शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

अवसर है सबकी प्‍यारी बहना कंचन चौहान का जन्‍मदिन 24 जुलाई और स्‍व. ओम व्‍यास स्‍मृति तरही मुशायरे में आज फौजी भाई गौतम राजरिशी और अनुवादक बहन कंचन चौहान की जुगलबंदी

जन्‍मदिन वो विशेष दिन होता है जिसका हम सबको साल भर इंतजार रहता है । हम कहीं भी रहें किसी भी हाल में हों मगर फिर भी हमकों लगता है कि लोग हमारा जन्‍मदिन याद रखें और अचानक से आ धमक कर या फोन करके हमको चौंका दें । लाल सुनहरी पन्नियों में बंधे हुए वे उपहार खोलना कितना आनंददायक लगता है । उस पर नये कपड़े पहन कर इतराना । ऐसा लगता है मानो आज का दिन केवल हमारा ही है । आज 24 जुलाई को ऐसा ही खास दिन है लखनऊ की कवियित्री और मेरी छोटी बहन कंचन चौहान के लिये । आज कंचन का जन्‍मदिन है । कंचन जो पूरे ब्‍लाग जगत की लाड़ली कवियित्री है । या यूं कहें कि लाड़ली बहना है । कंचन का जन्‍मदिन आज है और आज का ये तरही मुशायरा कंचन और कंचन की फौजी वीर जी गौतम राजरिशी के नाम है । आज ये दोनों मिलकर कर रहे हैं जुगल बंदी । जुगलबंदी कविता की, जुगलबंदी शायरी की । रक्षाबंधन पास में ही है और इस अवसर पर इससे अच्‍छा और कुछ भी नहीं हो सकता था कि भाई और बहन एक साथ ही मंच पर आकर कुछ पढ़ें । मैंने बचपन से ही बहन की कमी को सदा मेहसूस किया है दरअसल में हम दो भाई हैं, बहन कोई नहीं है । चाचाजी की बेटियां जब आ जाती थीं तो हमारा रक्षाबंधन हो जाता था नहीं तो सूनी कलाई लेकर घूमते थे रक्षाबंधन के दिन । बचपन में बहुत टीसता था ये दिन । जब दूसरों के हाथों पर भरी भरी राखियां देखते थे । चाचाजी हर बार राखी पर नहीं आ पाते थे । अभी किसी पत्रिका के लिये रक्षा बंधन विशेषांक के लिये कहानी लिख रहा था शीर्षक था 'मिन्‍नी की चिट्ठी गोलू के नाम' लिखता जा रहा था और रोता जा रहा था, पता नहीं क्‍यों । 

खैर वो बातें बाद में आज तो मिठाई-‍शिठाई, केक-शेक का दिन है । आज तो गुड़ के मीठे गुलगुले बनाने का दिन है और जन्‍मदिन के अवसर पर सिर पर उन गुलगुलों की बरसात करने का दिन है । ब्‍लाग जगत, ग़ज़ल की पाठशाला की ओर से

flower कंचन चौहान को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं flower-designer-ignacio-villegas

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स्‍व. ओम व्‍यास स्‍मृति तरही मुशायरा : इस बार का ये मुशायरा बहुत ही कामयाब रहा है इस मायने में कि इस बार कई बहुत अच्‍छी रचनाएं मिली हैं । कई बहुत अच्‍छे शेर मिले हैं ।   अब ऐसा लगता है कि अगली बार कुछ मुश्किल सा मिसरा  देना होगा । इस बार हम हर अंक में बहर रमल मुसमन महजूफ पर कोई गीत या गज़ल भी सुन रहे हैं । इस बार एक बहुत ही प्‍यारी सी ग़ज़ल जिसे गाया है स्‍वर साम्राज्ञी आदरणीया लता मंगेशकर जी ने ये ग़ज़ल सबा अफ़गानी जी  की लिखी हुई है । इसमें एक मिसरे  शायद अब तस्‍कीन का पहलू नज़र आने लगे को पढ़ते समय लता जी ने एक गैप लिया है शायद और अब के बीच में । पहले तो ये बताएं कि क्‍या ये मिसरा बहर में है । और क्‍या लता जी ने गैप उसी कारण से लिया है कि वहां पर बहर की समस्‍या आ रही है । या फिर ऐसा तो नहीं है कि मिसरा तो बहर में है लेकिन संगीतकार ही लताजी को ठीक से नहीं समझा पाया कि इस मिसरे में क्‍या खास है । ये ग़ज़ल जगजीत सिंह साहब और लता जी के अनोखे एल्‍बम सजदा से है ।

 

