सोमवार, 30 मार्च 2009

मैं ठीक ठाक हूं । बस ये कि कम्‍प्‍यूटर कक्षाओं का सीजन शुरू हो रहा है सो कुछ व्‍यस्‍तता है वहां पर

दो दिन से धड़ा धड़ मैसेज और फोन आ रहे हैं कि कहां हो । दरअस्‍ल में इस बार कुछ लम्‍बी चुपपी हो गई है । उसके पीछे भी कारण ये है कि कम्‍प्‍यूटर कक्षाओं का सीजन अपैल में प्रारंभ होता है जो कि अब शुरू होने वाला है सो उसकी तैयारियों में व्‍यस्‍त था । उस पर काफी सारा काम इस्‍लाह के लिये रखा हुआ था सो पिछले सप्‍ताह भर से उसको पूरा करने में लगा था । इस्‍लाह के अपने तरीके के कारण मुझे समय जियादह लगता है । दरअस्‍ल में जब मैं सिखाड़ी था तो मैं भी इस्‍लाह  करवाता था और जब मेरे किसी शेर को आमूलचूल ही बदल दिया जाता था तो मुझे लगता था कि उसमें अब मेरा बचा ही क्‍या ये तो पूरा बच्‍चा उस्‍ताद  का ही हो गया । असल में जब भी कोई कवि कविता लिखता है तो वो एक मानसिक स्थिति में लिखता है । और उस समय में भाव ही उसकी कविता में आते हैं । जब उस्‍ताद उसकी इस्‍लाह करने बैठते हैं तो वे अपनी मनोदशा में होते हैं । और ऐसे में होता ये है कि वे पूरे शेर के मानी ही बदल के रख देते हैं । इसको हम ऐसे समझ सकते हैं कि आपको यदि किसी भवन के रिनोवेशन का काम मिला है तो आप उसके बीम कालम थोड़े ही उखाड़ के फिर से बिठओगे । आप को तो बस ये करना है कि जो ढा़चा तैयार है उसको ही कुछ इस प्रकार से बदलो के वो ठीक लगे । यही काम मैं इस्‍लाह में करता हूं इसीलिये मुझे समय अधिक लगता है । मैं प्रयास करता हूं कि शेरों में जो शब्‍द इस्‍तेमाल हुए हैं उनको भी नहीं बदलूं जब तक कि बहुत जियादह ही आवश्‍यक न हो । उन्‍हीं शब्‍दों से या उनके पर्यायवाची शब्‍दों से काम चला कर बहर में ले आऊं । नये सिरे से कुछ बनाना हो तो उसमें अधिक समय नहीं लगता किन्‍तु बने बनाये में सुधार करना मुश्किल होता है  । प्रयास होता है कि मैं लिखने वाले की भावनाओं के अनुरूप ही फेर बदल करूं । तिस पर ये भी कि बहर में भी आ जाये । एक और काम मैं करता हूं वो ये कि ऐसे दोष जो उर्दू में तो हैं पर हिंदी में जायज होते हैं उनको मैं इसलिये ले कर चलता हूं कि आज की ग़जलें हिंदी में ही हो रहीं हैं । जैसे एक काफिया का दोष है जिसे ईता का दोष कहा जाता है । दरअसल में काफिया में एक ध्‍वनि या हर्फ होता है जिसे हर्फे रवी कहते हैं, जब मतले के दोनों मिसरों में रवी का हर्फ एक ही मानी रखता हो तो ऐसे लफ्जों का लाना नाजायज माना जाता है । यद्यपि हिंदी के हिसाब से उसे सही माना जाता है । हिंदी में उसे दोष नहीं माना जाता है । अक्‍सर मात्राओं वाले काफिये में इस दोष को अधिक संभाव्‍य माना जाता है ।

पिछले दिनों कुछ जगहों पर कुछ शेरों में काफी दोष नजर आये । जैसे ये

उठें‍गी चिलमनें अब हम यहां देखेंगें किस किस की
चलें खोलें किवाड़ें दब न जाये कोई भी सिसकी

