गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

ऐसी दीपावली जिसकी हर किसी को प्रतीक्षा होती है एक से बढ़कर एक दीपकों के प्रकाश से सजी दीपावली की ये तरही दीपमाला।

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शुभ दीपावली-शुभ दीपावली-शुभ दीपावली

लीजिए आज दीपावली भी आ गई। दीपों का ये त्‍योहार आप सबके जीवन में खुशियां लाए उजाला लाए और समृद्धि लाए। सुबीर संवाद सेवा पर आयोजनों का सिलसिला इसी प्रकार चलता रहे। हम सब लिखते रहें सिरजते रहें। विचारों को शब्‍दों का लिबास पहना कर रचनाओं में ढालते रहें। जीवन में उत्‍साह हो, उमंग हो और गति हो। क्‍योंकि प्रगति से अधिक आवश्‍यक है गति। हम अपनी गति से गतिमान रहें । हमारे जीवन में दीपमालाओं का प्रकाश हमेशा उजास भरता रहे। आप सब आने वाले वर्ष भर खुशियों में, उमंगों में, आनंद में सराबोर रहें। वो सब कुछ मिले जिसकी इच्‍छा की हो। मंगल कामनाएं, शुभकामनाएं। आनंद आनंद आनंद।

आज तो सचमुच दीपावली ही हो रही है । और इतनी उजासमय दीपावली कि हर ओर केवल प्रकाश ही प्रकाश है । दिग्‍गज रचनाकारों के शब्‍दों के दीपकों का प्रकाश आज दीपावली को प्रकाशमान कर रहा है । तो आइये उल्‍लास में डूबते हैं और चलते हैं तरही की दीपमाला की ओर। राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्‍डेय जी, नुसरत मेहदी जी, द्विजेन्‍द्र द्विज जी, नीरज गोस्‍वामी जी, तिलकराज कपूर जी, राजीव भरोल और विनोद पाण्‍डेय के साथ आइये मनाते हैं दीपावली ।

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अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

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राकेश खंडेलवाल जी

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अंधेरी रात में जब दीप  झिलमिलाते हैं

कक्ष में बैठी हुई पसरी उदासी जम कर
शून्य सा  भर गया है  आन कर निगाहों में
और निगले है  छागलों को प्यास उगती हुई
तृप्ति को बून्द नहीं है  गगन की राहों में
फ़्रेम ईजिल पे टँगा है  क्षितिज की सूना सा
रंग कूची की कोई उँगली भी न छू पाते हैं
इन सभी को नये आयाम मिला करते हैं
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

लेके अँगड़ाई नई पाँव उठे मौसम के
सांझ ने पहनी नई साड़ी नये रंगों की
फिर थिरकने लगी पायल गगन के गंगातट
चटखने लग गई है धूप नव उमंगों की
दिन की आवारगी में भटके हुये यायावर
लौट दहलीज पे आ अल्पना सजाते हैं
इक नई आभ नया रूप निखर आता है
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

पंचवटियां हुई हैं आज सुहागन  फिर से
अब ना मारीच का भ्रम जाल फ़ैल पायेगा
रेख खींचेगा नहीं कोई बंदिशों की अब
कोई न भूमिसुता को नजर लगाएगा
शक्ति का पुञ्ज पूज्य होता रहा हर युग में
बात भूली हुई ये आज फिर बताते हैं
हमें ये भूली धरोहर का ज्ञान देते हैं
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं 

राकेश जी के गीतों में शब्‍द मोती माणिक की तरह जड़े होते हैं । और उन पर जब विचारों का प्रकाश पड़ता है तो दसों दिशाओं में झिलमिल सी होने लगती है । दीपावली के दिन राकेश जी का गीत पढ़ना इससे अच्‍छा संयोग और क्‍या होगा। पंचवटियों के सुहागन होने का बिम्‍ब और उस पर मारीच का भ्रम जाल, वाह क्‍या प्रयोग किया है । उसी प्रकार सांझ द्वारा पहनी हुई नए रंगों की साड़ी का प्रतीक भी खूब है । दिन की आवारगी के भटके हुए यायावरों द्वारा दहलीज पर आकर अल्‍पना सजाना, कमाल है। बहुत ही सुंदर गीत । बहुत सुंदर, वाह वाह वाह।

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Saurabh

सौरभ पाण्‍डेय जी

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अनेक भाव हृदय में उकेर जाते हैं ।
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं ॥

किसी उदास की पीड़ा सजल हृदय में ले
निशा निराश हुई, चुप वृथा पड़ी सी थी
तथा निग़ाह कहीं दूर व्योम में उलझी
किसी करीब के होने की आस जीती थी

मगर रुकी है कहाँ ज़िन्दग़ी किसी पल भी
इसी विचार को समवेत स्वर में गाते हैं--
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं !!

उतावली कोई अल्हड़ झिंझोर दे मणियाँ
कभी लगे कि झरे पारिजात अदबद कर
रसालकुंज अघाया, हुआ मताया-सा
कुमारियों की नरम देह झुक गयी लद कर

शकुंतला है इन्हीं वृक्ष, वन-लताओं में 
पुलक-पुकार से दुष्यंत फिर बुलाते हैं !
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं !!

धरा के अंग पे सुन्दर लगें ये आभूषण
कभी सुहाग के कुंकुम बने निखरते हैं
महावरों की लकीरों-से रच गये, या फिर- 
सुहाग-रंग छुए अंग बन-सँवरते हैं

लगे धरा ये सिहरती हुई नयी दुल्हन
’अटल रहे तेरा अहिवात..’ बोल भाते हैं !
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं !!

सौरभ जी की गीतों में मैं अक्‍सर तलाशता हूं कि कहां कोई बोली का, लोक का शब्‍द आया है। ये शब्‍द एक मीठी सी ध्‍वनि कानों में घोल देते हैं । जैसे कि पारिजात का 'अदबद' कर गिरना। अब ये 'अदबद' क्‍या है, इसकी व्‍याख्‍या नहीं हो सकती । ये लोक का शब्‍द है । हमारे लोक के शब्‍द विलुप्‍त हो रहे हैं, उन्‍हें बचाने हेतु सौरभ जी का साधुवाद। रसालकुंज का अघाना... उफ क्‍या बिम्‍ब है । अहा आनंद ही आ गया । कुंकुम, महावर के साथ 'सुहाग रंग छुए अंग' आहा क्‍या कह दिया है । पंक्ति दिल में उतरती चली गई है । अटल रहे तेरा अहिवात का प्रयोग धरा के संदर्भ में खूब है । सुंदर गीत । वाह वाह वाह।

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नुसरत मेहदी जी

नुसरत दी अमेरिका का दो माह का बहुत व्‍यस्‍त दौरा पूरा करके लौटी हैं। और सफर में ही ट्रेन से मुझे मैसेज किया कि पंकज तरही में मैं भी आऊंगी। और कल ही रात को उनकी ये ग़ज़ल मुझे मोबाइल पर मिली । सचमुच इस प्रकार की आत्‍मीयता को देख कर लग रहा है कि सुबीर संवाद सेवा को इतने दिनों से कम सक्रिय रख कर मैंने कितना कुछ खोया ।

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यक़ीन उनको बज़ाहिर तो हम दिखाते हैं
पर उनकी वादा खिलाफी से डर भी जाते हैं

ये सोचकर कि तग़ाफ़ुल तो उन की फ़ितरत है
हम अपने दिल को बड़ी देर तक मनाते हैं

अना कहाँ है मोहब्बत में ये भी होता है
ख़फा भी होतें हैं और ख़ुद ही मान जातें हैं

चमकने लगते हैं कुछ और ख्वाब आँखों में
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

मैं बदगुमाँ नहीं तुमसे मगर ये जग वाले
ये बदगुमानी के क़िस्से बहुत सुनाते हैं

उसे तो लौट ही आना था और वो लौट आया
कि दिन ढले तो परिंदे भी लौट आते हैं

थकन से चूर मुसाफिर ज़रा ख़्याल रहे
तेरे सफर में मिरे रतजगे भी आते हैं

ग़ज़ल के बारे में क्‍या कहूं । गिरह का शेर ही क्‍या खूब बांधा गया है । मिसरा उला में 'और' शब्‍द क्‍या कमाल आया है। और मतला तो उफ उफ है । दोनों स्थितियों को दो मिसरों में कमाल कमाल बांधा है । मगर जिस शेर में रंग-ए-नुसरत मेहदी है वो है अ‍ाखिर का शेर । इस शेर को सुन कर लक्ष्‍मण और उर्मिला की याद आ गई । यकीनन ये शेर उर्मिला की ओर से राम के साथ वनवास को गए लक्ष्‍मण के लिए ही है । तेरे सफर में मेरे रतजगे भी आते हैं । वाह कमाल किया है । उसे तो लौट ही आना था और वो लौट आया, मिसरे में कितनी नफासत से बुनाई की गई है कि जोड़ नज़र ही न आए। किसी के लौट आने को दिन ढले लोटे परिंदों से तुलना करना खूब । सुंदर ग़ज़ल अति सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।

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द्विजेन्द्र ‘द्विज’ जी

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क़दम-क़दम पे उजाले ग़ज़ल सुनाते हैं
‘अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं’

चिराग़  रौशनी  का गीत गुनगुनाते हैं
नई उमंग के मौसम पलट के आते हैं

तिमिर के पाँव उजालों से थरथरा उठ्ठें
हम इस मुराद से दीपावली मनाते हैं

महक जब उठता है उल्लास दिल के आँगन में
हमारे हौसलों के फूल मुस्कुराते हैं

पटाख़े दिल में उमंगों के कम नहीं यारो !
फिर आप आग से बारूद क्यों जलाते हैं ?

