मंगलवार, 26 मार्च 2013

बुढि़याती कवयित्रिओं के साथ आज मनाते हैं होला । बुढि़याती शब्‍द का प्रयोग इसलिये किया गया है कि इसमें से कुछ बाकायदा बूढ़ी हैं तो कुछ मानने को तैयार नहीं हैं की वो बूढ़ी हैं ।

हम आप सब के प्रेम पियारे भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के बोलिस रहिन । कल का दिन जो कुछ हुआ सो हुआ लेकिन वैसा कुछ भी आज नहीं होना चाहिये । कल बहुत लोग भंगिया पी पी के बहुत ऊधम मचायरहे । सो कल सारे दिन हमारा माथा    का नाम कपाल टनटनाया रहा ।जवान छोकरे छोकरियां दिन भर इत्‍ती मस्‍ती किये कि बस । आज कुछ अच्‍छा होबे की उम्‍मीद हेगी । काय कि आज तो सबरे के सबरे बुढि़याए लोग आ रय हैं । जोन कछु बुढियाय नहीं लग रहे हेंगे तोन के बारे में जान लो कि वो सब ब्‍यूटी पार्लर में से आ रहे हैं । अपनी अपनी उमर घटवा के । कोनो के बोटेक्‍स के अंजिक्‍शन लगे हैं तो कोनों ने फेस लिफटवा करवाई है । कोनो कोनो ने तो .................. जाबे दो सेंसर हो जाएगा, हमारा ये जो है ये फेमिली शो है । एक्‍कोदम नीचे जो द्विजवा को फुटवा छपा रहिन उका देख के आपको समझ में आयेगा कि हम का कहत कहत छो‍ड़ दिहिस रहिन । होली आय गइस रहिन । सो अब का करिस । खूब मौज मस्‍ती करिस । भांग तो दुइ दिन पहले की बात रहिन आज तो साक्षात ऊ का बारी है । ऊ का, समझ नहीं पडिस, अरे ऊ ही जेका सब लोग महुआ की सुपुतरी कहत रहिन । तो आज तो भैया जै बात जै बात होई के रहिस ।

आज के सगरे बुढऊ लोगों को परिचय भी संग में रहिस रहिन । सारे बुढ़ऊ बुढियाती उमर में गन्‍नाय रहे हैं । कोनो की भी मती पूछो सगरे के सगरे आग खाओ अंगारे @@@@ हो रहे है । कोऊ से कछु कहने जाओ तो जोगी रा सारारारा कह कह के होरी की आड़ में अपने मन की कर रहे हैं । सच कहा है किसी ने' होली में दो से बचो बूढा बच्‍चा जात' । बच्‍चा  तो मान जाय है पर बूढा, ऊ तो ससुर तजरुबे वाला होत रहिस । ऊ तो अपनी उमर के आड में सबे कछु करबे चाही ।

होली है भई होली है बुरा न मानो होली है ।

केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

सगरे लोग लुगाइन को होली की शुभकामनाएं, केसरिया होली है, लाल ललाई होली है, पीली पीली होली है, नीली नीली होली है, हरी हराई होली है, गुलो गुलाबी होली है । होली है भई होली है । होली है भई होली है ।

DWIJENDRA DWIJ

द्वजेन्‍द्र द्विज

ई मुटल्‍ली जोन आपको दिखिस रहिन ई सीधे पहाड से सीधे चल्‍ली आ रहि स रहिन, ई मुटल्‍ली जो है ई भी घजल लिखबे की शौकीन रहिस । आप ई की इस्‍टाइल पर भिल्‍कुल भी नहीं जाइस । बुढिया गई है पर इस्‍टाइल छोडबे की नहीं । किछु दिना पहले बुढिया का चिश्‍मा उतर गया । तो का भया सुसरी बिना चिशमा के भी घजल लिख रइ है और धना धन लिख रही है । अउर का परिचय दिया जाय । बस इत्‍ता सिमझ लो कि आप्‍पो आप को ही खूब बडी साइरा सिमझती है । का है कि अपने देस में गलतफहमी पे कोउ टैक्‍स जो नहीं है । तो आइये सुनते हैं बुढिया की घजल ।


होली है  यारो, मेरा  चश्मा हुआ गुलाबी
‘सच्ची में’ कह रहा हूँ देखा-सुना गुलाबी
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
होली में रंग लेकिन सब पर चढ़ा गुलाबी
तू है गुलाब जैसी , तेरी हर अदा गुलाबी
तू इक  हवा गुलाबी, तू इक घटा गुलाबी
होली में हो गया है मेरा हौसला गुलाबी
मेरे लिए भी माँगो कोई दुआ गुलाबी
अपने शबाब पर है अब तो हवा गुलाबी
जा, जाम ला गुलाबी, मुझको पिला गुलाबी
अब जब कि हो गई है सारी फ़ज़ा गुलाबी
मेरी जान आके मुझसे चक्कर चला गुलाबी
तेरी बेरुख़ी से मैं भी, मुरझा के रह गया हूँ
आकर बरस तू मुझपर, मेरी घटा गुलाबी
तू ‘Jet-black’ लेकिन रह-रह के सोचता हूँ
किस झोंक में था मैंने तुझको कहा गुलाबी
तेरे  सामने  मैं  सूखे  पत्ते-सा  काँपता  हूँ
मुझे बख़्श, जा गुलाबी , मुझे छोड़ जा गुलाबी
होली के दिन तो कोई ‘mono-colour’ नहीं है
‘Multi-colour’ है दुनिया , सबपे फबा गुलाबी
बाक़ी मेरे लिए भी ‘choice’ नहीं है कोई
आँखें हैं ‘pink’ उसकी मैं भी हुआ गुलाबी
सत्तर का हो गया पर बदला नहीं है ससुरा
दादा भी बन गया है लेकिन रहा गुलाबी
चाँटा जड़ा जब उसने आँखों में रंग नाचे,
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
वो भाँग की पिनक में था गुलबदन का साया
उतरी जो भाँग उसकी , भैंसा मिला गुलाबी
‘सज्जन’, ‘ख़याल’, ‘पंकज’, ‘नीरज’, ‘नवीन’, ‘सौरभ’,
‘नवनीत’ ‘अर्श’, ‘राही’ सब पर चढ़ा गुलाबी
‘वीनस’, ‘मधुर’, ‘सुलभ’, का ‘राजेन्द्र’, ‘नासवा’ का
‘राजीव’ का, ‘उड़न’ का, चक्कर चला गुलाबी
होली का है वो अन्धा, है हाल उसका मन्दा,
जाओ निकालो, ‘द्विज’ को काँटा चुभा गुलाबी

अरे दद्दा हम ई बतावा तोभूल ही गये कि बुढिया तो इंगरेजी की परफोसर है । मुंहजली देखो तो कैसे टकाटक इंगरेजी के शब्‍द फैंक रही है । बुढा गई है पर अभी भी गुलाबी चक्‍कर चलानें को दिल कूद कूद रहा है । कोनो भी कोइ दाद वाद नइ देगा इत्‍ती बुरी घजल पे । जो भी दाद देने की कोसिस करेगा ऊ के मुंह में दो किलो गोबर के कंडे जुल्‍मी सिपइया के हाथ से ठुंसवाये जाएंगे ।

सूचना - खबर आई रहिस है कि दुबई में रहबे बारे एक कोनो दिगम्‍बर नासवा के सामने बड़ी दिक्‍कत हो गई है । काय के दुबई की सरकार ने आर्डर दिये हैं कि जिसका भी जो भी नाम होगा वो अपने नाम के हिसाब से ही रहेगा । मतबल ये कि जेका नाम खुशबू है ऊका महकते रहना होगा। तो दिगम्‍बर नासवा के सामने परेसानी जो है वो आप उनके नाम का अर्थ निकाल के समझ सकते हैं । जिन किसी को इस मुश्किल का हल मिले वो अवश्‍य सूचित करें । सूचना समापत भई ।

MADHUSOODAN MADHUR

मधुभूषण शर्मा मधुर

काय बुढऊ का एको बार मधु से काम नहीं चल रओ हतो जो तुम दो बार मधु लगा लिये । एको बारे आगे मधु और एको बार पीछे मधु । बुढापे में जे ही हो जाविस रहिन । अब कित्‍ती बार भी मधु लगा लो चाहे तो दो बार आगे और दो बार पीछे लगा लो पर किछु भी नहीं होने वाला । जब उमर का ही मधु सूख जाये तो नाम के मधु से का होविस रहिन । हमहू का है लगता रहो मधु मधु मधु ।


होली का आज दिन है, मौसम हुआ गुलाबी
हुड़दंग वो मचाओ, कर दो फज़ा गुलाबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
रंगे-रदीफ़ में हो हर काफिया गुलाबी
होली का ये मिलन तो कुछ हो गया गुलाबी
आगे भी क्या चलेगा ये सिलसिला गुलाबी
कुछ यूं हुए हैं अपने मनमोहना गुलाबी
उन्नीस छू लिया तो हर हादसा गुलाबी
होली का आज दिन है, मौसम हुआ गुलाबी
हुड़दंग वो मचाओ, कर दो फज़ा गुलाबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
रँगे-रदीफ़ में हो हर काफिया गुलाबी
होली का ये मिलन तो कुछ हो गया गुलाबी
आगे भी क्या चलेगा ये सिलसिला गुलाबी
कुछ यूं हुए हैं अपने मनमोहना गुलाबी
उन्नीस छू लिया तो हर हादसा गुलाबी
सरकार भी है सहमत दो दिल अगर हैं सहमत
हो के रहेगी अब तो आबो-हवा गुलाबी
करती है सी-बी-आई हल्के से क्या इशारा
माया हो या मुलायम, हर चेहरा गुलाबी
मोदी का देख जादू हो कांग्रेस तो पागल
भगवां से हो रही पर क्यूं भाजपा गुलाबी
जीजा के संग साली जब खेलती है होली
फिर हर ख़ता गुलाबी, फिर हर सज़ा गुलाबी
चमका दिए हैं उसने होली के रंग सारे
गालों पे छा गयी जो शर्मो-ह्या गुलाबी
रंगीन हैं, 'मधुर' हैं, मेरी तमाम राहें
मंज़िल ने खुद किया है यूं रास्ता गुलाबी

ओय होय का शेर हेडा है सहमती से गुलाबी गुलाबी होने का । बुढापे में जे ई तो मजा है किछु करो न करो पर तसव्‍वुर तो खूबेकर सकत हो । जे बात और जोड लो कि बस तसब्‍बुर ही कर सकत हो । बुढाप में भगवा रंग की बजाय गुलाबी हो रय हो । काय के मधुर और काय का मधु । बुरी गजल, जो लोग कान से बहरे होंऔर जिनने किछु भी नहीं सुना हो वो दाद दे सकत हैं । और किसी ने दाद दी तो ऊ के दोनों कानों में दो दो बूंद कडवा तेल डलवाया जायेगा, दो बूंदजिंदगी की ।

सूचना - कनाडा की गवरमेन्‍ट ने अब एकनया कानून बनाया है कि अब वहां पर रहेन वाले सभी चांदुर रेलवे ( गंजे ) को दुई दुई घंटा खरबूज के खेत में खडा रहबे का परी । का है कि ऊ से खरबूज में चमक आयेगी । का है कि चंदिया को देख के खरबूजा रंग बदलता है । ई घोष्‍णा से हमारे बीच के निरमल सिद्धू खुस भी हैं और परेसान भी । खुस काहे हैं और परेसान काहे ई आप गेस लगाइसे । सूचना समापत ।

HASHMI JEE

मंसूर अली हाशमी 
ई इनका जोडे से खिंचा फोटो रहिस । तन्निक गौर से तो द‍ेखिये । कोनो बात निजर आई । नइ आई कोई बात नहीं । सोचते रहो । ई फोटो अपनी वरिष्‍ठ इमराना हाशमी, भूला किछु और नाम है । तो जो भी नाम हाबे हमका का है । नाम में का धरो है । का नाम में हाशमी लगा होने से सबे कोई इमरान हाशमी बन जाबे । इमरान हाशमी बनने के लिये कलेजा चाहिये सात सात और आठ आठ फेफडे ।

केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी
जिस रंग में तुझको देखा, मन हो गया गुलाबी.
अब कौन रंग डालू तू ही ज़रा बतादे
केसरिया,लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी ?
होली से पहले ही है छायी हुई ख़ुमारी
हर सूं ही दिख रहा है नीला,हरा, गुलाबी.
''केसरियालाल'', पीला; क्यूँ होता जा रहा है,
''सेठानी'' पर सजा जब नीला, हरा, गुलाबी.
तअबीर मिल रही है, रुखसार से हया की   
आईना हाथ में और चेहरा तेरा गुलाबी
केसरिया, लाल, नीला; अब खो रहे चमक है
सब्ज़ा* हुआ है पीला , 'मोदी' हुआ गुलाबी. 

सच बात तो यह है कि हमारे 'धर्म-निरपेक्ष' देश में होली खेलने का अवसर ही नहीं मिला !  बचपन में अपने बंद मोहल्ले में 'सादे पानी' से ही होली ज़रूर खेली.  क्योंकि दूसरी तरफ 'गंदी होली' [ गंदी इसलिए कि उसमे रंगों के अलावा 'गौबर' और 'गालियाँ' भी शामिल होती थी] खेली जाती थी. बच्चों को प्रदूषण से बचाने का ठेका तो हर समाज लेता ही है ! फिर किशोरावस्था आते-आते हम ज़्यादा अनुशासित हो चुके थे, सो सफ़ेद कपड़े पहन कर होली के दिन भी निर्भीक घूम लिया करते थे- यूं 'दाग-रहित'  रह लिये. जवानी में आर. के. स्टूडियो की होलीयाँ देख-देख कर [चित्रों में], लाड़ टपकाते रहे……….    
और अब बुढ़ापे में तो……।
क्या लाल, कैसा पीला, केसरिया क्या है नीला ?
सब कुछ हरा लगे है, सावन गया 'गुलाबी' !
''केसरियालाल'' पीला, कुरता भी है फटेला,
'नीला' हरी-भरी है, हर इक अदा गुलाबी.
फिर भी "होलीयाने" की कौशिश कुछ इस तरह की है :-
टकता है छत से बाबू, चेहरे पे है उदासी,
खाए गुलाब जामुन  नीचे गधा गुलाबी.
पिचकारी छूटती है, किलकारी फूटती है,
ढेंचू का सुर अलापे , देखो गधा गुलाबी.
[ठीक से तो पता तो नही पर होली के दिन गधों को कुछ विशेष महत्व प्राप्त हो जाता है, इसीलिए गधे महाराज की मदद ले ली है कि होली की इस गोष्ठी में शायद प्रविष्टि मिल जाये.
पुनश्च :    नीचे से १४ वीं पंक्ति में 'लार' की जगह "लाड़" टपक गयी है ! कृपया टिस्यू पेपर से साफ़ करले ! धन्यवाद.

