सोमवार, 20 नवंबर 2023

बहुत अच्छा खेले लड़कों (पंकज सुबीर)

बहुत अच्छा खेले लड़कों  (पंकज सुबीर)

खेलों का आविष्कार मानव ने जीत या हार के लिए नहीं किया था, अपने मनोरंजन के लिए किया था। और यह बात एकदम सच है कि बीते 46 दिनों में सभी टीमों ने मिल कर दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया। रोहित, गिल, विराट, श्रेयस और राहुल ने बल्ले से तो शामी, बुमराह, सिराज, कुलदीप और जडेजा ने गेंद से हम लोगों को रोमांचित बनाये रखा। आप क्यों 19 अक्टूबर को ही स्मृतियों में बनाये रखना चाहते हैं ? उससे पहले के मैचों को क्यों नहीं याद रखना चाहते ? याद रखिए शामी, सिराज और बुमराह द्वारा बोल्ड होते, स्लिप पर कैच होते और पगबाधा होते बल्लेबाज़, रोहित, विराट, गिल, राहुल और श्रेयस द्वारा लगाये गये लम्बे-लम्बे छक्के, शतक और अर्धशतक। लेकिन इसमें हमारी ग़लती नहीं है, हमारी कंडिशनिंग की ग़लती है। हमारी फ़िल्मों में हमें दिखाया जाता है कि फ़िल्म के अंत में नायक विजयी रहता है और नायक के विजय भाव को अपने अंदर बसा कर हम सिनेमा हॉल से बाहर निकलते हैं। असल में फ़िल्म देखते समय हम नायक के साथ एकाकार हो जाते हैं, जब अंत में नायक जीतता है, तो हमें ऐसा लगता है कि नायक नहीं हम ही जीते हैं। यदि किसी फ़िल्म में नायक अंत में जीतता नहीं है, तो वह फ़िल्म फ़्लाप हो जाती है। भले ही फ़िल्म ने पूरे समय दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया हो। श्रीदेवी और कमल हासन की फ़िल्म "सदमा" को याद कीजिए। फ़िल्म कमाल की थी, मगर दर्शकों को यह पसंद नहीं आया कि अंत में कमल हासन को बिना पहचाने श्रीदेवी रेल में बैठ कर चली जाती है, कमल हासन स्टेशन पर अपने आपको याद दिलाने के लिए बंदर की तरह नाचता रह जाता है। 19 अक्टूबर के अंत से पूरे विश्वकप के उल्लास को कम मत कीजिए, हमारी टीम ने हमारा भरपूर मनोरंजन किया है बाक़ी मैचों में, यह बात याद रखिए।

हर दिन हर किसी का नहीं होता, कल भारतीय टीम का दिन नहीं था। अब दिन होता तो ये 240 रन भी बहुत थे डिफेंड करने के लिए। तब, जब आपके पास सारे विश्वस्तरीय गेंदबाज़ हों। मुझे याद आ रहा है कि जब मैं इछावर में रहता था और अपनी क्रिकेट टीम "प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र इछावर" का कप्तान भी था। तब हम 20-20 मैच ही खेलते थे। एक बार हम इछावर के पास गाँव ब्रजेश नगर में टूर्नामेंट का फाइनल खेल रहे थे और पहले बैटिंग करते हुए हम 18 रन पर आल आउट हो गये थे। गेंद ज़मीन पर पड़ने के बाद ज़मीन से चिपकती हुई आ रही थी। हमने सोचा कि अब तो क्या जीतेंगे, मगर हमारे स्पिन बॉलर मनीष ने मुझसे कहा- "छुट्टू (मेरा घर का नाम, इछावर के दोस्त आज भी मुझे पंकज सुबीर नाम से नहीं जानते, सब छुट्टू नाम से ही जानते हैं ) चिंता की बात नहीं है, उनकी गेंदें सुर्रा (ज़मीन से चिपकती हुई) जा रही हैं, तो हमारी भी जायेंगी।" मनीष सुर्रा विशेषज्ञ था और दिन हमारा था और सामने खेल रही सीहोर की मज़बूत टीम को हमारी छोटे क़स्बे इछावर की टीम ने 9 रन पर आल आउट कर ट्रॉफ़ी जीत ली थी। कल भारत का दिन नहीं था, कल का दिन ऑस्ट्रेलिया का था। होता तो बुमराह, शामी, सिराज पहले पन्द्रह ओवर में ही मैच को हमारे पक्ष में निर्णायक रूप से झुका देते। कोई भी हारने के लिए नहीं खेलता, सभी जीतने के लिए ही खेलते हैं, मगर खेल का नियम है कि जीतेगा कोई एक ही।

