बुधवार, 16 नवंबर 2016

भभ्भड़ कवि भौंचक्के आज दीपावली के तरही मुशायरे का विधिवत् रूप से समापन करने जा रहे हैं। उनका वादा था कि वे आएँगे, तो वे आ चुके हैं।

deepawali (7)

मित्रों हर बार यह तरही मुशायरा उत्साह से भर देता है। ऐसा लगता है कि परिवार का गेट टु गेदर हो गया है। एक दूसरे से मिलना-मिलाना, स्नेह, प्रेम, आशिर्वाद। दीपावली का मतलब यही तो होता है। सबसे अच्छी बात यह होती है कि तरही में लोग उत्साह के साथ आते हैं। लम्बे-लम्बे कमेंट्स द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। यही अपनापन तो इस ब्लॉग की पहचान है।

deepawali (13)

इस बार जो मिसरा दिया गया था उसमें छोटी ईता का दोष बनने की संभावना थी। जब भी हम मात्रा को क़ाफिया की ध्वनि बनाते हैं तो यह होने की संभावना बढ़ जाती है। हालाँकि छोटी ईता के दोष को अब उतना नहीं देखा जाता, किन्तु दोष तो दोष होता है। जैसे इस बार के मिसरे में “ए” की मात्रा क़ाफ़िये की ध्वनि थी। अब यदि आपने “दिखे”  और “सुने”  को मतले में क़ाफ़िया बनाया, तो यदि “दिखे” में से “ए” की मात्रा हटाई जाए तो शब्द बचता है “दिख” जो कि एक अर्थवान शब्द है, उसी प्रकार यदि “सुने” में से “ए” की मात्रा हटाई जाए तो शब्द बचता है “सुन” जो कि पुनः एक अर्थवान शब्द है। और ईता के दोष के बारे में हम जानते हैं कि उसमें यह नियम है कि मतले के दोनों मिसरों में क़ाफ़िया के शब्दों में से क़ाफ़िया की ध्वनि हटाने पर किसी एक मिसरे के शब्द (ध्यान दें कि किसी एक मिसरे में, दोनों में होना आवश्यक नहीं है, हो जाए तो भी ठीक) को अर्थहीन हो जाना चाहिए। जैसे “फ़ासले” में से “ए” की मात्रा हटा देने पर “फ़ासल” शब्द बचेगा जो अर्थहीन शब्द है। इसका मतलब यह कि हमें मतले में किसी एक मिसरे में फ़ासले, सिलसिले, फ़ायदे, पूछते जैसे शब्द का क़ाफ़िया बनाना होगा। मैं एक बार फिर से कह रहा हूँ कि छोटी ईता को आजकल इग्नोर किया जाता है, किन्तु यदि हम बच कर चल सकें तो उसमें बुरा ही क्या है ?

deepawali (16)उजाले के दरीचे खुल रहे हैं deepawali (16)[5]

तो मित्रों हम आज दीपावली के तरही मुशायरे का विधिवत् समापन करने जा रहे हैं। जैसा कि भभ्भड़ कवि भौंचक्के ने वादा किया था कि वे आएँगे तो वे आ चुक हैं। लम्बी ग़़ज़ल झिलाना उनकी आदत है सो ज़ाहिर सी बात है वे लम्म्म्म्बी ग़ज़ल ही लेकर आए हैं, उनका कुछ नहीं किया जा सकता है। मतले का शेर, गिरह का शेर और मकते का शेर हटा कर कुल पच्चीस शेर भभ्भड़ कवि भौंचक्के ने कहे हैं। झेलना आपकी मजबूरी है सो झेलिए…….

deepawali

SUBEER

भभ्भड़ कवि भौंचक्के

deepawali (1)

सभी को दीपावली की राम-राम भभ्भड़ की ओर से पहुँचे। इस बार जो ग़ज़ल कही है वह पूरी प्रेम पर है। क्योंकि इस समय पूरी दुनिया को प्रेम की बहुत ज़रूरत है। हाँ बस गिरह को कुछ अलग तरीके से लगाने की कोशिश की है। पूरी ग़ज़ल को कुछ पारंपरिक तरीके से कहने की कोशिश की है। बातचीत के अंदाज़ में। आशा है आपको पसंद आएगी। सूचना समाप्त हुई।

deepawali (15)