अँधेरे बैर के दिल से निकालिए साहब
दीए जलाने का दस्तूर क्यों निभाते हैं ?

जिगर के टुकड़ों को परदेस भेज कर यारो !
बताओ हम कोई दीपावली मनाते है?

अब इन्तज़ार में आँखें भी आसमान हुईं
सितारे आस के हर वक़्त टिमटिमाते हैं

हवाई हौसलों की आसमाँ छुए यारो !
दुआ हम आज ये अपने लबों पे लाते हैं

है घर न घर में कोई मुन्तज़र कहीं जिनका
‘द्विज’ उनके दिल में दिए आग-ही लगाते हैं ।

पटाखे दिल में उमंगों के कम नहीं यारों, अहा क्‍या बात कही है द्विज जी, मज़ा आ गया। सच कहा दिल में इतनी उमंगें हैं तो बारूद की ज़रूरत ही क्‍या है । इन्‍तज़ार में आंखों का आसमान हो जाना, खूब कहा है । अँधेरे बैर के दिल से निकालिए साहब में मिसरा सानी कमाल का रचा गया है। दस्‍तूर शब्‍द को खूब पिरोया गया है मिसरे में । वाह। और मेरे मन का शेर जिगर के टुकड़ों को परदेस भेज कर यारों, बताओ हम कोई दीपावली मनाते हैं, उदास कर गया अंदर तक ये शेर। सच कहा जब अपने बच्‍चे साथ हों तभी तो दीपावली होती है । दोनों मतले भी बहुत ही सुंदर और सकारात्‍मक सोच से भरे हुए हैं । बहुत ही उम्‍दा ग़ज़ल। अति सुंदर। वाह वाह वाह।

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neeraj ji

नीरज गोस्‍वामी जी

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दुबक के ग़म मेरे जाने किधर को जाते हैं
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

हज़ार बार कहा यूँ न देखिये मुझको
हज़ार बार मगर, देख कर सताते हैं

उदासियों से मुहब्बत किया नहीं करते
हुआ हुआ सो हुआ भूल, खिलखिलाते हैं   

हमें पता है कि मौका मिला तो काटेगा
हमीं ये दूध मगर सांप को पिलाते हैं

कमाल लोग वो लगते हैं मुझ को दुनिया में 
जो बात बात पे बस कहकहे लगाते हैं

जहाँ बदलने की कोशिश ही की नहीं हमने
बदल के खुद ही जमाने को हम दिखाते हैं
  

बहुत करीब हैं दिल के मेरे सभी दुश्मन
निपटना दोस्तों से वो मुझे सिखाते हैं

गिला करूँ मैं किसी बात पर अगर उनसे
तो वो पलट के  मुझे आईना दिखाते हैं
  

रहो करीब तो कड़ुवाहटें पनपती हैं
मिठास रिश्तों की कुछ फासले बढ़ाते हैं

नहीं पसंद जिन्हें फूल वो सही हैं, मगर
गलत हैं वो जो सदा खार ही उगाते हैं
     

ये बादशाह दिए रोंद कर अंधेरों को
गुलाम मान के, अपने तले दबाते हैं   

बहुत कठिन है जहां में सभी को खुश रखना
कि लोग रब पे भी तो उँगलियाँ उठाते हैं
   

जिसे अंधेरों से बेहद लगाव हो 'नीरज'
चराग सामने उसके नहीं जलाते हैं 

हज़ार बार कहा यूँ न देखिये हमको, क्‍या मासूम शेर है। रंगे नीरज से रँगा हुआ शेर। मिसरा सानी की मासूमियत पर तो कुर्बान। दीपकों के लिए बादशाह का प्रयोग और अंधेरे के लिए गुलाम का बिम्‍ब बहुत ही खूब बना है उसे शेर में । ये पूरी ग़ज़ल रंग-ए-नीरज से सराबोर ग़ज़ल है । जिसमें क़दम क़दम पर आपको सकारात्‍मक सोच मिलेगी और मिलेगा जीवन का आनंद। जैसे एक मिसरा उदासियों से मुहब्‍बत नहीं किया करते, क्‍या खूब कहा है। हुआ, हुआ सो हुआ। सब भूल कर खिलखिलाना ही तो नीरज गोस्‍वामी की ग़ज़लों की विशेषता है। जहां बदलने की कोशिश के बदले अपने आप को ही बदलना, खूब कहा है । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

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Tilak Raj Kapoor

तिलक राज कपूर जी

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जरा ठहरिये दिया घर में भी जलाते हैं
अभी सियाह अंधेरे में कुछ अहाते हैं।

दियों की रीत है जलते हैं मुस्कुराते हैं
जहॉं भी स्नेह मिले ये तिमिर भगाते हैं।

लहू में दौड़ रही हैं नसीहतें मां की
सियाह काम हमेशा मुझे डराते हैं।

जहां की खैर मना के मनाइये अपनी
बड़े बुजुर्ग हमारे यही सिखाते हैं।

हर एक रात सवेरे की आस दिखती है
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं।

हवा में बढ़ने लगी है सड़ॉंध नफ़रत की
चलो कि पौध मुहब्बत की हम लगाते हैं।

तुम्हीं कहो कि सितारों से क्या मुहब्बत जो
हदों से दूर, बहुत दूर जगमगाते हैं।

और तीन मत्ले के शेर विशेष तौर पर जवान, किसान और मेहनतकश के लिये 

ढकी है बर्फ़ से सरहद जिसे बचाते हैं
वतन की ओर उठी ऑंख हम झुकाते हैं।

किसान खेत में अपना लहू जलाते हैं
उसी के दम पे हरे खेत लहलहाते हैं।

लिये बदन में थकन जो शयन को जाते हैं
जनाब नींद की गोली कहॉं वो खाते हैं।

लहू में दौड़ रही है नसीहतें मां की, बहुत ही सुंदर तरीके से और सलीके से बात को कहा गया है इस शेर में । मां की नसीहतों से बुराई से लड़ने की प्रेरणा, वाह । मतला बहुत गंभीर इशारा कर रहा है । घर में दीपक जलाने के पहले उन अँधेरों को मिटाने का भी प्रयास हो जो घर के बाहर हैं। तीन विशेष रूप से बनाए गए मतले बहुत अच्‍छे बने हैं । विशेषकर जवान वाले मतले में मिसरा सानी खूब अच्‍छा है। किसान के लहू से खेतों में हरियाली होने की बात और सोच दोनों को सलाम। सच में यदि किसान खेतों में अपना लहू न बहाए तो ये हरियाली हो ही नहीं। और नफरत की सड़ांध को हटाने की लिए पौधे लगाने की भावना सुदंर है । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।

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राजीव भरोल

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उसे उसी की ये कड़वी दवा पिलाते हैं,
चल आईने को ज़रा आइना दिखाते हैं.

गुज़र तो जाते हैं बादल ग़मों के भी लेकिन,
हसीन चेहरों पे आज़ार छोड़ जाते हैं.

खुद अपने ज़र्फ़ पे क्यों इस कदर भरोसा है,
कभी ये सोचा की खुद को भी आजमाते हैं?

वो एक शख्स जो हम सब को भूल बैठा है,
मैं सोचता हूँ उसे हम भी भूल जाते हैं
.

अगर किसी को कोई वास्ता नहीं मुझसे,
तो मेरी ओर ये पत्थर कहाँ से आते हैं.

तुम्हारी यादों की बगिया में है नमी इतनी,
टहलने निकलें तो पल भर में भीग जाते हैं.

तेरी चुनर के सितारों की याद आती है,
"अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं".

