ग़ज़ल की कक्षाएं बहर पर आकर कुछ सुस्त हो गईं हैं और ये बात मुझे भी अच्छी नहीं लग रही है कि मैं इतना धीरे काम कर रहा हूं । परक्या करूं कुछ ग़मे दौरां कुछ ग़मे जानां । खैर जैसे भी चलना है अब हम चलते ही हैं हां ये बात भी है कि इन दिनों विद्यार्ज्ञियों की भी हाजिरी वैसेी नहीं लग रही है जैसी कि पहले लगा करती थी । एक बात जो अजीत वडनेरकर जी ने बहुत अच्छी लिखी है वो यहां पर लिख रहा हूं
एक बात ज़रूर कहूंगा कि टिप्पणियों की परवाह ज़रूर करें। मुफ्त में न श्रम करें। आप सचमुच क्लास लगा रहे हैं और सीखने वालों की हाँ- हूँ तो आनी ही चाहिए। धमकाइये और हाँ -हूँ वसूल कीजिए । कोई मज़ाक समझ रखा है क्या।
तो बात ही है कि जब छात्र नहीं आते तो ऐसा लगता है कि फिजूल में ही मेहनत की जा रही है । एक बात ये भी है कि हम लोग धन्यवाद देने का चलन भूलते ही जा रहे हैं मैं ने अपने ब्लाग पर जो ट्रेकर लगाया है वो बता रहा है कि कुछ लोग निश्मित आ रहे हैं पर वे कोई बात किये बिना ही जा रहे हैं ।
खैर तो हम आज बात रकते हैं कि बहर क्या होती है और कितने प्राकर की होती है ।
बहर :- एक किस्म के रुक्न की तकरार से या भिन्न भ्निन रुक्नों के मेल से जो वज़्न पैदा होता है उसे बहर कहा जाता है । बहरों की कुल संख्या उन्नीस है जिसमें से सात मुफरद बहरें हैं और 12 मुरक्कब बहरें हैं ।
मुफरद और मुरक्कब के अर्थ को जानने के पहले हम बात करते हैं सालिम और मुजाहिब बहरों के बारे में । ये जो उन्नीस बहरों की बात मैंने की है इनकी फिर बहुत सारी उप बहरें हैं और जो उप बहरें हैं उनमें से दो प्राकर हैं एक तो सालिम बहर और दूसरी मुजाहिब बहर । इसको और ज्यादा खोलते हैं कि किस प्रकार से ये नाम सालिम और मुजाहिब जन्म लेते हैं । जैसे बहरे रमल की बात की जाए तो उसका वज़्न है फाएलातुन अब फाएलातुन का मतलब है कि रमल में कायदे से तो फाएलातुन ही रुक्न होना चाहिये मगर होता है ये कि बहरे रमल में कुछ रुक्न और भी आ जाते हैं । फिर भी बहरे रमल की वो ग़ज़ल जिसमें कि सारे रुक्न फाएलातुन हों उसको कहा जाएगा सालिम बहर । जैसे अगर किसी बहर में हो फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन तो उस हालत में फाएलातुन का अर्थ तो हो गया रमल फिर चार रुक्न हैं तो हो गया मुसमन और चारों रुक्न हैं अपने मूल फाएलातुन में तो ये हो गई सालिम अर्थात बहर का नाम हो गया बहरे रमल मुसमन सालिम । मगर ऐसा भी नहीं है कि बहरे रमल में फाएलातुन के अलावा और कुछ रुक्न आ ही नहीं सकता आ सकता है मगर उस हालत में वो सालिम बहर ना रह कर हो जाएगी मुजाहिब बहर अर्थात जिसके रुक्न में कुछ बदलाव आ रहा है और वो रुक्न अपने सालिम रुक्न में ही कुछ हेर फेर से बना होगा सालिम का अर्थ होता है समग्र । थोड़ा समझनें में अभी भी परेशानी आ रही होगी पर फिर भी समझना तो होगा ही ताकि हम बहरों का गणित समझ पाऐं ।
रमल का एक और उदाहरण देखें नीरज गोस्वामी जी की एक सुंदर ग़ज़ल का
मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनाई दे रहा सबजो कहा तुमने नहीं
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
