शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

दंगें के मुहाने से लौटा एक शहर, तरही मुशायरे की उलझन और दीवाली के कुछ माड़साब के फोटो

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दीपावली के दूसरे दिन हमारे शहर में मिलने जुलने का दिन होता है । और एन उसी दिन हमारे शहर में दंगे का माहौल बन गया । पत्रकारिता से जुड़े होने के कारण और अपने शहर को लेकर चिंता के कारण घटना स्‍थल पर पहुंचे तो ज्ञात हुआ कि दोनों पक्ष आमने सामने हैं पथराव चल रहा है और तलवार बाजी की भी एकाध घटना हो चुकी है जिसमें कुछ लोगों को चोट आ चुकी है । स्थिति बड़ी विकट थी घटना कस्‍बा नामक मोहल्‍ले में हो रही थी जो शहर से थोड़ा हटकर एक मोहल्‍ला है । या यूं कहें कि पुराना सीहोर है । इधर नये शहर में लोगों को पता ही नहीं था कि वहां कस्‍बे में क्‍या हो गया है । मगर रही सही कसर पुलिस ने पूरी कर दी । पुलिस ने सायरन बजाती हुई गाडि़यों को पूरे शहर में दौड़ा कर दहशत को माहौल पूरे शहर में बना दिया । बात की बात में शहर में भगदड़ मच गई शटर गिर गए और दीपावली मिलन के लिये बाजार में निकले हिन्‍दू मुस्लिम अपने अपने घरों में दुबक गए । उधर कस्‍बे में हालत बिगड़ रही थी तो इधर बाजार में अफवाहें गर्म थीं । कोई कह रहा था कि चार मर गये कोई कह रहा था कि पांच के हाथ काट दिये गये हैं । उधर समाचार चैनल उनकी तो क्‍या कहें उनको तो चाहिये ही था  कि दंगे हो जायें क्‍योंकि समचार तो उससे ही बनना था । तो उन्‍होंने भी अपनी बुद्धिमानी का पूरा परिचय देते हुए अतिरंजित टिकर ( नीचे चलने वाली पट्टी या स्‍‍क्रोल ) चला दियें । सीहोर में तनाव धारा 144 लगी ( अरे मूर्खों धारा 144 तो चुनावों की घोषणा के साथ पूरे प्रदेश में लग चुकी है ) । एनडीटीवी जैसे राष्‍ट्रीय चैनल ने भी आग में घी डालने वाले टिकर चलाये । अफवाहें फैलने लगीं और आप तो जानते ही हैं कि अफवाहें क्‍या करती हैं । बात की बात में दोनों पक्ष के बाकी श्‍ाहर में फैले लोग लामबंद होने लगे । एकबारगी तो मुझे भी लगा कि 22 सालों से कमा कर रखी गई सौहार्द्र की भावना का हुआ सत्‍यानाश । 22 साल इसलिये कि 1986 में हमारे शहर में एक भीषण दंगा हुआ था जिसके घाव भरने में वर्षों लग गये थे । अभी भी वे घाव टीस देते हैं । जब दोनों पक्ष आमने सामने थे तो एक छोटी सी चिनगारी पूरे शहर को आग में झोंक देने के लिये पर्याप्‍त थी । प्रशंसा करनी होगी एक वर्ग की ( नाम नहीं लूंगा कौन सा ) कि उसके बुजुर्गों ने समझाबुझाकर अपने लोगों को पीछे हटाया और घरों में भेज दिया । नये लड़कों को डांट कर डपट कर जैसे बन सका घर भेजा । 1 घंटे से जो तनाव था वो समाप्‍त हुआ और लोगों ने कुछ राहत की सांस ली । कुछ इसलिये क्‍योंकि एक वर्ग अभी भी डटा था । और जाने का नाम ही नहीं ले रहा था । मगर पुलिस के लिये राहत की बात इसलिये थी कि एक वर्ग जा चुका था और मैदान में केवल एक ही था । दूसरा वर्ग जाने का नाम ही नहीं ले रहा था । पुलिस ने लाठी चार्ज किया और बात की बात में दूसरे वर्ग को खदेड़ दिया । दंगें की आशंका में लरजते शहर ने चैन की सांस ली ।