ये गौतम की उस ग़ज़ल का मतला है जो कहीं लगी हुई है । अब इसका मिसरा उला उस एब से भीषण तरीके से ग्रस्‍त है जिसकी चर्चा हमने पिछले किसी अंक में की थी और मैंने कहा था कि जब कोई मिसरा द्विअर्थी ध्‍वनि उत्‍पन्‍न कर रहा हो तो उसे दोष माना जाता है इस शेर का पहला मिसरा पूरी तरह से द्विअर्थी है बल्कि जैसा मैंने गौतम से कहा कि ये तो द्विअर्थी भी नहीं एक ही अर्थ वाला है । विश्‍लेषण नहीं करना चाहता क्‍योंकि आप सब समझदार हैं ।

दिगम्‍बर नासवा जी का एक शेर था

सो गया फिर चैन से जब लौट कर आया यहाँ  

गाँव की मिट्टी बदल कर माँ का आँचल हो गया

इसमें दोष ये हैं कि बात मिट्टी की बात कर रहे हैं जो पुल्लिंग नहीं होती और आगे  उसके लिये हो गया लिखा है । आप भले सोच रहे हैं कि आपने हो गया तो मां के आंचल के लिये लिखा है किन्‍तु विन्‍यास को देखें तो क्‍या है मां का आंचल केवल उपमा है किन्‍तु जो हो गया है आपने लिखा है वो गांव की मिट्टी के लिये लिखा है । मिट्टी स्‍त्रील्रिग होती है दूसरा ये कि जो मिट्टी का प्रयोग किया है वो मां की गोद की उपमा के साथ चलेगा , आंचल के साथ नहीं ।

तो ये छोटी छोटी बातें हैं जो याद रखनी हैं ।

कई सारे लोग कह रहे हैं कि कक्षाएं पुन: प्रारंभ करने की । किन्‍तु जो लोग जुड़े हैं तथा जिनकी ग़ज़लें इस्‍लाह के लिये आ रही हैं वे जानते हैं कि कक्षाएं तो चल रही हैं ।

समीर लाल जी की पुस्‍तक बिखरे मोती प्रकाशित होकर आ गई है शीघ्र ही उसका विमोचन कार्यक्रम संभवत: कनाडा में होगा । उसके बारे में विस्‍तृत जानकारी अगली रपट में ।

तरही का मिसरा नहीं दिया सो दे देते हैं मेरी बड़ी बहन तथा म.प्र उर्दू आकदमी की सचिव सुप्रसिद्ध शायरा नुसरत मेहदी साहिबा की ग़ज़ल का मिसरा है

आज महफिल में कोई शम्‍अ फरोज़ां होगी

आज महफिल 2122 फाएलातुन म कु ई शम्‍ 1122 फएलातुन अ फ रो जां 1122 फएलातुन हो गी 22 फालुन बहरे रमल मुसमन मखबून मुसक्‍कन रदीफ होगी काफिया आं

13 टिप्‍पणियां:

  1. GURU JI SAADAR PRANAAM,
    AAPNE JO EETA KA DOSH BATAYA AUR UPAR SE KUCHH CHHOTE CHHOTE DOSH JO LAAJIM HAI KE ISASE BACHNI CHAHIYE HAME SIKHTE WAKT... BAHOT HI SAHEJANE WAALI JAANKARI DI AAPNE...
    MAHFIL ME TARHI MUSHAAYARA KA AAYOJAN HAI ? FIR TO MAJAA AAYEGA...

    AABHAAR
    ARSH

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  2. कवि / शायर के मूल भाव और गुरू की इस्लाह के समय की मनोदशा क्या हश्र करती है कि कविता/शेर ही नाजायज सा हो उठता है .

    बिलकुल सही कहा है.

    यही हाल आज कल अनुवाद करने वालों का भी है जो अर्थ का अनर्थ बना देते है.

    सही व्यक्ति का मिलना ही तो आज के दौर में मुक्क़द्दर की बात है वर्ना बहुत से विशेषज्ञ हैं, बहुत से उस्ताद हैं, जो बैनर लगाए बैठे मिलते है...................

    जिसे अपने झेले दर्द का अहसास होता है, वही सही गुरू हो सकता है, ये आपके लेखों में पूर्णतः परिलक्षित होता है.

    कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें और अपनी आशीष वचनों से अनुग्रहीत करें.

