वर्षा का इंतजार काफी लम्बा होता जा रहा है । ऐसा लग ही नहीं रहा है कि कल से सावन का महीना लगने वाला है । मगर क्या करें प्रकृति का खेल ऐसा ही होता है । खैर हम ये कोशिश तो कर ही रहे हैं कि कम से कम ब्लाग पर तो बरसात होती ही रहे । पिछले दो दिन बहुत अच्छे बीते । हालांकि इस बीच में एक कड़वा अनुभव भी हुआ । पिछले दो दिन से मैं देश की वरिष्ठतम कथा लेखिका आदरणीया चित्रा मुदगल जी के साथ था । काफी कुछ सीखने को मिला उनसे । वे मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग के आमंत्रण पर यहां आईं थीं । लेकिन कार्यक्रम में जिसकी वे अध्यक्षता कर रहीं थीं, वहां उनकी घोर उपेक्षा देख कर मन दुखी हो गया । मध्यप्रदेश के संस्कृति मंत्री को शायद पता नहीं था कि चित्रा मुदगल किस शख्सियत का नाम है । सो मध्यप्रदेश सरकार द्वारा दिये जाने वाले सारे अंलकरण जिनको प्रदान करने के लिये चित्रा मुदगल जी को बुलाया गया था वे सारे अलंकरण मंत्री महोदय ने स्वयं अपने हाथों से दे डाले । चित्रा जी बैठी ही रहीं । मंत्री महोदय ने सामान्य शिष्टाचार के तहत चित्रा दीदी को नमस्कार करने की भी कोशिश नहीं की । मन बहुत पीड़ा से भर गया । मंत्री महोदय को पता नहीं था कि आलोक श्रीवास्तव, सुषमा मुनीन्द्र, डा कमल, महुआ माजी जैसे लोग उनके हाथों से नहीं बल्कि चित्रा जी के हाथों सम्मान लेने आये थे । लेकिन मंत्रियों में इतना ही शिष्टाचार आ जाये तो ये देश सुधर ही न जाये । कल पूरा दिन मैं चित्रा दीदी के साथ ही रहा वे बहुत दुखी थीं । उन्होंने कहा कि सुबीर मैंने जीवन में बहुत कुछ देखा है लेकिन ये जो कुछ हुआ वो तो बहुत पीड़ादायी है । विस्तृत जानकारी के लिये नईदुनिया के भोपाल संस्करण में जाकर प्रथम पृष्ठ पर देखिये जहां पर एक युवा पत्रकार आशा सिंह ने बहुत तीखा और सटीक समाचार लिखा है ।
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
कंचन चौहान
जन्मदिन की मंगल कामनाएं
हूं तो आज तो कुछ खास है ही । आज कंचन का जन्मदिन है । कंचन के बारे में कम से कम ब्लाग जगत को किसी प्रकार का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है । कंचन के बारे में वैसे तो सब जानते हैं कि कंचन बातूनी है लेकिन नवोन्मेष के मुशायरे में कंचन को जब काव्य पाठ के लिये पुकारा गया तो कंचन भूल ही गई कि काव्यपाठ करना है । जब करीब दस मिनिट तक चटर पटर बात करती रही तो मुझे कंचन के वीर जी की तरफ इशारा करना पड़ा कि कुछ करो । गौतम ने धीरे से जाकर पीछे से कुछ कहा और उसके बाद कंचन का काव्य पाठ शुरू हुआ । आज कंचन का जन्मदिन है और जन्मदिन का मतलब होता है कुछ खास करने का दिन । तो आज ऐसा करते हैं कि पहले कंचन की तरही ग़ज़ल सुनते हैं फिर कंचन के वीर जी की तरही ग़ज़ल सुनते हैं और फिर केक खाने लखनऊ चलते हैं ।
वो मुस्कुरा के ज़रा ज़ुल्फ यूँ हटायें हैं,
सितारे चांद सभी ले रहे बलायें हैं।
मैं जब उदास थी तो हर तरफ थी खामोशी,
मैं आज खुश हूँ तो, रोशन सभी दिशाएं हैं।
ना ख़त ही भेजा ना क़ासिद संदेश लाया है,
वो आज आयेगा, ये कह रहीं हवाएं हैं।
कि बंद राह सभी, खोलने लगी गलियाँ,
ये मोज़ज़ा तो नहीं, आपकी दुआएं हैं।
मेरी सपाट हँसी जिसको गज़ल लगती है,
वो सामने हो तो आती खुदी अदाएं हैं।
ज़मी दरख़्त की खिड़की से झाँक कर देखे,
फलक़ पे झूम रही साँवली घटाएं हैं।
छिपी थी बाँहों में उनके कि नींद आ जाये,
