गुरुवार, 29 मई 2008

विनम्र व्‍यक्ति के चाहने वाले तो सचमुच ही बहुत होते हैं नीरज जी ने ये सिद्ध कर दिया अगले जिन कवि की बात मैं करूंगा वे भी इतने ही विनम्र हैं । नीरज जी पर जो टिप्‍पणियां मिली है उन पर कुछ बातें आज की जाएं ।

गज़ल की कक्षाएं प्रारंभ करने से पहले मैं मूड बना रहा हूं छात्र छात्राओं का कि वे गर्मी की छुट्टी का मूड त्‍याग दें और पढ़ने के मेड में आ जाएं । मेरी फेवरिट सूची में नीरज जी की बात मैं ने कल की थी उस पर काफी लोगों ने सकारात्‍मक प्रतिक्रिया दी है । नीरज जी ने सिद्ध कर दिया है कि अजातशत्रु होना आज भी असंभव नही है । देखिये कुछ टिप्‍पणियां और उन पर माड़साब का जवाब ।

बाल किशन कई बार आपकी क्लास मे आया पर फ़िर कड़ी पढ़ाई देखकर भाग खड़ा हुआ. फ़िर ऐसे ही इन सब के बारे मे नीरज भइया से बात हुई तो बहुत हौसला मिला. उनका कहा था कि " अच्छा लिखते रहने की कोशिश करते रहो और अच्छा लिखते रहो तो फ़िर ये व्याकरण और बहर वगेरह अपने आप ठीक हो सकती है."
ऐसे ही है हमरे नीरज भइया उर्फ़ "वड्डे वाप्पाजी"

माड़साब    बालकिशन जी पढ़ाई तो सोचने से ही कड़ी और आसान होती हे । आप आएं कक्षाएं पुन- प्रारंभ हो रहीं हैं और ये वड्डे पाप्‍पाजी तो वड्डा ही मजेदार नाम हेगा ।

कंचन सिंह चौहान neeraj ji ke is gun ki mai bhi murid hu.n jo mujhame nahi hai

माड़साब    कंचन आप चिन्‍ता न करें कक्षाएं प्रारंभ करने से पूर्व में सभी छात्रों के बारे में एक एक पोस्‍ट लगाऊंगा और हर किसी में कुछ न कुछ गुण तो होता ही है और ये अंग्रेजी में काहे बात कर रहीं हैं ।

नीरज गोस्वामी ग़ज़ल की कक्षाएं प्रारम्भ करने का शुक्रिया...इसका बहुत दिनों से इंतज़ार था. आप ने अपनी पहली ही क्लास में मुझे जो सम्मान दिया है उसका शायद मैं अधिकारी नहीं. मैं अपने मन की बात सीधे साधे शब्दों में कहने की कोशिश करता हूँ और आप या प्राण साहेब से प्रेरणा लेता हूँ. ये आप जैसे दक्ष लोगों की संगत का प्रताप है की मुझसे सही सही ग़ज़ल कहलवा देती है. आप से क्या छुपा है...मेरी कमजोरियों से भी आप बखूबी वाकिफ हैं..और आप ने समय समय पर मेरी ग़ज़लों को जो निखारा है उसके बारे में शब्दों में कुछ कहा नहीं जा सकता. आप ने मेरी जिस विनम्रता का जिक्र किया है दरअसल वो मेरी सच्चाई है...जो मुझे नहीं आता उसे मान ने में में मुझे कोई शर्म महसूस नहीं होती क्यों की जब तक आप अपने आप को शिष्य ही समझते रहेंगे तब तक आप सीखते रहेंगे, ऐसा मेरा मानना है. मुझे इस विधा की बदौलत आप जैसे बहुत सारे प्यारे लोगों के सम्पर्क में आने का अवसर मिला है जिसकी कभी कल्पना भी मैंने नहीं की थी. इसे मैं अपने लेखन की एकमात्र उपलब्धि मानता हूँ. आप सब का स्नेह मुझपर ऐसे ही बना रहे ये ही कामना है.
नीरज