अति महत्त्वाकांक्षी माता-पिता के बच्चे जब प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल होते हैं, तो वह असल में माता-पिता की असफलता होती है। माता-पिता जब अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों के कंधों पर रख देते हैं तो बच्चों के क़दम लड़खड़ा जाते हैं। कल की हार टीम की हार नहीं है, हम क्रिकेट प्रेमियों की हार है, जिन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का बोझ टीम पर रख दिया। हमें पागलों की तरह केवल और केवल जीती ही चाहिए थी। भारत में मैच, सवा लाख से अधिक पगलाए हुए दर्शकों की स्टैंड्स में उपस्थिति, इतने कारण थे कि यह तो होना ही था। एक और घटना सुनाता हूँ, एक बार हमारी टीम इछावर की प्रतिष्ठित "मुरलीधर जोशी स्मृति प्रतियोगिता" के फाइनल में पहुँच गयी थी। मैच इछावर में ही था, पापा की पोस्टिंग वहाँ ब्लॉक मेडिकल ऑफ़िसर के रूप में थी। टीम में हम सब अस्पताल कैम्पस के ही बच्चे थे, जिनके पिता या माँ पापा के अधीनस्थ कार्यरत थे। पापा हौसला अफ़ज़ाई के लिए मैच देखने पहुँच गये। हम दोनों भाइयों के लिए पापा और बाक़ी बच्चों के लिए बड़े साहब दर्शकों में आ चुके थे। हम इतने नर्वस हुए कि जीतने की पूरी संभावनाओं के बाद भी हार गये। सवा सौ करोड़ से ज़्यादा लोगों की उम्मीदों का बोझ ग्यारह लड़कों पर था, यह तो होना ही था।

मैंने अभी तक जितने भी विश्वकप देखे हैं उनमें यह सबसे रोमांचक और सबसे दर्शनीय था। (जबकि मैं आईपीएल के कारण क्रिकेट देखना लगभग छोड़ चुका था।) इसकी बहुत सी बातें यादों में बनी रहेंगी और उनकी बातें हम करते रहेंगे। आइए इंतज़ार करते हैं 2027 के विश्व कप का। शायद उसमें विराट, रोहित, शामी और बुमराह नहीं हों, लेकिन उनकी जगह दूसरे होंगे। 'कल और आयेंगे नग़्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले', खिलाड़ी असफल होने के बाद जब मैदान पर रोता है, तब वह असफलता पर नहीं रो रहा होता है, वह असल में हम दर्शकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाने की निराशा के कारण रो रहा होता है। हमें ही बढ़ कर कहना होगा "कोई बात नहीं बच्चों, कप हाथ में नहीं आया कोई बात नहीं, पर हमारे लिए तुम ही विजेता हो।" आइए अपने खिलाड़ियों द्वारा किये गये उत्कृष्ट प्रदर्शन का उल्लास मनाते हैं। इनमें से बहुत से खिलाड़ियों का यह अंतिम विश्वकप है, आइए उनको कहते हैं कि खेल का अर्थ आनंद होता है और इस विश्वकप में आपके कारण हमने भरपूर आनंद लिया। 2027 में जब हम विश्वकप देख रहे होंगे तब आपको बहुत मिस करेंगे। बहुत अच्छा खेले लड़कों, बहुत अच्छा खेले। हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है। कुछ दिन आराम करो, फिर मिलते हैं।  - पंकज सुबीर

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बुधवार, 15 नवंबर 2023

आइये आज बासी दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों तिलक राज कपूर जी, चरण जीत लाल जी और रेखा भाटिया जी के साथ

हमारे यहाँ हर त्योहार का बासी संस्करण मनाने की परंपरा रही है और यह परंपरा है उन लोगों के लिए जो देर से स्टेशन पर पहुँचते हैं और दौड़ते हुए ट्रेन को पकड़ते हैं। हमारी तरही की ट्रेन भी ऐसी ही है, जिसमें कई रचनाकार दौड़ते हुए आते हैं, कुछ चढ़ जाते हैं तो कुछ बाद में बासी दीपावली के डब्बों में बैठ पाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है कुछ रचनाकार बासी दीपावली में शामिल हो रहे हैं। आप सभी को दीपावली के पाँच दिवसीय पर्व के अंतिम ​दिवस भाई दूज की शुभकामनाएँ। 
  आइये आज बासी दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों तिलक राज कपूर जी, चरण जीत लाल जी और रेखा भाटिया जी के साथ 
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
तिलक राज कपूर
 घूमकर गलियों में देखी है दिवाली रात भर
हमने अक्सर ही दिवाली यूं मनाई रात भर।
इक ग़ज़ल तुझ पर लिखी और गुनगुनाई रात भर
रस्मे उल्फत इस तरह हमने निभाई रात भर।

दर्द में खुद के समेटी बेजुबानी रात भर
खुद सुनाई, खुद को ही अपनी कहानी रात भर।
राम हैं सबके हृदय में तो भला क्यूँ हर बरस
किसके स्वागत में मनाते हैं दिवाली रात भर।

द्वार पर इक दीप रखकर सोचता हूं रोज मैं
आज किसकी याद कुछ बातें करेगी रात भर।
देखना है आज का दिन क्या मुझे दे जाएगा
एक बुलबुल द्वार पर बैठी रही थी रात भर।

सांझ की वेला में जिन प्रश्नों का उत्तर मिल गया
रौशनी उनकी दिया बनकर दिखेगी रात भर।
रात लंबी है मुझे अहसास है इसका मगर
प्रश्न है, क्या ज़िंदगी उलझी रहेगी रात भर।

दीप कुछ देकर गयी हैं दोपहर की कोशिशें
''रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर''।