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खैर तो बात तरही मुशायरे की उसको लेकर एक दिक्‍कत ये आ रही है कि माड़साब का सिस्‍टम एक बार फार्मेट हो गया है और माड़साब अपने मेल आउटलुक में देखते हैं आउटलुक में आने के बाद मेल एकाउंट से मेल हट जाता है । सो दिक्‍कत ये आ रही है कि कुछ लोगों पारुल, तरु न गोयल, कंचन, संजय चतुर्वेदी, वीनस, अभिनव की ग़ज़लें तो हैं पर बाकी के लोगों की ग़ज़लें नहीं मिल रही हैं । मैं चाहता हूं कि सब की गज़लें रहें सो जिन लोगों के नाम ऊपर की सूची में नहीं हैं वे लोग एक बार फिर ग़ज़लें भेज दें । ये गलती मेरी है कि मैं उन ग़ज़लों को समय पर बैकअप लेकर नहीं रख पाया । जैसे ही बाकी के लोगों की ग़ज़लें फिर से मिलती हैं उसी दिन तरही मुशायरे का आयोजन हो जायेगा ।

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बिजली की हालत तो वैसी ही है इसलिये अब कोशिश कर रहा हूं कि रात में कुछ काम तैयार कर के रख लूं और सुब्‍ह आकर केवल पोस्‍ट लगा दूं

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बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

आज बात करते हैं जुड़वां बहरों के बारे में और घोषित करते हैं दूसरे तरही मुशायरे की तारीख

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एम.पी.ई.बी. को हमारे शहर में म.प्र.विद्युत मंडल न कह कर मरा पड़ा विद्युत मंडल कहा जाता है । बिजली की स्थिति ये है कि कब आती है कब जाती है कुछ पता ही नहीं चलता है । ऐसे में क्‍या तो कम्‍प्‍यूटर चलायें और क्‍या ग़ज़ल की कक्षाये चलायें । खैर अब तो उम्‍मीद है कि कुछ समय के लिये बिजली आ गई है सो पहले ये काम ही कर लें कि ग़ज़ल की कक्षायें ही लगा लेते हैं ।

गाई जाने वाली बहरों को पहले तो केवल शायरातों ( महिलाओं) के लिये ही खास रखा जाता था किन्‍तु आजकल तो पुरुष भी अच्‍छा खासा नाजुक सा गा लेते हैं । सो अब गाई जाने वाली बहरों पर कई अच्‍छी ग़ज़लें लिखी जाने लगीं हैं । बहरे हजज एक ऐसी ही बहर है जिसमें कि कई सारी उप बहरें ऐसी हैं जो कि गाई जाने लायक बहरें हैं । बहरे हजज का सालिम रुक्‍न होता है 1222 मुफाईलुन । ये सालिम में भी गाई जाने वाली ही बहर होती है । मुसमन सालिम 1222-1222-1222-1222 पर तो खैर खूब गाया जाता है । काफी पुरानी धुन है इसकी और पहले के मुशायरों में शायरात इस धुन पर कुछ शेर ज़रूर पढ़तीं थीं । उसी धुन पर आज के कवि  कुमार विश्‍वास भी अपने सारे मुक्‍तक पढ़ते हैं । तो दरअस्‍ल में ये धुन तो बहुत पुरानी है जो लोग मुशायरों में जाते रहे हैं वो जानते होंगें कि हजज मुसमन सालिम को पढ़ने की धुन कितनी पुरानी है । समीर लाल जी की चिडि़या भी इसी धुन और बहर पर है । ( मेरी भी ये सबसे पसंदीदा बहर और धुन है मगर मैं इस पर ग़ज़ल ना लिखकर गीत लिखता हूं ) ।