डाउनलोड लिंक

http://www.divshare.com/download/7973345-780

http://www.archive.org/details/TereJalaweAbMujhe

और अब मुशायरा जिसकी शुरुआत कर रहे हैं वीर जी ।

गौतम राजरिशी :  गौतम में कुछ ऐसा खास है जो हरेक को अपनी ओर खींचता है । गौतम की ग़ज़लें कुछ नये प्रयोग लिये होती हैं । और ये ग़ज़लें गौतम की संवेदनाओं का परिचय देती हैं । कि ये फौजी अपनी हरी वर्दी के पीछे कितना संवदेनशील सा दिल रखता है । गौतम और कंचन का भाई बहन का रिश्‍ता है  । गौतम पूर्व में देहरादून में पदस्‍थ थे अब कहीं सीमा पर हैं । एक बहुत रोचक जानकारी इनके बारे में ये है कि जब भी ग़ज़ल की पाठशाला में ये डंडे खाते हैं तो सबसे जियादह खुश हमारी बहूरानी होती है और बहूरानी का तो यहां तक कहना है कि जब भी ग़ज़ल की पाठशाला में गौतम को डंडे लगाये जाएं तो एक दो डंडे उनकी ओर से भी लगा दिये जायें ।  इस बार के तरही की ग़ज़ल गौतम ने दो लोगों को समर्पित की है कुछ शेर समर्पित किये हैं अपनी प्‍यारी बहना कंचन चौहान को और कुछ शेर समर्पित किये हैं मेजर स्‍व. ऋषि‍केश रमानी छोटू  को ।

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इसे ही तो कहते हैं फेफड़ा फाड़ हंसी

मतला और पहला शेर अपने छोटु ऋषिकेश रमानी को समर्पित है। शौर्य ने एक नया नाम लिया खुद के लिये- ऋषिकेश रमानी । अपना छोटु था वो। उम्र के 25वें पायदान पर खड़ा आपके-हमारे पड़ोस के नुक्कड़ पर रहने वाला बिल्कुल एक आम नौजवान, फर्क बस इतना कि जहाँ उसके साथी आई.आई.टी., मेडिकल्स, कैट के लिये प्रयत्नशील थे, उसने अपने मुल्क के लिये हरी वर्दी पहनने की ठानी। ...और उसका ये मुल्क जब सात समन्दर पार खेल रही अपनी क्रिकेट-टीम की जीत पर जश्‍न मना रहा था, वो जाबांज बगैर किसी चियरिंग या चियर-लिडर्स के एक अनाम-सी लड़ाई लड़ रहा था। आनेवाले स्वतंत्रता-दिवस पर यही उसका ये मुल्क उसको एक तमगा पकड़ा देगा।

आप तब तक बहादुर नहीं हैं, जब तक आप शहीद नहीं हो जाते

major rishikesh ramani

चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से

गोलियाँ चलती रहीं इस पार से उस पार से

मिट गया इक नौजवां कल फिर वतन के वास्ते

चीख तक उट्ठी नहीं इक भी किसी अखबार से

तरही में हमदोनों भाई-बहन की जोड़ी को इकट्ठा लाकर बड़ा उपकार किया है आपने गुरूदेव...इतने कम दिनों में कंचन से अनूठा रिश्ता हो गया है\ दो शेर जोड़े हैं....अपनी अनुजा कंचन को समर्पित ये दो शेर:-

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पुण्य होगा ये मेरे पिछले जनम का ही कोई

जिंदगी में तू चली आई है जिस अधिकार से

हर खुशी तुझको मिले, सपने तेरे सच हों सभी

माँगता हूँ बस यही मैं सच्चे उस दरबार से

कितने दिन बीते कि हूँ मुस्तैद सीमा पर इधर

बाट जोहे है उधर माँ पिछले ही त्यौहार से

अब शहीदों की चिताओं पर कहां मेले कोई

है कहाँ फुरसत जरा-भी लोगों को घर-बार से

मुट्ठियाँ भींचे हुये कितने दशक बीतेंगे और

क्या सुलझता है कोई मुद्‍दा कभी हथियार से

मुर्तियां बन रह गये वो चौक पर चौराहे पर

खींच लाये थे जो किश्ती मुल्क की मँझधार से

बैठता हूँ जब भी ’गौतम’ दुश्‍मनों की घात में

रात भर आवाज देता है कोई उस पार से

इस ग़ज़ल वाह वाह क्‍या शेर निकाले हैं मेरे विचार में तरही की श्रेष्‍ठ गिरह है ये । जिसमें दो शेड दिखाई दे रहे हैं । कंचन को और छोटू को समर्पित शेर भावनाओं से भरपूर है । मेरे विचार में ये भी अपने ही प्रकार की पहली ग़ज़ल होगी जिसके कुछ शेर किसीकी विदाई पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं तो कुछ शेर किसीको जन्‍मदिन की शुभकामनाएं । यही तो है जीवन जिसमें आंसू और हंसी की दो दो चुटकी है ।

कंचन चौहान - और अब आ रही हैं बर्थडे गर्ल । जी हां कंचन चौहान । इस ग़ज़ल के बारे में एक बात बताना चाहूंगा । मेरी नानीजी आई हुईं थीं जब कंचन की ये गज़ल मिली । वे जब भी आती हैं तो उनको मैं कुछ भावनात्‍मक कविताएं ज़रूर सुनाता हूं । जैसे अनु शर्मा सपन की ग़ज़ल अब के सावन में जब बदलियां आएंगी या कबीर का कुछ भी । इस बार मैं कंचन की ग़ज़ल का प्रिंट लेकर घर गया और एक रविवार को घर झूले पर उनके साथ बैठे हुए ये ग़ज़ल उनको सुनाई । आखिरी शेर पर उनकी आंखें सजल हो गईं । मुझे लगा कंचन की ग़ज़ल सफल हो गई । कंचन में चौंका देने वाली संवेदनशीलता है । वे हवा में तैर रही हल्‍की हल्‍की आवाज़ों को पकड़ लेती हैं । आज जन्‍मदिन के अवसर पर सुनिये तरही मुशायरे में उनकी ये ग़ज़ल ।

