शनिवार, 29 जनवरी 2011

तरही बढ़ रहा है, मौसम धीरे धीरे बदल रहा है, हवा में वसंत का रंग घुला दिखाई दे रहा है और ऐसे में याद आ रहे हैं गुरू साहब जो वसंत के आते ही वासंती हो जाते थे ।

हठीला जी के बिना जो सबसे पीड़ादायी समय होगा वो होगा फागुन का । एक माह पहले सेही उनका उपाधियां देने का काम शुरू हो जाता था । हर किसी को उसके अनुरूप उपाधियां देना । होली के हास्‍य समाचार लिखना और होली की कविताएं लिखना । पूरी तरह से होली के रंग में डूब जाते थे वे । मैंने फैसला लिया है कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस बार भी होली का विशेषांक निकलेगा । जिसके संपादक श्री रमेश हठीला जी ही रहेंगें । इस बार का होली विशेषांक दो अंकों में बंटा रहेगा । पहला अंक सीहोर शहर के लिये होगा । और दूसरा अंक पीडीएफ फार्मेट में इंटरनेट के मित्रगणों के लिये रहेगा । सीहोर के प्रिंट संस्‍करण में सीहोर के लोगों के लिये हास्‍य समाचार तथा उपाधियां रहेंगीं तो इंटरनेट संस्‍करण में इंटरनेट के लोगों के लिये उपाधियां तथा समाचार । यही वे चाहते थे । वे कहते थे कि पंकज होली का समाचार पत्र निकालते रहना और खबरदार जो मेरे अलावा किसी और को संपादक बनाया तो । खैर उसमें तो अभी समय है अभी तो हम तरही को बढ़ाते हैं आज कुछ और आगे ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

नये साल में नये गुल खिलें, नई खुश्‍बुएं नया रंग हो

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( फोटो सौजन्‍य श्री बब्‍बल गुरू )

आज के तरही मुशायरे में तीन युवा शायरों की तिकड़ी जमा हो रही है । तीनों ही प्रतिभावान हैं और अपने अपने तरीके से ग़ज़ल कहते हैं । तो मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीनों के साथ ।

गौतम राजरिशी

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लीजिये हाजिर है हमारी तरही। काफ़िये ने बहुत तंग किया। हर शेर को नये साल की शुभकामना बना कर लिखा है और इसे कंचन,अर्श,रवि,वीनस और अंकित को समर्पित कर रहा हूँ। मेरी तरही जब लगाइयेगा तो इस बात का जिक्र कर दीजियेगा प्लीज। पेश है:-

हो नया-नया तेरा जोश और नयी-नयी सी उमंग हो

नये साल में नये गुल खिलें, नयी हो महक, नया रंग हो

रहे बरकरार जुनून ये, तू छुये तमाम बुलंदियाँ

जो कदम तेरे चले सच की राह तो हौसला तेरे संग हो

है जो आसमान वो दूर कुछ, तो हुआ करे, तो हुआ करे

तेरे पंख हो नया दम लिये, नयी कोशिशें, नया ढ़ंग हो

कई आँधियाँ अभी आयेंगी, तेरी डोर को जरा तौलने

है यही दुआ, तेरे नाम की यहाँ सबसे ऊँची पतंग हो

चलें सर्द-सर्द हवायें जब तेरे खूं में शूल चुभोने को

हो उबाल तेरी रगों में औ’ कोई खौलती-सी तरंग हो

हो कलम तेरी जरा और तेज, निखर उठे तेरे लफ़्ज़ और

तेरे शेर पर मिले दाद सौ, तुझे सुन के दुनिया ये दंग हो

 अंकित सफ़र

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मेरी ओर से हठीला जी को एक साहित्यिक श्रद्धांजलि इस तरही ग़ज़ल की शक्ल में.
"तेरे ज़िक्र से कई मुश्किलों में भी हँस रही है ये ज़िन्दगी,
वो खुदा करे, तेरी चाहतों की भी खुशबुएँ मेरे संग हों."
ये शेर आप के लिए, आप का आशीर्वाद, प्यार हम सभी(गुरुकुल) को सदैव मिलता रहे.
"तेरा बाग़ है ये जो बागवां इसे अपने प्यार से सींच यूँ,
नए साल में, नए गुल खिलें, नयी खुशबुएँ नए रंग हों."
तरही ग़ज़ल

कोई रुख हवाएं ये तय करें, मेरे हौसलों से वो दंग हों.