जब आप को ही तरही में प्रविष्टि मिल गई तो आपको ये तो समझ ही जाना था क‍ि तरही में गधों के आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है । ऊ पे अलग से गधे का नाम लेने की कोनो जरूरत नहीं है । एक बात और कहिस का चाहे ऊ ये कि बुढापे में  ढेंचू का सुर मत लगाओ बुढिया, पता चलेगा कि कहीं का सुर कहीं लग जाय का रही । गंदे नाले का कसम खाय रही इत्‍ती बुरी गजल हम अपनी पूरी जिन्‍नगी में नहीं सुनी । जोन भी इस गजल पे दाद दे ऊका काली रात में खुजली वाले काले कुत्‍ते की सगी पत्‍नी काटे ।

सूचना- अब्‍बी अब्‍बी सूचना अई है कि बत्‍तीसगढ़ में एक डाग-टर को पुलिस ने धर पकडा है । सूचना मिली है कि डागटर का नाम कोनो संजय फंजय दानी है । पुलिस से पिरापत जानकारी के अनुसार डाक्‍टर मरीज को आपरेशन से पहले अपनी गजल सुना कर बेहाश कर रहा था । जब पुलिस वहां पहुंची तो डागटर एक मरीज को गजल सुना रहा था । पुलिस वाले पहले बेहोश हुए और बाद में उन्‍होंने डाकटर को पकडा । सूचना समापत भई ।

NAVNEET SHARMA

नवनीत शर्मा
शकल सूरत से कोनो भी बिल्‍कुल न समझे की ये बुढिया नहीं  है। हम पहले ही बता दिहिस रहिन कि इध्‍र कुछ बुढिया लोग किछु किछु  करवा करवा के आइस रहिन । ई बुढिया भी बहुत किछु छिपा के आई है । कोनो हमको बातइस रहिन कि ई बुढिया कोनो पत्‍तरकार वत्‍तरकार है । होइबे करी हमका का । अपनी पत्‍तरकारी उते ही रखियो इते तो भभ्‍भड की पत्‍तरकारी चले है ।

चाँटा भी क्या गुलाबी, घूँसा भी क्या गुलाबी
पड़ते दो हाथ  सूरज ,   तारा दिखा गुलाबी
देखा है दिल ने जबसे चेहरा तेरा गुलाबी
फिर बज उठा है दिल में इक दिलरुबा गुलाबी
मैं रंग ले के उनको रँगने गया तो बोलीं
‘चल फूट ले यहाँ से, आया बड़ा गुलाबी’
बेशक मैं साठ का हूँ मुझपे भी रंग फेंको
वो दौर ही अलग था जब मैं भी था गुलाबी
उसको किसी कलर की होगी भी क्योंग जरूरत
गुस्से में लाल रुख़ है,  वैसे भी था गुलाबी
होली की धुन में हमने मुखड़ा ही गुनगुनाया
कोरस में फिर गधों ने मंज़र किया गुलाबी
कनटाप इक दिया है उनके ब्रदर ने जबसे
खाना न खा सके हैं जबड़ा हुआ गुलाबी
कानों में, नाक में भी, बनियान तक हमारी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
दाँतों का ‘सेट’ दिखा कर बोले बुज़ुर्ग हमसे
है ये ‘मेमरी’ पुरानी , हुआ मैं भी था गुलाबी'
तुमने तो कल कहा था कोई नईं है घर पे
टपका ये फिर कहाँ से ‘भइया’ तिरा गुलाबी
दीवार फाँदनी थी उनके मकाँ की यारो
लेकिन फिसल गया तो उतरा नशा गुलाबी

काय के जब भी किसी को ठुकवाना होता है तो हम अपना भैया को अलमारी में छिपा देते हैं । और बाद में हमे अपने आसिक को  जूते से ठुकते हुए देख  भोत मजा आवत है । सो आप ठुके । मगर आपके गले की कसम गजल तो इत्‍ती बुरी लिखी है इत्‍ती बुरी लिखी है कि अक्षर अक्षर में से बास आ रही है । कोई भी दाद देने की कोसिस न करे । कोई भ पत्‍तरकारी के डर में जदी दाद देगा तो ऊका होली की गोद में प्रलाद की जगे पे बिठाया जायेगा ।

सूचना- महिन्‍द्रा एंड महिन्‍द्रा कम्‍पनी ने अपने यहां पर काम करने वाले मुकेश कुमार तिवारी की तनखा दुगनी कर दी है और सेलरी भी बढा दी है वेतन बढाने पर भीविचार चल रहा है । इनको अब फेक्‍ट्री में बैठ कर अपनी भोत बुरी बुरी गजलें सुनानी पडती हैं । जिससे मजदूर तेजी से काम करते हैं । काय कि जल्‍दी से काम करके....... भागो । सूचना समापत भई ।

NEERAJ GOSWAMI

नीरज गोस्‍वामी
जिनके बारे में आप सोच रहे होंगे कि जे माथे पर इलग से एक काली लट किधर से आई हे । तो जे जो काली लट है बुढिया के माथे पर जे तो काले करमों का परिणाम है । जे काले कुकर्म कभी भी दबते नहीं है । किसी न किसी उमर में फूट के बाहर आ ही जाते हैं । इ काली लट जो है इ सारी कहानी कह रही है ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
सारे लगा के देखे, तुझपे खिला गुलाबी
रहता था लाल हरदम, दुश्मन के खून से जो 
होली में प्यार से वो, खंज़र हुआ गुलाबी
काला कलूट ऐसा की रात में दिखे ना
फागुन में सुन सखी वो, लगता पिया गुलाबी
आँखों में लाल डोरे, पावों में हल्की थिरकन
तू पास हो तो मुझ पर, चढ़ता नशा गुलाबी
पैगाम पी का आया, होली पे आ रहे हैं
मन का मयूर नाचा, तन हो गया गुलाबी
कल तक सफ़ेद झक थी, जुम्मन चचा की दाढ़ी
काला किया लगा तब, है मामला गुलाबी
होली पे मिल के 'नीरज' इक दूसरे को कर दें
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

इमान से बुढिया ने अजुन तलक इत्‍ती बुरी गजल कभी नहीं सुनाई थी । बुरी तो पेले भी सुनाई पर इत्‍ती बुरी तो कोइ कदी नी थी । अइसन लगविस रहिन जइसन कि कोनो नीम की पत्‍ती को करेले का रस में मिला कर कुनैन का पानी छिडक छिडक के लिखी हो । दाद देने की कोनो जिरूरत नहीं है बुढिया की गजल पे । केवल दाद देने के लिये हमने किछु किन्‍नर बुलाय हैं जो आय हाय कह के दाद देंगे । सरोता में से कोई भी दाद देगा तो उसको भी किन्‍नरों में शामिल कर दिया जायेगा ।

सूचना- पाकिस्‍तान की सरकार ने भारत के इंजीनियर धर्मेंद्र कुमार सिंह की सेवाएं मांगी है । पाकिस्‍तान ने भारत की सीमा  पर एक बडा बांध बनाने के लिये ये सेवाएं मांगी हैं । गुप्‍तचर सूत्रों के अनुसार बांध बनते बनते ही टूट  जायेगा । और पाकिस्‍तान का मकसद पूरा हो जायेगा । सूत्रों के अनुसार इनके बनाये बांध उदघाटन के पहले ही धूम धडाम हो जाते हैं । पाकिस्‍तान के प्रस्‍ताव पर सरकार विचार कर रही है  । कुछ लोगों का कहना है कि दे दो बला टले । सूचना समाप्‍त हुई ।

RAKESH KHANDELWAL JEE

राकेश खंडेलवाल 
जे डुकरिया सीधे अमरीका से आ रइ हेगी । अमरीका में दो रंग के लोग रेते हैं । जे डुकरिया दूसरे रंग की है । कुछ सूचना मिली है कि जे डुकरिया ओबामा की साली है । कुछ का जे भी केना है कि ओबामा की भूतपूर्व प्रेमिका की सगी लडकी है ये । परिचय तो भोत बडा नहीं है पर इत्‍ती सी बात  समझ लो कि पूरे अमरीका में इस समय बुढिया का खौफ है । जे लम्‍बे लमब्‍े गीत सुना सुना कर पूरे अमरीका को दहशत में डाला हुआ है डुकरिया ने ।

केसरिया    लाल  पीला   नीला   हरा   गुलाबी
ये तरही का हमको मिसरा  दिखता नहीं ज़रा भी
आँखों पर इक चश्मा जाने कैसा  चढ़ा हुआ है
सूखा गीला भूरा काला थी क्या   कहीं  खराबी
होठों पर तुम टाला जड कर कैसे बैठ गए हो
हमने तो ख़त तुमको भेजा, हर इक बार जबाबी
तीसमारखां गज़लें अपनी भेजेंगे तरही में
किन्तु एक भोपाली होगा सौ दो सौ पर भारी
सुनो  अदब से बा मुलाहिजा होशियार हो जाओ
खोपोली का दादा आता ले कर ठाठ नबाबी
जय हो होली की खुनक की . जनाब पंकजजी का पत्र आया और साथ ही फोन भी ठकठका दिया कि मियाँ  होली आ रही है तो ग़ज़ल लिखो और तो और अल्टीमेटम भी दे दिया की तीन दिन में सबको लपेट कर रख देंगे इसलिये अभी बिना एक मिनट की देरी किये लिख कर भेजो..हमने उनको साफ़ साफ़ मना कर दिया की ग़ज़ल वज़ल या हज़ल लिखना हमारे बूते का नहीं है तो दूसरी गोली दाग दी की ठीक है-- तरही में ग़ज़ल लगाने से पहले जो हम उठा पटक करते हैं वैसा ही कुछ लिख डालो. अब मरता क्या न करता वाली नौबत आ गई साहब. हम्ने तय किया कि माफ़ी माँहने  हम सीधे सीहोर ही पहुँच जाते हैं. इस बहाने माफ़ी माँगने के साथ साथ थोड़ा ताजा ताजा गाजर का हलवा भी उड़ा लिया जायेगा. और कोई दूसरा रास्ता बचा भी तो नहीं. हमको न तो गज़ल लिखना आता है न ही लेख न गद्य. हमने आज तक तो कुछ लिखा नहीं. खूब समझाया  भाई साहब  अपने सौरभ हैं, वीनस हैं, अंकित-प्रकाश,धर्मेन्द्र,गौतम, सुलभ, सौरभ, विनोद, द्विजजी,दिगम्बर,राजीव , शार्दुला, कंचन, रजनी सुमित्राजी, इस्मताजी के साथ साथ और भी धुंआधार शायर हैं तरही के लिये. निर्मल सिद्धूजी अभी शीत समाधि तोड़ने  वाले हैं और निर्मलाजी अपनी कलम की धार घिस घिस कर पैनी कर रहीहैं, और फिर---- अपने मियाँ भोपाली एक साथ इकत्तीस गज़लें लेकर किनारे पर मौक़ा तलाश रहे हैं तो भाई नीरज जी सचिन तेंदुलकर की तरह अपनी कलम से हर घंटे एक ग़ज़ल बाउंड्री की तरफ फेंक रहे हैं तो हमें बख्शिये.

केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
रंग कत्थई जामुन वाला,अनन्नास,उन्नावी
भूरा,धानी,चटकीला सा चाकलेट असमानी
तोतई मटमैला कजरारा और रंग पुखराजी
सभी रंग चढ़ गये हुई फिर काया जरा नबाबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

मौसम की मस्ती रंगों पर तन पर मन पर छाये
फ़ागुन चुहल करे जेठों से भी भाभी कहलाये
सुरे बेसुरे राग सभी गूँजें पूरब पश्चिम में
मस्त हुआ नन्देऊ सेड़ का पंचम सुर में गाये
सेवन करे भांग का पैमाने को छोड़ शराबी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

शिवबूटी को घिस कर घोली कुल्लड़ में ठंडाई
थाप चंग पर देते गाती इक टोली फ़गुनाई
चिलम चमेली की बाँहों में मन खाये हिचकोले
रंग डाल कर भिगो ना तन को चूनर चोली बोले
हलवाई की भट्टी में  बाकी ना राख जरा भी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

शाखा पर लेते नव पल्लव नींद छोड़ अंगड़ाई
अम्बर से पूनम ने भर कर कलश सुधा बरसाई
चले खेत से खलिहानों से स्वर्णमयी कुछ बूटे
धानी चूनर गेंहू की बाली के सँग लहराई
गंगा के संग मुदिन ह्रदय से नाचे झेलम रावी
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

ऐ मैया ऐ माताराम, नेक छोटो कर दे जिरा इस गीत को । काय के अमरीका वाले तो झेलबे के भोत मिजबूत होते हैं पर इधर अपने इधर इत्‍ती मजबूती नहीं हेगी । काय री परमेशरी इत्‍तो बडो गीत काय लिखे है री । धे ठकाठक  धे  ठकाठक, गीत है कि मालगाडी । एक डिब्‍बा फिर एक डिब्‍बा । भभ्‍भड कवि ई घोषित  करते हैं कि इत्‍ते घटिया और टुच्‍चे गीत पर कोई भी वाह वाह करबे के लिये अपना सिरीमुख नहीं खोले । जिसने सिरीमुख खोला उसका कान में पूरा का पूरा इनका किताब अंधेरी रात  का सूरज उतार दिया जायेगा ।

सूचना- कल के अंक में श्री विनोद पांडेय ने अपनी एक टिप्‍पणी में भभ्‍भड को कुशल कवि, साहित्‍यकार, गजलकार और जाने कौन कौन सा ऊल जलूल बात कही है । होली के अवसर पर इस प्रकारी की ऊल जलूल बातें बिल्‍कुल भी बरदास्‍त नहीं की जाएंगी । विनोद पांडेय को तीन गिलास भंग की पिलाई जाये ताकि वे इस प्रकार की ऊलजुलुल बातें बंद करें । सूचना समापत भई ।

SAMEER LAL JEE

समीर लाल ’समीर’

झिंगा लाला झिंगा लाल हुर्र हुर्र,‍ झिंगा लाला झिंगा लाला फुर्र फुर्र । हचाबो मसाबो मसाबो । क्‍या आपको समझ में नहीं आ रहा । ये दरअसल  कवि की भाषा में बात कीजा रही थी । ये जो डोकरी आपको घूंघर वाले बाल लिये दिखाई दे रही है ये किरजिंगलिप्‍पा के आदिवासी इलाके से आई हे । डोकरी के उमर पर ना जाइये । बात की बात में उडन तश्‍तरी की तरह सर्र से जोगीरा सारारा करते निकल जाती है ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
मौसम हुआ हैं रंगीं, बादल हुआ गुलाबी
खुश्‍बू सी है फिज़ा में , ये कैसी बहकी बहकी 
कोई गुलाब है के, गजरा तेरा  गुलाबी 
त्यौहार होली का है, यूं चढ़ रही खुमारी  
अंखियन की डोर देखी,  कजरा भया गुलाबी
फागुनिया प्रीत का रंग , छिपता नहीं छिपाये
सांवरिया साजना भी  भंवरा बना गुलाबी
छन्ना के रुठ जाना, छन्ना के मान जाना
कहता समीर इसको नखरा तेरा  गुलाबी

भोत बुरी गजल  हे रे भैया भोत बुरी गजल । इत्‍ती बुरी तो अपने पूरे इतिहास में नहींलिख हो गी । इत्‍ती बुरी की भभ्‍भड़ कवि पूरी गजल सुनने के दौरान दो बार बाहर जाकर कानों से उल्टियां करके आए हैं । एक बार इधर के कान से और दूसरी बार उधर के कान से । अभी तक कान मिचला रहे हैं भभ्‍भड के । तो अब जिनका भी दाद देने का है वो समझ लें कि उनको होली से रंग पंचमी तक ये ही गजल सुनाई जायेगी ।

सूचना - कल के अंक पे अपनी कमेंट में सौरभ पांडेय लिखविस रहिन कि सूचनवा के बाद का टुनटुनी-टुनटुन... अने टिंगटौगठुस्स को काय ला म्यूट करे बैठे हैं, भभ्भर कवीजी ?? हर सूचना का पाछे टिंगटौंगठुस्स.. टिंगटौंगठुस्स.. का बजना बनता था न । ई में हमें बाद का ठुस्‍स तो सिमझ में आ रहिस किन्‍तु ऊ  जो पहिले का टिंगटौंग है ऊ हमार कपाल में नहीं घुसिस । कोनो को सिमझ में आय रहिस तो भभ्‍भड को सिमझाने की किरपा करें । सूचना समापत भई ।

SAURABH PANDEY

सौरभ पाण्‍डेय

ई इल्‍लाहाबादी अमरूद हैगा रे भैया । लोग कहिस रहिन कि इल्‍लाहाबादी अमरूद अंदर से लालम लाल रहिस, लेकिन किन्‍तु परंतु ये अमरूद तो बाहर से भी लाल गुलाबी हो रहिस रहिन । बुढोती में बुझौती लौ की फडफडाहट का रंग किस दिना से गुलाबी हो रहिन है । सूचना ये भी है कि इ  जो बुढिया है ई इल्‍लाहाबाद के किसी नइ उमर के लरिका के चक्‍कर में अपना बुढापा खराब कर रही है । राम बचाये ।

कचनार से लिपट कर महुआ हुआ गुलाबी
फिर रात से सहर तक मौसम रहा गुलाबी
बेदम हुए बहाने बेबाक पैंतरों से
लय साधता खटोला, होता गया गुलाबी
करने लगीं छतों पर कानाफुसी निग़ाहें.. . 
कुछ नाम बुदबुदाकर, फागुन हुआ गुलाबी
इस क्रम को याद रखना, ये दौर प्यार के हैं -
केसरिया.. लाल.. पीला.. नीला.. हरा.. गुलाबी.. .!!
उसने किया इशारा तो साथ हो लिए हम
भागे मग़र पलट कर वो शख़्स था गुलाबी
ऐसी चढ़ी फगुनहट, संसद पढ़े जोगीरा
आलाप ले रहा है, मनमोहना गुलाबी..
वो फूल रख गयी है टेबुल पे, पर करूँ क्या 
दफ़्तर ने आज ही तो चिट्ठा रखा गुलाबी ..