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करवटें लेते हैं और सुनते हैं बस लाचार से,
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से।

देर तक बरसो बरस के जब रुको, फिर से घिरो,
प्यास धरती की कहे बादल से ये अधिकार से।

घिर के आये, झूम कर छाये, मगर फिर गुम हुए,
रूठ बैठी है धरा, बादल के इस व्यवहार से।

बास है नाराज एसी काम क्यों करता नही,
और चपरासी के घर बिजली नही इतवार से।

हाथ में ढोलक थमी है और आँखों में नमी,
घर में नवदीपक की लौ आई समंदर पार से।

धान फिर थोड़ा हुआ अम्मा के घर इस बार भी,
फिर नही आये बिरन लेने हमें ससुरार से।

वाह वाह वाह क्‍या ग़ज़ल है अंतिम दो शेर सुन कर कोई भी रो दे । एक बात और इतवार का प्रयोग बहुत सुंदर किया है । मतले में ही जो जबरदस्‍त गिरह बांधी है वो तो अद्भुत है । इसे कहते हैं एन जन्‍मदिन के दिन ही धमाकेदार प्रस्‍तुति । पिछली बार कंचन ने हासिले मुशायरा का खिताब जीता था ये याद रहे । जीत एक जुनून पैदा करती है ।

चलते चलते ये दो गीत कंचन को जन्‍मदिन के उपहार में आप भी सुनिये इन दोनों गीतों को और बताइये कि कैसा है जन्‍मदिन का ये तोहफा ।

गीत क्रमांक 1

गीत क्रमांक 2

अगले अंक में तैयार रहिये उस्‍तादों की जुगलबंदी के लिये । और हां ऊपर जो प्रश्‍न पूछा है कि उस ग़ज़ल में लता जी ने गैप के साथ क्‍यों गाया है उसका उत्‍तर अवश्‍य दें । और हां यदि परीकथा का ताजा अंक मिले तो उसमें एक कहानी है मेरी अलग शेड की उसे ज़रूर पढ़ें ।

30 टिप्‍पणियां:

  1. कंचन जी को हमारी भी बहुत बहुत शुभकामनाएं जन्मदिन की।
    regards

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  2. अभी तुरंत में कंचन जी को जन्म दिन की बहुत बधाई और शुभकामनाऐं...और ये जुगलबंदी...दो इतने बड़े कलाकार...क्या कहने..एक बार नहीं..कई बार फिर पढ़कर ही कुछ सार्थक कह पाऊँगा.

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  3. कंचन जी को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनायेम और आशीर्वाद उनकी गज़ल लाजवाब है धान् फिर थोडा हुआअम्मा के घर इस बार भी
    फिर नहीं आये बिरन लेने हमे ससुराल से
    अद्भुत भाव हैं बधाई
    गौतम राज रिशी जी कि प्रतिभा के आगे तो नतमस्तक हूँ गज़ल इस तरह कहते हैं खी सीधे दिल तक उतर जाती है हर वक्त जिनके जहन मे गोलियों की आवाज़ गूँजती हो वो ऐसे मोटी जैसे शब्द कैसे पकड लेते हैं यही हैरान करने वाली बात है
    कितने दिन बीते कि हूँ मुस्तैद सीमा पर इधर
    बाट जोहे है उधर माँ पिछले ही तौहार से
    कुछ दिल मे दरक सा जाता है और आंम्खों के रास्ते बह जाता है सारी की सारी गज़ल आंम्खों को नम कर देती है बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद कामना करती हूंकि दोनो भाई बहिन का प्यार बना रहे और गौतम जी के परिवार के लिये बहुत बहु्त बहुत शुभकामनायें और आशीर्वाद
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद इन हीरों को हम से रुबरू करवाने के लिये और सुन्दर गज़लें सुनवाने के लिये आभार्

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  4. कंचन दी,
    जन्म दिन बहुत बहुत मुबारक.
    जिनके जीवन में कविता और संगीत हो
    ऐसे भाई-बहन बड़भागी होते हैं.

    अशेष शुभेच्छाएँ.

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  5. बेजोड पोस्‍ट .. कंचन जी को मेरी ओर से भी बधाई और शुभकामनाएं !!

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  6. कंचन जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई गौतम जी ने बहुत अच्छा लिखा है ...बहुत बहुत बधाई एक बार फिर से

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  7. kanchan ji aur gautam ji ki ghazal bahut acchi lagi...

    aur sabse badiya laga aapki post ka wo bhaag.....
    ....