 बचपन की दीपावलियों की याद दिलाता हुआ मतला है, गलियों में बेपरवाह घूमते रहने का आनंद अब कहाँ रहा। अगले ही शेर में रस्मे उल्फ़त को लिभाने का बहुत ही सुंदर तरीक़ा सामने आया है, किसी पर कुछ लिखना और गुनगुनाना, इससे अच्छा क्या होगा। अपनी कहानी अपने आप को ही सुनाने से अच्छा कुछ नहीं होता। अगले शेर में बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि राम सबके ही दिन में हैं तो फिर यह अगवानी किसकी हो रही है। रात भर किसी की यादों से बातें करना शायद सबसे अच्छा तरीक़ा है रात काटने का। किसी बुलबुल के रात भर द्वारा पर बैठे रहने से अगले दिन को लेकर एक सुंदर संभावना की प्रतीक्षा का शेर बहुत सुंदर बना है। जिन प्रश्नों का उत्तर दिन में तलाश लिया जाता है उनकी रौशनी रात में रास्ता दिखाती है। और एक ही प्रश्न में रात भर उलझे रहने की बात बहुत सुंदर है। अंतिम शेर में गिरह भी बहुत ही सुंदर बाँधी गयी है। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।
 

चरनजीत लाल
 रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
हुस्न के जलवों से होगी चाँदनी सी रात भर
चाँद-तारे हैं फ़लक पर आज रक़्साँ ओ सनम    
कहकशां बज़्म-ए-जवाँ में चूर होगी रात भर

सुर्ख़ लब ऐसे हैं तेरे जैसे माणिक हों जड़े
दिल पे ये करते रहेंगे गुल-फ़िशानी रात भर
देख तेरी नरगिसी आँखें ए ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं
जलवों की जादूगरी दिखती रही थी रात भर

ये दुआ दीपावली पर माँगते हैं कुमकुमे
ऐ ख़ुदा तेरी इनायत बरसे यूँ ही रात भर
ज़ुल्फ़ में रश्क-ए-क़मर की इश्क़ है उलझा हुआ
हुस्न की ये फुलझड़ी जलती रहेगी रात भर

हुस्न-ए-ताबाँ ने हमें जलवे दिखाए बे-हिसाब
अब हवा चलती रहेगी भीगी-भीगी रात भर
रूह हर रौशन हुई जश्न-ए-चरागाँ से “चरन”
नूर की रहमत बरसती ही रहेगी रात भर
मतले में ही गिरह को बहुत ही सुंदर तरीक़े से बाँधा गया है, हुस्न के जलवों से अगर चाँदनी हो रही हो, तो फिर तो रौशनी की नदी को रात भर बहना ही है। अगर रात भर फ़लक पर चाँद और तारे झूम रहे हों तो कहकशाँ को भी उस नशे में रात भर चूर ही रहना है। किसी के दो सुर्ख़ लब अगर आपके साथ हैं तो रात भर आप पर फूलों की बारिश होते ही रहना है यह तो तय है। जलवों की जादूगरी रात भर दिखती है यदि किसी की नरगिसी आँखों को देख लिया हो, नज़रें मिल गयी हों। सच है कि दीपावली पर दीप केवल यही दुआ माँगते हैं कि रब की इनायत रात भर बरसती रहे और अँधेरे से लड़ाई होती रहे। हुस्न के जलवे देख लेने के बाद यह तो होना ही था कि रात भर भीगी भीगी हवा चलती रहे। मकते का शेर भी बहुत अच्छे से दीपकों के प्रकाश में ईश्वर का नूर तलाश रहा है और उसके रात भी बरसते रहने की दुआ माँग रहा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
रेखा भाटिया   
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर

शब्दों के जाल बिछे रहेंगे चुनावी बाज़ारों में
होगा सुखद समय उज्ज्वल भविष्य बच्चों का
मुफ्त में होगा बिजली, पानी, शिक्षा, राशन
औरतों को दिया जाएगा भत्ता औरत होने का
मुफ्त का बस टिकट खाते में पैसा घर बैठे
गैस सिलेंडर सस्ता होगा पेट्रोल सस्ता होगा
ऊँचे -ऊँचे प्रलोभनों से खूब सजा है बाज़ार
कई और नेक इरादे हैं आने वाली सरकार के  

झूठे-सच्चे वादों की फुलझड़ियाँ जगमगाएगी
जात पात, धर्म भेद के पटाखों से मनेगी दीवाली
विकास, अमीरी, ताकत की मिठास बहुत है
लिपे-पुते नए कटघरों में छिप गई है गरीबी
तोपों, बंदूकों की रंगोली का नया चलन है
पैसे की पूजा एक ज़रूरत बन निभ रही
ऊँचे दामों में बिक जाता है युवा शहर में
लक्ष्मी माँ अब  घर-गाँव ढूँढती किसान है
रौशनी की एक किरण को तरसे जन -जन
चुनावी बंदनवार बंधा है राजधानी के द्वार पर
कोई नेता जेल में कोई जेल के बाहर खेल में