हें...... बुढिया सरम कर सरम  । काहे को कचनार और महुआ की आड में अपने बुढाते हुए दिल का गुबार हेड रही है । काय का हम को नहीं पता की इलाहाबाद के उस लरिके का नाम कचनार सिंह केसरी है । ऊ कचनार है तो हुइबे करी पर तू कब से महुआ हो गई  । बासी बंदगोभी अपने को महुआ कह रही है । और गजल तो भोत बुरी के दी हेगी । काय लरिका ने किछु नइ सिखायो । कोनो को भी दाद देने की जिरूरत नहींहै । लरिका आयेगा तो खुद ही सबके बदले में बुढिया को जूतन से दाद देगा ।

सूचना- आज भभ्‍भड  कोई भी मुंहझौंसे को आदरणीय-फादरणीय, श्री-फ्री, जी-बी, साब-वाब आदि आदि नहीं लगा रहे हैं । का है कि कल प्रकाश अर्श ने अपनी टिप्‍पणी में भभ्‍भड कवि को अत्‍यंत आदर के साथ भभ्‍भड साब कह के पुकार लिया था । होली के दिनों में भभ्‍भड  को आदर देने और लेने की बिल्‍कुल आदत नहीं है । कल साब सुनने के बाद भभ्‍भड की घुटने की धड़कन बढ़ गईं थीं । बडी मुश्किल से कंट्रोल हुई हैं । कोई भी आज आदर की बात नहीं करे । सूचना दी एंड । 

SHESHDHAR TIWARI 1

शेषधर तिवारी

नाम तो धरा हेगा शेषधर किन्‍तु एक मक्‍खी भी सिर पर बैठ जाये तो पूरा देह का ब्रहमांड हिल पड़े । डोकरी तरही में कभी कभी आती है ।इस बार तो भोत दिन के बाद चक्‍कर लगा है । मैंने पूछा कि किधर गई हती तो बोली की दूर के रिश्‍ते के बेटे की शादी में गई थी । मैंने पूछा दूर के रिश्‍ते का बेटा । तो बोली मेरे चौथे पति की पांच वी पत्‍नी के तीसरे पति का बेटा था । जोगीरा सारा रा रा ।


सूरज उगा है लेकर ऐसी छटा गुलाबी
दुनिया के सर पे जैसे सेहरा सजा गुलाबी
कर दे मेरे मसीहा कोई कमाल ऐसा 
इठला के बोले हर शै इक जाम ला गुलाबी
टकरायेंगे परिंदे सर आज आसमां से
है इस कदर फजां पर नश्शा चढ़ा गुलाबी
बचना कि हो न जाए तकसीर कोई मुझसे
चेहरा हर एक मुझको दिखने लगा गुलाबी
मिल जाए आज मौक़ा तो मैं गले लगा लूं
मुझसे लिपट के होता है देवरा गुलाबी
तख्मीस हो न जाए हर शेर इस ग़ज़ल का
होली के रंग में हर मिसरा हुआ गुलाबी
सच है ये मैं दियानतदारी से कह रहा हूँ
ज़ह्राब लब का मंज़र दिखने लगा गुलाबी 
हालाते जाँकनी में लेटे बुज़ुर्ग की भी
यादों में हंस रहा है इक हादसा गुलाबी
जिस रंग में भी चाहे मुझको तू रंग देना
“केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी”
पूछा जो दोस्तों से क्या रंग भंग का है
इक घूँट पी के बोले "अब हो गया गुलाबी"
हो रंग कोई सबकी अपनी कशिश है लेकिन
मखसूस कुछ है इसमें जो है जुदा गुलाबी
ऐजाब हो रहा है हर इक हसीं को खुद पर
यूँ लडखडा रहे हैं मर्दाज़्मा गुलाबी 
माइल ब औज है अब, नश्शा ये भंग का है
दिखने लगेगी सब को सारी फ़ज़ा गुलाबी
बदख्वाह है परीशां दे कैसे बद्दुआयें 
जब बद्दुआ भी निकले बनकर दुआ गुलाबी
दौराने रंगपाशी पूछा जो उनकी च्वाइस 
नज़रें मिला के बोले वो बरमला "गुलाबी"

खतम हो गई गजल, सचमुच खतम हो गई गजल । कोई जाकर पक्‍का करो कि खतम हो गई है । मुच्‍ची में खतम हो गई हो तो भभ्‍भड कवि नींद खतम करके उठ जाएं । किसी डाक्‍टर  ने परचा लिख दिया है इनको कि एक गजल सुबह एक दोपहर और एक शाम को  लिखना है । और हर गजल में तीन सौ अठहत्‍तर शेर होना कम्‍पलसरी है । इत्‍ती बुरी गजल सुनने के बाद भभ्‍भड के लिये भांग पीना जिरूरी हो गया है । इस बीच में कोई भी दाद नी देगा । जो दाद दे उसको कबरी बिल्‍ली की कसम ।

सूचना - कल की पोस्‍ट में बुढऊ तिलक राज कपूर अपना भेजे का कपाल घुसा कर एक टिप्‍पणी करी रही कि केवल एक ही बहर में हंसना है । ऊ टिप्‍पणी को बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं दिया जाए । आप अपनी मन मर्जी की बहर में हंस सकते हैं । भीनस केसरी जिस बहर में हंसा है ऊ भी चलेगा । जे में भी आपको फेफडा परमीशन दे ऊ बहर में हंसे । सूचना समापत भई रही ।

TILAK RAJ KAPOOR

तिलक राज कपूर
जे ब्‍बात, बुढिया को देखो  तो सही । ससुरी मध्‍यप्रदेश की चक्‍की का आटा खा खा के बुढापे को रोके हुए है । मुस्‍कुराहट पे तो जैसे टैक्‍स ही लगा हो । कुछ दबी सी कुछ खिली सी । जे बात कही जाती रही है कि जे जो मुसायरा है इसमें कोई भी लिखी हुई गजल नहीं पढेगा । तो हाथ में जो कागज पत्‍तर है ऊ फैंक दिया जाए ।

हास्य  ग़ज़ल-1
होली की मस्तियों में डूबे चचा गुलाबी
घर से चलें हैं जैसे इक मनचला गुलाबी।
पतली कमर हिली तो ठुमका लगा गुलाबी
टपके जो दॉंत निकला मुँह पोपला गुलाबी।
चाची मना रही हैं होली अलस्सुँबह कल,
ये जानकर चचा को सपना दिखा गुलाबी।
पगड़ी सजी चचा की होली के रंग लेकर
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
निकले  चचा गधे पर उल्टी  दिशा में बैठे
चाची ने जब ये देखा चेहरा हुआ गुलाबी।
पिचकारियॉं लिये सब छज्जे भरे हुए थे
चाची चचा को सबने, मिलकर किया गुलाबी।
चाची चचा मिलन से, छाया सुरूर ऐसा
रंगीन थी दुपहरी, सूरज ढला गुलाबी।
हास्य ग़ज़ल-2
बीबी ख़फ़ा हुई तो, जीवन हुआ गुलाबी
चर्चा मेरा नगर में होने लगा गुलाबी।
सारी हसीं नगर की, चक्कर लगा रही हैं
ऐसे में हो न जाये, हमसे ख़ता गुलाबी।
होली की दी इज़ाज़त, तो रंग यूँ लगाया
मेरे अधर को छूकर उसने किया गुलाबी।
चेहरे पे रंग मेरे उसने लगा के बोला
ये हाथ रुक न पाये, सर हो गया गुलाबी। 
होली पे ये लिपिस्टिक काजल बिके धड़ाधड़
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
बोतल चढ़ा के मुझपर इल्ज़ा म रख दिया है
सर चढ़ के बोलता है तेरा नशा गुलाबी।
देखा उदास उसको तो वैद्य ने बताया
ये रोग है गुलाबी, इसकी दवा गुलाबी।

ग़ज़ल-3 
वीरान जि़न्दगी में कुछ भी न था गुलाबी
आहट सुनी तुम्हाबरी सब कुछ हुआ गुलाबी।
रंगीनियॉं लिये है पतझड़ के बाद फागुन
टेसू खिला हुआ ज्यूँ , केसर मिला गुलाबी।
रिश्ते बदल रहे हैं पल-पल में रंग कितने
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।
गेसू में रंग काला भरकर खुदा ने सोचा
गालों में क्यां भरूँ अब, फिर भर दिया गुलाबी।
मदिरा का रंग क्या है, किसको दिखा बताओ
ऑंखों का रंग लेकिन सबको दिखा गुलाबी।
तू है कि संग-ए-मरमर सा जिस्म इक मुजस्सम
लेकर गुलों की रंगत जो हो गया गुलाबी।
बिखरी है राह पर जो, उस धूप से बचा कर
झुलसा न दे कहीं ये, चेहरा तेरा गुलाबी। 
बस तीन ही गजल.... काय और नहीं लिखीं । और लिख लेती बिन्‍नो । काय तीन से तेरो तो किछु भी नइ होने बारो । पांच सात आठ किछु और लिख लेती । बुढापे में भी आदत नहीं छूट रही है । आपके गले की सौं जिनने भी तीनों गिजलें पूरी सुनी हैं वो हाथ ऊपर कर दें । उन सब को अलग से सम्‍मान किया जायेगा । भभ्‍भड़ कवि घोसित करते हैं कि भले ही पहली गजल खराब थी लेकिन दूसरी उससे भी खराब थी । हां ये बात अलग है की तीसरी दोनों से और ज्‍यादा खराब थी । कुल मिलाकर बात ये हुई कि तीनों ही खराब थीं । दाद देने वाले को @@@@###### कम लिखा ज्‍यादा समझना ।

सूचना- @@@@######  #####@@@@  #####@@@@@  @@@@#### #####@@@@ @@@@####  @@@@@##### ##$$#### @@@@@### @@@##### $$$$$##### सूचना समाप्‍त हुई ।

NAVEEN CHATURVEDI1

नवीन चतुर्वेदी

इत्‍ते सारे माइक, काय का एक से काम नहीं चल रओ थो । अच्‍छा भोत तरीकेसे बोलना हेगा । एक माइक पे दोहे, एक पे छंद एक पे गजल और एक पे गीत । का है कि अलग अलग माइक से बोलने में अलग अलग प्रभाव आता है । एक ही माइक और एक ही मुंह से श्रोता बोर हो जाता है । अलग अलग तरीके से बोर करना हो तो माइक भी अलग अलग होना चाहिये ।


चूनर पे तक चकत्ता इत्ता बड़ा गुलाबी
कहने लगीं सहेली, वो कौन था? गुलाबी
कैसे बताए सब को, थी सोच में गुलब्बो
नज़रें चुरा के बोली कुछ लोच में गुलब्बो
होली का पर्व है सो, पुतवा रही थी घर को
मिस्टर ने थामी कूची, मैंने गहा कलर को
दीवार पुत चुकी थी, दरवाज़ा रँग रहे थे
ठीक उस के पीछे सखियो कुछ वस्त्र टँग रहे थे
मिस्टर तपाक बोले, इन को हटा दो खानम
मैंने कहा सुनो जी, तुम ही हटा दो जानम
कुछ और तुम न समझो, मैं ही तुम्हें बता दूँ
मैं समझी वो हटा दें, वो समझे मैं हटा दूँ
दौनों खड़े रहे थे, जिद पे अड़े रहे थे
दौनों की जिद के चलते कपड़े पड़े रहे थे
आगे की बात भी अब तुम सब को मैं बता दूँ
दौनों ने फिर ये सोचा, चल मैं ही अब हटा दूँ
यूँ हाथ उठाया उन ने, इत मैं भी मुड़ चुकी थी
कब जाने सरकी चुनरी शानों पे जो रुकी थी
फिर जो बना है बानक कैसे बताऊँ तुमको
शब्दों से सीन सारा कैसे दिखाऊँ तुमको
हेमंत ने अचानक बहका दिया था हमको
कुछ ग्रीष्म ने भी सखियो दहका दिया था हमको
बरसात की घटा ने दिखलाया रंग ऐसा
कुछ था वसंत जैसा और कुछ शरद के जैसा
कर याद फिर शिशिर को दौनों हुए शराबी
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी

छुट्टन से छमिया ने कहा छिटके मत छोकरे नैन लड़ा ले
फूल सजा गजरे में गुलाब का इत्र लगा कर मूड बना ले
नौकरिया ने शरीर में जंग लगा दई है तो उपाय करा ले
चंग बजाय के रंग उड़ाय के भंग चढाय के जंग छुड़ा ले

इत कूँ बसन्त बीतौ, उत कूँ बौरायौ कन्त
सन्त भूलौ सन्तई कूँ मन्तर पढ़ौ भारी
पाय कें इकन्त मोसों बोलौ रति-कन्त कीट
खूब है गढ़न्त तेरे अंगन की हो प्यारी
तदनन्तर ह्वै गयौ गुणवन्त – रति वन्त
करि कें अनन्त यत्न बावरी कर डारी
साँची ही सुनी है बीर महिमा महन्तन की
साल भर ब्रह्मचारी, फागुन में संसारी

पेले वाले गीत पर तो सिरम  के मारे भभ्‍भड कुछ के नहीं पा सक  रहे हैं । काय कि सिरम तो सबके आती है ना । उसके बाद जो छुट्टन और छमिया का किस्‍सा है ऊ किछु किछु कम सरम का है । तीसरा जो किछु भी है वो भभ्‍भड के माथा कानाम कपाल के ऊपर से निकल गया है । जिनके नहीं गुजरा हो वो भभ्‍भड़ को एसएमएस करके समझाएं । दाद देने की कोसिस भी करने वाले को पछीट पछीट के मारा जाएगा । एक कोठी में कीचड़ और  नाली का पानी घोल रखा है उसमें पछीटा जायेगा । सो सिमझ में आ जाये ।