हजज की एक और मुजाहिफ बहर है हजज मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ  यें भी खूब गाई जाने वाली बहर है । झूम कर पढ़ने वाले शायर अक्‍सर इसका उपयोग खूब करते हैं । नीरज गोस्‍वामी जी ने भी इस पर कुछ अच्‍छी ग़ज़लें कहीं हैं । इसका वज्‍न है 221-1221-1221-122 या मफऊलु-मुफाईलु-मुफाईलु-फऊलुन ।  अब ये जो बहर है ये खूब गाई जाती है । पर कई बार ये अपनी जुड़वां बहर के साथ मिल जाती है । और इस प्रकार से कि पता ही नहीं चलता कब बहर बदल जाती है । हम एक शेर इस बहर का लेते हैं और दूसरा दूसरी का लेते हैं । गाने में भी इसलिये पता नहीं चलता कि दोनों की गाने की धुन भी एक ही है । मगर ये जो बहर है दूसरी वाली ये हजज  न होकर मुजारे  है । मुजारे एक मुरक्‍कब बहर है जबकि हजज मुफरद बहर है । मुजारे की जो बहर है उसका भी नाम कुछ वैसा ही है जैसा कि हजज का है बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ । इसका वज्‍न है 221-2121-1221-212 या  मफऊलु-फाएलातु-मुफाईलु-फाएलुन । अब देखे तो पहला रुक्‍न तो दोनों में समान है पर दूसरा रुक्‍न जो कि हजज में 1221 था वो यहां पर 2121 हो गया है किन्‍तु मात्रायें उतनी ही हैं केवल पहली मात्रा दीर्घ हो गई है और दूसरी लघु । तीसरा रुक्‍न दोनों ही बहरों में समान है 1221 और चौथा रुक्‍न में एक बार फिर एक मात्रा का परिवर्तन है हजज में 122 है तो मुजारे में 212 है ।

हजज 221 1221 1221 122
मुजारे 221 2121 1221 212

उदाहरण : मेरे ही काम का है न दुनिया के काम का

उदाहरण :- इकबाल भी इकबाल से आगाह नहीं है

अब ये आपको पता करके बताना है कि कौन सा मिसरा कौन सी बहर का है ।

बहरे हजज और मुजारे में फर्क केवल दो ही रुक्‍नों में हो रहा है और वो भी मात्राओं के स्‍थान परिवर्तन का ही हो रहा है अत: पता ही नहीं चलता कि कुछ ग़लती हो गई । पर तकतीई करने पर पता चल जाता है ।

बहरे हजज की ये जो ऊपर दो उप बहरें बताई हैं ये गाने वाली बहरें हैं । हजज की गाने वाली एक और बहर है हजज मुसमन अशतर  जिसका वज्‍न है 212-1222-212-1222  या कि फाएलुन- मुफाईलुन-फाएलुन-मुफाईलनु ।  ये भी खूब गाई जाने वाली बहर है । इस पर भी खींच कर गाई जाने वाली धुन में कई शायर देर तक पढ़ते हैं ।