राम राज्य की स्थापना का दिवा स्वप्न दिखा
खेल रहीं हैं सियासी ताकतें रोज नए खेल
आपकी ही चुनी सरकार आपका ही सिर दर्द
वोटों की जुआ का खेल है मज़ेदार सभाओं में
घर-बाहर व्यस्त है जनता खूब मन रही दीवाली
पार्टियों में सिमट आई है घर-आँगन की दीवाली


काल में एक महामारी आई विध्वंस मचा चली गई
एक यह  दूसरी महामारी जिससे जूझ रहा है इंसान
राम राज्य को लाने से पहले राम को समझना होगा
बाहर से पहले भीतर स्थापित करनी होगी मर्यादा
वचनबद्धता, अनुशासन, कृतज्ञता की रौशनी से
राम पहुँचे जन-जन तक और जन -जन के मन तक
हम तो ठहरे प्रवासी तिमिर से लड़ता है देशवासी
यहाँ भी वही हाल है हिंसा का आतंक लेता जान है
घिर आई इस अमावस की रात में प्रज्वलित करें
हिल मिल कर दृढ़ता के दीप बह जाएँगे विकार
तब रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
बहुत ही सुंदरता के साथ हमारे समय को दीपावली के गीत में चित्रित किया गया है। हमारे समय की सारी चिंताओं को इस गीत में स्थान प्रदान किया गया है। पहले की बंद में एक बहुत महत्त्वपूर्ण पंक्ति आयी है- औरतों को दिया जायेगा भत्ता औरत होने का, वाह वाह क्या कमाल की पंक्ति लिखी है, पूरे गीत को सार्थक कर दिया इस पंक्ति ने। अगले ही बंद में चुनाव के शोर के बीच बिक रही इंसानियत का बहुत अच्छा चित्रण है, राम राज्य का सपना ​दिखाने वाले असल में क्या खेल खेल रहे हैं इसकी बहुत अच्छे से बात की गयी है। हमारी चुनी हुई सरकारें ही हमारा सिर दर्द हो जाती हैं। अंतिम बंद में कुछ दिनों पहले आयी कोरोना महामारी पर बहुत अच्छे से बात की गयी है और उसके बहाने से इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि असल में हम किसी रौशनी की तलाश में हैं, वह रौशनी जो हमको अंदर से प्रकाशित कर देती है। बहुत ही सुंदर कविता, वाह वाह वाह।
आज के सभी रचनाकारों ने बासी दीपावली का समाँ बाँध दिया है। बहुत सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। आप सभी को भाई दूज के इस पर्व की मंगलकामनाएँ। रचनाकारों को दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए भभ्भड़ कवि भौंचक्के का। 


रविवार, 12 नवंबर 2023

आइये आज दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, दिनेश नायडू, रजनी नैयर मल्होत्रा और गुरप्रीत सिंह जम्मू के साथ

दीपावली का पर्व आप सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाये। आप सभी रचनात्मकता के प्रकाश से जगमगाते रहें। सबसे बड़ा धन होता है आरोग्य धन, आप सभी इस धन से भरपूर रहें। आप सभी स्वस्थ तन, मन और धन के प्रकाश में रहें हमेशा। दीपावली का यह पर्व हमारे लिए नयी ऊर्जा के संचय का पर्व होता है। हम सभी इस पर्व से कुछ नया प्राप्त करें और हमेशा उस नूतन की खोज में बने रहें। आप सब सपरिपार स्वस्थ रहें, सानंद रहें और सुख से रहें, यही मंगल कामना है। 
  आइये आज दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, दिनेश नायडू, रजनी नैयर मल्होत्रा
और गुरप्रीत सिंह जम्मू के साथ 
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
गुरप्रीत सिंह जम्मू
मैं भी चुप था, वो भी चुप थी, एक चुप्पी रात भर।
हम ने मिलजुल कर ज़बान-ए-इश्क़ सीखी रात भर।
जिस्म पर जितनी भी गुम चोटें लगाईं वक्त ने,
गर्म होठों से हुई उनकी सिकाई रात भर।

रात भर मैने अनेकों रंग देखे हुस्न के,
गुल खिले, रिमझिम हुई और बर्क चमकी रात भर।
मदभरे और चुलबुले, आंखों के मयखाने खुले,
और फिर पीता रहा कोई शराबी रात भर।

हाथ में इक हाथ आते आते रह जाता रहा,
जाने कितनी बार मेरी नींद टूटी रात भर।
आपके जाते ही खिलवत कत्ल कर देगी मेरा,
पास मेरे बैठे रहना आप यूँ ही रात भर।

मेरे दर्द-ओ-ज़ख्म पल भर के लिए सोए नहीं,
सिसकियों की मैंने लोरी भी सुनाई रात भर।
उम्र भर जोड़ी थी जो अश्कों की दौलत ऐ सनम,
सारी तेरी याद पे मैंने लुटाई रात भर।

एक दिन पत्थर पिघल जाएगा, पागल, देखना!
दिल को मैं देता रहा झूठी तसल्ली रात भर।
अब मुझे अहसास होता जा रहा है दिन ब दिन,
क्यों पिता जी को नहीं थी नींद आती रात भर।

वाह! क्या मिसरा गुरु जी ने दिया है इस दफा,
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर।