पहाड़ों के मुसलसल रतजगे हैं
न जाने प्रेम में किसके पड़े हैं

ज़रा तो रात भी है ये अँधेरी
और उस पे वो भी थोड़ा साँवले हैं

जहाँ बोए थे तुमने लम्स अपने
वहाँ अब भी महकते मोगरे हैं

हमारे ज़िक्र पर उनका ये कहना
"हाँ शायद इनको हम पहचानते हैं"

फ़साना आशिक़ी का है यही बस
अधूरे ख़्वाब, टूटे सिलसिले हैं

हुआ है इश्क़ बरख़ुरदार तुमको
तभी ये आँख में डोरे पड़े हैं

है मुश्किल तो अगर दिल टूट जाए
मगर फिर फ़ायदे ही फ़ायदे हैं

कोई पागल भला होता है यूँ ही
तुम्हारे नैन ही जादू भरे हैं

कहा बच्चों से हँस कर चाँदनी ने
“तुम्हारे चाँद मामा बावरे हैं”

है अंजामे-मुहब्बत ये दोराहा
यहाँ से अपने-अपने रास्ते हैं

तेरी आँखों ने, ज़ुल्फ़ों ने, हया ने
ग़ज़ल के शेर हमने कब कहे हैं

क़ज़ा लेकर चली जब, तो लगा यूँ
"उजाले के दरीचे खुल रहे हैं"

नहीं है दिल लगा जिनका अभी तक
भला वो रात कैसे काटते हैं

बजी है बाँसुरी पतझड़ की फिर से
हज़ारों दर्द सोते से जगे हैं

फ़क़त हम ही नहीं गिनते सितारे
सुना है वो भी शब भर जागते हैं

ज़रा कुछ बच-बचा के चलिए साहब
हमारे हज़रते-दिल सिरफिरे हैं

रहे पल भर अकेला कोई कैसे
तुम्हारे घर में कितने आईने हैं

कहानी मुख़्तसर है रात भर की
कई मौसम मगर आए-गए हैं

मुकम्मल जो हुआ, वो मर गया फिर
अधूरे प्रेम सदियों से हरे हैं

दवा इतनी है मर्ज़े-इश्क़ की बस
है क़ाबू में, वो जब तक सामने हैं

नहीं कुछ लोग मरते दम तलक भी
मुहब्बत का मोहल्ला छोड़ते हैं

इन्हें सिखलाओ कोई इश्क़ करना
ये बच्चे तो बहुत सच बोलते हैं

हवा है, फिर हवा है, फिर हवा है
हमारे बीच कितने फ़ासले हैं

था दावा तो भुला देने का लेकिन
हमारा हाल सबसे पूछते हैं

इलाही ! और साँसें बस ज़रा-सी
ख़बर है घर से वो चल तो दिए हैं

दिया जाए जवाब इसका भला क्या
"हो किसके प्रेम में ?" वो पूछते हैं

है शहरे-इश्क़ से रिश्ता पुराना
यहाँ सब लोग हमको जानते हैं

“सुबीर” उस टोनही लड़की से बचना
नयन उसके निशाना ढूँढ़ते हैं

deepawali[4]

मित्रों यदि ठीक-ठाक लगे ग़ज़ल तो दाद-वाद दे दीजिएगा, वरना कोई ज़रूरी नहीं है। यह आज समापन है दीपावली के तरही मुशायरे का, अब हम इंशा अल्लाह मिलेंगे नए साल के तरही मुशायरे में। तब तक जय राम जी की।

deepawali (7)[5]

शनिवार, 12 नवंबर 2016

धीरे-धीरे हम तरही के समापन पर आ गए हैं, आज नवीन चतुर्वेदी जी और तिलक राज कपूर जी की ग़ज़लों के साथ मनाते हैं बासी दीपावली।

deepawali (4)