माड़साब    नीरज जी बात सम्‍मान की नहीं हैं बात तो ये है कि इस दौर में जो कि साहित्‍य के लिये सबसे कठिन दौर है । उसमें कोई यदि कुछ कर रहा है तो उसे मानना होगा कि वो वास्‍तव में डीजे के सामने बैठ कर बांसुरी बजा रहा है और अभी भले ही डीजे के शोर में उसकी बांसुरी कोई नहीं सुन रहा हो पर हमें तो उसकी हौसला अफजाई इसलिये करनी है ताकि वो बांसुरी बजाता रहे थके नहीं । कल लोग जब शेार से थकेंगें तो डीजे को दोड़ कर वापस बांसुरी की ओर मुड़ेंगे तब तब हमें साहित्‍य को जिंदा रखना है नहीं रख पाए तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा ।

Kavi Kulwant बहुत अच्छा लगा आप के ब्लाग पर आकर और नीरज झि के बारे में पढ़ कर और साथ ही आप को जानकर...और आपके गज़ल महारत देखकर ..कभी समय मिले तो आपकी नजर चाहूंगा मेरी गजल पर..ताकि मै अपने आप को सुधार सकूं...

माड़साब    ज़रूर कुलवंत जी । मैं अपने को विशेषज्ञ तो नहीं मानता लेकिन ये मानता हूं कि जितना आता है उसकेा जब तक दुसरों के साथ नहीं बांटूंगा तब तक मां सरस्‍वती मुझे और नहीं देंगीं । और नीरज जी जैसे लोग ही तो हैं जो मेरे काम को सार्थक कर रहे हैं।

Shiv Kumar Mishra आपने बिल्कुल सही कहा. विनम्रता ही है जो नीरज भैया को महान बनती है. इतनी अच्छी गजलें लगातार लिख लेना बहुत कठिन बात है. लेकिन लगता है जैसे नीरज भैया बड़ी आसानी से लिख लेते होंगे.
नीरज भैया को जानना मैं अपनी एक उपलब्धि मानता हूँ.

माड़साब    सही है शिव जी नीरज जी जैसे लोगों को हम भले ही अब विलुप्‍त श्रेणी में रखते हो कि ऐसे विनम्र लोग अब ईश्‍वर ने बनाने बंद कर दिये पर सच ये ही है अब भी ऐसे लोग हैं । और कहा ये ही जाता है कि इन लोगों के कारण ही अभी लोगों का एक दूसरे पर विश्‍वास बना हुआ है ।

Udan Tashtari नीरज जी से एक कुछ देर की मुलाकात हुई बम्बई में एक कवि सम्मेलन में. बहुत बेहतरीन और उम्दा इन्सान लगे. उनकी लेखनी के तो हम शुरु से ही कायल है. व्याकरण का तो पता नहीं किन्तु भाव बहुत भाते हैं. अब तो व्याकरण पर भी आपकी मोहर लग गई है यानि मुझे भी अंदर ही अंदर व्याकरण पहचानना आता होगा , कम से कम दूसरों की गजल में. :) हा हा क्या कहना है आपका माडस्साब. कुछ उम्मीद सी बँधती दिख रही है कि शायद कभी प्रतिभा निखर आये.

माड़साब    समीर जी हम भारतीय लोगों की विशेषता है कि अचार हमें दूसरों के घर का ही पसंद आता है । आप के साथ भी ये ही है कि आप दूसरों की ग़ज़लें तो देख लेते हैं पर अपनी बिना देखे ही प्रकाशित कर देंते हैं ।

अभिनव Yes Sir. I am in complete agreement with your observation.

माड़साब    काहे भैया अभिनव ये अंग्रेजी में काहे बतियाय रहे हो हमें अंग्रेजी फंग्रेजी नहीं ना आती है । और आप हैं कहां भाई इतरा दिन से कौनो खोज खबर ही नहीं ना ली । अभीन तो कक्षाएं शुरु होबे का रहीस उका पेहरे हम अपने फेवरिट की सूची बनाय रहे तो आपका भी लम्‍बर आवे का है फिकिर नाहीं ना करो । और हाजिरी तो कक्षा में लगाओ भैया गर्मी की छुट्टी है तो क्‍या ।