अब ये बहरे रमल मुसमन महजूफ हैं । रमल तो समझ में आया कि फाएलातुन होगा मुसमन भी समझ में आया कि चार रुक्न होंगें पर ये महजूफ क्या बला है दरअस्ल में एक रुक्न बदल गया है और बदल ये गया है कि फाएलातनु में से एक दीर्घ की कमी हो गई है और वो कम होकर फाएलुन रह गया हे । मतलब अब बहर समग्र (सालिम ) नहीं रह गई है उसके एक रुक्न में दीर्घ की कमी होने से अब वो मुजाहिब रुक्न हो गया है तो अब बहर भी समग्र न रहकर हो गई है मुजाहिब । हालंकि अब वो है रमल ही पर समग्र नहीं है उसके मूल रुक्न में एक में कुछ कमी हो गई है । अब ये जो फाएलुन हो गया है इस मुजाहिब रुकन का नाम है महजूफ और इसके ही कारण अब बहर के नाम से सालिम शब्द हट गया है और वहां पर लग गया है महजूफ जो कि एक मुजाहिब रुक्न है और इसी कारण अब ये रमल की एक मुजाहिब बहर कहलाएगी । ध्यान दें कि रुक्न का ये फेर मूल रुक्न में ही होना है अर्थात बहरे रमल है तो उसके फाएलातनु में ही कमी होने से कोई नया रुक्न बनेगा जैसे फएलातुन, फाएलान, फालान, फाएलातु ये सारे रमल के मुजाहिब रुक्न हैं । और जब भी रमल में फाएलातुन के साथ ये आऐंगें तो बहर को सालिम से मुजाहिब कर देंगें । सालिम बहर के नाम के साथ तो सालिम लगा होता है पर मुजाहिब बहरों के नाम के साथ मुजाहिब न लग कर उन रुक्नों के नाम लगते हैं जो कि परिवर्तित हो गए हैं । जैसे ऊपर के मामले में फाएलुन का नाम है महजूफ तो बहर के नाम में लग गया महजूफ ।
अभी मैं मुफरद और मुरक्क्ब बहरों की तो बात कर ही नहीं रहा हूं क्योंकि वो तो और भी उलझन की बात है पर अभी तो हम केवल सालिम और मुजाहिब का ही फर्क देख रहे हैं । बहरे रमल में स्थिर रुक्न है फाएलातुन अर्थात बहरे रमल की समग्र (सालिम) बहरें हो सकती हैं फाएलातुन-फाएलातुन ( मुरब्बा सालिम - दो रुक्न ), फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन- ( मुसद्दस सालिम - तीन रुक्न), फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन- ( मुसमन सालिम - चार रुक्न ) । परंतु मुजाहिब बहरें तो काफी हो सकती हैं ।
आज के पाठ को मैं अगले बार पुन: दोहराऊंगा क्योंकि थोड़ा सा कठिन है । हां एक बात पुन: कहूंगा कि टिप्पणी देते रहें । आपके होने का एहसास मुझे काम करते रहने की प्रेरणा देता है ।
माड़स्साब
जवाब देंहटाएंबहुत गायब रह लिया. पिछला बहुत पढ़ना बाकी है मगर आप और गमगीन!! आप तो ऐसे न थे??
अरे, हँसिये सर!! ठहाके लगाईये-हम लौट आये हैं. :)
शुभकामनायें.
Sameer ji
जवाब देंहटाएंmahaul mein tabdilion ke aasaar to sach mein dikhayi pad jaate hai. Jaane kyon mumbai ko inse vanchit rakha!!!!!!!!!!!
मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनाई दे रहा सबजो कहा तुमने नहीं
bahut sunder sher hai.ye to kudrat ki ek lashani niyamat hai jo aisa hota hai. Neeraj ji ko badhaion ke saath.
बिन कहे सुनते हो ये करिश्मा ही तो है
हौसले कुछ कह भी पाने के कभी रहते नहीं
Devi
सर हाज़िर तो हमेशा होते हैं। पर क्या करें सीखने में गावदी हैं...........:)
जवाब देंहटाएंएक बार पढ़ा है गुरू जी लेकिन समझ में कम आई है..घर पर पढ़ कर फिर ठीक से समझ लूँगी...थोड़ी मोटी बुद्धि है ना....!
जवाब देंहटाएंसुबीर जी
जवाब देंहटाएंआप ने मेरी ग़ज़ल का मतला अपनी पोस्ट पर लगा कर और देवी दीदी ने उसकी तारीफ कर के जो इज्ज़त अफ्जाही की है उस से जो खुशी मुझे मिली है वो बयां नहीं की जा सकती. आप दोनों का तहे दिल से शुक्रिया.
नीरज
jee... samajh to aa rahaa hai thoda thoda
जवाब देंहटाएंYes Sir
जवाब देंहटाएंअभी इसको दुबारा पढ़ा, शायद एक दो बार और पढ़ना पड़े पूरी तरह समझने के लिए.
जवाब देंहटाएंuff ufff lagta hai bahur dafaa padhna padhega, tab samajh me aayega
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