 गुरप्रीत अभी एक बड़े दुख से बाहर आया है, हम सभी की संवेदनाएँ गुरप्रीत के साथ हैं। जीवन इसी का नाम है। मतले में ही क्या उस्तादाना रंग नज़र आ रहा है मिसरा सानी तो कमाल है। और उसके बाद का शेर जिसमें चोटों पर रात भर सिकाई हो रही है, उफ़्फ़.. निशब्द कर दिया इस शेर ने। फिर अगले ही शेर में वस्ल की रात की मंज़रकशी तो जानलेवा है। वस्ल की ही रात को शराबी के प्रतीक के माध्यम से कहता अगला शेर सुंदर है। सच है कि किसी के जाने के बाद ऐसा ही लगता है जैसे क़त्ल हो चुका है। यहाँ से जुदाई के तीन शेर आते हैं तीनों अलग-अलग तरीक़े से जुदाई की बात करते हैं, और बहुत सुंदरता से करते हैं अश्कों की दौलत लुटाने की बात हो, सिसकियों की लोरी की बात हो या पत्थर के पिघलने की बात हो, बहुत सुंदरता के साथ शब्दों में भाव व्यक्त हुए हैं। पिता वाला शेर कलेजे में उतर रहा है सीधे, सच है किसी के जाने के बाद ही आपको पता चलता है उसके बारे में। और अंत में गिरह का शेर किस खिलंदड़ अंदाज़ में कहा है, कमाल। सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह। 
 

दिनेश नायडू
मेरी नज़रें और सितारे, चांदमारी रात भर  
आरज़ू करता रहूँगा मैं तो उसकी रात भर
घुप्प अंधेरे में उसकी याद का जुगनू मिला
बाद उसके रौशनी ही रौशनी थी रात भर

सब मुझे अपनी सहर का ख़्वाब दिखलाने लगे
सुन नहीं पाया कोई मेरी कहानी रात भर
क्या पता ये लोग अंधेरों में जीना छोड़ दें  
बात तो चलने लगी है रौशनी की रात भर

सूर्ख़-रू आँखों में तेरा अक्स रोशन है अभी
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
हर कहीं उसका ही चेहरा हर कहीं उसका ही नूर
रात ये लगती नहीं है रात जैसी रात भर
दिनेश बहुत दिनों बाद मुशायरे में आये हैं। लेकिन कह सकते हैं देर आयद दुरस्त आयद। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लेकर आये हैं। मतले में ही एक पूरी रात की तस्वीर नौजवान प्रेमी की आँखों से देख कर बनायी गयी है। अगले शेर में किसी की याद कपा जुगनू मिल जाने पर रात भर रौशनी ही रौशनी रहने की बात बहुत सुंदर बनी है। अगला शेर बहुत गूढ़ अर्थ लिये है, सब मुझे अपनी सहर का ख़्वाब दिखलाने लगे बहुत अच्छे से अपनी व्यथा को व्यक्त किया है। अंधेरों में जीना छोड़ देने की बात उम्मीद की एक लौ की तरह सामने आ रही है क्योंकि बात रौशनी की होने लगी है, बहुत ही सुंदरता से प्रतिरोध की बात कही है। गिरह का शेर भी बहुत सुंदर बना है, किसी का अक्स यदि आँखों में हो तो रौशनी की नदी सी ही बहती है आँखों में। अंतिम शेर में मिसरा सानी में क्या उस्तादाना तरीक़े से मिसरा बनाया गया है, ग़ज़ब। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

सौरभ पाण्डेय
कुछ मचलती कुछ चहकती फिर पुलकती रात भर
माह कातिक की अमा कितनी गुलाबी रात भर
कसमसाती चूड़ियों की टूट के संगीत में
दर्द की तासीर बेसुध गा रही थी रात भर

दायरा दिन का बड़ा था हाथ में आना न था
किंतु मुट्ठी बाँध अकसर आस रोयी रात भर
धूप-छाँवों से बढ़ी दिन भर ऊ’बड़-खाबड़ चली
जिंदगी के स्वप्न में पर रोशनी थी रात भर

नम तरंगों का असर कुछ यों हुआ उस दौर में
बोलते अधरों को सुनती देह जागी रात भर
शाम ही से बाग का माहौल फिर ऐसा हुआ
हर कली सहमी हुई थी, थरथरायी रात भर

कौन कब कितना कहाँ किससे मिला किस शर्त पर
बात कानों कान थी पर खूब फैली रात भर
यों अँधेरा लाख तम का पाश फैलाता रहे
’रोशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर’
बहुत ही काव्यात्मक तरीक़े से मतला कहा गया है, कार्तिक की अमावस्या का पूरा चित्र आँखों में सामने आ गया है। उसके बाद अगला ही शेर मिलन यामिनी का एक सजीव चित्र सामने ला रहा है। चूड़ियों के टूटने का संगीत और उसके बाद दर्द तासीर का गाना, वाह क्या बात है। आस का रात के अँधेरे में रोना हम सब की कहानी कहता है। अगला शेर भी दिन के अकेलेपन और रात की रौशनी के पक्ष में बहुत सुंदर बयान है। और शायर अगले शेर में एक बार फिर अतीत में चला गया है जब अधरों को देह सुनती थी, क्या कमाल बात कही है। शाम से ही बाग़ का माहौल ख़राब होना और कलियों का रात भर थरथराना जैसे हमारे आज के समय पर ही टिप्पणी है। बात कानों कान थी पर ख़ूब फैली रात भर, क्या ही ग़ज़ब का मिसरा है, जैसे कोई कहावत हो। और अंतिम शेर में बहुत ही सुंदरता के साथ गिरह लगायी गयी है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