ये नर्म तोशे मगर रात भर जगायें हैं।
बगूले रेत के उड़ते हैं तट पे गंगा के,
है माँ उदास की बच्चे पियासे जायें हैं।
वाह वाह वाह जन्मदिन के दिन क्या ग़ज़ल कही है । आनंद ही आ गया । मैं जब उदास थी तो हर तरफ थी खामोंशी ये शेर तो आनंद का ही शेर बन गया है । और बहुत ही सुंदर बन पड़ा है । जन्मदिन के साथ साथ सुंदर ग़ज़ल के लिये भी बधाई हो ।
गौतम राजरिशी
गौतम की ग़ज़ल आज कंचन के साथ में लगाई जा रही है तो उसके पीछे भी एक खास कारण है । कंचन का जन्मदिन तो एक कारण है ही ( सुन रही हो कंचन ) और साथ में गौतम आज कोई और खास दिन होने के कारण ये ग़ज़ल किसी दोस्त को भी समर्पित करना चाह रहा है ( सुन रही हो संजीता ) । अब जब मैंने पूछा कि कौन दोस्त है उसका नाम भी दे देते हैं तो कोई उत्तर नहीं मिला । इसका मतलब मामला कुछ गडबड़ है । ये अपनी तरह का एक ही मामला होगा जिसमें आधी ग़ज़ल अपनी बहन को और आधी ग़ज़ल किसी खास दोस्त को समर्पित की जा रही हो । खैर हमें क्या करना हम तो ग़ज़ल सुनते हैं ।
उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं
बटोही रास्ते खो कर भी लें बलाएँ हैं
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
कहो तो इसमें भला क्या मेरी ख़ताएँ हैं
खुला है भेद सियासत का जब से, तो जाना
गुज़ारिशों में छुपी कैसी इल्तज़ाएँ हैं
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
तेरे ही नाम का अब आसरा है एक मेरा
हक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
वाह वाह वाह कई सारे शेरों में उस्तादाना रंग आ रहा है । उधर से आए हो कुछ जिक्र उनका भी तो कहो, भटकती फिरती है जैसे सारे शेर खूब बन पड़े हैं काफी सुंदर निकाले हैं । दोनों भाई बहनों ने आज सुंदर सुंदर शेर कह कर तरही को सार्थक कर दिया है और बहन के जन्मदिन को भी ।
आदरणीय कंचन जो को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाये.
जवाब देंहटाएंregards
मगरूर मंत्री जी की बात से दुख हुआ मगर दोनोन रचनायेन अच्छी लगीं। कंचन को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें, और आपको धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंगुरुदेव चित्रा जी के साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए हर साहित्य प्रेमी शर्मिंदा होगा ...ये पक्का है के बदतमीज़ नेताओं को तमीज़ नहीं सिखाई जा सकती इसलिए इस सूरते हाल में अच्छा है के साहित्यकार उन कार्यक्रमों का बहिष्कार करें जिसमें नेता बुलाये जाते हैं...पुरूस्कार लेने वाले और देने वाले स्पष्ट करें के साहित्य से जुडी सभाओं में सिर्फ साहित्य के जानकार लोग ही हों ,सत्ता के गलियारे में स्वछन्द घूमने वाले सांड जैसे नेता नहीं...चंद तालियों और सरकारी मान्यता प्राप्ति के लिए हम कहीं भी, कोई भी, किसी से भी खींसे निपोरते पुरस्कार लेने दौड़े चले आते हैं...अपने सम्मान की रक्षा के लिए अब नेताओं का बहिष्कार ही एक मात्र इलाज़ है वर्ना चित्र जी जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकार यूँ ही अपमानित होते रहेंगे...
जवाब देंहटाएंअब मुड़ते हैं तरही की और...इस बार बहन भाई की जोड़ी सांवली घटाओं की तरह छा गयी और खूबसूरत अशआरों से हम सब को भिगो डाला... कंचन के तो कमाल के शेर कह डाले हैं...वाह...एक आध हो तो कोट करूँ पूरी ग़ज़ल कमाल की है...उनके ये शेर जितनी बार पढो नया मज़ा दे रहे हैं:-
* मैं जब उदास थी तो....