चढ़े डोर जब ये उम्मीद की, मेरी कोशिशें भी पतंग हों.
तेरे ज़िक्र से कई मुश्किलों में भी हँस रही है ये ज़िन्दगी,
वो खुदा करे, तेरी चाहतों की भी खुशबुएँ मेरे संग हों.
ये जो आड़ी तिरछी लकीरें हैं, मेरे हाथ में तेरे हाथ में,
किसी ख्वाब की कई सूरतें, किसी ख्वाब के कई रंग हों.
कई ख्वाहिशों, कई हसरतों की निबाह के लिए उम्र-भर,

इसी ज़िन्दगी से ही दोस्ती, इसी ज़िन्दगी से ही जंग हों.

जो रिवाज और रवायतें यूँ रखे हुए हैं सम्हाल के,
वो लिबास वक़्त की उम्र संग बदन कसें कहीं तंग हों.
तेरा बाग़ है ये जो बागवां इसे अपने प्यार से सींच यूँ,
नए साल में नए गुल खिलें नयी खुशबुएँ नए रंग हों.
ये फकीर की दुआ ही है, जो मुझे इस मकाम पे लाई है,
तू जहाँ भी जाएगा ऐ "सफ़र", तेरी हिम्मतें तेरे संग हों.

वीनस केशरी

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नये साल में, नये गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो

नई हो कहन, नये शेर हों, नई हो ग़ज़ल, नया ढंग हो

तू ही हमसफ़र, तू ही राहबर, तू ही रह्गुज़र, तू ही कारवां

यही ख़्वाब है, यही है दुआ, मेरा हर सफ़र, तेरे संग हो

खुले दिल से तुम, कभी मिल तो लो, न निराश मैं, करूंगा तुम्हें

तो ये क्या कि मैं, कोई आईना, तो ये क्या कि तुम, कोई संग हो

किसी ख़्वाब में, मेरा नाम ले, पशेमान है, मेरा मोतबर

मेरी ख़्वाहिशें, जो बता दूं तो, कहीं होश खो, न दे दंग हो

वहां जीत कर, खुशी क्या मिले, वहां हार कर, करूं क्या गिला

जहां दांव पर, मेरी सोच हो, मेरी मुझ से ही, छिडी जंग हो

गुरु जी कभी, हमें दीजिये, कोइ मिसरा वो, जो हो कुछ सरल

न तो काफ़िये, लगें तंग से, न कहन से ही, मेरी जंग हो

बच्‍चे तो उस्‍ताद होते जा रहे हैं । एक मिसरा तो सन्‍न से तीर की तरह आकर कलेजे में फिर से धंस गया है । क्‍या कहूं इन ग़ज़लों पर खुशी होती है कि चलो पौधे अब वृक्ष बन कर फल देने लगे हैं । तो दीजिये दाद तीनों को और इंतजार कीजिये अगली तरही का ।

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

तरही मुशायरा आज सात समंदर पार की सैर कर रहा है, क्‍योंकि आज दुबई से कनाडा होते हुए ग़ज़ल अमेरिका पहुंच रही है ।

तरही मुशायरा अपने क्रम से चल रहा था कि उसके बीच में ही शिवना प्रकाशन के आधार स्‍तंभ और बहुत अच्‍छे साहित्‍यकार समीक्षक श्री रमेश हठीला हाथ छोड़ कर चले गये । कई बार ऐसा होता है कि आपको किसी घटना के होने का भय होता है लेकिन मन कहता है कि सब ठीक हो जायेगा कुछ नहीं होगा । किन्‍तु फिर समय अपनी चाल चल जाता है । श्री रमेश हठीला जी जैसे जिंदादिल आदमी के नाम के आगे स्‍वर्गीय लगाने की हिम्‍मत नहीं होती है । अलमस्‍त और फक्‍कड़ तबीयत का वो आदमी मानो मौत की हंसी उड़ाने के लिये जिंदा था । जन्‍म से शरीर में एक किडनी थी । लगभग सात ( जी हां सात ) बार हार्ट अटैक आ चुका था अब तक । तीन बार दिल की शल्‍य क्रिया हो चुकी थी । शुगर का लेबल मजाल है जो कभी तीन सौ से नीचे गिर जाये । दिन भर सिगरेट फूंकते रहना । एक बार किसी ने कोशिश करके मध्‍यप्रदेश सरकार से इलाज का एक लाख रुपया स्‍वीकृत करवा दिया, जैसे ही चैक मिला उसे सधन्‍यवाद जिला कलेक्‍टर को वापस कर आये, कि ये मेरी तरफ से लौटा देना मुख्‍यमंत्री को, किसी गरीब के काम आ जायेगा । रोज एक कुंडली ( विशेष प्रकार की कविता ) लिखते और रोज वो समाचार पत्र में छपती । कभी ठलुवा कवि के नाम से ठलुवाई स्‍तंभ में, कभी चुरकट कवि के नाम से चुरकटाई स्‍तंभ में तो कभी बिच्‍छु कवि के नाम से तो कभी सर्किट कवि के नाम से । खैर जैसा कि वे ही कहते थे कि किसी के जाने पर कोई काम नहीं रोकना चाहिये । तो हम भी ये मुशायरा फिर से शुरू करते हैं ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

