मंगलवार, 16 मार्च 2010

नव संवत्‍सर की मंगलकामनाएं और चैत्र नवरात्रि के अवसर पर सुनिये लता जी के स्‍वर में पंडित नरेंद्र शर्मा जी के आठ गीत जिन्‍हें संगीतबद्ध किया है पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर ने ।

आज से नया संवत्‍सर प्रारंभ हो रहा है । नया संवत्‍सर और साथ में चैत्र नवरात्रि भी आज से ही प्रारंभ हो रही हैं । इन दिनों काफी अपने परिचितों एवं मित्रों के समाचार ठीक नहीं प्राप्‍त हो रहे हैं । स्‍वास्‍थ्‍य से संबंधी परेशानियां सबके साथ में दिख रही हैं । ईश्‍वर से प्रार्थना है सर्वे सन्‍तु: निरामय: । हे ईश्‍वर सबको सुखी कर सबको निरोगी रखना । ये दुनिया तेरी ही रची हुई है और हम सब ठीक उसी प्रकार से यहां हैं जैसा तू चाहता है । तो फिर ये कष्‍ट ये परेशानियां क्‍यों ।

ये आठ गीत जो आप सुनने जा रहे हैं ये गीतों के सम्राट पंडित नरेंद्र शर्मा जी के द्वारा लिखे हुए गीत हैं । ये गीत पंडित नरेंद्र शर्मा जी ने टी सीरीज के एल्‍बम अटल छत्र सच्‍चा दरबार के लिये लिखे थे । उन दिनों जब टी सीरीज पर अनुराधा पौडवाल का एकाधिकार था तब ये एलबम स्‍वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के स्‍वर में टी सीरीज से आना एक बड़ी घटना थी । गीतों को संगीत दिया था अपने समय से आगे के संगीतकार पंडित ह्रदयनाथ मंगेशकर जी ने । ये एक जादुई तिकड़ी है और जाहिर सी बात है कि इस जादुई तिकड़ी ने जो कुछ रचा होगा वो जादुई ही होगा ।

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आनंद लीजिये इन आठ गीतों का और यदि प्‍लेयर न चले तो नीचे लिंक दिया है वहां से जाकर डाउन लोड कर लें । संयोग की बात है कि आज ही पंडित नरेंद्र शर्मा जी की यशस्‍वी बिटिया और मेरी दीदी साहब लावण्‍य दीदी ने भी अपने ब्‍लाग पर http://www.lavanyashah.com/2010/03/blog-post.html यहां पर ये ही एल्‍बम लगाया है । इसे कहते हैं कि भाई और बहन के विचार एक ही दिशा में होते हैं ।

नव संवत्‍सर और चैत्र नवरात्रि की शुभकामनाएं ।

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बुधवार, 10 मार्च 2010

प्रिय गौतम जन्‍मदिवस की शुभकामनाएं । तुम यूं ही जगमगाते रहो यूं ही खिलखिलाते रहो, संजीता और तनया के साथ जीवन पथ पर सफलता के साथ अग्रसर रहो ।

गौतम राजरिशी, नाम में क्‍या रखा है ये भले ही शेक्‍सपियर ने कहा हो । लेकिन मैं शैक्‍सपियर को नहीं मानता । नाम में काफी कुछ रखा होता है । गौतम नाम अपने आप में ही सम्‍पूर्ण नाम होता है और तिस पर राजरिशी का सरनेम सामने लगा हो तो बात वैसे ही मुकम्‍मल हो जाती है । मगर फिर भी गौतम राजरिशी है कौन । सुना है कोई मेजर है भारतीय सेना में जो इन दिनों काश्‍मीर के सीमांत इलाके में पदस्‍थ है । अच्‍छा ! उससे क्‍या होता है । वैसे तो बहुत से मेजर पदस्‍थ हैं सीमा पर । इन महाशय का जिक्र करने की अलग से क्‍या आवश्‍यकता है । है जनाब है, अलग से जिक्र करने की आवश्‍यकता इसलिये है कि हर अच्‍छी चीज का जिक्र करते रहने से हमारे अंदर भी एक प्रकार की सकारात्‍मक उर्जा आ जाती है ।

