सोमवार, 19 अप्रैल 2010

ये कार्यक्रम जिसमें श्री विजय वाते, सुश्री नुसरत मेहदी जी, श्री माणिक वर्मा जैसे नाम श्रोताओं में बैठे थे और मेरे गुरू डॉ विजय बहादुर सिंह मुख्‍य अतिथि के रूप में विराजमान थे ।

मित्रों का नेह कभी कभी मन को छू जाता है । अाप सब जानते ही हैं कि डॉ आज़म मेरे परम मित्रों में से हैं । उसी प्रकार से मेरे एक और मित्र हैं जनाब अनवारे इस्‍लाम जी जो कि भोपाल से एक शानदार पत्रिका सुखनवर निकालते हैं । अपने स्‍तर पर निकाली जाने वाली ये पत्रिका बहुत ही सुंदर पत्रिका है । ये पत्रिका हिंदी और उर्दू के साझे मंच के रूप में काम करती है । ज्ञानपीठ नवलेखन के बाद से ही मेरे ये दोनों मित्र लगे थे कि अब आपका एक कार्यक्रम भोपाल में रखना है । मित्रों की भावना को स्‍वीकार करने के अलावा और कुछ किया भी नहीं जा सकता है । खैर कार्यक्रम 18 अप्रैल को शाम पांच बजे भोपाल के दुष्‍यंत संग्रहालय के सभागार में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था ।

बाद में भीषण गर्मी को देखते हुए कार्यक्रम को शाम 6 बजे कर दिया गया । जब मैं वहां पहुंचा तो शाम के 6 ही बज रहे थे लोगों के आने का सिलसिला जारी था । धीरे धीरे लोग आते रहे और परिचय होता गया । कार्यक्रम भोपाल के साहित्‍यकारों के बीच था । सो जाहिर सी बात है कि एक के बाद एक जो लोग आ रहे थे वे सब दिग्‍गज थे  ।

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कार्यक्रम में मुख्‍य अतिथि डॉ विजय बहादुर सिंह जी थे मेरे गुरू । विशेष अतिथि के रूप में प्रो अजहर राही और अध्‍यक्षता श्री मुकेश वर्मा जी को करनी थी । विजय बहादुर सिंह जी ने बरसों पहले मुझे कहा  था कि पंकज अपनी उर्जा बचा कर रखो फालतू के कामों तथा विवादों में उसे खर्च मत करो । उसी वाक्‍य का ध्‍येय बना कर ही मैं आज तक काम कर रहा हूं । उनका वहां होना मेरे लिये बहुत बड़ी बात था । धीरे धीरे सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री विजय वाते, उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत मेहदी जी, सह सचिव जनाब इकबाल मसूद साहब जी, शायर राम मेश्राम जी, वीरेन्‍द्र जैन जी, देश के शीर्ष व्‍यंग्‍य कवि माणिक वर्मा जी और ऐसे ही कई नाम आने शुरू हो गये । पता चला कि  ये सब तो श्रोताओं में बैठने वाले हें । मेरे अभिन्‍न मित्र और बहुत अच्‍छे शायर जनाब अशोक मिज़ाज साहब आते आते कहीं फंस गये तो नहीं आ पाये । लेकि धीरे धीरे हाल पूरा भर गया । डॉ विजय बहादुर सिंह जी का आना हुआ । ईस्‍ट इडिया और नवलेखन के बाद पहली बारत उनसे मिल रहा था । मैंने झुक कर उनके पैर छुए । उन्‍होंने ढेर सारे आशीर्वाद एक साथ दिये । उनकी आंखों में एक विशेष चमक थी ।

PICT0015डॉ आजम ने कार्यक्रम का संचालन संभाला और कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । जनाब अनावरे इस्‍लाम साहब ने सबका स्‍वागत किया और विशेष कर मुझे शाल और स्‍मृति चिन्‍ह प्रदान करवाया विजय बहादुर सिंह जी के हाथों ।

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PICT0019मुझे कहानी पाठ करनी थी जब माइक पर आया तो सामने वे सब थे जिनको आज तक सुनता आया था । नर्वस हो गया । जब श्रोताओं में माणिक वर्मा, विजय वाते, राम मेश्राम, नुसरत मेहदी, वीरेंद्र जैन, रमेश यादव, इकबाल मसूद और ऐसे ही कई नाम हों तो कौन न नर्वस होगा । तुम लोग कहानी मुझे विशेष पसंद आती है क्‍योंकि उसमें हिन्‍दू मुस्लिम एकता की बात बिना किसी ताम झाक के की गई है । तो उसी कहानी तुम लोग का पाठ किया । लोगों  ने उसे खूब सराहा भी । श्री विजय वाते जी ने आदेश दिया कि ग़ज़ल भी पढ़ो तो खैर एक नई गज़ल के कुछ शेर भी पढ़े ।

