शनिवार, 6 सितंबर 2008

ग़ज़ल के बारे में भविष्‍य के शुभ संकेत तो मिल रहे हैं पर ये संकेत बने रहें ये हमारी जिम्‍मेदारी है ।

मुशायरों में जा जाकर एक बात जो मैंने देखी है वो ये है कि मुशायरों में रवायतों को ज्‍यादा पसंद किया जाता है । तरक्‍कीपसंद शायरी को ज्‍यादा दाद नहीं मिलती है । वो इसलिये भी कि लोग अभी भी इश्‍क मुहब्‍बत की बातें ही सुनना पसंद करते हैं । मगर हकीकत ये है कि अब समय बदल रहा है । भले ही मुशायरे के श्रोता तरक्‍की पसंद शायरी को पसंद नहीं करते लेकिन आम आदमी तो अब उसी को ही पसंद कर रहा है और गुनगुना भी रहा है । आचार्य रामधारी सिंह दिनकर जी ने संस्‍कृति के चार अध्‍याय में लिखा है कि जिस साहित्‍य में अपने समय की पीड़ायें नहीं हों वो और कुछ भले ही हो पर साहित्‍य नहीं हो सकता है । मेरे गुरू श्रद्धेय डा विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि कविता हमेशा ही विपक्ष में खड़ी होती है । और यही उसका काम है कि वो प्रश्‍न पूछती रहे ।

आज ग़ज़ल की पुन: शुरूआत करते समय दो बातों की बड़ी प्रसन्‍नता है और ये दोनों ही बातें दो शायरों से जुड़ी हैं । नीरज गोस्‍वामी जी के बारे में ये तो सब ही जानते हैं कि वे अति विनम्र व्‍यक्ति हैं । मगर अब उनका जो रूप धीरे धीरे सामने आता जा रहा है वो एक स्‍थापित शायर का है । मेरा ऐसा मानना है कि हर वो पत्‍थर जो कि छैनी हथोड़ी की चोट सहने से इंकार कर देता है वो फिर प्रतिमा में नहीं बदल पाता । मेरा आशय ये है कि सीखने की प्रकिया के दौरान यदि हम अपनी रीढ़ की हड्डी में लोच नहीं रखते तो हम सीख ही नहीं पाते । नीरज जी में आने वाले समय के एक मशहूर शायर की जो झलक मिल रही है वो शायद उनकी विनम्रता के ही कारण है । आज के दौर में जब लोग ये बताना ही शर्म की बात समझते हैं कि हमने इसलाह करवाई है उस दौर में नीरज जी इसलाह के बारे में डंके की चोट पर अपने ब्‍लाग में जिस तरह से जिक्र कर देते हैं वैसी मिसाल मिलना आज तो कम से कम मुश्किल है । ईश्‍वर उनको ग़ज़ल के सफर में कामयाब करे ।

दूसरा जिक्र एक अपेक्षाकृत नौजवान शायर का नाम है वीनस केसरी जिन्‍होनें संभवत: कल ही अपना ब्‍लाग आते हुए लोग  बनाया है और अपनी पहली ही ग़ज़ल वहां पोस्‍ट की है । इस ग़ज़ल को संभवत: किसी प्रतियोगिता में द्वितीय स्‍थान भी मिला है । प्रथम किसको मिला ये तो मैं नहीं देख पाया लेकिन वीनस की ग़ज़ल भी कम से कम द्वितीय आने योग्‍य नहीं है । मगर आजकल जो चलन है कि केवल अच्‍छे होने से ही सब कुछ नहीं होता है प्रथम आने के लिये और भी कुछ आवश्‍यक होता  है । खैर वीनस का जिक्र मैं इसलिये कर रहा हूं कि भले ही ब्‍लाग वीनस ने आज बनाया है मगर टिप्‍पणियों के माध्यम से मेरा  परिचय वीनस से पूर्व का ही है । नीरज जी और वीनस इन दोनों को जिक्र इसलिये कर रहा हूं क्‍योंकि ये दोनों ही मुझे आने वाले समय के शायर दिखाई दे रहे हैं । आने वाले समय के मतलब जो दौर अब सामने है और जिसमें आम आदमी की कविता आम आदमी की भाषा में ही करनी होगी ।