सुचना- घोसना की जाती है कि आज की पोस्‍ट पर जदी कोई भी टिपपणी करते समय जी, साहब, आदरणीय, जनाब जैसे लुच्‍चे शब्‍दों का प्रयोग किसी के लिये भी करेगा तो उसको अगले साल होली के डांडे  की जगह पर प्रयोग किया जायेगा । किसी भी प्रकार के आदरणीय अथवा फादरणीय  शब्‍दों का प्रयोग पूरी तरह  से प्रतिबंधित है । जो भी करेगा ओ के वास्‍ते @@@@###   । जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा । ओय चली चल चली चल ओय चली चल सारारा , ओय चली चल ओय चली चल ओय चली चल सारा रा।

सबको होली की शुभ  का म ना एं । मंगल कामनाएं । आप सबके जीवन में रंगों का ये त्‍यौहार खुशियों के नये रंग लाये । आपके जीवन में जो भी कलुष है वो रंगों की बोछार से धुल जाये । हर तरफ सुख हो शांति हो समृद्धि हो । आनंद की रस वर्षा हर ओर हो । हम सबके बीच में प्रेम बना रहे सदभाव बना रहे । आमीन ।

होली की शुभकामनाएं

भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के

सोमवार, 25 मार्च 2013

होली के सुअवसर पर आइये आज सिरू करते हैं कबूतरी सम्‍मेलन । धेस विधेस की जानी मानी कबूतरियां पधार रही हैं होली के अवसर पर अपना अपना पाट लेकर ।

अखिल ब्रह्मांडीय कबूतरी सम्‍मेलन

मितरों और मितरानियों । सबको जथाजोग परनाम पोंचे । तो जैसा कि आप सब जानते ही हैंगे कि इस बार अखिल ब्रह्मांडीय कबूतरी सम्‍मेलन का आयोजन होली के सूअ(वस)र पर किया जा रया है । इस कबूतरी सम्‍मेलन में भाग लेने के लिये दूर दूर से कई सारी कबूतरियां आईं हेंगी । मैं आपका संचालक भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के आप सब का सुआगत कर रिया हूं । आप सबको पता ही हे रिया है कि इस बार का ये कबूतरी सम्‍मेलन 'केसरिया, लाल, पीला, नीला हरा गुलाबी' पर किया जा रहा है । तो आइये आगे बढ़ते हैं अपने इस कबूतरी सम्‍मेलन को लेकर । सगरे बिरज मंडल में धमल चल रइ है । सगरे भारत वर्ष में धमाल चल रइ है । होरी खों पापन परब ढिंका चिका करतो फिर रओ है । तो आप सब सरोताओं को एक एक भंग का पव्‍वा और बिस में थोड़ा सा धतूरा मिला कर हम भेंट कर रये हेंगे । पिओ और टुन्‍न हो जाओ । किसी के भी हाथ मती आओ ।

 DHARMENDRA SAJJAN

धर्मेंद्र कुमार सिंह

हमारी सबसे पेली कबूतरी जो हेंगी बे सीधे डेम पे से चली आ रइ हेंगी । काय के जे कछु इंजीनियर बिंजीनियर हेंगी । इनने कित्‍तेइ बांध बनाये हैं कागजन पर । ओरिजनल जगे पे इनका एक भी बांध नइ मिलता हेगा । कोई पूछे तो बताती हैं कि बांध चोरी हो गया है । आप साकाहारी हैं सो केबल सड़े टमाटर से सुआगत करा जाए ।

होने लगी है देखो काली घटा गुलाबी
क्या गेसुओं में उसके जाकर गिरा गुलाबी
फागुन छुपा के लाया क्या तोहफ़ा गुलाबी
होने लगी है धीरे धीरे फिज़ा गुलाबी
भरते हैं सिसकियाँ क्यूँ बागों के पेड़ सारे
क्या फागुनी हवायें करतीं खता गुलाबी
ऐसे डसा है मुझको इक फागुनी नज़र ने
है अंग अंग मेरा पड़ने लगा गुलाबी
मदिरा गुलाब जल सा मुझपे करे असर अब
लब ने लबों को दे दी कैसी सजा गुलाबी
कोई है रंग ऐसा खिलता न हो जो तुझपे?
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
सोलह बसंत अबके वो पार हो रहे हैं
होने लगे शहर के आब-ओ-हवा गुलाबी

सेंसर सेंसर सेंसर, कबूतरी भूल रइ हेंगी कि मुसायरा पारिवारिक है और जे सोलह बसंत, अंग अंग, लबों जैसी बातें कर रही हैं । जे सारे सबद मूसायरे में से भिलोपित किये जाते हैं । कोई भी इन को सुनने की कोसिस न करे । 

सूचना- हमारे मुसायरे के गरिष्‍ठ सदसय श्रीमान नीरज गोस्‍वामी झूमरी तलैया से दारू के ठेकेदार का चुनाव लड़ रये हेंगे । जिनका चुनाव निसान हेगा मोगरे की सूखी डाली । सब लोगन से अपील की जाती है कि मोगरे की सूखी डाली पे गोबर से सने जूते का ठपपा लगा के नीरज गोस्‍वामी को दारू  का ठेकेदार बनाएं । सूचना समाप्‍त भई ।

DIGAMBER NASWA

दिगंबर नसवार
जे किछु आधुनिक लग रइ होंगी आपको, काय कि जे सीधे बुदई से चली आ रही हैं । अपने इंडिया में तो किछु कर ना पाईं सो सीधे बुदई में जा के किछु ना कर रई हेंगी । भां पे जा के आपने अपना जूता पालिस का सानदार दुकान खोला हेगा । इनका दावा है कि कोई भी जूता अगर इनके टकले से कम चमका तो पूरे पैसे वापस दे दिये जाएंगे । काय कि जे रोज अपना टकला भी उसी प्रकार से चमकाती हैं । आइये इनसे भी सुन ली जाये । जे दो प्रकार की गजल ला रही हैं । एक को नाम इनने हास्‍य गजल दओ है । इने नइ मालूम कि इनकी सारी ग़ज़लें ही हास्‍य होती हेंगी । काय कि बिना बहर की गजल सुन के हंसी नी आयेगी तो क्‍या आयेगा ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
काला सफ़ेद जो हो समझो मिला गुलाबी
कटते नहीं हैं रस्ते, बस ख्वाब के सहारे
सच देखना है तो फिर, परदा उठा गुलाबी
चेहरे का नूर है या, है कुदरती करिश्मा
क्यों चाँद आसमा का, फिर हो रहा गुलाबी
सुख दुःख, निशा उजाला, सब जिंदगी का हिस्सा
सबको कहाँ मिला है, रंगी समा गुलाबी
परवर दिगार से बस, इतनी ही इल्तज़ा है
चारों तरफ हो सबके, खिलता हुआ गुलाबी

हास्य गज़ल
गलती से मांग में जो, रंग लग गया गुलाबी
थप्पड़ पड़ा है ऐसा, नक्शा छपा गुलाबी
बेरंग रंग सारे, काले बदन पे तेरे
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
गमला उठा के मारा, क्यों बोलने पे इतना
“वो फूल फैंकना तो, मुझको ज़रा गुलाबी”
मैके गई है जबसे, अर्धांगिनी कहूं क्या
मन का घना अंधेरा, फिर से हुआ गुलाबी
होली के बाद उनकी, बाहों में सो गया था
कीचड़ से मैं उठा जब, उतरा नशा गुलाबी

काय कि अपनी कहूं तो मोय तो हास्‍य ग़ज़ल में जरा, नेक सी भी हंसी नई आई । एक बार मेरे होंठ जिरा से टेढ़े भये थे पर बो हंसी नई थी बो तो मैं अपने गाल पर बैठी मक्‍खी को होंठ टेढ़ा करके भगा रहा था । आप सब के गले की कसम मोय जिरा सी भी हंसी नी आई है जिस हास्‍य गजल पे । आपको आई हो तो हंस लो हंसने पे कोइ टैक्‍स थोड़ी है ।

सूचना - हमारे मुसायरे के एक वरिष्‍ठ सदस्‍य श्री राकेश खण्‍डखण्‍ड वॉल जी कल रात को मुन्‍नी बाई के कोठे से लापता हो गये हैं । किछु लोगन का कहना हेगा कि बे आखिरी बार मुन्‍नी बाई के कोठे के नीचे कल्‍लू पहलवान को अपना गीत सुनाने की कोसिस कर रय थे । लोगों का केना है कि कल्‍लू को गीत सुनाने की कोसिस ही उनके लापता होने का कारण है । जिनको राकेश जी की सूचना देनी हो बे राकेश जी के मोबाइल पे दे सकते हैं ।

NIRMAL SIDDHU

निरमल सिद्धू 

काय कि इनसे  पेले तो गजल लिखा ही नहीं रही थी जिसके कारण इनने पेले तो उसी माइक से अपने आप को टांगने का निरनय ले लिया था । किन्‍तु बाद में इनको ग़ज़ल सूझ गई । जे सीधे डनाका से चली आ  रही हैं । इनको  भी सुनाने की भोत इच्‍छा हो रही है । भोत देर से  केरइ हैं कि मोय भी कविता करनी है । सो आप सब सानती के साथ बैठ कर कविता सुन लो ।

दस्तक होली की सुन हर चेहरा हुआ गुलाबी
रितु बसंत आई तो नयनों में घुला गुलाबी
देखो जिधर-जिधर भी मस्ती छलक रही है
माथे पे उमंगों के अब सेहरा सजा गुलाबी
मिलने लगे गले सब बंटने लगी मिठाई
देखी ज़मीं की रंगत सूरज हुआ गुलाबी
पीकर भंग, चढ़ा के दारू क़दम न टिकते
नाचे छोरा छोरी सब, ऐसा नशा गुलाबी
रंग-बिरंगे फूल हैं खिलते, उसको कहते भारत
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी

काय बिन्‍नो जे होली में देस भक्ति किते से घुसड़ रई हेगी । कोई 26 जनवरी मन रइ हेगी क्‍या । देसभक्ति करनी की अपने भारत में दो तारीख हेंगी । 15 और 26 जिनके इलावा कोई भी देसभक्ति करने की जिरूरत नहीं समझता । जिस दिन सुबू सुबू से रेडियो पर मेरे देस की धरती बजने लग उसे दिन 2 रुपये का झंडा अपनी इस्‍कूटर पे लगा के देसभक्ति की जाती है समझी ।

सूचना - खबर आई हेगी कि भोपाल के सबरी लुगाइन के लिये सरकार ने इस बार करवा चौथ पर उचित भेभस्‍था की है । काय कि हर बार चांद देर से हीटता था । जा बार सरकारी चांद निकाला जा रिया हेगा । करवा चौथ के दिन भोपाल की श्‍यामला पहाड़ी पर दूरदर्शन के टावर पे श्री तिलक  राज कपूर को खड़ा किया जायेगा । सरकार का केना है कि उनकी चांद के आगे आसमान का चांद फीका पड़    जायेगा । किछु लोगन ने सरकारी खोपड़ी का मतदाताओं को लुभाने का उपयोग करने की याचिका दायर कर दी है । सूचना खतम भई ।

PRAKASH ARSH

प्रकाश अर्श

किछु भी मत पूछो इनके बारे में । कोई कोई तो ऐसा के रय हैं कि बाकी तो दुनिया में किसी की शादी हुई ही नहीं है, केवल इन्‍हीं की तो हुई है  । इनको गजलें केने का भोत शोक भी हेगा,, पर शौक होने से भी क्‍या होता हेगा । ग़ज़ल केना हर किसी के बस की बात नहीं होती । जे कबूतरी सीधे दिल्‍ली से चली आ रही हेगी ।


दिन के लबों का रंग भी बेसाख्ता गुलाबी
सूरजमुखी का चेहरा भी हो गया गुलाबी !!
कल रात मुझसे मिलने आया था यार मेरा ,
फिर रात भर अँधेरा होता रहा गुलाबी !!
शरमा के छिप गए थे परदे के पीछे जब तुम ,
पर्दा वो अब तलक है घर का मेरा गुलाबी !!
दोनों ही सूरतों में सूरज की तरह है वो ,
आता हुआ गुलाबी जाता हुआ गुलाबी !!
होली क्या आ गई की ये रंग चढ़ रहा है ,
वरना तो इससे पहले हर रंग था गुलाबी !!
इस रंग के मुकाबिल सब रंग फीके है अब .
मिलते ही मुझसे उसका चेहरा हुआ गुलाबी !!
किसको नज़र में रखूं किसको निकाल फेंकूं'
कत्‍थई सी आँख वाली का ज़ायका गुलाबी !!
मल दूंगा चहरे पे मैं रंग इश्क़ वाला ,
फिर धीरे धीरे बढ़ कर हो जाएगा गुलाबी !!
इक शख्स है धनक सा जिसमे हैं रंग सारे ,
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी !!

उइ मां कित्‍ती हट के गजल हेड़ी है । लेकिन जिसमें भी कुछ सब्‍द ऐसे हैं जिन पर सेंसर को भोत आपत्‍ती हेगी । अंधेरा सब्‍द का उपयोग नहीं किया जाना था । जब ये कबूतरी आ रही थी तो किसी ने दिया एक टमाटर और जब जा रही थी तब फिर दिया एक टमाटर, जिससे ही प्रभावित होकर कबूतरी ने शेर लिखा ' आता हुआ गुलाबी, जाता हुआ गुलाबी' । तो जिसको सुननी है वो सुन ले गजल । हमें तो नई सुननी है ।

सूचना- भारत सरकार ने घोष्‍णा कर दी है कि अब काला धन देस के बाहर नहीं जा सकता है । इस घोषणा से कनाडा से भारत आये श्री समीर लाल परेसान हो गये हैं क्‍योंकि उनके भी भारत से बाहर जाने के रास्‍ते बंद हो गये हैं । सभी को सूचित किया जाता है कि गोरेपन की कोई ऐसी क्रीम जो तीन दिन में गोरा कर दे उसके पता श्री लाल को प्रदान करें । तीन दिन में उनका प्‍लेन उड़बे बाला है । सूचना समाप्‍त भई ।

RAJEEV BHAROL1

राजीव भरोल

कित्‍ती नीक सुंदर लग रइ हेंगी ये कबूतरी । काय कि   सीधे अमेरिका से चली आ रही हैं । जिनको भी आजकल ग़ज़ल सुनाबे को भोत शौक चर्रा रओ है । काय कि अमरीका में कोई को हिंदी तो समझ में आती नहीं है । तो पेलने में कोई खतरा नहीं होता है । और दूसरी बात ये कि अमरीका में हमारी यहां जैसे टमाटर, अंड को रिवाज नहीं है । भां पे सीधे पुलिस पकड़ ले जाती है ।

आँखों में थे सितारे, हर ख़ाब था गुलाबी,
उस उम्र में था मेरा, हर फलसफा गुलाबी.
फूलों को बादलों को, हो क्यों न रश्क आखिर,
गेसू घटाओं जैसे, रंग आपका गुलाबी.
बदला है कुछ न कुछ तो, कुछ तो हुआ है मुझको,
दिखता है आज कल क्यों, हर आइना गुलाबी.
मौसम शरारती है मेरी निगाहों जैसा,
है हर गुलाब तेरे, रुखसार सा गुलाबी.
होली का रंग है ये, कह दूंगा मुस्कुरा कर,
पूछा जो उसने क्यों है, चेहरा मेरा गुलाबी.
रंगों की बारिशों में, हर शख्स दिख रहा है,
"केसरि-य,  लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी"

