शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

सावन बीत रहा है तथा भादों लगने वाला है, पवित्र रमज़ान माह भी शुरू हो चुका है, त्‍यौहारों के इस समय में सुनते हैं राजेंद्र स्‍वर्णकार, डॉ. उमाशंकर साहिल कानपुरी और चैनसिंह शेखावत की ग़ज़लें ।

मन बहुत क्‍लांत है, अशांत है और उद्विग्‍न है, अंधेरे में घिरा हुआ है, ऐसे में आज तरही के पहले कोई बात नहीं बस एक छोटी सी प्रार्थना

 

 

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वर्षा मंगल तरही मुशायरा

फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

 राजेन्द्र स्वर्णकार

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राजेंद्र जी तरही के लिये एक जाना पहचाना नाम हैं वे पिछले कई सारे मुशायरों में आ चुके हैं । वे गाते भी बहुत ही अच्‍छा हैं ये उनके ब्‍लाग शस्‍वरं पर लगे उनके आडियो लिंक से पता चलता है । मंच के मीठे गीतकार-ग़ज़लकार के रूप में अनेक गांवों-शहरों में काव्यपाठ और मान-सम्मान । आकाशवाणी से भी रचनाओं का नियमित प्रसारण । 100 से ज़्यादा पत्र - पत्रिकाओं में 1000 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हैं ।

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न वेदना है विरह की न यंत्रणाएं हैं
तुम्हें निहार लिया  , तृप्त कामनाएं हैं
करूंगा प्राण निछावर तुम्हारी प्रीत में मैं
बताओ , प्रीत की जो और अर्हताएं हैं
हृदय में आग नहीं , यज्ञ प्रीत का है कोई
नहीं ये शे‘र मेरे ... मंत्र हैं , ऋचाएं हैं
मुखर है मौन , न संकेत मिल रहा कोई
न लक्षणा है , न अभिधा , न व्यंजनाएं हैं
गरज रहे हैं ये घन , मस्त ज्यों गयंद कोई
हरेक रोम में सुलगीं सी वासनाएं हैं
न जा रे मेघ छली ! आज तू बिना बरसे
खड़ी युगों की लिये‘ प्यास द्रुम - लताएं हैं
करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे
व्यथित विकल सी खड़ीं तट पे गोपिकाएं हैं
हवा में इत्र की ये गंध घोल दी किसने
महक लुटाने लगी अब दिशा - दिशाएं हैं
गगन - धरा हैं प्रणय - मग्न ; विघ्न हो न कहीं
लगादीं पहरे में चपलाएं - क्षणप्रभाएं हैं
धरा पॅ चंद्रमुखी यौवनाएं झूम रहीं
''गगन पॅ झूम रहीं सांवली घटाएं हैं''
छमाक छम छम राजेन्द्र झम झमा झम झम
निरत - मगन - सी ये बूंदनियां नचनियाएं हैं

क्‍या प्रयोग किये हैं शुद्ध हिंदी के काफियों के । पूरी की पूरी ग़जल़ ही उल्‍लेखनीय है गिरह का शेर भी बहुत अच्‍छा बांधा गया है । न जा रे मेघ छली ये शेर मुझे ऐसा लगा कि बस इसको आनंद के साथ पढ़ते रहो । शेर में जो छली शब्‍द का प्रयोग किया गया है वह रस विभोर करता हुआ गुजर जाता है ।

डा० उमाशंकर" साहिल" कानपुरी

पंतनगर के ही एक जाने माने शाईर डा० उमाशंकर" साहिल" कानपुरी (पंतनगर, उत्तराखंड ) की ये ग़ज़ल है उनके बारे में मुझे बहुत परिचय नहीं मिला है तथा उनका चित्र भी नहीं मिला है हां दूरभाष ०९४१११५९८२५ ये है उनका । लेकिन कहा जाता है न कि किसी भी लेखक का असली परिचय तो उसकी रचना ही होती है, उसी से लेखक की पहचान होती है सो उनके परिचय में उनकी ये गज़ल प्रस्‍तुत है ।