    "umr ke 25th paiydaan par........anam si ladia lad raha tha !!"
    roya nahi par aankhein nam ho gayi...


    aapke do shishya, arsh ji aur gautam ji mare bade acche mitr hain ya youn kahein bade bhai jaise hai...
    atha mere man main aapke liye bhi bahut izzat nhai...

    ..ghazal ki grammer ke baare main kum hi jaanta hoon !! apke do shishyoon se hi jaan paya hoon bahut kuch to.par abki baar ki terhi main kuch likhne ka prayas karoonga.

    aur ant main kehna chahoonga...
    apka gadya lekhan bhi bahut prabhavshaali hai...

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  8. गुरुदेव सच कहूँ इस तरही मुशायरे में बहुत मजा आ रहा है...सबसे बड़ी ख़ुशी आज के नौजवान शायरों की अशआर पढ़ कर हो रही है...इस उम्र में उस्तादों वाले शेर लिख रहे हैं...वाह...बहुत अच्छा लगता है...हिम्मत बंधती है की अभी संवेदनाएं जिंदा हैं...

    सबसे पहले चुलबुली प्यारी सी कंचन को जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएं...कंचन जैसी लड़की ही किसी की आदर्श बेटी या बहिन हो सकती है...ये हंसती खिखिलाती लड़की जब अपनी संवेदन शील शायरी सुनाती है तो मन भर आता है...एक आँख से हंसाने और दूसरे से रुलाने की कला में प्रवीण है कंचन. गुरु देव ने सही कहा इतवार काफिये वाला शेर और मतला अनमोल है.

    अब बात हमारे प्रिय फौजी के बारे में. गौतम जी की शायरी सबसे हट कर होती है...अक्सर वो अपने शेरों से हमें चौंका देते हैं. इस बार जो तरही में गिरह लगी है उसके लिए खड़े हो कर उनके सम्मान में तालियाँ बजा रहा हूँ...

    आपका आभार जिनके सौजन्य से हमें ऐसी यादगार ग़ज़लें पढने को मिलीं.

    नीरज

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  9. आप यकीन नहीं करेंगे गुरूदेव.....बस आधा घंटा पहले परिकथा में "मिस्तर इंडिया" को पढ़कर उठा, आपको एस.एम.एस. किया और अभी ये पोस्ट पढ़ने बैठा तो उसी कहानी का जिक्र है। एक अजीब सी सिहरन दौड़ गयी है अंदर....कुछ विचित्र सा अहसास....मन का एक कोना डरा-सा...आपके शब्दों ने ऐसा माहौल क्रियेट किया...

    कंचन को सुबह से कई बार बधाई दे चुका हूँ और उसकी ग़ज़ल पे तो कब से वाह-वाह किय जा रहा हूँ। जिस शेर पर आपकी नानीमाँ की आँखें भीग आयी थीं, इधर जब कुछ दिनों पहले कंचन ने ये शेर भेजा था तो मैं और आपकी बहुरानी दोनों ही रूंआसे हो उठे थे....
    और ऋषिकेश की याद और उसे श्रद्धांजलि देने के लिये हृदय से शुक्र्गुजार हूँ, सर!

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  10. ...और सर वो मिस्‍रा पूरी तरह से बहर में है।
    "शायद अब" शा-य-दब पढ़ा जायेगा....

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  11. कंचन जी को जन्मदिन की शुभकामनायें .............
    मेरी तरफ से उन्हें जन्मदिन के तोहफे स्वरुप एक मतला (कृपया इस मतले में तुम को आप समझे)
    "हो मुबारक दिन तुम्हे ये उम्र भर खुशियाँ मिलें.
    सिम्त जिस भी तुम चलो उस राह पर खुशियाँ मिलें."
    और ग़ज़ल बहुत बेहतरीन है, शेर "बॉस है नाराज़........" और "धन फिर थोडा हुआ...." लाजवाब हैं.
    बड़े भाई गौतम जी को नमस्कार,
    आसान लफ्जों से गहरी और दिल छु लेने वाली बात कहने का हुनर रखने वाले गौतम जी का अंदाज़ ही अलग है और उसकी गवाही है ये ग़ज़ल.
    शहीद ऋषिकेश को समर्पित मतला और शेर उसके शौर्य को बखूबी बयान कर रहे हैं और मीडिया पे एक चोट भी. दिल चीर के रख दिया है आपने.
    कंचन जी को समर्पित दो शेर रिश्ते और प्यार के बंधन को खूबसूरती से पिरो रहे हैं.
    वाकई बेहतरीन गिरह लगाई है.
    गौतम जी और कंचन जी दोनों को बधाई इतनी खूबसूरत ग़ज़लों से हमें मिलवाने के लिए.

