मैंने पहले ही कहा है कि मैं जितना जानता हूं उतना ही सिखाना चाहता हूं । और फि़र मैं ख़ुद भी एक छात्र ही हूं इसलिये यही कहूंगा कि 'सितारों के आगे जहां और भी हैं' मैं आपको एक राह दिखा रहा हूं इसके आगे बहुत कुछ है ।
बात व्याकरण की हिंदी में अरूज़ जिसका मतलब संस्कृत अरूज़ से होता है, जिसे छंद कहा गया और जिसको लेकर पिंगल शास्त्र की रचना की गई जिसमें हिंदी के छंदों का पूरा व्याकरण है । उर्दू में उसे अरूज़ कहा गया । ग़ज़ल में चूंकि बातचीत करने का लहज़ा होता है इसलिये ये छंद की तुलना में ज़्यादा लोकप्रिय हो गई । पिंगल और छन्द के क़ायदे बहुत मुश्किल होने के कारण और मात्राओं में जोड़ घट को संभलना थोड़ा मुश्िकल होने के कारण हिंदी में भी उर्दू का अरूज़ चल पड़ा । अरबी अरूज़ के पितामह अल्लामा ख़लील बिन अहमद थे जो 1300 साल पहले हुए थे यानि 8 वीं सदी में । वे यूनानी ज़बान को जानते थे अत: उन्होंने अरबी अरूज़ की ईज़ाद में यूनानी छंद शास्त्र की मदद ली हालंकि संस्कृत पिंगल तो उनकी पैदाइश के भी पहले का है और वे उसके जानकार भी थे पर आसान होने के कारण उन्होंने यूनानी अरज़ल की मदद ली । अलबरूनी ने अपनी किताब किताबुल हिंद में लिखा है कि पद बनाने का यूनानी तरीका भी वही है जो हिन्दुस्तानियों का है हिंदी में भी दो हिस्से होते हैं जिनको पद कहा जाता है । यूनानी में पदों को रजल कहा जाता है । वही पर ग़ज़ल में भी हैं । एक क़ामयाब शायर होने के लिये चार चीज़ें ज़रूरी हैं विचार, शब्द, व्याकरण और प्रस्तुतिकरण । विचार तभी होंगें जब आप अपने समय की नब्ज़ से परिचित होंगें । मेरे गुरूवार कहते हैं कि क्यों नहीं देखो राखी सावंत को, देखो और उसमें आज के दौर की नब्ज़ टटोलो कि समाज की दिशा क्या है । आज हम तुलसीदास की तरह ' तुलसी अब का होंइगे नर के मनसबदार' कह कर बचनहीं सकते कवि होने के नाते हमारी जि़म्मेदारी है कि हम समाज पर नज़र रखें । शब्द दूसरी चीज़ है जिसकी ज़रूरत है शब्द तभी आते हैं जब अध्ययन होता है, कहीं पढ़ा था मैंने कि यदि आप एक पेज लिखना चाहते हो तो पहले 1000 पेज पढ़ो तब आप में एक पेज लिख्ने की बात आएगी । तो शब्द जो शब्दकोश से आते हैं उनका शब्दकोश तभी समृद्ध होगा जब आप पढ़ेंगें । यहां एक बात कह देना चाहता हूं कि श्ब्द ना तो उर्दू के, फारसी के या संस्कृत के हों जिनका अर्थ सुनने वाले को डिक्शनरी में ढूंढना पड़े, वे ही शब्द लें जो आम आदमी के समझ में आ जाए क्योंकि कविता उसी के लिये तो लिखी जा रही हैं । जैसे ' सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा, इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा' इसमें सब कुछ वही है जो आम आदमी का है । बात यूं लग रही है कि प्रेमिका की हो रही है पर सोचो तो बात तो राजनीति पर कटाक्ष भी कर रही है , राजनीति को ध्यान में रखकर ये शेर फि़र से देखें । तीसरी चीज़ है व्याकरण जिसको उर्दू में अरूज़ कहा जाता है वो भी ज़रूरी है क्योंकि जब तक रिदम नहीं होती तब तक तो बात भी मज़ा नहीं देती है तो अरूज़ बिना कविता प्रभाव पैदा नहीं करती । निराला की कविता 'वो तोड़ती पत्थर' नई कविता है जो छंदमुक्त होती है पर छंदमुक्त होने के बाद भी उसमें रिदम है ये रिदम पदा होता है व्याकरण से अरूज़ से जो आपको यहां सीखने को मिलेगा । चौंथी चीज़ है प्रस्तुतिकरण ये तो आपके अंदर ही होता है किस तरह से आप अपनी कविता या गज़ल को पढ़ते हैं वो आप पर ही निर्भर है । वैसे जब ग़ज़ल अरूज़ के हिसाब से होती है तो उसमें लय स्वयं ही आ जाती है । अरूज़ की तराज़ू पर ही ग़ज़ल को कस कर देखा जाता है और कसने वाला होता है अरूज़ी जिसे अरूज़ का ज्ञान होता है । आज के लिये इतना ही , आज मेरे शहर में सुबह सात बजे से लाइट नहीं थी इसलिये आज की क्लास देर से ले रहा हूं । कुछ बच्चों की ग़ैर हाज़री लग रही है उड़न तश्तरी की आखि़र समय में लगते लगते बची । नियमित रहिये । जै राम जी की
होली का यह तरही मुशायरा
2 हफ़्ते पहले