सबसे पहले श्री अज़हर राही जी ने कहानी पर विस्‍तृत चर्चा की तथा तुम लोग कहानी पर अपने विचार रखे । अब बोलना था डॉ विजय बहादुर सिह जी को वे बोले तो बोलते ही गये । मेरे लिये स्‍वप्‍न था कि मेरे गुरू मुझ पर बोल रहे हैं और वो भी विस्‍तार से । वे बोले कि मैं सीहोर पंकज के पास अक्‍सर जाता रहा लेकिन इसने कभी भी अपनी कहानी मुझे नहीं सुनाई । बस मेरी ही सुनता रहा । उन्‍होंने सांप्रदायिकता पर मेरे लेखन का सराहा । ईस्‍ट इंडिया कम्‍पनी पर भी चर्चा की और तब मैं हैरत में पड़ गया जब उन्‍होंने दस मिनिट तक कहानी अंधेरे का गणित पर चर्चा की । उसके शिल्‍प को सरहाते रहे और उसके प्रतीकों की प्रशंसा करते रहे । जिस कहानी को मैं एकबारगी संग्रह से हटाने पर विचार कर चुका था वहीं कहानी संग्रह की सबसे चर्चित कहानी साबित हो रही है । जो बात दीदी सुधा ढींगरा जी ने कही वहीं डॉ विजय बहादुर जी ने कही  अंधेरे का गणित के बारे में । डा विजय बहादुर जी का पूरा भाषण जल्‍द ही वीडियो की शक्‍ल में आपको सुनवाता हूं ।

अध्‍यक्षीय उदबोधन में श्री मुकेश वर्मा ने कहानी और कार्यक्रम पर विस्‍तार से बात की । तो ये हुआ कार्यक्रम ।

अब एक विशेष बात

शिवना प्रकाशन का पुस्‍तक विमोचन समारोह 8 मई को प्रस्‍तावित है अखिल भारतीय मुशायरे में । अभी तक पदम श्री डा बशीर बद्र साहब, पदमश्रीजनाब बेकल उत्‍साही जी, डा राहत इन्‍दौरी साहब, अख्‍तर ग्‍वलियरी जी, राना जेबा जी, शाकिर रजा जी, शकील जमाली जी के आने की स्‍वीकृति मिल चुकी है । और कुछ नामों की स्‍वीकृति आना बाकी है । कार्यक्रम में मोनिका हठीला की पुस्‍तक एक खुशबू टहलती रही, सीमा गुप्‍ता जी की विरह के रंग,  संजय चतुर्वेदी जी के चांद पर चांदनी नहीं होती और एक सरप्राइज पुस्‍तक का विमोचन होना है । आप सब कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं ।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमेरिका ) के कवि सम्मेलनों की श्रृंखला । कार्यक्रमों के संयोजक हैं--डॉ. सुधा ओम ढींगरा, डॉ. नंदलाल सिंह और अलोक मिश्रा। रचना श्रीवास्तव ( डैलस) की रपट ।

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमेरिका ) के कवि सम्मेलनों की श्रृंखला का आरम्भ ९ अप्रैल २०१० को डैलस से हुआ.. उत्तरी अमेरिका में यह संस्था प्रत्येक वर्ष तक़रीबन पंद्रह से सत्रह कार्यक्रम करवाती है और इन कार्यक्रमों के संयोजक हैं--डॉ. सुधा ओम ढींगरा, डॉ. नंदलाल सिंह और अलोक मिश्रा. इस बार कवि सम्मेलनों के सोलह कार्यक्रम विभिन्न शहरों में संपन्न होंगें. अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के तत्वाधान से प्रस्तुत हास्य कवि सम्मलेन में भारत के बहुचर्चित हास्य कवि श्री महेंद्र अजनबी, श्री आश करण अटल और श्री अरुण जेमिनी जी ने भाग लिया. डैलस संभाग की अध्यक्षा श्रीमती निशि भाटिया ने सभी स्वयं सेवकों के नाम बताते हुए उनको धन्यवाद दिया और कार्यक्रम को विधिवत तरीके से आरम्भ कराया I