महावीरपंकज भाई, इस सर्व-प्रिय ब्लॉग पर नीरज जी के विषय में आप की क़लम से कुछ अनमोल शब्दों को पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई। मेरा नीरज जी से कभी
साक्षात या फ़ोन द्वारा तो बात नहीं हुई लेकिन समय समय पर ई-मेल द्वारा संपर्क होता रहा है - ग़ज़ब का इन्सान है। आप कुछ ही कह लें मगर उनकी विनम्रता की थाह को आंकना आसान नहीं है। दूसरे, चाहे कितनी ही अच्छी ग़ज़ल लिखी हो, उसमें कमी ना रहे और परिपूर्णता लाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। पंकज जी जैसे उस्ताद और दीगर उस्तादों से राब्ता कायम रखते हैं। अगर देखें तो दिन ब दिन उनकी ग़ज़ल में जो निखार आ रहा है,इसमें शक की गुंजाईश ना के बराबर है।
पंकज जी ने ऊपर उनके 'रमल' और 'रजज़' की ग़ज़लों के मक़तों का ज़िक्र किया है, वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ हैं।
हां, पंकज जी यह पाठशाला का कार्य-भार जो आपने उठाया है, यह हिन्दी भाषियों के लिए नायाब है। ख़ास कर बह'र सिखाने पर आप को उबूर है।
उर्दू में तो ख़ास कर बहर और दीगर बारीकियों के बारे में कुछ अच्छे साईट हैं, लेकिन हिन्दी में 'महरिष' जी और 'प्राण शर्मा' जीके अलावा कुछ नज़र नहीं आया। लेकिन 'बहर' के मुआमले में बहुत ज़्यादा नहीं मिला। 'मतले' के क़ाफ़ियों के बारे में 'महरिष' का लेख अनमोल है। क्षमा करना कि दूसरों लोगों का इश्तहार आपकी दीवार पर लगा रहा हूं। शुभकामनाओं सहित महावीर शर्मा

माड़साब    महावीर जी इश्‍तेहार जैसी तो कोई बात ही नहीं है हम सब ही साहित्‍य नाम की जिस नाव पर सवार हैं वो डूब जाने के अंदेशे में है ऐसे में चाहें महर्षि जी हो ये प्राण जी हों हम सब ही तो उस नाव को बचाने में जुटे हैं तो ऐसे मैं किसी को किसी से कुछ भी अलगाव नहीं रखना चाहिये हम सब एक ही हैा और रही बात नीरज जी की तो उनकी विनम्रता तो सचमुच अथाह है ।

बुधवार, 28 मई 2008

उठे सैलाब यादों का अगर मन में कभी तेरे दबाना मत कि उसका आँख से झरना ज़रूरी है : कुछ बातें नीरज गोस्‍वामी जी के बारे में

कक्षाएं प्रारंभ होने को हैं और उसके पहले मैं चाह रहा हूं कि नीरज गोस्‍वामी जी  के बारे में कुछ बात करूं बात करने के पीछे कारण ये है कि पिछले दिनों उनकी कई सारी ग़ज़लें मुझे देखने का मौका मिला और हालंकि जैसा वे कहते हैं कि वे बहर के बारे में कुछ नहीं जानते लेकिन मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगता कि ये ग़ज़लें किसी ऐसे शख्‍य ने लिखीं हैं जो कि बहरों के बारे में कुछ भी नहीं जानता है । हालंकि पिछले दिनों में कई सारे लोगों की ग़ज़लों को देखा किन्‍तु किसी न किसी शेर में कहीं न कहीं कोई कमी दिख ही जाती है । ऐसा नीरज जी के साथ ही मु झे देखने को मिला कि ग़ज़ल बहर के लिहाज से पूरी तरह से मुकम्‍मल होती है । वे कहते हैं कि वे तो केवल अपने अंदर की धुन पर ही ग़ज़ल लिखते हैं । लेकिन देखने में एसा लगता है कि ग़ज़ल बाकायदा मीटर पर कस के लिखी गई है । और उस कारण पूरी तरह से दोष रहित है । अब जैसे उनकी एक ताजा ग़ज़ल का ये मकता देखें

घर से चलो तो याद ये दिल में रहे नीरज
दिलकश हमेशा राह में मंज़र नहीं मिलते

2212 2212 2212 22 मुसतफएलुन-मुसतफएलुन-मुसतफएलुन-फएलुन

एक मुश्किल बहर पर ग़ज़ल लिखी है और सबसे बड़ी बात तो ये है कि विचारों में कहीं कमी नहीं आ रही है । जैसा कि कुछ छात्र कहते हैं कि जब वे व्‍याकरण को पकड़ते हैं तो विचार निकल भागते हैं और जब विचारों को पकड़ते हैं तो व्‍याकरण में सोलह सौ के हज़ार हो जाते हैं । अब ये तो नीरज जी से मैंने नहीं पूछा कि वे किस प्रकार लिखते हैं पर ये तो तय है कि उनकी ग़ज़लों में विचारों का और व्‍याकरण का संतुलन होता है । ये नहीं होता  कि बहर साधने के चक्‍कर में शब्‍दों ने अर्थ खो दिया हो । कुछ बहुत बड़े बहर के जानकारों की भी आप ग़ज़लें सुनेंगें तो वहां पर आपको आनंद नहीं आएगा । उसके पीछे कारण ये है कि बहर को साधने के चक्‍कर में मोटे मोटे शब्‍द उठाकर रखे गए हैं और जिनके कारण व्‍याकरण तो सध गई है लेकिन ग़ज़ल नहीं सध पाई है ।