नए साल में, नए गुल खिलें, नई खुश्‍बुएं, नया रंग हो

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श्रद्धांजलि श्री रमेश हठीला जी को

आज का ये तरही मुशायरा सात समंदर पार की यात्रा पर है । और आज ये दुबई से कनाडा होता हुआ अमेरिका पहुंच रहा है । आज तीन ऐसे शायर हैं जो बहुत प्रतिभावान हैं । दिगंबर नासवा, निर्मल सिद्धु और राजीव भरोल ये तीनों ही नाम ग़ज़ल की दुनिया के अब जाने पहचाने नाम होते जा रहे हैं । तो आज इनकी ग़ज़लों के माध्‍यम से ही हम देते हैं श्री रमेश हठीला जी को काव्‍यमय श्रद्धांजलि ।  

एक बात जो पहले भी कही जा चुकी है वो ये कि इस बार सारी ग़ज़लें उसी रूप में लगाई जा रहीं हैं जिस रूप में प्राप्‍त हुईं हैं । ये नये साल का नया प्रयोग है । गौतम के कहने पर नये साल में ये प्रयोग किया गया है ।

दिगंबर नासवा

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नये साल में नये गुल खिलें, नई हो महक नया रंग हो

यूं ही खिल रही हो ये चांदनी यूं ही हर फिजां में उमंग हो

तेरी सादगी मेरी ज़िंदगी, तेरी तिश्नगी मेरी बंदगी

मेरे हम सफ़र मेरे हमनवा, मैं चलूं जो तू मेरे संग हो

न तो धूल हो, न बबूल हो, न ही शूल हो, हो जो फूल हो

यूँ ही साथ साथ रहें सदा, ये सफ़र तेरा नवरंग हो

जो तेरे करम की ही बात हो, न मैं ख़ास हूँ न वो ख़ास हो

तेरे हुस्न पर हैं सभी फिदा, तेरे नूर में वो तरंग हो

न तो नफ़रतों की बिसात हो, न तो मज़हबों की ही बात हो

न उदास कोई भी रात हो, न चमन में कोई भी जंग हो

जो कभी हुवे थे गुलाम हम, मेरे साथिया उसे याद रख

न तो बेवफा ही रहे कोई, न कभी निज़ामे-फिरंग हो

कहीं खो न जाऊं शहर में मैं, मेरे हक़ में कोई दुआ करे

न तो रास्ते मेरे गाँव के, मेरे घर की राह न तंग हो

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निर्मल सिद्धू

नये साल में नये गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
नये हम बनें नये तुम बनो नई ज़िन्दगी नया ढंग हो
नई हो चमक नई हो धनक नये दौर में नई हो लचक
महके ज़मीं महके गगन मेरे साथ जब तेरा संग हो
कि ये ज़िन्दगी बने सादगी, बने आदमी नया आदमी
न रोये चमन रहे यूं अमन, नहीं फिर कभी कोई जंग हो

चले वो लहर मिटे सब ज़हर लुटे फिर कभी न कोई शहर
न हो बेबसी न हो बेकली न जीवन कोई भी बेरंग हो
न हो फ़ासले कभी दरमियां करे हम दुआ नये साल में
मिले ज़िन्दगी हमें इस तरह जिसे देख जग ज़रा दंग हो
कहीं प्यार का दिया जल रहा कि आने लगी नई रोशनी
मिली है ख़ुशी तुझे आज वो कि निर्मल न अब कभी तंग हो

 

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राजीव भरोल

नई सोच हो नया आसमां, नए हौसलों की उमंग हो,

नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक नया रंग हो.

मेरे दर पे आये फ़कीर को मेरी झोंपड़ी से ना कुछ मिले,

मेरा हाथ ऐ मेरे आसमां कभी इस कदर भी ना तंग हो,

कई दिन हुए मैं उठा नहीं, कहीं पर्वतों से भिड़ा नहीं,

मेरे हौसलों में पड़े पड़े ही न लग गया कहीं ज़ंग हो.