चलिये अब ये तो हो गई कक्षायें । अब बात करते हैं तरही मुशायरे की, माह अक्‍टूबर का तरही मुशायरा सोमवार 27 अकटूबर को आयोजित होने जा रहा है । ये दीपावली स्‍पेशल है अत: जिन लोगों ने जनता वाली ग़ज़ल भेज दी है वे दीवाली पर भी एक मिसरा और एक शेर या एक मुक्‍तक भेज दें । जिन लोगों ने अभी तक ग़ज़ल नहीं भेजी है वे तुरंत अपनी ग़ज़ल भेजें, या जो लोग पूर्व में भेज चुके हैं किन्‍तु कुछ और परिवर्तन करके नई ग़ज़ल भेजना चाहते हैं वे भी अपनी ग़ज़ल भेज दें । मिसरा 19 सितम्‍बर की कक्षा में दिया गया था । माडंसाब ने तय किया है कि हर माह एक ही तरही मुशायरा होगा । एक माह में दो करने में गुणवत्‍ता का अभाव नजर आ रहा था । माडंसाब का आग्रह है कि यद‍ि संभव हो तो अपनी ग़ज़ल के साथ अपना एक सुंदर सा चित्र कवि वाली वेशभूषा में भेज दें दीपावली का मुशायरा माड़साब धूमधाम से आयोजित करना चाहते हैं । और अपना परिचय अवश्‍य भेजें ताकि हर प्रस्‍तुति के साथ कम से कम कवि का परिचय भी दिया जा सके । परिचय में नाम व्‍यवसाय निवास स्‍थान दूरभाष नम्‍बर आदि में से जो जानकारी आप देना चाहते हैं दे दें ।

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

कई लोगों ने जानना चाहा है कि ''अंधेरी रात का सूरज'' पुस्‍तक किस प्रकार प्राप्‍त हो सकती है, ये पोस्‍ट उन सब के लिये है ।

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कई सारे लोगों ने जानना चाहा है कि राकेश खण्‍डेलवाल जी की नई पुस्‍तक अंधेरी रात का सूरज प्राप्‍त करने के लिये क्‍या करना होगा । उसी की जानकारी प्रदान करने के लिये ये  पोस्‍ट लगा रहा हूं । सबसे पहले तो मैं इस पुस्‍तक के बारे में जानकारी देना चाहता हूं कि ये पुस्‍तक श्री राकेश खण्‍डेलवाल जी के गीतों और मुक्‍तकों का संग्रह है । जिसे शिवना प्रकाशन सीहोर द्वारा प्रकाशित किया गया है । इसमें उनके 200 गीत तथा लगभग 150 मुक्‍तक हैं । पुस्‍तक की पृष्‍ठ संख्‍या 312 है जो कि हार्डवाइंडिंग में डबल कवर में है । कवर पृष्‍ठ का डिजाइन देश के मशहूर चित्रकार श्री विजेंद्र विज ने किया है जो कि मेट फिनिंशिंग में है । गहरे हरे रंग के साथ श्री विजेंद्र विज जी ने अद्भुत रंग संयोजन किया है तथा उनकी ही एक पेंटिंग ''द लोनली वायजर'' को उन्‍होंने आवरण पर लगाया है । पुस्‍तक की भूमिका देश के शीर्ष ग़ज़लकार, गीतकार श्री कुंवर बेचैन जी ने लिखी है । श्री बेचैन ने भूमिका को बहुत ही अनूठे ढंग से लिखा है । इसके अलावा श्री समीर लाल जी, श्रीमती मधु माहेश्‍वरी जी, श्री आनंद कृष्‍ण जी और पंकज सुबीर की भी टिप्‍पणियां हैं । स्‍वयं श्री राकेश खण्‍डेलवाल जी की भी अपनी बात है । पुस्‍तक के सर्वाधिकार लेखक के आधीन हैं । इस पुस्‍तक की कम्‍पोजिंग तथा डिजायनिंग श्री सनी गोस्‍वामी जी द्वारा की गई है । पुस्‍तक का प्रथम संस्‍करण 11 अक्‍टूबर 2008 को प्रकाशित होकर आया है ।

पुस्‍तक का मूल्‍य भारत में 350 रुपये तथा भारत के बाहर 25 $ है । इसके अलावा भारत में डाक व्‍यय ( पुस्‍तक कोरियर अथवा स्‍पीड पोस्‍ट से ही भेजी जायेगी) 50 रुपये है । पुस्‍तक प्राप्‍त करने के लिये कृपया 400 रुपये का राष्‍ट्रीकृत बैंक का डीडी अथवा एटपार चैक या मनीआर्डर पंकज सुबीर के नाम पर सीहोर में देय निम्‍न पते पर भेजें पंकज सुबीर, पी.सी.लैब, सम्राट कॉम्‍प्‍लैक्‍स बेसमण्‍ट, बस स्‍टैंड के सामने, सीहोर, मध्‍यप्रदेश, पिन 466001 दूरभाष 07562-405545 मोबाइल 09977855399, साथ मे अपना पूरा पता मोबाइल नम्‍बर आदि भी भेजें जिस पते पर कारियर किया जा सके ।

