सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

आइये सप्‍ताह भर श्री राकेश खण्‍डेलवाल जी की चर्चा करके 11 अक्‍टूबर को आने वाले ''अंधेरी रात का सूरज'' का स्‍वागत करें ।

राकेश खण्‍डेलवाल जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है । हिंदी गीतों की परंपरा को जीवित रखने का काम आज उनकी लेखनी पूरे मनोयोग से कर रही है । मेरे जैसे गीतों के दीवानों के लिये तो उनके गीत उपहार की तरह होते हैं । कल बहुत दिनों बाद अभिनव का फोन आया और राकेश जी के बारे में काफी चर्चा हुई  । चूंकि 11 अक्‍टूबर को राकेश जी के काव्‍य संग्रह ''अंधेरी रात का सूरज'' 

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का विमोचन होना है जो कि शिवना प्रकाशन सीहोर द्वारा प्रकाशित किया गया है । जैसा कि तय है कि राजधानी मंदिर वर्जीनिया में मुख्‍य कार्यक्रम होगा और सीहोर में भी एक कार्यक्रम उसी दिन होगा । राकेश जी के बारे में कुछ भी कहना हो तो शब्‍द कम पड़ने लगते हैं । मेरी ऐसी इच्‍छा है कि चूंकि इसी सप्‍ताह के आखीर में शनिवार को राकेश जी के काव्‍य संग्रह का विमोचन होना है अत: उनसे जुडे हम सब लोग अपने अपने ब्‍लाग पर राकेश जी के व्‍यक्तिव, कृतित्‍व के बारे में आलेख लगायें और अभिनव ने इसकी शुरूआत भी कर दी है http://ninaaad.blogspot.com/2008/10/blog-post_06.html आज यहां पर उनका आलेख राकेश जी पर लगा है । ये प्रारंभ है और मेरी इच्‍छा है कि हम सब अपने अपने ब्‍लाग पर राकेश जी चर्चा करें इसी प्रकार के लेख लगायें जिसमें संस्‍मरण हो सकते हैं उनकी कविताओं की चर्चा हो सकती है । और जो भी जैसा भी आप राकेश जी के बारे में लिख सकते हैं । वे लोग जो राकेश जी से परिचित नहीं हैं ( कौन होगा ) वे लोग राकेश जी के ब्‍लाग http://geetkalash.blogspot.com पर जाकर उनके काव्‍य से रूबरू हो सकते हैं । राकेश जी के बारे में अपनी पोस्‍ट एक दो दिन में मैं लगाऊंगा किन्‍तु एक बात तो आज कहना ही चाहता हूं कि अंधेरी रात का सूरज ने मुझे दो स्‍तरों पर परेशान किया है पहला तो ये कि मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि कौन सा गीत लूं और कौन सा छोड़ दूं । दूसरा ये कि मैं स्‍वयं भी कभी कभी ग़ज़ल छोड़कर गीतों में हाथ साफ कर लिया करता हूं । किन्‍तु जब संपादन के दौरान राकेश जी के गीत पढ़े तो एक ही बात लगी कि अब मैं क्‍या लिखूं सब कुछ तो राकेश जी ने लिख ही दिया है । राकेश जी के काव्‍य संग्रह का विमोचन 11 अक्‍टूबर को होने जो रहा है किसी भी लेखक के लिये उसकी पुस्‍तक के विमोचन का अवसर एक भावुक पल होता है आइये हम सब मिल कर इस 11 अक्‍टूबर को राकेश जी के लिये यादगार बना दें ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपके स्नेह ने यों ह्रदय भर दिया, कुछ समझ आ रहा है नहीं क्या कहूँ
    आप की प्रेरणा मुझको देते रहे, भाव की बन के भागीरथी मैं बहूँ
    एक ही लक्ष्य को साध कर हम सभी साधना कर रहे हैं निशा से दिवस
    कामना है यही एक इस पंथ में आपके साथ पग मैं मिलाता रहूँ

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  2. राकेश जी को अग्रिम शुभकामनाऐं. यह मेरा सौभाग्य है कि इस विमोचन के अवसर मैं वहाँ व्यक्तिगत रुप से उपस्थित रहूँगा.

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  3. ११ अक्टूबर तो गुरूजी फिर दो मायनों में महत्वपूर्ण हो गया ना!"अँधेरी रात का सूरज" का विमोचन और आपका जन्म-दिवस.कितना शुभ-संयोग है.
    राकेश जी के बारे में तो क्या कहें.मैंने तो पहले ही शब्दों के मसीहा का खिताब दे दिया है और विनम्रता इतनी की एक-एक मेल का जवाब देते हैं
    ...उनको और आपको-इस खास दिन की अग्रीम बधाई!!!

    और आखिर में उस "सारा वाकिया.." वाली गलती की माफी चाहता हूँ.लेकिन ये "बढ़्‍ढ़िया" वाला जुगाड़ मैंने कई बड़े शायरों को करते देखा
    जैसे लिखा को लिक्खा आदि...
    वैसे इस अहम सबक का शुक्रिया.चलिये इस बात पर खुश हो माफ कर दिजिये कि आपके शागिर्द की पहली बहर वाली गज़ल(जिसे शिक्षक-दिवस के अवसर पर मैने आपको को समर्पित किया था) को हिन्दी-युग्म वालों ने प्रथम पुरुस्कार से नवाजा है.
    ..चरण-स्पर्श.

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  4. ११ अक्टूबर के उस पावन क्षण का प्रतिपल इंतज़ार है।

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  5. rakesh ji ko shubhkamnayein,
    ek rachnakar ke jeevan me uski kriti ka prakashan hona uske liye bahut hi bhavpoorn lamha hota hai.

    ankit safar

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  6. गुरुजी (आप सब के राकेश जी) की पुस्तक के विमोचन के उपलक्ष्य में हार्दिक नमन !
    ********************************
    गीतकार

    लेखनी से जब गिरें
    झर स्वर्ग के मोती
    पाने को उनको सीपियाँ
    निज अंक हैं धोतीं ।
    कोई चले घर छोड़ जब
    अहम् , दुख , सपने
    उस केसरी आँचल तले
    आ सभ्यता सोती ।

    जब तू शिशु था ईश ने आ
    हाथ दो मोती दिये
    एक लेखनी अनुपम औ' दूजे
    भाव नित सुरभित नये ।
    ये हैं उसी की चिर धरोहर
    तू गा उसी का नाम ले
    जो नाव सब की खे रहा
    उसे गीत उतराई तू दे ।

    तू गीत उन्नत भाल के रच
    मन को तू खंगाल के रच
    कृष्ण के कुन्तल से लिपटे
    गीत अरुणिम गाल के रच ।
    तू दलित पे गीत लिख
    और गीत लिख तू वीर पे
    जो मूक मन में पीर हो
    उसको कलम की नीर दे ।

    तू तीन ऐसे गीत रच जो
    भू-गगन को नाप लें
    माँ को, प्रभु को पाती लिख
    लिख प्रेम को निष्काम रे ।
    ये गीत मेरा जो तुम्हारे
    पांव छूने आ रहा
    जिस ठाँव तू गाये
    ये उसकी धूल बस हटला रहा ।

    शार्दुला

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