सोमवार, 27 दिसंबर 2010

यदि संभव हो तो बुधवार 29 दिसंबर को शाम पांच बजे दिल्‍ली के प्रगति मैदान में चल रहे दिल्‍ली पुस्‍तक मेले के हाल नंबर 9 में नवलेखन पुरस्‍कार समारोह 2010 में पधारें।

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इस उपन्‍यास को लिखते समय मन बहुत अजीब सी स्थिति में था । एक तो पहला ही उपन्‍यास लिखना और उस पर भी ऐतिहासिक प्रष्‍ठभूमि पर लिखना ।  जरा सी भी गलती होने पर मार पड़ने की संभावना रहती है । मगर फिर भी बहुत इच्‍छा थी कि सीहोर में 1857 में स्‍थापित की गई पहली समानांतर सरकार सिपाही बहादुर पर कुछ अवश्‍य लिखूं । इसलिये भी कि 356 लोगों का नरसंहार होने के बाद भी इस घटना पर कुछ भी नही लिखा गया था । 14 जनवरी 1858 को जनरल ह्यूरोज़ ने बड़ी ही बेरहमी के साथ सीहोर की सिपाही बहादुर सरकार को कुचल दिया था । और कुचलने के लिये उसने 356 सिपाहियों को बेरहमी से मारा था । मुझे ये घटना हमेशा ही उद्वेलित करती रही कि इस पर किसी ने कुछ क्‍यों नहीं लिखा अभी तक । उद्वेलित शायद इसलिये भी करती हो कि मेरा ऑफिस ठीक उसी स्‍थान पर है जहां पर 14 जनवरी 1858 को वो नरसंहार हुआ था । सीहोर के बस स्‍टैंड के ठीक सामने का ये इलाका उस समय चांदमारी का इलाका कहलाता था जहां पर आज मेरा आफिस है तथा उस समय ये नरसंहार हुआ था । संयोग की बात है कि 2007 की वो घटना भी इसी इलाके में हुई जिसको लेकर मैंने ये उपन्‍यास रचा । 1857 की क्रांति के वे सिपाही माहवीर कोठ, वली शाह, शुजाअत खां, आदिल मोहम्‍मद, फाजिल मोहम्‍मद इनको कोई नहीं जानता । कोई नहीं जानता कि सीहोर में दुनिया की पहली समानांतर सरकार का गठन करने वाले ये लोग कौन थे । इतिहास में इनका जिक्र बहुत कम आता है । बस यही कारण था कि मुझे लगा कि अपने शहर की इस विरासत को लोगों के सामने लाया जाये ।

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ताकि कम से कम उन 356 की जो मजारें नदी के किनारे बनी हैं वहां पर कोई स्‍मारक बन सके । अभी तो ये होता है कि 14 जनवरी को सब जुटते हैं एक बार मंत्री जी भी आये घोषणा कर गये स्‍मारक की लेकिन उस घोषणा को भी चार साल बीत गये । हो सकता है कि अब कुछ हो । जब भारतीय ज्ञानपीठ ने इस उपन्‍यास को नवलेखन पुरस्‍कार देने की घोषणा की तो ऐसा लगा कि मेहनत सफल हो गई है। उपन्‍यास को लिखने के दौरान की बाते कभी साझा करूंगा ।

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ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्‍कार 2010  तो आखिरकार भारतीय ज्ञानपीठ का ये आयोजन होने जा रहा है । वर्ष भर उसको लेकर ऊहापोह रहा कि पता नहीं कब होगा । लेकिन अंतत: बीतते वर्ष में 29 दिसम्‍बर को शाम पांच बजे ये आयोजन नई दिल्‍ली के प्रगति मैदान में चल रहे पुस्‍तक मेले के हाल नंबर 9 में आयोजित किया जा रहा है । अभी तक जो सूचना मेरे पास है उसके अनुसार डॉ नामवर सिंह जी, चित्रा मुदगल जी, रवीन्‍द्र कालिया जी और शायद राजेंद्र यादव जी भी कार्यक्रम में रहेंगें । इन सबकी गरिमामय उपस्थिति में ये पुरस्‍कार प्रदान किया जायेगा । पुरस्‍कार जो मेरे विचार में सीहोर की उस सिपाही बहादुर सरकार को बरसों बाद मिल रही पहचान का पहला कदम है । मुझे तो 29 को दिल्‍ली आना ही था श्री समीर लाल जी के बेटे की शादी में सम्मिलित होने । मगर अब ये दो प्रयोजन हो गये हैं । मेरी इच्‍छा है कि आप सब भी 29 दिसम्‍बर को समय निकाल कर शाम पांच बजे प्रगति मैदान के हाल क्रमांक 9 में आयें । कम से कम दिल्‍ली के मित्रगण आयें तो बहुत ही अच्‍छा लगेगा । कई लोगों से मिलना मिलाना हो जायेगा । मैं स्‍वयं तो 28 की रात दिल्‍ली पहुंच जाऊंगा ।