नीरज जी की एक विशेषता ये है कि उनका मकता हमेशा ही जानदार होता है जैसे ये

काश "नीरज" हो हमारा भी जिगर इतना बड़ा
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें

2122 2122 2122 212 फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलनु

दरअसल में यही एक बात है जो किसी को भी मुकम्‍म्‍ल बनाती है पहले तो ये कि आपकी ग़ज़ल में विचारों की समृद्धता हो और फिर ये भी ज़रूरी है कि व्‍याकरण को लेकर अशुद्धियां न हों । एक शेर और देखें

उठे सैलाब यादों का अगर मन में कभी तेरे
दबाना मत कि उसका आँख से झरना ज़रूरी है

1222 1222 1222 1222 मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन

1222 1222 1222 1222 मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन

 मैंने ये उदाहरण इसलिये लिये क्‍योंकि ये सब अलग अलग बहरों पर हैं ।

एक बात जो नीरज जी को लिखने की ताकत दे रही है वो है विनम्रता क्‍योंकि सरस्‍वती मां का तो कहना है कि मैं फल उन्‍हीं पेड़ों पर दूंगी जिनको झुकने का गुण आता हो । विनम्रता किसी भी साहित्‍यकार का सबसे बड़ा गुण होना चाहिये और नीरज जी  के मेल इतने विनम्रता से भरे होते हैं कि कभी कभी अपने आप पर ही संकोच होने लगता है ।

खैर कल बातें अपने एक और पसंदीदा कवि के बारे में ।

सोमवार, 26 मई 2008

प्‍यार है इक निशान क़दमों का जो मुसाफि़र के बाद रहता है, भूल जाते हैं लोग सब लेकिन कुछ न कुछ फिर भी याद रहता है

नफरत और प्रेम का सि‍लसिला सदियों से ही चला आ रहा है और उसके साथ ही चला आ रहा है युद्ध और शांति का चलन । हम किसी से अचानक ही नफरत करने लगते हैं और फिर अचानक ही हक किसी को प्रेम करने लगते हैं । मैं पहले तो काफी हैरत में रहता था कि आखिर क्‍या है जो किसी को किसी से जोड़ देता है और किसी को किसी से तोड़ देता है । क्‍यों ऐसा होता है कि किसी को देखे बिना आपका दिन ही पूरा नहीं होता है और किसी को देख कर आपका दिन ही खराब हो जाता है । व्‍यक्ति तो वही है जो आपके लिये ऐसा है कि आप उसको देख कर ही दिन सार्थक मानते हैं और वो ही किसी और के लिये ऐसा हो सकता है कि उसे देख कर उसका दिन खराब हो जाए । जिन महात्‍मा गांधी को कई लोग भगवान मानते थे उन्‍हीं से कोई व्‍यक्ति इतना चिढ़ता था कि उनकी हत्‍या ही कर डाली । तो ये कौन सी बात है और कौन सी मनोस्थिति है जो हमें ऐसा करने पर मजबूर कर देती है । तो बात वही है कि प्रेम ही वो स्थिति है जो हमें किसी से जोड़ देती है और प्रेम का ना होना ही वो स्थिति है जो हमें किसी से अलग करती है ।