नी वैसे ये बात तो हेगी की गजल तो अच्‍छी हेगी । भोत अच्‍छी तो नई के सकते हैं । के देने से कबूतरी का दिमाग खराब हो जाता है । कम बजट में कवि सम्‍मेलन करना हो तो कवि की तारीफ मती करो कभी भी । तो बस जेकि ठीक पढ़ी।

सूचना- होली के अवसर पर उत्‍तर परदेश की सरकार ने घोसना कर दी है कि काय कि पिछले चुनाव में मायाबत्‍ती का परचार करने के कारण सौरभ नाम के एक कवि का नाम गर्दभ कर दिया गया है । अभी तक ये नहीं पता चला है कि क्‍या जे सब कुछ हमारे ही बीच के कवि श्री सौरभ पाण्‍डेय के साथ हुआ है । या कोई और है । हमने सरकार को पत्‍तर लिखा है जैसे ही जवाब मिलता है सू‍चित करते हैं । ( लच्‍छन से तो ये ही लग रहे हैं । ) सूचना समाप्‍त हुई ।

RAJNI MELHOTRA

रजनी मल्होत्रा  नैय्यर

जिनको डाक्‍टर ने के रखी है कि हाइजीन का खूबे खयाल रखना है । सो इनने दूर से ही काव्‍य पाठ करने की कही है । माइक को मुंह से दो फिट दूर रख के । हमें इनको सुझाव ये देना है कि माइक को दूर रखने के बजाय बंद करके ही काव्‍य पाठ कर दें उससे इनका भी भला होगा और सरोताओं का भी ।


केसरिया, लाल,  पीला,  नीला,  हरा, गुलाबी,
रंगों की बारिश  में    लगे     सांवरा   शराबी .
छूने दे  रंग के   बहाने   गोरी    गालों      को ,
रहे   न   अब  दरमियाँ    दायरा      जरा  भी .
निभा लो आज  वैर ,दस्तूर   सबको   मंजूर ये ,
रख न कोई   मलाल , दे सौगात यारा  जुलाबी.
रंग  के  नशे   में,   कोई  भंग   के    नशे    में,
होली   के   नाम    पर     कर   गया    खराबी .
आज    सारी    तहजीब  लगे बातें     किताबी
मल कर गुलाल कर दो   हर    चेहरा   गुलाबी ,

भभ्‍भड़ कवि इस गजल को सर्वश्रेष्‍ठ हास्‍य गजल का खिताब देते हैं । काय के दो कारण हैं पेली तो ये कि ये गजल भभ्‍भड़ कवि को नेक भी समझ नहीं पड़ी । समझ नहीं पड़ी तो मतलब कुछ अच्‍छी ही होगी । और दूसरा कारण ये है कि भभ्‍भड़ कवि की  हर शेर पे हंसी छूटी तो इसका मतलब हास्‍य तो भरपूर था ।

सूचना- कुख्‍यात गजलकार श्री द्विजेन्‍द्र द्विज ने सड़े हुए अंडे को मिट्टी के तेल में जलाकर एक प्रकार का विशेष काजल बनाया है  जिसको लगाने के कारण उनका चश्‍मा उतर गया है । जिस किसी भाई को काजल चाहिये वो संपर्क करें । काजल की कीमत में उनकी दो ग़ज़लें सुननी होंगी । सुनते समय हर मिसरे पर तीन बार जोर से और दो बार धीरे से दाद देना होगा । सूचना समाप्‍त हुई ।

SANJAY DANI1

संजय दानी

डाक्‍टर साबनी भी गजल पढने आ गईं हेंगी । अपने दवाखाने पर ढेर सारे मरीज छोड़ कर आईं हेंगी । इनका जरा जल्‍दी सुन लिया जाये । अभी इनका मरीज भी देखने हैं । मरीज जो इनकी गजलें सुनकर या तो बिल्‍कुल ठीक हो जाते हैं या फिर बिल्‍कुल ही ठीक हो जाते हैं । तो आइये सुनतेहैं ।


नीलू को मैंने जब से यारो कहा गुलाबी,
तब से हुई है उसकी हर इक अदा गुलाबी।
हर लड़की आहें भरती हैं जब भी वो पहनता,
काले कमीज़ के नीचे तौलिया गुलाबी।
करके विवाह मै भी पछता रहा हूं, मुझको,
अब पीने ना मिले रम ओ वोदका गुलाबी।
कर बैठा इश्क़ इक गुन्डे की बहन से,तब से
है मेरी पीठ छाती ओ चेहरा गुलाबी।
करते नहीं नशा जो,वो पीले दिखते हैं क्यूं
दिखता है जब यहां का हर बेवड़ा गुलाबी।
सबने मिठाइयां ही रंगीन देखी होंगी,
मेरी दुकां में मिलता है ढोकला गुलाबी।
जबसे मिली है राखी सांवत की जूती मुझको,
हां हो गई है मेरे घर की हवा गुलाबी।
पंचर न होती अब मेरी सायकिल,वजह है
उसको चलाती अब केवल साइना गुलाबी।
कांग्रेसी नीति से महंगाई बढी है ये सुन,
होने लगी है जाने क्यूं भाजपा गुलाबी।
पर्यावरण का ऐसा बदलाव आया यारो,
होने लगा है बाग़ों का हर भटा गुलाबी।
घर का सफ़ेद कमरा होली में हो चुका है,
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी।
रंगीं रदीफ़ों पर कुर्बां हैं सुबीर दानी,
चाहत है जबकि शिष्यों की काफ़िया गुलाबी।

चलो रे चलो सब चलें गुलाबी रंग को ढोकला खाने के लिये । मटरू की बिजली में एक गुलाबी भैंस तो हमने सुनी थी । लेकिन काफिया मिलाने के लिये ढोकले में रुह अ फजा मिलाकर क्‍या सफाई से उसे गलाबी किया है । चलो रे सब छोड़ो गजल वजल अब तो गुलाबी ढोकला ही खाया जाये ।

सूचना - मध्‍यप्रदेश की सरकार ने तय किया है श्री मंसूर हाशमी जी को मानिसक रोगी विकास मंच का प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया जायेगा । इस अध्‍यक्ष पद के तहत उनको  राज्‍य मंत्री का दर्जा मिल रहा है । जिसके तहत उनको अपनी गाड़ी पर लाल रंग की लालटेन लगाने का भी अधिकार मिलेगा । और साथ में उनक गाड़ी में एंबुलेंस  का सायरन भी फिट किया जायेगा । सुचना समापत भई ।

 

सुलभ जायसवाल

संझा सुबह गुलाबी,  रात्री दिवा गुलाबी
घंटा मिनट घड़ी सब, सब हो गया गुलाबी 
जब से उसे है देखा, सुधबुध मैं खो चूका हूँ
काला न कोई नीला, जादू चला गुलाबी   
नग्मे ग़ज़ल न दोहे, तू गा ले फाग मुक्तक
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
जब जी करे सुनाना, मन भर वही तराना
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
कैसट अटक गया है, मेरा हुजूरे आला
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
क्यूँ रे 'सुलभ' बनाये, हमसब को आज बुद्धू
गुझिया व पान लाये, भरके भूसा गुलाबी 
इस साल एक बच्चा, कमजोर सा था पीला 
लफ़्ज़ों से खेल होली, वो हो गया गुलाबी  
गुलाबी नंबर  # २
मस्ती  घोले हवा में, बादे-सबा गुलाबी
फागुन हुआ सुहाना, मौसम बना गुलाबी   
गुजरात से हिमाचल, आसाम से उड़ीसा
यू .पी. बिहार, गोवा, ऑलिन-डिया गुलाबी
दाना चुगे नशीला, सूरज को बोले चन्दा    
बेकाबु सब परिन्दा, अम्बर धरा गुलाबी 
बच्चा बूढा जवनका, सबके जबाँ पे गाली   
भाषा हमार सादा,  बोली बड़ा गुलाबी
ढोलक मझीरे तबले, ढमढम बजे दनादन
सुर ताल में लिपटकर, चीखे गला गुलाबी
नाचे रगड़ झमाझम, जीजा के संग साला
काका कमर हिलावे, खा कर पुवा गुलाबी
गर चाहते हो तुम भी, घोड़े की चाल ताकत
खेसड़ की दाल पीओ, फांको चना गुलाबी
इंजन के पीछे डिब्बा, डिब्बा के पीछे इंजन
देखी न ऐसी गाड़ी, उगले धुँआ गुलाबी
'नीरज-तिलक' सुनाये, किस्सा महीन-गाढ़ा  
रच दो कहानी 'भभ्भर', गबरू गधा गुलाबी 
हैपी रहेगा सिस्टम, हैपी रहेगी जनता 
भ्रष्टों की तोड़े हड्डी, क़ानून बना गुलाबी
जो चाहते हो भारत, बन जाय विश्व गुरु
भगवा हरा न सादा, चश्मा पहन गुलाबी
जिसमे ख़ुशी तुम्हारी, मुझको वही लगाना
'केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी'
अँगना वहीँ बनाना, दुनिया वहीँ बसाना
पनपे जहाँ मोहब्बत, बरसे घटा गुलाबी
होली बड़ा केमिकल, री-एक-शन  नि-राला
जोभी था मन में काला, सब हो गया गुलाबी

 

 

सूचना- सूचना मिली हेगी कि श्री मधुसूदन जी मधुर अपनी अंग्रेजी की गजलों की कोचिंग क्‍लास जे वाली गर्मी की छुट्टी में लगाने वाले हैं । काय कि अंग्रेजी में उनको काफिया में बहुत मिल गये हैं । तो जिनको भी अंग्रेजी में गजल सीखनी है वे सब संपर्क करें । योग्‍यता में बस ये कि  ए से लेकर जेड तक के पूरे इक्‍कीस अक्षर याद होना चाहिये । ऐसा मधुर जी का कहना है । तो चलिये अपनी मातृभाषा में ग़ज़ल कहते हैं । सूचना समाप्‍त हुई ।

SUMITRA SHARMA1

सुमित्रा शर्मा

इनको भी होली में ही गजल लिखने की सूझ रही थी । अब लिखी है तो सुननी भी पड़ेगी । काय कि आपने नहीं सुनी तो ये आपकी भी नहीं सुनेंगी । मुशायरे का नियम होता है कि आप हमारी गजल सुनकर दाद दो, हम आपकी गजल सुनकर खाज देंगे । और बाद में दाद खाज मिटाओ जालिम लोशन लगाओ ।


केसरिया लाल पीला  नीला हरा गुलाबी
तपने लगा जो सूरज मौसम हुआ गुलाबी
बेमोजुं झूमते हैं गुंचे कली ये डाली
इनको पिला गया ज्यूँ मौसम सुरा गुलाबी
गेंदा गुलाब गुडहल महका रहे जमीं को
वो खिलखिलाया नीरज जल हो चला गुलाबी
पीपल की उम्र को भी सहला गयी पवनिया
शरमा के गात उसका कुछ हो रहा  गुलाबी
ख़ारिज किये  फिज़ा  ने सब उम्र के पहाड़े
बूढ़े कदम भी थिरके सुर हो  उठा गुलाबी
महुआ ने बांटी मदिरा  बैखोफ हर किसी को
उस का नशा जंहा को ही कर गया  गुलाबी
ये ओढ़नी बसंती धरती ने ओढ़ लीनी
दुल्हन बनी ,सजी वो ,आनन हुआ गुलाबी

तो भैया ये थी गजल इनकी, जिन जिन ने सुन ली है और जिन जिन को समझ में आ गई है वे दाद दे सकते हैं । जिनको समझ में नहीं आई है वो और जोर से दाद दें ताकि मन की भड़ास निकल जाये । और हां जिन जिन को समझ में आई है वो भभ्‍भड़ कवि को भी समझा दें इसका मतलब ।

सूचना- मुम्‍बई के सुप्रसिद्ध जूहू चौपाटी पर अब एक और दुकान खुल गई है । ये दुकान ढोकले की दुकान के ठीक पास है  । श्री नवीन चतुर्वेदी जी ने दोहे की दुकान खोली है । जिन भी सज्‍जन को उचित बनावट वाले दोहे चाहिये वे कभी भी जुहू जाकर ले सकते हैं । एक साथ तीन दोहे खरीदने पर एक चौपाई मुफ्त दी जायेगी । तो आइये आइये चले आइये दोहे की दुकान पर । सूचना समाप्‍त ।

MUKESH TIWARI 1

मुकेश कुमार तिवारी

ओ तेरी । ये  कौन है जो गुलाबी गजल में लाल रंग मिला रही है । मुझे तो लगे कि कोई मालवा की कबूतरी है । मालवा की कबूतरी ही इस प्रकार से गुलाबी रंग में लाल रंग मिलाती हैं । तो आइये सुनते हैं ।


केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
ये हैं रंग की छटाएँ बांधे समां गुलाबी
कोई नही यहाँ पे दूजे रंग में दिखता
सब पे ही चढ़ा है रंग खुशनुमा गुलाबी
बौछार है खुशी की जो मन का मैल धो दें
तन हो गया गुलाबी मन हो गया गुलाबी
बच्चा बना दें फिर से बीते दिनों की यादें
हो जाए मन शराबी जो रंग उड़ा गुलाबी
जीजा के साथ साली भौजी के संग देवर
होली चढ़े नशे सी जीवन बना गुलाबी
काटे न पेड़ कोई हरियाली को बचाएँ
खिल जाए मन की बगिया उपवन रहा गुलाबी
माथे गुलाल टीका त्यौहार के शगुन का
ऐसे मनाएँ होली पानी बचा गुलाबी

काटे न पेड़ कोई, काय क्‍या कोई हरियाली और खुशहाली का रेडियो का प्रायोजित कार्यक्रम चल रहा है सरकारी । मोय जे समझ में नहीं आये कि हर जगे पे ज्ञान ज्ञान ज्ञान को क्‍या मतबल है । अरे भैया होली के दिन ज्ञान व्‍यान को कोई काम नहीं होता । होली तो अज्ञान से मनती है । और पानी बचाने का मतलब ये नहीं है कि त्‍यौहार ही खतम कर दो । आप क्‍या दैनिक भास्‍कर से आ रही हैं ।

सूचना- इलाहाबाद में एक विशेष प्रकार का अमरूद विकसित करने की योजना सरकार ने बनाई है । जे अमरूद का नाम श्री शेशधर तिवारी अमरूद होगा । काय कि ये अमरूद खा तो सब लेंगे लेकिन किसी को ये नहीं पता चलेगा कि इसका स्‍वाद क्‍या था । नाम के आगे प्रश्‍नवाचक चिन्‍ह भी लगा होगा । सूचना समाप्‍त ।

VINOD PANDEY

विनोद पाण्डेय

कबूतरी को पता है कि गुलाबी रंग सबसे अच्‍छा काले रंग के कन्‍ट्रास में दिखाई देता है । सो कबूतरी आज कन्‍ट्रास में आई है । राम जाने गजल में भी कुछ कन्‍टरास है कि सब कन्‍ट्रास पोशाक में ही हैगो ।