तेरे तल्ख़ लहज़े कि चोट से किसी दिल का कांच चटख गया,

कहाँ लाज़िमी है तू हाथ ही में लिए हुए कोई संग हो?

मैं बुलंदियों की मिसाल था, मेरी ईंट ईंट बिखर गई,

है उरूज तो है जवाल भी, मुझे देख कर यूँ न दंग हो.

मुझे आसमां का सफर मिले, हाँ रहें ज़मीं से भी निस्बतें,

तेरे हाथ में मेरी डोर हो, मेरी जिंदगानी पतंग हो.

इस बार के मुशायरे में टिप्‍पणी नहीं करने का भी निर्णय लिया है । वो तो आपको करना है । लेकिन एक बात कहूंगा, वो ये कि आज के मुशायरे में एक शेर ऐसा है जो तीर की तरह आकर लगा है । आप तलाशिये कि वो शेर कौन सा है । इसी बीच शिवना प्रकाशन की नई पुस्‍तक श्री समीर लाल जी की देख लूं तो चलूं का जबलपुर में वरिष्‍ठ कथाकार श्री ज्ञानरंजन जी के हाथों अंतरिम विमोचन हो गया, उनको बधाई ।

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गुरुवार, 13 जनवरी 2011

नये साल का तरही मुशायरा मकर संक्रांति की दहलीज़ तक आ पहुंचा है और आज की युगल जोड़ी एक बार फिर से दो शानदार शायरों की है ।

तरही मुशायरा अपनी रफ्तार से चल रहा है । हालांकि अभी भी कुछ लोगों को ये समझने में समस्‍या आ रही है कि बहरे रजज और बहरे कामिल के रुक्‍नों के बीच में वो बारीक सा अंतर क्‍या है । अभी भी ये समझने में दिक्‍कत आ रही है कि जो बहरे रजज का रुक्‍न है वो कामिल में नहीं आ सकता है । कई लोगों ने जो ग़ज़लें भेजी हैं वो बजाय कामिल के रजज पर जा रही हैं । या फिर ऐसा हो रहा है कि बहरे रजज का रुक्‍न बीच बीच में आ रहा है । हम, तुम, अब, कब, कुछ, हर, इक, बस, दिल, जैसे शब्‍दों का उपयोग रुक्‍न की पहली मात्रा बनाने में नहीं किया जा सकता है । क्‍योंकि ये रुक्‍न 11212 है बहुत ही स्‍पष्‍ट है कि रुक्‍न की ठीक पहली मात्रा दो लघु हैं ना कि एक दीर्घ । ऊपर जिन शब्‍दों का जिक्र आ रहा है वे सारे वे शब्‍द हैं जिनमें एक मात्रा साइलेंट हो गई है इसलिये इसे एक दीर्घ में माना जाता है । ग़ज़ल का सफर के तीसरे अंक में मुत‍हर्रिक तथा साकिन  का जिक्र हुआ है । वो मात्रा जो कि डामिनेंट होती है उसे मुतहर्रिक कहते हैं और जो रेसेसिव होती है उसे साकिन कहते हैं । और इसी के कारण ये होता है कि इस पूरे दो लघु को एक दीर्घ के रूप में मान लिया जाता है । इसी के कारण ये होता है कि बहरे कामिल के रुक्‍न की शुरूआत इनसे नहीं हो सकती । इस बहर में ये किया जा सकता है कि एक रुक्‍न यदि दीर्घ पर खत्‍म हुआ लेकिन शब्‍द खत्‍म नहीं हुआ है उसमें अभी एक लघु बाकी है तो उसको अगले रुक्‍न की शुरूआत के लिये रख सकते हैं । जैसे नीचे आ रही ग़ज़ल में श्री नीरज जी ने किया है जिसे कल की कोई फिकर नहीं,  जिसे 11 कल 2 की 1 को 2 ( 11212) ई फि 11 कर 2 न 1 हीं 2 ( 11212 ) अब नीरज जी ने क्‍या किया इसमें कि कोई  के को  पर पहले रुक्‍न को समाप्‍त कर   को अगले रुक्‍न की पहली लघु बना लिया है । इस प्रकार काम आसान हो गया । ये भी बहुत अच्‍छा तरीका है  ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