अब इस कदर भी तो भोले नहीं हो तुम 'राजीव',
तुम्हें भी सारे इशारे समझ तो आते हैं

तुम्‍हारी यादों की बगिया में है नमी इतनी में जिस प्रकार से मिसरा सानी को रचा है वो कमाल है । टहलने निकलें तो पल भर में भीग जाते हैं । क्‍या खूब, याद रह जाने वाला शेर। वो एक शख्‍स जो हम सब को भूल बैठा है में भी मिसरा सानी चौंकाता हुआ आता है । भुलाने वाले को भूल जाना, क्‍या बात है । कमाल। गिरह का शेर भी कमाल का बना है, सचमुच बहुत सुंदर गिरह। चुनर के सितारों को दीपकों के झिलमिलाने से जोड़ देना। बहुत खूब। मकते की मासूमियत लुभाने वाली है। राजीव ने एक कठिन काम किया है, कठिन काम होता है मिसरा सानी ज्‍यादा अच्‍छे रच लेना। और राजीव ने मिसरा सानी सारे खूब कहे हैं। मकते में भी यही बात है । बहुत सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।

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विनोद पाण्डेय

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चलो के मिल  के ये दीपावली मनाते है
ख़ुशी के रंग से तन-मन-सपन सजाते हैं

मचल रहा है गगन देख रूप धरती का
दीये हम अपने घर आँगन में जब जलाते हैं

नयी उम्‍मीद नया जोश मन में भरता है
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं ।

ख़ुशी की रोशनी और प्रीति की ध्वनि उपजे
चलो दुःखो के पटाखे सभी बजाते हैं

रखो ये बात सदा याद, प्यार में हो गर
हँसाने वाले ही एक दिन यहाँ रुलाते है

वो क्यों डरेंगे भला डूबने से दरिया में
नहीं जो छोड़ किनारा कभी भी जाते हैं

बहुत जो बोलते हैं बात आजमाने की
नहीं कभी वो मुसीबत में काम आते हैं

विनोद पाण्‍डेय की ग़ज़ल भी तरही में दौड़ते भागते शामिल हुई है अंतिम समय पर । लेकिन बात वही है कि इस जज्‍़बे को सलाम जिसके चलते सुबीर संवाद सेवा के इस आयोजन को सार्थक बनाने सब एक एक कर आ गए । हँसाने वाले ही एक दिन यहां रुलाते हैं शेर में प्रेम की मुकम्‍मल परिभाषा गढ़ दी गई है । सचमुच निसे हम प्रेम करते हैं जिन के प्रेम में आनंदित होते हैं वही दुखी कर देते हैं । किनारा छोड़ कर नहीं जाने वालों पर बहुत सुंदर कटाक्ष किया गया है । बोलने वाले मुसीबत में काम नहीं आते हैं ये शेर में अच्‍छा बना है । गिरह का शेर सुंदर तरीके सक गढ़ा है । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह ।

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वाह वाह वाह आज तो कमाल हो ही गया है । क्‍या सुंदर दीपमाला है । एक से एक दीप । और गीतों ग़ज़लों की लडिय़ां इस प्रकार जगमगा रही हैं कि हर तरफ उजाला हो रहा है । सुबीर संवाद सेवा का सन्‍नाटा भी क्‍या खूब टूटा है । ऐसा लग ही नहीं रहा कि यहां पर अभी कल तक शांति थी। जिस उत्‍साह से आप सब अपनी रचनाएं लेकर आए उसने मन को अंदर तक छू लिया है । मन बहुत भीगा हुआ सा है । सो भीगे मन से एक घोषणा 'मेरे करण अर्जुन आएंगे' ..... उफ क्षमा करें 'भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के आएंगे, जल्‍द ही अपनी तरही ग़ज़ल लेकर आएंगे' ।

शुभ हो दीपावली का ये पर्व । आप सब के लिए मंगलमय हो ये त्‍योहार। शुभ दीपावली।

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56 टिप्‍पणियां:

  1. राकेश जी के गीतों के साथ आज के तरही मुशायरा का बेहतरीन आगाज हुआ । राकेश जी के गीतों का तो मै बहुत पहले से ही पसंद करता हूँ । उनके शब्द चयन लाजवाब होते हैं । दिवाली के पर्व की बात और अंदाज को बयां करना और वो भी ऐसी सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से, वो राकेश जी जैसे श्रेष्ठ गीतकार के लिए ही संभव है । पंचवटी और मारीच जैसे शब्दों का प्रयोग तो दिल जीत लिया । राकेश जी को दिल से बधाई और सादर प्रणाम । सौरभ जी ने एक बेहतरीन रचना प्रस्तुत की है । कहीं जिंदगी , कहीं अल्हड़ता, कहीं दुल्हन अनेक सुन्दर प्रयोग और सुन्दर भाव से सजी रचना । हार्दिक बधाई सौरभ जी । आज ग़ज़ल की शुरुआत नुसरत जी की तरही मुशायरे से हुई । इतनी व्यस्तता के बावजूद भी इतने बेहतरीन शेर कहे आपने । आपकी ग़ज़ल आज के मुशायरे में चार चाँद लगा दी । बहुत बहुत शुक्रिया और बधाई । द्विज जी, ने बुजुर्गो और पपरदेस वाली भाव को शेर में कह कर भावुक कर दिया । सारे शेर सुन्दर बन बड़े है । बधाई आपको । नीरज जी , तिलकराज कपूर जी आप दोनों के ग़ज़ल का इंतज़ार मुझे प्रारम्भ से ही था । लाज़वाब प्रयोग और सुन्दर ग़ज़ल । राजीव जी आईने को आइना दिखाने वाला सुन्दर प्रयोग बन पड़ा है । सुन्दर शेर से सजे इस पूरी ग़ज़ल के लिए आपको बधाई । अपने बारे में इतना कहूँगा सीख रहा हूँ , पंकज जी का स्नेह है तो सब ठीक ही रहेगा । आप सभी के साथ आज दिवाली के अवसर पर मुशायरे में हूँ यह मेरा सौभाग्य है । पंकज जी को ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें ।

    सभी को प्रणाम और दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विनोद भाई..
      दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. राकेश खंडेलवाल जी के गीत की प्रतीक्षा हर आयोजन में रहती आई है, शब्‍दों की कूची से जैसे कोई मनोयोगी चित्रकार चित्र पेंट कर दे। वही प्रभाव आज की प्रस्‍तुति में भी है। गज़ब। एक बेहद खूबसूरत रचना पढ़ने को मिली।
    सौरभ पांडेय जी को जब-जब पढ़ा आश्‍वस्‍त हुआ कि हिन्‍दी का वह युग अभी समाप्‍त नहीं हुआ है जो लयात्‍मक काव्‍य की पहचान हुआ करता था। एक और खूबसूरत गीत पढ़ने को मिला।
    नुसरत जी की ग़ज़ल की पुख्‍़तगी हमेशा की तरह एक अलग ही आनंद देती है। प्रस्‍तुत ग़ज़ल का हर शेर मुलायमियत, नज़ाक़त और नफ़ासत से इस तरह अपनी बात कहता है कि एक पल को ठिठकने पर मजबूर कर देता है।
    द्विजेन्‍द्र जी की ग़ज़ल मत्‍ले के शेर की तरह ही कदम-कदम पे उजाले बिखेरती हुई तीसरे शेर में दीपावली की मुराद से तिमिर के पॉंव थरथराने की बात जब करती है तो एकाएक दीपक की रक्‍स करती लौ से बचने का प्रयास करते अंधेरों का दृश्‍य आंखों के सामने आ जाता है। बेहद खूबसूरत ग़ज़ल।
    नीरज जी की ग़ज़ल; ग़ज़ल नहीं है; स्‍वयं नीरज जी हैं। बिना लाग-लपेट के सीधे साधे शब्‍दों अल्‍हड़पन, जीवन का अनुभव, फ़की़री और दार्शनिकता एक साथ दिखती है। एक सच्‍चा शायर ही कह सकता है कि लोग रब पर भी तो अंगुलियां उठाते हैं।
    राजीव, भाई कमाल हो, यू. एस. में इतने अर्से से रहकर भी नहीं बदले। आईने को आईना दिखाने का साहस तो हिन्‍दुस्‍तान ही कर सकता है, बाकी सब तो व्‍यापारी हैं। भाई क्‍या बाकमाल शेर कहे हैं। किस शेर की बात करूँ, हर शेर लाजवाब और बेहद खूबसूरत गिरह।
    विनोद पांडे जी भले ही दौड़ते-भागते शामिल हुए लेकिन ग़ज़ल कहने में कोई कसर नहीं रखी और दुखों के पटाख़े बजाने की बात खूब कही।
    और अब इंतज़ार है भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के जी के शतकीय चौके-छक्‍के का।

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    1. इस मुखर अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तिलकराजजी..
      दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ..
      सादर

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    2. NUSRAT MEHDI
      Aap ki bht khoobsoorat ghazal ke liye bhi mubarakbad pesh karti hun.