ग़ज़ल ने हमेशा ही प्रेम की बात की हे और हमेशा ही ये कहा है कि प्रेम हमेशा ही नफरतों पर भारी पड़ता है । ग़ज़ल एक नाज़ुक सा ऐहसास है ग़ज़ल  फूलों की पंखुरी है जो कि आत्‍मा को छूती हुई गुज़र जाती है । और इसीलिये ही ऐसा होता है कि आप ग़ज़ल के शेरों को लम्‍बे समय तक याद रखते हैं क्‍योंकि वो आपकी आत्‍मा में बस जाते हैं । आपको लग रहा होगा कि मैं आज ये कहां कि बात लेकर बैठ गया । दरअस्‍ल में इन दिनों ग़ज़ल में जो शब्‍द आ रहे हैं वे ग़ज़ल के सौंदर्य को खत्‍म कर रहे हैं । हालंक‍ि मैं ये नहीं कहता कि ग़ज़ल के कोई अलग से शब्‍द हैं जो कि ग़ज़ल में उपयोग किये जाते हैं और उनके अलावा नहीं आने चाहिये । मगर बात ये है कि आपकी ग़ज़ल हमेशा समकालीन बनी रहे तो ही तो बात है । साहित्‍य तो वही होता है जो कि हमेशा ही समकालीन रहता है । अगर आपको बताना पड़े कि ये कविता को लिखने के लिये उस समय परिस्थितियां क्‍या थीं तो आपकी कविता समकालीन कविता नहीं है । जैसे एक कविता है ''हम कौन थे क्‍या हो गए हैं और क्‍या होंगें अभी '' ये कविता हर दौर में समकालीन ही रहेगी क्‍योंकि ये बात हर  दौर में सही होगी कि हम कौन थे क्‍या हो गए हैं और कया होंगें अभी ।

हम जो भी लिखें वो इस तरह का हो कि उसमें अपने समय की गूंज हो और साथ ही वो आने वाले समय में भी अपनी सार्थकता को नहीं खो पाए । ग़ज़ल आज की सबसे लोकप्रिय विधा है और उसके पीछे कारण ये है कि ये विधा सवतंत्रता देती है विचारों को व्‍यक्‍त करने की । हिन्‍दी का छंद शास्‍त्र जो आज कुछ कम लोकप्रिय है तो उसके पीछे भी कारण्‍ा यही है कि उसमें विचारों से ज्‍यादा व्‍याकरण पर  जोर होता है । फिर भी राकेश खंडेलवाल जी जैसे लोग हैं जो छंद शास्‍त्र के संकट के दौर में भी छंद का परचम पूरी मजबूती के साथ उठाए हुए हैं और उसको आसमान में लहरा भी रहे हैं । मैं काफी दिनों से अनुपस्थित चल रहा था और लौटने की मानसिकता नहीं बना पा रहा था । अब साहस करके लौट रहा हूं ।साहस करके इसलिये कह रहा हूं क‍ि साहस सचमुच ही करना पड़ रहा है । और एक बात और भी है वो ये है कि जिस समय पर मैं ब्‍लागिंग के लिये बैठता हू वो समय बिजली कटौती की भेंट था अब कुछ दिनों से उस समय पर लाइट नहीं जा रही है सो आशा है कि अब नियमित रूप से हम मिलेंगें । आमीन

मंगलवार, 13 मई 2008

कोई कोना भी हो सुनसान बुरा लगता है, अब बिना पेड़ के दालान बुरा लगता है , ये मिरी सोच मुझे आज कहां ले आई, घर में आया हुआ मेहमान बुरा लगता है