मित्रों हर शुरुआत का एक समापन भी पूर्व निर्धारित होता है। जो शुरू होता है उसे अंत तक भी आना होता है। समयावधि कम ज्यादा हो सकती है। दीपावली की यह तरही भी लगभग अपने अंत तक आ चुकी है। जैसा मैंने पहली पोस्ट में कहा था कि दीपावली कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला त्योहार है तो आज की यह पोस्ट और यदि रविवार तक भभ्‍भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल आ गई तो हम उनके साथ कार्तिक पूर्णिमा को तरही का समापन कर लेंगे। और उसके बाद देखते हैं फिर नए साल की ओर कि नए साल का स्वागत किस प्रकार करना है।

deepawali (7)

उजाले के दरीचे खुल रहे हैं  

deepawali (8)

आइए आज हम दो और ग़ज़लों के साथ मनाते हैं बासी दीपावली। आज तिलकराज कपूर जी की तृतीय ग़ज़ल और नवीन चतुर्वेदी जी की ब्रज भाखा में लिखी गई ग़ज़ल के साथ हम बासी दीपावली मना रहे हैं।

deepawali[4]

naveen chaturvedi

नवीन सी चतुर्वेदी

deepawali (1)

नयन क्यों आप के तर है रहे हैं।
ये अँसुआ तौ हमारे भाग के हैं॥

बने हौ आप जब-जब भोर के पल।  
हम'उ तब-तब सुमन जैसें झरे हैं॥

तनिक देखौ तौ अपनी देहरी कों।
जहाँ हम आज हू बिखरे परे हैं॥

हृदय-सरवर मधुर क्यों कर न होवै।
किनारे आप के रस में पगे हैं॥

उलझ कें आप सों नयना हमारे।
सियाने सों दिवाने है गये हैं॥

हृदय-प्रासाद में आए हौ जब सों।
"उजाले'न के झरोखा खुल रहे हैं"॥

अरे ऊधौ हमें उपदेश दै मत।
हमारे भाग में दुखड़ा लिखे हैं॥

deepawali (5) 

निश्चित रूप से स्‍थानीय बोलियों तथा भाषाओं का अपना सौंदर्य होता है, जब वे साहित्य की मुख्य धारा में आती हैं तो वे भाषा को सजाने का काम करती हैं। नवीन जी ने ब्रज की भाषा में ग़ज़ल कही है, यह भी एक सुंदर प्रयोग है। मतले में ही बहुत सुंदर तरीके से प्रेम के समर्पण की भावना को व्यक्त किया गया है। और उसके बाद का शेर भी बहुत गहरे अर्थ लिए हुए है किसीकी भोर होना और किसीका सुमन जैसे झर जाना। उलझ कें आप सों नयना हमारे में बहुत ही सुंदर तरीके और भाव के साथ प्रेम की बात कह दी गई है जो आनंद उत्पन्न कर रही है। और उसके बाद गिरह का शेर भी बहुत ही खूबसूरत बन पड़ा है तरही मिसरे को ब्रज में देख कर बस आनंद ही आ गया। ग़ज़ब। ब्रज की बात चले और ऊधो नहीं आएँ, गोपियाँ नहीं आएँ ऐसा कभी हो सकता है, अंतिम शेर उसी भाव से भरा हुआ है, बहुत ही खूबसूरत तरीके से गोपियों की मन की व्यथा को व्यक्त करता हुआ शेर । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali[4]

TILAK RAJ KAPORR JI

तिलक राज कपूर

deepawali (1)[3]

अगर है दौड़ना तो दौड़ते हैं
मगर सोचें किधर हम जा रहे हैं।

सवालों से भरी इन बस्तियों में
चलो हम कुछ के उत्तर खोजते हैं।

उधर सुरसा किसी की चाहतों की
ज़रूरत पर इधर ताले लगे हैं।

हमें भी इन पुलों से है गुजरना
दरारें नींव में क्यूँ डालते हैं।

लगाऊँ किस तरह सीने से उनको
जो खंजर पीठ पीछे मारते हैं।

समन्दर में लगाते हैं जो डुबकी
वही गहराई इसकी जानते हैं।

दुपहरी कट गयी अंधियार में, अब
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।

deepawali (5)[4] 

