बहर की बातें हम इन दिनों प्रारंभ कर चुके हैं और कुछ थोड़ा बहुत काम हमने किया है उस पर ये जानने का प्रयास किया है कि किस प्रकार से वो काम होता है । रविवार की रात से मेरे शहर सीहोर में सांप्रदायिक तनाव है उस रात तो एकबारगी ऐसा लगा था कि अब दंगा हुआ ही बस पर कुछ लोगों की समझदारी और कुछ प्रशासन की चुस्ती काम आ गई और रात बारह बजते बजते माहौल ठीक हो गया । उसी कारण मैंने आज मुनीर बख्श आलम की ग़ज़ल की ये लाइनें यहां पर लगाईं हैं । आलम जी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि हिन्दी पर भी काम करते हैं और उर्दू पर भी इनकी एक कृति है यथार्थ गीता जो कि इन्होंने उर्दू में लिखी है गीता की टीका का उर्दू में अनुवाद है पर है देवनागरी लिपी में ही । अद्भुत है वो वो इंटरनेट पर भी सुलभ है अवश्य पढ़ें ।
पिछला पोस्ट कुछ निराशाजनक था कुछ तनाव में था मैं और उसी का प्रभाव पोस्ट में भी चला गया । पोस्ट के बाद पहले अभिनव फिर रिपुदमन पचौरी और फिर राकेश खंडेलवाल जी के फोन आए तो मन भीग गया । अब कुछ ठीक लग रहा है ।
बहर :- बहर के बारे में मैं कुछ तो प्रारंभ कर चुका ही हूं आज कुछ और आगे की बातें करते हैं ।बातें ये कि किस प्रकार से रुक्नों की तरतीब के आधार पर आप किसी बहर का नाम निकालते हैं कि ये वही बहर है और फिर उस पर काम प्रारंभ करते हैं कि अब आगे क्या होना है । चलिये सबसे पहले तो हम ये ही जानने का प्रयास करते हैं कि रुक्नों की संख्या के आधार पर बहरों के नाम किस प्रकार से तय किये जाते हैं । एक बात और मैं बताना चाहता हूं कि शेरों को कहीं पर बैत भी कहा जाता है । और उसी के कारण भोपाल और उसके आस पास के इलाकों में एक प्रकार का मुकाबला किया जाता था जिसको चारबैत कहा जाता था । दरअस्ल में डफ लेकर दो टोलियां बैठ जातीं थीं और फिर सवाल जवाब के क्रम में ये मुकाबला होता था ।
मुसमन :- यदि किसी मिसरे में कुल मिलाकर चार रुक्न हों अर्थात पूरे शेर में आठ रुक्न हों तो उसको कहा जात है कि ये मुसमन बहर है । अब उसका नाम और कुछ होगा पर उसको एक उपनाम तो मुसमन मिल ही चुका है और मुसमन ये बताता है कि आपके शेर के ही मिसरे में चार रुक्न हैं ।
उदाहरण :-
ना ख़ुदा है हमसे राज़ी ना ये बुत ही हमसे ख़ुश हैं
रहे यूं ही बेठिकाने ना इधर के ना उधर के
1 | 2 | 3 | 4 |
फा ए ला तु | फा ए ला तुन | फा ए ला तु | फा ए ला तुन |
ना खु दा ह | हम स रा जी | ना य बुत ह | हम स खुश हैं |
रह यू ह | बे ठि का ने | ना इ धर क | ना उ धर के |
अब इसको देखें तो कुल मिलाकर चार रुक्न हैं फाएलातु-फाएलातुन-फाएलातु-फाएलातुन चूंकि चार रुक्न हैं अत: ये तो तय हो ही गया कि इसके नाम में और के साथ साथ मुसमन शब्द का भी प्रयोग करना होगा और मुसमन का प्रयोग होते ही आप समझ जाऐंगें कि चार रुक्न वाले मिसरे हैं इस ग़ज़ल में । इस बहर का नाम वैसे है बहरे रमल मुसमन मशकूल अब ये रमल और मशकूल क्या है ये बात हम बाद में देखेंगें । पर ये जान लें कि इसके नाम में अब मुसमन लगेगा । दरअस्ल में बहरों के नाम बड़े वैज्ञानिक तरीके से रखे गये हैं ताकि नाम सुन कर ही आपको समझ में आ जाए कि कितनी मात्रा वाली ग़ज़ल और किस तरतीब में जमी हुई मात्राओं की बात हो रही है ।