TheRain

''फलक पे झूम रहीं सांवली घटायें हैं''
मगर ज़मीं पे गरम चल रहीं हवाएं हैं
वही हैं फूल, वही हर तरफ बहारें हैं
मगर बदल सी रहीं आज क्यों फिजायें हैं
अदब किसी के भी दिल में नहीं बुजुर्गों का,
तभी तो उनकी नहीं लगती अब दुआएं हैं
छुपा रहा है कोई फूल सा हसीं चेहरा
ये उनकी ज़ुल्फ़ हैं या नरगिसी लताएं हैं 
हैं बेटियाँ भी सहमतीं बियाह करने से
कि दुल्हनों की तो जलती यहां चिताएं हैं
हर एक छोड़ गया साथ राह में "साहिल" 
ये कैसी राहगुज़र, कैसी  यात्राएं हैं

बढि़या शेर निकाले गये हैं । मतले में ही जोरदार गिरह लगाई गई है। छुपा रहा है कोई फूल सा हसीं चेहरा में तो जुल्‍फ और लताओं की जबरदस्‍त जुगलबंदी है । पंत नगर के अब तीन शायर मुशायरे में हो गये हैं अंकित सफर, मुस्‍तफा माहिर और साहिल जी । तीनों ने ही कमाल की ग़ज़लें कहीं हैं ।

चैन सिंह शेखावत

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चैन सिंह शेखावत राजस्थान माध्यमिक शिक्षा विभाग . राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय ,समेजा कोठी [रायसिंहनगर] जिला -श्री गंगानगर . व्याख्याता[हिंदी] के पद पर कार्यरत हैं तरही मुशायरों में पहले भी आ चुके हैं तथा हम सबके लिये एक जाना पहचाना नाम हैं । उनका अपना ब्‍लाग है जिंदगी ए जिंदगी जहां पर वे अपनी कविताएं लगाते हैं । आज तरही के तीसरे शायर के रूप में सुनते हैं उनकी ये ग़ज़ल ।

 

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''फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं ''  

कि तेरी जुल्‍फों की ये बावली  बलाएँ हैं

कभी ज़मीं को तपाना कभी बरस जाना

ये आसमान की अपनी ही कुछ अदाएँ हैं   

ये फूल पत्तियाँ, देहरी, सजे ये  चौबारे

उतर के चांद से आई हुईं दुआएँ हैं

पिघल ही जाएंगी आखिर में ये घटाएं भी

बड़ी कशिश से भरी  प्यास की सदाएँ हैं

है भीगा भीगा हुआ तन  ये और मन सूखा

न जाने कौन से मौसम की ये हवाएँ हैं

बहुत ही सुंदर शेर कहे हैं । पिघल ही जाएंगीं आखिर में ये घटाएं भी बड़ी कशिश से भरी प्‍यास की सदाएं हैं  बहुत ही उम्‍दा शेर निकाला है । गिरह भी बहुत ही अच्‍छे तरीके से बांधी है । प्रकृति और पुरुष के चिरंतन प्रणय को  बहुत ही सटीक तरीके से चित्रित किया है । बधाइयां ।

23 टिप्‍पणियां:

  1. राजेंद्र जी की बात ही निराली है वो जितना बढ़िया लिखते है उतना बढ़िया स्वर भी देते है और लय पर पकड़ रखने वाले उस्ताद की ग़ज़ल में शायद ही कहीं कुछ मिस हो पाता है..जोरदार अंदाज और बेहतरीन ग़ज़ल....हिन्दी के शब्दों का इतना सुंदर समन्वय जो देखते ही बनता है..मान गये राजेंद्र जी....प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई..

    उमाशंकर जी को पहली बार पढ़ा पर वो भी दिल जीत लिए, चैन शेखावत जी ने प्रकृति के अनुपम छटाओं का लाज़वाब वर्णन किया है...कुल मिलकर इस बार की बेहतरीन प्रस्तुति आप तीनों ग़ज़ल कारों के लाज़वाब ग़ज़लों के संयोग से बना है.. बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए सभी को धन्यवाद..