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  3. जब ऐसे दिग्गजों के साथ खुद को खड़ा पाता हूँ तो लगता है जैसे मखमल में टाट का पैबंद लगा है। जिनसे कहना पढ़ना सीखा उनके साथ खड़े रहने का एहसास लफ़्ज़ों में बयान नहीं किया सकता। अपनी तो बोलती ही बंद हो गयी है। राजीव के "तुम्हारी याद की बगिया" वाला शेर साथ लेकर जाने से पहले आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं देता हूँ।

    होश में आया तो फिर लौटूंगा।

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    1. मेरे दिल की बात आपकी ओर से आयी, आदरणीय नीरज भाई..
      इस मंच के प्रति मेरे मन में आदर के भाव हैं
      प्रोत्साहन तथा संर्वद्धन का ऐसा संयोग अद्भुत है. ऐसा वातावरण कम मंचों पर मिलता है.
      आपके कहे की प्रतीक्षा है.. .

      दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

      हटाएं
  4. बड़े बड़े दिग्गजों के बीच में मेरी ग़ज़ल ऐसे है जैसे WWE के रिंग में बड़े पहलवानों के बीच में कोई बच्चा फंस जाए. :)

    राकेश जी को गीतों का राजकुमार ऐसे ही नहीं कहा जाता. माँ सरस्वती की आप पर विशेष कृपा है. आपका हर गीत मंत्रमुग्ध करता है.. यह गीत भी कोई अपवाद नहीं हैं. इस सुंदर गीत के लिए राकेश को बहुत बहुत धन्यवाद.

    सौरभ जी की अभी तक गज़लें ही पढ़ी हैं. गीत पहली बार पढ़ रहा हूँ और निशब्द हूँ. कई बार पढ़ चुका हूँ. बहुत ही खूबसूरत गीत है. अद्भुत. सौरभ जी को दिली मुबारकबाद.

    नुसरत जी अमेरिका का दौरा कर के लौट भी गईं.. पता होता तो शायद हम भी मिल लेते. कमाल के शेर कहे हैं. “अना कहाँ है मुहब्बत में..”, “दिन ढले तो परिंदे भी लौट आते हैं..” खास तौर पर पसंद आये. गिरह भी खूब है.. हार्दिक बधाई.

    द्विज जी का मैं एक बड़ा फैन हूँ. आपकी हर ग़ज़ल कमाल होती है. “तिमिर के पाँव उजालों से थरथरा
    ..”, “महक जब उठता है", “पटाखे दिल में..”, “अँधेरे बैर के दिल से निकालिए साहब..” ख़ास तौर पर पसंद आये. “जिगर के टुकड़ों को परदेश भेज कर यारो..” में बेटे के नौकरी के कारन दूर जाने का दर्द झलक रहा है. द्विज जी को इस खूबसूरत पेशकश के लिए बधाई और धन्यवाद.

    सीधे सादे शब्दों में गहरी बात कहना और सहज में ही ग़ज़ल कह डालने का हुनर नीरज जी के ही पास है...बहुत ही प्यारा मतला.”हज़ार बार कहा..”, “उदासियों से मुहब्बत किया नहीं करते..” “कमाल लोग वो लगते हैं..”,”जहाँ बदलने की कोशिश..” “बहुत करीब हैं दिल के मेरे सभी दुश्मन...” “गिला करूं मैं..””रहो करीब तो ..” “नहीं पसंद जिन्हें फूल..” “ये बादशाह दिए..”... सब के सब सादा जुबान में, लेकिन असरदार शेर.. मक्ता भी बेहद पसंद आया. नीरज जी को दिली दाद और हार्दिक बधाई.

    तिलक जी गजलों के सचिन तेंदुलकर है. सहज ही में पंद्रह बीस शेर कह देना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं.. इस बार चलो १० शेरो से ही काम चलाते हैं.. मतला कमाल का है. “लहू में दौड़ रही हैं..” बहुत सुंदर शेर है..”जहाँ की खैर मना कर मनाइए..” वाह. बढ़िया गिरह. “हवा में बढ़ने लगी है सड़ांध नफरत की" सुंदर शेर, बहुत खूबसूरत सानी. आखिरी शेर तो लाजवाब है. दिली दाद. और तीनो मतले भी खूब हैं. तिलक जी को हार्दिक बधाई और धन्यवाद.

    विनोद जी, भागते दौड़ते भी ऐसी ग़ज़ल कह डाली? सभी शेर पसंद आये. “बहुत जो बोलते हैं बात आजमाने की..”, “वो क्यों डरेंगे भला डूबने से दरिया में..” खास तौर पर अच्छे लगे. हार्दिक बधाई.

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  5. ये आठ के ठाठ हैं बन्धू। ऐसा लग रहा है जैसे अमावस की रात में आसमान से रोशनी की बारिश हो रही हो। राकेश जी के गीत ने इस पोस्ट को जो शुरुआत दी है उसके बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है। राकेश जी तो हर बार की तरह इस बार भी लाजवाब हैं।

    सौरभ जी के गीतों की धार दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सौरभ जी अपने गीतों में देशज और संस्कृतनिष्ठ शब्दों के अद्भुत संगम से मारक प्रयोग करते हैं। उन्हें इस गीत के लिए बहुत बहुत बधाई।

    नुसरत जी ने शे’र दर शे’र रंग जमाया है और "थकन से चूर ........." जैसा कालजयी शे’र कहकर मुशायरे में चार चाँद लगा दिये हैं।

    द्विज ने हमेशा की तरह बेहतरीन अश’आर से सजी ग़ज़ल कहकर मुशायरे को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। किस शे’र की तारीफ़ करूँ किस को छोड़ूँ। "जिगर के टुकड़ों..." जैसा अनुभूतिजन्य शे’र कहकर और "....आँखे भी आसमान हुईं....." जैसे अद्भुत प्रयोग कर दिल जीत ले गये द्विज जी। उन्हें तह-ए-दिल से बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए।

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    1. अनुमोदन के लिए हृदय से धन्यवाद धर्मेन्द्र भाई..
      शुभ-शुभ

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  6. नीरज जी ने अपने अलग अंदाज में एक के बाद एक शानदार शे’र कहे हैं। उनकी इस सादगी का तो मैं कायल हूँ। कहा भी गया है कि सबसे कठिन है सरल होना। नीरज जी को इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।

    तिलक जी तो किसी भी काफ़िए रदीफ़ पर लगातार एक के बाद एक शानदार शे’र निकाल सकते हैं। यहाँ भी उन्होंने अपने शानदार अश’आर से समाँ बाँध दिया है। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस ग़ज़ल के लिए।

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  7. "तुम्हारी यादों की बगिया........." जैसा शे’र कहकर राजीव जी ने दिल जीत लिया। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए उन्हें तह-द-दिल से बधाई।

    अन्त में विनोद जी भले ही दौड़ते भागते शामिल हुए हैं मगर अश’आर उन्होंने बेहद खूबसूरत कहे हैं। "दुखों के पटाखे जैसा शे’र कहकर उन्होंने चार चाँद लगा दिय हैं तरही में। उन्हें बहुत बहुत बधाई।

    और हम करण अर्जुन का इंतजार कयामत तक करेंगे। :)))))

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  8. स्वयंभू नक्षत्रों के जगरमगर करते मनोहारी उजास से प्रदीप्त मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ, आदरणीय पंकजभाईजी. आज मेरे लिए मेरा जगत अनिर्वचनीय है !
    परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली की अनेकानेक शुभकामनाएँ.. .

    कक्ष में बैठी हुई पसरी उदासी जम कर
    शून्य-सा भर गया है आन कर निगाहों में
    और निगले है छागलों को प्यास उगती हुई
    तृप्ति को बून्द नहीं है गगन की राहों में
    फ्रेम ईज़िल पे टंगा है क्षितिज की सूना-सा
    रंग कूँची की कोई उंगली भी न छू पाते हैं !!
    .... अद्भुत !