इन दोनों ने मुझे पुन: ग़ज़ल की कक्षाओं को प्रारंभ करने के लिये मार मार कर उकसाया  है मार मार कर अर्थात अपने शेरों से मार मार कर । पिछले एक डेढ़ माह से श्री राकेश खंडेलवाल  के काव्‍य संग्रह अंधेरी रात का सूरज पर कार्य कर रहा था और अब वो संग्रह छपाई में जा चुका है सो कुछ समय मिल रहा है । यद्यपि श्री समीर लाल जी के काव्‍य संग्रह का काम भी प्रारंभ होना है । अगली पोस्‍ट में बात की जायेगी शिवना प्रकाशन से आ रहे श्री राकेश जी के काव्‍य संग्रह की और फिर हम प्रारंभ करेंगें ग़ज़ल की कक्षायें ।  

9 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज जी
    आप ने मेरी कुछ अधिक ही तारीफ कर दी है...मैंने कोई महान काम नहीं किया है...जो मुझे नहीं आता उसे सीखने में और बताने में मुझे शर्म नहीं है...आप ये बात सब से छुपा सकते हैं लेकिन ख़ुद से कैसे छुपायेंगे? कोई भी पारंगत नहीं होता,इसलिए सीखना एक सतत क्रिया मानी जाती है....जब हम सीखना बंद कर देते हैं तब वहीँ ठहर जाते हैं जहाँ थे...और जिनसे सीखा जाता है वो गुरु होते हैं, उनका आभार व्यक्त करना ही चाहिए.
    आप ग़ज़ल की कक्षाएं शुरू करने वाले हैं जान कर अपार हर्ष हुआ...
    नीरज

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  2. गुरु जी प्रणाम
    बहुत बहुत धन्यवाद मेरी अरज सुन ली आपने अपनी मेल में मैंने जो वादा किया था उसे जरूर पूरा करूगा ये मेरा वादा है
    आपका वीनस केसरी

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  3. बहुत आभार आपका कि आपने क्लास पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया. इस बाबत निवेदन के लिये मेरा खत आपको जाने को तैय्यार ही था कि मानो, पहले ही मेरी याचना सुन ली गई. बहुत आभार.

    इन्तजार रहेगा.


    अब एक सार्वजनिक निवेदन आपके मंच का इस्तेमाल करते हुए :)
    -------------------

    निवेदन

    आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

    ऐसा ही सब चाहते हैं.

    कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

    हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

    -समीर लाल
    -उड़न तश्तरी

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  4. बहुत आभार आपका कि आपने क्लास पुनः प्रारंभ करने का निर्णय लिया. इस बाबत निवेदन के लिये मेरा खत आपको जाने को तैय्यार ही था कि मानो, पहले ही मेरी याचना सुन ली गई. बहुत आभार.

    इन्तजार रहेगा.


    अब एक सार्वजनिक निवेदन आपके मंच का इस्तेमाल करते हुए :)
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    आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

    ऐसा ही सब चाहते हैं.

    कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

    हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

    -समीर लाल
    -उड़न तश्तरी

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  5. गुरु जी प्रणाम
    आपकी इस शुभ घोषणा के साथ ही पिछले पाठों को फ़िर से दोहराना शुरू कर दिया है, हो सके तो एक टेस्ट ले लीजिये पुनरावृत्ति हो जायेगी
    आपका वीनस केसरी

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  6. २४ अगस्त वाली पोस्ट कृप्या हटा डें..मेरा निवेदन है. :) प्लीज!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  7. गुरूजी,चरन-स्पर्श!आप मेरे ब्लौग पे आये,वो तब से एक अजब रौशनी से जगमगा उठा है और उपर से आपने तारिफ़ कर दी सो अलग...जान निकलते-निकलते रह गयी.सर,शुरुआत तो ठीक-ठक ही हुई थी,मगर फिर अपने प्रोफ़ेशन के जुनून ने समय नही दिया.जाने कितने सालों बाद एक शांत इलाके में पोस्टिंग हुई है और फिर आप मिल गये.बस अपना आशिर्वाद बना रह्ने दें......इस कक्षा शुरू करने वाली घोषणा पे तो पूरा गज़ल-गाँव मुस्कुरा उठा है.और सर वो "तल्लीन"वाले काफ़िये की गज़ल आपके निर्देशानुसार मेरी समझ से पक गयी है.आप्को जरा फ़ुरसत हो तो और यदी आप आदेश करें तो भेजूँ....

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  8. दोहरी खुशी! मजा आ गया! एक तो कक्षाएँ शुरू होने को हैं दूसरे २४ अगस्त की पोस्ट हटा दी।

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