सोमवार, 10 दिसंबर 2007

जंगल का अंधेरा है बहुत तेज़ हवा भी, और जि़द है हमारी कि जलाएंगें दिया भी, क्‍यों सर को झुकाएगा ज़माना तेरे आगे, कुछ और तुझे आता है रोने के सिवा भी

रविवार की छ़ुट्टी के बाद आज माड़साब कुछ नाराजगी के साथ शुरू कर रहे हैं और वो इसलिये कि माड़साब ने जब अनूप जी की ग़ज़ल दी थी तो बताया था कि उसमें दो बहुत छोटे से दोष हैं जो क‍ि ग़ज़ल क‍ो संपूर्ण बनाने में परेशानी कर रहे हैं । माड़साब ने ये भी कहा था कि उन दोषों का निवारण किन शब्‍दों से किया जाए ये छात्र छात्राएं बताएं और माड़साब आज गुस्‍सा हैं केवल इसलिये कि किसी ने भी वो कर के नहीं दिखाया और वो काम अभी भी वैसा ही पड़ा हुआ है । अब माड़साब ने निर्णय लिया है कि जब तक विद्यार्थी उन दो परेशानियों को दूर करके नहीं बताऐंगें तब तक माड़साब अगली कक्षाएं नहीं लेंगें । ये भोत गुस्‍से में के रै हैं माड़साब और इसको भोत जियादा सीरियस होके लिया जाए । आगे की कक्षाऐं तब तक के लिये सस्‍पेंड रहेंगीं जब तक कि विद्यार्थी वरिष्‍ठ कवि श्री अनूप जी की गजल में आए दो शब्‍दों स्‍वप्‍न और स्‍वयं  को ठीक करके नहीं प्रस्‍तुत कर देते । एक बात गंभीरता के साथ सुन लीजिये वो ये कि मैं ग़ज़ल सिखाने के लिये वही तरीका अपना रहा हूं जो उर्दू के उस्‍ताद शायर अपने शागिर्दों के लिये अपनाते हैं । और ये तरीका होता है समस्‍या देकर उनके निराकरण करवाने का । ये बात जान लीजिये कि अगर शायरी केवल किताबों से आ जाती तो आज हर कोई शायर हो जाता पर शायरी तो आती है अभ्‍यास से करत करत अभ्‍यास के जड़मति होत सुजान ।  मैं चाहता हूं कि आप मेरे द्वारा दिये गए काम पर अभ्‍यास करें , मेरे द्वारा रोज़ मुखड़े में लगाई गई ग़ज़ल का वज्‍़न निकाल के उस पर एक दो शेर लिखें ये आपके लिये बहुत लाभदायक होगा । ग़ज़ल सीखने के इस तरीके से सीधा लाभ मिलता है । कई सारे प्रश्‍न हैं जिनमें अभिनव ने जब वो चाहेगा ये कह देगा कि घर उसका है  पर अच्‍छा प्रश्‍न उठाया है और अजय ने भी एक प्रश्‍न अच्‍छा उठाया है । पर आज तो कुछ भी बात माड़साब नहीं करने वाले पहले अनूप जी की ग़ज़ल के दो शेरों पर काम करें और उनको अपने हिसाब से दुरुस्‍त करके कक्षा में जमा करवाएं तब ही माड़साब आगे को बढ़ेंगें ।

अंत में एक बात पुन: गंभीरता के साथ कह रहूंगा ये क्‍लास मैं आपके लिये ही चला रहा हूं अगर आप लोग ही लापरवाही दिखऐंगें तो कैसे काम चलेगा । अगर आप सचमुच ही गंभीरता से काम करना चाहते हैं तो फिर होमवर्क करने पर भी ध्‍यान दें । ग़लत हो के सही उसकी परवाह न करें ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुबीर जी:
    सब से पहले तो माफ़ी चाहूँगा पिछली दो कक्षाएं ’मिस’ करने के लिये , मुझे पता ही नहीं था कि आपने फ़िर से क्लासेज़ शुरु कर दी हैं ।
    फ़िर आप को धन्यवाद कि आपने मेरी टूटी फ़ूटी गज़ल को इतनी इज़्ज़त दी । जब मैनें यह लिखी थी तो मुझे गज़ल के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी (आप का ब्लौग पढना शुरु करने से पहले की लिखी हुई है)। ये सुखद आश्चर्य ही है कि मेरी अज्ञानता के बावज़ूद अधिकांश शेर ठीक ठाक बन गये और बहर मे रहे ।
    अब रही गलत मिसरों को सुधारने की बात तो अपनी ही पंक्तियों को सुधारना ज़रा कठिन काम है लेकिन कोशिश कर के देखता हूँ । अभी यहां रात के १२ बज रहे हैं , कल समय निकालता हूँ ।

    शेष फ़िर ..

