शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

फिर कुछ आनंद के पल जुड़े हैं, कल गौतम राजरिशी और संजीता की शादी की वर्षगांठ है, रविकांत पांडे के आंगन में गत रविवार को एक नन्‍हीं परी का आगमन हुआ, बधाई, बधाई

वीनस का मेल मिला है कि ग़ज़ल की कक्षाएं क्‍यों बंद हैं । मेरे विचार में ग़ज़ल की कक्षाएं अभी भी चल रही हैं और अभी जो चल रहा है वो अभ्‍यास कार्य चल रहा है । तरही के माध्‍यम से अभ्‍यास किया जा रहा है और उसी दौरान ही सीखा भी जा रहा है । चूंकि काफी कार्य हो चुका है बहरों को लेकर इसलिये अब अभ्‍यास करना जरूरी है । तरही के माध्‍यम से वहीं लिखते समय सीखने की एक प्रक्रिया होती है । ये जो प्रक्रिया होती है इसके द्वारा काफी कुछ सीखने को मिल जाता है । ग़लतियां पता चलती हैं और दूसरों ने क्‍या अच्‍छा किया ये जानने को मिलता है । इस बार फिर से जो नये साल का तरही होने को है उसमें एक बिल्‍कुल नयी बहर दी जायेगी । और तरही के दौरान ही उस बहर के बारे में काफी जानकारी दी जायेगी ।

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गौतम राजरिशी और संजीता  इन दोनों के विवाह की कल 28 नवंबर को वर्षगांठ है । ये तो मुझे मालूम है कि दोनों ने प्रेम विवाह किया है किन्‍तु बाकी की कथा मुझे नहीं मालूम । चूंकि अनुज है इसलिये मर्यादाओं के चलते पूछ भी नहीं सकता । संजीता से पिछले दिनों कई बार बात हुई । और ये ज्ञात हुआ कि गौतम बहुत सौभाग्‍यशाली है कि उसे एक बहुत ही समझदार और धैर्यवान जीवन साथी मिला है । गौतम के बारे में ये मैं जानता हूं कि उसे ये पता है कि रिश्‍तों का क्‍या अर्थ होता है । जीवन में जो भी रिश्‍तों का अर्थ समझ जाता है वो हर क्षण का आनंद लेता है । गौतम रिश्‍तों और वस्‍तुओं में अर्थ समझता है जानता है । ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं ।

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और नन्‍हीं तनया इस पूरक का फल है ।  गौतम और संजीता  इन दोनों को बहुत बहुत शुभकामनाएं इस गाने के माध्‍यम से 

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विकांत पाण्‍डे और बहूरानी  आनंदित हैं क्‍योंकि उनके घर एक नन्‍हीं परी का आगमन पिछले शनिवार अर्थात 21 नवंबर की रात्रि को हुआ है । रवि के लिये वर्ष 2009 सुखद रहा है क्‍योंकि इसी वर्ष विवाह हुआ और इसी वर्ष नन्‍हीं का आगमन भी हुआ है । समाचार ये है कि मां और बेटी दोनों ही स्‍वस्‍थ हैं तथा दोनों का घर आगमन हो चुका है । बधाइयां हो ढेर सारी । कंचन बुआ सबसे पास में हैं सो वे जाकर हम सबकी तरफ से बधाइयां प्रतयक्ष में देने का और नन्‍हीं परी को सबकी तरफ से आशीर्वाद देने का कार्य संभलें । ( बस ये डर है कि इन सबमें वो नन्‍हीं भी बुआ की तरह से बातूनी न हो जाए ) दोनों को बधाइयां इस गाने के माध्‍यम से ।