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कार्यक्रम का प्रारंभ परम्परागत तरीके से ऐकल विद्यालयों के शुभचिंतक श्रीमती कल्पना फ्रूटवाला और श्री किशोर फ्रूटवाला ने दीप प्रज्वलित कर तथा श्रीमती कुसुम गुप्ता के नेतृत्व में सरस्वती बंदना से हुआ. आगे मंच संचालन के लिए निशि जी ने अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के संयोजक डॉ.नन्दलाल सिंह को आमंत्रित किया. नन्दलाल जी की वाक्य पटुता और हास्य मिश्रित कथन ने लोगों का खूब मनोरंजन किया और मन मोह लिया . डैलस में आयोजित ये २५ वां कवि सम्मलेन था. आज के इस फ़िल्मी युग में जब ७०० से भी ज्यादा लोग कवि सम्मलेन का आनंद लेते हैं तो मन असीम आनंद से भर जाता है. आज से २५ साल पहले इसका प्रारंभ हुआ था , तब कुछ लोग ही ऐसे कार्यक्रमों में आते थे, पर धीरे धीरे लोग आते गए और कारवाँ बनता गया और आज ये कारवाँ काव्य प्रेमियों के जत्थे में परिवर्तित हो चुका है. नन्दलाल जी के शब्दों में "आज कवि सम्मलेन का रजत जयंती समारोह है. डैलस में दिसम्बर ८५ में पहले कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया था..स्वयं सेवकों /सेविकाओं की कार्य निष्ठां से ही हम आज यहाँ तक पहुंचे हैं ". नन्दलाल जी ने कवियों को सारगर्भित परिचय के साथ मंच पर आमंत्रित किया. पुष्प गुच्छ भेंट कर महेंद्र अजनबी जी का स्वागत श्रीमती अनीता सिंघल ने , आश किरण अटल जी का श्रीमती नीतू अग्रवाल ने और अरुण जेमिनी जी का श्रीमती परम अग्रवाल ने किया. मंच पर कवियों के आते ही पूरा हॉल करतल ध्वनि से गुंजायेमान हो उठा .

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कवि सम्मलेन का संचालन श्री अरुण जेमिनी जी ने किया. इन पंक्तियों के साथ किया उन्होंने महेन्द्र अजनबी जी को मंच पर आमंत्रित किया.....
मुस्कुराती जिंदगानी चाहिए
काव्य में ऐसी रवानी चाहिए
सारी दुनिया अपनी हो जाती है बस
एक उसकी मेहरबानी चाहिए
महेंद्र अजनबी जी ने बच्चों की बातों को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया I जिनको सुनके हँसते- हँसते पेट में बल पड़ गए एक उदाहण देखिये I
एक बच्ची से पूछा गया कि राम लक्ष्मण तो ठीक पर सीता जी वन क्यों गईं ?
बच्ची ने कहा,
सीता जी के वनवास जाने में बहुत बड़ी सीख है ..
तीन- तीन सास जब घर में हो तो जंगल ही ठीक है ..
ट्रक के पीछे लिखी पंक्तियों और समाचार पत्र के शीर्षकों से हास्य की उत्पति कैसे होती है बताया I जब कवि एक पंक्ति पढ़ता है और श्रोता उस को पूरी कर देता है, उस से किस तरह हास्य उत्पन्न होता है, एक उदाहण देखिये---
जेल में कवि सम्मलेन हो रहा था ...
कवि बोला आदमी यूँ हालातों में जकड़ा नहीं जाता
कैदी बोला कुत्ते की पूंछ पे पैर पड़ा न होता तो मैं पकड़ा नहीं जाता
ट्रेन की भीड़ पर सुनाई गईं उनकी हास्य व्यंग्य की कविता खूब सराही गई...
ट्रेन में इतनी भीड़ थी भाई
के हाथ को मुँह भी नहीं देता था दिखाई
एक आदमी ने बीड़ी सुलगाई
और मेरे मुहँ में लगाई
हास्य रस की डरावनी कविता सुनाने जा रहा हूँ, कह के महेंद्र जी ने भूतों पर लिखी अपनी कविता सुनाई जिस में व्यंग्य के नुकीले बाण थे I
वे एक दुसरे से बतिया रहे थे
आदमियों के एक से बढ़ के एक भयानक किस्से सुना रहे थे
ये कल रात ही शहर हो के आया है
इस पर जरूर किसी आदमी का साया है
किसी झाड़ फूँक वाले को बुलाओ इस पर से आदमी उतरवाओ
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पेड़ से उल्टा लटका देगा और वोट माँगेगा
और याद रख अपने इलाके की वोटर लिस्ट में तो
तू वैसे भी अभी तक नहीं मरा होगा
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एक वरिष्ठ भूत बोला उन इन्सानों की बस्तियों के बारे में सोच
जो साथ- साथ होते हुए भी वीरान है
उनसे ज्यादा आबाद तो कब्रिस्तान और शमशान है....