    या फिर, अंतिम बन्द में - शक्ति का पुञ्ज पूज्य होता रहा हर युग में .. और वह भी कारण सहित !
    पीढ़ी-दर-पीढ़ी जो भूल हुई है, या यों कहें, अक्षम्य विस्मरण का जो श्राप लगा है, संभवतः ऐसी ही पंक्तियों का आविर्भाव श्रापग्रस्तता से विमुक्ति का कारण बने..
    आदरणीय राकेश खण्देलवालजी का मैं अनन्य प्रशंसक हूँ. ह्दय से बधाइयाँ तथा शुभकामनाएँ.. .

    आदरणीया नुसरतजी से मुझे आपके ही सौजन्य से, भाईजी, साक्षात मिलने का अवसर मिला है. मैं आदरणीया की सादग़ी से प्रभावित तब भी था तथा आपकी रचनाधर्मिता से विभोर अब भी हूँ.
    भाईजी, आपके शब्दों में, इस ’तुरत-फुरत’ ग़ज़ल ने आदरणीया की अनुभूतियों की गहराई से वस्तुतः परिचित कराया है. गहन अनुभूतियों को शाब्दिक करने की आपकी शैली चकित कर रही है. किस शेर की बात की जाय, भइया ?!
    अना कहाँ है.. मोहब्बत में ये भी होता है
    ख़फा भी होते हैं और खुद ही मान जाते हैं !!
    .. .. ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब ! क्या अनुभूत भावाभिव्यक्ति है !

    इससे भी सटीक निहितार्थ लिये उसे तो लौट ही आना था और वो लौट आया.. शेर हुआ है. या फिर, थकन से चूर मुसाफिर ज़रा ख़्याल रहे.. .. जिसके बारे में अब कुछ विशेष कहना कोई अर्थ नहीं रखता, विशेषकर तब, जब आपने इस शेर को लेकर इतना कुछ साझा किया है.
    आदरणीया नुसरतजी की रचनाधर्मिता के प्रति सम्मान के भाव रखते हुए मैं आपकी प्रस्तुति को ढेरों दाद कह रहा हूँ.

    आदरणीय द्विजेन्द्र भाईजी को, एक अरसा हुआ, सुनता-पढ़ता रहा हूँ. हर बार हृदय संतुष्ट हो जाता है.
    पटाखे दिल में उमंगों के कम नहीम् यारो.. जैसा शेर कोई यों ही नहीं कह जाता.
    या, जिगर के टुकड़ों को परदेस भेज कर यारो.. ..
    या, अब इन्तज़ार में आँखें आसमान हुईं..
    अनुभव और अनुभूतियों को शाब्दिक करना भा गया, आदरणीय.
    ढेर सारी दाद और बधाइयाँ..

    नीरज गोस्वामी ! यह एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी प्रशंसा वो भी करते पाये जाते हैं, जिन्हें इनसे साक्षात मिलने का अवसर तक नहीं मिला है. यह कमाल आपकी शायरी का नहीं है, ऐसा हो ही नहीं सकता है. आम-फहम शब्द, सहज अभिव्यक्ति, शैली ऐसी कि बात की बात में संवाद बन जाये और कथ्य वो कि हर पढ़नेवाला उसमें अपनी आप-बीती ढूँढे !
    हज़ार बार कहा यूँ न देखिये मुझको.. ..अय-हय-हय !
    जहां बदलने की कोशिश ही की नहीं हमने.. .. येऽऽऽ.. . अगूऽऽत !
    रहो करीब तो कड़वाहटें पनपती हैं.. .. हृदय से कही गयी बात कितनी शाश्वत है !
    और, सब पर भारी मक्ता ! वाह-वाह-वाह !

    कमाल लोग वो लगते हैं मुझको दुनिया में
    जो बात-बात पे बस कहकहे लगाते हैं !..
    .. ..
    शायरी आत्मपरिचय की वाकई सुन्दर और सटीक माध्यम है ! आदरणीय नीरज भाईजी, आप सदा ऐसे ही रहियेगा !

    आदरणीय तिलकराज कपूरजी को मैं अपने हृदय के अत्यंत निकट पाता हूँ. आप मेरे रचनाकर्म की धारा के साक्षी हैं. आपके कहे से मैं आश्वस्त होता हूँ. इस आश्वस्ति से कोई प्रतिक्रिया नहीं अँकुर सकती. हृदय की गहराइयों से अनुमोदन, आदरणीय.
    सादर बधाइयाँ

    भाई राजीव भरोल की ग़ज़लों से प्रभावित रहा हूँ. आपके शेरों का आसमान सदा निरभ्र दिखा है. यह ग़ज़ल भी अपवाद नहीं है.

    खुद अपने ज़र्फ़ पे क्यों इस कदर भरोसा है.. .. बहुत खूब !
    वो एक शख़्स जो हम सबको भूल बैठा है.. .. उम्दा ! उम्दा !!
    अगर किसी को कोई वास्ता नहीं मुझसे.. .. कमाल भाई कमाल !
    इन अश’आर की सर्वसमाही प्रवृति हर किसी के लिए अनुकरणीय है. हृदय से बधाइयाँ, भाईजी..

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    उत्तर
    1. NUSRAT MEHDI
      Aadarniye Saurabh ji, khud ek achhe rachnakaar hote huey bhi aap jis vinamrta se hausla afzaai karte hain uske liye main aap ki shukrguzar hun.

      हटाएं
    2. इस सदाशयता के लिए सादर धन्यवाद, नुसरतजी..

      हटाएं

  9. भाई विनोद जी की ग़ज़ल ने भी खासा प्रभावित किया है. ग़िरह को जिस सहजता से आपने सँवारा है वह आपकी सोच में स्पष्टता का परिचायक है.
    इन शेरों पर तो आपको विशेष बधाई कह रहा हूँ, भाई -
    खुशी की रौशनी और प्रीति की ध्वनि उपजे..
    वो क्यों डरेंगे भला डूबने से दरिया में .. लाज़वाब ! वाह !
    बहुत जो बोलते हैं बात आजमाने की.. .. इस शेर से निस्सृत यथार्थ खुल कर अपनी उपस्थिति बनाता है.
    ढेर सारी शुभकामनाएँ.. .

    अबकी दीपावली झिलमिलाते दीपों की उजास तथा शब्दों एवं लय के विश्वास से यादग़ार बन गयी है.

    आदरणीय पंकज भाईजी, आपके माध्यम से मैं पूरे परिवार के प्रति मंगलकामनाएँ संप्रेषित कर रहा हूँ.
    दीपावली मनोनुकूल नव वर्ष के व्यापने का संवाहक बने.. .
    दीपोत्सव की अनेकानेक शुभकामनाएँ.

    शुभ-शुभ

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  10. राकेश खडेलवाल जी और सौरभ पांडेय जी के गीतों ने आज के मुशायरे को नई ऊंचाइयां दी हैं.
    मोहतरमा नुसरत साहिबा की ग़ज़ल में मतले से शुरू हुआ उम्दा कलाम का सिलसिला आखिरी शेर तक ज़ारी है.
    द्विजेन्द्र द्विज जी जैसे स्थापित साहित्यकार की शायरी को लेकर सिवाय लुत्फ़ लेने के और किया और कहा भी क्या जा सकता है....तो वाह वाह वाह...
    अब इंतज़ार में आंखें भी आसमान हुईं
    सितारे आस के हर वक़्त टिमटिमाते हैं...याद हो गया जनाब.
    नीरज गोस्वामी जी....इनके लिए तो बस ज़िंदाबाद...ज़िंदाबाद कहते रहने और हर शेर को बार बार पढ़ते रहने को दिल करता है....छा गए नीरज जी...हर शेर लाजवाब...फिर किसी एक का ज़िक्र क्या...समझ में आ गया कि इंतज़ार का मज़ा वाक़ई कुछ और ही होता है.
    तिलकराज कपूर जी जिस अंदाज़ में अपनी बात कह जाते हैं, देखकर हैरानी होती है...कि इतनी आसानी से इतनी बड़ी बात भी कही जा सकती है...सियाह अहाते....मां की नसीहतें...क्या सचमुच इतना ही आसान होता है ऐसे अशआर कहना....
    राजीव भरोल जी और विनोद पांडेय जी की ग़ज़लें भी बहुत अच्छी है....पंकज जी इस आयोजन के लिए एक बार फिर से बधाई....सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  11. दीपावली वास्तव में शुभ संदेशा लाई है ,आनंद मंगल मनाईये !
    आपके उच्च कोटि के साहित्य सृजन के लिए ढेर सारी बधाई
    ऐसे ही सभी साथी लिखते रहें यह परम कृपालु परमात्मा से मांगती हूँ
    सभी के द्वारा लिखे उच्च कोटि के साहित्य सृजन के लिए ढेर सारी बधाई
    ऐसे ही साहित्य कर्म जारी रहे ये सदआशा - और हाँ ,
    दीपावली के मंगल ~ पर्व की सभी को अनेकानेक शुभकामनाएं !
    सच्चे ह्रदय से सभी विद्वतजन को कर बद्ध प्रणाम और धन्यवाद
    - लावण्या