तरही मुशायरा इस बार नववर्ष का तरही मुशायरा नये वर्ष में ही प्रारंभ होगा क्‍योंकि 31 को वपसी के बाद 1 जनवरी को साल के ठीक पहले ही दिन भोपाल में ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्‍कार को लेकर एक नगारिक अभिनंदन का कार्यक्रम है । ये अभिनंदन कवि सम्‍मेलन के मंच पर होगा । तो इस बार का तरही मुशायरा नये साल में 2 को शुरू होगा । तरही को कठिन बताने वाले लोगों के लिये सूचना कि अभी तक 10 ग़ज़लें मिल भी चुकी हैं । सो जाहिर सी बात है कि जो कठिन बता रहे हैं वे केवल कामचोरी कर रहे हैं ।

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बीता वर्ष  वर्ष वैसा ही रहा जैसा रहता है कुछ खट्टा कुछ मीठा । सबसे पहले कथादेश कहानी प्रतियोगिता में शायद जोशी से जनवरी की शुरूआत हुई, फरवरी में ज्ञानपीठ नवलेखन, फिर मई में सीहोर का ऐतिहासिक मुशायरा, जून में कहानी चौथमल मास्‍साब ने वो सब कुछ दिया जो कहानीकार को चाहिये होता है । ये वो सहर तो नहीं का प्रकाशन हुआ और साथ में ज्ञानपीठ की दो और पुस्‍तकों में दो कहानियों को स्‍थान मिला । और साल बीतते बीतते हंस की कहानी सदी का महानायक को लेकर जो फोन आ रहे हैं वे भी उत्‍साह वर्द्धन करने वाले हैं । मई में ही एक बड़ा संकट सामने आ गया जो अभी तक सरपर सवार है लेकिन अब उसके सुलझने के कुछ आसार बनते दिख रहे हैं । और अब साल बीतते बीतते ज्ञानपीठ नवलेखन का ये समारोह । आभार उस ईश्‍वर का जो मेरे साथ बना रहा और उन मित्रों का जो मेरा संबल बन कर उस संकट में मेरे साथ खड़े रहे और आज भी खड़े हैं । किसी एक का नाम ले ही नहीं सकता । बस ये कि आप सब हैं तो मैं हूं ।

आइयेगा ज़रूर 29 दिसम्‍बर की शाम 5 बजे, मुझे अच्‍छा लगेगा कि मेरे भी कुछ लोग हैं वहां पर ।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

नये साल में एक नया तरही मुशायरा हो जाये एक नयी बहर पर ।

तरही को लेकर हर बार ये ही उलझन रहती है कि नया मिसरा बनाना है और वो भी नयी बहर पर बनाना है । जैसे अगर हम केवल बहर की ही बात करें तो अभी हमने बहरों को लेकर बहुत कुछ काम करना बाकी है । कई सारी बहरें ऐसी हैं जिन पर काम होना शेष है । मुरक्‍कब बहरों की तो बात ही बाद में आयेगी अभी तो मुफरद में से ही कई सारी बहरें शेष हैं । और इन बहरों में से कई तो ऐसी हैं जिन पर बहुत काम सामान्‍य रूप से किया भी नहीं गया है । खैर इस बार की तरही में हम पिछली बार अधूरी छूट गई ईता की चर्चा को आगे बढ़ाएंगे । और भी बहुत कुछ करना है । देखते हैं कि क्‍या क्‍या हो पाता है ।