राकेश खंडेलवाल
कक्ष की दीवार पर नव लेप चूने का चढ़ा
जो महीनों से जमा था गर्द का बादल उड़ा
फूल गमलों में उगे थे मुस्कुराने लग गये
सांझियों को ले गये टेसू करा कर के विदा
अल्पना आँगन में काढ़ी और दादी ने कहा
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर


स्वास्थ्य जब धनवन्तरी के स्वर्ण कलशों से गिरा।
तन बदन पर मन पे जैसे संदली उबटन लगा
कृष्ण पक्षी रूप की इस इक चतुर्दश को यहाँ
हीरजनियों सा दमकता गात का हर इक सिरा
पूर्णिमा होती अमावस लगती रहेगी थाल भर
रोशनी की अब नदी बहती रहेगी साल भर

देव पूजन के लिए मोदक इमरती हैं सजे
गुझिया, पपड़ी, सेंव, चिवड़ा, खुरमे शक्कर में पगे
बालूशाही, चमचमों के साथ रसगुल्ले लिये
देख छप्पन भोग सम्मुख दाँत में उँगली दबे
ख़ुश्बूएँ चुंबन यही जड़ती रहेंगी गाल पर
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर


कृष्ण आये संग तो गिरी को नया यौवन मिला
लग गया छत्तीस व्यंजन, भोग छप्पन सिलसिला
सात परकम्मा समेटे सात कोसी दूरियाँ
जो तपस्या से न मिलता, एक इस दिन वो मिला
गोरधन की जय सदा होती रहेगी चाल पर
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर

पूर्णता यह पर्व पाये यम ​द्वितिया सूत से
भाई की रक्षा करेगी बहन यम के दूत से
इक नया आयाम हर संबंध को अब के मिले
फिर सभी आयें निकट यूँ बंध हो मज़बूत से
शह तिमिर को भी न आये, हाँ मिलेगी मात पर
ओढ़नी की ये नदी बहती रहेगी रात भर


गिफ्ट के डब्बे तिलक, पंकज गुरु को भेजते
और नीरज इक गुलाबी मोहरे को खोजते
सर खुजाता है दिगंबर दूर से परदेश में
हाशमी जी चमचमों में चाशनी को ढूँढते
पूछते गुरुप्रीत अश्विन क़ाफ़िया चौपाल पर
रोशनी की ये सभा सजती रहेगी साल भर
राकेश जी पिछले दिनों अस्वस्थ रहे, और अभी भी देखने में कुछ समस्या है उनको। उसके बाद भी उन्होंने तीन रचनाएँ भेजी हैं तरही के लिए। आज के इस गीत में उन्होंने पाँच दिनों के दीवापली पर्व पर जैसे पूरा निबंध ही लिख दिया है। पहले छंद में दीपावली के आते ही घर की साफ सफाई होने का चित्र खींच दिया गया है। उसके बाद का छंद धनतेरस तथा रूप चतुदर्शी के बिम्ब लिये हुए है, कितनी सुंदरता से इन त्यौहारों के बारे में इनके ही प्रतीकों के माध्यम से बात की गयी है। और उसके बाद दीपावली पूजन के लिए सजाये गये मिष्ठान्नों का सजीव चित्रण है अगले छंद में। पड़वाँ या गोवर्धन पूजा की परंपरा अगले छंद इस दिन की पूरी कहानी कह रही है।  और उसके बाद यम द्वितिया या भाई दूज का पर्व राकेश जी के शब्दों का स्पर्श पाकर खिल गया है। और हाँ राकेश जी अपने गीत में हर बार इस ब्लॉग की परंपरा को भी स्थान देते हैं तो इस बार भी अंतिम छंद इस ब्लॉग और इसकी परंपरा को ही उन्होंने समर्पित किया है। राकेश जी जल्द स्वस्थ हों हम सबकी शुभकामनाएँ। बहुत सुंदर गीत, वाह वाह वाह।
 