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  2. तीनों ही ग़ज़लें बेहतरीन.

    राजेन्द्र जी ने हिंदी के काफियों के साथ कमाल कर दिया है.. "मेघ छली" और मतला तो बहुत ही अच्छा लगा.

    डा. उमाशंकर जी का "सहम रही हैं बेटियां" और "छुपा रहा है.." शेर बहुत पसंद आये.

    शेखावत जी का "कभी ज़मीं को तपाना" और "है भीगा हुआ मन" तो गज़ब के हैं.

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  3. पंकज जी, ये तरही मुशायरा हर दिन उरूज पर है. इसके लिए आपको बधाई.
    आज तीनों ही शायरों ने अच्छे शेर पेश किए हैं, बधाई.

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  4. तीनो ही गज़ले आला दर्जे की हैं|

    राजेंद्र जी की ग़ज़ल का एक एक शेर पूरी किताब ही है|कोई एक शेर कोट करना बाकी के साथ नाइंसाफ़ी होगी| हिंदी के काफियों का ऐसा सुन्दर प्रयोग एक उस्ताद शायर ही कर सकता है|

    साहिल जी की ग़ज़ल में बुजुर्गों वाले शेर ने उन्हें ग़ज़ल की दुनिया में बहुत ऊंचा स्थान प्रदान कर दिया है| मतला तो लाजवाब है ही और बाकी सारे शे'र भी कमाल के है?

    चैन सिंह जी की ग़ज़ल में एक अलग सी कशिश है| हर शेर में एक अनूठी ताज़गी का एहसास होता है|

    तीनो शायरों को बधाइयाँ|

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  5. सुन्दर कलाम,तीनों रचनायें,भावपूर्ण है!

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  6. नमस्कार,
    पंकज जी ,अभी खज़ाने से और क्या क्या निकलेगा हमें इंतेज़ार रहेगा
    तीनों ग़ज़लें अच्छी हैं लेकिन राजेन्द्र जी ने तो कमाल कर दिया
    हृदय में आग नहीं ,यज्ञ प्रीत का है कोई
    नहीं ये शेर मेरे ....मंत्र हैं ऋचाएं हैं

    वाह !
    सुंदर भावाभिव्यक्ति !
    बेहद सटीक और सुंदर शब्दों का चयन किया है राजेन्द्र जी ने
    बहुत ख़ूब!

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  7. प्रणाम गुरु देव ,
    अब तो फिल्म देखने में दिलचस्पी नहीं रही , मगर बचपन में ये फिल्म देख चुका हूँ और अक्सर यह दो आँख और बारह हाँथ का गाना चित्रहार और रंगोली में दिखाई पड़ता था ,... जैसे रोंगटे खड़े हो जाते थे.. अब भी और आज फिर हो गया... आपका मन अशांत है उस दिन बात करने पर ये लग तो रहा था मगर कह नहीं पाया ... मगर आपके लिए क्या कहूँ ... आप तो हमारे मार्गदर्शक हैं ... आपको धैर्य रखना ही होगा ...
    बात जब तरही की करें तो इन तीनो ग़ज़लकारों ने कमाल कर दिया है ..... स्वर्णकार जी को बहुत ज्यादा तो नहीं पढ़ा मगर इस ग़ज़ल को पढ़ जरुर उनके ब्लॉग पर गया और उन्होंने सबसे ज्यादा अचंभित किया .. तरही में हिंदी काफिया की शुरुयात आदरणीय द्विज जी ग़ज़ल से हुई थी ... और इस दौर को स्वर्णकार जी ने मुकाम तक पहुंचाया है .... सच में अचंभित करने वाले काफिये दिखने और पढने को मिले ....न जा रे मेघ छली ... इस शे'र ने वाकई खुबसूरत समा बांधा है ... बधाई इनको ...
    शंकर जी का शे'र अदब किसी के और छुपा रहा है कोई फूल सा हसीं चेहरा ... वाह वाह ... बहुत बहुत बधाई इनको ...
    चैन साब का शे'र कभी जमीं को तपाना कभी बरस जाना ... बेहद पसंद आया ...