** ज़मीं दरख़्त की खिड़की से...(गज़ब की गिरह बाँधी है...)
***बगूले रेत के उड़ते हैं...
ब्लॉग जगत की इस सबसे चुलबुली लेकिन संजीदा बहना को हम सब की और से "हमेशा खुश रहो " के आशीर्वाद के साथ जन्म दिन की ढेरों शुभ कामनाएं...
पहले एक जोरदार सेल्यूट मेजर साहब को इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए. ग़ज़ल चाहे बहन के लिए लिखी हो या किसी और के लिए लेकिन है बहुत दिलकश...एक एक शेर मेहनत से तराशा हुआ है, कड़क है, डिसिप्लिन में है...:))
अब जरा देखें इस शेर को किस मासूमियत से कहा गया है...एक जांबाज़ मेजर के दिल में ये मासूमियत इश्वर का नायाब तोहफा है...
* धड़क उठा जो ये दिल....
वाह वा वाह वा वाह वा वाह वा...इस वाह वा का कोई अंत नहीं...:)).
इस मिसरे पे तो सच उनकी कलम चुराने को जी कर रहा है
** गुजारिशों में छुपी कैसी इल्तजाएं हैं....(सुभान अल्लाह...)
इस शेर को पढ़ कर जिंदाबाद कहने को दिल कर रहा है...
*** उठी थी हूक कोई....(बेमिसाल...)
आज तरही के मुशायरे में भीग के जो आनंद आया है वो लोनावला की झमाझम में भी नहीं आया...सच्ची...शुक्रिया आपका...
नीरज
zyadatar mantri magaroor hote hi hai. unhen bulayenge to yahi hoga. fir bhi isase koi farq nahi padataa. chitra ji citra ji hai. unke samane maintri kya hai..? khair, kanchan ji ko badhai...gautam ko bhi.
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम गुरुकुल के विशिष्ट सदस्य बहन कंचन को जन्मदिन की ढेरो शुभकामनाएं...!
जवाब देंहटाएंआप हम सब के बीच बनी रहें, हमेशा खुश रहें!!
सभा की घटना, अतिथि वरिष्ठ कथाकार और आचार्य जी की पीड़ा समझ सकता हूँ उस वक़्त क्या बीती होगी. गुस्सा आता है ऐसा देख सुनकर.
आपने यहाँ पोस्ट में ब्यौरा दे कर, उचित जवाब दिया है ऐसे लोगों को.
-
आज की ग़ज़ल सुन लग रहा है - दो उस्ताद ग़ज़लकारों ने क्या खूब दृश्य बाँधा है. कंचन जी के आखरी शेर ने सोचने पर विवश किया. वैसे मैंने गौर किया है हरबार उनके कोई एक शेर में अलग हट कर बहुत संवेदनशील बात होती है.
मैं आज खुश हूँ तो रोशन.... बहुत सुन्दर!!
वाह! सिर्फ़ और सिर्फ़,वाह!
जवाब देंहटाएं# खुला है भेद सियासत का जब से...
जवाब देंहटाएं# ... सुना है उबके ही दम से वहाँ ....
# तेरे ही नाम का अब ...
आहा क्या दिलकश अंदाज है गौतम भैया के ग़ज़ल का. लाजवाब प्रस्तुति. तरही जिंदाबाद!
पहली बात तो कंचन जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई, और अब दूसरी बात मुशायरे की बात करें तो वो भी कमाल की बढ़िया ग़ज़ल..दूसरे शायर गौतम जी की ग़ज़ल भी बढ़िया अब किसके नाम से ग़ज़ल पढ़े आपने ये तो रहस्य ही रह गई..
जवाब देंहटाएंवाकई बढ़िया ग़ज़ल..मुशायरा अपने शिखर की ओर बढ़ता हुआ...धन्यवाद पंकज जी..
चित्रा जी के साथ हुआ व्यवहार दुखद और अफसोसजनक है. इसकी भर्तसना की जानी चाहिये.
जवाब देंहटाएंकंचन को जन्म दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
कंचन और मेजर की गज़लें-क्या कहना. बहुत उम्दा!