नये साल में, नये गुल खिलें, नई खुश्‍बुएं, नया रंग हो

DSC_6315( फोटो सौजन्‍य श्री बब्‍बल गुरू )

आज मकर संक्रांति की पूर्व संध्‍या पर एक बार फिर से दो जबरदस्‍त शायरों की जोड़ी धमाल करने आ रही है । दोनों ही अपने रंग के शायर हैं । नीरज गोस्‍वामी जी और तिलक राज कपूर जी की ये जोड़ी अपनी ही तरह की जोड़ी है । आइये आज इन दोनों के साथ नये साल का ये कारवां आगे बढ़ाते हैं ।

 

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श्री तिलक राज कपूर

नए साल में नए गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
नए राग हों, नई ताल हो, नया जोश और उमंग हो

तू समझ रहा था थका हुआ कहीं रुक न जाए ये राह में
मैं खड़ा हूँ इक नये वर्ष में, मुझे देखकर यूँ न दंग हो।

वो जिसे समझते हैं लोग सब, कि नसीब उसका खराब है
उसे दे खुदा तू वो नेमतें कि नसीब उसका दबंग हो।

भले सरहदों में बँटी हुई है ज़मीन हिन्‍द औ पाक की
उठे थाप चंग की उस तरफ़ तो इधर भी बजता मृदंग हो।

हमें दिख रही हैं बुराईयॉं, जो बसी हुई हैं समाज में
करें इस बरस नया काम ये कि खिलाफ़ इनके ही जंग हो।

अभी तक तो है ये इबारती, मेरे रब तू ऐसा कमाल कर
रहे डोर जनता के हाथ में, मेरा देश ऐसी पतंग हो।

मेरे दोस्‍त सरहद पार के, तुझे दे रहा है सदाऍं दिल,
मेरे दिल में जोश हो ‘सिंध’ का तेरे दिल में प्‍यार की ‘गंग’ हो।

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श्री नीरज गोस्‍वामी जी

नया गीत हो, नया साज़ हो, नया जोश और उमंग हो

नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक नया रंग हो

है जो मस्त अपने ही हाल में, कोई फिक्र कल की न हो जिसे

उसे रास आती है जिंदगी, जो कबीर जैसा मलंग हो

वही रंजिशें वही  दुश्मनी, है मिला ही क्या हमें जीत के

तेरी हार में मेरी हार है, यही सोच लें तो न जंग हो

करें जो सभी वही हम करें, तो है बेसबब सी ये जिंदगी

है मजा अगर करें कुछ नया, जिसे देख ये जहाँ दंग हो

तुझे देख कर मुझे यूँ लगा कोई संदली सी है शाख तू

जो न रह सके, तुझे छोड़ कर, मेरा दिल ये जैसे भुजंग हो

जो झुके नहीं किसी खौफ से, कभी मौत से वो डरे नहीं

ऐ खुदा दे मुल्क को रहनुमा, जो दिलेर और दबंग हो

इस बार का तरही तो ऐसा लग रहा है कि मेरी क़सम को तुड़वा कर ही मानेगा । मैंने तय किया है ग़ज़लों पर श्रोता टिप्‍पणी करेंगें संचालक नहीं । लेकिन अभी तक ये हो रहा है कि संचालक टिप्‍पणी करने के लिये कसमसा कर रह रह जा रहा है । आज फिर वही हो रहा है । लेकिन आप लोग जिस प्रकार जोर शोर से टीप लगा रहे हैं उससे संचालक का काम हो रहा है । तो आज की ग़ज़लें भी वैसी ही हैं शानदार और जानदार । दिल से दाद दीजिये और इंतज़ार कीजिये अगले अंक का ।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

नये साल का तरही मुशायरा आज कुछ आगे बढ़ता है । और आज आधी आबादी अर्थात महिलाओं की बारी है । दो संवेदनशील शायराओं को सुनिये आज मुशायरे में ।

नये साल का तहरी मुशायरा इस बार कुछ लोगों को इस मामले में कठिन लग रहा था कि इस बार काफिया और रदीफ का जो काम्बिनेशन है वो परेशानी में डालने वाला है । मगर जिस प्रकार से ग़ज़लें मिलीं हैं उससे लगता है कि मिसरा उतना भी कठिन नहीं था जितना कहा जा रहा था। इधर सीहोर का हाल ये है कि शून्‍य के आस पास चलता हुआ तापमान कुछ भी करने की मोहलत ही नहीं दे रहा है  । चुनावों को लेकर जो कुछ गर्मी बनी हुई थी वो भी अब चुनावों के साथ ही खतम हो गई है । चुनावों का परिणाम वैसा ही आया जैसा इन दिनों देश भर के मतदाता कर रहे हैं । यदि काम नहीं कर सकते हो तो कुर्सी छोड़ दो । खैर राजनीति की बात यहां नहीं । बस ये कि मेरा अज़ी़ज़ मित्र चुनाव जीत गया और अब वो शहर का प्रथम नागरिक है ।