    तरही अपने मुकाम को हासिल करती हुई...

    अर्श

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  8. हिन्‍दी को सामान्‍यतय: ग़ज़ल के उपयुक्‍त नहीं माना जाता है लेकिन राजेन्‍द्र जी की ग़ज़ल खुले शब्‍दों में इस तरह की धारणा को तोड़ने में सक्षम है। विशुद्ध हिन्‍दी ग़ज़ल। बहुत खेबसूरत काफि़ये हैं और उतनी ही खूबसूरती से बॉंधे गये हैं।
    चैन सिंह जी को भी पढ़ने का मौका मिलता रहता है, अच्‍छी भावाभिव्‍यक्ति है और साहिल साहब भी कम नहीं हैं।

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  9. कल मैं बिमारी, कमजोरी और लाचारी की अवस्था में किसी तरह ब्लॉग खोल पाया था. ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. प्रार्थना का असर जरुर हुआ है. आचार्य जी आप भी अपनी सुविधानुसार ही पोस्ट लगायें, पोस्ट-अंतराल की चिंता न करें, तरही बेहतर से बेहतर से चल रहा है.

    तीनो ग़ज़लें पढने के बाद जो अद्भूत आनंद की अनुभूति हुई है. विशेषकर राजेन्द्र स्वर्णकार जी ने जिस प्रकार हिंदी काफिये के अम्बार लगाएं है, सब एक पर एक असरदार.

    साहिल कानपुरी जी ने बदले हालात को खूबसूरती से शेरों में ढाला है. मतले का गिरह अच्छे बन पड़े हैं. छुपा रहा है कोई फूल सा हसीं चेहरा... ये बात खासकर पसंद आए क्यूंकि पिछले दो तीन दिनों में कुछ ऐसे अहसास से दो चार हुआ.

    चैन सिंह शेखावत जी के कुछ शेर बहुत मनमोहक लगे. कभी जमीं को तपाना कभी बरस जाना... नजाकत अंदाज में कहे हैं.

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  10. राजेंद्र जी बहुत मधुर आवाज़ के मालिक हैं .... और आजकी ये ग़ज़ल उनकी कलम की उँचाइयाँ गिना रही है ... हिन्दी के काफियों का प्रयोग ग़ज़ल में चार चाँद लगा रहा है .... बहुत ही बधाई राजेंद्र जी को ....
    साहिल जी की ग़ज़ल बहुत संवेदनशील है .... ख़ास कर ये शेर ... हैं बेटियाँ भी सहमतीं ...
    शेखावत जी ने भी ग़ज़ब के शेर निकाले हैं ....
    ये मुशायरा तो बहुत ही लाजवाब ग़ज़लों के साथ आगे बॅड रहा है ... ग़ज़ल के दीवानों के लिए आपका प्रयास बहुत ही बेमिसाल है ...

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  11. यूँ गज़लें तरही में बहुत अच्छी अच्छी आईं, मगर नुसरत दी के बाद एक चमत्कार जो देखने को मिला वो स्वर्णकार जी की गज़ल में...!

    हर शेर ने चमत्कृत किया

    बताओ प्रीत की जो और अर्हताएं हैं।

    व्यथित, विकल सी खड़ी तट पे गोपिकाएं हैं

    गगन धरा है प्रणय मग्न विध्न हो न कहीं....!


    बहुत बहुत बहुत सुंदर....!

    बाकी लोगों के लिये फिर आती हूँ....

    और नये पर्व की सजावट देख कर खुश हूँ....!! आप को बंधन में बँधा देख के और खुश....!!!!! :) :)

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  12. शुद्ध हिन्दी में लिखी गई राजेन्द्र जी की गज़ल बहुत अच्छी लगी. बधाई.