और अंत में ये कि दीपावली का तरही मुशायरा चूंकि एक आनंद का पर्व था सो उस मुशायरे में कोई हासिले मुशायरा छांटने का काम नहीं किया जा रहा है । सबने दीपावली को लेकर काम किया था और बहुत ही अच्‍छा किया था । अब जो तरही होना है वो होना है नये साल को लेकर । और उसके लिये बहर भी सोच ली है कि अभी तक मुतकारिब बहर पर बहुत काम नहीं हुआ हे सो इस बार का मिसरा बहरे मुतकारिब पर ही होगा । मिसरा बनाने का काम चल रहा है और नये साल के स्‍वागत पर ही कोई मिसरा बनाया जायेगा । बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम पर यदि आपके मन में कोई मिसरा स्‍वयं का बनाया हुआ हो तो भेजें । चूंकि हम स्‍थापित ग़ज़लों के मिसरे लेना बंद कर चुके हैं इसलिये अपने बनाये हुए मिसरे ही भेजें । बहरे मुतकारिब के बारे में आप जानते ही होंगें कि ये 122 या फऊलुन के स्‍थायी वाली बहर है । बहर का एक लोकप्रिय गीत मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोये  या नमामी शमीशान निर्वाण रूपं है । 122 के स्‍थायी वाली बहर है सो मुसमन सालिम में 122-122-122-122 का विन्‍यास होगा । तिस पर ये कि नये साल के आगमन या स्‍वागत की बात हो । पुराने साल के विदा की बात हो, जीवन की बात हो, दर्शन की बात हो । आपके भेजे हुए मिसरों में से ही एक मिसरे को तरही के लिये चयन किया जायेगा । उदाहरण के लिये मिसरा कुछ यूं हो सकता है नया साल द्वारे पे आकर खड़ा है ।

शनिवार, 21 नवंबर 2009

आज राकेश खंडेलवाल जी और आदरणीय मधु खंडेलवाल जी की शादी की वर्षगांठ है उन्‍हें बधाई । कल यानी 22 नवंबर को लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है उनको भी बहुत बहुत बधाइयां ।

नवंबर का महीना बहुत से आयोजनों का महीना होता है ।कल परी का जन्‍मदिन था । आज आदरणीय राकेश जी और मधु भाभी की शादी की वर्षगांठ है और कल लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है । सो मैंने बीच का दिन तय किया पोस्‍ट लगाने के लिये । परी का जन्‍म दिन कल मनाया गया । अंकित सफर इन दिनों भोपाल में है सो अंकित का आगमन भी हुआ । आगमन क्‍या हुआ परी ने बाकायदा डरा धमका कर उसे सीहोर बुला लिया । परी और पंखुरी इन दोनों की भारी दादागिरी चलती है । नीरज जी जिस प्रकार की ग़ज़लें कभी कभी लिखते हैं न मुम्‍बइया टाइप की उस टाइप की दादागिरी चलती है । तो परी ने बाकायदा डरा कर अंकित को अपने जन्‍मदिन पर बुलाया । तो देखिये उसी अवसर के चित्र ।

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राकेश खंडेलवाल जी और आदरणीय मधु खंडेलवाल जी की शादी की वर्षगांठ है आज ।

21 नवंबर 

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आदरणीय राकेश जी और मधु भाभी जी, राकेश जी बिटिया डॉ आकांक्षा खंडेलवाल के साथ

मैं उनको गीतों का सम्राट कह कर बुलाता हूं । मुझे लगता है कि आदरणीय राकेश जी एक पूरी परंपरा को लेकर चल रहे हैं अपने गीतों में । वो परंपरा जो माधुर्य की है । वो परंपरा जो कोमल शब्‍दों की है । वो परंपरा जो भारतीय गीतों की है । राकेश जी के गीत हर बार एक नया रूप लेकर आते हैं । मैं उनका बड़ा फैन हूं । आज उनकी विवाह  की वर्ष गांठ है । आदरणीय मधु भाभी जी और राकेश जी को ग़ज़ल की पूरी पाठशाला के तरफ से बहुत बहुत बधाइयां हों । दूसरे चित्र में आदरणीय राकेश जी की बिटिया डॉ आकांक्षा खंडेलवाल दिखाई दे रही हैं । राकेश जी को जितना जाना है उससे ये तो कह ही सकता हूं कि राकेश जी एक बहुत ही संवेदनशील इन्‍सान हैं । वे रिश्‍तों को निभाना बहुत खूब जानते हैं । जब भी मेरे ब्‍लाग पर कभी दस पन्‍द्रह दिन कोई पोस्‍ट नहीं लगती है जो सबसे पहला फोन उनका ही आता है ' पंकज जी स्‍वास्‍थ्‍य ठीक है ' । वे गीतों के मामले में मेरे आदर्श हैं । उनके जैसा लिखना हर किसी का स्‍वप्‍न होता है । एक बार फिर ढेरों शुभकामनाएं ।