मतले के साथ ही तीसरी ग़ज़ल को बहुत ऊँचाइयों के साथ उठाया है, आज के समय पर गहरा कटाक्ष करता हुआ मतला, अगर है दौड़ना तो दौड़ते हैं, मगर सोचें किधर हम जा रहे हैं, वाह क्या बात है, दिशाहीनता को लेकर इससे बेहतर और क्या कहा जा सकता है। एक दिशाहीन समय पर खूब तंज़। सवलों से भरी बस्तियों में उत्तर तलाशने का साहस और अनुरोध केवल कवि ही कर सकता है, क्योंकि कवि हमारे समय का स्‍थाई प्रतिपक्ष होता है। उधर सुरसा किसीकी चाहतों की में दूसरी तरफ ज़रूरतों पर लगे हुए ताले खूब प्रयोग है। सच यही तो है हमारा आज का समय। पुलों वाला शेर भी उसी तंज़ से भरा हुआ है जिसको इस पूरी ग़ज़ल में देखा जा सकता है। लगाऊँ किस तरह सीने से उनको में पीठ पीछे खंजर मारने की बात ही अलग है। यह शेर दूर तक जाने वाला शेर है। अंतिम शेर गहरे विरोधी स्वर लिए हुए है, दुपहरी का अँधेरे में कटना और रात को उजाले के दरीचे खुलना, वाह क्या बात है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali[4]

तो यह है अंत से पहले की प्रस्तुति। यदि भभ्‍भड़ कवि का पदार्पण होता है तो हम कार्तिक पूर्णिमा, गुरुनानक जयंती आदि आदि त्योहार उनके साथ मनाएँगे। देखें क्या होता है।

deepawali (7)[5]

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

सभी को देव प्रबोधिनी एकादशी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आइए बोर-भाजी-आँवला, उठो देव साँवला के सुर में सुर उचारते हैं मन्सूर अली हाशमी जी और तिलकराज कपूर जी की द्वितीय ग़ज़लों के साथ।

deepawali (15)

मित्रों कहा जाता है कि हर त्योहार हमें कुछ समय तक उत्साह और उल्लास से जीने की अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है। यह ऊर्जा हम सबके लिए बहुत आवश्यक होती है। हमें समझना चाहिए कि यह ऊर्जा ही हमारा वास्तविक जीवन है बाकी सब तो एक फिज़ूल की कवायद भर है। एक दौड़ है जिसमें हम दौड़े जा रहे हैं बस। किसी को रोक के पूछो कि भई क्यों दौड़ रहे हो तो उसके पास कोई उत्तर नहीं होता है। बस दौड़ना है सो दौड़ रहे हैं। हम सब एक ठिठके हुए समय में जी रहे हैं जिसमें हम बाहर से जितनी तेज़ी के साथ दौड़ रहे हैं, अंदर उतने ही ठहरे हुए हैं। स्थिर हैं। अरूज़ की भाषा में कहें तो हम बाहर से भले ही मुतहर्रिक दिख रहे हैं लेकिन अंदर से हम सब साकिन होते जा रहे हैं। ‌स्थिर होना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन जड़ होना तो बुरी बात है ही। आइए अपने अंदर की जड़ता को आज तोड़ते हैं।

deepawali (1)[7]

उजाले के दरीचे खुल रहे हैं

deepawali (4)

मित्रों आज गोलमाल रिटर्न्स या धूम 2 की ही तरह हाशमी रिटर्न्स और तिलक 2 का दिन है। आज मन्सूर अली हाशमी जी और तिलक राज कपूर अपनी अपनी दूसरी ग़ज़लों के साथ अवतरित हो रहे हैं।

deepawali

Mansoor ali Hashmi

मन्सूर अली हाश्मी जी

deepawali (1)

नये हैं जी, अजी बिल्कुल नये हैं
रदीफों, काफियों में फिट करे हैं।

मिरे अशआर में ढूँढो न माअनी
जुनूँ हद से बढ़ा तो ये हुए हैं।

हुआ है क़त्ल कोई मेरे अन्दर
ग़ज़ल के लफ़्ज़ भी ख़ूँ से सने हैं।

अब उनसे बे वफाई का गिला क्या?
दग़ा हम भी तो ख़ुद से ही किये हैं।

अंधेरों अब समेटो अपनी चादर
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।

