मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

आज प्रकाश अर्श का जन्‍मदिन है सो आज प्रकाश से ही सुनते हैं उसकी एक चौंका देने वाली ग़ज़ल । ये ग़ज़ल उन सबको चौंका देगी जिन्‍होंने अर्श का प्रारम्भिक लेखन देखा है ।

जन्‍मदिवस एक ऐसा अवसर होता है जब हम पीछे मुड़ के देखते हैं । देखते हैं कि जिन उद्देश्‍यों को लेकर पिछले साल आगे चले थे उनमें कहां तक पहुंचे हैं । वे सारे कार्य जिनको हम इसी जीवन में पूरा करना चाहते हैं, वे कार्य अभी किस अवस्‍था में हैं । जन्‍मदिन के दिन पीछे मुड़ के देखना बहुत ज़रूरी है । इसलिये क्‍योंकि इसके ही बाद आपकी आगे की यात्रा की ज़रूरी बातें तय होंगी । एक वर्ष का ये चक्र जब पूरा होता है तो सुकवि अटल बिहारी के शब्‍दों में 'क्‍या खोया क्‍या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में'  जैसा आकलन बहुत ज़रूरी है । प्रकाश अर्श का आज जन्‍मदिन है। सबसे पहले तो प्रकाश को पहले शादीशुदा जन्‍मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं । और अब बात प्रकाश की ग़ज़ल की । ये ग़ज़ल मुझे चौंका गई । चौंका गई उस विस्‍तार को दे कर जो प्रकाश की ग़ज़ल में अब देखने को मिल रहा है ।

 lovly-happy-birthday-cake-picture

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

आइये प्रकाश अर्श को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं देते हुए सुनते हैं ये ग़ज़ल ।

ARSH

प्रकाश सिंह अर्श

हर वक़्त सोचता हूँ, ये कैसा मस'अला है ?
फूलों का रंग क्या हो, मौसम पे आ टिका है !

रख कर हक़ीक़तों को गिरवी मैं आ गया हूँ ,
कुछ लोग कह रहे थे,  तू ख़ाब बांटता है ?

जब सल्तनत के सारे प्यादे वजीर हैं तो,
ये आम आदमी क्यूँ, क्यूँ इनका मुद्द'आ है ?

मैं रोना चाहता था और ये भी देखिये अब,
किस्मत से एक तिनका आँखों में आ गिरा है !

कुछ तो शऊर ज़िंदा इनमें भी हो की अब तो,
इस शह्र की हवा में ये जिस्म जल रहा है !

सब खर्च कर के देखो रिश्तों की अपनी पूंजी,
और फिर ये देखना की आखिर में क्या बचा है ?

ये भीड़ आ लगी है साए से डर के अपने,
जिसकी यहाँ दुकां है वो धूप बेचता है !

दुनिया की तजरबों से मुझको हुआ ये हासिल,
हर रात की सहर सा सब कुछ तो तयशुदा है !

अफवाह की वो आंधी कल ख़ाक कर गई सब,
अब देखना है ये की मलबे में क्या दबा है ?

बौने ही रह गए  हैं आँखों के ख़ाब सारे ,
मजबूरियों का बरगद इस घर में पल रहा है !

इतना तो बस बता दे, क्या दोष था हमारा,
"ये कैदे बामशक्कत जो तूने की आता है !!"

मैं रोना चाहता था और ये भी देखिये अब, ये शेर बहुत बहुत कमाल बना है । इसमें किस्‍मत से आंखों में गिरे तिनके की तो बात ही क्‍या है । पूरी ग़ज़ल उस निम्‍न मध्‍यम वर्गीय जीवन का चित्र बनाती है जो हर पल छोटी छोटी इच्‍छाओं को घुट कर मरते हुए देखता है । बौने ही रह गए हैं आंखों के ख़ाब सारे में बरगद का प्रतीक हैरते में डालने वाला है । कमाल का प्रतीक है । हैरत में हूं । जब सल्‍तनत के सारे प्‍यादे वज़ीर हैं तो में भी उसी प्रकार की सोच सामने आ रही है जिसमें विस्‍तार है मिसर सानी पर कुछ और मेहनत के बाद एक नायाब शेर हो सकता है । वर्तमान के पूरे समय को बखूबी रेखांकित करता हुआ मतला सामने आता है । सब कुछ कह कर कुछ नहीं कहना । बहुत सुंदर वाह वाह वाह ।

तो बच्‍चे को जन्‍मदिन पर बधाई दीजिए और दाद दीजिए उसकी सुंदर ग़ज़ल पर । 

43 टिप्‍पणियां:

  1. जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो अर्श
    और ग़ज़ल के लिये तो सिर्फ़ माशाअल्लाआआआआआह्ह !!!!!
    ख़ास तौर पर
    सब ख़र्च कर देखो.......
    बेह्तरीन शेर है ,,,इसी विचारधारा को हमेशा क़ायम रखना बेटा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपा आपका आशीर्वाद ऐसे ही क़ायम रहे ! शुक्रिया शब्द बहुत छोटा है इस मुहब्बत के आगे आपा !
      सादर

      हटाएं
  2. bahut bahut badhaai arsh, bahut din baad tumhari gazal padhi hai, bahut mubarak, dunia ke tajurbon se............ sher achha laga,vaise saari rachna hi naayab hai, shaadi ki bhi bahut shubh kaamnayen. yogesh verma "swapn"

    जवाब देंहटाएं
  3. सबसे पहले प्रकाश भाई को
    जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयां और ढेरों शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दृश्य चित्रण और मनोभावाभिव्यक्ति की एक उम्दा मिसाल है ये ग़ज़ल। मजबूरियों का बरगद, मुद्दे में खोया आम आदमी और अफवाह की विभीषिका। एक नए अंदाज में वर्तमान की तस्वीर है. बहुत बढ़िया प्रस्तुति है.

      हटाएं
    2. बहुत बहुत शुक्रिया सुलभ !

      हटाएं
  4. प्रकाश को जन्मदिन की हार्दिक बधाई.
    गज़ल तो बस कमाल है! जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी. चौंका दिया है. हर शेर, हर मिसरा, दमदार. लाजवाब. अब तक की अर्श की बेहतरीन गज़लों में से एक! दिली मुबारकबाद.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए शुक्रगुज़ार हूँ राजीव साब !

      हटाएं
  5. क्या अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई! वाह!वाह! ये तीन शेर तो क्लासिक लगे मुझे:
    'रख कर हकीकतों को…. '
    'मैं रोना चाहता था ....'
    'सब खर्च कर के देखो…'
    ये करुणा से ओतप्रोत वो अश'आर हैं जो सीधे दिल पर असर करते हैं।एक बार फिर से ढेरों दाद!
    और हाँ 'जन्मदिन की हार्दिक बधाई',यहाँ भी!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इतनी तारीफ़ नहीं पचती सौरभ ! तुम्हारी खतरनाक ग़ज़ल आने वाली है मुझे पता है ! जन्म दिन की बधाई के लिए शुक्रिया भाई !

      हटाएं
  6. सबसे पहले प्रिय अर्श को जनम दिवस की ढेरों शुभ कामनाएं।

    उफ्फ्फ। क्या ग़ज़ल कही है अर्श ने , मैं इसे चमत्कारिक ग़ज़ल कहूँगा। इस ग़ज़ल के हर शेर में अर्श ने ऐसे ऐसे बिम्ब तलाशे हैं के तारीफ़ के लिए लफ्ज़ नहीं मिल रहे। किस शेर को छोडूं और किसकी बात करूँ इसी दुविधा में हूँ। अकल्पनीय, अद्भुत ग़ज़ल।
    जियो अर्श जियो।

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नीरज जी इस स्नेह और आशीर्वाद को बनायें रखें ! ग़ज़ल पसंद आई , बस मेहनत कामयाब हुई !

      हटाएं
  7. अर्श जी को जन्म दिन की बधाई और ग़ज़ल की तारीफ के लिए तो शब्द भी कम हैं मेरे पास बस सुभानल्लाह

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. ज़िन्दाबाद!
    बच्चे को हार्दिक बधाई. सचमुच बड़ा हो गया है यह बच्चा. आजकी ग़ज़ल बता रही है. जन्मदिन को सार्थक करती हुई यह ग़ज़ल बता रही है कि यह प्रकाश `अर्श' की जन्म दिन है.
    मजबूरियों का बरगद सपनों को बौना कर रहा है. और यह प्रयोग,ग़ज़ल की जान और शान है. बेहद ख़ूबसूरत.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बड़ों के सामने बच्चा कैसे बड़ा हो सकता है बड़े भाई साहब ! आशीर्वाद बनाये रखें !

