शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

आइए दीपावली के तरही मुशायरे के मिसरे पर बात करते हैं


दोस्तों समय की अपनी ही गति होती है, और उस गति में सब कुछ पीछे ही छूटता जाता है। जो आज है वह कल नहीं रहेगा यह तय है। कल कुछ और होगा और उसके बाद कुछ और होगा। यही तो ज़िंदगी है। जो पल हम जी रहे हैं, वही तो असल ज़िंदगी है। राकेश खंडेलवाल जी हर दीपावली के लगभग एक माह पूर्व मुझे मेल करके पूछते थे कि तरही का मिसरा कब देंगे आप। इस बार कोई पूछने वाला नहीं था तो इस बार देर हो गयी। हालाँकि बहुत देर तो नहीं हुई है मगर समय सच में ही अब कम है। राकेश जी की रचना हर तरही में सबसे पहले मिलती थी और फिर एक के बाद एक उनकी कई रचनाएँ प्राप्त होती थीं। मगर अब तो बस उनकी यादें ही शेष हैं। मगर वे जहाँ भी हैं, वहीं से हमारे इस तरही मुशायरे में शामिल होंगे। दीपावली का पर्व इस बार ऐसे समय में आया है, जब हमारे इलाक़े में बरसात का मौसम अभी भी पूरी तरह से विदा नहीं हुआ है। पिछले कुछ सालों से ऐसा हो रहा है कि दीपावली के अवसर पर ही बरसात होती है। जैसे इस बार हमारे यहाँ दशहरे पर रावण को जलाया नहीं गया बल्कि गलाया गया। शायद यही ग्लोबल वॉर्मिंग है। जो भी हो हमें तो दीपावली का पर्व मनाना है और वैसे ही मनाना है जैसे हम पहले मनाते रहे हैं।

इस बार का तरही मुशायरा होगा बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम पर। यह एक बहुत ही मधुर और गाई जाने वाली बहर है। तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ने वाले सभी शायर इस बहर पर ज़रूर लिखते हैं। इसको कई अलग-अलग तरन्नुम में गाया जा सकता है। इसका वज़न होता है- फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन या 212-212-212-212। जगजीत सिंह की गायी हुई एक बहुत प्रसिद्ध ग़ज़ल इसी बहर पर है- आपको देख कर देखता रह गया। इस मिसरे का सौंदर्य इस बात में है कि इसमें रुक्न में शामिल होने वाला हर शब्द पूर्ण है, मतलब टूट कर दूसरे रुक्न में नहीं जा रहा है। आपको 212, देख कर 212, देखता 212, रह गया 212। इस मिसरे की एक और बात यह है कि इसमें कहीं कोई दीर्घ मात्रा गिरा कर लघु नहीं की गयी है।यह एक शुद्ध मिसरा है। इस प्रकार के मिसरे कहना बहुत मुश्किल होता है। असल में यदि आप इस प्रकार से वज़न को साधने की कोशिश करेंगे तो आपके हाथ से कहन चली जायेगी। मगर मुझे तो इस प्रकार के शुद्ध मिसरे बहुत पसंद आते हैं, जिनमें कोई शब्द टूट कर दो रुक्नों में नहीं बँटा हो और कहीं कोई दीर्घ मात्रा को गिरा कर लघु नहीं किया गया हो। ख़ैर आइए अब चलते हैं अपने मिसरे की तरफ़। 


 इन चराग़ों को जलना है अब रात भर

यह है हमारा इस बार का मिसरा। इस मिसरे में जो क़ाफ़िया ध्वनि है वह है ‘लना’ और रदीफ़ है ‘है अब रात भर’। इसमें आप 22 और 122 या 2122 वज़न के क़ाफ़िये ले सकते हैं। जैसे- चलना, ढलना, पलना, गलना जैसे 22 के वज़न वाले क़ाफ़िये और निकलना, पिघलना, बदलना जैसे 122 के वज़न वाले क़ाफ़िये। थोड़ी मुश्किल दिखाई दे रही होगी पर ग़ज़ल कहना शुरू करेंगे तो उतनी मुश्किल नहीं आएगी।

एक ग़ज़ल तो मैंने ऊपर आपको सुना ही दी- ‘आपको देख कर देखता रहा गया’, एक पुरानी फ़िल्म त्रिदेव का गाने का मुखड़ा भी गुनगुना सकते हैं आप ‘रात भर जाम से जाम टकराएगा, जब नशा छाएगा तब मज़ा आएगा’।

तो यह है इस बार का तरही मुशायरा

बहर- बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम

वज़न- फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन या 212-212-212-212

मिसरा- इन चराग़ों को जलना है अब रात भर

क़ाफ़िया ध्वनि- ‘लना’

रदीफ़- ‘है अब रात भर’

इंतज़ार रहेगा आपकी ग़ज़लों का, समय कम है इसलिए अगर जल्दी भेज सकें तो बेहतर रहेगा।

9 टिप्‍पणियां:

  1. जिसका हमें था इंतेज़ार, वो घड़ी आ गई। स्वागत है।
    ब्राउजर नाराज़ है नाम से टिप्पणी नहीं डालने से रहा है।
    तिलक राज कपूर

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  2. बहुत ही सुन्दर बहर है ... कमाल की गजलें आनी वाली हैं ...
    आशा है दीपावली के लाजवाब दीप जलने वाले हैं ...

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  3. क्या क़ाफ़िया रहना - करना टहलना है रात भर किया जा सकता है

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    1. क़ाफ़िया ध्वनि "लना" है इसलिए "रना" लेंगे तो गड़बड़ होगी

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  4. तरही ग़ज़ल -२१२ २१२ २१२ २१२


    “इन चरागों को जलना है अब रात भर”
    आँच में उनको गलना है अब रात भर

    देती क़ुदरत इशारे मुसलसल हमें
    उन इशारों पे चलना है अब रात भर

    नीम बेहोशी भी इतनी भी अच्छी नहीं
    होश रहते संभलना है अब रात भर

    फ़लसफ़ा ज़िंदगी का समझ लीजिए
    उस समझ में ही ढलना है अब रात भर

    ज़िन्दगी एक जलती चिता ही तो है
    जागकर ही पिघलना है अब रात भर

    कैसे कह दूँ कथा इन चराग़ों की मैं
    इनको ‘देवी’ यूँ जलना है अब रात कर

    देवी नागरानी

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  5. नीम बेहोशी इतनी भी अच्छी नहीं
    होश रहते संभलना है अब रात भर

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