कलामे 'हाश्मी'  है बस तमाशा !
ये बाताँ आप कैसी कर रिये हैं ?

deepawali (4)[4]

बहुत ही सुंदर द्वितीय ग़ज़ल कही है हाशमी जी ने। एक मज़ाहिया अंडर टोन हाशमी जी की सभी ग़ज़लों में मिलता है और उसका होना उनकी ग़ज़लों को एक अलग प्रकार का सौंदर्य प्रदान करता है। यह पूरी गज़ल मानों अपने ही ऊपर हँसने के लिए लिखी गई है। मतला हास्य के साथ गहरा तंज़ कसता है उन पर जो मात्र तुक मिलाने और क़ाफ़िया मिलाने को ही कविता या ग़ज़ल कहना मान कर चलते हैं। उसके बाद का शेर बहुत खूब बना है एक प्रबल विरोधाभास का शेर । उसके बाद का शेर जिसमें अंदर क़त्ल होना और शेरों का खून से सन जाना प्रतीक बन कर खूबसूरती से सामने आया है। बेवफाई का शेर और गिरह का शेर भी अच्छा बना है । और मतले का शेर तो कहन के अंदाज़ में बहुत ही सुंदर है बहुत ही अच्छे से बातचीत के अंदाज़ में शेर कह दिया गया है। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।

 deepawali[4]

TILAK RAJ KAPORR JI

तिलक राज कपूर

deepawali (1)[4]

ग़ज़ल हमारे सीमा-प्रहरियों के लिये

लकीरों में लिखाये रतजगे हैं
हमारे, सरहदों पर घर बसे हैं।

नहीं दिखता है अंतर देह में पर
अलग जज़्बा हम इसमें पालते हैं।

धुआँ, बारूद, दनदन गोलियों की
हमें तोहफे ये उत्सव पर मिले हैं।

जहाँ मुमकिन नहीं इन्साँ का बचना
वहीँ दिन-रात रहते बाँकुरे हैं।

जहाँ इक ज़िद लिये फौजी खड़ा हो
कठिन हालात्, मौसम हारते हैं।

सुकूँ से आप सोयें देश वालों
अभी सीमा पे प्रहरी जागते हैं।

यकीं हम प्रहरियों को है वतन में
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।

deepawali (4)[4]

कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ कहा न जाए कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्‍त नहीं की जाए, बस निःशब्द होकर सुना जाए। तिलक जी ने हमारे सेना के जवानों के लिए जो ग़ज़ल कही है वह ऐसी ही है। इस पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए। मतला ही इतनी खूबसूरती के साथ कहा गया है कि वहीं पर निःशब्द हो जाने की जी करता है। और उसके बाद अलग जज़बा समान देह में वालने का शेर भी बाकमाल तरीके से कहा गया है। उत्सव के तोहफे भी बहुत खूबसूरती के साथ चुने हैं शायर ने, जो एक सैनिक की पूरी पीड़ा को स्वर प्रदान कर रहे हैं। और फौजी की ज़िद के आगे कठिन हालात और मौसमों का हारना कितना बड़ा सच है यह हमारे समय का। और उसके ठीक बाद का शेर एक आश्वस्ति है देशवासियों को सेना की ओर से कि अभी हम हैं चिंता मत करिए। और अंत के शेर में बहुत ही खूबसूरत तरीके से गिरह लगाई गई है। बहुत ही सुंदर। यह निश्चित ही एक अलग प्रकार की और बेहद सुंदर ग़ज़ल है। वाह वाह वाह।

 deepawali[4]

तो यह हैं आज के दोनों शायर अपनी-अपनी ग़ज़लों के साथ। बहुत ही सुंदर ग़जलें कही हैं दोनों ने। आपका दाद देने का काम बढ़ा दिया है। अभी शायद एकाध पोस्ट और आनी है उसके बाद य‌दि सब कुछ ठीक रहा तो भभ्‍भड़ कवि भौंचक्के अपनी ग़ज़ल के साथ आ सकते हैं।

deepawali (1)[4]