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इस के बाद अरुण जेमिनी जी ने आश करण अटल जी को मंच पर ये कहते हुए बुलाया कि इनके नाम को लिखने में हमेशा गलती हुई है, इन के नाम में आशा भोंसले वाला आश है, कुभ्करण वाला करण है , और अटल बिहारी बाजपेई वाला अटल है... तीन-तीन नामों का सम्मिश्रण हैं.
मिडिया पर सुनाई उनकी कविता ने सभी का मन मोह लिया....
क्या उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद वो मर जायेंगे...
जी पता था...
जब उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद वो मर जायेंगे तो उन्होंने अंतिम साँस क्यों ली?
जी राष्ट हित में ..
"हाइवे के हमदम" शीर्षक की कविता ने लोगों को इतना हँसाया की आँखें झलक उठीं ...
ये है दुनिया का सब से बड़ा ओपन एयर शौचालय
आप यहाँ क्या कर रहें है ?
जी में यहाँ क्या कर रहा हूँ ये तो आप देख ही रहे हैं...
पर आप यहाँ क्या कर रहे हैं ?
इसके बाद उन्होंने अपनी कविता "क्या हमारे पूर्वज बंदर थे" सुनाई...ये कविता राजिस्थान में कक्षा ११ की पाठ पुस्तक में पढ़ाई जाती है...

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अरुण जेमिनी जी ने हँसी वर्षा के इस क्रम को जारी रखा. उनके हरयाणवी अन्दाज ने कविता को और भी मनोरंजक बना दिया
एक आदमी कुत्ते को घुमा रहा था दुसरे ने पूछा----
ताऊ कुत्ते को घुमरिया है के
नहीं ये तो ऊंट है कद छोटा रह गया है
अरुण जेमिनी जी की कविता "२१वी में सदी में ढूंढते रह जाओगे " ने हास्य के साथ लोगों को सोचने पर भी विवश कर दिया.
चीजों में कुछ चीजें बातों में कुछ बातें वो होंगी
जिन्हें कभी देख नहीं पाओगे
२१वी में सदी में ढूंढते रह जाओगे
अध्यापक जी सचमुच पढ़ाये
अफसर जो रिश्वत न खाये
बुद्धिजीवी जो राह दिखाये
कानून जो न्याय दिलाये
बाप जो समझाए
और ऐसा बेटा जो समझ जाये
ढूँढते रह जाओगे
नेहरु जैसी इज़्ज़त
सुभाष जैसी हिम्मत
पटेल के इरादे
शास्त्री सीधे- साधे
पन्ना धाय का त्याग
राणा प्रताप की आग
अशोक का बैराग
तानसेन का राग
चाणक्य का नीति ज्ञान
इन्दिरा गाँधी जैसी बोल्ड
और महात्मा गाँधी जैसा गोल्ड
ढूंढते रह जाओगे
कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री अखिल कुमार जी ने पिछले कवि सम्मेलनों का स्लाइड शो दिखाया ,जिस को दर्शकों ने खूब सराहा...

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अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समीति ने हिंदी का नन्हा सा जो दिया जलाया था, वो आज सूरज बन चमक रहा था. इस का भान इसी बात से हो रहा था कि आज ७०० से भी अधिक लोग इस हास्य कविसम्मेलन का आन्नद लेने के लिए यहाँ एकत्रित थे लगातार तीन घंटा तीस मिनट चले इस कवि सम्मलेन में हँसते- हँसते लोगों के पेट में बल पड़ गए. जीवन की आपाधापी में हम हँसना लगभग भूल ही गए हैं, इस तरह के आयोजन हमें जीने की नई उर्जा देते हैं. कुछ लोगों के अनुसार तो वो आज जितना हँसें हैं, उतना जीवन में शायद ही कभी हँसे हों. उनका ये भी कहना था कि बड़े- बड़े कॉन्सर्ट में जाने से अच्छा है कि कवि सम्मेलनों में जाया जाए. मिडलैंड और ह्यूस्टन के कार्यक्रम भी बहुत सराहनीय रहे.. ९ मई तक इनके कार्यक्रम चलेंगें ..इन कवि सम्मेलनों में हिन्दी भाषी जब एक छत तले इकट्टे होते हैं तो अमेरिका में भी भारत बसा महसूस होता है....चारों तरफ देश की महक फैली महसूस होती है.....

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