जन्‍मदिन की शुभकामनाएं गौतम राजरिशी

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गौतम राजरिशी नाम के इस फौजी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है । बहुत कुछ का मतलब सचमुच ही बहुत कुछ । जैसे सबसे पहले जो बात सीखी जा सकती है वो ये कि रिश्‍तों का सम्‍मान किस प्रकार से किया जाता है । गौतम रिश्‍तों को हैंडल विथ केयर की परिभाषा में रखता है । उसके लिये रिश्‍ते कांच के नाजुक सामान हैं जिनको व्‍यवहार में लाते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिये । एक और महत्‍वपूण बात जो गौतम से मैंने सीखी है वो ये कि रिश्‍ते आजीवन के होते हैं । आज का ये युग जहां पर हम सबको हर बात में डिस्‍पोजेबल चीजों की आदत हो गई है । हम रिश्‍तों को भी डिस्‍पोजेबल चीजों की तरह उपयोग करते हैं । उस दौर में गौतम के लिये रिश्‍ते उपयोग की वस्‍तु न होकर जीवन के आनंद की वस्‍तु हैं । गौतम ने श्री आलोक सेठी की मेरी उस पसंदीदी कविता को झूठा साबित कर दिया है जिसमें उन्‍होंने लिखा है कि हमें कहा गया था कि चीजें उपयोग के लिये होती हैं और रिश्‍ते प्‍यार करने के लिये, हम उल्‍टा समझ बैठे, हम चीजों से प्‍यार करते हैं और रिश्‍तों का उपयोग ।

गौतम के बारे में बहुत सपाट बयान यदि दूं तो ये तो कहूंगा कि भले ही वो इन दिनों अपनी ग़ज़लों के कारण बहुत चर्चित हो लेकिन अभी उसकी ग़ज़लें बहुत ही प्रारंभिक अवस्‍था में हैं । मगर ये उसके व्‍यक्तिव का ही प्रभाव है कि ये ग़ज़लें चर्चित हो रही हैं । गौतम से अभी तक एक बार भी मुलाकात नहीं हो पाई है किन्‍तु केवल मिलना ही तो रिश्‍तों का आधार नहीं होता है । दरअसल में तो हमारी वेव लैंथ होती है जो मिल जाये तो रिश्‍ते बन जाते हैं । और उसके बाद फिर वो रिश्‍ते हमारे साथ उम्र भर चलते हैं क्‍योंकि हमारी वेव लैंथ भी हमारे साथ उम्र भर चलती है ।

तो फिर बात वही है कि क्‍यों किया जाये सेना के इस मेजर का जिक्र ? सेना के मेजर का जिक्र करके इमोशनल आधार पर लोगों को आकर्षित करने के लिये या फिर ये बताने के लिये कि हम भी देश भक्‍त हैं । नहीं गौतम का जिक्र इन सब कारणों के लिये नहीं बल्कि इसलिये कि गौतम का जिक्र मौजूदा दौर में जरूरी है । किसी समय संचालन के दौरान शायद इस वाक्‍य को उपयोग किया था हम कवियों को इसलिये गर्व नहीं है कि भारत का प्रधानमंत्री ( श्री अटल जी ) कवि भी है । हमें तो गर्व इसलिये है कि एक कवि प्रधानमंत्री है । गौतम के लिये भी वही बात कि गौतम उस परिभाषा को खरा साबित करता है जिसमें कहा गया है कि साहित्‍यकार होने के लिये जरूरी है पहले अच्‍छा इंसान भी होना । तो गौतम भी पहले बहुत अच्‍छा इंसान है फिर कवि है और इन सबके सा‍थ एक अतिरिक्‍त बात ये है कि वो फौजी भी है । फौजी होना उसका प्रथम गुण नहीं है । प्रथम गुण है अच्‍छा इंसान होना और दूसरा है कवि होना । तो गौतम का जिक्र करना इसलिये आवश्‍यक है कि अच्‍छे इंसानों का जिक्र करते रहना इंसानियत के बाकी रहने के लिये आवश्‍यक है और अच्‍छे कवियों का ज्रिक्र करते रहना साहित्‍य के बाकी रहने के लिये आवश्‍यक है ।