रजनी नैयर मल्होत्रा
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
हो घनी कितनी अमावस ये लड़ेगी रात भर
चाहते कुछ और हैं हम किन्तु होता और कुछ
आज तो मुझ पर हंसेगी ये उदासी रात भर
तुम वहां हो मैं यहां हूं पर्व ये फीका लगे
याद में तेरी ये आँखें अब बहेंगी रात भर
दूर हैं जो घर से बच्चे आने में लाचार हैं
बेबसी की वो कहें अपनी कहानी रात भर
इस तरह भी जीत अपनी आज़माने के लिए
फिर जुए की कोई तो महफिल जमेगी रात भर 
बहुत ही सुंदर तरीक़े से इस ग़ज़ल में अपनी बात को कह दिया है रजनी जी ने। मतले में ही घने अंघकार से लड़ने की बात कही है और फिर उसी में गिरह भी बाँध दी है मिसरा ऊला के रूप में। यह बात भी सच है कि हम चाहते कुछ और हैं लेकिन जीवन में और कुछ ही होता है, और उसी कारण उदासी होती है। हम जिससे प्रेम करते हैं यदि उससे हम दूर हैं तो पर्व त्यौहार सब फीके हो जाते हैं, और फिर बस रात भर आँखें बहती रहती हैं। हमारे बच्चे यदि त्यौहार पर नहीं आ पायें तो हमारे लिए त्यौहार एकदम बेकार हो जाता है। उधर बच्चे भी पर्व पर घर से दूर रह कर अपनी बेबसी की कहानी कहते हैं। और अंत में एक खराब परंपरा की बात भी कही गयी है जिसको दूर करना हम सब के लिए बहुत ज़रूरी है। जुए की परंपरा कब शुरू हुई यह ज्ञात नहीं लेकिन अब इसे समाप्त करना बहुत ज़रूरी है, अच्छी शेर कहा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
आज के सभी रचनाकारों ने दीपावली का समाँ बाँध दिया है। कितनी सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। आप सभी को दीपावली के इस पर्व की मंगलकामनाएँ। आप सभी स्वस्थ रहें सानंद रहें। रचनाकारों को दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए बासी दीवाली की ग़ज़लों का। 


शनिवार, 11 नवंबर 2023

आइए आज तरही मुशायरे का क्रम आगे बढ़ाते हैं, राकेश खंडेलवाल जी, धर्मेंद्र कुमार सिंह तथा गिरीश पंकज जी के साथ

दीपवली का पाँच दिन का यह त्यौहार अलग अलग भावनाओं को लिये हुए आता है। जैसे धन तेरस आती है और उसके बाद आती है रूप चतुदर्शी, इस दिन का महत्त्व रूप से है। अब रूप वह नहीं जो बाहरी होता है, वह रूप जो आंतरिक होता है। इस रूप का ही असली महत्त्व होता है। रूप चतुदर्शी का यह त्यौहार आप सभी के जीवन में आंतरिक सुंदरता का प्रकाश भरे। हम सब और बेहतर हों ताकि यह दुनिया और बेहतर हो सके। 
आइए आज तरही मुशायरे का क्रम आगे बढ़ाते हैं, राकेश खंडेलवाल जी, धर्मेंद्र कुमार सिंह तथा गिरीश पंकज जी के साथ
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर  


राकेश खंडेलवाल
पृष्ठ इतिहास के द्वार को खटखटा
फिर से हंसने लगे आज इस बात पर
पीढ़ियाँ आँजती आ रहीं ये सपन
रोशनी अब बहेगी यहाँ रात भर

दीप गाजा में जलता नहीं एक भी
और यूक्रेन पर तम घना छा रहा
क्या ये होने लगा आज ईरान में
ये किसी की समझ में नहीं आ रहा
सल्तनत तालिबानी बढ़े जा रही
पंथ सारे प्रगति के भी अवरुद्ध हैं
शांति को ओढ़कर,  मुस्कुराते हुए
भित्तिचित्रों में बैठे हुए बुद्ध हैं

और कब तक जलेगा यहाँ आदमी
साँस की बातियों को यहाँ कात कर
एक विश्वास खंडहर हुआ जा रहा
रोशनी की नदी बह सके रात भर


आज भारत में यौवन जला फुलझड़ी
आस ये एक फिर से जगाने लगा
दूर परदेश में जा बसी ज़िंदगी
टूट बिखरे घरौंदे बनाने लागा
ज्ञात संभावना एक, दस लाख में
पर दिवास्वप्न आँखों में बनते रहे
साँझ ढलती हुई ले गई थी बहा
वे महल रेत के, भोर सजते रहे

जोड़ते एक विश्वास अनुपात से
जोड़ बाक़ी, गुणा और फिर भाग कर
रोशनी की ये नदी जो बही है यहाँ
आज बहती रहेगी सकल रात भर

जल उठी रात महताब की रोशनी
फूटती चरखियों से सितारे झड़े
कार के, फ़्लैट के और सुख शांति की
चाहना के दिये फिर संवरने लगे
घर की अंगड़ाई में अल्पनाएँ सजी
ईश की वंदना में झुके शीश आ
हो मुबारक दिवाली ये अब के बरस
वाक्य होठों पे सब के ये सजने लगा

कामना मेरी भी आपके वास्ते
रोली अक्षत लिए पीतली थाल पर
रोशनी की ये नदी बह उठी आज जो
आपके द्वार बहती रहे साल भर 
पिछली बार हम सब चिंतित थे कि राकेश जी कहाँ अनुपस्थित हैं, फिर ज्ञात हुआ कि वे अस्वस्थ हैं। अब वे स्वस्थ हैं तथा पूरी ऊर्जा के साथ हमारी तरही में शामिल हो रहे हैं। राकेश जी के गीतों पर कोई टिप्पणी कर पाना मेरे लिए हमेशा से ही एक असंभव सा कार्य रहा है। इस बार भी मेरी स्थिति वैसी ही हो रही है। ग़ाज़ा से लेकर यूक्रेन तक गीतकार को पूरे विश्व की चिंता है, यही तो होता है वैश्विक भाव। हर जगह सुख और शांति की कामना ही तो गीतकार की कामना है। और दूर परदेस में रह कर भी अपना देश याद आता है, ऐसा लगता है कि उड़ कर वहाँ पहुँच जायें और फुलझड़ी जला कर दिवाली मनायें। सबके होंठों पर दीपावली की मंगल कामना के भाव हैं और रौशनी की नदी बहती रहेगी रात भर का विश्वास है। यही विश्वास तो हमारा संबल होता है। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।

