समीर लाल जी जब पिछली बार भारत आये थे तो उनसे पुस्तक के प्रकाशन के बारे में बात हुई थी किन्त्ु बात किसी निर्णायक स्थिति में आये उससे पहले ही वे पुन: कनाडा वापस चले गये थे । अब की बार वे जब वापस आये तो पुन: छूटा हुआ सिलसिला प्रारंभ हुआ और पुस्तक पे काम प्रारंभ हुआ । इस बीच राकेश जी की पुस्तक तथा पंच रत्नों की पुस्तक आ चुकी है । समीर जी की पुस्तक पे काम करना मुश्किल इसलिये था कि वे भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । वे व्यंग्य भी लिखते हैं और हास्य भी, गीत भी लिखते हैं और ग़ज़ल भी, मुक्तक भी लिखते हैं और सोनेट भी । अर्थात उनकी ही हास्य की भाषा में कहा जाये तो उनके भी रावण की तरह दस सिर हैं । तिस पर ये भी कि कोई भी विधा में कमजोर नहीं हैं वे । जब पांडुलिपि को लेकर शिवना प्रकाशन के श्री नारायण कासट जी, श्री रमेश हठीला जी, श्री हरिओम शर्मा जी के साथ बैठकर चर्चा हो रही थी तो सभी एकमत थे इस बात को लेकर कि संग्रह में कोई एक ही रंग जाना चाहिये क्योंकि अलग अलग विधाएं एक साथ देने पर किसी के साथ भी न्याय नहीं हो पाता है । और सभी को श्री समीर लाल जी की गम्भीर कविताएं अधिक पसंद आ रही थीं । उसके पीछे एक कारण ये भी है कि जब बात पढ़ने की आती है तो हास्य से जियादह गम्भीर विषय ही लोगों को पसंद आते हैं । खैर तो समीर जी से बात की गई और उन्होंने एक लाइन का मेल किया 'पंचों की राय सर आंखों पर' । तो निर्णय ये हुआ कि बिखरे मोती में समीर जी के गम्भीर रूप का ही दर्शन होगा । मेरे विचार में विश्व की महानतम फिल्म अगर कोई है तो वो है 'मेरा नाम जोकर' उस फिल्म का एक दोष बस ये ही था कि वो अपने समय से पहले आ गई और उसे बनाने वाला एक भारतीय था, अन्यथा तो आस्करों जैसे पुरुस्कारों से भी ऊपर थी वो फिल्म । यहां पर अचानक मेरा नाम जोकर की बात इसलिये कि उस फिल्म में भी यही बताया है कि किस प्रकार अंदर से रो रहा आदमी ऊपर से लोगों को हंसाने का प्रयास करता है । समीर जी के साथ भी वहीं है, उनकी बेर वाली माई की कविता में जो अंत में मीर की ग़ज़ल का उदाहरण आया है वो स्तम्भित करने वाला है । बिखरे मोती में समीर जी के गीत हैं, छंदमुक्त कविताएं हैं, ग़ज़लें हैं, मुक्तक हैं और क्षणिकाएं हैं । पुस्तक का अत्यंत सुंदर आवरण पृष्ठ छबी मीडिया के श्री पंकज बैंगाणी द्वारा किया गया है बानगी आप भी देखें
पुस्तक की भुमिका वरिष्ठ कवि श्रद्धेय श्री कुंवर बेचैन साहब ने लिखी है वे अपने समीक्षा में लिखते हैं समीर लाल मूलत: प्रेम के कवि हैं । पहले तो मैं ये पंक्तियां पढ़कर चकराया कि कुंवर साहब ऐसा क्यों लिख रहे हैं । फिर मुझे अपने उस्ताद की बात याद आई कि बड़े लोग यदि कुछ कह रहे हैं तो किसी न किसी कारण से ही कह रहे हैं । मैंने कुंवर जी की बात के संदर्भ में पुन: समीर जी की कविताएं देखीं तो मुझे हर कहीं प्रेम नजर आया । पूरी तरह से समर्पित प्रेम की एक बानगी देखिये
मेरा वजूद एक सूखा दरख़्त
तू मेरा सहारा न ले,
मेरे नसीब में तो
एक दिन गिर जाना है