    सादर
    अनूप भार्गव

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  2. गुरु जी दोष तो समझ में आ गया था, लेकिन सही लाइने बन ही नही पा रहीं है, इसलिये कुछ नही लिखा
    दोष तो ये है कि आपने बताया था कि आधा अक्षर अपने आगे या पीछे वाले के साथ मिला होता है और स्वयं के यं मे वस्तुतः पंचाक्षरी नियम का प्रयोग है , जिसके अंतर्गत यम् को यं लिखने की छूट है, अतः स्वयं में २२ मात्रा है जब कि २१ होना चाहिये, यही त्रुटि अगली बार भी हुई है, जिसमें स्वप्न में मात्राएं २१ के स्थान पर २२ हो गई हैं। लेकिन बहुत देर से कोशिश कर रही हूँ सही मात्राओं में वही भाव नही आ पा रहे हैं, क्या करें...?

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  3. सुबीर जी
    कल न आ पाने के कारन क्षमा.
    मुझे लगता है मेरी ये कोशिश बिल्कुल सही नहीं है लेकिन मैं डांट खाने को तैयार हूँ.
    उंगलियाँ जब भी उठाओ ।
    आप का व्यावहार देखो।

    हाँ, मुझे पूरा यकीं है।
    ख्वाब को साकार देखो
    नीरज

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  4. सुबीर जी
    कल न आ पाने के कारन क्षमा.
    मुझे लगता है मेरी ये कोशिश बिल्कुल सही नहीं है लेकिन मैं डांट खाने को तैयार हूँ.
    उंगलियाँ जब भी उठाओ ।
    आप का व्यावहार देखो।

    हाँ, मुझे पूरा यकीं है।
    ख्वाब को साकार देखो
    नीरज

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  5. अनूप जी की यह ग़ज़ल बहुत ही अच्छी है

    इस ग़ज़ल के जो दो शेर आपने ने अलग ढंग से कहने का होमवर्क दिया है, उसका जवाब देने की कोशिश की है :

    उंगलियाँ जब भी उठाओ ।
    ख़ुद का तुम व्यवहार देखो।

    २ १ २ २ २ १ २२

    ख़ुद २
    का (क) १
    तुम २
    व्यव २
    हा २
    र १
    दे २
    खो २

    लेकिन 'ख़ुद' उर्दू का शब्द होने के कारण यहाँ पर सहीं नही लग रहा
    ये सुद्ध हिन्दी में लिखी ग़ज़ल है , तो इसमे उर्दू का कोई प्रोग उचित नहीं होगा

    उंगलियाँ जब भी उठाओ । 2122, २१२२
    अपना तुम व्यवहार देखो।

    अप २
    ना (न) १
    तुम २
    व्यव २
    हा २
    र १
    दे २
    खो २


    हाँ, मुझे पूरा यकीं है
    स्वप्न को साकार देखो

    २२ २ २ २ १ २ २

    हाँ, मुझे पूरा यकीं है
    ख्वाब को साकार देखो
    २ १ २ २ २1 २ २

    पर मुश्किल वही है , 'ख्वाब' फिर उर्दू का शब्द हो गया

    हाँ, मुझे पूरा यकीं है
    कल्पना साकार देखो

    कल् २
    प १
    ना २

    सा २
    का २
    र १
    दे २
    खो २


    लेकिन यहाँ स्वप्न की जगह कल्पना लिखने से अनूप जी जो कहना चाह रहे है , क्या उसका अर्थ नहीं बदल जाएगा?

    अजय

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. सर जी ,

    दूसरा सवाल और भी कठिन है - इसका सवाल ढुंढ्ने में इतना समय लगा की, घर वाली से तो छड़ी खाई ही,
    अब आप से भी खाने को तैय्यार है गलती पर


    जंगल का अंधेरा है , बहुत तेज़ हवा भी,
    २११ २ १२२ २ १२ २२ १२ २

    और जि़द है हमारी कि जलाएंगें दिया भी,
    २ ११ २ १२२ २ १२२२ १२ २


    २११२ १२२२ १२२२ १२२

    पंछियों ने सिखाया है , बदलना रुख हवा का
    और उनसे ही सिखा है , बनाना आशियाँ भी

    शौक हमे भी था , चिनगारियों से खेलने का
    आग कहा पे ढूंढे पर , नहीं दिखता धुआं भी


    - अजय

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  8. सुबीर जी:
    काफ़ी सोचा लेकिन आसान नहीं है सिर्फ़ एक शब्द बदल देना , पूरे शेर के बारे मे ही कुछ नये सिरे से सोचा जाये तो शायद बात बने :

    स्वप्न को साकार देखो
    की जगह
    ख्वाब को साकार देखो
    से शायद मात्राएं तो ठीक हो जायें लेकिन पूरे मिसरे में वो बात नहीं आ रही है ...
    --
    और अब चलते चलते ’मुन्ना भाई की इश्टाइल में’
    स्वयं का व्यवहार देखो
    की जगह
    अपुन का व्यवहार देखो

    मात्रा के हिसाब से तो ठीक बैठता है लेकिन ...

    चलिये कोशिश ज़ारी रखते हैं ...
    सादर
    अनूप


    अपुन

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