वाह वाह्………………बेहद खूबसूरत गज़लें………………हर शेर एक से बढकर एक है।
जवाब देंहटाएंकंचन जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई।
Kanchan jee aur Gautam Rajrishi jee
जवाब देंहटाएंkee gazalen bade pyaar se padhee
hain.Donon kee gazalon mein khoobiyan bhee hain aur khamiyan
bhee .Achchhe sheron ke liye
unhen badhaaee deta hoon.
Kanchan jee ek sher hai-
MAIN JAB UDAAS THEE TO
HAR TARAF KHAAMOSHEE THEE.
MAIN AAJ KHUSH HOON TO
ROSHAN SABHEE DISHAYEN HAIN
Sher yun chaahiye--
MAIN KAL UDAAS THEE TO
HAR TARAF KHAMMOSHEE THEE
MAIN AAJ KHUSH HOON TO
ROSHAN SABHEE DISHAAYEN HAIN
YAA
MAIN KAL UDAAS THEE TO
HAR TARAF UDAASEE THEE
MAIN AAJ KHUSH HOON TO
ROSHAN SABHEE DISHAAYEN HAIN
Unka ek misra hai --
MEREE SAPAAT HANSEE JISKO
GAZAL KAHTEE HAI
Gazal ko 2 1 ke wazan mein istemaal
kiyaa gayaa hai.Gazal kaa sahee
wazan hai - 1 2
Unka ek aur misraa hai --
ZAMEEN DARAKHT KEE KHIDKEE SE
JHAANK KAR DEKHE
" jhaankaa " kaa arth hai -- Idhar-
udhar yaa bheetar dekhna n ki
oopar dekhna.
Janaab Gautam Rajrishi kaa ek misra
hai ---
KHULAA HAI BHED SIYAASAT KAA
JAB SE ,TO JAANA
Misra yun chaahiye -
KHULAA HAI BHED SIYAASAT KAA ,
TAB SE YE JAANAA
Unkaa anya misra hai -
GUZAARISHON MEIN CHHUPEE KAESEE
ILTZAAYEN HAIN
Guzaarish aur Iltiza donon ke ek
arth hain -- nivedan .
Gautam jee kaa hee ek misra hai -
UDHAR SE AAYE HO KUCHH ZIQR
UNKAA BHEE TO KAHO
Ziqr karnaa hota hai ,kahna nahin
hotaa.
Unkaa ek misraa hai --
UTHEE THEE HOOK KOEE ,UTHKE
IK GAZAL THEE BANEE
Misra yun hota to behtar lagta --
UTHEE HAI HOOK KOEE AUR JO
GAZAL HAI BANEE
Unkaa ek misraa hai--
TERE HEE NAAM KAA AB AASRA
HAI EK MERAA
" Tere hee naam " ke saath " ek"
kaa istemaal sahee nahin hai.Misra
yun chaahiye --
TERE HEE NAAM KAA AB AASRAA
HAMAARAA HAI
Ek misre mein Gautam jee ne " taur
kuchh muhabbat kaa" likha hai.
" KUCH" shabd " Taur " shabd ke
pahle istemaal honaa chahiye thaa.
" Muhabbat " ke pahle " kuchh"
shabd istemaal karne se pankti ke
arth ho jaate hain -- kuchh muhabbat ke taur .jab ki kavi ke
kahne kaa aashay hai -- muhabbat ke
kuchh taur.
सुबह जैसे ही अखबार का पन्ना पलटा तो अन्दर के पन्ने में भोपाल नाम नज़र आया सोचा जरुर उस कार्यक्रम का कुछ रिपोर्ट होगा .. खुश था मगर मन दुखी होगया रिपोर्ट पढ़ ... सच में इस तरह से उपेक्षा निंदनीय है ....
जवाब देंहटाएंइस मुक़द्दस मौके पर और क्या कही जाए ... दिल से बस ढेरो दुआएं अल्लाह मियाँ से बहन जी के लिए... वेसे तस्वीर काफी अछि आयी है :):)
ये जुगल बंदी बहुत पसंद आयी .. दोनों की ...
मतले से अभी उतारा ही था के दुसरे शे'र ने ठिठकने पर मजबूर कर दिया .. कमाल का यह शे'र बन पडा है ... कितने काग कबूतर भेजूं की तरह ही इस बारी हावायें सन्देश ला रही हैं ... बेहद नाज़ुक सा शे'र ... और जिस मिसरे से गिरह लगाई है ... मज़ा आगया ... फिर से बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए ...