मुफरद में से जिन बहरों पर हम काम कर चुके हैं वे हैं रमल, रजज, मुतदारिक, मुतकारिब, हजज । इनमें से भी मुझे लगता है कि अभी तक हमने रमल के सालिम पर काम नहीं किया है । रमल की एक उपबहर पर हमने काम किया है । रमल की सालिम 2122-2122-2122-2122 पर अभी काम होना बाकी है । बाकी हजज, रजज, और अन्‍य दो पर तो हम सालिम में काम कर चुके हैं । वैसे अभी दो और बहरें बाकी हैं । एक कामिल और दूसरी वाफर । वैसे ये बात तो पहले भी  बताई जा चुकी है कामिल और रजज तथा वाफ़र और हजज ये हम शक्‍ल बहरें हैं । हम शक्‍ल का मतलब ये कि बस एक दीर्घ को दो लघु में तोड़ दिया और बहर बदल गई । उसमें से कामिल तो एक ऐसी बहर है जिस पर काफी काम हुआ है । लेकिन वाफर पर हिंदी और उर्दू में लगभग नहीं के बराबर काम हुआ है । तथा ये कहा जाता है कि ये बहर अरबी फारसी के लिये ज्‍यादा ठीक है ।

पिछली बार मैंने सोती मुशायर की बात की थी । मेरे विचार में उस प्रकार का कार्य हमको होली के पावन त्‍यौहार के लिये सुरक्षित कर देना चाहिये । क्‍योंकि सोती मुशायरे के लिये होली से ज्‍यादा अच्‍छा अवसर कोई दूसरा नहीं हो सकता है । और उसके लिये भी हम उस बहर को सुरक्षित कर देते हैं जिस पर काम नहीं हुआ है अर्थात वाफर को । वाफर जिस में हजज 1222 की तीसरी मात्रा जो दीर्घ है उसे तोड़ कर दो लघु बना दिये गये हैं 12112 , कितनी हैरत की बात है कि सबसे लो‍कप्रिय और सबसे ज्‍यादा चलने वाली हजज एक मात्रा टूटते ही सबसे कम चलने वाली वाफर बन जाती है । मुफाईलुन ==> मुफाएलतुन ।

खैर ये सारी बातें तो अगली बार के लिये छोड़ी जा सकती हैं । मगर इस बार तो चूंकि नये साल का स्‍वागत करना है इसलिये कुछ और ही करना होगा । तो मेरे विचार में हम दीपावली पर ली गई बहर रजज की हमशक्‍ल कामिल को ही इस बार लेते हैं । मुस्‍तफएलुन==> मुतफाएलुन 2212==>11212

बहरे कामिल बहुत उपयोग की गई बहर है । आदरणीय बशीर बद्र साहब ने बहुत काम इस बहर पर किया है । बहरे कामिल का स्‍थाई रुक्‍न है मुतफाएलुन 11212  । अर्थात पहली ही मात्रा दो लघु के रूप में ली जानी है । रजज में हमने पहली मात्रा दीर्घ के रूप में ली थी । ये बहर रजज की तुलना में कुछ आसान है । हालांकि एक बात ये है कि गाते समय दोनों ही बहरों की धुन तथा ध्‍वनि एक जैसी ही आती है । कारण वही है कि धुन तो मात्राओं के हिसाब से चलती है और यहां पर मात्राओं की स्थिति एक जैसी ही तो है । बहरे कामिल के मुसमन सालिम पर हम इस बार का मुशायरा रखते हैं । मुतफाएलुन-मुतफाएलुन-मुतफाएलुन-मुतफाएलुन 11212-11212-11212-11212 ( बहरे कामिल मुसमन सालिम) ।

तो ये तो हो गई बहर लेकिन अब इस पर मिसरा क्‍या हो । ऐसा मिसरा जिसमें नये साल की बात हो । नई उमंगों की बात हो । और वो सब कुछ हो जो नये साल में होना चाहिये ।

नए साल में, नए गुल खिलें, नई खुश्‍बुएं, नए रंग हों

या

नए साल में, नए गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो

( काफिया : रंग, रदीफ - हों अथवा हो )

दोनों मिसरों में फर्क बस ये है कि पहले मिसरे में रदीफ बहुवचन हो गया है अं की बिंदी लग जाने के कारण । हों ।  तथा दूसरे मिसरे में रदीफ एक वचन ही रहा है  हो ।  काफिया जानबूझकर कुछ मुश्किल रखा गया है । और उसके पीछे कारण ये है कि पिछले कई मुशायरों से हम काफिया कुछ सामान्‍य रख्‍ते आ  रहे हैं । तो इस बार कुछ मुश्किल रखने की इच्‍छा हुई । हालांकि ऐसा मुश्‍किल भी नहीं है । और उस पर स्‍वतंत्रता ये भी है कि आप अपने हिसाब से दोनों में से कोई भी एक मिसरा लेकर उस पर ग़ज़ल लिख सकते हैं । जिन लोगों को लगता है कि एकवचन रदीफ के साथ आसानी होगी वो दूसरा मिसरा ले लें और जिनको लगता है कि बहुवचन रदीफ के साथ आसानी होगी वे पहला मिसरा ले लें ।