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  12. कंचन जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई. आज की पोस्ट तो बहुत ही खूबसूरत और नायाब बन पडी है. छुट्टी के बाद आराम से इसका आनंद ऊठायेंगे. आपको बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  13. बिटिया तुल्य कंचन को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई। उससे भी अधिक गौतम से भाई को पाने की बधाई।
    आपकी यह पोस्ट हमारी कंचन के जन्मदिन के लिए पूरी तरह योग्य है। वह तो कंचन नहीं हीरा है। आशा है उसे मेरी मेल व शुभकामनाएँ भी मिल गईं होंगी।
    गौतम व कंचन की गजल के लिए कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना होगा।
    घुघूती बासूती

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  14. bhavanao.N ki baadh..abhi kuchh nahi kah pauNgi..fir auNgi kahane apani baat...! Magar Guru ji kisi ko itna bhi sneh nahi dena chahiye ki vo sambhal hi na paye...!

    itan rulana thik nahi mujhe

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  15. यदि मुझसे कोई पूछे कि स्त्री की परिभाषा क्या है,तो कंचन और इसके जैसे ही कुछ और नाम लेकर गर्व से कहूँगी कि नारी इसे कहते हैं.....

    कंचन तुम्हे जन्म दिन की ढेरों बधाइयाँ.....सदा खुश रहो और अनुकरणीय रहो सबकी....तुम्हारे इस लेखन के बारे में क्या कहूँ.....बयां करने के लिए शब्द भी चाहिए होते हैं न....अभी नहीं हैं मेरे पास...

    और गौतम जी,क्या कहूँ...एक फौलाद सीने में ऐसा नर्म और संवेदनशील मन,इतना बड़ा कलाकार,बस नमन है इनको और.... इनकी प्रतिभा को.....

    पंकज भाई, बड़ा ही अच्छा किया आप ने जो आज के दिन भावनाओं में बहा देने वाले रचनाओं के साथ यह पोस्ट आज पब्लिश किया....जन्म दिन पर इससे अच्छा तोहफा सही में और भला क्या हो सकता है...

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  16. कंचन जी को जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनायें...इस पोस्ट के बारे में..शेरोन गजलों के बारे में क्या कहूँ..क्या क्या उडेल दिया आपने..ब्लॉगजगत में पढ़ी गयी अब तक कुछ बेहतरीन पोस्टों में से एक ...बहुत बहुत आभार..सच कहूँ तो संग्रहणीय

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  17. गुरु देव सादर प्रणाम,
    इस पोस्ट का , बेशब्री से इंतज़ार था सुबह ही पोस्ट पढ़ ली थी मगर जब सुबह पढा तो बरबस आँखे रोने लगी ,, बहन के प्यार से मैं भी उसी तरह अछूता हूँ गुरु देव जैसे आप है ... हम भी सिर्फ दो भाई हैं , हम भी बचपन में अपने चचेरी बहनों का या पड़ोस के बहनों का इंतज़ार करते थे राखी के लिए जाब आजाती और राखी हाँथ में बांध जातातो दुनिया का सबसे भाग्यशाली समझते और ना आने पे ... आप समझ सकते है ... !!!!
    आपके आश्रम में मुझे एक बहन मिल गयी है मैं इनसे जान बुझकर लड़ता हूँ जिद करता हूँ ... क्युनके बहन के प्यार से पूरी तरहसे महरूम रहा हूँ उससे लड़ना , झगड़ना, उसे दुलारना... इसलिए इन्हें मैं कभी दी कहता हूँ तो कभी इन्हें अपनी लाडली छोटी बहन की तरह दुलारता हूँ .. आज इनके जन्म दिन पे ये पोस्ट लगा के आपने एक तरह से एहसान किया है हम सभी गुरु भाईयों पे भगवान् से यही प्रार्थना करूँगा के इन्हें दुनिया के तमाम खुशियों से लाद दे ... हमेशा खुश रखे इन्हें .... जन्म दिन पे इनक्को बहोत बहोत बधाई और शुभकामनाएं गुरु देव ...
    इनकी ग़ज़ल की बात करें तो आश्रम में इनका कोई सानी नहीं है ...कोई नहीं... आखिरी शे'र में अगर कोई नहीं रोया तो सच में वो एक संवेदनशील इंसान नहीं है ... और गिरह बांधने के इनके मिजाज पे क्या कहूँ नतमस्तक हो गया हूँ ....

    जहां तक गौतम भाई का सवाल है तो वो एक बहोत ही सुलझे हुए ग़ज़लकार है उन्टने ही संवेदनशील इंसान भी... वाकई ये ठहाके खूब जोर से लगाते है जो एक जिंदादिल इंसान का सबूत है ... शहीद ऋषि को श्रधांजलि नमन करता हूँ उनको ... बस ये जानता हूँ के एक और भाई खो दिया .... जो अपुरानिया छति है... गौतम भाई के ग़ज़लों के बारे में कुछ भी कहना ब्यर्थ है ...
    अखबार वाले मेरे काफिये पे आपने मेरी पीठ थपथपाप्यी थी मगर जहां इन्होने इस्तेमाल किया है उसके आगे मैं क्या हूँ वो मैं सोच के निशब्द हूँ... खड़े होकर अभिनन्दन इस शे'र पे ...
    गिरह बांधने में इनके भी जवाब नहीं ...
    गीत अभी सुन नहीं पाया हूँ सुनके बता पाउँगा गुरु देव .. मगर गुरु देव लगता है इस बार भी कलाई सुनी ही रहेगी ... राखी पे ...
    प्रणाम गुरु देव अब कुछ नहीं लिख पाउँगा जा रहा हूँ उफ्फ्फ्फ्फ्फ