वो हैं गुलाब जैसे,हर एक इक अदा गुलाबी
उनसे मिली नजर तो चेहरा हुआ गुलाबी
गुझिया खिलायी  उसने,हाथों के अपने लाकर
मन मस्त हो गया और,मौसम हुआ गुलाबी
लेकिन खुमारी होली सर पे थी ऐसी छाई
मैं खुद हुआ गुलाबी उनको किया गुलाबी
तन,मन हुआ रंगीला,होली का रंग बिखरा
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
भाभी ने छत से फेका रंग भर के बाल्टी में
नीचे खड़ा था भोलू कुरता हुआ गुलाबी
दुबे जी निकले घर से पुरे बदन को रंग के
बच्चों ने फेंका गोबर,गोबर हुआ गुलाबी
ठंडई के साथ बूटी जो भंग की चढ़ा ली  
काला-कलूटा चेहरा भी दिख रहा गुलाबी

तालियां तालियां तालियां । मटरू की बिजली में केवल भैंस ही गुलाबी थी लेकिन हमारी कबूतरी ने तो गोबर भी गुलाबी कर दिया है  । मित्रों ऐसा पहली बार काव्‍य जगत में हुआ है कि गोबर गुलाबी हो गया है । सो इसे एक ऐतिहासिक घ्‍टना घोषित किया जाता है ।

सूचना- हिमाचल में मंत्रीमंडल का पुनरगठन किया गया है । तथा श्री नवनीत शर्मा को हल्‍कट मुख्‍यमंत्री का पद दिया गया है । ये पद उनकी हल्‍की सेवाओं के चलते दिया गया है । उनको प्रदेश के सारे हल्‍के काम करने होंगे । जबकि भारी काम दूसरा मुख्‍यमंत्री करेगा । सूचना समाप्‍त हुई ।

तो अब भभ्‍भड़ कवि आज्ञा लेते हैं । थक गये हैं । कल होली के मुशायरे के दूसरे अंक में आप सब से मुलाकात होगी । दाद देने के लिये एक पैग भंग का चढ़ाएं और फिर दाद दें ।

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

आज के शो स्‍टॉपर प्रस्‍तुतिकरण में दो रचनाकारों श्री मधुभूषण शर्मा 'मधुर' और श्री नवीन सी चतुर्वेदी से सुनते हैं उनकी ग़ज़लें ।

पहले इस शो स्‍टॉपर में केवल एक ही रचनाकार श्री नवीन चतुर्वेदी जी होने थे, लेकिन कल ही श्री द्विजेन्‍द्र द्विज जी द्वारा उनके गुरू श्री मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जी की एक ग़ज़ल तरही के लिये भेजी गई । चूंकि द्विज जी के गुरू हैं सो हम सबके भी वे गुरू हुए, सो बस ये तय किया गया कि नवीन जी के साथ मधुर जी मिल कर शो स्‍टॉपर बनेंगे तथा तरही का समापन करेंगे । हालांकि शो स्‍टॉपर को फैशन शो के संदर्भ में कुछ और अर्थ में लिया जाता है । वहां उसका मतलब होता है कि ऐसी प्रस्‍तुति जो शो को रोक दे । तो ये दोनों ग़ज़लें भी ऐसी ही हैं । समापन के बाद हम दो दिन का विश्राम लेंगे तथा 24 मार्च से होली की तरही शुरू हो जाएगी । तो दो दिन तक आप इन दो ग़ज़लों का आनंद लीजिये और होली का मूड बनाइये । मूड बना कर लिख भेजिये एक ग़ज़ल ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

holi-cartoons

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

आइये आज सुनते हैं श्री मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जी,  एवं श्री नवीन सी चतुर्वेदी से उनकी ग़ज़लें ।

 naveen chaturvedi

श्री नवीन सी. चतुर्वेदी जी 

ज़ुल्मत की रह में हर इक तारा बिछा पड़ा है
और चाँद बदलियों के पीछे पड़ा हुआ है

फिर से नई सहर की कुहरे ने माँग भर दी
और सूर्य अपने रथ पर ख़्वाबों को बुन रहा है

नींदें उड़ाईं जिसने, उस को ज़मीं पे लाओ
तारों से बात कर के किस का भला हुआ है

मिटती नहीं है साहब खूँ से लिखी इबारत
जो कुछ किया है तुमने कागज़ पे आ चुका है
 

जोशोख़रोश,जज़्बा; ख़्वाबोख़याल, कोशिश
हालात का ये अजगर क्या-क्या निगल चुका है

जब जामवंत गरजा हनुमत में जोश जागा
हमको जगाने वाला लोरी सुना रहा है

फिर से नई सहर की कुहरे ने मांग भर दी में सूर्य द्वारा अपने रथ पर ख्‍वाबों को बुनना बहुत प्रभावशाली बिम्‍ब बना है । अंधेरे और उजाले के बीच के द्वंद को बहुत अच्‍छी तरह से दिखाया गया है । मिटती नहीं है साहब खूं से लिखी इबारत में आसमान पर उड़ने वालों को ज़मीन पर लाने की बात का शायर ने खूब चित्रित किया है । जोशो खरोश जज्‍बा में एक बार फिर शायर ने हालात के अजगर पर करारी चोट की है । और अंत में हनुमान में जोश भरने वाला जामवंत का स्‍वर हम सब पर अर्थात हम सभी पर ही चोट कर रहा है । हम जो जगाना भूल गये हैं । हम जिनको जगाना है उन्‍हें सुला रहे हैं । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

madhubhooshan madhur
श्री मधुभूषण शर्मा जी 'मधुर'

अप्रैल 1951 में पंजाब में जन्मे डा० मधुभूषण शर्मा ‘मधुर’ अँग्रेज़ी साहित्य में डाक्टरेट हैं. बहुत ख़ूबसूरत आवाज़ के धनी ‘मधुर’ अपने ख़ूबसूरत कलाम के साथ श्रोताओं तक अपनी बात पहुँचाने का हुनर बाख़ूबी जानते हैं.इनका पहला ग़ज़ल संकलन जल्द ही पाठकों तक पहुँचने वाला है.आप आजकल डी०ए०वी० महविद्यालय कांगड़ा में अँग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष हैं.

ज़ुल्मो-सितम से आजिज़ जो खून खौलता है
वो आँख से टपक कर हाथों पे रेंगता है

दिल ही नहीं है दिल वो, जो दिल नहीं है रखता
अब चीज़ क्या है दिल ये, ये दिल ही जानता है

चांदी के चंद सिक्के खनकेंगे चाँद पे जब
देखेंगे हुस्न शायर किस शै से तोलता है

बाज़ार है ये दुनिया, हर चीज़ की है कीमत
ईमां ज़मीर सब कुछ पैसा खरीदता है

कहता हूँ ज़िंदगी मैं ज़िंदादिली से उसको
ये कैदे-बामुशक्कत जो तूने की अता है

आकाश में 'मधुर' भी कुछ देर तो उड़ेगा
उतरेगा फिर जमीं पे, दाना भी देखता है

तो बात मतले की । आंखों से टपक कर हाथों पर रेंगने वाले खून की बात ही क्‍या इसी खून के लिये तो चचा गालिब ने कहा था कि जो आंख से ही न टपका तो फिर लहू क्‍या है । बहुत सुंदर मतला । और उसके बाद का शेर तो उफ क्‍या शेर है दिल की आवृत्तियों ने आनंद ला दिया है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर । चांदी के चंद सिक्‍कों के चांद पर खनकने की बात बहुत दूर की सोच का परिचायक है, दूर की सोच मतलब बहुत आगे की सोच । जब चांद पर इन्‍सां पहुंच जाएगा । और अंत में बहुत शानदार से मकते के शेर ने ग़ज़ल का मुकम्‍मल कर दिया है । सुंदर शेर । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

तो आनंद लीजिये दोनों शानदार ग़ज़लों का और देते रहिये दाद । और अब मिलते हैं होली के मुशायरे में । याद रहे आपने अभी तक अपनी ग़ज़ल 'केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी' पर नहीं भेजी है । जल्‍दी भेजिये क्‍योंकि 24 से 26 तक होने वाला है होली का धमाल ।

बुधवार, 20 मार्च 2013

होली का माहौल बनाने के लिये आइये आज सुनते हैं एक हजल जो है डॉ संजय दानी की हजल, साथ में श्री निर्मल सिद्धू तथा श्री अरुन शर्मा की ग़ज़लें ।

होली आ ही गई है । और ब्‍लाग का माहौल भी होलीमय हो गया है । ऐसा कुछ दिनों पूर्व से इसलिये किया गया है क्‍योंकि दो दिन तक कवि सम्‍मेलनों के चक्‍कर के बाहर रहना है । सो दो दिन पूर्व से ही माहौल बना दिया गया । आज एक साथ तीन तीन शायर आ रहे हैं होली के माहौल को बनाने के लिये डॉ संजय दानी जी, श्री निर्मल सिद्धू जी और श्री अरुन शर्मा। आज का अंक अंतिम होना था किन्‍तु तकनीकी कारणों से अब अगला अंक इस तरही का अंतिम अंक होगा और उसके बाद होली का होला प्रारंभ हो जाएगा । गेस कीजिये  कि तरही के अंतिम अंक में शो स्‍टॉपर के रूप में कौन सा शायर अपनी एकल प्रस्‍तुति लेकर आने वाला है । दिमाग पर ज़ोर डालिये ।

होली के मिसरे पर कुछ ग़ज़लें प्राप्‍त हो चुकी हैं इतनी कि उनसे हमारा मुशायरा तो हो जाएगा लेकिन यदि सभी शिरकत करेंगे तो और आनंद आयेगा क्‍योंकि असली मज़ा सब के साथ आता है । तो केशरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी पर अपनी रचना ज़रूर भेजें । 24 के पूर्व भेज दें तो ठीक है, वैसे 24 और 25 को भी भेज सकते हैं । 26 को होली के एक दिन पूर्व हम होली के तरही का समापन करेंगे, सो 26 को या उसके बाद यदि आप रचना भेजते हैं तो वो एक अप्रैल के बाद ही बासी होली में स्‍थान पायेगी । क्‍योंकि हमारे यहां होली का पांच दिन का अवकाश होता है ।

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

sanjay dani

डॉ. संजय दानी जी

बिजली का रेट जब से इस प्रान्त में बढा है,
ये प्रान्त चोरों का गढ सा बनते जा रहा है।

क्यूं मुझको कैटरीना से दूर जाने कहते,
ये कैदे -बामशक्कत तो तूने की अता है।

रुकता न काम मेरा    दफ़्तर में कोई  भी अब ,
साड़ी पहन, वहां जाने का ये फ़ायदा है।

मैं सायकिल चलाता हूं बैठ डंडी में अब,
आगे का चक्का इस विधि से तेज़ भागता है।

महंगी है "माल" की सब चीज़ें तो फिर हुआ क्या,
वो मुफ़्त में मुहब्बत का ठौर खोलता है।

रामू ने पा लिया है होटल चलाने का गुर,
हर डिश में अब वो थोड़ी सी भांग घोलता है।

कुछ लोग पीते भी हैं, बीबी से डरते भी हैं,,
सारे दुखों से ये दुख इस दुनिया में बड़ा है।

मेरा पड़ोसी पोलिस का गुप्तचर है दानी,
पर उसका शह्र के चोरों से भी राब्ता है।

महंगी हैं मॉल की सब चीजें तो, में बहुत उम्‍दा तरीके से मॉल की तुलना मुहब्‍बत से की है । सच में मॉल संस्‍कृति को यदि कोई शै मात दे सकती है तो वो मुहब्‍बत ही है  । बस और बस मुहब्‍बत । साथ में ये भी निवेदन है कि रामू के होटल का पता अवश्‍य दे दीजिये ताकि उस होटल में हम कुछ भी खाने पीने से बच सकें । कुछ लोग पीते भी हैं बीबी से डरते भी हैं, ये शेर दुनिया के सारे मर्दों को समर्पित है । क्‍योंकि पीते भले ही सब न हों लेकिन डरते तो सब हैं ये एक ग्‍लाबल सचाई है । बहुत बहुत सुंदर ग़जल़ वाह वाह वाह होली का मूड बना दिया । 

nirmal sidhu

श्री निर्मल सिद्धू जी

ये क़ैदे बामुशक्क़त जो तूने की अता है
लगती कभी दवा तो लगती कभी सज़ा है,

तुझसे करें गिला कब तुझको कहाँ तलाशें
किस देश में नगर में, आखिर कहाँ छुपा है,

ये जग बदल-बदल के हर पल बदल रहा है
अपने ही घर में बैठा इन्सान लुट रहा है,

कलियुग की धार इतनी पैनी हुई है अब तो
हर कोई काटता है हर कोई कट रहा है,

तस्वीर इस जहां की यूं कर हुई है धुंधली
हर दिल धुआँ-धुआँ है हर दिल बुझा-बुझा है,

जो साथ चल रहा है वो भी नहीं हमारा
परखा उसे तो जाना उसमें कहाँ वफ़ा है,

संभलेंगे कब ये बिगड़े हालात इस जहां के
तू ही हमें बता दे तुझको तो सब पता है,

ऐसे में रुख़ हवा का जब तेरे दर से आता
मिलता तभी सुकूं है आता तभी मज़ा है,

तुझसे करें गिला कब तुझको कहां तलाशें, में बहुत सुंदर तरीके से उस बात को कहा गया है जिसे कई कई बार शायरों ने कई तरीके से कहा है । उसी को नये तरीके से कहा गया । कलियुग वाला शेर भी अपने मिसरा सानी के कारण प्रभावी हो गया है । सचमुच आज यही तो हाल है कि हर कोई काटता है हर कोई कट रहा है । सभलेंगे कब ये बिगड़े हालात इस जहां के में एक बार फिर से उस मालिक से प्रश्‍न है और एक यूनविर्सल प्रश्‍न है । ऐसे में रुख हवा का शेर भी अलग बन पड़ा है । बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

arun sharma

श्री अरुन शर्मा

काटों भरी डगर है जीवन का पथ खुदा है,
गंभीर ये समस्या हल आज लापता है,

अंधा समाज बैरी इंसान खुद खुदी का,
अनपढ़ से भी है पिछड़ा, वो जो पढ़ा लिखा  है,

धोखाधड़ी में अक्सर मसरूफ लोग देखे,
ईमान डगमगाया इन्‍सां लुटा पिटा  है,

तकदीर के भरोसे लाखों गरीब बैठे,
हिम्मत सदैव हारें इनकी यही खता है,

अपमान नारियों का करता रहा अधर्मी,
संसार आफतों का भण्डार हो चला है.