मु त फा ए लुन मु त फा ए लुन मु त फा ए लुन मु त फा ए लुन
न ए सा ल में न ए गुल खि लें न इ खुश्‍ बु एं न ए रं ग हों
1  1 2  1  2 1  1  2    1   2 1  1   2   1  2 1  1  2  1  2
न ए सा ल में न ए गुल खि लें न इ हो म हक न या रं ग हो
 
जहां तब इस बहर पर उदाहरण तलाश करने का प्रश्‍न है तो वो तो आपको ही तलाश करने हैं । इस बार हम ईता की चर्चा को भी आगे बढ़ाएंगें । हालांकि इस बार का काफिया ईता दोष की संभावना से मुक्‍त है । और हां एक बात और वो ये कि हम ठीक 31 दिसम्‍बर से मुशायरा प्रारंभ कर देंगें । इस बहर का सौंदर्य तब और बहुत बढ़ जाता है जब हर रुक्‍न अपने आप में स्‍वतंत्र वाक्‍य की तरह होता है ।
जैसे
यूं ही बे स बब
न फि रा क रो
कि सी शा म घर
भी र हा क रो
तो कोशिश करें कुछ ऐसा ही लिखने की जिसमें हर एक रुक्‍न अपने आप में स्‍वतंत्र वाक्‍य की तरह होता हो । जैसा तरही मिसरे में भी है । तो चलिये मिलते हैं अगले अंक में कुछ और जानकारी के साथ ।

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

11 दिसंबर और 12 दिसंबर, यादों के गलियारों में सुनहरे फ्रेम में जड़ कर मानो किसीने इस प्रकार टांग दिये हैं कि आते जाते उन पर नज़र पड़ रही है । आइये चलें यादों के उसी गलियारे की सैर पर ।

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शिवना प्रकाशन का कार्यक्रम बहुत ही अच्‍छा रहा । आदरणीय राकेश जी को सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान करने की योजना इस वर्ष के प्रारंभ से ही बन रही थी लेकिन हर बार किसी न किसी कारण ये कार्यक्रम नहीं हो पाता था । और अंतत: वर्ष बीतते बीतते कार्यक्रम हो ही गया । और बहुत ही गरिमामय कार्यक्रम हो गया । हालांकि कार्यक्रम को और अधिक बड़े स्‍तर पर करने की योजना थी  । कई लोग आये और कार्यक्रम सफल तथा सुफल हो गया । कार्यक्रम की विस्‍तृत रपट तो आप पिछले अंक में पढ़ चुके है सो आज कुछ वो बातें जो बाकी के दो दिनों की यादें हैं ।

गौतम, रवि, अंकित, अर्श, वीनस ने ज़ोरदार तरीके से काव्‍य पाठ किया मुशायरे में । अंकित के संचालन में मुशायरा संपन्‍न हुआ । अंकित अब धीरे धीरे परपिक्‍व होता जा रहा है । हालांकि संचालन के लिये अभी भी बहुत परिष्‍कृत होने की आवश्‍यकता है । किन्‍तु बात वही है कि नई पीढ़ी को अंतत: तो बैटन पिछली पीढ़ी से संभालना ही पड़ता है इस रिले रेस में । यदि पिछली पीढ़ी बैटन देने में और नई पीढ़ी लेने में हिचकिचा गई तो रेस हारने की संभावना हो जाएगी ।

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गोष्‍ठी में वीनस ने धमाकेदार शुरूआत की । फिर प्रकाश अर्श का शानदार प्रदर्शन ( गौतम की झिड़की एक शेर पर रात को मिली) और फिर रविकांत ने अपना आइआइटी वाला प्रदर्शन एक बार फिर जोरदार तरीके से दोहराया ( जिसका विवरण बाद में गौतम ने गुंजन को विस्‍तार से प्रस्‍तुत किया ) । फिर गौतम ने कुछ ग़ज़लें पढ़ीं, और सीहोर के कुछ कवियों ने भी अपना न समझ में आने वाला कलाम पढ़ा । गोष्‍ठी को लूटा सीहोर के वरिष्‍ठ तथा मेरे पसंदीदा शायर भाई रियाज़ मोहम्‍मद रियाज़ साहब ने । उनके जो शेर खूब पसंद किये गये वो ये थे