    आपका
    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  18. तरही मुशायरा तो ऐतिहासिक बनने की ओर अग्रसर है। कंचन जी और गौतम जी की युगलबंदी!!!!!किन शब्दों में तारीफ़ करूं??? आज मेरा शब्दकोश दरिद्र हो गया है....जो लिख पाया, समझ लें और जो न लिख पाया उसे भी समझ लें क्योंकि शब्द पूर्णतया भावों को भले ही व्यक्त न कर पायें, उस तरफ़ संकेत तो कर ही देते हैं। तकनीकी कारणों से विस्तृत टिप्पणी नहीं कर पा रहा। परीकथा पढ़कर देखता हूं।

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  19. गुरु देव प्रणाम
    सबसे पहले बधाई कंचन जी को........ और अब क्या बताएँ मुशायरे के इस लाजवाब सफ़र के साथ हम भी आनंद में गोता लगा रहे हैं...........बेमिसाल और बहूत ही दिल को छू लेने वाले शेर हैं इस बार....... गौतम जी ने इतना कमाल इतने संवेदन शील मॅन के साथ लिखा है की बस मान में सीधे उतर गये वो ................. कंचन जी ने भी कमाल किया है...... आँखों को नाम कर गये उनके शेर........ आपका भी बहूत बहूत शुक्रिया इस संवेदन शील पोस्ट के लिए..........

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  20. देर से पहुंचे हैं पर ढेरों आर्शीवाद और स्नेह के उपहार लेकर आये हैं आपके लिए कंचन !
    सालगिरह का जश्न कैसा रहा बताओ -
    आपका आनेवाला वर्ष खुशियाँ लेकर आये --
    खूब लिखो, खुश रहो :)
    सस्नेह,
    - लावण्या

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  21. गुरुदेव,
    हमारी बहन कंचन के जन्म दिन को आपने इस तरह से ब्लॉग में उकेरा है कि हम सब को अपनी साक्षात् उपस्तिथि में जन्म दिन को मनाने शुभकामनाएं देने और केक मिठाई खाने सा अनुभव हुआ...इसके लिए आपका लाख शुक्रिया कहें तो भी कम पड़ेगा.
    सबा अफगानी जी की गजल तो बार बार सुनी और आनंद लिया..
    आपने होम वर्क दिया तो कुछ तो करना ही था,तो मैंने गजल को सुनकर जैसा समझ में आया लिखा..
    मुझे अपने अल्प ज्ञान से मिसरा बहर में नजर आया..मेरे विचार से संगीतकार की गलती नजर आरही है..

    तेरे जलवे अब मुझे हरसू नजर आने लगे
    काश ये भी हो कि मुझमे तू नजर आने लगे

    इब्तिदा ये थी कि देखी थी ख़ुशी की इक झलक
    इंतिहा ये है कि गम हरसू नजर आने लगे


    बेकरारी बढ़ते बढ़ते दिल की फितरत बन गई
    शायद अब तस्कीन का पहलू नजर आने लगे


    खत्म कर दे ऐ सबा अब शाम ए गम की दासतां
    देख उन आँखों में भी आंसू नजर आने लगे


    तेरे जलवे अब मुझे हरसू नजर आने लगे
    काश ये भी हो कि मुझमे तू नजर आने लगे

    और अब डंडे खाने को तैयार हूँ....

    गौतम भाई का फोटो और फेफड़ा फाड़ हंसी अच्छी लगी...
    गौतम भाई की गजल तो सुभानाल्लाह है..
    कितनी खूबसूरती से जज्बातों को पिरोया है..एक एक पंक्ति मन में उतर जाती है..
    'मिट गया इक नौजवां कल फिर वतन के वास्ते..'ने दिल को छुआ है..
    'अब शहीदों की चिताओं पर मेले कहाँ कोई ..'तो जैसे मेरे मन की भावना ही थी..फौजी भाई बहुत अच्छा कहा आपने..
    'पुण्य होगा कोई ..'बहन को रक्षाबंधन का आर्शीवाद लगा...और ह्रदय अभिभूत हो आया...
    आपकी गजल तरही में बड़े इन्तजार बाद आई पर इन्तजार के बाद आशानुसार आनंद दे गयी..

    बहन कंचन को जन्म दिन की शुभकामनाएँ तो उनके ब्लॉग पर दे आया ..पर मिठाई यहाँ भी मांग लेता हूँ..डबल मिठाई खाने से ऐतराज किसको है..
    असली बात तो गजल की है..वाह!वाह!
    'करवटें लेते और सुनते है बस लाचार से..'
    'देर तक बरसो बरस के जब रुको फिर से घिरो...'
    क्या लय बद्ध समां बांधा है..
    'बॉस है नाराज एसी काम क्यों नहीं करता ...'
    और 'हाथ में ढोलक थमी है और आँखों में नमी''
    हर शेर पर झूमने को जी चाहता है....