धर्मेन्द्र कुमार सिंह
झोपड़ी दीपावली पर जगमगाती रात भर
रोज़ रोशन हो रही है राजधानी रात भर
रोशनी मैं दे रही हूँ तेल फिर क्यूँ जल रहा
सोचकर झालर बिचारी छटपटाती रात भर
जोर से हँसते पटाखे चीखती पागल हवा
सो रही इंसानियत की साँस घुटती रात भर
कैद होकर छटपटाती शहर में अब, पर कभी
घूमती थी गाँव में निर्द्वंद्व लक्ष्मी रात भर
फिर वही सीता, वही मारीच, रावण, अपहरण
कब तलक चलती रहेगी ये कहानी रात भर
जीत होगी सत्य की, आशा न टूटे इसलिए
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर

मतले में ही बहुत अच्छे से दीवाली का पूरा मंज़र खींच दिया गया है। झोपड़ी से लेकर राजधानी तक हर जगह रौशनी हो रही है। अगले ही शेर में बहुत सुंदर तरीक़े से तंज़ कसा है दीप और झालरों की तुलना पर। दीपावली एक त्यौहार था हर्ष का मगर हमने इसे प्रदूषण के पर्व में बदल ​दिया है। दुनिया का सबसे अच्छा त्यौहार सबसे डर का त्यौहार बन चुका है। इंसानियत की साँस घुटेगी नहीं तो क्या होगा। सच कहा कि जो लक्ष्मी गाँव में खुल कर घूमती थी वह अब शहर में क़ैद हो गयी है। रामायण की कहानी कितने बरसे बीतने पर भी पुरानी नहीं हो पा रही है वही किस्सा चला आ रहा है, बहुत ही सुंदरता से इसको शेर में गूँथा गया है। अंत में गिरह का शेर तो एकदम कमाल का है, पूरी ग़ज़ल में जिस लड़ने की बात की गयी है, वह अंतिम शेर में एकदम सार्थक रूप में आ गयी है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

 गिरीश पंकज
दीप की मुस्कान हमसे कुछ कहेगी रात भर
जीत होती ही रहेगी रौशनी की रात भर
डूब कर हमको नहाना है उजाले में यहाँ
"रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर”

ये अंधेरा लाख हँसता ही रहे तो क्या हुआ
एक नन्हें दीप की फिर जंग छिड़ेगी रात भर
ये तिमिर बलवान लेकिन दरअसल डरपोक है
उससे अपनी दीपिका फिर-फिर लड़ेगी रात भर

मत रहे बेचैन कोई भाग जाएगा तिमिर
रौशनी उस ठाँव में जाकर बसेगी रात भर
ज़िंदगी में है उजाला-ही-उजाला दोस्तो
आस्था अपनी यहाँ हरदम जलेगी रात भर

हम हैं वंशज दीप के उजियार अपना धर्म है
अब तो अपनी या तुम्हारी ही चलेगी रात भर
ज़िंदगी का हर अंधेरा दूर होगा उस घड़ी
रौशनी जब साथ हो तो वो हँसेगी रात भर

लाख रोकेंगे अंधेरे रौशनी का रास्ता
पर उजाले की हवा 'पंकज' बहेगी रात भर
दीपक की मुस्कान ही रौशनी के होने का प्रमाण है, यहाँ भी दीपक की मुस्कान के साथ प्रारंभ हुआ मतला बहुत सुंदर है। गिरह का शेर बहुत सुंदर है जिसमें रौशनी में डूब कर नहाने का प्रतीक रूप में प्रयोग किया गया है। अँधेरे और दीपक की लड़ाई का प्रयोग बहुत ही सुंदरता के साथ अगले शेर में आया है। तिमिर से दीपिका की लड़ाई रात भर चलती है यह बात बहुत अच्छे से आयी है। और यह बात एकदम सच कही है कि यदि दिल में आस्था हो तो ज़िंदगी में हर दम उजाला ही उजाला होता है। दीपक की चुनौती ही यही होती है कि हम तो रौशनी के रक्षक हैं या तो मिट जायेंगे या मिटा देंगे। जिससे प्रेम हो अगर वह साथ है तो फिर ज़िंदगी का हर अँधेरा दूर हो जाता है। और अंत में यह विश्वास भी क़ायम है कि अँधेरे भले ही कितना ही रौशनी का रास्ता रोकते रहें किन्तु रौशनी रात भर बहती रहती है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह। 
आज के तीनों शायरों ने रंग जमा दिया है। जी भर कर इनको दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

 




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