मुसद्दस :- वह शेर जिसके हर मिसरे में तीन रुक्न आ रहे हों तो उसको कहा जाता है कि ये बहर मुसद्दस बहर है । अब ये बात अलग है कि उस बहर का वास्तव में नाम कोई और ही होगा पर उसे एक उपनाम और भी मिलेगा जिसको कहा जाएगा मुसद्दस ।
उदाहरण :-
तेरे शीशे में मय बाकी नहीं है
बता क्या तू मेरा साकी नहीं है
1 | 2 | 3 |
मु फा ई लुन | मु फा ई लुन | फ ऊ लुन |
ति रे शी शे | म मय बा की | न हीं है |
ब ता क्या तू | मि रा सा की | न हीं है |
अब यहां पर क्या हो रहा है कि रुक्नों की संख्या गिर कर तीन हो गई है और ये जो तीन रुक्न हैं मुफाईलुन-मुफाईलुन-फऊलुन उनके आधार पर ही इस ग़ज़ल को कहा जाएगा कि ये मुसद्दस बहर परहै । नाम तो इसका बहरे हजज़ मुसद्दस महजूफ अल आखिर है पर इसके नाम में लगा हुआ जो मुसद्दस शब्द है वो हमे ये बतात है कि इस बहर में तीन रुक्नों वाले मिसरे हैं । बहर किसी भी प्रकार की हो अगर उसके नाम के साथ लगा है मुसद्दस तो ये जान लें कि रुक्न तीन हैं ।
आज के लिये इतना ही बहुत है कल आगे का काम करेंगें । इन दिनों बहुत ठंड पड़ रही है और एक मेरा जो नियम है वो आज मुझे लग रहा था कि बरसों का नियम आज टूटा । मैं सुबह पांच बजे उठकर साल भर ही ठंडे पानी से स्नान करता हूं पर आज की ठंड तो कुछ ऐसी थी कि मुझे एक बाररगी तो सोचना ही पड़ा कि गरम पानी ले लूं क्या फिर याद आया कि प्रतिकूल परिस्थिति में ही तो परीक्षा होती है । परीक्षा भी मानो आज ही कड़ी थी रोज तो ट्यूबवेल का पानी होता था पर आज तो वो भी नहीं था रात का रखा हुआ बर्फिला पानी था । खैर स्नान भी हुए और जम कर हुए । पर इस बार की ठंड तो बाप रे बाप ।
बात समझ मे आ गई गुरुवर! जहाँ चार रुक्न हो वहाँ मुसमन और जहाँ तीन रुक्न हो वहाँ मुसद्दस....! और मुसकन या मुसद्दस देख के समझा जा सकता है कि बहर में कितने रुक्न है....!
जवाब देंहटाएंजी ....
जवाब देंहटाएंऔर ये दो शेर.... आपके दीए गए मिसरे पर...
जवाब देंहटाएंलुत्फ़े-खंजर मिला दिल को कहा कुछ जान बाकी है
बता तरकश में तेरे तीर कितने और बाकी हैं
बड़े जनमों से तड़पे हैं हुस्नवर बज़्म को मेरी
कि मिलता दूध सदा पीने यहाँ बरहम ही साकी हैं
रिपुदमन पचौरी
दो मिसरों में कुछ बदलाव किए हैं :-
जवाब देंहटाएंलुत्फ़-ए-खंजर उठा दिल ने कहा कुछ जान बाकी है
बता तरकश में तेरे तीर कितने और बाकी हैं
बड़े जनमों से तड़पे हैं हुस्नवर बज़्म को मेरी
कि मिलता दूध यहाँ पीने सदा, बरहम जो साकी हैं
:)
सुबीर भाई,हिन्द-युग्म पर कक्षा मे आना शुरू किया है...बहुत बिजी थी...माफ़ी चाहती हूँ...यही समय होता है मेरे बिजिनेस का ज्यादा समय नेट के लिये मिलता नही है...
जवाब देंहटाएंYes Sir
जवाब देंहटाएंYes Sir
जवाब देंहटाएंसुबीर जी:
जवाब देंहटाएंपिछले कई दिनों से हाज़िरी नहीं लगाई लेकिन पढ ज़रूर रहा हूँ आप का लिखा हुआ ।