माड़साब वापस आ गए हैं काफी दुचे पिटें से आ रहे हैं काफी दिनों से काफी कुछ झेलने के बाद अब माड़साब की वापसी हो रही है । इस बीच कई सारे दिन बीत गए हैं और काफी कुछ गुजर चुका है । उड़नतश्‍तरी की वापसी हो चुकी है अभिनव भी कुछ दिनों के लिये भारत आकर वापस हो चुके हैं और राकेश जी भी एक दुखद प्रसंग में आकर जा चुके हैं । मतलब ये कि इस बीच हमारे शहर के सूखी नदी में काफी कुछ बह चुका है पानी को छोड़कर । पानी इसलिये नहीं क्‍योंकि पानी तो अब बातल में मिलता है । हमारे दादा कहा करते थे कि बेटा कभी भारत में दूध की नदियां कहा करती थीं । हम अपने पोतों से कहा करेंगें कि बेटा हमारे जमाने में तो पानी की नदियां कहा करतीं थीं । और वे उत्‍सुकता के साथ कहेंगें सच दादाजी पानी की नदियां और वो भी साफ पानी की नदियां । खैर तो अब तो काफी कुछ हो चुका है । माड़साब की छुट्टी के पीदे एक कारण ये भी था कि माड़साब की कक्षाओं के समय पर बिजली गुल हो जाती है और उसके कारण ये होता था कि कक्षाएं नहीं लग पाती थीं । अब तो कुछ कटौती का समय बदला है । और हमारे प्‍यारे मध्‍य प्रदेश में अब कटौती का शेड्यूल कुछ उस प्रकार है । सुब्‍ह 7 बजे से 10 बजे तक घोषित कटौती और उसके बाद फिर 10:30 से लेकर दोपहर 2 बजे तक अघौषित कटौती फिर 2:30 से लेकर शाम 6 बजे तक पुन: घोषित कटौती और उसके बाद 7 बजे से लेकर रात 12 तक अघोषित कटौती । और उसके बाच जो आधे आधे घंटे की बिजली मिल रही है उसके बारे में भी वही बात कि अगर  उस बीच कहीं लोड शेडिंग हो गई तो वो भी गई । खैर हमने पांच साल पहले एक सरकार को हटा कर दूसरी को बिठाया था क्‍योंकि वो सरकार बिजली नहीं दे पारही थी और अब शायद पांच महीने बाद इसको भी हटा देंगें कारण वही बिजली नहीं  दे पा रही है । आज माड़साब काफी बतौलेबाजी करके केवल कक्षाओं का माहौल बना रहे हैं और वो भी इसलिये क्‍योंकि हमको काफी समय हो गया है कक्षाओं में आए तो कम से कम आज से विद्यार्थियों को ये तो पता चल ही जाए कि माड़साब वापस आ गए हैं और अब कक्षाएं शुरू होने वाली हैं । हमने कक्षाओं को बहर के प्रारंभ पर छोड़ा था और हम वहीं से पुन: उठा कर शुरू करेंगें  और एकदम प्रारंभ से ही उठाएंगें । बहरों के बारे में जो कुछ भी हमने देखा था उसको फिर से देखना होगा क्‍योंकि काफी दिन हो चुके हैं और उसके बाद काफी कुछ हो चुका है । कहीं पर आपके माड़साब को ये भी कहा गया कि वे तो मूर्ख हैं और ये भी कहा गया कि वे अहंकार लेकर स्‍तंभ लिखते हैं । उसके बाद एक आत्‍मावलोकन माड़साब ने किया कि क्‍या माड़साब सचमुच ऐसे हैं । और आत्‍मावलोकन का परिणाम अभी कुछ मिला नहीं हैं । खैर माड़साब कक्षाएं प्रारंभ कर रहे हैं ऐ बात हर आमो खास को बता दी जाए । और हां एक बात और माड़साब ने भूतनाथ देखी और सच बोलें तो माड़साब को भोत मजा आया । काफी मजेदार है फिल्‍म । तो आज आप भूतनाथ देखें और कल कक्षा में आऐं जहां माड़साब आपको भूत बनाने वाले हैं । ( आज शीर्षक में जनाब इसहाक असर साहब के कुछ शेर लगे हैं ) 

सोमवार, 12 मई 2008

एक साक्षात्‍कार मृत्‍यु के साथ जब ऐसा लगा था कि अब सब कुछ ख़त्‍म ही होने वाला है और एक दर्शन मानवीयता का