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  3. आप आये बहार आयी...और साथ में कितनी ही जानकारिओं का पुलिंदा लायी...
    नीरज

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  4. आज महफिल में कोई शमअ फिरोजां होगी...इसकी बहर भी तो बतलाईये...ताकि कुछ कहा जाए..समस्या ये है की हम बहर समझें "ये" और निकले "वो" तो गयी न भैंस पानी में...
    नीरज
    2122 2122 2122 2 ?? ya kuchh aur?

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  5. आज महफिल 2122 फाएलातुन
    म कु ई शम्‍ 1122 फएलातुन
    अ फ रो जां 1122 फएलातुन
    हो गी 22 फालुन
    बहरे रमल मुसमन मखबून मुसक्‍कन
    रदीफ होगी
    काफिया आं
    नीरज जी आप तो इस बहर पे काफी ग़ज़लें लिख चुके हैं ।

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  6. IS MISRE KI JAANKAARI DENE KE LIYE GURU JI KI JAI HO....SAADAR PRANAAM GURU DEV...


    ARSH

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  7. गुरू जी को चरण-स्पर्श....
    अब संभल कर लिखेंगे और गूरुदेव
    इस बार के मिस्‍रे का बहर तो मुश्किल है...कोशिश करते हैं
    और आपने जो ए इस्लाह वाली बात कही है वाकई, अभी उसी दिन नीरज जी से जिक्र कर रहा था आपकी अद्‍भुत पारखी नजर का और सूक्ष्म पैनी पकड़ का...

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  8. बुरा न मानें उस्ताद जी,
    पहले तो नुक्त:चीनी ही कुछ यूँ हो जाए -

    आज महफ़िल में कोई शमअ फ़रोज़ाँ होगी
    इत्तिफ़ाक़न ही पतिंगे पे जो क़ुरबाँ होगी
    --भवदीय

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  9. गुरु जी प्रणाम
    आज कई दिन के बाद आपकी पोस्ट देखी तो दिल को कुछ सुकून हुआ
    आप जब दिल्ली से लौटे तो मैंने आपसे तख्ती के लिए गजल भेजने की लिए पूछा था और आपने कहाँ था की अभी थोडा व्यस्त हूँ इस लिए मैंने कोई गजल नहीं भेजी थी कुछ गजलें लिखी है आपकी पोस्ट पढने के बाद उनको तुंरत भेज रहा हूँ
    ये तो मैं अच्छी तरह जानता था की आप कहीं अति व्यस्त हैं तभी आपकी पोस्ट नहीं आ रही है वरना आप भी अपने शिष्यों को भूल नहीं सकते
    आपने कहाँ था कुछ दिन व्यस्त रहूँगा इस लिए फोन भी नहीं किया मैंने बहुत से सवाल लिख के रखे हैं पूछने के लिए
    मुशायरे के लिए मिश्रा भी नहीं मिला था
    मुझे इता दोष के बारे में जब से पता चला है बहुत डर लगता था की कही मेरी गजल में इता दोष ना हो मगर आज पोस्ट पढने के बाद डर जाता रहा
    इस बीच मेरा मोबाइल हार्डवेयर का कोर्स भी पूरा हो गया है और नवरात्र में ही काम भी शुरू हो जायेगा
    मुशायरे के लिए मिश्रा नोट कर लिया है
    आपका वीनस केसरी

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  10. गुरु जी
    आपकी कोई भी पोस्ट अपने आप में एक क्लास ही होती है. कुछ न कुछ सीखा ही जाती है.
    मैं भी कोशिश करता रहता हूँ और आप पार लगाते रहते हैं.

    बहूत बहूत शुक्रिया समीर जी की पुस्तक की जानकारी देने का.........
    समीर जी को बधाई हो

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  11. गुरु जी प्रणाम
    आपने मेरी पोस्ट पढी समस्या को समझा व सुझाव दिया इसके लिए हार्दिक शुक्रिया मैं पुराना टेम्पलेट नहीं रखना चाहता था इस लिए थोडा मेहनत करके फिर से लिंक बना लिए हैं
    एक बार फिर से आपको हार्दिक धन्यवाद
    --
    आपका वीनस केसरी

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