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

आइये नई पीढ़ी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली आज युवा शायर नकुल गौतम, अंशुल तिवारी और गुरप्रीत सिंह लेकर आ रहे हैं अपनी ग़ज़लें।

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मित्रों दीपावली के बाद का उल्लास बना हुआ है और हम लगातार बाद के आयोजनों में वयस्त हैं। मज़े की बात यह है कि लोग भाग-भाग कर ट्रेन पकड़ रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि हमारा यह तरही मुशायरा उस शिमला की खिलौना ट्रेन की तरह होता है जिसे कोई भी कभी भी भाग कर पकड़ सकता है। सबका स्वागत है। लेखन समयबद्ध नहीं किया जा सकता। विचार जब हलचल मचाएँगे तभी तो लेखन होगा। इसलिए अपना तो एक ही नियम है कि कोई नियम नहीं है।

उजाले के दरचे खुल रहे हैं

मित्रों आज तीन एकदम युवा शायर अपनी ग़ज़लें लेकर आ रहे हैं। नकुल गौतम को आप सब जानते हैं। अंशुल तिवारी हमारे ब्लॉग के पुराने सदस्य श्री मुकेश तिवारी के सुपुत्र हैं दूसरी पीढ़ी के रूप में वे इस मुशायरे में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। और गुरप्रीत दूसरी बार मुशायरे में आ रहे हैं। पहली बार उनका फोटो नहीं लग पाया था इसलिए दूसरी इण्ट्री फोटो के साथ। याद आता है फिल्म कभी-कभी का गीत –कल और आएँगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले।

deepawali

Nakul Gautam

नकुल गौतम

deepawali (1)

लुटेरे मॉल सज-धज कर खड़े हैं
सनम दीपावली के दिन चले हैं

लगी दीपावली की सेल जब से
मेरी बेग़म के अच्छे दिन हुए हैं

मेरे बटुए का बी.पी. बढ़ रहा है
मेरे बच्चे खिलौने चुन रहे हैं

सफाई में लगी हैं जब से बेग़म
सभी फनकार तरही में लगे हैं

तरन्नुम में सुना दी सब ने गज़लें,
मगर हम क्या करें जो बेसुरे हैं

कहाँ थूकें भला अब पान खा कर
सभी फुटपाथ फूलों से सजे हैं

यक़ीनन आज फिर होगी धुलाई
गटर में आज फिर पी कर गिरे हैं

नहीं दफ़्तर में रुकता देर तक अब
मेरे बेगम ने जब से नट कसे हैं

इन्हें खोजेंगे कमरे में नवासे
छिपा कर आम नानी ने रखे हैं

चलो छोड़ो जवानी के ये किस्से
'नकुल' अब हम भी बूढ़े हो चले हैं

deepawali (4)

हज़ल के रूप में लिखी गई सुंदर ग़ज़ल। मतले में तीखा कटाक्ष बाज़ारवाद पर किया गया है। उसके बाद एक बार फिर से बाज़ारवाद पर कटाक्ष करता हुआ शेर है जिसमें बच्चों के ‌खिलौने चुनने पर पिता के बटुए का बीपी बढ़ने के बात कही गई है। बहुत ही अच्छा शेर। पिता की पीड़ा पिता हुए बिना नहीं जानी जा सकती। कहाँ थूकें भला अब पान खाकर में हमारी मनोवृत्ति पर अच्छा व्यंगय कसा गया है। ज्यादा सज धज हमें परेशान कर देती है कि अब हम कचरा कहाँ फेंकेंगे। बाद के दो शेर विशुद्ध हास्य के शेर हैं। बहुत अच्छे। कमरे में नवासों द्वारा आमों को खोजा जाना मुझे बहुत कुछ याद दिला गया। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।

deepawali[4]

ANSHUL TIEARI

अंशुल तिवारी

deepawali (1)[4]

अंधेरे रोशनी में घुल रहे हैं,
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।