जैसा कि पूर्व में कहा कि इस बार तरही में ग़ज़लें यथावत प्रस्‍तुत की जाएंगीं तो यदि आपको अभी भी लगता है कि आपने जो ग़ज़ल भेजी है उसमें कुछ कसर है तो आप उसे कर के भेज सकते हैं । कई लोगों ने जो ग़ज़ल लिखी है वो दीपावली वाली बहर 2212 पर लिख दी है । जबकि इस बार की बहर 11212 है । तो यदि आपकी ग़ज़ल भी 2212 पर है तो उसे ठीक कर दें । आज की ये दोनों ग़ज़लें देखें और जानें कि किस प्रकार हर रुक्‍न की शुरूआत में दो लघ़ु पैदा किये गये हैं । ऐसे दो लघु जो कि आपस में मिलकर दीर्घ नहीं हो रहे हैं । इस बहर में यही विशेषता है कि इसमें आपको हर रुक्‍न के प्रारंभ में दो लघु लाने हैं जो कि एक दूसरे से मिलकर दीर्घ नहीं बन रहे हों । इस प्रकार के लघु चार प्रकार से लाये जा सकते हैं । 1 दो लघु हों और वे अलग अलग शब्‍दों में हों जैसे न जले कोई, 2 एक लघु और एक दीर्घ अलग अलग शब्‍दों में हों तथा दीर्घ गिर सकता हो जैसे न तो आरती 3 या फिर एक ही शब्‍द इस प्रकार का हो कि उसमें एक लघु और एक दीर्घ हो किन्‍तु दीर्घ गिर रहा हो जैसे नहीं, कहीं, यहां, कहां आदि । 4 या फिर दोनों दीर्घ हों पर दोनों गिर सकते हो जैसे तेरे, मेरे आद‍ि । तो ये कुछ बातें हैं जो याद रखें इस बहर पर काम करते समय ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

नए साल में नए गुल खिले नई खुशबुएँ नया रंग हो

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( फोटो सौजन्‍य श्री बब्‍बल गुरू )

तो आज तरही मुशायरा अपनी जड़ों की ओर मुड़ रहा है । उर्दू ग़ज़लों की जड़ है । कहा जाता है कि किसी भी व्‍यंजन को उसी प्रांत में खाया जाये तो वो ज्‍यादा आनंद देता है । उसी प्रकार मीठी उर्दू में गजलों को सुनना और ज्‍यादा आनंद दायक होता है । तो आज दो महत्‍वपूर्ण शायराओं को सुनने का दिन है । इस्‍मत जैदी जी और नुसरत मेहदी  जी । राज़ की बात ये है कि नुसरत दीदी भी विवाह के पूर्व नुसरत जैदी ही थीं ।

इस्‍मत ज़ैदी जी

ismat zaidi

न तो आरती में ख़लल पड़े ,न इबादतें कभी भंग हो

हों हमारे बीच रेफ़ाक़तें,जो उदू भी देख के दंग हों

ये हुजूम कैसा है राह में ,ये हमारे कैसे हुक़ूक़ हैं ?

कि हुसूल इन का हुआ तो क्या,जो मरीज़ जान से तंग हों

ये दुआ हमारी है ऐ ख़ुदा ,कि न फ़स्ल ए ग़म कोई उग सके

"नए साल में नए गुल खिलें, नई ख़ुश्बुएं ,नए रंग हों

मेरे ज़ह्न ओ दिल की ये गुफ़्तगू ,वो ख़िरद भी जज़्बे के रू ब रू

कि मैं फ़ैसला कोई कैसे लूं, जो ये दोनों बर सर ए जंग हों

उन्हें ज़ा’म ए क़ुवत ओ ज़र हि है,जो कुचल रहे हैं ग़रीब को

वो नवा ए दर्द सुनेंगे क्यों ?जो मक़ाम ए क़ल्ब पे संग हों

तेरा साथ है मेरी ज़िंदगी ,तेरा इल्तेफ़ात भी हो ’शेफ़ा’