कल लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है

22 नवंबर

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कल यानि 22 नवंबर को मेरी एक बड़ी बहन आदरणीय लावण्‍य दीदी साहब का जन्‍मदिन है । आदरणीय दीदी साहब के संस्‍मरण जादू जगाने का काम करते हैं । उनके ब्‍लाग पर उनके लिखे हुए संस्‍मरण पढ़ने आता हूं और बस उन्‍हीं में उलझ कर रह जाता हूं । मैने उनसे हमेशा ही अनुरोध किया है कि वे संस्‍मरणों की एक पुस्‍तक अवश्‍य लिखें । डोंगरी कवियित्री आदरणीय पद्मा सचदेव जी और लावण्‍य दीदी साहब इन दोंनों के संस्‍मरण लेखन की कला अद्भुत है । दीदी साहब बहुत अच्‍छी कवियित्री भी हैं । आपकी कविताओं में भारतीय स्‍वर हमेशा विद्यमान होते हैं । मुझे लावण्‍य दीदी साहब से हमेशा ही ढेर सा स्‍नेह मिला है । कल उनका जन्‍मदिन है सो पूरी ग़ज़ल की पाठशाला की तरफ से उनको ढेर सारी शुभकामनाएं ।

ग़ज़ल की कक्षाएं कुछ रुकी हैं क्‍योंकि इन दिनों प्रकाशन की पांच पुस्‍तकों पर एक साथ काम चल रहा है । फिर भी जल्‍द ही आगे का काम प्रारंभ होगा । और हां नये साल का तरही मुशायरा भी प्रारंभ होना है । उसके लिये मिसरा भी दिया जाना है । तो आज तो आप सब दीजिये राकेश जी और मधु भाभी को शुभकामनांए । और कल आदरणीय दीदी साहब से केक खाने को तैयार रहिये । और चलते चलते देखिये परी पंखुरी का स्‍कूल के वार्षिक उतसव में किया गया नृत्‍य का चित्र ।

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शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

"वक्त की पाठशाला में एक साधक"-श्री समीर लाल ’समीर' , बिखरे मोती की समीक्षा सुप्रसिद्ध शायरा आदरणीया देवी नागरानी जी की क़लम से । पंकज सुबीर

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श्री समीर लाल समीर काव्‍य संग्रह बिखरे मोती समीक्षक देवी नागरानी जी

कलम आम इन्सान की ख़ामोशियों की ज़ुबान बन गई है. कविता लिखना एक स्वभाविक क्रिया है, शायद इसलिये कि हर इन्सान में कहीं न कहीं एक कवि, एक कलाकार, एक चित्रकार और शिल्पकार छुपा हुआ होता है. ऐसे ही रचनात्मक संभावनाओं में जब एक कवि की निशब्द सोच शब्दों का पैरहन पहन कर थिरकती है तो शब्द बोल उठते हैं. यह अहसास हू-ब-हू पाया, जब श्री समीर लाल की रचनात्मक अनुभूति ’बिखरे मोती’ से रुबरु हुई. उनकी बानगी में ज़िन्दगी के हर अनछुए पहलू को कलम की रवानगी में खूब पेश किया है-

हाथ में लेकर कलम, मैं हाले-दिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता, आप ही बहता गया.

यह संदेश उनकी पुस्तक के आखिरी पन्ने पर कलमबद्ध है. ज़िन्दगी की किताब को उधेड़ कर बुनने का उनका आगाज़ भी पाठनीय है-

मेरी छत न जाने कहाँ गई
छांव पाने को मन मचलता है!

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( श्री समीर लाल  को शिवना सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान करते श्री राकेश खंडेलवाल तथा श्री अनूप भार्गव )

इन्सान का दिल भी अजब गहरा सागर है, जहाँ हर लहर मन के तट पर टकराकर बीते हुए हर पल की आहट सुना जाती है. हर तह के नीचे अंगड़ाइयां लेती हुई पीड़ा को शब्द स्पष्ट रुप में ज़ाहिर कर रहे हैं, जिनमें समोहित है उस छत के नीचे गुजारे बचपन के दिन, वो खुशी के खिलखिलाते पल, वो रुठना, वो मनाना. साथ साथ गुजरे वो क्षण यादों में साए बनकर साथ पनपते हैं. कहाँ इतना आसान होता है निकल पाना उस वादी से, उस अनकही तड़प से, जिनको समीर जी शब्द में बांधते हुए ’मां’ नामक रचना में वो कहते हैं:

वो तेरा मुझको अपनी बाहों मे भरना
माथे पे चुम्बन का टीका वो जड़ना..