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  12. आप सभी का हृदय से आभारी हूँ। यह इस ब्‍लॉग की पारिवारिक संस्‍कृति ही है कि यहॉं नयी पोस्‍ट का इंतज़ार रहता है। इस माध्‍यम से, आभासी ही सही, एक मुलाकात हो जाती है, नयी स्‍फ़ूर्ति मिलती है और प्रेरणा मिलती है और अधिक संजीदगी से ग़ज़ल कहने की।
    मुझे ध्‍यान है यूनीकोड देवनागरी विषय पर तलाश करते-करते यहॉं तक पहुँचा था और पहली बार 'देर तक आवाज़ देता है कोई उस पार से' के माध्‍यम से अपनी पहली प्रविष्टि बड़ी अनिश्चितता में प्रेषित की थी कि पता नहीं किस तरह लिया जाता है। बस उसके बाद क्रम टूट पाया हो ऐसा मुझे स्‍मरण नहीं हॉं एक बार सौती ग़ज़ल और एक बार 'वाफि़र' बह्र पर कुछ नहीं प्रस्‍तुत कर पाया क्‍योंकि तब तक मैं इनहें समझने के प्रयास में था और बिना समझे कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहा।
    हम सभी समझ सकते हैं कि पंकज भाई को इस सबके लिये कितना समय निकालना पड़ता होगा फिर भी दिल तो यही कहता है कि अब फिर कुछ ऐसा हो कि गतिविधि निरंतर चलती रहे।

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  13. और हॉं, इस आपा धापी में एक बात जो कहनी रह गयी वह है 'दीपोत्‍सव की सभी को हार्दिक बधाई'।

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    उत्तर
    1. NUSRAT MEHDI
      Aadarniye Tilakraj ji ne is blog aur mere bht priye bhai pankaj ke liye jo bhaavnayen vyakt ki hain main bhi usme dil se shamil hona chahungi...Pankaj aur unka ye blog badhaai ke paatr hain

      हटाएं
  14. दीपोत्सव पर सर्वप्रथम इस सुन्दर आयोजन के लिए प्रिय भाई पंकज सुबीर जी का आभार।

    आदरणीय राकेश जी खंडेलवाल का सुन्दर बिम्बों माणिकों से सजा गीत इस आयोजन को अनूठा प्रकाश प्रदान कर रहा है । उन्हें बधाई !

    प्रिय भाई सौरभ पाण्डेय जी का गीत अप्रतिम बिम्बों , लोक ध्वनियों और अनुप्रासों के माध्यम से अनूठी कहन का दस्तावेज़ है, अत: अविस्मरणीय है। ‘निशा- निराश- निगाह’ ‘किसी करीब’ ‘उतावली अल्हड’ ’वृक्ष-वनलताओं’ ’पुलक पुकार’ ’अटल-अहिवात’ अनुप्रास का इतना सहज प्रयोग! आपकी लेखनी को साधुवाद भाई सौरभ पाण्डेय जी!

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    उत्तर
    1. आपके मुखर अनुमोदन से कृतार्थ हुआ, भाई द्विजेन्द्रजी. स्नेह-पावस से आप्लावित हूँ.
      आपकी सदाशयता के लिए हृदयतल से आभार..
      सादर

      हटाएं
  15. आदरणीया नुसरत मेहदी जी की ख़ूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल का यह शे’र यह बेमिसाल है :

    थकन से चूर मुसाफ़िर ज़रा खयाल रहे
    तेरे सफ़र में मेरे रतजगे भी आते हैं

    हार्दिक बधाई नुसरत मेहदी जी!

    बड़े भाई साहब नीरज गोस्वामी जी की ग़ज़ल उनके सौम्य, सहज , सादे , सुन्दर , सकारात्मक और उजले व्यक्तित्व के ही अनुरूप है। भाई तिलक राज जी ने बहुत सटीक कहा है कि उनकी ग़ज़ल ग़ज़ल नहीं है : स्वयं नीरज है ।" हर एक शे’र जीवन के विविध अनुभवों व अनुभूतियों से संपन्न नीरज जी के व्यक्तित्व की सुगन्ध और उजाले में रच-बसा हुआ। कमाल कमाल कमाल। हैट्स ऑफ़ टु यू सर!

    बड़े भाई साहब तिलक राज कपूर जी लेखनी ने उनकी ग़ज़ल के लगभग हर मिसरे में हर शेर में अपना जादू बिखेरा है । उनके प्रकाशमान व्यक्तित्व का प्रकाश उनकी ग़ज़ल के माध्यम से इस मुशायरे को नई रोशनी दे रहा है । हार्दिक बधाई !

    राजीव भाई , यादों की बगिया में जो इतनी नमी है , यह आपके हृदय के भीतर की पवित्र नमी है जो आपकी ग़ज़लों में जादू जगाती है, सब को इतना भिगो देती है। इस समय मैं उम्र में मुझसे बहुत छोटे लेकिन एक बहुत बड़े शयर से मुख़ातिब हूँ।

    P.B. Shelley की पंक्तियाँ याद आती हैं:

    "O lady , we receive but what we give
    In our life alone doth Nature live"

    आपकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल का हर शे’र (बड़ा शे’र) आपके बड़ा शायर होने की निशानदेही कर रहा है।

    हुनर तुम्हारा बहुत बेमिसाल है राजीव !
    तुम्हारे शे’र बताओ कहाँ से आते हैं?

    हार्दिक बधाई! खूबसूरत ग़ज़ल के लिए शुक्रिया।

    भाई विनोद पाण्डेय मुशायरे में अभी दौड़ते भागते पहुँच पाए हैं तब भी इतनी सुन्दर ग़ज़ल लाए हैं, अगले मुशायरे तक तो ये भी लाजवाब हो जाएँगे। बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    एक अनुरोध आप सब से :

    मेरी गज़ल के शे’र :

    पटाख़े दिल में उमंगों के कम नहीं यारो,
    न जाने आप ये बारूद क्यों जलाते हैं?

    भाई पंकज सुबीर जी हो सके तो पोस्ट में इस शे’र को एडिट भी कर दें।

    सुन्दर आयोजन के लिए हार्दिक बधाई ।

    सादर
    सप्रेम

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  16. सच कहता हूँ अब दीप सिर्फ पंकज जी की तरही के मिसरे में ही झिलमिलाते दिखाई देते हैं वर्ना हकीकत में तो चीन से आयातित बिजली की झालरों से पैदा हुई रौशनी ने पूरी दिवाली को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। आज की पीढ़ी शायद विश्वास न करे कि कभी घर के सदस्य नए कपड़े पहन एक दिन पहले से भिगोये मिटटी के दीयों में तेल बाती डाल कर उन्हें घर के कमरों और छत की मुंडेरों पे पंक्ति बद्ध सजाते थे। हल्की हवा से झिलमिल करती उस रौशनी की बात ही अलग थी।

    समय के साथ बहुत कुछ बदला है जो नहीं बदला वो है इस ब्लॉग के प्रति इस से जुड़े सदस्यों का अनुराग। कुछ नाम जो इस ब्लॉग की तरही के अनिवार्य अंग थे इसबार नहीं दिखाई दिए। उम्मीद है अगली तरही तक लौट आएंगे।

    सब से महत्व पूर्ण बात ये है कि तरही के आरम्भ से लेकर इसके समापन तक का सफर उच्च स्तरीय रहा है। हर रचनाकार अपनी मौलिक शैली में उपस्तिथ हुआ है। कोई रचना किसी दूसरी रचना से उन्नीस नहीं है।

    अब बात तरही के समापन से पूर्व के अंक की क्यूंकि समापन तो स्वनामधन्य लाखों में एक परम आदरणीय प्रातः स्मरणीय श्री श्री 1008 श्री भभ्भड़ कवि द्वारा होगा न। यूँ तो रिश्ते में वो हम सब के भाई लगते हैं नाम है गीतों का शहंशाह , जी हाँ राकेश खण्डेलवाल जी। जब भी उन्हें पढता हूँ सोचता हूँ आप जरूर उस लाइन के शुरू में खड़े होंगे जिसमें माँ सरस्वती ज्ञान बाँट रही थीं। सब कुछ उन्हें दे कर माँ ने जो चूरा अंत में बचा था वो हम जैसे पीछे खड़े उम्मीदवारों में बाँट दिया। बात आपको मजाक में कही लग सकती है लेकिन अगर गहराई से सोचेंगे तो सच्ची लगेगी। विस्मय कारी कल्पना शक्ति से लैस बेजोड़ शब्द और भाव के चितेरे इस कवि की जितनी प्रशंशा की जाय कम ही होगी। वर्षों से निरंतर शीर्ष रचनाएँ देते रहना किसी साधारण इंसान के बस की बात नहीं। ईज़ल पर टंगा फ्रेम हो ,साँझ की नई साड़ी हो ,देहलीज़ पे सजी अल्पनाएं हों या सुहागिन पंचवटियां हों राकेश जी की कलम के स्पर्श से नया अर्थ पाती हैं। राकेश जी की लेखनी को बारम्बार नमन करता हूँ।