ख़ुशी बिखरी है चारों ओर देखो,
दर-ओ-दीवार में गुल खिल रहे हैं।

दीवाली साथ में ले आई सबको,
पुराने यार फिर से मिल रहे हैं।

मोहल्ले में मिठाई बँट रही है,
गली में भी पटाखे चल रहे हैं।

सभी आँखों में रौनक़ छा रही है,
सुहाने ख़्वाब जैसे पल रहे हैं।

भुलाए ज़ात, मज़हब, नफ़रतों को,
मिलाए हाथ इंसाँ चल रहे हैं।

ये मंज़र देख, दिल को है तसल्ली,
हरेक आँगन में दीपक जल रहे हैं।

deepawali (4)[4]

अंशुल के रूप में हमारे यहाँ अगली पीढ़ी ने दस्तक दी है अंशुल ने भी उसी तरह ग़़जल कही है जिस प्रकार नुसरत दी ने कही थी मतलब क़ाफ़िये को ज़रा पीछे खिसका कर। मतला ही बहुत सुंदर बना है। यह पूरी ग़ज़ल सकारात्मक ग़ज़ल है। असल में इस समय जितनी नकारात्मकता हमारे समय में घुली हुई है उसमें हमें इसी प्रकार के सकारात्मक साहित्य की आवश्यकता है। दीवाली साथ में ले आई सबको पुराने यारों का फिर से मिलना यही तो दीवाली का मूल स्वर है। भुलाए ज़ात मज़हब नफ़रतों को मिलाए हाथ इन्साँ चल रहे हैं, यह शेर नहीं है बल्कि एक दुआ है, हम सबको एक स्वप्न है जो शायद कभी पूरा हो आमीन। और अंत का शेर शायर के साथ हम सबको भी तसल्ली देता है कि हरेक आँगन में दीपक जल रहे हैं अभी समय बहुत खराब नहीं हुआ। सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali[4]

Gurpreet singh

गुरप्रीत सिंह

deepawali (1)[4] 

उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
अंधेरे दुम दबा के भाग उठे हैं

हुई सीने पे बारिश आँसुओं की
तो शिकवे दिल के सारे धुल गए हैं

उजाले में जिसे खोया था हमने
अंधेरे में अब उसको ढूंढते हैं

चलो करते हैं दिल की बात दिल से
चलो चुप चाप कुछ पल बैठते हैं

ये माना ज़िंदगी इक गीत है तो
ये मानो लोग कितने बेसुरे हैं

deepawali (4)[4]

गुरप्रीत का यह दूसरा प्रयास है। गुरप्रीत ने इस ब्लॉग की पुरानी पोस्टों से ग़ज़ल कहना सीखा है। हुई सीने पे बारिश आँसुओं की तो शिकवे दिल के सारे धुल गए हैं में प्रेम का बहुत जाना हुआ और भीगा हुआ रूप सामने आ रहा है। उसके बाद का शेर एकदम चौंका देता है उजाले में जिसे खोया था हमने, अँधेरे में अब उसको ढूँढ़ते हैं में एकदम से बड़ी बात कह डाली है। तसल्ली होती है कि ग़ज़ल की अगली पीढ़ी कहने में ठीक हस्तक्षेप कर रही है। अगले शेर में दिल की बात दिल से करने के लिए चुपचाप बैठने की बात भी बहुत सुंदर कहन के साथ सामने आई है। और अंत का शेर भी बहुत खूब बन पड़ा है। जिंदगी का गीत होना और लोगों का बेसुरा होना। बहुत अच्छी बात कही गई है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।

deepawali[4]

तो मित्रों ये हैं आज की तीनों ग़ज़लें, तीन युवाओं का प्रभावी हस्तक्षेप। इसके बाद एक और पोस्ट आएगी जिसमें दो बुज़ुर्ग शायर अपनी ग़ज़लें ला रहे हैं और उसके बाद चिर युवा कवि भभ्‍भड़ कवि भौंचक्के यदि मेरे करण अर्जुन आएँगे की तर्ज पर आ पाए तो आकर समापन करेंगे। लेकिन आज तो आपको इन युवाओं को जी भर कर दाद देना है कि ये हमारे ध्वज वाहक हैं आगे के सफ़र में।

deepawali (4)[4]

परिवार