जिन्दगी में कई यादें आती है. कई यादें मन के आइने में धुंधली पड़कर मिट जाती हैं, पर एक जननी से यह अलौकिक नाता जो ममता कें आंचल की छांव तले बीता, हर तपती राह पर उस शीतलता के अहसास को दिल ढूंढता रहता है. उसी अहसास की अंगड़ाइयों का दर्द समीर जी के रचनाओं का ज़ामिन बना है-

जिन्दगी, जो रंग मिले/ हर रंग से भरता गया,
वक्त की है पाठशाला/ पाठ सब पढ़ता गया...

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पुस्‍तक का अमेरिका में विमोचन

इस पुस्तक में अपने अभिमत में हर दिल अज़ीज श्री पंकज सुबीर की पारखी नज़र इन सारगर्भित रचनाओं के गर्भ से एक पोशीदा सच को सामने लाने में सफल हुई है. उनके शब्दों में ’पीर के पर्वत की हंसी के बादलों से ढंकने की एक कोशिश है और कभी कभी हवा जब इन बादलों को इधर उधर करती है तो साफ नज़र आता है पर्वत’. माना हुआ सत्य है, ज़िन्दगी कोई फूलों की सेज तो नहीं, अहसासों का गुलदस्ता है जिसमें शामिल है धूप-छांव, गम-खुशी और उतार-चढ़ाव की ढलानें. ज़िन्दगी के इसी झूले में झूलते हुए समीर जी का सफ़र कनाडा के टोरंटो, अमरीका से लेकर हिन्दोस्तान के अपने उस घर के आंगन से लेकर हर दिल को टटोलता हुआ वो उस गांव की नुक्कड़ पर फिर यादों के झरोखे से सजीव चित्रकारी पेश कर रहा है अपनी यादगार रचना में ’मीर की गजल सा’-

सुना है वो पेड़ कट गया है/ उसी शाम माई नहीं रही
अब वहां पेड़ की जगह मॉल बनेगा/ और सड़क पार माई की कोठरी
अब सुलभ शौचालय कहलाती है,
मेरा बचपन खत्म हुआ!
कुछ बूढ़ा सा लग रहा हूँ मैं!!
मीर की गज़ल सा...!

दर्द की दहलीज़ पर आकर मन थम सा जाता है. इन रचनाओं के अन्दर के मर्म से कौन अनजान है? वही राह है, वही पथिक और आगे इन्तजार करती मंजिल भी वही-जानी सी, पहचानी सी, जिस पर सफ़र करते हुए समीर जी एक साधना के बहाव में पुरअसर शब्दावली में सुनिये क्या कह रहे हैं-

गिनता जाता हूँ मैं अपनी/ आती जाती इन सांसों को
नहीं भूल पाता हूँ फिर भी/ प्यार भरी उन बातों को
लिखता हूँ बस अब लिखने को/ लिखने जैसी बात नहीं है.

अनगिनत इन्द्रधनुषी पहुलुओं से हमें रुबरु कराते हुए हमें हर मोड़ पर वो रिश्तों की जकड़न, हालात की घुटन, मन की वेदना और तन की कैद में एक छटपटाहट का संकेत भी दे रहे हैं जो रिहाई के लिये मुंतजिर है. मानव मन की संवेदनशीलता, कोमलता और भावनात्मक उदगारों की कथा-व्यथा का एक नया आयाम प्रेषित करते हैं- ’मेरा वजूद’ और ’मौत’ नामक रचनाओं में:

मेरा वजूद एक सूखा दरख़्त / तू मेरा सहारा न ले
मेरे नसीब में तो / एक दिन गिर जाना है
मगर मैं/ तुम्हें गिरते नहीं देख सकता, प्रिये!!

एक अदभुत शैली मन में तरंगे पैदा करती हुई अपने ही शोर में फिर ’मौत’  की आहट से जाग उठती है-

उस रात नींद में धीमे से आकर/ थामा जो उसने मेरा हाथ...
और हुआ एक अदभुत अहसास/ पहली बार नींद से जागने का...

माना ज़िन्दगी हमें जिस तरह जी पाती है वैसे हम उसे नहीं जी पाते हैं, पर समीर जी के मन का परिंदा अपनी बेबाक उड़ान से जोश का रंग, देखिये किस कदर सरलता से भरता चला जा रहा है. उनकी रचना ’वियोगी सोच’ की निशब्दता कितने सरल शब्दों की बुनावट में पेश हुई है-

पूर्णिमा की चांदनी जो छत पर चढ़ रही होगी..
खत मेरी ही यादों के तब पढ़ रही होगी...