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  13. गुरु जी प्रणाम,

    कल से नेट कनेक्शन मे कुछ दिक्कत थी, पोस्ट पढ चुका था, और कमेन्ट न कर पाना बहुत अखर रहा था

    राजेन्द्र जी के हर शेर की जितनी भी तारीफ़ करूं कम ही है
    शुद्ध हिन्दी की गज़ल पढ्ने का भी अपना ही आनन्द है

    फ़िर भी एक खास शेर के लिये अलग से बधाई देने के लिये मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं

    और वो शेर है

    करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे
    व्यथित विकल सी खड़ीं तट पे गोपिकाएं हैं

    इस शेर को जितनी बार पढता हूं आनन्द सराबोर हो जाता हूं

    इस बार तरही मुशायरे मे पन्तनगर छाया रहा, साहिल साहब का आगाज़ भी बहुत पसन्द आया

    शेखावत जी की गज़ल बहुत अच्छी लगी

    यह शेर खास पसन्द आया

    कभी ज़मीं को तपाना कभी बरस जाना
    ये आसमान की अपनी ही कुछ अदाएँ हैं

    इन अदाओं के शिकार तो आजकल इलाहाबादी भी हैं, बरिश के लिये तडप रहे हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  14. सोचा इधर से होता चलूँ , और मुशायरे का आनंद लेता हुआ ... ब्लॉग की सजावट तो देखते बन रही है ... मन खुश हो गया और उसपे लिखा वो मिसरा मुतमईन कर रहा है ....
    मगर थालिओं की मिठाइयां कौन चट कर गया ... :) :)

    अर्श

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  15. सजी-धजी बहनों से सजा-धजा ब्लौग अलग ही छटा बिखेर रहा है...तिस पर आज की लाजवाब तीनों की तीनों तरही।

    द्विज जी के बाद राजेन्द्र जी ने चमत्कारी हिंदी काफ़ियों से ग़ज़ल को सजा कर मुशायरे को नया आयाम दिया है।

    जवाब देंहटाएं
  16. सुबीर भैया, उदास क्यों हैं आप? फ़िर किस तरह की दुआएं हुईं हमारी ?
    --------
    राजेंद्र जी की ग़ज़ल पढ़ी और सुनने का लोभ संवरण नहीं कर सकी. उनकी साईट पे जा के सुनी... बहुत ही अच्छा लगा.
    ये स्पष्ट है कि शुद्ध हिन्दी में है ग़ज़ल सो मेरे लिए परम आनंद का विषय है !
    सभी शेर बहुत सुन्दर हैं, और गाया भी बहुत ही अच्छे से है. उन्हें बधाई!
    आप दोनों का आभार...
    ----
    उमाशंकर जी का ये शेर: अदब किसी के भी दिल में नहीं... खूबसूरत लगा.
    -------
    शेखावत जी का, कभी ज़मीं को तपाना , कभी बरस जाना... वाला शेर बेहतरीन है .

    जवाब देंहटाएं
  17. अभी- अभी राजेंद्र जी के ब्लॉग पे ये ग़ज़ल सुनकर आ रही हूँ .....आपका लिंक भी वहीँ है ....तो पहले इधर ही चली आई ...

    पहले शाहिद जी और अब राजेंद्र जी .....!!
    क्या कहूँ .....?
    पहली बार पढ़ी ऐसी विशुद्ध हिंदी ग़ज़ल .....

    करूँगा प्राण निछावर तुम्हारी प्रीत में मैं
    बताओ , प्रीत की जो और अर्हताएं हैं

    .अर्हता शब्द हालांकि अधिक प्रचलन में नहीं ..फिर भी ऐसे शब्दों का प्रयोग उनके शब्दकोश के ज्ञान को भी दर्शाता है
    अद्भुत कला का हुनर है इनके पास .....
    हिंदी हो या उर्दू या राजस्थानी सभी में महारत हासिल है इन्हें .....
    माँ सरस्वती का वरदान है इनके ऊपर .....कंठ में भी और कलम पे भी .....
    नमन है इनकी लेखनी को ....!!

    डॉ उमाशंकर जी का शे'र ....

    हैं बेटियाँ भी सहमती बियाह करने से
    कि दुल्हनों की तो जलती यहाँ चिताएं हैं

    मौन कर गया ......