    सुबीर संवाद सेवा के माध्यम से जिन विलक्षण प्रतिभावान गुणी जनों से संपर्क हो पाया, सौरभ जी उनमें से एक हैं। पहली ही मुलाकात में अपने चुंबकीय व्यक्तित्व से अपना बना लेने का गुण जैसा सौरभ जी में देखा में वैसा और कहीं नहीं दिखाई दिया। सौरभ जी जिस कुशलता से गीत रचते हैं उसी कुशलता से ग़ज़ल भी कहते हैं।भाषा अपनी पूरी मिठास साथ उनकी रचनाओं में उतरती है। उनका शब्द कोष वृहद है और जिस कुशलता से वो शब्दों का चयन और उपयोग करते हैं वो किसी चमत्कार से कम नहीं।तरही की रचना सौरभ जी ये ही समस्त गुण समेटे हुए है। अदबद जैसे शब्द का प्रयोग सोने पे सुहागा है। अवाक् हूँ आपकी रचना पढ़ कर , सिर्फ एक शब्द में कहूँ तो -कमाल !!!!!

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    1. आदरणीय भाई नीरजजी, यह सही है कि चित्त की वृत्तियों का प्रगटीकरण ही हमारी जगती है. हमारी सोच का भौतिक स्वरूप हमारा संसार है. वैयक्तिक जगती तथा संसार को हमारे अनुरूप विस्तार मिलता है. अतः, इस संसार में वही जी पाता है, जिससे हमारी प्रवृति मेल खाती है.
      आदरणीय, आपका संसार अत्यंत सर्वसमाही है. या, मोहक हैं.

      जैसे आप है, वैसी ही आपकी जगती है, उतना ही उन्मुक्त आपका संसार है.
      आपके शब्दों, आपके मुखर अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद..
      सादर

      हटाएं
  17. नुसरत जी को भी इसी ब्लॉग के माध्यम से पढ़ने जानने और मिलने मौका मिला। उनकी ग़ज़लें नफासत लिए होती हैं। उन्हें पढ़ते सुनते लगता है जैसे कह रही हों : ' तुम से करूँ इक बात परों सी हल्की हल्की ---" उनका इतनी जल्दी एक मुकम्मल ग़ज़ल लिए तरही में हाज़री देना किसी करिश्मे से कम नहीं, और क्या एक से बढ़ कर एक खूब सूरत शेर कहें हैं -- उफ्फ्फ। लाजवाब शेर "अना कहाँ है ---","चमकने लगते हैं ---", " उसे तो लौट के आना था ---" और फिर आखरी का शेर तो जान लेवा है। ढेरों दाद।

    द्विज भाई मेरे गुरु हैं उनसे तो मैंने बातों बातों में ही इतना कुछ सीखा है जिसका उन्हें खुद अंदाज़ा नहीं है। उन्हें पढ़ने का मैं कोई मौका नहीं छोड़ता। "तिमिर के पाँव --", पटाखे दिल में --", जिगर के टुकड़े --", जैसे अद्भुत शेरों से सजी द्विज जी की ग़ज़ल पर क्या कमेंट करूँ ? मैं तो कुछ कहने /करने की स्तिथि में नहीं हूँ सिवा उनकी उनकी शान में तालियां बजाने के। वाह !वाह ! वाह !!!!!

    बात जब तिलक जी की निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी, अहा हा इंसान क्या हैं चलता फिरता दीवान हैं। वो ऐसे शायर हैं जो शायरी जीते हैं। ऐसे प्यारे समझदार और गज़ब की सेंस आफ ह्यूमर वाले मैंने कम ही देखे हैं। मैं उन्हें शेर कहने की मशीन कहता हूँ , किसी भी विषय या तरही मिसरे पर बीस शेर कह देना उनके लिए मामूली बात है। और शेर भी एक से बढ़ कर एक। कमजोर शेर कहना उन्होंने सीखा ही नहीं या यूँ कहूँ उन्हें आता ही नहीं। वो मेरे आदर्श हैं। "लहू में दौड़ रही --" , "हर एक रात ---" , हवा में बढ़ने लगी ---" ,और फिर किसान जवान मेहनतकश पर कहे अद्भुत शेर सिर्फ तिलक जी ही कह सकते हैं। मेरी शुभ कामनाएं सदा उनके साथ हैं।

    राजीव जी को भी मैंने इसी ब्लॉग के माध्यम से पढ़ा और उनकी शायरी का फैन हो गया। उनके शेरों की महीन बुनावट का मैं कायल हूँ। "आईने को आइना दिखने की बात हो , भूलने वाले को भूलने की बात हो ,या तुम्हारी याद की बगिया जैसा तीर की तरह दिल में उत्तर जाने वाला शेर हो राजीव सब को ऐसे अनूठे शेर बुन कर अपने फन से दीवाना बना देते हैं। इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी दिली दिली दाद कबूल करें।

    अगर भागते दौड़ते विनोद पांडे ऐसे अशआर कह देते हैं की दांतों तले ऊँगली दबानी पड़ जाएँ तो सोचिये जब वो इत्मीनान से बैठ कर ग़ज़ल कहेंगे तो क्या क़यामत ढाएंगे ? यकीन नहीं होता की "ख़ुशी की रौशनी --" " रखो ये बात सदा याद --" जैसे शेर जल्द बाजी में कहे गए हैं। कुछ भी कहें विनोद जी भविष्य उज्जवल है और अब हमें उन्हें पढ़ने की चाह बढ़ गयी है।

    अंत में मैं आप सब के स्नेह के साथ साथ विशेष रूप से इस ब्लॉग का ऋणी हूँ जिसकी वजह से मुझे थोड़ी बहुत पहचान मिली।

    नीरज

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    1. नीरज भाई साहब स्नेहाधीन हूँ।
      आपका बड़प्पन है।
      मुझ जैसे ज़र्रे को आप गुरु कहते हैं ।
      ज़र्रानवाज़ी भी शायद इसी को कहते हैं।
      आभार के लिए शब्द कहाँ से लाऊँ?
      फिर भी हार्दिक आभार!

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    2. NUSRAT MEHDI
      Aadarniye Neeraj ji....aapke vicharon ki vyapakta aur shabdon ka chayan adbhut hota hai...mujhe aap apne prashansako me hi rakhiye..kuchh achha kah paaun..aisi dua zarur dete rahiyega..shukriya
      behtreen tarahi ghazal ke liye mubarakbad

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  18. इस पोस्ट की सभी रचनायें पढ़ने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूँ कि वैसे तो मैं अल्प ज्ञानी यंहा कुछ कहने के लायक भी नहीं हूँ . रचनाये तो रचनाये टिप्पणियाँ भी ज्ञान समेटे हुए हैं यंहा ..मैं इस क़दर बाकमाल सलीके से तो सराहना नहीं जानती ..पर ये रचनाये पढ़ जो अहसास हुए वो लिख रही हूँ ...भूमिका मे एक पंक्ति पर आँखे ठिटक कर अटक गई ....."क्यूंकि प्रगति से कंही आवश्यक है गति ." हाँ ,सच,सही गति ही आवश्यक है प्रगति हो न हो गति मे निरंतरता जरुरी है , गति होगी तो एक दिन प्रगति भी हो जायेगी ,और न भी हो तो रुके हुए से गतिमान रहना ही अपने आप मे प्रगति है.. वाह ..क्या बात है .. पल्लू गांठ बांध ली जाती है....
    कक्ष में बैठी हुई पसरी उदासी ..... मनमोहक शब्दों में गुंथा सुन्दर बन्द .. रेख खींचेगा नहीं कोई बंदिशों की
    अब .......ए काश ऐसा हो ......बहुत बहुत सच्ची और प्रभावी पंक्तिया ..इस लाजवाब गीत के लिए राकेश जी को बहुत बधाईयाँ ...