गौतम भाई की ग़ज़लों का दीवाना हूँ ... शब्द बटोही ने उस शे'र को अलग ही दायरे में ला खडा किया है मज़ा आगया ...वेसे तो पूरी ग़ज़ल में ये हैं कायम मगर .. उधर से आये हो और आखिरी शे'र ने कमाल किये हैं... इनके ब्लॉग से होकर आरहा हूँ अभी इनकी आवाज़ में सुन ये ग़ज़ल और निखर रही है ....
बहुत बहुत बधाई इन दोनों को....
ग़ज़ल पितामह की बातें गौर के लायक है हम जैसे अदनों के लिए !
अर्श
महफिल मे सब को आदाब पेश करता हूँ.
जवाब देंहटाएंकंचन जी को जनम दिन की बहुत बहुत शुभ कामनाये.
" कंचन जी की गज़ल बेहद शानदार और संजीदा है.बहुत बहुत बधाई "
"गौतम जी की गज़ल अपने मे बहुत कुछ समेटे हुए है
सारे अशार खूबसूरत है.बहुत बहुत बधाई "
सारे मोतियो को एक जगह जमा करने के लिये
सुबीर साहब को बहुत बधाई .
अल्लाह का करम है कि "प्रान साहब " हम सब की सरपरस्ती कर रहे हैं.
मुशयरे की अच्छी रवानगी के लिये हाज़रीन को बहुत बहुत बधाई .......
guru ji pranaam,
जवाब देंहटाएंbahut der se pareshaan hoon ki hindi men likh sakoon magar pataa nahi kyaa dikkat aa rahee hai, hindi me likha hi nahi rahaa hai.
chitraa jee ke saath huye vyavhaar ki jitanee nindaa karoon kam hai. kyaa vahan koi is vishay men bolane waalaa nahi thaa ?
aayojan kartaa ki naitik jimmedaari bhee to kuch hoti hai. saahity ki duniyaa to aaam aadami ki duniyaa se bhee jyaadaa gandi hai, kyaa kahoon.
kanchan didi ko janmdin ki bahut bahut badhai.
mujhe kanchan didi ki gajal ke do sher bahut bahut pasand aaye.
1--- mai jab udaas thee...
2--- meree sapaat hasee...
waah waah.... dil khush ho gayaa.
gautam jee ki gajal ko padh kar bahut kuchh kahana chaahata hoon magar taiping ki vajah se jyaadaa nahi kahoongaa.
is samay "jamoo aur kashmeer" me jo haalaat hain aur jis tarah se news aur akhbaar me un haalaaton ko sensar kiya jaa rahaa hai uske maddenazar gautam jee kaa sher ..
bhtakatee firatee hai...
mujhe sabse jyaadaa pasand aayaa.
aur girah bhee kyaa khoob lagaai hai
gajal kanchan didi aur kinhin khaas mitr ko samarpit hai to adaaon ki baat to honee hi hai
is hisaab se matlaa bahut jordaar hai aur bahuut pasand aayaa.
tarahi ka ye ank to kahar barapaa gayaa.
guru ji pranaam,
जवाब देंहटाएंbahut der se pareshaan hoon ki hindi men likh sakoon magar pataa nahi kyaa dikkat aa rahee hai, hindi me likha hi nahi rahaa hai.
chitraa jee ke saath huye vyavhaar ki jitanee nindaa karoon kam hai. kyaa vahan koi is vishay men bolane waalaa nahi thaa ?
aayojan kartaa ki naitik jimmedaari bhee to kuch hoti hai. saahity ki duniyaa to aaam aadami ki duniyaa se bhee jyaadaa gandi hai, kyaa kahoon.
kanchan didi ko janmdin ki bahut bahut badhai.
mujhe kanchan didi ki gajal ke do sher bahut bahut pasand aaye.
1--- mai jab udaas thee...