बहुत सोचा कि गौतम को क्‍या दूं जन्‍मदिन पर । कोई गीत दूं । लेकिन कौनसा । फिर अपना ही एक गीत याद आया । उसे ही हेड फोन लगा कर तुरंत रिकार्ड किया और उसको ही देने का फैसला किया । इसलिये भी कि उसके बोल गौतम पर सटीक बैठते हैं । हर अंतरा मानो गौतम और उस जैसे लोगों के लिये ही बना है । हालांकि आफिस में बैठकर रिकार्ड करना और वो भी कक्षा के समय में , उसके कारण गीत की रिकार्डिंग और लय दोनों ही बिगड़ गई हैं । पहले दो अंतरों में तो धुन भी शायद ग़लत हो गई है । मगर फिर भी उपहार देने वाले का मन देखा जाता है उपहार को नहीं । सो बस ये कि जैसा भी रिकार्ड हुआ है उसमें आपको शब्‍द तो समझ पड़ ही जाएंगें । बस रिकार्डिंग की खराबी आवाज की खराबी और लय के टूटने पर ध्‍यान न दें ।

प्रिय गौतम बहुत स्‍नेह के साथ ये गीत तुमको दे रहा हूं ।

यदि फ्लैश प्‍लेयर न चले तो नीचे की लिंक से डाउनलोड कर लें ।

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http://www.archive.org/details/TezSamayKi

जन्‍म दिन की हजार हजार शुभकामनाएं । दीर्घायु हो, यशस्‍वी हो और अपने अंदर की आग और नमी दोनों को जीवन भर अपने अंदर बचा कर रखने में सफल रहो । वैसे ही बने रहो जैसे हो । संजीता के समर्पित जीवनसाथी, तनया के सजग और सघन पिता, माता पिता के सुकमार लाडले । बस यही बने रहना तो आवश्‍यक होता है जीवन में ।

समूचे ब्‍लाग जगत की तरफ से शुभकामनाएं ।

सोमवार, 8 मार्च 2010

महिला दिवस पर एक कविता, जो समर्पित है मेधा पाटकर, किरण बेदी और कल्‍पना चावला जैसे नामों को, नाम जो विद्रोह हैं, महिला बने रहने से विद्रोह के नाम । पंकज सुबीर

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महिला दिवस

जुट पड़ी हैं ढेर सारी महिलाऐं
सभागार में,
आठ मार्च जो है..!
लिपिस्टिक से पुते होठों,
कांजीवरम की साड़ियों,
और इत्र फुलैल का महिला दिवस!
मेधा पाटकर तो नहीं लगाती कभी भी
लिपिस्टिक..!
मेरे ख्याल से लक्ष्मी बाई ने भी
नहीं लगाई होगी कभी..!
किरण बेदी को देखा है कभी आपने?
कांजीवरम की साड़ी पहने..!
हाँ हेमा मालिनी को अवश्य
देखा होगा!
सही भी है,
बहुत बड़ा फर्क है,
कल्‍पना चावला होने में
और राखी सावंत होने में,
फिर ये महिला दिवस है किसका
मेधा पाटकर का?
या फिर
एश्वर्या राय का?
और यदि यही है
सभ्य समाज का महिला दिवस
तो फिर इसमें नया क्या है
आखिर...?
है ना नया..!
लिपिस्टिक से रंगे होंठ
आज किरण बेदी, कल्पना चावला
और अरुंधती राय जैसे नामों को
दोहरा रहे हैं,
उन नामों को जो वास्तव में
हैं ही नहीं नाम महिलाओं के,
ये तो विद्रोह के नाम हैं
विद्रोह महिला बने रहने से,
विद्रोह इत्र फुलैल और कांजीवरम से,
आप ही बताइये
क्या आप सचमुच मेधा पाटकर
को महिला की श्रेणी में रखेंगे?
यदि रखते हैं
तो फिर ठीक है..!
सड़क किनारे पत्थर तोड़ती
धनिया बाई के पसीने
की बदबू से बहुत दूर
इत्र फुलैल से महकता
गमकता ये सभागार
बधाई हो आपको!

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