गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

तो मेरे विचार में यही तय रहा दीपावली पर सब अपना अपना कम से कम एक मुक्‍तक भेजें, ग़ज़ल या गीत भेजना चाहें तो और अच्‍छा है ।

सभी का आदेश है कि लंदन यात्रा की चित्रमय झांकी दिखाई जाये । तो आदेश के पालन में आज कुछ और चित्र पेश किये जा रहे हैं । कुछ लोगों ने टिप्‍पणी में कहा है कि 'ये आपका ब्‍लॉग है' तो मैं ये कहना चाहूंगा कि ये आप सब का ब्‍लॉग है मेरा नहीं है । मेरा इसमें केवल इतना है कि आप सब के आदेश पर मैं इसमें बीच बीच में कुछ लिख देता हूं । बाकी तो सब आपका ही है ।

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( हीथ्रो हवाई अड्डे पर तेजेन्‍द्र जी द्वारा आत्‍मीय स्‍वागत )

तो मेरे विचार में कुछ ऐसा करना चाहिये कि हम कम से कम एक एक मुक्‍तक तो दें ही सही । चूंकि इस बार हम भागते दौड़ते यहां पर आयोजन में एकत्र हो रहे हैं तो कम सक कम मुक्‍तक की ही बात की जाए । हां यदि कुछ लोग गीत या ग़ज़ल देना चाहें तो उनका तो स्‍वागत है ही ।

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( कैलाश बुधवार जी के घर सुश्री पद्मजा जी को प्रति भेंट )

अब प्रश्‍न उठता है कि क्‍या किसी मिसरे पर मुक्‍तक लिखा जाए । मेरे विचार में इस बार मिसरे से मुक्‍त रहा जाए । क्‍योंकि समय कम है । फिर भी यदि सब की इच्‍छा हो तो एक मिसरा दिया जा सकता है । जिसे मिसरे पर लिखना हो वो उस पर मुक्‍तक लिखे, ग़ज़ल  लिखे या गीत लिखे और जिसे स्‍वतंत्र रहना हो वो अपना ही मुक्‍तक लिखे ।

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( अपनी ड्रीम ब्‍लैक मर्सीडीज़ का आनंद)

लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि कम से कम बहर या मात्रिक विन्‍यास की बाध्‍यता तो हम रखें ही सही । अरे हां अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का तराना कुछ ऐसे है ' ये मेरा चमन, है मेरा चमन, मैं अपने चमन, का बुलबुल हूं'  । अंतिम रुक्‍न में सारी मात्राएं शुद्ध दीर्घ हो गईं हैं इस मिसरे में ।

ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ
सरशार-ए-निगाह-ए-नरगिस हूँ, पा-बस्ता-ए-गेसू-संबल हूँ

जो ताक-ए-हरम में रोशन है, वो शमा यहाँ भी जलती है
इस दश्त के गोशे-गोशे से, एक जू-ए-हयात उबलती है
ये दश्त-ए-जुनूँ दीवानों का, ये बज़्म-ए-वफा परवानों की
ये शहर-ए-तरब रूमानों का, ये खुल्द-ए-बरीं अरमानों की
फितरत ने सिखाई है हम को, उफ्ताद यहाँ परवाज़ यहाँ
गाये हैं वफा के गीत यहाँ, चेहरा है जुनूँ का साज़ यहाँ

 

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( किसी मॉल में )

तो मेरे विचार में हमको सोलह दीर्घ की ही बाध्‍यता रखनी चाहिये । अब ये दीर्घ कैसे आते हैं इस पर हम ये कर सकते हैं कि यदि हम सीधे सीधे अभी सोलह मात्राओं को चार रुक्‍नों में बांट  लें सुविधा के लिये तो हर रुक्‍न का तीसरा दीर्घ हम चाहें तो लघु लघु से आये या शुद्ध दीर्घ हो । मतलब 22112 भी हो सकता है और 2222 भी ।

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( काउंसलर जकिया जुबैरी जी ने शापिंग में खूब मदद की )

हालांकि ये भी बस इसलिये कि जो लोग किसी खास बहर पर ही लिखना चाहें उनके लिये । क्‍योंकि समय कम है इसलिये यदि आप दीपावली पर कोई भी मुक्‍तक भेजेंगे तो उसे भी शामिल किया जाएगा । बस शर्त ये है कि वो किसी न किसी बहर में हो और दूसरा ये कि वो 2 तारीख की रात तक मिल जाए ।

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( ये जवाहरलाल नेहरू जहां पढ़े थे वो स्‍कूल है )