मगर मैं
तुझको गिरते हुए नहीं देख सकता प्रिये
राकेश खण्डेलवाल जी ने अपनी भूमिका में लिखा है कि समीर लाल जी के दर्शन की गहराई समझने की कोशिश करता हुआ आम व्यक्ति भौंचक्का रहा जाता है । सच कहा है राकेश जी ने क्योंकि हास्य के परदे में छुपा कवि जब कहता है
वो हँस कर
बस यह एहसास दिलाता है
वो जिन्दा है अभी
कौन न रहेगा भौंचक्का सा ऐसी कविता को पढ़कर या सुनकर ।
श्री रमेश हठीला जी ने लिखा है कि नेट भर जिस प्रकार उड़नतश्तरी लोकप्रिय हुई उसी प्रकार साहित्य में बिखरे मोती उसी कहानी को दोहराने जा रही है । बिखरे मोती के बारे में और जानकारी आप शिवना प्रकाशन के ब्लाग शिवना प्रकाशन पर देख सकते हैं । रही बात पुस्तक के विमोचन की तो अभी प्रतीक्षा कीजिये उसके लिये क्योंकि अभी ये तय नहीं है कि विमोचन भारत में होगा अथवा कनाडा में ।
कई लोगों का कहना है कि इस बार तरही मुशायरे के लिये कुछ मुश्किल मिसरा है । है तो सही लेकिन अब बच्चे बड़ी क्लासों में आ गये हैं क्या अब भी वही सीखते रहेंगें ।
bahut achchha laga, badhai
जवाब देंहटाएंbahut achchha laga, badhai
जवाब देंहटाएंintazaar Sameer JI ki Pustak ka....!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ... बधाई ।
जवाब देंहटाएंपुस्तक का इंतज़ार है....बधाई शिवना प्रकाशन को जो साहित्य को लोकप्रिय बनाने का साहस पूर्ण काम कर रहा है...
जवाब देंहटाएंतरही ग़ज़ल के लिए मिसरा मुश्किल ही नहीं बहुत मुश्किल है...जो बाल पिछले अठावन साल से गिरने से बचाए हुए थे इस मिसरे के कारण उनकी जड़े अब हिलनी लगीं हैं....कृपा करो प्रभु....
नीरज
bahut acche.....badhayi....
जवाब देंहटाएंविमोचन करो और मिठाई बाँटो अब सब्र नहीं होता... :)
जवाब देंहटाएंसमीर भाई की पुस्तक का इँतज़ार रहेगा -शिवना सँस्थान उत्तरोत्तर प्रगति के सोपान पार करे ये शुभकामना है
जवाब देंहटाएं"ईस्ट इण्डिया कँपनी" कल अमरीका तक का सफर करते हुए , पधार चुकी है ! अब पढने के बाद लिखूँगी :)
स्नेहाशिष सहित,
-लावण्या
समीर जी को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंसमीर जी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंगुरु देव चरण स्पर्श,
जवाब देंहटाएंबहोत बहोत बधाई समीर लाल जी को और शुक्रिया कहता हूँ शिवना प्रकाशन ko .. के लगातार अपने हिंदी को उर्जावान करने के कार्य में संलग्न है जो कार्य शिवना प्रकाशन कर रहा है उसके लिए कोई शब्द नहीं है .... पुस्तक के विमोचन का इंतज़ार रहेगा...
जहाँ तक तरही के मिसरे की बात है तो आपसे मैंने एक सवाल किया है उसका उत्तर मिले तो मैं आगे बढूँ... अपने ऐसा मिसरा दिया है के अब क्या कहूँ ऊपर से ये भी लिख दिया है के अब बच्चे बड़े हो रहे है... कहाँ प्रभु ऐसी तो कोई बात नहीं है .... मगर कोशिश तो जारी रहेगी ...
आपका
अर्श
हमारी भी बधाई!
जवाब देंहटाएंगुरूजी, प्रणाम। पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी और मिसरा तो वाकई दुरूह है पर कोशिश तो करनी ही है।
जवाब देंहटाएंपंकज सुवीर जी!