यदि आपके शहर में बैंक आफ बड़ोदा अथवा बैंक आफ इंडिया की शाखा है तो आप subeerin@gmail.com अथवा subeer@subeer.com पर एक मेल कर दें ताकि जवाब में आपको एकाउंट नम्‍बर भेजा जा सके जिसमें आप सीधे ही पैसा जमा करवा सकते हैं । अपने शहर में इन बैंकों की शाखा की जानकारी के लिये आप यहां http://www.bankofbaroda.com/branchlocator.asp तथा यहां http://www.bankofindia.com/branchnetwork_new.aspx पता कर सकते हैं ।

आपका भुगतान प्राप्‍त होते ही यहां से आपके पते पर पुस्‍तक भेज दी जायेगी ।

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

शिवना प्रकाशन की नई पुस्तक अंधेरी रात का सूरज का हुआ वैश्विक विमोचन - एक रिपोर्ट

सीहोर के शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित  वाशिंगटन के भारतीय मूल के कवि श्री राकेश खण्डेलवाल के काव्य संग्रह अंधेरी रात का सूरज का विमोचन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ तीन स्थानों पर किया गया इंटरनेट पर हिंद युगम द्वारा सीहोर में शिवना प्रकाशन के  कार्यक्रम में तथा अमेरिका के वर्जीनिया में वाशिंगटन हिंदी समिति के आयोजन में । सीहोर में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता स्थानीय कालेज में हिंदी की प्राध्यापक डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे ने की, आयोजन में अखिल भारतीय कवियित्री मोनिका हठीला मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं । विशेष अतिथि के रूप में नई दुनिया के ब्‍यूरो प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार वसंत दासवानी तथा कृषि वैज्ञानिक श्री डॉ आर सी जैन  उपस्थित थे । आयोजन शिवना प्रकाशन के सम्राट काम्प्लैक्स स्थित कार्यालय पर आयोजित किया गया  जहां पर स्थानीय कवियों तथा साहित्यकारों के मध्य अंधेरी रात का सूरज का विमोचन किया गया  । कार्यक्रम का संचालन दैनिक जागरण के ब्‍यूरो प्रमुख युवा पत्रकार प्रदीप चौहान ने किया ।

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सर्वप्रथम अतिथियों ने ज्ञान की देवी मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर तथा पूजन अर्चन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । तत्पश्चात सीहोर के युवा कवि जोरावर सिंह ने मां सरस्वती की वंदना का सस्वर पाठ किया । शिवना प्रकाशन की ओर से श्री कृष्ण हरी पचौरी,  श्री शंकर प्रजापति, श्री अशोक सुन्दरानी, श्री सुभाष चौहन, श्री लक्ष्मीनारायण राय,  आदि ने अतिथियों का स्वागत पुष्प माला से किया । वरिष्ठ शायर डॉ. कैलाश गुरू स्वामी ने स्वागत भाषण देते हुए शिवना की ओर से सभी का स्वागत किया । शिवना की ओर से जानकारी देते हुए प्रकाशक पंकज सुबीर ने अंधेरी रात का सूरज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि शिवना का ये चौथा संग्रह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि ये सात समंदर पार जाने का शिवना का प्रयास है । 