      हटाएं
  10. जन्म दिन की हार्दिक बधाई प्रकाश जी .......... आपकी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आभार |
    पंकज जी आभार आपको भी |

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रकाश भाई, जन्‍मदिन की बहुत बधाई। ग़ज़ल वास्‍तव में पसंद आई और कई अश्‍आर मुझे अपने साथ रखेंगे कई दिन। मजबूरियों का बरगद पढ़ कर खास तौर पर खुशी हुई। इस अंदाज़ पर बहुत मुबारक।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस हौसला-अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया नवनीत साब

      हटाएं
  12. प्रकाश जी को हार्दिक बधाई जनम दिन की ...
    ओर इससे ज्यादा तोहफा अपने आप को ओर क्या हो सकता है ... एक लाजवाब ... चमत्कारी, चौंकाने वाली गज़ल ... सच में हर शेर में कुछ नया बिम्ब खड़ा लिया है प्रकाश ने ... इस मुशायरे की अब तक की सबसे लाजवाब गज़ल ...ख्वाब बांटना ओर ... मैं रोना चाहता था ... इससे बेहतर शेर कहना शायद अच्छे अच्छे शायर को पसीना दिलवा दे ...
    अब लग रहा ही की ये मुशायरा जवान हो रहा है ... रवानगी पे आ यहाँ है ....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मुशायारा तो आपकी ग़ज़ल से ही जवान और क्रांतिकारी हो चुकी है दिगंबर साब ! अब दिल्ली कब आना होगा ?

      हटाएं

  13. अर्श भाई की इस ग़ज़ल पर उसी दिन से फ़िदा हूँ जिस दिन पहली दफ़ा सुना था। उफ्फ्फ ........... ये रंग, ये जलवा इसी का इंतज़ार था, मज़ा आ गया। शादीशुदा जन्मदिन पर शाया हो रही ये ग़ज़ल अर्श भाई की पिछली कही ग़ज़लों से बहुत आगे की ग़ज़ल है।

    मतला बहुत खूब गढ़ा है, ऊला और सानी मिलकर जो फ़लक खोज रहे हैं वो लाजवाब है।
    "रख कर हक़ीक़तों को गिरवी मैं आ गया हूँ , ................" वाह वाह
    "जब सल्तनत के सारे प्यादे वजीर हैं तो, ..........", पुराने ख़याल को नए और अनूठे लफ्ज़ बरते हैं, जो खूब जँच रहे हैं।
    "मैं रोना चाहता था और ये भी देखिये अब, .........." इस शेर पर तो कुर्बान। आहा ............क्या शेर कहा है अर्श भाई। लाजवाब
    "बौने ही रह गए हैं आँखों के ख़ाब सारे , .........." वाह। जिंदाबाद शेर

    दिली दाद क़ुबूल करें अर्श भाई। इस धमाकेदार ग़ज़ल के साथ-साथ सालगिरह भी मुबारक हो। कलम में धार बरक़रार रहे और समय के साथ और बढ़ती जाए .............इसी दुआ के साथ, ढ़ेरों शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तुमसे तारीफ़ नहीं अंकित आलोचना चाहिए होता है हमेशा की तरह ! कहीं बिगड़ ना जाऊं :)

      हटाएं
  14. एक-१ बोले तो, सारे ग्यारह ही शेर लाजवाब है।

    हालात के ही सारे रंग इसमें भर दिए है,
    'प्रकाश','Rainbow' बन क्या 'अर्श' पर सजा है !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ऐसे ना कहें , दिल से बहुत शुक्रिया मंसूर अली साब ! स्नेह बनाये रखें !

      हटाएं
  15. बहुत बहुत बधाई जन्‍मदिन की।
    जन्‍मदिन पर तोहफ़ा पाने की रस्‍म तो सुनी ािी आपने तो तोहफ़ा दे दिया।
    बाकमाल ग़ज़ल कही है। इतनी खूबसूरती से संयोजित है सब कुछ कि म़त्रमुग्‍ध हूँ।
    पंकज भाई का सीना नापना पड़ेगा।
    पाठशाला, पाठशाला के गुरूजी और पाठशाला के इस छात्र को दिल से बधाई।
    एक दिन ये पाठशाला ग़ज़ल के इतिहास में होगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप सभी को ग़ज़ल पसंद आई इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है तिलक राज जी ! आप सभी इतने गुनी हैं की क्या कहूँ ! मेहनत कामयाब हुई बस !

      हटाएं
  16. सबसे पहले तो आदरणीय प्रकाश अर्श जी को जैसा की आदरणीय गुरूजी ने कहाँ है पहले शादीशुदा जन्‍मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं । और प्रकाश का मतलब ही होता है जो अँधेरे को दूर कर दे, आप की गजल पड कर लगता है आप अँधेरे में उजाला ला सकते है बहुत खुबसूरत ग़जल ।

    जब सल्तनत के सारे प्यादे वजीर हैं तो,
    ये आम आदमी क्यूँ, क्यूँ इनका मुद्द'आ है ?

    वाह वाह

    मैं रोना चाहता था और ये भी देखिये अब,
    किस्मत से एक तिनका आँखों में आ गिरा है !