2--- meree sapaat hasee...
waah waah.... dil khush ho gayaa.
gautam jee ki gajal ko padh kar bahut kuchh kahana chaahata hoon magar taiping ki vajah se jyaadaa nahi kahoongaa.
is samay "jamoo aur kashmeer" me jo haalaat hain aur jis tarah se news aur akhbaar me un haalaaton ko sensar kiya jaa rahaa hai uske maddenazar gautam jee kaa sher ..
bhtakatee firatee hai...
mujhe sabse jyaadaa pasand aayaa.
aur girah bhee kyaa khoob lagaai hai
gajal kanchan didi aur kinhin khaas mitr ko samarpit hai to adaaon ki baat to honee hi hai
is hisaab se matlaa bahut jordaar hai aur bahuut pasand aayaa.
tarahi ka ye ank to kahar barapaa gayaa.
बहुत अरसे बाद आना हुआ . इस बीच पूरी दुनिया से ही कटा रहा .कंचन को जन्म दिन की देर से ही सही बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंमैं सिर्फ पाठक की हैसियत से आता हूँ और गज़ल्गोयी का ककहरा सीख रहा हूँ .
खास बात जो कहने आया हूँ वह यह की चित्रा जी की अवहेलना व्यथित कर गयी . मैं और चित्रा ७ वीं से ग्यारहवीं तक मुंबई में एक साथ पढ़े .तीन साल पहले न्यू योर्क विश्व हिन्दी सम्मलेन में ४५ साल बाद मिले .फिर अब दिल्ली जाने पर उनके घर मिलने का संयोग बनता है .
इतनी शालीन की ऐसा व्यक्तित्व बमुश्किल मिलता है .कहने को तो मैं भी जनता दल यूनाइटेड का मुंबई अध्यक्ष और राष्ट्रिय कार्यकारिणी का सदस्य होने के नाते तथाकथित नेताओं की कतार में खड़ा किया जा सकता हूँ और चित्रा को तो मैं सचमुच का नेता मानता हूँ .वे जमीनी लडाई लड़ी हैं और मजदूर आन्दोलन में ' त्यागपूर्ण ' भूमिका निभायी है . जिन ' संस्कृति ' मंत्री ने ये अवहेलना की ,ऐसे नेताओं और उनके कार्यक्रमों को थू है . इनका और ऐसे समारोहों का बहिष्कार ही नहीं इनका वैसा ही निरादर भी किया जाना चाहिए .संस्कार विहीन ' संस्कृति ' मंत्री इसी देश में पाए जा सकते हैं और यह देश का दुर्भाग्य है .
sundar gajhalen....
जवाब देंहटाएंkanchan ji ko janm diwas ki khoob khoob shubhkamnaaye...!
ईपिक्टीटस ने कहा 'हे ईश्वर, मुझे शॉंति दे कि मैं वह सब सहजता से स्वीकार कर लूँ जो मेरे नियंत्रण में नहीं, साहस दे कि मैं वह बदल सकूँ जो बदल सकता हूँ, और विवेक दे कि मैं कि मैं यह समझ सकूँ कि क्या मेरे नियंत्रण में है और क्या नहीं।
जवाब देंहटाएंप्राण साहब की टिप्पणी कह रही है कि दोनों ग़ज़लों में अभी और मेहनत की जरूरत थी। बह्र कठिन है, इस मात्रिक क्रम का इस रदीफ़ और काफि़या के साथ निर्वाह सरल नहीं है लेकिन निर्वाह का यथासंभव प्रयास तो किया ही गया है।
सबसे पहले कंचन जी को जनम दिन की बधाई ... आज बड़ी मुश्किल से नेट से जुड़ पाया ....
जवाब देंहटाएंउनकी ग़ज़ल का शेर मैं जब उदास थी ... सच में सीधा मन में उतार गया है ... भगवान उनको सुखी रक्खे ....
और गौतम जी के मिज़ाज़ ... धड़क उठा जो दिल ... या फिर ... उधर से आए हो .... दोनो ही उनके हसीन अंदाज़ को बयान कर रहे हैं ... मामला गड़बड़ है ....
दोनो शयरों नें ग़ज़ब का समा बाँधा है .... मज़ा आ रहा है इस मुशायरे में ...
abhee to kanchan ko dheron duyaayen aur aasheervaad de kar jaa rahee hoon gazalen padhane fir aatee hoon.
जवाब देंहटाएंजुगलबंदी तो मैदान लूट कर ले गयी है,
जवाब देंहटाएं@ कंचन दीदी,
जन्मदिन की शुभकामनायें, अच्छे शेर निकालें हैं,
"मैं जब उदास थी.............." तो लफ्ज़ डर लफ्ज़ आँखों के सामने उतर रहा है,
"मेरी सपाट .........", अहा वाह दीदी, दिल जीत लिया, लाजवाब शेर, बाँध दिया है इस शेर ने, एक अलग ही खुमारी है इसमें.