नहीं याद मुझ को फिर आएंगे ,सहे तंज़ के जो ख़दंग हों

रेफ़ाक़तें=भाईचारा , दोस्ती ; उदू = दुश्मन ; हुजूम = भीड़ ;हुक़ूक़ = हक़ का बहुवचन ;हुसूल =प्राप्ति

हुसूल=प्राप्ति ; ख़िरद = अक़्ल ; बर सर ए जंग =लड़ने को तय्यार ; ज़ा”म=घमंड ;

ख़दंग = तीर ; क़ल्ब= दिल ; संग =पत्थर

नुसरत मेहदी जी

nusrat mehdi

नए हौसले नए वलवले नई ज़िन्दगी की तरंग हो

नए साल में नए गुल खिलें नई खुशबुएँ नया रंग हो

तेरी आहटें तेरी दस्तकें तेरी धड़कनें मेरे हमसफ़र

रहें उम्र भर तो न बे हवा मेरी हसरतों की पतंग हो

यहाँ बे ग़रज़ जो मिले सभी तो हंसी ख़ुशी कटे ज़िन्दगी

न हो इख्तिलाफ दिलों में फिर न किसी के बीच में जंग हो

सभी रंजिशों सभी कुल्फतों सभी ज़हमतों को तू भूल जा

मेरी ज़िन्दगी तेरी दोस्ती तेरी चाहतों के ही संग हो

तिरा इल्म लोहो कलम तलक तू मुशाहिदे की न बात कर

जो शऊरे फिकरो नज़र मिले तुझे ज़िन्दगी का भी ढंग हो

ये अजीब शहरे तिलिस्म है यहाँ रोकता है कोई मगर

ज़रा पीछे मुडके तू देख ले तो पलक झपकते ही संग  हो

मुझे नुसरत उस से नहीं गिला है लबों पे सिर्फ येही दुआ

नई मंजिलों से वो जा मिले ये ज़मीन उस पे न तंग हो

वैसे तो मैंने तय किया था कि ग़ज़लों पर कोई टिप्‍पणी नहीं करूंगा लेकिन आज की ग़ज़लें तो टिप्‍पणी मांग रहीं हैं । उफ क्‍या शेर निकाले हैं दोनों बड़ी बहनों ने । किस शेर को लें और किस को न लें । दोनों ग़ज़लें मुकम्‍मल दस्‍तावेज़ हैं । आप लोगों की जिम्‍मेदारी है कि मेरी तरफ से टिप्‍पणियों की झड़ी लगा दें इन ग़ज़लों पर ।

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

चलो सब के हक में दुआ करें, चलो दुश्मनों से वफ़ा करें, नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो. आइये आज से शुरू करते हैं नव वर्ष का तरही मुशायरा ।

वैसे तो ये मुशायरा सोमवार से ही प्रारंभ हो जाना था लेकिन नहीं हो पाया तो उसके पीछे कई सारे कारण हैं । सबसे पहला कारण तो ये कि शिवना के आधार स्‍तंभ श्री रमेश हठीला जी जो कि इन दिनों हैदराबाद में अपना इलाज करवाने गये हैं उनके स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर एक गंभीर समाचार मिला जो कि मन को दुखी कर गया । किन्‍तु कल जो समाचार मिला वो कुछ राहत देने वाला था । और उसी के कारण आज तरही को लिखने की हिम्‍मत कर पा रहा हूं । दूसरी बात ये कि इन दिनों शहर में म्‍यूनिसिपल चुनाव चल रहे हैं । कल वोटिंग हो गई है । कई सारे मित्र चुनाव लड़ रहे थे सो मित्रों के लिये व्‍यस्‍तता बनी हुई थी । तीसरा कारण ये कि मेरे शहर ने पिछले दिनों इतिहास में पहली बार शून्‍य से नीचे का तापमान देखा जब तापमान शून्‍य से दशमलव तीन डिग्री नीचे ते पहुंच गया । खेतों में बर्फ जम गई, पक्षी मर गये और जाने क्‍या क्‍या हुआ । कड़ाके की ठंड ने सब कुछ रोक दिया है । माइनस0.3 डिग्री तापमान वो भी सीहोर में, ऐसा कभी नहीं सोचा था लेकिन हो गया ।

मुशायरे से पहले एक अनुरोध सब लोग श्री रमेश हठीला जी के लिये दुआ करें कि वे स्‍वस्‍थ होकर जल्‍द घर लौटें, कल रात उनके स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में जो सकारात्‍मक समाचार मिला है वो और सकारात्‍मक हो ।