ऐसा लगता है कि मेरी परेशानियों के दिन अभी और लम्‍बे समय तक चलना चाह रहे हैं । पिछले कुछ समय से परेशानियों ने कुछ इस तरह से घेरा हुआ है कि बस उस पर शनिवार की घटना ने तो पूरे दिन और रविवार को भी मन को विचलित किये रखा ऐसा लगा कि अब बस सब कुछ खत्‍म ही होने वाला है पर जाने किसकी दुआओं के असर से बच गया । दोपहर का समय था लगभग चार बजे के आसपास मैं भोपाल सै लौट रहा था अपनी मारुती वैन लेकर के । रास्‍ते में हाईवे बनाने वालों ने सड़क को तो ऊंचा कर दिया पर किनारों को नहीं भरा जिससे के सड़क और ज़मीन के बीच में करीब डेढ़ फुट का फासला है और वो भी एकदम सीधा । मतलब कहीं आपने ग़लती से भी गाड़ी को सड़क नीचे उतारा तो सीधी सी बात है कि आपकी गाड़ी का पलटना तय है । गाड़ी धड़ से नीचे गिरेगी और अगर गति में है तो पलटना तो तय है । मैं चला जा रहा था कि अचानक एक गाय जो कि उस तरफ मुंह करके खड़ी थी जाने किस वजह से उलट कर भागी और उसके बचाने के चक्‍कर में मैं भूल ही गया कि सड़क और जमीन में डेढ़ फुट का अंतर है और बात की बात में गाड़ी सड़क को छोड़कर जमीन पर आकर धड़ाक से गिरी । गिरते ही संतुलन चला गया और दूसरा तीसरा और चौथा पहिया भी जमीन पर आ गिरा और उसके बाद गाड़ी स्‍पीड में लहराती हुई एक पुलिया की ओर बढ़ चली कुछ देर तक तो मैंने उसको नियंत्रण में लेने का प्रयास किया मगर जब बात नहीं बनी तो हार कर सोच लिया कि अब तो पुलिया से टकराना है और उसके बाद जो होना है वो होगा ही । अचानक पुलिया के कुछ दूर पर गाड़ी  जोर का झटका खाकर रुक गई । हाथ में थोड़ी सी चोट लगी और कुछ नहीं । मैं हैरत में भरा गाड़ी से उतरा तो ज्ञात हुआ कि एक मिट्टी का टीला रास्‍ते में आ गया था जिससे टकरा कर गाड़ी रुक गई थी । और उसमें फंस गई थी । मिट्टी होने के कारण गाड़ी को ज़रा सा भी नुकसान नहीं हुआ और ना ही मुझे । कुछ देर तक तो मैं हैरान सा खड़ा सोचता रहा कि क्‍या है ये सब । ये किसकी दुआओं का फल है जो मिट्टी के टीले के रूप में सामने आ गया है ।   समय का एक पल ही तो बीच में बाकी रहा गया था जब गाड़ी को उस पुलिया से टकराना था । और उसी पल में वो टीला जीवन और मृत्‍यु के बीच आकर खड़ा हो गया कि नहीं अभी नहीं अभी तो बहुत काम बाकी हैं । एक और ऐसा सच देखने को मिला जिसके जिक्र के बगैर ये बात अधूरी ही रहा जाएगी । थोड़ी ही दूर पर कुछ मजदूर और ड्रायवर खड़े थे जब उन्‍होंने देखा तो दौड़ते हुए आए और कुशलक्षेम पूछने लगे । मैंने कहा कि कोई चोट नहीं है बस गाड़ी फंस गई है तो उनमें से एक ड्रायविंग सीट पर बैठ गया और बाकियों ने धकेलते हुए बात की बात में गाड़ी को लाकर सड़क पर खड़ा कर दिया । जब मैंने पैसे देने चाहे तो सबने हाथ जोड़ दिये कहने लगे कि बाबूजी आपको ईश्‍वर ने बचा लिया वही हमारे लिये बहुत है । और जो हमने किया वो तो करना ही था । मैं अभिभूत रहा गया आज भी ऐसी मानवता बाकी है । नानी सच कहती हैं कि कुछ अच्‍छे लोगों के कारण ही पृथ्‍वी टिकी है अन्‍यथा तो कभी भी खत्‍म हो जाएगी । खैर दुर्घटना की मानसिकता को मानवीयता ने दूर कर दिया और मैं उनको सलाम करता हुआ वापस आ गया ।

आज से ग़ज़ल की कक्षाएं प्रारंभ होनी थीं पर शनिवार का अनुभव आप लोगों के साथ बांटना था । उसके पीछे क्‍या कारण है वो अब बताता हूं । दरअस्‍ल में जब रविवार को मैंने सोचा की वो मिट्टी का टीला वास्‍तव में क्‍या था तो मुझे पता चला कि वो वास्‍तव में माता पिता और परिवार की दुआएं थीं और आप सब मित्रों की शुभकामनाएं थीं जो मुझे मृत्‍यु के मुख से खींच लाईं । धन्‍यवाद देकर आपके स्‍नेह को छोटा नहीं कर सकता । पर हां बात वही है कि आप सब का प्रेम है जो मुझे संकट के इस दौर में संबल दे रहा है ।

सोमवार, 5 मई 2008

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात - मैं वापस आ रहा हूं अपनी ग़ज़ल की कक्षाओं के साथ