ढेरों बधाइयाँ एक अच्छी ग़ज़ल के लिए, ईश्वर आपको सदा खुश रखें, मैं यही प्रार्थना करता हूँ.
@ गौतम bhaiyaa,
शुरुआत में भैय्या ने कहा था कि गुरु जी जल्द मुशायेरा शुरू करवाइए, कारण खतरनाक ग़ज़ल.
मतला अच्छा बना है और वाकई "बटोही" लफ्ज़ का जादू ही है जो उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़
"सिखाएं है वो हमें................." वाह वाह वाह
बब्बर शेर मारा है, कितना कुछ कह गए आप इस शेर में, मज़ा आ गया .
"भटकती फिरती ..............." शेर आपके इर्द गिर्द की दुनिया की सजीव पिक्चर दे रहा है.
पानी की तरह यहाँ शुभकामनाएं भी खूब बरसीं और हम जी भर के भीगे। आप सबका शुक्रिया....
जवाब देंहटाएंKanchan ji
जवाब देंहटाएंMany Happy Returns of the day to you
Bonda bondi, ye mausam , ye shayari ka junoon..
macchati shor ye badri bhi kuch batayein hain
Tumhare janm diwas par mili duayein hai
Gautam ji
Barsaat ka lutf aapke sharon ne aur kuch ziyada kar diya hai. Badhayi ho!!!
आज आ पाई हूँ गज़लें पढने कंचन और गौतम को पढने की हमेशा उत्सुकता रहती है---कंचन ने तो बडे बडे शायरो को मात देने की ठान ली है।
जवाब देंहटाएंमै उदास थी---
छिपी थी बाहों मे----
ना खत भेजा-- -- लाजवाब शेर हैं
गौतन की गज़ल पर कुछ कहना मेरे लिये मुश्किल सा होता है सभी शेर दिल को छूते हैं
पहले मतला ही इतना खूबसूरत है कि क्या कहूँ
धडक उठा दिल----
तेरे ही नाम का आसरा है-----
भटकती फिरती है -----
वाह क्या गज़ब के शेर हैं दोनो को बहुत बहुत बधाई।
अब जब व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि महीनों नेट पे न आ पाती हूँ तो समझती हूँ कि ज़रा भी मुँह दिखाई की बात कहना, कलम और वक्त के साथ कितनी बड़ी नाइंसाफी है, सो सच कहूंगी. पर ये अर्थ न लगाइयेगा कि मुझे कुछ लिखने, कहने का हुनर है या मुझे कोई इस प्रकार की गलतफहमी है (ये बात मैंने दूसरे पढ़ने वालों के लिए लिखी है, प्यारेलाल और कंचन मुझे जानते है :).
जवाब देंहटाएंप्यारेलाल , आज पहली बार आपकी किसी ग़ज़ल से अच्छा शेर चुनने के लिए हमें उसे २-३ बार पढ़ना पढ़ा. एक शेर चुना :
भटकती फिरती है ....
खुला है भेद ... वाले शेर में भी अच्छी बात कहने की कोशिश है.
आपकी प्रशंसा करने में कंजूसी करती हूँ थोड़ी क्योंकि उसे "घंटियों वाली..." जैसी किसी ग़ज़ल के लिए बचा कर रखना चाहती हूँ भैया.
स्वतंत्रता दिवस पे आपको सलाम!
जय हिंद!
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कंचन, तुम्हारी ग़ज़ल अच्छी लगी मुझे. मैं जब उदास थी... ये तो बहुत ही सुन्दर भाव लिए है. शाबाश!
मेरी सपाट हँसी जिसको ग़ज़ल लगती है... बहुत खूबसूरत है ये मिसरा ! सपाट हँसी का प्रयोग मैंने पहली बार देखा. वेरी गुड :)
मकते की compassionate भावना तो समझ में आ गई पर मानस में चित्र बनाने में समय लगा...
लिखती रहो!
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दोनों को दुआएं... दीदी
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प्राण साहब की टिप्पणी पढ़ी, बहुत कुछ सीखने को मिला. उनका शुक्रिया!
सादर , शार्दुला