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तत्पश्चात काव्य संग्रह का विमोचन सीहोर के प्रबुध्द जनों की उपस्थिति में किया गया ।  इस अवसर पर कवियित्री मोनिका हठीला ने श्री राकेश खण्डेलवाल के गीतों का सस्वर पाठ किया । अपने संबोधन में श्री वसंत दासवानी ने कहा कि शिवना ने ये जो प्रयास किया है ये गौरवपूर्ण उपलब्धि है सीहोर शहर के लिये । उन्होंने साहित्य और तकनीक का समन्वय करने की आवश्यकता पर जोर दिया ।    श्री आर सी जैन ने कहा कि सीहोर के कवियों के संग्रह सामने लाकर शिवना ने एक अच्छा काम किया है और अब विश्व साहित्य से जुड़ कर शिवना भी एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था बन चुकी है । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं स्थानीय कालेज में हिंदी की विद्वान प्राध्यापक डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे ने अंधेरी रात का सूरज पर बोलते हुए संग्रह के गीतों को भारतीय परम्परा का वाहक निरूपित किया और कहा कि राकेश खण्डेलवाल जी ने आज के समय में हिंदीके गीतों पर जो कार्य किया है वह इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज हिंदी के छंदों की परम्परा के साधक कम नजर आते हैं । उन्होंने कहा कि श्री खण्डेलवाल के गीत वास्तव में अंधेरी रात का सूरज ही हैं क्योंकि वे क्लांत मानव मन को प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करते हैं । शिवना की ओर से राजस्‍थान पत्रिका के ब्‍यूरो प्रमुख पत्रकार श्री शैलेष तिवारी ने मंगल तिलक कर तथा शाल भेंट कर अध्यक्षता कर रहीं डॉ. पुष्पा दुबे तथा मुख्य अतिथि मोनिका हठीला को सम्मानित किया । आभार प्रदर्शन करते हुए वरिष्ठ कवि श्री हरिओम शर्मा दाऊ ने सभी पधारे हुए अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम का गरिमामय संचालन युवा पत्रकार प्रदीप चौहान ने किया ।   इसके अलावा इस विमोचन को इंटरनेट पर हिंदी के प्रमुख जाल समूहों में से एक हिंद युग्म पर भी आयोजित किया गया जहां पर विश्व भर में फैले हिंदी के लाखों पाठकों ने हिंद युग्म की साइट पर जाकर विमोचन में भाग लिया  । कार्यक्रम में बड़ी संख्या में  स्थानीय साहित्यकार पत्रकार और कवि भी उपस्थित रहे ।

शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

आवाज़ पे अंधेरी रात का सुरज का पहला विमोचन हो रहा है आप भी उसमें शामिल होकर शुभकानायें दीजिये राकेश खण्‍डेलवाल जी को ज़रूर ज़रूर पहुंचे आवाज़ पर

हिंदी साहित्‍य जगत के इतिहास में ये अनूठा मौका आया है जब किसी पुस्‍तक का विमोचन एक साथ तीन स्‍थानों पर हो रहा है । उनमें से पहले स्‍थान पर अर्थात जाल पर विमोचन हो चुका है सजीव सारथी जी ने जो काम किया है उसके लिये एक ही बात कह सकता हूं कि मैं  स्‍वयं ही अभीभूत रह गया हूं देखकर । http://podcast.hindyugm.com/2008/10/andheri-raat-ka-sooraj-vimochan-online.html यहां पर आज का पहला विमोचन हो गया है बल्कि यूं कहें कि विमोचन आप सब को वहां जाकर करना है । आज तक मैंने कभी भी अनुरोध नहीं किया कि आप कहीं पर टिप्‍पणी दें किन्‍तु आज कह रहा हूं कि राकेश जी को शुभकामनायें देने और सजीव जी के अद्भुत कार्य को सराहने के लिये एक टिप्‍पणी अवश्‍य करें ताकि आगे के लिये हम सब को हौसला मिले । वहां पर संजय पटेल जी की अनूठी आवाज़ है मोनिका हठीला की आवाज़ है रमेश जी हैं और मेरी भी आवाज़ में एक दो गीत हैं । आइये इस विमोचन में शामिल होकर अपनी भावनायें पहुचायें राकेश जी तक और सहभागी बनें इस अनूठे आयोजन में ।