    शेखावत जी का .....

    ये फूल पट्टियां , देहरी सजी चौबारे
    उतर के चाँद से आई हुई दुआएं हैं ...

    अच्छा लगा .....!!

    ऊपर बहनों की तसवीरें .....
    रक्षा-बंधन की शुभकामनाएं आपको .....!!

    जवाब देंहटाएं
  18. भारत के त्यौहार पूरी दुनिया में अनूठे हैं - रक्षा बंधन के पर्व पर सभी भाई बहनों को मंगल कामनाएं
    भाई राजेन्द्र जी, डा. उमाशंकर जी व शेखावत जी की रचनाओं से सजा आपका ब्लॉग तथा इतनी सारी बहनों के आशिष से सजा मुख पृष्ठ मुग्ध कर गया --

    ये भी देखें
    " अमर युगल पात्र " भारत के उन दम्पतियों पर आधारित श्रृंखला है जिसमे कुछ पूर्व परिचित या सर्वथा नवीन
    स्त्री व पुरुष युगल द्वय के जीवन से आप परिचित होंगें --
    उत्तर अमरीका से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका " विश्वा " के लिये यह श्रृंखला " " अमर युगल पात्र " स्थायी स्तम्भ के अंतर्गत
    नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है में
    " अमर युगल पात्र "
    आज " लावण्यम - अंतर्मन " ब्लॉग पर मिलिए
    प्रथम युगल गुरु वशिष्ठ व अरूंधती देवी के यशस्वी जीवन कर्म से : ~~
    प्रस्तुत है .............
    व ऋषि पत्नी देवी अरूंधती की उज्जवल जीवन गाथा

    http://www.lavanyashah.com/2010/08/blog-post_22.html

    " ई - विश्वा " उत्तर अमरीका की "हिन्दी भाषा को समर्पीत पत्रिका है
    कथा - कहानी अँक : : सम्पादन : लावण्या शाह
    http://www.evishwa.com/

    स स्नेह
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  19. सुन्दर त्योहारों की छटा... आदरणीय बहनों और भाइयों के बीच निखरता ब्लॉग.
    बहुत आनंद आया. रक्षा-बंधन की शुभकामनाएं आपको !!

    जवाब देंहटाएं
  20. rajendra ji kee ghazal hindi me ghazal likhne se katrane walon ke liye prerna ka kaam karegi ...shaandar ghazal hai ...adbhut ....

    chain shekhawat jee ka phool patti dehari wala sher kamaal hai ....

    जवाब देंहटाएं
  21. हमारे देश के लोग प्रधान मंत्री की अपील को कब से इतना सीरियसली लेने लगे...??? आप भी अच्छा मज़ाक कर लेते हैं...अगर इस तरह अपीलों पे लोग चलने लगें तो समझो हो गया बंटा धार देश का...

    मुझे तो पोस्ट में लोचा नज़र आ रहा है...आप जरूर किसी और देश की बात कर रहे होंगे...उस देश की जिस देश की धरती सोना नहीं उगलती ना ही हीरे मोती उगलती है...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  22. राजेंद्र जी की ग़ज़ल बेमिसाल है, लाजवाब है.
    हर शेर अलग निखार के साथ है, वाह
    पूरी ग़ज़ल एक आनंदमयी अनुभव है, और कुछ शेर तो उनसे बाहर निकलने ही नहीं दे रहे...........
    न वेदना है विरह की न यंत्रणाएं हैं
    तुम्हें निहार लिया , तृप्त कामनाएं हैं
    न जा रे मेघ छली ! आज तू बिना बरसे
    खड़ी युगों की लिये‘ प्यास द्रुम - लताएं हैं
    करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे
    व्यथित विकल सी खड़ीं तट पे गोपिकाएं हैं
    हृदय में आग नहीं , यज्ञ प्रीत का है कोई
    नहीं ये शे‘र मेरे ... मंत्र हैं , ऋचाएं हैं
    ----------------------------
    साहिल साहेब, की आवाज़ भी उतनी ही जादूमयी है जितनी उनकी ग़ज़ल है. ये भी अच्छा रहा पंतनगर की hattrick हो गयी. ग़ज़ल में अच्छे शेर निकलें हैं, मतले में गिरह सुन्दर है, और ये शेर.....क्या कहने
    अदब किसी के भी दिल में नहीं बुजुर्गों का,
    तभी तो उनकी नहीं लगती अब दुआएं हैं
    छुपा रहा है कोई फूल सा हसीं चेहरा
    ये उनकी ज़ुल्फ़ हैं या नरगिसी लताएं हैं
    हैं बेटियाँ भी सहमतीं बियाह करने से
    कि दुल्हनों की तो जलती यहां चिताएं हैं
    -------------------------
    शेखावत जी, बहुत अच्छे से आपने प्रकृति की सुन्दरता को अपने लफ़्ज़ों में पिरोया है,
    कभी ज़मीं को तपाना कभी बरस जाना