हकीकत में ये ’बिखरे मोती’ हमारे बचपन से अब तक की जी हुई जिन्दगी के अनमोम लम्हात है, जिनको सफल प्रयासों से समीर जी ने एक वजूद प्रदान किया है. ब्लॉग की दुनिया के सम्राट समीर लाल ने गद्य और पद्य पर अपनी कलम आज़माई है. अपने हृदय के मनोभावों को, उनकी जटिलताओं को सरलता से अपने गीतों, मुक्त कविता, मुक्तक, क्षणिकाओं और ग़ज़ल स्वरुप पेश किया है. मन के मंथन के उपरांत, वस्तु व शिल्प के अनोखे अक्स!!

उनकी गज़ल का मक्ता परिपक्वता में कुछ कह गया-

शब्द मोती से पिरोकर, गीत गढ़ता रह गया
पी मिलन की आस लेकर, रात जगता रह गया.

वक्त की पाठशाला के शागिर्द ’समीर’ की इबारत, पुख़्तगी से रखा गया यह पहला क़दम...आगे और आगे बढ़ता हुआ साहित्य के विस्तार में अपनी पहचान पा लेगा इसी विश्वास और शुभकामना के साथ....

शब्द मोती के पिरोकर, गीत तुमने जो गढ़ा
मुग्ध हो कर मन मेरा ’देवी’ उसे पढ़ने लगा

तुम कलम के हो सिपाही, जाना जब मोती चुने
ऐ समीर! इनमें मिलेगी दाद बनकर हर दुआ..

देवी नागरानी
न्यू जर्सी, dnangrani@gmail.com

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कृति: बिखरे मोती, लेखक: समीर लाल ’समीर’, पृष्ठ : १०४, मूल्य: रु २००/ ,
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, पी.सी. लेब, सम्राट कॉम्पलैक्स बेसमेन्ट, बस स्टैंड के सामने, सिहोर, म.प्र. ४६६ ००१

शिवना प्रकाशन की आगामी पुस्‍तकें : विरह के रंग- सीमा गुप्‍ता, चांद पर चांदनी नहीं होती- संजय चतुर्वेदी, खुश्‍बू टहलती रही- मोनिका हठीला, अनाम- दीपक मशाल

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

शिवना प्रकाशन सीहोर द्वारा युवा शायर अंकित सफर तथा कवियित्री मोनिका हठीला के सम्‍मान में काव्य गोष्ठी आयोजित, पढि़ये कार्यक्रम की एक चित्रमय रपट -पंकज सुबीर

दीपावली का त्‍यौहार बीत गया और एक वर्ष के बीत जाने के संकेत मिल रहे हैं । दीपावली का तरही मुशायरा बहुत अच्‍छा हुआ है तथा श्रोताओं ने खूब आनंद लिया । दादा भाई आदरणीय महावीर जी का आदेश था कि अज्ञात को सामने आना चाहिये सो उस आदेश का पालन कर रहा हूं । वैसे तो आप सब ने ही पता लगा लिया था कि वो अज्ञात कौन है लेकिन फिर भी केवल स्‍वीकृति कि वो अज्ञात आपका ये मित्र ही था।

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अंकित सफर का सीहोर आगमन हुआ, मैं समझता था कि जो लोग फोटो में सुंदर दिखते हैं वे  वास्‍तव में सुंदर नहीं होते, अंकित ने ये धारणा तोड़ी । अंकित सफर और मोनिका हठीला के सम्‍मान में एक गोष्‍ठी का आयोजन किया गया जिसकी रपट नीचे संलगन है । इसी बीच ज्ञात हुआ है कि परम आदरणीय श्री रवीन्‍द्र कालिया जी को आधारशिला में प्रकाशित  महुआ घटवारिन कहानी इतनी पसंद आई कि उन्‍होंने हंस में प्रकाशित श्री भारत भारद्वाज जी के आलेख के साथ उसे नया ज्ञानोदय के नवंबर अंक में प्रकाशित किया है । इस प्रकार ज्ञानोदय के लगातार दो अंकों अक्‍टूबर ( क्‍या होता है प्रेम ) तथा नवंबर ( महुआ घटवारिन ) में आपके इस मित्र को प्रकाशित होने का अवसर मिला है । और ये भी कम होता है कि किसी पत्रिका में प्रकाशित एक कहानी का पुनर्पाठ इतनी जल्‍दी किसी प्रतिष्ठित पत्रिका ने किया हो तथा अन्‍य पत्रिका में प्रकाशित समीक्षा को भी प्रकाशित किया है । नैनीताल में आयोजित समकालीन कहानी के कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध आलोचक श्रीमती साधना अग्रवाल जी ने इसी कहानी पर अपना लम्‍बा आलेख पढ़ा तथा उस पर काफी चर्चा भी हुई ।  ये सब आपकी दुआएं हैं शुभकामनाएं हैं आप सबका आभार । और अब पढि़ये रपट । ( विशेष बात ये है कि तीन शायरों ने दीपावली के तरही की ग़ज़लों का पाठ किया जिनमें अज्ञात शायर भी शामिल था । )