तसव्‍वुर पर किसी का बस नहीं है, मैं जब चाहूं उसे आना पड़ेगा

इक शेर भी ग़जल का मुकम्‍मन न हो सका, इतना भी वक्‍त जाने ग़ज़ल ने नहीं दिया

दो क़दम बच कर चलो कमज़र्फ के एहसान से, फायदा थोड़ा ही अच्‍छा है बड़े नुकसान से

जब भी लगता है कि दिल के ज़ख्‍़म कुछ भरने लगे, लोट आता है कोई यादों के क़ब्रिस्‍तान से

उसके आ जाने से घर में खैरो बरकत आ गई, रहमतों का कुछ तो रिश्‍ता है मेरे मेहमान से

तीसरे नंबर के मतले ने तो मुशायरे की दाद और वाह वाह से छत ही उड़ा दी । उसके बाद फिर मैं, नारायण कासट जी और राकेश खंडेलवाल जी ने भी अपनी रचनाएं पढ़ीं । और हमारी कवि गोष्‍ठीयों के सबसे धुरंदर श्रोता श्री जयंत शाह के आभार के साथ गोष्‍ठी का समापन हुआ । और चित्र खिंचवाए गये । ( जांच जारी है कि फोटो में वीनस को किसने काटा ।फिलहाल कह सकते हैं कि जो कान नज़र आ रहा है वो ही वीनस है )

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इस गोष्‍ठी में एक और बात हुई और वो ये हुई कि गौतम राजरिशी को सम्‍मानित किया गया । सम्‍मानित किया गया इस कारण कि अब बच्‍चा बड़ा हो गया है । हमारा ये फौजी जो अभी तक मेजर गौतम राजरिशी कहलाता था अब इसका नाम कुछ बदल गया है अब वो लेफ़्टीनेंट कर्नल गौतम राजरिशी के नाम से जाना जायेगा । क्‍योंकि अब प्रमोशन के बाद नाम यही कुछ हो गया है । तो इस अवसर को भी गोष्‍ठी के दौरान सेलीब्रेट किया गया । गौतम को राकेश जी, डॉ पुष्‍पा दुबे जी ने मंगल तिलक लगाकर शॉल उढ़ाकर सम्‍मानित किया ।

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गोष्‍ठी रात लगभग साढ़े ग्‍यारह बजे तक चली और उसके बाद फिर सबने घर की ओर प्रस्‍थान किया जहां पर भोजन प्रतीक्षा कर रहा था ( मेरे ऑल टाइम फेवरेट मेथी के परांठे और गाजर का हलवा ) । भोजन के दौराना पता चला कि विश्‍व में एक ऐसा व्‍यक्ति ( गौतम राजरिशी ) भी है जिसे गाजर का हलवा बिल्‍कुल भी पसंद नहीं है । भोजन के पश्‍चात कार्यक्रम का चौथा चरण प्रारंभ हुआ ( 1 शिवना सारस्‍वत सम्‍मान, 2 गोष्‍ठी, 3 भोजन, 4 रात्रि जागरण फार बतौलेबाज़ी ) ये चौथा चरण सबसे दिलचस्‍प था । राकेश जी इस चौथे चरण में रात 2 बजे तक शामिल रहे और फिर नींद ने उनको पुकार लिया । दूसरा विकेट भी बहुत जल्‍द गिरा रविकांत पांडेय का जो आधे घंटे बाद लगभग ढाई बजे नींद के हाथों शहीद हुए । उसके बाद सुब्‍ह 6 बजे तक बाकी के लोग जागरण करते रहे । बीच में एक बार अंकित ने बहुत ही घटिया टाइप की चाय भी बना कर पिलाई जो कि स्‍वाद में कहीं से चाय नहीं थी लेकिन कप में आई थी इसलिये उसे चाय कहा जा सकता है । अर्श के आलोचक होने पर सबने बधाई दी । इछावर के मेरे पत्रकार मित्र परवेज भी इस सब में फंसे हुए थे । सुब्‍ह लगभग साढ़े 6 बजे सब भांति भांति के स्‍थानों ( सोफा, पलंग, जमीन) पर भांति भांति की चीजें ओढे कर सो गये ।