    ये आसमान की अपनी ही कुछ अदाएँ हैं
    ये फूल पत्तियाँ, देहरी, सजे ये चौबारे

    उतर के चांद से आई हुईं दुआएँ हैं
    पिघल ही जाएंगी आखिर में ये घटाएं भी

    बड़ी कशिश से भरी प्यास की सदाएँ हैं
    ये तरही तो यादगार बन चुकी है, हर अंक में अच्छी से अच्छी ग़ज़लें पढने को मिल रही है. गुरु जी आपको प्रणाम.

    जवाब देंहटाएं
  23. राजेंद्र जी की ग़ज़ल बेमिसाल है, लाजवाब है.
    हर शेर अलग निखार के साथ है, वाह
    पूरी ग़ज़ल एक आनंदमयी अनुभव है, और कुछ शेर तो उनसे बाहर निकलने ही नहीं दे रहे...........
    न वेदना है विरह की न यंत्रणाएं हैं
    तुम्हें निहार लिया , तृप्त कामनाएं हैं
    न जा रे मेघ छली ! आज तू बिना बरसे
    खड़ी युगों की लिये‘ प्यास द्रुम - लताएं हैं
    करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे
    व्यथित विकल सी खड़ीं तट पे गोपिकाएं हैं
    हृदय में आग नहीं , यज्ञ प्रीत का है कोई
    नहीं ये शे‘र मेरे ... मंत्र हैं , ऋचाएं हैं
    ----------------
    साहिल साहेब, की आवाज़ भी उतनी ही जादूमयी है जितनी उनकी ग़ज़ल है. ये भी अच्छा रहा पंतनगर की hattrick हो गयी. ग़ज़ल में अच्छे शेर निकलें हैं, मतले में गिरह सुन्दर है, और ये शेर.....क्या कहने
    अदब किसी के भी दिल में नहीं बुजुर्गों का,
    तभी तो उनकी नहीं लगती अब दुआएं हैं
    छुपा रहा है कोई फूल सा हसीं चेहरा
    ये उनकी ज़ुल्फ़ हैं या नरगिसी लताएं हैं
    हैं बेटियाँ भी सहमतीं बियाह करने से
    कि दुल्हनों की तो जलती यहां चिताएं हैं
    ---------------
    शेखावत जी, बहुत अच्छे से आपने प्रकृति की सुन्दरता को अपने लफ़्ज़ों में पिरोया है,

    कभी ज़मीं को तपाना कभी बरस जाना
    ये आसमान की अपनी ही कुछ अदाएँ हैं

    ये फूल पत्तियाँ, देहरी, सजे ये चौबारे
    उतर के चांद से आई हुईं दुआएँ हैं

    पिघल ही जाएंगी आखिर में ये घटाएं भी
    बड़ी कशिश से भरी प्यास की सदाएँ हैं
    ये तरही तो यादगार बन चुकी है, हर अंक में अच्छी से अच्छी ग़ज़लें पढने को मिल रही है. गुरु जी आपको प्रणाम.

    जवाब देंहटाएं

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