धोखाधड़ी में अक्‍सर मसरूफ लोग देखे शेर शेर अच्‍छा बन पड़ा है । अरुन की ये शुरूआत है और शुरूआत के हिसाब से गज़ल अच्‍छी बनी है । शुरू के दौर में कहन और वज्‍न का संतुलन साधना बहुत मुश्किल होता है । उस समय में यदि ग़ज़ल में हम ये संतुलन साध लें तो आगे के लिये काफी संभावनाएं जाग जाती हैं । मतले भी उसी प्रकार की संभावना दिखाई दे रही है । तकदीर के भरोसे बैठने वाला शेर भी उसी प्रकार से बना है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

तो आनंद लीजिये दोनों ग़ज़लों का और दाद देते रहिये और हां दिमाग में गुंजाते रहिये 'केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी' ।

सोमवार, 18 मार्च 2013

तो आइये होली के तरही मुशायरे की ओर बढ़ते हुए आज तीन और रचनाकारों श्री गिरीश पंकज जी, श्री समीर लाल समीर और श्री मंसूर अली हाशमी की रचनाओं का आनंद लेते हैं ।

इस बार के तरही मुशायरे में बहुत विविध रंगी ग़ज़लें मिलीं । और अब सामने है सचमुच का विविध रंगी त्‍यौहार । अभी तक होली के मुशायरे के लिये कुछ  रचनाएं मिल चुकी हैं । लेकिन इंतजार है कि और सब लोग भी रचनाएं भेजेंगे । मिसरा तो याद है न

केसरिया, लाल, पीला, नीला,हरा, गुलाबी

कुछ मेल मिले हैं कि रदीफ काफिया कुछ  समझ में नहीं आ रहा है, उनके उदाहरणार्थ  एक मिसरा 'जिसको भी तुमने देखा वो हो गया गुलाबी'' । कुछ लोगों ने पूछा है कि रचना हास्‍य की भेजनी है या सामान्‍य, तो उनके लिये ये कि होली पर कुछ सामान्‍य नहीं होता है ।

तो होली  के लिये जल्‍द से अपनी रचना भेजें ।

एक सूचना -30 मार्च को भोपाल के टीटीटीआई सभागार में आपके मित्र को 'वागीश्‍वरी सम्‍मान' प्रदान किया जायेगा । जो मित्र भोपाल में हों वे सदर आमंत्रित हैं

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने अता की है

girish pankaj

श्री गिरीश पंकज जी 

इक दिन सभी को जाना पड़ता है तयशुदा है
जो भी समझ न पाए तो उसकी ये खता है

अहसान मानता हूँ भगवान् या खुदा का
ये कैद-ए -बामुशक्कत जो तूने की अता है
 

दुःख मिल रहा है मुझको कल तो खुशी मिलेगी
आयेंगे दिन सुनहरे हमको यही पता है

जो खुश नहीं रहेंगे जीवन नरक बनेगा
लगता है आजकल ये हर द्वार की कथा है

वो था बड़ा ही ज़ुल्मी अब भागता फिरे है
छोटा-सा दीप जबसे आँगन में इक जला है

कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे
आयेगा वक्त अब तक पर्दा कहाँ हटा है

मन में वसंत छाया बिछुड़ा वो प्यार पाया
मुरझा गया था 'पंकज' सहसा अभी खिला है

सबसे पहले तो मतला बहुत प्रभावी बना है । जीवन की कड़वी सच्‍चाई को बयान करता हुआ मतला बहुत कुछ कह रहा है । घर में  संतान हो जाने के बाद अपराध बोध किस कदर कचोटता है उसका उदाहरण है वो था बड़ा ही ज़ुल्‍मी शेर । और कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे में सोच को  विस्‍तार दिया गया है । मकते के शेर में अपने नाम का प्रयोग बहुत सुंदरता के साथ हुआ है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह  ।

sameer lal 

श्री समीर लाल ’समीर’  जी

ये कैदे बामश्क्कत, जो तूने की अता है
ये मुझको दी सजा है या खुद को दी सजा है.

ये दुनिया देखती है,  हाथों में हाथ अपने
इसमें तेरी रजा है, इसमें मेरी रजा है.

इल्ज़ाम जो मोहब्बत, के हम पे लग रहे हैं
तेरी भी कुछ खता है, मेरी भी कुछ खता है.

जो इश्क की गली में,  मंदिर है प्रीत वाला
वो तेरा भी पता है, वो मेरा भी पता है

नाकामियों का मतलब, कोशिश में कुछ कमी है
ये तुझको भी पता है, ये मुझको भी पता है.

है बेरहम ये दुनिया,  दूजा जहां बसाएं
तेरा भी फैसला है मेरा भी फैसला है

एक प्रयोग के तहत ये ग़ज़ल कही गई है । जिसमें मिसरा सानी को एक ही प्रकार से लिखने की कोशिश है । ये प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा है। इसी प्रयोग के चलते मतला बहुत  सुंदर होकर सामने आया है । और इल्‍जाम जो मोहब्‍बत के हम पे लग रहे हैं में भी मिसरा सानी का प्रयोग सुंदर बन पड़ा है । जो इश्‍क की गली मे मंदिर है प्रीत वाला में ये प्रयोग अपने सुंदरतम रूप में सामने आया है । नाकामियों का मतलब में भी ये प्रयोग बहुत खूब बना है । सुंदर ग़ज़ल,वाह वाह वाह ।

Mansoor ali Hashmi

श्री मंसूर अली हाशमी जी

हरदम कचोटती जो वो  अंतरात्मा है,
काजल की कोठरी में जलता हुआ दिया है

ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है      
कर भी दे माफ अब तो ये मेरी इल्तिजा है

दरया में है सुनामी , धरती पे ज़लज़ला है
ए गर्दिशे ज़माना दामन में तेरे क्या है?

यारब मिरे वतन को आबादों शाद रखना
दिल में भी और लब पर मेरे यही दुआ है

फैशन, हवस परस्ती, अख्लाक़े बद , ये मस्ती
जब जब भटक गए हम तब तब मिली सजा है

जम्हूरियत है फिर भी 'राजा' तलाशते है !
अपनी सहूलियत से कानून बन रहा है

क्या बात ! पाप अपने धुलते नही हमारे ,
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है

मज़हब कहाँ सिखाता आपस में बैर रखना ?
है वो भी तो अधर्मी दिल जो दुखा रहा है

'चार लाईना', माअज़रत के साथ :
"जुल्फों के पेंचो ख़म में दिल ये उलझ गया है,
दीवाना मुझको करती तेरी हर एक अदा है
पाबंदियाँ है आयद रंगे तगज्ज़ुली पर
कैसे बयाँ करूँ मैं , तू क्या नही है क्या है।"

क्‍या कहा जाये मतले के बारे में, काजल की कोठरी में जलते हुए दिये की उपमा से अंतरात्‍मा को खूब पहचान दी है । आनंद का शेर । फिर शेर जम्‍हूरियत है फिर भी राजा तलाशने का शेर, आज के लोकतंत्र पर पैना व्‍यंग्‍य कसा है । लोकतंत्र के बाद भी हमारे देश में चल रही वंश परंपरा किसी राजशाही से कम नहीं है । गिरह का शेर एक अलग प्रकार से उस मोक्ष कामना है जिस मोक्ष को पाने के लिये बड़े बड़े ग्रंथ रचे गये । मजहब कहां सिखाता में धर्म को खूब परिभाषित किया गया है । अधर्मी सचमुच वही है    जो दिल दुखाता है ।  और चार लाइना में शायर अपने ओरिजनल रंग हास्‍य में डूबा होकर होली का माहौल बना रहा है । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

तो दाद देते रहिये और तालियां बजाते रहिये।

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

आइये आज तीन और रचनाकारों की ग़ज़लें सुनते हैं, सुलभ जायसवाल, रजनी नैयर मल्‍होत्रा और विनोद पाण्‍डये की ग़ज़लें ।

आज मन बहुत भारी है । कुछ ही देर पूर्व एक वाहन शहर में आया है जिसमें काश्‍मीर के आतंकी हमले में मारे गये सैनिक ओमप्रकाश का पार्थिव शरीर था । मन में एक प्रकार का  सूनापन आ गया उस ताबूत को देखकर जिसमें ओमप्रकाश सोया हुआ है । ओमप्रकाश जो कुछ ही दिन पहले गांव आया था ।  अपनी छोटी सी बेटी को एक गुडिया और बेटे को सायकल दिलवा कर गया था । वो मासूम बेटी आज भी उस गुडि़या से खेल रही है । उसे नहीं पता कि गुडि़या दिलवाने वाला तो चला गया । मेरी मुट्ठी में एक पसीजा हुआ गुलाब का फूल था जो मैंने चुपचाप से उस वाहन पर उछाल दिया । और मैं करभी क्‍या सकता था । और हम कर भी क्‍या सकते हैं । हमारे हाथ में कुछ भी तो नहीं है । हम तो इतने संवेदनहीन हैं कि जब देर रात उस   शहीद के परिजन सूचना पाकर बीमार होकर अस्‍पताल पहुंचते हैं तो उन्‍हें धक्‍के देकर गार्ड हस्‍पताल से   निकाल देता है । नर्स उन्‍हें देखने से मना कर देती है । टीवी का पत्रकार उस छोटे से बच्‍चे को गोद में लेकर पूछता है उसके पिता के बारे में । और बेशर्मों की तरह उस वाहन पर फूल चढ़ाने हम सब एकत्र भी हो जाते हैं । वो भी गुट में बंटे हुए  कि उधर कांग्रेसी खड़े हैं तो भाजपाई इधर खड़े होंगे। मन दुखी है ।

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ये कैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

आज की तरही शहीद ओमप्रकाश और काश्‍मीर हमले में मारे गये सैनिकों को समर्पित । आज मैं छोटे छोटे नोट लगा रहा हूं हर ग़ज़ल के बाद ।

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सुलभ जायसवाल

क्या आपने सुना है, क्या आपको पता है
ये बातें इनकलाबी जम्हूर में सज़ा है

माना वजीरे आज़म विद्वान और भला है 
ताला जुबान पर ये फिर किसलिए चढ़ा है 

मुखिया मिला जो अच्छा उम्मीद फिर जगी है 
टूटा प्रदेश था अब फिर से सँवर रहा है

कल हो गई शहादत नींबू का पेड़ की भी
छोटा सा घर था जिसमे गैराज आ घुसा है

बरसों बरस हैं लगते परिवर्तनों में यारो 
गूगल औ’ फेसबुक तो छोटा सा आंकड़ा है

दिलवालों की है दिल्ली, आया था सुन के बच्चा
राजा न राजधानी, बन में भटक गया है

सपनो को कल्पनाओं में जी के काटता हूं
'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है'

कुछ हाले-दिल 'सुलभ' तुम अपना भी गुनगुनाओ
जो वस्ल ने बुना था, जो हिज्र ने रचा है

मतला बहुत प्रभावशाली है । और उससे प्रभावशाली हुस्‍ने मतला है । दिलवालों की दिल्‍ली पर गहरा कटाक्ष किया है । इंटरनेट की दुनिया पर गूगल फेसबुक के माध्‍यम से गहरा व्‍यंग्‍य कसा है । अच्‍छी ग़ज़ल ।

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रजनी मल्होत्रा नैय्यर

ऐ ज़ीस्त देने वाले किस बात की सज़ा है
ये क़ैदे बामुशक्कत जो तूने की अता है

बिकते हैं बोलियों में खादी पहनने वाले
ये राज़ अंदरूनी सबको यहाँ पता  है

कल तक जो रास्तों  पर पाकेट मारता था
वो बन गया मिनिस्टर अख़बार में छपा है

सहरा को छान देखा, बस्ती-नगर में ढूंढा
अपने ही दिल के अन्दर हर एक सुख मिला है

मौसम था खुश्के जब तो, छत से थे देखे तारे
सावन में सारे घर में पानी टपक रहा है

महफ़िल में तेरी "रजनी" है छा गयी वीरानी
है हर तरफ ख़मोशी ये कैसा मयकदा है

खादी पहनने वालों की नीलामी का मंज़र ठीक उभरा है । पाकेटमार के मंत्री बनने का व्‍यंग्‍य भी सटीक है । और कबीर की तरह सुख को अपने ही अंदर तलाशने का  मंत्र शेर में बंधकर प्रभावशाली हुअ है ।

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विनोद पाण्डेय  

कच्चे घड़े है बच्चे, उनकी खता ही क्या  है।
है संस्कार क्या ये माँ बाप को पता है। 

सुनसान हो डगर तो चलना संभल संभल के
इंसान आज कल कुछ ज्यादा बदल गया है

सूरज की रोशनी से जग का मिटे अँधेरा
मन का मिटे अँधेरा सूरज किधर छुपा है

जनतंत्र लग रहा है कंकाल तंत्र जैसा
शासन से सुरक्षा के बदले में भय मिला है

पतझड़ के बाद मौसम कुछ इस कदर से  बदला
आया बसंत कब और कब ये चला गया है

जिनको गले लगाया वो पड़ गए गले ही
तब प्यार बांटना भी लगने लगी खता है।
 

कहने को साथ अपने है कायनात सारी
फिर भी  पता नहीं क्यों ये मन जुदा जुदा है

मतला एक बड़ी समस्‍या को लेकर सामने आया है । सूरज की रौशनी का प्रतीक बना कर बड़ी बात कह दी गई है । पतझड़ के बाद वसंत का न आना कई कई इशारों को समेटे है । आखिरी शेर में कायनात का साथ होना और मन का जुदा होना शेर का ऊंचाइयां दे रहा है ।

बुधवार, 13 मार्च 2013

आइये आज सुनते हैं तीन रचनाकारों की रचनाएं । आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी, श्री सौरभ पाण्‍डेय जी और आदरणीया सुमित्रा शर्मा जी की ग़ज़लें।

कुछ लोग कहते हैं कि सम्‍मान पुरस्‍कार, इन सबसे कुछ नहीं होता । मेरा ऐसा मानना है कि इनसे  लेख्‍ान पर कोई प्रभाव पड़ता हो या न हो किन्‍तु इनसे लेखक पर बहुत प्रभाव पड़ता है । क्‍योंकि ये एक प्रकार की स्‍वीकृति होते हैं कि हां आप जो कुछ कर रहे हैं उसे देखा जा रहा है । हां ये ज़रूर है कि सम्‍मानों और पुरस्‍कारों का स्‍तर देने वाली संस्‍थाओं ने ही कम किया है । मगर फिर भी समाज की नज़र होती है इस बात पर कि कौन सी संस्‍था इस मामले में अभी भी मापदंडों पर कड़ाई से अमल कर रही है । शिवना के सम्‍मानों तथा पुरस्‍कारों के मामले में अभी तक इस बात ध्‍यान रखा गया है । शिवना सारस्‍वत सम्‍मान, शिवना सम्‍मान तथा शिवना पुरस्‍कार ये तीनों देते समय बहुत सोच विचार कर निर्णय लिया जाता है । सम्‍मान और पुरस्‍कार एक प्रकार की जवाबदारी लेकर आते हैं । कि हां अब आपको और बेहतर काम करना है । इनसे परिपक्‍वता आती है । तिलकराज कपूर जी के  चयन का आप  सब ने जिस प्रकार से स्‍वागत किया है उससे पता चलता है कि चयन समिति की सोच और आप सब की सोच कितनी मिलती जुलती है । यह सम्‍मान समारोह वर्ष 2013 में किया जायेगा । प्रयास है कि इस बार अगस्‍त अथवा सितम्‍बर में हो । आगे रब दी मर्जी ।

''ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है''

आज सुनते हैं तीन रचनाकारों को । इस्‍मत दी और सौरभ जी तो हम सबके लिये सुपरिचित नाम हैं बल्कि वे इस परिवार के वरिष्‍ठ सदस्‍यों में हैं । आज हमारे इस परिवार में एक नये सदस्‍य का प्रवेश हो रहा है । सुमित्रा शर्मा जी पहली बार इस परिवार में अपनी रचना के साथ आ रही हैं । इन्‍होंने पहले ग़ज़ल लिख कर अपने ब्‍लाग पर लगा दी थी, किन्‍तु जब इन्‍हें पता चला कि परंपरा अनुसार तरही में भेजी गई रचना को तरही में आने से पहले कहीं और नहीं लगाया जाना चाहिये तो इन्‍होंने तुरंत अपने ब्‍लाग से ग़ज़ल को हटा लिया । तो आइये सुनते हैं तीनों गुणी रचनाकारों की रचनाएं ।

ismat zaidi didi

आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी ’शेफ़ा’ जी

गुज़रा ये सानेहा वो मुझ से जुदा हुआ है
हर ख़्वाब रेज़ा रेज़ा हो कर बिखर गया है

ज़ुल्फ़ों की छाँव की या रुख़्सार ओ लब की बातें
अच्छी लगें ये जब तक ,रोटी का आसरा है

आँसू बता रहे हैं ,अफ़सान ए तबस्सुम
नाकाम हसरतों की बस इक यही सदा है

मुझ को ज़रा बता दे दुश्वारियों की मुद्दत
"ये क़ैद ए बामशक़्क़त जो तूने की अता है "

वो जाते जाते उस का इक बार मुड़ के कहना
देखो  न भूल जाना, इतनी सी इल्तेजा है

कैसे यक़ीन कर लूँ? हम फिर कभी मिलेंगे
कब तुम ने ऐ ’शेफ़ा’ ये वादा वफ़ा किया है

वो जाते जाते उसका इक बार मुड़ के कहना,  ग़ज़ब ग़ज़ब कहन, कितनी सादगी से बात कह दी गई है । पारंपरिक ग़ज़ल में सबसे बड़ा आकर्षण होता है सादगी और मासूमियत से बात को कहना । और ये गुण्‍ा इस्‍मत दी की ग़ज़लों में खूब होते हैं । और उस के एकदम उलट एक और प्रभावशाली शेर जुल्‍फों की छांव की, उसमें रोटी के आसरे की बात ने खूब प्रभाव उत्‍पन्‍न किया है । और एक और बेहतरीन शेर सामने आया है आंसू बता रहे हैं,  इस्‍मत दी जिस सलीक़े से बात कहती हैं वो आज कम देखने को मिलता है । गिरह का शेर भी खूब बन पड़ा है । सुंदर रचना वाह वाह वाह ।

Saurabh

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी 

सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है ।
इस धुंध में अगन है.. तूफ़ान पल रहा है ॥

मालूम था ठगा ही रह जायगा समन्दर
क्यों आज संस्कारों के भाव पूछता है ?