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रविवार की सुबह 9 बजे एक बार फिर बतौलेबाज़ी की शुरूआत हो चुकी थी जो जहां था वहीं से बतिया रहा था । और बीच बीच में खाना पीना भी चल रहा था । दोपहर का मीनू ( दाल बाटी, कढ़ी, चूरमा, भटे का भरता) तैयार होते तक राकेश जी की ट्रेन का समय हो चुका था । सबसे पहले राकेश जी ने भोजन किया ( रात को टमाटर की सब्‍ज़ी में मिर्च तेज़ होने के कारण उनको तथा अर्श को गाज़र के हलवे के साथ मेथी के परांठे खाने पड़े थे, अद्भुत कॉम्बिनेशन ) । उसके बाद माताजी ने उनको मंगल तिलक कर अंगवस्‍त्र उढ़ा कर विदाई दी । आंखें नम थीं भीगी हुईं थीं, और उदासी छा रही थी । कलीम ( ड्रायवर) के साथ राकेश जी भोपाल रवाना हुए ।

पीछे बची जनता अब ड्राइंग रूम में गोला बनाकर, दस्‍तरखान बिछा कर दावत में जुट गई । क्‍योंकि अब एक एक कर सबकी ट्रेनों का समय था । चूरमे के लड्डू कुछ जियादा अच्‍छे बन जाने के कारण डिमांड में रहे । और खाने के बाद एक बार फिर बतौलेबाज़ी, वीनस ( इलाहाबाद का होने के बाद भी ) पहली बार अमरूद के पेड़ पर चढ़ा और उसके सौजन्‍य से सबने अमरूद खाये ( डॉ राहत इन्‍दौरी साहब को याद करते हुए ) ।

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अगली ट्रेन अंकित की थी जिसे भोपाल से ट्रेन पकड़ना था । सो अगली विदाई अंकित की हुई ( बाद में पता चला कि भोपाल में ट्रेन लेट हो जाने के कारण अंकित काफी देर अटका रहा । ) बाकी के लोग ऑफिस आये जहां फोटो अपलोड शपलोड चलता रहा । और जहां पर सनी अकेला ऑफिस को वापस पूर्व का स्‍वरूप देने में जुटा था ।  अब अगली ट्रेन रविकांत, गुंजन, वीनस और प्रकाश की थी । ये ट्रेन भी भोपाल से ही थी सो ये लोग भी रवाना हुए । ( इससे पहले महिलाओं की जो गोष्‍ठी जिसमें गुंजन, संजीता, और मेरी धर्मपत्‍नी शामिल थीं, जिसे कमरे में जमी थी वहां से बकौल रविकांत इस प्रकार के ठहाके आ रहे थे मानो पुराने बरगद की ..... हंस रहीं हों ) । एक बार फिर भीगी आंखों के साथ तीसरा दल अपनी ट्रेन पकड़ने भोपाल रवाना हुआ ।

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और इधर गौतम संजीता, पीहू की ट्रेन का भी समय हो चुका था जो सीहोर से ही थी । समय इस प्रकार हो चुका था कि ट्रेन के समय पर हम लोग घर पर ही थे । कलीम राकेश जी को छोड़कर वापस आ चुका था, उसीने बताया कि स्‍टेशन पर राकेश जी की आंखें भर आईं थीं ।  भारतीय ट्रेन ने एक बार 15 मिनिट लेट होकर साथ निभाया । और मैं सोनू कलीम इन लोगों को लेकर भागत हुए स्‍टेशन पहुंचे । जयपुर चैननई के कोच में जब ये सब सवार हुए तो मानो दो दिन से चल रहे एक उत्‍सव का समापन हो गया । मन खाली था, आंखें भरी हुईं । धीरे धीरे ट्रेन सरकी और हाथ हिलाते हुए चेहरे धुंधले हो गये । खामोशी से मैं, सोनू और कलीम स्‍टेशन से बोझिल क़दमों से लौट रहे थे, चुप्‍पी को तोड़ते हुए सोनू ने पूछा ' कौन से रिश्‍ते होते हैं ये ? ''

मेरे पास उसके इस प्रश्‍न का कोई उत्‍तर नहीं था । आपके पास हो तो अवश्‍य बताइयेगा ।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