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

अपने हाथों से विमोचन करें अंधेरी रात का सूरज का आवाज पर जाकर

राकेश खण्‍डेलवाल जी की पुस्‍तक एक मामले में तो इतिहास रचने ही जा रही है कि इसका विमोचन तीन स्‍थानों पर एक साथ होने जा रहा है । वर्जीनिया के राजधानी मंदिर आडिटोरियम में भाई समीर लाल अनूप भार्गव जी और रजनी भार्गव जी की उपस्थिति में इसका विमोचन हो  रहा है । वहीं सीहोर में शिवना प्रकाशन द्वारा भी एक विमोचन का कार्यक्रम रखा गया है जो कि शाम साढ़े छ: पर है । इसके अलावा हिन्‍द युग्‍म द्वारा भी विमोचन का कार्यक्रम रखा गया है आवाज पर http://podcast.hindyugm.com यहां पर ये विमोचन दुनिया भर में फैले लाखों हिन्‍दी प्रेमी अपने हाथों से करेंगें । हिंद युग्‍म पर विमोचन की जवाबदारी श्री सजीव सारथी जी ने उठाई है । वे अपने प्रकार से कुछ अनूठा करके ये विमोचन करना चाह रहे हैं । यहीं पर कल श्री राकेश जी की कविताओं का पाठ अखिल भारतीय कवि सम्‍मेलनों का जाना पहचाना नाम भुज गुजरात की कवियित्री मोनिका हठीला करेंगीं । ये भी अपनी तरह से एक अनूठा प्रयोग करने का प्रयास है । मोनिका हठीला संयोगवश किसी कवि सम्‍मेलन से रायपुर से लौट रहीं थीं और अपने मायके में आईं हुईं हैं सो हमने उनके समय का उपयोग कर लिया है । कल विमोचन समारोह में भी वे रहेंगीं और उनके तथा हिंदी की मनीषी विद्वान डॉ पुष्‍पा दुबे के हाथों से पुस्‍तक का विमोचन होगा । इसके बाद मोनिका हठीला श्री राकेश खण्‍डेलवाल की कविताओं का सस्‍वर पाठ करेंगीं और कविताओं पर विस्‍तार से चर्चा करेंगीं डॉ पुष्‍पा दुबे । सजीव सारथी जी ने हिंद युग्‍म पर विमोचन की जो भूमिका रखी है उसके लिये आपको http://podcast.hindyugm.com यहां पर जाना होगा और अपने ही हाथों से पुस्‍तक का विमोचन करना है । तो इस प्रकार से अमेरिका में वाशिंगटन हिंदी समिति सीहोर में शिवना प्रकाशन और जाल पर हिंद युग्‍म इस प्रकार ये तीन संस्‍थायें मिल कर पूरे कार्यक्रम का अंजाम दे रहीं हैं । राकेश जी के जाल पर कई प्रशंसक हैं अत: कहा तो यही जा सकता है कि सबसे सार्थक प्रयोग सजीव जी का ही रहेगा क्‍योंकि वे लोग जो सीहोर नहीं आ पायेंगें या कि वर्जीनिया में नहीं पहुंच पायेंगें उनके लिये हिंद युग्‍म की पोडकास्‍ट साइट आवाज ही एक मात्र स्‍थान है जहां पर वे आसानी से जाकर  अपने ही हाथों से अंधेरी रात का सूरज का विमोचन कर पायोंगें । कल यूनीवार्ता ने इसको लेकर विशेष समाचार जारी किया था ।

बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

राकेश खण्‍डेलवाल जी के ये गीत आखिरकार अंधेरी रात का सूरज ही तो हैं

 