    ''गुडिया हमसे रूठी रहोगी,कब तक न हँसोगी देखो जी किरन सी लहराई आई रे आई रे हंसी आई..''
    ''सुनो छोटी सी गुडिया की लम्बी कहानी....''
    गुडिया को क्या सुन्दर उपहार दिया है...शायद ही इन भावनाओं से कीमती कोई उपहार कोई किसी को दे पाए..
    परिकथा का अंक मुझे उपलब्ध नहीं हुआ है...कोई उपलब्ध करा दे तो मजा आजायेगा..
    और अंत में एक बार फिर बहन कंचन को ढेरों शुभकामनाए...ईश्वर उन्हें लाखों खुशियाँ प्रदान करे..
    प्रकाश पाखी

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  22. गुरु जी प्रणाम
    आज जब आपरेशन विजय (कारगिल) की दसवीं वर्षगाँठ मनाई जानी चाहिए और हर और चर्चा का विषय होना चाहिए तो समाचार चैनलों में इस विषय पर पसरा सन्नाटा मुझे गौतम जी का ये शेर फिर से याद दिला गया

    अब शहीदों की चिताओं पर मेले कहाँ कोई
    है कहाँ फुर्सत ज़रा भी लोगों को घर बार से

    आयोजन अपने सवर्ण काल को प्राप्त है
    अधिक कहना मुमकिन नहीं मेरे लिए

    रचना जी का तीसरा शेर तो मानो उत्तरप्रदेश का आँखों देखा हाल बयान करता जा रहा है

    मुझे यकीन है की इस बार का हासिल शेर इस पोस्ट से ही निकल कर आएगा


    वीनस केसरी

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  23. कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं, जो बिन बाँधे बँध जाते हैं

    ऐसे ही ना जाने कितने रिश्तों की साक्षी रही हूँ मैं और ऐसा ही एक रिश्ता है वीर जी का मुझ से। कभी नही सोचा था कि अचानक गौतम जी वीर जी बन जायेंगे। एक मेल से धिकार मिल जायेगा मुझे उनके ऊपर गर्व करने का। अक्सर कहती हूँ मै कि जिंदगी में मैने जब जब सोचा कि अगर मुझे ये खुशी मिल जाये तो मैं कैसे संभालूँगी तो वो ज़रूर मिली और साथ ही दुखों के साथ भी वैसा ही हुआ कि जब भी सोचा कि अगर मुझे पर ये दुख पड़ जाये तो कैसे संभलूँगी तो वो भी मिला। मगर अबी तो बात उस खुशी की है जो मिली। राजपूताना इतिहास सुनते सुनते अक्सर उस काल में चली जाती थी जब तिलक लगा कर बहने भाई को लड़ने भेज दिया करती थीं। २०-२१ साल की उम्र तक, जब तक जीवन की व्यवहारिकता सामने नही आई थी तब तक वीर रस से ओर प्रोत था मन और तब मन होता था कि मेरे घर का एक व्यक्ति दुश्मन से लड़ाई में शामिल होता। कारगिल युद्ध में कितनी ही राखियाँ और चिट्ठियाँ भेजी थी। अपनी जेब खर्च से पैसे भी..! मगर जब अचानक आभासी मित्र गौतम राजरिषी के कश्मीर पोस्टिंग की खबर सुनी तो अच्छा नही लगा। दिल कुछ घबराया..ऐसे जैसे अपने भाई की पोस्टिंग आ जाने पर लगा हो। शायद पहली व्यक्तिगत मेल गई उनके पास और वो मेरे आभासी मित्र से वीर जी हो गये। असली वीर अब मेरा वीर है। मेरी बचपन की तमन्ना पूरी हुई और मैने ये खुशी भी संभाल ली।

    आज हमें गुरु जी के मंदिर में प्रमाण पत्र भी मिल गया :) और इस सेरेमनी पर इतने लोगो का आशीष।

    वीर जी की ये गज़ल जो उन्होने तरही पर लगायी है, वो जब मुझे मैसेज से मिली उसके बाद से कितने दिन तक ही चीड़ के जंगल और चीख तक निकली नही वाली पंक्तियाँ जुबान पर चढ़ी रहीं ।

    मुझे पता है कि वीर जी उस समय इसके शिवाय कुछ लिखने की स्थिति में ही नी थे। आपके बीच का एक व्यक्ति अचानक शहीद हो जाये आप उस समय चाह कर भी क्या सोचने की स्थिति में हो सकते हैं। ये ही चीज तो आपको मानव बनाती है। मैं नही जानती कि इस बार का हासिल-ए-तरही किसे मिलने जा रहा मगर मैं ये कह सकती हूँ कि ये गज़ल अगर पिछली बार के बहरों मे होती तो मै अपना हासिल-ए-मुशायरा खिताब इस शेर के सिर से उतार कर वीर जी को नज़र कर देती।

    औरजिंदगी में तू चली आई वाला शेर जो पोस्ट के साथ ही पढ़ा..आप समझ सकते हैं कि इन छोटे छोटे वाक्यों के बाद आँसुओं को रोकना कितना मुश्किल होता है ??

    गुरू जि ने नानी जी का जो किस्सा सुनाया उसके बाद मैं कुछ कहूँ तो क्या ...??

