सोमवार, 14 जनवरी 2008

अवधेशानंद गिरी जी ने कविता सुनाई माड़साब को और फिर कहा अब आप सुनाइये

कविता तो हर एक के अंदर है कौन उसको सुर दे दे बस इतना सा ही फर्क होता है । अवधेशानंद गिरी जी के प्रवचन सीहोर के निकट आष्‍टा में चल रह हैं । माड़साब अपने कार्य ( पत्रकारिता ) के चलते वहां पहुंचे तो परिचय हुआ और जब श्री अवधेशानंद जी को किसी ने माड़साब के बारे में बताया कि ये कवि हैं तो उन्‍होंनें तुरंत अपनी कुछ पंक्तियां पढ़ीं जो सोनेट शैली में थीं । अवधेशानंद जी ने कहा

पहले जीवन के ढंग में तुम भी थे, अब जीने का हर ढंग तुम्‍हारा है

और

तुम्‍हारा जिक्र, जैसे इत्र

अवधेशानंद जी ने अपनी कविता सुनाने के बाद माड़साब से कहा अब आप भी सुनाइये तो माड़साब ने अपनी भारत कहानी  की कुछ पंक्तियां गा दीं । अच्‍छा लगा जानकर कि वे भी कवि हैं ।

खैर तो हम बहरों पर आ गए हैं और ये जानने केा प्रयास कर रहे हैं कि बहर क्‍या होती है । सबसे पहले तो ये जान लें कि बहर की परिभाषा क्‍या है । शे'र में रुक्‍नों की एक निश्चित तरतीब को बहर कहा जाता है । रुक्‍नों के एक पूर्व निर्धारित विन्‍यास को बहर कहा जाता है । और जिन भी महोदय ने उस तरतीब उस विन्‍यास का पता लगाया उन्‍हीं के नाम पर उस बहर को नाम पड़ा है । अब इसमें एक बात ये है कि चूंकि ग़ज़ल फारसी की मूल विधा है अत: ज्‍यादातर बहरों के नाम फारसी विद्वानों के नाम पर ही हैं । जिस भी विद्वान ने जिस तरतीब का पता लगाया और पेश किया वो बहर उनके नाम पर हो गई ।

ग़ज़ल में जैसे कि हम पहले देख चुके हैं शब्‍द होते हैं शब्‍दों से बनते हैं रुक्‍न रुकनों से बनते हैं मिसरे मिसरों से बनते हैं शे'र  और शे'रों से बनती है पूरी ग़ज़ल । अर्थात इंटों से बनती हैं दीवारें और दीवारों से बनता है घर । रुक्‍न का तो विन्‍यास मतले के मिसरा उला में आपने लिया वो ही आपकी ग़ज़ल की बहर हो गई है और अब आपको उसको ही लेकर चलना है । विन्‍यास का मतलब ये हैं कि आपने मिसरा उला में एदि कहा है कि

मिट गए इश्‍क़ में इम्तिहां हो चुका  तो आपने कहा है 212,212,212,212 या कि फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन 

अब ये जो विन्‍यास है ये आपकी बहर हो गई है अब मिसरा सानी से लेकर ये बहर आपको पूरी ग़ज़ल में निभाना हे ये आप पर एक बंदिश है ।  बस सितम हम पे ए आसमां हो चुका  कह कर आप उसको निभाएंगें और निभाते ही चलेंगें ।

ग़ज़ल के बारे में ये बात मशहूर है कि इसकी एक पंक्ति आपकों ऊपर से मिलती है और बाकी आपको बनानी पडद्यती हैं । वो जो आपको मिलती है आपको सबसे पहले उसकी तकतीई करनी है ये जाने के लिये कि उसका विन्‍यास क्‍या है और उसकी बहर क्‍रूा है । जब तकतीई हो जाए तो फिर आप उस पर काम शुरू करें । कई बार हम क्‍या करते हैं कि पहले तो पूरी ग़ज़ल लिख लेते हैं और बाद में बहर निकालने का काम करते हैं । ये कुछ ठीक नहीं हैं क्‍योंकि आपको पूरी मेहनत फिर से करनी होती है । अत: करें ये कि पहले तो मतले के मिसरा उला की बहर निकालें तकतीई करें ऐसे

मिट गए इश्‍ क में इम ति हां हो चु का
2   1   2 2  1  2 2   1   2 2   1   2
फा ए लुन फा  ए लुन  फा ए लुन फा ए लुन

ये लिख कर काग़ज़ के ऊपर बना लें और अब ये आपका नीति निर्धारक हो गया है आने बाली सारे मिसरे आपको इन पर ही चलाने है ये याद रखें । ये सबसे ज़रूरी काम हैं अगर आपने तकतीई करना सीख लिया तो आपका आधा काम तो हो जाएगा । तकतीई करने के बाद उसको सामने रखें ताक‍ि आपको याद रहे कि आपकी बहर क्‍या है । उसके बाद एक एक मिसरा निकालें उसे तकतीई के तराज़ू पर तौलें और ग़ज़ल में शामिल करते जाएं । ये ही सबसे सही तरीका है ।

कल आप लोग कुछ तकतीई निकाल कर बताएं ताकि हम और आगे बढ़ सकें ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. यस सर,

    स्वामी अवाधेशानंद जी महाराज से आपकी काव्यात्मक भेंट के विषय में जानकर अच्छा लगा. स्वामीजी की भाषा पर अद्भुत पकड़ है. जब वो उपमाओं का प्रयोग करते हैं तो कविता स्वतः उत्पन्न होने लगती है. मुझे कहीं लगता है की हमारे समाज को ऐसे संतों की बड़ी आवश्यकता है. आपने अपनी कविता की पंक्तियाँ नही लिखीं, आपका संस्मरण पढ़ कर उन्हें सुनने का भाव मन में जगा है.

    कैफी साहब के इस शेर की तकती करने का प्रयास कर रहा हूँ,

    कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
    कहीं ज़मीं तो कैन आसमां नहीं मिलता.

    संभावित बहर है: १२१२-११२२-१२१२-२२

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  2. अभी गूगल का नया टूल प्रयोग करना शुरू किया है, पिछली टिपण्णी में एक गड़बड़ हो गई थी उसे सुधार रहा हूँ,

    कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
    कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता.

    संभावित बहर है: १२१२-११२२-१२१२-२२

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  3. जया नर्गिस जी की एक ग़ज़ल के मतले का संभावित बहर:-

    याद जब दिल से जुदा हो जाएगी
    ज़िंदगी इक हादिसा हो जाएगी
    २१२२ ~ २१२२ ~ २१२
    २१२२ ~ २१२२ ~ २१२


    २. और यह शेर किसका है, पता नहीं :-
    हम तो फूल जैसे थे, आग सा बना डाला
    हाय इन फ़सादों ने, हादसा बना डाला
    2121 ~ 2222 ~ 1212 ~ 22
    2121 ~ 2222 ~ 1212 ~ 22

    रिपुदमन

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  4. हाजिरी सर जी


    कैफी आज़मी जी की ग़ज़ल फ़िल्म अर्थ के इस शेर की तकतई करने की कोशिश की है

    तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
    ११ ११२ २ २१२ १२ २

    क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
    ११ ११ २ २२ १२ १२ २


    सादर
    अजय

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