अगर आप पूर्ण दीर्घ वाले विन्‍यास पर लिखना चाहते हैं तो बस ये करें कि ' ओ मेरे सनम' गीत की तरह हर मिसरे में  चार स्‍पष्‍ट टुकड़े अवश्‍य दिखाई दें । ओ मेरे सनम- ओ मेरे सनम- दो जिस्‍म मगर- इक जान हैं हम । इस प्रकार के चार खंड स्‍पष्‍ट हों । मतलब ये कि हर खंड स्‍वतंत्र हो ।

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( सिर के पीछे लंदन की आंख )

चूंकि इस ब्‍लॉग पर हर त्‍योहार मनाने की परंपरा रही है । बीच में व्‍यस्‍तता के कारण इस बार राखी, ईद, जैसे त्‍योहार नहीं मनाए जा सकते । मगर दीपावली ये शुरुआत हो जाए तो अच्‍छा है । उसके बाद हम विधिवत मिसरे पर कोई मुशायरा करेंगे ।

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( बिग बेन और ब्रिटिश संसद )

हम दीपावली के दिन इस उत्‍सव को पारंपरिक रूप से मनाएंगे जैसे कि इस ब्‍लॉग पर मनाते हैं । और उसके बाद अगले कार्यक्रमों की घोषणा भी करेंगे । चूंकि ये ब्‍लॉग एक सार्वजनिक चौपाल है जहां सब लोग एक साथ बैठते हैं चर्चा करते हैं इसलिये आप सब ही तय करेंगे कि आगे किस प्रकार से कार्यक्रम तय होंगे ।

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( रेल्‍वे स्‍टेशन पर )

दीपावली के आयोजन में जितने ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग अपना योगदान देंगे उससे हमें आगे काम करने के लिये ऊर्जा मिलेगी । चूंकि काफी समय हो गया है ठहरे हुए सो ऊर्जा की आवश्‍यकता है । और ये आवश्‍यकता ही आप सब से कुछ न कुछ अवश्‍य लिखवा लेगी ।

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( खरीददारी के क्षण )

तो ठीक है फिर आप सब अपना योगदान दीजिये । वो चाहे जिस भी रूप में हो मेरा मतलब है कि कविता, मुक्‍तक, गीत या ग़ज़ल । काव्‍य की किसी भी विधा में अपना योगदान दीजिये । और दीपावली आयोजन को विविध रंगी बनाइये । आपकी रचनाओं का इंतज़ार है ।

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( किसी स्‍टेशन पर यूं ही )

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( लेबर पार्टी के लिये चुनाव प्रचार )

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

हर सन्‍नाटे को कभी न कभी टूटना होता है और त्‍योहार उसका सबसे अच्‍छा कारण बन सकते हैं ।

मित्रों बहुत बहुत दिनों के बाद यहां पर कुछ हलचल हो रही है । असल में कुछ ऐसा होता गया कि यहां पर आने के लिये जितना समय चाहिये होता है उतना समय उपलब्‍ध नहीं होता था । और बस इस कारण या उस कारण से यहां का सन्‍नाटा धीरे धीरे बढ़ता चला गया। इस बीच बहुत कुछ घट गया। हम पिछली बार होली  पर मिले थे और अब दीवाली सामने आ गई है । दोनों ही पर्व दो अलग अलग ऋतुओं के पर्व होते हैं । वसंत से चल कर हम शरद तक आ गये और हमारा सन्‍नाटा जस का तस बना रहा।

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इस बीच बहुत कुछ हुआ । इन्‍दु शर्मा कथा सम्‍मान की  पहले घोषणा हुई और फिर उसके बाद लंदन की यात्रा । घोषणा से यात्रा के बीच में बस केवल भागदौड़ थी । और उसी बीच में हिन्‍दी चेतना के विशेषांक का सम्‍पादन भी पूरा करना था । दोनों कार्य ठीक प्रकार से सम्‍पन्‍न हो गये । जब इन्‍दु शर्मा कथा सम्‍मान की घोषणा की गई  थी तो मन में बड़ी दुविधा थी । पहली विदेश यात्रा को लेकर मन उलझन में था कि क्‍या किया जाए और क्‍या न किया जाए । नीरज जी ने जरूर ये आश्‍वस्‍त किया था निश्चिंत रहें सब कुछ ठीक ठाक होगा । और वीजा की भागदौड़ के बीच उनका ये कहना मन को बड़ा सुकून देता रहा । लंदन यात्रा के ठीक एक सप्‍ताह पूर्व हिन्‍दी चेतना का अंक जारी कर दिया गया । और प्रिंट संस्‍करण का विमोचन लंदन यात्रा के ठीक एक दिन पूर्व किया गया। इस बीच परिवार में कुछ सदस्‍यों की अस्‍वस्‍थता भी मन को अशांत करती रही ।

