आते ही स्वतः दौड़ने लगती हो।
    बहुत खूबसूरत गीत।
    गिरीश पंकज जी की स्थिति लगभग वही है गजल इनमें इस तरह रच बस गई है कि तरही मिसरा सामने आया और गजल पूरी हुई। इसके साथ ही उनका हर तरही में उपस्थित होने का उत्साह और वह भी प्राथमिकता के आधार पर निश्चित है प्रशंसनीय है।
    नीरज भाई अनुभवी और स्थापित ग़ज़लकार यूँ ही नहीं हैं और जीवन रहस्य इस सरलता से कह जाते हैं कि सुनने पढ़ने वाला प्रभावित होकर अपने अंतस को तलाशने को मजबूर हो जाए। इसे मात्र उम्र का प्रभाव नहीं कहा जा सकता है। सरल होने से सोच और भाषा सरल होती है अन्यथा जीवन की सरलता को जटिल बनाने में तो सभी व्यस्त हैं।
    सौरभ जी की भाषा पर पकड़, सरलता, सौम्यता और सहजता ही ख़ामोश गलियों में जिये रिश्तों से पतंगों की उड़ानों तक का इंद्रधनुष सफर इस सहजता से रच सकती है।
    मैं अपनी बात करूँ तो अब ग़ज़ल कहना लगभग बन्द ही है। मुझे याद नहीं कि पिछली तरही और इस तरही के बीच कोई और ग़ज़ल हुई हो। अलबत्ता इक्का-दुक्का शेर ज़रूर हो जाते हैं यदा-कदा। यहाँ की तरही परिवार में लौट आने का एक ऐसा अवसर होती है कि रुका नहीं जाता। ईश्वर आप सब का यह स्नेह बनाये रखे।
    पंकज भाई का विशेष आभार इस आयोजन और प्रस्तुत रचनाओं की विस्तृत समीक्षा के लिये।

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    1. आपका हार्दिक आभार। स्नेह बना रहे।

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    2. हृदयतल से आपका धन्यवाद, आदरणीय तिलकराज जी.

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  13. .. सभी आदरणीय जनों को नमस्कार और भैया दूज की ढेर सारी शुभकामनाएं आप सभी को थोड़ा-थोड़ा पढ़ा मैंने आप सबों की रचनाएं और गजलें एक से बढ़कर एक है राकेश जी को पढ़ना अपने आप में एक अद्भुत अनुभूति है बहुत ही अच्छा लगा उनका गीत....... तिलक राज जी की गजलें कमाल की हैं.. आप सभी महानुभाव अपने-अपने क्षेत्र में माहिर हैं लेकिन साहित्य की सेवा में आप लोग जो दे रहे हैं वह भी बहुत बड़ी बात है... चर्चा मंच के जरिए आप के लोगों के ब्लोग तक और रचनाओं तक पहुंचपाई इसकी मुझे बहुत खुशी है..!!

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  14. दिगाजों को पद्धने का एक अलग ही आनंद है और कई कई बार आ के सभी गजलों की बारीकियों को पढने का अवसर और लोभ भी होता है जो सभी को इस मुशायरे में खींच लाता है ...
    आदरणीय राकेश जी के गीत के साथ आगाज़ होती हर पोस्ट शुरुआत से ही नया मुकाम दे देती है इस तरही को ...
    फिर ... यहाँ तो आदरणीय तिलक जी, गिरीश जी, सौरभ जी और नीरज जी ... एक से बढ़ कर एक कमाल के शेर .... और हर शेर पे हमारी वाह वाह ... सच में दिवाली का आनंद पटाखों से भी ज्यादा आया आज ...
    सभी को दीपावली की बधाई ...

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय दिगम्बर नासवा जी.

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  15. राकेश जी खांड के खिलौनों की मिठास के लिए विशेष बधाई। तिलक जी बड़ी ही प्यारी ग़ज़ल है। विशेषकर संबंधों वाला शेर। गिरीश जी क्या बात है। अनेक शेर गुफ़्तेगू की नुमाइन्दगी कर रहे हैं। नीरज भैया शुरू से आख़िर तक बड़ी ही प्यारी ग़ज़ल। वार, काँटे, रिश्ते और आख़िरी बच्चे वाला शेर तो बहुत ही गहरा है। प्रणाम। सौरभ जी बढिया ग़ज़ल, विशेष रूप से हॄदय में भाव और चिनकती धूप वाले शेर बड़े ही प्यारे हुए हैं। आप सभी को बहुत बहुत बधाई।

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  16. आपसे मिली प्रशंसा आश्वस्त करती है, आदरणीय नवीन जी. हार्दिक धन्यवाद.

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