जवाब देंहटाएंसमीर लाल जी हिन्दी साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं।
मैं उनकी पुस्तक के विमोचन की प्रतीक्षा बेसब्री से कर रहा हूँ।
आशा है कि जल्दी ही वह क्षण आयेंगे।
आपका आभार और भाई समीर लाल जी को बधाई।
समाचार और पुस्तक की झलक दिखलाने के लिए धन्यवाद।
"बिखरे मोती" को कैसे मँगवाना है गुरूदेव?
जवाब देंहटाएं"बिखरे मोती" की प्रति बुक कर दें एक हमारे नाम से..
जवाब देंहटाएंऔर तरही मुश्किल तो है यकिनन
जवाब देंहटाएंइनके रंग ढंग ऎसे ही थे,
मैं जानता था कि कि एक न एक दिन यह तो होना ही था
अतएव यह सब तो प्रसन्नतादायक है, ही..
पर पुस्तक प्राप्ति का साधन तो बतायें..
व्यक्तिगत बधाई भेजी जा चुकी है !
समीर जी को हार्दिक बधाई.........वैसे तो मेरे मित्र हैं बहूत पुराने पर उस वक़्त उनका यह पक्ष मैंने नहीं देखा था............समय के साथ साथ ये पहलू भी खुल गया....जाने और कितने पक्ष सामने आयेंगे.......पर मुझे विशवास है जो भी सामने आयेगा....सुखद आश्चर्य ही होगा. नेरी सुभकामनाएँ समीर जी को, आप को और उनके सभी चाहने वालों को
जवाब देंहटाएंसमीर जी और शिवना प्रकाशन को बधाई
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत आभार. आप सबकी दुआओं से यह संभव हो पाया है.
जवाब देंहटाएंहटीला जी, शिवना प्रकाशन, गुरुदेव पंकज सुबीर जी के अथक परिश्रम एवं कासट जी के आशीष का परिणाम ही है कि यह पहला संस्करण आ पा रहा है. छ्बी मिडिया ने कवर डिजाइन कर इस प्रयास में चार चाँद लगा दिये. समयाभाव से अब ऐसा लगता है कि विमोचन मई मह में कभी कनाडा में ही संभव हो पायेगा.
एक बार पुनः आप सभी का हृदय से आभार. स्नेह बनाये रखें.
समीर जी को हार्दिक बधाई. समीर जी के काव्य से परिचय करने के लिए धन्यवाद. दरख्त की कविता से उनके लेखन की संवेदनशीलता स्पष्ट दिखती हैं. बिखरे मोतियों का इंतज़ार रहेगा.
जवाब देंहटाएंसुबीर जी,
जवाब देंहटाएंशिवना प्रकाशन के माध्यम से समीर जी की पुस्तक का प्रकाशन कर आप एक और महान कार्य पुनः करने जा रहे हैं, इसमें कोई संदेह नहीं.
ईश्वर आपको अपने लक्ष्य में उत्तरोत्तर प्रगति दे, इसी शुभकामनाओं के साथ पुस्तक-विमोचन तिथि का इंतजार.
चन्द्र मोहन गुप्त
यह बहुत अच्छी बात हुई है कि समीर जी की गम्भीर रचनाओं का संकलन प्रकाशित हुआ। पुस्तक की एक प्रति समीर जी से मांगता हूँ।
जवाब देंहटाएंबधाई समीर जी को, शिवना प्रकाशन को और इस पोस्ट के प्रस्तोता को धन्यवाद।
बहुत बहुत बधाई समीर जी को ..जल्द जो पढने को मिलेगी इस आशा के साथ शुक्रिया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहमने कल भी टिप्पणी दी थी, ना जाने कहाँ गायब हो गई... कोई बात नहीं ...आज फिर दिए देते हैं -समीर जी को हार्दिक बधाई प्रस्तुतकर्ता का आभार...
जवाब देंहटाएंसमीर भाई को बहुत बधाई और आप तो महती कार्य कर ही रहे हैं सुबीर जी बधाई आपको भी
जवाब देंहटाएंबधाई हो!
जवाब देंहटाएंइसका भी विमोचन ऑनलाइन/पॉडकास्ट तरीके से होना चाहिए।
वाह वाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंसमीर जी को हार्दिक शुभकामनाएं
वीनस केसरी