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इस बार का तरही मुशायरा कुछ खास है । खास इसलिये कि इस बार सारी ग़ज़लें यथा रूप का मतलब कि जैसी आईं हैं उनको उसी प्रकार दिया जा रहा है । बहर या कहन में कहीं कोई छेड़ छाड़ नहीं की जा रही है ।ऐसा आप सब लोगों के अनुरोध पर किया जा रहा है । वैसे भी तरही का ये क़ायदा होता है कि उसमें ग़ज़लें उसी तरह प्रस्‍तुत की जाती हैं जिस प्रकार आती हैं । सो इनको हम उसी प्रकार सुनेंगें । और हां सारे शायर अब परिचित हैं सो परिचय नहीं केवल फोटो । और मेरा काम होगा प्रस्‍तुतिकरण का आपका काम होगा टिप्‍पणी का । टिप्‍पणी मेरी नहीं होगी ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

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( चित्र श्री बब्‍बल गुरू द्वारा )

नये साल में नये गुल खिलें नई खुश्‍बुएं नये रंग हों

नये साल में नये गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो

आज हम नये साल की शुरूआत कर रहे हैं दो एक से शायरों से । एक से इसलिये कि ये बहुत ही गुणी शायर हैं । नये तरीके से अपनी बात कहते हैं । मुस्‍तफा माहिर और डा आज़म का नाम हम सबके लिये अपरिचित नहीं है सो इनका परिचय नहीं दूंगा सीधे सुनें इनकी ग़जल़ें ।

mustafa1 hussain

मुस्तफा माहिर

ये भी है कि राह का हुस्न सब, कोई रास्ते का ही संग हो

प ये शर्त भी है निगाह को उसे देख पाने का ढंग हो.

है कमाल तेरी निगाह में, मैं सदा से हूँ इसी चाह में,

मेरी जिंदगानी के फूल पर तेरी चाहतों का ही रंग हो.

मैं हूँ बेहिसी के जहान में, मेरी चाह! रख तू ये ध्यान में,

मेरी सोच की कोई शक्ल हो, मेरे अश्क का कोई रंग हो.

जो कि आँधियों में भी डट सके, जो कभी किसी से न कट सके,

तेरे क़ल्ब का जो छुए फलक , मेरी डोर में वो पतंग हो.

ये सियासतों की हैं कोशिशें, ये सियासतों की हैं ख्वाहिशें,

किसी बात को कोई तूल दे, किसी बात पर कोई जंग हो.

कभी रिश्ते याँ जो बनाईये, तो वो दूर ही से निभाइए,

ये मकां जो आगे बढा लिए, तो गली यकीन है तंग हो.

तुझे वक़्त का भी ख़याल है? अभी चाहतों पे ज़वाल है,

ये न हो जो मुझपे गुज़र गया, वो ही हादसा तेरे संग हो.

तेरी रौशनी के दयार का, मैं हूँ मुन्तजिर तेरे प्यार का,

मुझे इस तरह से नवाजना, जो भी देख ले मुझे, दंग हो.

सभी मुश्किलों को कुबूल कर, मैं भी चल पढ़ा हूँ ये भूल कर,

मेरे रास्तों में बिछी हुई किसी हादसे की सुरंग हो.

चलो सब के हक में दुआ करें, चलो दुश्मनों से वफ़ा करें,

नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो.

ajam ji1

डॉ मोहम्‍मद आज़म

कोई यार हो, कोई ख्‍़वाब हो, कोई याद तो मिरे संग हो

मैं उदास हूं, मैं निराश हूं, मिरी जिंदगी में भी रंग हो

रहें साथ साथ यहां सभी, हैं खुदा के बंदे ही जब सभी

न कोई यहां पे दबंग हो, न कोई किसी से भी तंग हो

उसे आज़मा के भी देख ले, तिरा जिस पे अंधा यक़ीन है

तिरा दोस्‍त ही तिरी आस्‍तीं में छुपा हुआ न भुजंग हो

न मलाल हो, न ही रंज हो, नये साल में गये साल का

नई मंजिलों की हो जुस्‍तजू, नया जोश और उमंग हो

कहें 'आज़म' आप ग़ज़ल कोई, रहे आपको ये ख़याल भी

नई फिक्र हो, नई सोच हो, नया रंग हो, नया ढंग हो

तो आनंद लीजिये इन दोनों शायरों की ग़ज़लों का और इंतजार कीजिये अगले अंक का । नया साल शुरू हो गया है सो आप सब को नये साल की मंगल कामनाएं ।

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