मौसम तिज़ारतों के अंदाज़ क्यों न सीखे    
चिंगारियाँ सजातीं.. बाज़ार सज रहा है ॥

जो ज़िस्म जी रही हूँ, लगता मुझे सदा यों --
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है ॥

रखना खुले झरोखे, आती रहें हवाएँ..
तोतारटंत उसका, पर आज तक गधा है ॥

ग़र खंडहर चिढ़े हों ख़ामोश पत्थरों से  
ये मान लो कि जुगनू को ख़ौफ़ रात का है !!

हर माँ बहन व बीवी की शान के मुकाबिल-
जीता हुआ ज़माना, क्यों आज बेहया है ?

सबसे पहले बात मतले की, सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है और धुंध में अगन के साथ तूफान के पलने का बिम्‍ब बहुत सुंदर बना है । और ऐसा ही एक बिम्‍ब उभर कर आ रहा है गर खण्‍डहर चिढ़े हों में प्रतीकों और बिम्‍बों से बात करना छंदमुक्‍त कविता का गुण है किन्‍तु वही गुण जब छंदबद्ध कविता में उपयोग किया जाता है तो कमाल कमाल हो जाता है । संस्‍कारों के भाव पूछने पर समंदर के ठगे रह जाने की बात कहने वाला शेर भी बहुत खूब ब ना है । गिरह के शेर में स्‍त्री को लेकर मिसरा गढ़ना अलग प्रभाव उत्‍पन्‍न कर रहा है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।

sumitra sharma

आदरणीया सुमित्रा शर्मा जी

केन्द्रीय विद्यालय से 2007 मे pgt अंग्रेजी रिटायर हुई। पढने पढ़ाने का शौक बचपन से था। भाग्य ने बहुत इम्तिहान लिए पर शायद मेरी जिजीविषा को नहीं मार पाया। अब शाम पड़े भी कुछ न कुछ अपने व समाज दोनों के लिए करने की ललक बरक़रार है। मुश्किलो से भरी होने के बाद भी जिंदगी और दुनिया दोनों बहुत खुबसूरत हैं। एक और बात ईमेल, ब्लॉग सब मेरे लिए नए है।  मेरी एक पडोसी मित्र,जो मुझे मेरे स्वर्गीय बेटे जैसी लगती है, ने आपसे संपर्क करने को कहा। इसे बहर मे लिखने के लिए मैंने श्री नीरज गोस्वामी जी का दिशानिर्देश लिया।

ये कैदे  बामशक्कत जो तूने की अता है
जो की नहीं खताएँ  ये उनकी ही सजा है

ये मातमो के मंजर हर राह मे लगे है
हैवान आदमी पर अब हावी हो चला है

गमगीन सी है गलियाँ सड़के भी सूनी सूनी
जिसको भी देखती हूँ लगता वो गमजदा है

पाला किये जिसे वो अपना लहू बहा कर
लख्ते जिगर वो सारे अब दे गए दगा है

आँखों को ख्वाब कितने परसे थे जिंदगी ने
शीशे सरीखे टूटे क्यों किसको ये पता है
 

माना ख़ुशी मुक्कमिल मिलती नहीं जमीं पर
थोड़ी सी जो मिली है लगती है ज्यूँ सजा है

कब तक छिपेगा सूरज इन गम के बादलो से
आने को है उजाले इतना मुझे पता है
  

लगता नहीं है कि सुमित्रा जी ने अभी अभी ग़ज़ल पर काम करना शुरू किया है । प्रारंभिक दौर की ग़ज़लों में जिस प्रकार का कच्‍चापन मिलता है वो बिल्‍कुल नहीं है । गमगीन सी हैं गलियां सड़कें भी सूनी सूनी में बहुत सजीव चित्रण किया है आज के माहौल का । कब तक छिपेगा सूरज में आशा और उम्‍मीद की जो किरण झिलमिला रही है वो शेर का नई ऊंचाइयां प्रदान कर रही है । आंखों को ख्‍वाब कितने परसे थे जिंदगी ने में मिसरा सानी और उला बहुत सुंदर तरीके से एक दूसरे का प्रतिनिधित्‍व कर रहे हैं । बहुत सुंदर रचना वाह वाह वाह ।

तो सुनते रहिये तीनों रचनाकारों को और देते रहिये दाद ।

और याद  रखिये होली के तरही के मिसरे को ।

केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी

सोमवार, 11 मार्च 2013

सुकवि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान की घोषणा और श्री तिलक राज कूपर जी की ग़ज़लें ।

हम हमेशा उसी भाषा में सहज होते हैं जिस भाषा को हमने सबसे पहले बोला और सबसे पहले सुना । हमारी मातृभाषा । दूसरी किसी भी भाषा में हम उतने सहज नहीं होते हैं । कई बार हम उस भाषा का उपयोग करते समय बनावटी लगने लगते हैं । हमारी सहजता खो जाती है । और तिस पर कविता....... कविता तो अंदर से उमड़ने वाला वो प्रवाह है जो सहजता खोते ही खो जाता है । विचार हमेशा मातृभाषा में ही आते हैं । आप रोते भी हमेशा मातृभाषा में हैं और खुश भी उसी में होते हैं । कविता विचारों का प्रवाह है, कविता समाधि में उत्‍पन्‍न हुआ नाद है, कविता गहन पीड़ा में मुंह से निकला स्‍वर है । आप विद्वान बनने के लिये भले ही दूसरी भाषा में कविता कह लें किन्‍तु वो कविता स्‍वभाविक नहीं होगी । बनाया जाना और बन जाना के बीच के अंतर को यदि समझ सकें तो ये बात और स्‍पष्‍ट होगी । कविता बनावट से नहीं आती, कविता मुखौटों से नहीं आती । कविता वहीं आती है जहां सब कुछ सहज होता है स्‍वाभाविक होता है । हर भाषा को अपने अपने कवियों की आवश्‍यकता होती है । कवि ही किसी भाषा को जिन्‍दा रखता है । हम सब पर भी यही दायित्‍व है कि हम उस भाषा को जिन्‍दा रखें जो हमारी मातृभाषा है । पूरी हिम्‍मत के साथ इस काम को करें क्‍योंकि 'कायर' और 'कवि' आप इनमें से कुछ एक ही हो सकते हैं ये दोनों एक साथ नहीं हो सकते ।

ये क़ैदे बामशक्‍कत जो तूने की अता है

शिवरात्रि पर सुकव‍ि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान की घोषणा करने परंपरा पिछले वर्ष से कायम की है । सो आज उस पंरपरा का निर्वाहन करते हुए घोषित करते हैं इस वर्ष के सम्‍मानित कवि का नाम । इस वर्ष के लिये चयन समिति ने सर्व सम्‍मति से श्री तिलक राज कपूर जी का नाम सम्‍मान के लिये चयनित किया है । तो घोषित किया जाता है कि इस वर्ष का सुकवि रमेश हठीला शिवना सम्‍मान श्री तिलक राज कपूर जी को प्रदान किया जाएगा ।

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''सुकव‍ि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान''

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श्री तिलक राज कपूर जी

5 ग़ज़ल के रूप में वर्गीकृत करने की कोशिश की है।

ग़ज़ल-1
फुटपाथ पर अभी तक जो रात काटता है
वो सूर्य का उजाला हर देश में बिछा है।

कॉंधे मेरे पिता के मज़बूत हैं बहुत पर
मेरी ज़रूरतों का कुछ बोझ बढ़ गया है।

मॉं की उदास ऑंखें राहें बुहारती थीं
थक हार कर अब उनका हर स्वप्न सो रहा है।

रिश्ते  बँटे हुए हैं, अहसास सो गये हैं
है कौन जो किसी का दुख दर्द बॉंटता है।

इक दौड़ में लगे हैं बच्चे जवान बूढ़े
मंजि़ल मगर कहॉं है, इसका किसे पता है।

मेरे खि़लाफ़ साजि़श, जिसकी है, नाम उसका
लब बोलते नहीं, पर, ये दिल तो जानता है।

किसने गले लगाई, किसकी समझ में आई
‘ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है।‘

ग़ज़ल-2

कुनबा चलाए सत्ता किस तंत्र में लिखा है
बोलूँ मैं राजशाही तो मानता बुरा है।

पूछे कोई तो उनसे, ये आग क्यूँ लगाई
जिसमें किसी का सपना, धू-धू हुआ मिटा है।

हरदम धुँआ उगलना आदत यही थी उसकी
जब से बना वो शासक दंगा नहीं हुआ है।

नस्लों  के नाम पर अब, मत कीजिये सियासत
हर दौर में इसी से बाज़ू कोई कटा है।

बेजान तो नहीं पर पुतली बने हुए हैं
इनका ज़मीर बोलो गिरवी कहॉं रखा है।

चारों तरफ़ हैं उसके गिद्धों के झुंड देखो
राहत के काम शायद ये शख्स बॉंटता है।

नोटों पे साख बनकर, जब साथ तुम चले तो
‘राही’गया जहॉं भी, हर काम हो गया है

ग़ज़ल-3 

गुमसुम उदास ऑंखें लेकर वो घूमता है
कहते हैं लोग उसको मँहगाई ने डसा है।

कुछ और तो नहीं पर, गुदड़ी छुपा रहा है
सब कुछ लुटा है उसका, इक लाल ही बचा है।

परचम हरिक दिशा में बनकर जुलूस निकले
कुछ और हो न हो, पर, हर पेट भर गया है।

फिर सामने खड़ा है इक प्रश्नक यक्ष जैसा
कोशिश हज़ार की हैं, उत्तर नहीं मिला है।

ऊँची उड़ान पर है, ये सोच का पर्रिदा
बादल सियाह लेकिन इस पर तना हुआ है।

इस को बदल के उस को, उस को बदल के इस को
सब कुछ बदल के देखा, अंतर नहीं मिला है।

बेख़ौफ़ घूमता है, ख़रग़ोश इक अकेला
कहता है वो कि जंगल, उसके लिये बना है।

ग़ज़ल-4

जिसको चुना था वो तो, खबरों में छा गया है,
वोटर तलाश में है, नेता कहॉं छुपा है।

जंगल के शेर सारे, गीदड़ बने हुए हैं
जादू चला है किसका, हर शख्स जानता है।

दीपक तले अंधेरा, सुनता रहा हूँ लेकिन
जिसको चिराग़ समझा, अँधियार दे रहा है।

ताज़ी हवा कहॉं से लाऊँ मुझे बताओ
जब सोच का बग़ीचा पूरा सड़ा हुआ है।

वादा नहीं निभाना, आदत रही है उसकी
मजबूर वोट फिर भी, उसकी तरफ़ डला है।

अंधियार गर नहीं है दिल में तेरे तो बतला
सूरज की रौशनी से तू क्यूँ डरा-डरा है।

चारों तरफ़ बिसातें, तुमने बिछा रखी हैं
मुझको यकीं है इनसे होकर भी रास्ता है।

ग़ज़ल-5 

शायर बहुत है हैरॉं, क्या  वक्त को हुआ है
क्या  सच वही है जो वो, दिन-रात देखता है।

उथला हुआ है सागर, मोती नहीं बचे हैं
लहरें भटक रही हैं, सब कुछ नया नया है।

सूरज बुलंदियों पर इतरा रहा है लेकिन
क्या  जानता नहीं ये, इसको भी डूबना है।

मुझको मलय पवन की तुम याद मत दिलाओ
बदला हुआ है मौसम, बदली हुई हवा है।

वाराणसी सवेरा, संध्या अवध की प्यारी
वो रात मालवा की, इनका पता गुमा है।

पर्यावरण की बातें कल तक जो कर रहा था
वो काटता है जंगल, अखबार में छपा है।

नाविक हैं नींद में पर, जागी हुई हवाओं
तुमको नज़र है रखनी क्या  नाव की दिशा है।

इसे कहते हैं धमाके पर धमाका । सम्‍मान की घोषणा के साथ साथ पांच पांच ग़ज़लें । मां की उदास आंखें राहें बुहारती थीं, बहुत भावप्रवण शेर है ये, और उसी के साथ कांधे मेरे पिता के वाला शेर एक भावनात्‍मक जुगलबंदी कर रहा है । बेजान तो नहीं पर पुतली बने हुए हैं वाला शेर वर्तमान पर बहुत सटीक बयान दे रहा है । हमारे आस पास के पुतलों पर । उसको बदल के इसको वाला शेर गठन के हिसाब से खूब खूब बना है । इसमें दोनों मिसरे जिस प्रकार से एक दूसरे की आवाज़ में आवाज़ मिला रहे हैं वो वाह वाह करने पर मजबूर कर रहा है । अंधियार गर नहीं वाला शेर भी इसी प्रकार का शेर है जिसमें मिसरा सानी मिसरा उला से ठीक समन्‍वय कर रहा है । पर्यावरण की बातें कल तक जो कर रहा था ये शेर मध्‍यप्रदेश पर ही बहुत सटीक हो रहा है । क्‍यों हो रहा है ये पब्लिक है सब जानती है । बहुत सुंदर ग़ज़लें । वाह वाह वाह ।

तो बधाइयां दीजिये तिलकराज जी को और दाद भी दीजिये इन सुंदर ग़ज़लों पर । और हां याद रखिये कि होली का मुशायरा 24, 25 और 26 मार्च को होगा । 27 को होली है सो हम होली के तीन दिन पहले ये आयोजन करेंगे ।  होली को लेकर जो मिसरा दिया जा रहा है वो ये है । ''केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी'' मिसरा समान बहर पर है जो चल रही है अर्थात 221-2122-221-2122 (मफऊलु-फाएलातुन-मफऊलु-फाएलातुन)  । इसमें क़ाफिया  भी वही है जो अभी चल रही तरही में  है अर्थात 'आ' की मात्रा ( हरा की आ की मात्रा ) । और रदीफ है 'गुलाबी' ।

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