    क्या लिखा है अर्श जी वाह वाह बहुत बढ़िया मुझे बहुत अच्छा लगा ये शेर

    ये भीड़ आ लगी है साए से डर के अपने,
    जिसकी यहाँ दुकां है वो धूप बेचता है !

    हकीकत

    बौने ही रह गए हैं आँखों के ख़ाब सारे ,
    मजबूरियों का बरगद इस घर में पल रहा है

    मजबूरियों का बरगद वाह क्या कहने वाह वाह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तपन जी आपको ग़ज़ल पसंद आई ! दिल से शुक्रिया मेहरबानी ! आप भी अच्छा लिख रहे हैं !

      हटाएं
  17. बेहतरीन गज़ल....अनुज प्रकाश को जम्न दिन की बधाई, शुभकामनाएँ और अनेक आशीष!!

    जवाब देंहटाएं
  18. मेरे अनन्य प्रकाश भाई.. .
    मैं कल कई दफ़े यहाँ मेसेज डाला परन्तु जब भी पोस्ट करने के लिए बटन क्लिक करता कनेक्शन ब्रेक हो जाता था. पता नहीं क्यों किन्तु ऐसा कई बार हुआ.
    बंधु, मैं आपको हृदय की गहराइयों से आपके जन्मदिवस हेतु बधाई और शुभकामनाएँ दे रहा हूँ. ईश्वर करे, युगों-युगों तक आपकी संवेदनशीलता और प्रखर जागरुकता साहित्यिक विधाओं के माध्यम से सतत संसृत होती रहे.. सारा कुछ समाज की अन्यतम थाती हो.

    आपकी ग़ज़ल पर मैं बस इतना ही कहूँगा, आपकी प्रस्तुतियाँ अब आकार पा जाती हैं.
    फिर भी,
    मैं रोना चाहता था.. .
    सब खर्च करके देखो.. .
    दुनिया के तजरबों से... .
    बौने ही रह गये हैं.. . इन अश’आर को मैंने महसूस करने की कोशिश की. और सच मानिये, देर तक आप्लावित रहा.

    पुनः बधाइयाँ. आगे हमेशा इंतज़ार रहेगा.. .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सौरभ जी ! इस मुहब्बत के लिये!

      हटाएं
  19. पहले तो प्रकाश जी को जन्मदिन की देर ही सही मगर भरपूर बधाई। उसके बाद इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बोरा भर भरकर दाद। क्या अश’आर हैं। मैं रोना चाहता था....लाजवाब। सब खर्च करके देखो....वाह भाई वाह। दुनिया के तज्रबों से, बौने ही रह गए, जब सल्तनत के सारे...भाई क्या शे’र कहे हैं। एक बार फिर बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया धर्मेन्द्र जी ! आपकी ग़ज़ल भी खूब थी !

      हटाएं
  20. आपकी ग़ज़ल भी बहुत खूब रही थी धर्मेन्द्र जी ! ग़ज़ल पसन्द आई बहुत शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  21. गुरुदेव,
    सच में इस ग़ज़ल ने चौंका दिया है, और यह चौंकना कई माइनों में रहा ...

    जिस मेअयार से इस ग़ज़ल में मिसरों को बुना गया है वह बुनावट अर्श भाई की शाइरी की पहुँच से खूब वाकिफ़ करवाता है

    पिछली साझा हुई कुछ ग़ज़लों के साथ जब इस ग़ज़ल को रखता हूँ तो फिर से चौंकता हूँ की क्या केवल इस दिशानिर्देश भर से कि, // दुष्यंत की धारा में अन्तर्निहित हो कर ग़ज़ल कहनी है // इतना बड़ा बदलाव या कहूँ की इतनी लंबी छलांग किसी आम शाइर के लिए संभव है ? मेरे पास जवाब भी है, और वो "नहीं" में है

    कुछ अलफ़ाज़ के बर्ताव ने भी खूब चौंकाया है

    पूरी ग़ज़ल जिस तरह कहन के ऊँचे पायदान पर जा कर बैठी है वो अर्श भाई को शाइरी के उस मुकाम पर ले जा रही है जो हर नौज़वान शाइर का ख़्वाब है

    जिंदाबाद भाई जिंदाबाद

    जन्म दिन की असीम शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  22. कुछ ज्यादा ही तारीफ़ हो गई वीनस ! मैं इतनी तारीफ़ का कक्दाद नहीं ! ऐसी कोई ग़ज़ल है नहीं मेरी ! आजकल तुम ख़ुद बहुत कमाल की ग़ज़ल कह रहे हो ! बहुत शुक्रिया शुभकामनाओं के लिए ! तुम्हारी ग़ज़ल का इंतज़ार कर रहा हूँ !

    जवाब देंहटाएं

परिवार