    सौरव जी का गीत खूबसूरत शब्दों और भावो से भरा गीत मंत्रमुग्ध कर देता है ...लगे धरा ये सिहरती हुई नयी दुल्हन ,"अटल रहे तेरा अहिवात " बोल भाते हैं ..वाह वाह क्या गीत है ..

    मैं जिंदगी की किताब में किस्सा ए बेअसर नहीं थी ,वरक को जल्दी उलट गए तुम मैं किस्सा ए मुख़्तसर नहीं थी ..,,वो मेरे शिकवा ए तगाफुल पर, जैरे लैब मुस्कुरा दिया है क्या ? ,,हर कोई देखता है हैरत से, तुमने सबको बता दिया है क्या? " ..आप शायद भूल बैठे हैं यंहा मैं भी तो हूँ ,इस जमीं और आसमां के दरमियाँ मे भी तो हूँ .,, तेरे शेरो से मुझे मंसूब कर देते हैं लोग नाज है मुझको तू है जंहा मै भी तो हूँ ,,... रूठना क्या है चलो मै ही मना लाऊँ उसे ,बेरुखी से उसकी 'नुसरत' नीमचा मैं भी तो हूँ .....आजिजी आज है मुमकिन है ना हो कल मुझ में , इस तरहा एब निकालो न मुसलसल मुझ में ...अब वो आया तो भटक जायेगा रस्ता नुसरत ,अब घना हो गया तन्हाई का जंगल मुझ में ..मे क्या करूँ के तेरी आना को सुकूं मिले ,गिर जाऊँ, टूट जाऊँ , बिखर जाऊँ क्या करूँ .................इन सभी और ऐसी ही और गजलों के माध्यम से मै नुसरत जी को जानती हूँ और बहुत पसंद करती हूँ मैंने उन्हें पढ़ा नहीं है पर यु ट्यूब पर शायद ही उनकी कोई विडियो हो जो मैंने ना देखी हो ..उम्मीद है जल्द ही मै उन्हें पढ़ पाऊँगी , हिंदी और उर्दू दोनों जुबानों मे...इस पोस्ट की उनकी गज़ल मुझे मतले से मकते तक बहुत बहुत पसंद आई हैं मे उनकी पूरी गज़ल को कोट करती हूँ .. नुसरत जी को हर शेर पर मैं दिल से दाद देती हूँ ..

    अँधेरे बैर के दिल से निकालिए साहब ........वाह वाह क्या शेर है ...अब इन्तजार में आँखे भी असमान हुई ......उफ़ कैसी होती होंगी आँखे इतंजार मे आसमान .....बहुत गहराई लिए हुए कमल का शेर ...द्विजेन्द्र जी को बहुत सुन्दर गज़ल की बधाई ....

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    1. पारुलजी, प्रस्तुति को अनुमोदित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद..
      शुभ-शुभ

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  19. नीरज सर की गजलें सच्चे मोतिओं की माला सी होती हैं ,,,,कौन बता सकता है भला कौनसा मोती सबसे सुन्दर हैं... हर शेर लाजवाब ,बाकमाल ...कहन मे रवानगी ,सादगी और सहजता ऐसी कि लगता है गज़ल नहीं कही कोई बात कह दी हो यूँ ही ..दुबक के गम मेरे जाने किधर को जाते हैं .......हमे पता है कि मौका मिला तो काटेगा .....बहुत करीब है दिल के मेरे हर एक दुश्मन ........किस शेर की बात करे हर शेर बेमिसाल हैं .......ये बादशाह दिये .......ये बादशाह दिए रोंध कर अंधेरो को ....शेर मे दियो को बादशाह और अँधेरे को गुलाम बता कर अँधेरे उजाले की जंग का ये अलग पहलू जो अँधेरे के पक्ष को भी उजागर कर दे ...ये खूब करिश्मा इस शेर में किया गया है ..बहुत ही खुबसूरत गज़ल के लिए नीरज सर को ढेरों बधाईयाँ .....

    दियों की रीत है जलते हैं...एक दम सच्चा शेर वाह ........तुम्ही कहो के सितारों से क्या मोहब्बत जो ......वाह वाह ....बहुत सुन्दर शेर तिलक जी को बहुत बहुत शुभकामनाये...........उसे उसी की ये कडवी दवा पिलाते हैं ,चलो आईने को आईना दिखाते हैं ...वाह वाह क्या बात है ऐसा ही कर पाए तो अच्छा हैं जिंदगी में ...हम तो खैर ये कर नहीं पाते हैं ......गुजर तो जाते हैं बादल ग़मों के भी लेकिन हसीन चेहरों पे आजर छोड़ जाते हैं ...........अगर किसी को कोई वास्ता नहीं मुझ से तो मेरी ओर ये पत्थर कंहा से आते हैं ......क्या जाने?..कमाल का शेर निशब्द कर गया ...तेरी चुनर के सितारों की याद आती है अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं .....वाह वाह वाह ...तरही की गिरह का बहुत खूबसूरत शेर वाह .....राजीव जी को तो पूरी गज़ल ही एक आईना है बहुत बहुत बधाई ....
    रखो ये बात सदा याद प्यार में हो गर ,हँसाने वाले ही एक दिन यंहा रुलाते हैं ये एक शेर ही बता दे रहा है कि विनोद जी एक काबिल और पुख्ता सोच वाले शायर हैं .........
    बहुत बहुत खुबसूरत और ज्ञानवर्धक मुशायरा इतनी अच्छी रचनाओ और शायरों से परिचय पर आयोजक महोदय को ढेरो बधाईयाँ व् भविष्य में ऐसे ही आयोजनों के लिए शुभकामनाये ..
    ससम्मान
    पारुल सिंह

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    1. पारुल जी आपने तरही में प्रस्तुत रचनाओं की जिस अंदाज़ में प्रशंशा की है वो किसी भी ग़ज़ल या गीत से कम नहीं है। एक सच्चा और अच्छा पाठक ही रचनाकार का पथ प्रदर्शित करता है उसे और बेहतर लिखने को प्रेरित करता है। टिप्पणी में प्रयुक्त भाषा और विचार आपके साहित्यनुरागी होने प्रमाण देते हैं। तरही की रचनाओं के एक एक शब्द को पढ़ने और गुण ने के लिए साधुवाद।

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  20. NUSRAT MEHDI
    Priye Parul Ji, Main abhibhoot hun aur Neereaj ji se shat pratishat sahmat bhi hun k aap jaise sachhe aur achhe paathak bht prerit karte hain ya yun kahun k bht zimmedari brha dete hain k ye apekshayen hain aapke behad sudhi pathako ki...yunhi nahi bahlaaye ja sakte..achhi shairy to karni paregi ab.
    Ek baar phir bht bht dhanyavad

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  21. सभी दिग्गज महानुभावों को एक साथ देख कर वाह वाह, सुभान अल्ला, क्या बात है, भाई वाह, क्या कहने, उफ़ गज़ब, और न जाने क्या क्या अपने आप ही निकलने लगता है मुंह से .... और फिर समझ आता है इस मंच का असल मतलब और असल कीमत ... और मन ही मन गर्व भी होता है अपने आप पर की मैं भी इस मंच से जुड़ा हूँ ...
    किसी भी एक शेर, या एक गज़लकार या गीत कार को कोट करने की मेरी हिम्मत भी नहीं है और न ही इतना ज्ञान है ... हाँ आनद जरूर ले रहा हूँ और हर रोज़ ले रहा हूँ ... कई कई बार पढ़ चुका हूँ ये गजलें और आत्मसात भी कर रहा हूँ इन शेरों की बारीकी को .... इस मुशायरे को इतना ऊंचा मुकाम देने की लिए सभी ग़ज़लकारों और गीतकारों को बधाई और शुभकामनाएं ...
    और अभी तो दिवाली का सबसे बड़ा धमाका आने वाला है ... बम्पर धमाका ... जिसका शिद्दत से इंतज़ार है ...

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    1. NUSRAT MEHDI
      Aap ke prem aur apnepan ki abhivyakti ke liye ye manch nishchit roop se haqdaar hai...aap ke saath mera bhi Pankaj ke prati aabhaar

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  22. राकेश खंडेलवाल जी और सौरभ पाण्डेय जी के गीत भी खूब हैं ! द्विजेन्द्र द्विज जी ,नीरज गोस्वामी जी ,तिलकराज कपूर जी ,राजीव भरोल जी ,विनोद पाण्डेय जी --सबकी गजलों के शेर काफी असरदार हैं !

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    1. नुसरत मेहदी जी का नाम ऊपर छूट गया है ,उनकी ग़ज़ल के शेर भी बराबर असरदार हैं !

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  23. प्रस्तुति पर समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अश्विनी रमेशजी.

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