दादाजी कहा करते थे कि ईश्‍वर जिनको प्रेम करता है उनको खूब कष्‍ट देता है । उनको कभी भी सुकून से नहीं रहने देता है । अगर दादाजी की भाषा में बात करूं तो शायद ईश्‍वर मुझसे कुछ ज्‍़यादा ही प्रेम करता है । और शायद इसीलिये ...... ख़ैर मगर मुझे इस बात में इस बात की खुशी तो है ही कि जब भी ईश्‍वर मुझे कष्‍ट देता है तो कई सारे लोगों को भी भेजता है जो आकर कहते हैं कि हम तुम्‍हारे साथ हैं । मेरी पिछली पोस्‍ट पर कई सारे लोगों के संदेश प्राप्‍त हुए और कई सारे फोन भी । ऐसा लगा कि मेरा दुख तो बंट गया है कई सारे लोगों ने उस पीर को बांट लिया है । अभिनव को फोन मिला और जो बात अभिनव ने कही उससे मैं अभिभूत हो गया मैं नहीं जानता कि कैसे कोई किसी के इतना नजदीक हो जाता है । और वो भी संबंधों के ठंडेपन वाले इस दौर में । अभिनव ने जो कुछ कहा वो सीधे जाकर ह्रदय को छू गया । अपनेपन का एक झौंका सा आप लोगों की ओर से आया और जीवन की तपन को कम करके चला गया । संकट के दिन भले ही ना टले हों पर ये तो विश्‍वास है कि मेरे साथ कई लोग हैं जो कि संकट के दिनों में मेरे साथ खड़े हैं । एक पुराना गीत है '' पास बैठो तबीयत बहल जाएगी मौत भी आ गई हो तो टल जाएगी''   बस वैसा ही कुछ लगा मुझे भी भले ही आप सब मेरे साथ भौतिक रूप से नहीं हैं पर आत्‍मीय रूप से तो सब मेरे साथ हैं और वही साथ होना खास होता है । जो भौतिक रूप से साथ होते हैं वो कितना साथ होते हैं ये हम सब जानते हैं । राकेश जी के यहां पर भी दुखों का सिलसिला थम नहीं रहा है । पहले एक भ्राता का बिछोह और अब दूसरे का भी । ईश्‍वर का ये न्‍याय कभी कभी अच्‍छा नहीं लगता कि अच्‍छे लोगों को ज्‍यादा दुख दिये जाएं । उस सब के बाद भी राकेश जी का फोन प्राप्‍त हुआ तो ऐसा लगा कि कहीं दूर बैठा कोई बड़ा भाई सांत्‍वना दे रहा है कि छोटे दुखी मत होना मैं तेरे साथ हूं । कंचन और सुनीता जी का फोन वैसे ही मिला जैसे परदेस में बसी कोई बहन भाई पर किसी संकट के दौरान अकुला के फोन करती है कि भैया के पास जा तो नहीं सकते पर मन तो वहीं है । मैं नहीं जानता था कि मेरा परिवार इतना बड़ा हो गया है कि उसमें इतने सारे भाई बहन हो गए हैं । समीर जी का स्‍नेह उनका प्रेम ये सब बातें भला भूल जाने वाली हैं । अभिनव का जब फोन आया तो ऐसा लगा कि परवाह के साथ को छोटा भाई कह रहा है कि मैं हूं ना । मैं नहीं जानता कि मेरे किन अच्‍छे कार्यों के कारण ईश्‍वर ने मुझे ये परिवार दिया है । खैर अब मैं वापस आ रहा हूं । एक लम्‍बी नज्‍़म लिख रहा हूं अपनी मिष्‍टी (मीठी) पर और उसके साथ ही संभवत: अपनी दूसरी पारी का प्रारंभ करूंगा । अंग्रेजी में कहावत है शो मस्‍ट गो ऑन । समीर जी आपने काफी पहले एक सलाह दी थी मैंने उसे नहीं माना तो एक दुख कहीं से और भी मिला जिसका जि़क्र यहां नहीं कर सकता पर ये ज़रूर कहूंगा कि अब मैं दोस्‍तों की सलाह को इग्‍नोर नहीं करूंगा । जाने क्‍यों वो ग़लती कर बैठा और अपमानित हो गया । खैर तुलसी बाबा ने कहा है यश अपयश जीवन मरण सब विधना के हाथ । यश की कामना हो तो अपयश के लिये भी अपने आपको तैयार रखना चाहिये । चलिये जल्‍दी ही हम मिलते हैं अपनी ग़ज़ल की कक्षाओं के दूसरे खंड के साथ । अभी तो बस ये

एहसान मेरे दिल पे तुम्‍हारा है दोस्‍तों, ये दिल तुम्‍हारे प्‍यार का मारा है दोस्‍तों

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