    और अंत का उपहार... गुरु जी को तो बता ही चुकी हूँ कि इस उपहार ने हमारे घर की पार्टी को कुछ देर के लिये रोक दिया। शाम को जब नेट खोला और इस गीत पर क्लिक किया तो आँखों के वो मेघ जो पूरी पोस्ट पढ़ पढ़ कर उमड़ रहे थे और मैं उन्हे जज़्ब कर ले रही थी, वो रोकते रोकते बरस गये। अचानक कुछ पूँछने आई दीदी ने जब ये बरसात देखी तो गीत पर ध्यान दिया।

    सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी।

    जिसकी किस्मत में गम के बिछौने थे
    आँसू ही खिलौने थे
    दर्द ही खुशियाँ थी,गम भरी अँखियाँ थी
    भरे आँचल में गम,छिपाये आँखों में पानी।


    और इन सबके बावजूद

    बनना चाहती थी इक दिन वो तारों की रानी

    आश्चर्य हो रहा था इस बात का कि जो बात कभी मैने कही ही नही, जो बात मेरी माँ, मेरी दोनो बहनों और मेरे बीच का रहस्य है, उसे गुरु जी ने कैसे जान लिया ?? और वो बरसात दीदी की आँखों से भी होने लगी।

    इतना भावनात्मक उपहार मुझे कभी नही मिला नही कहूँगी, मगर कभी कभी ही मिला है।

    धन्यवाद देने के क़ाबिल नही मैं गुरु जी..!!!!!!!!!!

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  24. सीमा जी. समीर जी, अलबेला जी, निर्मला जी, संजय जी, संगीता जी, रंजना जी, दर्पण जी ताऊ जी, सुरेश जी, अजय जी,दिगंबर जी को बहुत बहुत धन्यवाद

    नीरज जी का आदर्श बेटी या बहन का खिताब....! धन्यवादों से परे है।

    सच है वीर जी ने सब से पहले इस धान वाले शेर के लिये पीठ ठोंकी थी।

    अंकित जी आपका उपहार उसी दिन मिला धन्यवाद आज दे रही हूँ।

    घुघूती दी का बहुत स्नेह मिलता है मुझे और संजोग ये की जन्मदिन के मामले में मैं इनसे एक दिन
    आगे हूँ।

    रंजना दी इतने बड़ी उपमाओं लायक नही हूँ मैं..बस थोड़ा सा स्नेह दिया करिये,....मेरे लिये सब से बड़ी बात यही है।

    अर्श तुम लड़ते झगड़तेही अच्छे लगते हो भावुक करते नही....! गलत बात है ये....!

    लावण्या दी आपका उपहार सिर आँखों पर...! जन्मदिन बहुत ही बेहतरीन बीता और आशीष अनुरूप कार्य करने की कोशिश करूँगी।

    प्रकाश जी आपको बार बार और कई बार धन्यवाद..!

    और वीनस भाई ये बताओ कि तुम्हे मेरा कंचन नाम अच्छा नही लगता क्या...?? पिछली बार तो मैने समझा कि टाइपिंग मिस्टेक होगी मगर इस बार भी...! सही बताओ नाम बदलने का गुप्त संकेत तो नही कर रहे हो :)

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  25. @ कंचन जी
    देख कर बहुत दुःख हुआ और खुद पर गुस्सा भी आया की मैंने इतनी बड़ी भूल कैसे की, जाने किस गफलत में की
    सच ही है की अगर आपको कोई दुसरे नाम से संबोधित करे तो दुःख होता है
    आपने फिर भी मेरी दो गलतियों को हलके फुल्के ढंग से लिया इसके लिए शुक्रिया (आपने जब कहा की हमने दो गलतियाँ की है तो भागे भागे आपके ब्लॉग पर पंहुचा की कही आपके जन्मदिन के दिन ही तो ऐसा अनर्थ नहीं हुआ मुझसे, देखा तो जान में जान आई :)

    निवेदन है की छोटे भाई की गलती समझ कर माफ़ कर दीजिये

    वीनस केसरी

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  26. धान् फिर थोडा हुआअम्मा के घर इस बार भी
    फिर नहीं आये बिरन लेने हमे ससुराल से

    Di, Aapki lambi umra ki shbh kamnaye.. sneh to mere adhikar me hai, aur aadar meri shraddha ka vishay hai. . aapki gunanubriddhi hoti tahe, aapke yash aur nam me uttrottar vriddhi ho.. Ghazal Ver ji ki bhi sundar hai, aur aapki bhi, bhav apna asar dikhate hai, padhne ke baad lagta hai net ka connection ghar par le lena hoga, yaha pados me baithe log aansu dekh kar prashna mudra bana lete hain..
    Badhai Sh Subeer Jee Ko jinhone itna uttam sanyojan mere aapaa ke janmadin par banaya.

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  27. Guru ji aai thi ye gana download karne magar download to nahi kar paai magar fir se khoob khoob ro le rahi hun.....

    apni kahaani mai khud kabhi is tarah se nahi kah aur dhundh pai,jis tarah aap

    ye mp3 mujhe bhej dijiye

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