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किन्‍तु कहा जाता है कि सकारात्‍मक सोच ही सब कुछ ठीक करती है । सो नीरज जी ने जो कहा था निश्चिंत रहिये सब कुछ ठीक होगा । सो हो गया । लंदन की यात्रा और वहां का अवार्ड फंक्‍शन सकुशल संपन्‍न हुआ । फंक्‍शन को लेकर कभी विस्‍तार से बातें होंगीं । क्‍योंकि वह ग्रांड फंक्‍शन उतने विस्‍तार की संभावना लिये हुए है । बस ये कि आप सबकी शुभकामनाएं मिलती रहीं । कई गैरों की शुभकामनाएं मिलीं तो कई अपनों ने शुभकामनाएं देना या कुछ और कहना मुनासिब नहीं समझा । कुछ नये बने रिश्‍तों ने उनको ऐसा करने से रोक दिया । बहुत अजीब हो जाते हैं रिश्‍ते जब हम ये देख कर काम करने लगते हैं कि हमारे द्वारा ऐसा करने से हमारे नये बने रिश्‍तों पर कोई प्रभाव तो नहीं पड़ेगा । खैर रिश्‍तों की भी उम्र होती है और उनको भी रीतना और बीतना होता है । ''खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्‍छा............'' ।

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बचपन में इस टॉवर ब्रिज की एक तसवीर हमारे सरकारी घर में दीवार की दरारों को छिपाने के लिये लगाई गई थी । बड़ी सी तस्‍वीर जो पूरी दीवार को ढंके हुई थी । हम बच्‍चे इसी तस्‍वीर के सामने खड़े होकर अपने जन्‍मदिन पर चित्र खिंचवाते थे । तब हम बातें करते थे कि एक दिन सचमुच के लंदन ब्रिज ( तब हम इसका नाम लंदन ब्रिज ही समझते थे) पर भी खड़े होकर चित्र खिंचवाएंगे । जब नहीं पता था कि ये कब और कैसे सच होगा । लेकिन 2013 के जन्‍मदिन पर ये सच हो गया । और याद आ रहे थे बचपन के वे सारे जन्‍मदिन ।

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खैर तो बात ये कि दीपावली पर ब्‍लॉग के सन्‍नाटे को तोड़ने की इच्‍छा है । तरही का आयोजन तो इतनी जल्‍दी में नहीं हो सकता है किन्‍तु इच्‍छा है कि बरस बरस के दिन ब्‍लॉग पर सूनापन नहीं रहे । यहां पर ग़ज़लों के गीतों के दीपक जलें और जगमगाते रहें । कैसे किया जाए ये समझ में नहीं आ रहा है । एक तरीका तो मुक्‍तकों का है कि किसी मिसरे पर मुक्‍तक लिखे जाएं । एक तरीका ये कि कोई मिसरा न हो बस आप सबकी दीपावली पर लिखी कोई रचना हो । और जो कुछ न हुआ तो पिछले दीपावली मुशायरों में से ही कुछ लिया जाए । निर्णय आप सब को करना है । मैं तो बस ये देखना चाहता हूं कि इतने दिनों की चुप्‍पी ने इस ब्‍लॉग  परिवार पर प्रभाव तो नहीं डाल दिया है ।

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तो आप बताइये कि क्‍या करना है । क्‍योंकि करने वाले तो आप लोग ही हैं । और ब्‍लॉग भी आपका ही है । हां  पिछले दिनों एक गीत मन में  रह रह कर गूंजता रहा ।

ओ मेरे सनम,  ओ मेरे सनम,  दो जिस्‍म मगर,  इक जान हैं हम

                             पता नहीं क्‍यों, क्‍या इस बहर पर कुछ काम किया जा सकता है । मगर उसके लिये तो पहले ये जानना होगा कि इसकी बहर क्‍या है रुक्‍न क्‍या हैं । आप लोगों को पता होगा शायद। क्‍या पता क्‍या है । बड़ी हैरत की बात है । सुनते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्‍वविद्यालय का तराना भी इससे कुछ कुछ मिलता जुलता है । क्‍या कहते हैं । मेरा दिमाग तो कुछ काम नहीं कर रहा  ।

तो ये देखिये और सोचिये

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