साहित्यिक संस्था शिवना द्वारा दीपावली मिलन समारोह का आयोजन कर एक काव्य गोष्ठी आयोजित की गई । काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता सृजन साहित्य परिषद के अध्यक्ष श्री बृजेश शर्मा ने की । आयोजन में स्थानीय तथा बाहर से पधारे अतिथि कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया ।

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स्थानीय पीसी लैब पर आयोजित कार्यक्रम में सर्वप्रथम अध्यक्ष द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रावलित करके मां सरस्वती का पूजन अर्चन किया गया । सुप्रसिध्द कवियित्री मोनिका हठीला ने मां सरस्वती की वंदना प्यार दे दुलार दे का सस्वर पाठ किया । युवा कवि तथा नई विधा के हस्ताक्षर लक्ष्मण सिंह चौकसे ने अपनी छंद मुक्त विधा की कुछ कविताओं का पाठ किया ।

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वरिष्ठ कवि हरिओम शर्मा दाऊ ने पल पल अपलक निहारा करेंगें सहित कई गीत प्रस्तुत किये जिनको श्रोताओं ने खूब सराहा । युवा व्यंग्य कार जोरावर सिंह ने राजनीति पर कटाक्ष करते हुए अपनी रचना सात पीढ़ियों का इंतजाम कर लीजिये पढ़ कर दाद बटोरी । पत्रकार शैलेष तिवारी ने अपनी व्यंग्य रचना कल्लू तांगे वाला के माध्यम से यातायात पुलिस की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया ।

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सुमधुर गीतकार रमेश हठीला ने कई छंद  तथा गीत पढ़े । केश यमुना की लहर रूप तेरा ताजमहल बनाने वाले ने ली तुझसे अजंता की शकल जैसे  सुप्रसिध्द गीतों को उन्होंने सस्वर प्रस्तुत किया ।

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युवा शायर डॉ. मोहम्म्द आज़म ने अपनी ग़ज़ल हम हथेली पर सरसों जमाते रहे साथ यूं जिंदगी का निभाते रहे  के शेरों को अत्यंत प्रभावशाली अंदाज में प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा ।

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पंकज सुबीर ( अज्ञात ) ने अपनी ग़ज़ल धर्मधारी युधिष्ठिर हर इक दौर में दांव पर द्रोपदी को लगाते रहे सहित अपना गीत भारत कहानी पढ़ा ।

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मुंबई से पधारे युवा शायर अंकित सफर ने अपनी कई सारी ग़ज़लें पढ़ कर समां बांध दिया । उनकी ग़ज़लों कुछ न कुछ मैं सीखता हूं अपनी हर इक हार से, हजारों ढूंढती नजरें कहां आखिर नजर वो इक को श्रोताओं ने खूब पसंद किया ।

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भुज से पधारी कवियित्री मोनिका हठीला ने अपने कई मुक्तक तथा कई गीत पढ़े । यहां हर शख्स हरजाई नमक लेकर के बैठा है हरे जख्मों को भूले से किसी को मत दिखाना तुम जैसे शेरों को पसंद किया गया ।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सृजन साहित्य परिषद के अध्यक्ष तथा व्यंग्यकार बृजेश शर्मा ने भी अपनी ग़ज़लों का पाठ किया । श्री शर्मा ने श्रोताओं के अनुरोध पर अपनी छंदमुक्त व्यंग्य रचनाओं का भी पाठ किया । उनकी जीवन दर्शन पर प्रस्तुत ग़ज़लों को श्रोताओं ने विशेष रूप से सराहा । अंत में आभार शिवना के सुरेंद्र सिंह ठाकुर ने व्यक्त किया ।

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कार्यक्रम में धर्मेंद्र कौशल, अब्दुल कादिर, सनी गोस्वामी, सुधीर मालवीय सहित अन्य श्रोता गण उपस्थित थे ।

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ग़ज़ल की कक्षा में अंकित की भौतिक उपस्थिति

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