खैर जो भी हो पर ये तो है ही कि छुट्टी के बहाने स्वयं को ताज़ा कर लिया और अब कुछ ठीक लग रहा हैं ।
चलिये अपने पाठ की ओर चलते हैं हमने जहां पर छोड़ा था वहां से ही शुरू करते हैं । हमने पिछले सबक में तीन और चार रुक्नों के बारे में बात की थी और उनका नाम निकाला था कि उनको क्या कहा जाता है । आज हम उनसे ही कुछ और आगे चलते हैं और जानते हैं कि उनके अलावा और क्या हो सकता है ।
मुरब्बा :- घर में भले ही आपसे कहा जाऐ कि मुरब्बा किसको कहते हैं तो आप एक ही बात कहेंगें कि भाई जो घर में आंवले या आम का बनता है और जिसको खाने के बाद या साथ खाया जाता है उसको मुरब्बा कहा जाता है । पर ग़ज़ल के संदर्भ में मुरब्बा अलग ही होता है । मुरब्बा काह जाता है उस ग़ज़ल को जिसके हर एक मिसरे में दो रुक्न हों और कुलमिलाकर पूरे श्ोर में चार रुक्न हों । जैसे शेर है
मिरे दिल की भी ख़बर है
तुझे ऐ बेख़बर आ तो
मि र दिल की | भि ख़ बर है |
तु झ ऐ बख | बर आ तो |
फ ए ला तुन | फ ए ला तुन |
दरअस्ल में ये छोटी बहर हैं जिसमें केवल दो ही रुक्न हैं फएलातुन-फएलातुन । दो ही रुक्न होने के कारण ही इस बहर का नाम है बहरे रमल मुरब्बा मख़बून अब ये रमल नाम तो विशेष रुक्न के कारण है जिसकी बात हम आगे करेंगें मगर जो मुरब्बा लगा हुआ है उसके पीछे कारण है ये कि ये दो रुक्नी मिसरों से बनी हुई ग़ज़ल है और हर मिसरे में दो ही मिसरे आ रहे हैं ।
मुसना :- अब आता है मुसना ये भी एक विशेष प्रकार का नाम है जो एक खास बहर को ही दिया जाता है । वह ग़ज़ल जिसके हर एक मिसरे में केवल एक ही रुक्न हो उसको कहा जाता है कि ये मुसना है । अब ये मुसना जो है ये नाम के साथ ही लग जाएगा जो कि ये बातएगा कि छोटी बहर है और हर एक मिसरे में एक ही रुक्न है ।
मेहर हूं |
सहर हूं |
फऊलुन |
अब इसमें क्या हो रहा है कि एक ही रुक्न हे पूरे मिसरे में और पूरा काम एक ही से चल रहा है हालंकि ये बहर मुतकारिब है पर इसके नाम में मुसना भी आएगा जो कि ये बात रहा होगा कि ये एक रुक्न की ग़ज़ल है । इस तरह के प्रयोग कम ही किये गये हैं क्योंकि उसमें स्वतंत्रता नहीं है ।
आज के लिये इतना ही । अब तो ऐसा लगने लगा है कि माड़साब के साथ साथ विद्यार्थी भी थक गये हैं तभी तो कुछ काम नहीं हो रहा है । खैर हम अब बहर पर आ गए हैं और धीरे धीरे इस रहस्य पर से पर्दा उठ रहा है कि क्या है वो जादू जिसको बहर कहा जाता है ।
उपस्थित गुरुवर! मुरब्बा और मुसना दोनो समझ लिया।
जवाब देंहटाएंबहर यही निकला है!!
जवाब देंहटाएंवो हाथों में / लिये कागज़ / की चिडिया बे /चने वाले
गली में अब / नहीं आते /खिलौना बे /चने वाले.
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२
१२२२, १२२२, १२२२,
वो हाथों में / लिये कागज़ / की चिडिया बे /चने वाले
जवाब देंहटाएंगली में अब / नहीं आते /खिलौना बे /चने वाले.
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२
jee samjhey.
जवाब देंहटाएंसर आपके लिखे संवाद काफी रोचक दिल को छू जाने बाले है, में आशा करता हूँ की भविष्य में भी आप इसी तरह अपनी कविता ब्यंग तथा हास्य रचनाओ से हमे ओतप्रोत करते रहेंगे ! आपकी रचनाये वाकई सराहनीय है में आपकी रचना पड़कर कृतार्थ हुआ ! आपकी नई रचनाओ के इंतजार में आपका शिष्य !
जवाब देंहटाएं"अमित कुकलोद"
सर आपके लिखे संवाद काफी रोचक दिल को छू जाने बाले है, में आशा करता हूँ की भविष्य में भी आप इसी तरह अपनी कविता ब्यंग तथा हास्य रचनाओ से हमे ओतप्रोत करते रहेंगे ! आपकी रचनाये वाकई सराहनीय है में आपकी रचना पड़कर कृतार्थ हुआ ! आपकी नई रचनाओ के इंतजार में आपका शिष्य !
जवाब देंहटाएं"अमित कुकलोद"