श्री राकेश खंडेलवाल जी को वर्ष 2010 का शिवना सारस्‍वता सम्‍मान प्रदान किया, अर्श, गौतम, अंकित, वीनस और रवि भी उपस्थित थे ।

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आज जब अपने देश में ही लोग हिंदी को भूल रहे है ऐसे में विदेश में रहकर हिन्दी की सेवा करना हम सब के लिए गौरव की बात है। यह बात हिन्दी प्राध्यापक डा.श्रीमती पुष्पा दुबे ने शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में व्यक्त की। शवना प्रकाशन द्वारा इस वर्ष का सारस्वत सम्मान श्री राकेश खंडेलवाल जी को साहित्य सेवा के लिए यहां शनिवार की रात का आयोजित एक गरिमामय समारोह में प्रदान किया गया।

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हिन्दी प्राध्यापक साहित्यकार पुष्पा दुबे के मुख्यआतिथ्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार नारायण कासट की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में श्री खंडेलवाल को इस वर्ष का शिवना सारवस्त सम्मान प्रदान किया गया। विशेष अतिथि के रुप में परिवार परामर्श केन्द्र के राजकुमार गुप्ता उपस्थित थे।

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पूर्ण विधि विधान के साथ कुणाल, राहुल, हिमांशु, अक्षत ने श्री खंडेलवाल के सबसे प्रथम पाद प्रक्षालन किये ।

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पंडित शैलेश तिवारी द्वारा किये जा रहे मंत्रोच्चार तथा श्रोताओं द्वारा की जा रही पुष्‍प वर्षा के बीच श्री खंडेलवाल को वर्ष 2010 का शिवना सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान किया गया । जब यह सम्मान प्रदान किया गया तो श्री खंडेलवाल भावुक हो गए। अतिथियों ने उन्हें शाल श्रीफल, सम्‍मान पत्र, स्‍मृति चिन्‍ह भेंटकर किया जाकर सम्मान प्रदान किया गया। सम्‍मान पत्र का वाचन श्री जयंत शाह ने किया ।

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इससे पहले अतिथियों ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्जवलित किया।

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अतिथियों का स्वागत आयोजक पंकज पुरोहित सुबीर, दिनेश द्विवेदी, हरिओम शर्मा दाउ, रियाज मो रियाज, शैलेष तिवारी, जंयत शाह,सोनू ठाकुर, धर्मेंद्र कौशल, सनी गोस्वामी, मेघा सक्‍सेना, गौतम राजरिशी, वीनस केशरी, प्रकाश अर्श, रविकांत पांडे, अंकित सफर  आदि द्वारा किया गया।
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पीसी लैब पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए डा. पुष्पादुबे ने कहा कि आज लोगों को जब विदेश में जाने का अवसर मिलता है तो उनके सामने केवल एक ही मकसद पैसा कमाने का होता है पर श्री खंडेलवाल ने वहां पर साहित्य की सेवा कर हिन्दी भाषी लोगों का मान बढ़ाया है। विदेश में जाकर पैसा कमाना कोई बुरी बात नहीं है पर वहां पर अपने देश और साहित्य की सेवा करना नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा दायक है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री कासट ने कहा है कि आज हम साकार और निराकार दोनों का ही सम्मान कर रहे है। श्री खंडेलवाल के साथ-साथ उनके काव्य सर्जन का सम्मान कर हम गौरवान्वित हो रहे है। आयोजन के सूत्रधार साहित्यकार पंकज पुरोहित सुबीर ने शिवना सम्मान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि शिवना का सफर सीहोर से अमेरिका तक पहुंच गया है जिसके पीछे कहीं न कहीं श्री खंडेलवाल की भी भूमिका है।

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संचालन पत्रकार प्रदीप एस चौहान ने किया अंत में आभार पत्रकार शैलेष तिवारी ने माना। कार्यक्रम ब्‍लाग जगत से सर्वश्री दिनेश द्विवेदी (कोटा), लेफ्टिनेंट कर्नल गौतम राजरिशी (कश्मीर), वीनस केशरी (इलाहाबाद), रविकांत पांडेय (कानपुर ), प्रकाश अर्श (नई दिल्ली), अंकित सफर (मुम्बई) आदि भी उपस्थित थे।

कार्यक्रम के बाद आयोजित द्वितीय चरण काव्‍य गोष्‍ठी की विस्‍तृत रपट कल तथा वीडियो भी कल ।

परिवार