DSC00251 ''अंधेरी रात का सूरज'' ये नाम सुनने में कुछ अलग तरह की ध्वनि अवश्य देता है किन्तु ये कई कई अर्थों को समेटे हुए है । सूरज का वैसे तो सीधा संबंध दिवस से होता है पर यहां पर यदि रात और वो भी अंधेरी रात के संदर्भ में सूरज का उपयोग हो रहा है तो उसके पीछे भी एक गूढ़ अर्थ है। राकेश जी की कविताएँ हिन्दी गीत के स्वर्णिम काल की कविताएँ हैं, ऐसा लगता है मानो अतीत की धुंध में से कुछ आवाजें आ रहीं हैं, आवाजें जो सुनी हुई भी लगती हैं और परिचित भी लगती हैं, किन्तु अतीत की धुंध होने के कारण हम उनको चीन्ह नहीं पाते हैं । हमें लगता है कि अरे ! ये ध्वनियाँ तो पहले भी कहीं सुन चुके हैं, हम स्मृतियों के गलियारों में बैचेन होकर भटकने लगते हैं कि कहीं से तो कुछ सिरा मिले की ये आवाजें कहाँ से आ रहीं हैं । राकेश जी के गीत हमारी उंगली थाम कर ले जाते हैं हमें एक ऐसे स्वर्णिम संसार में जहाँ बच्चन जी हैं, नीरज जी हैं, सोम ठाकुर हैं, बालकवि बैरागी जी हैं और ऐसे ही कई दिग्गज गीतकार हैं । वे गीतकार जिन्होंने हिंदी कविता को और हिंदी के गीतों को जनमानस के अंदर इस तरह से पैठा दिया कि वे गीत, वे शब्द, वे विचार, वे भाव सब अमर हो गये । हम कसमसाते हैं और पूछते हैं अपने आप से कि क्या ये सब सचमुच ही अतीत हो गया ? क्या गीतों का स्वर्ण काल सचमुच बीत गया ? दोहराते हैं हम इन प्रश्नों को उस शून्य में, उस गहन अंधकार में, जहाँ से पुन: पुन: लौट कर आती है केवल हमारी ही आवाज, हमारा ही प्रश्न  और तब राकेश जी के गीत आते हैं, और कहते हैं हमसे, 'नहीं, गीत तो हिन्दी साहित्य का प्राण है वो कैसे समाप्त हो सकता है, कुछ बादलों के छा जाने का अर्थ ये नहीं होता कि उजाला सदैव के लिये समाप्त हो गया है ।'

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राकेश जी के गीत उस दौर के गीत नहीं है जब हिंदी साहित्य में गीतों के आकाश पर एक नहीं कई कई सूरज जगमगा रहे थे । राकेश जी के गीत उस दौर के गीत हैं जब गीतों के आकाश पर शून्य है, अंधकार है। और उस पर भी सबसे बड़ी बात ये है कि राकेश जी के गीत पूरी आभा लिये हुए हैं, वही आभा जो किसी भी बड़े गीतकार के गीतों में होती है । राकेश जी के गीत उस दौर के गीत हैं जब गीतों को समाप्त हुआ मान लिया जा रहा है। उस देश में जहां गीतों के साथ परम्परा जुड़ी हैं, जहाँ जीवन के हर पड़ाव पर गीत हैं, जन्मते समय, विवाह के समय और अंतिम विदा के समय भी । हम गीतों को अपने आप से अलग करने का सोच भी नहीं सकते, पर ऐसा हो तो रहा है । धीरे धीरे एक अंधकार हमारे साहित्य की सभी परम्पराओं को लील रहा है । वे परम्पराएँ जो दुनिया भर में श्रेष्ठ मानी गईं । हमारे छंद शास्त्र से अपना व्याकरण बनाने वाले आज हमें कविता सिखा रहे हैं, और हम सीखने के लिये कतार में लगे भी हुए हैं, अपने गौरवशाली अतीत को विस्मृत करते हुए । तब उस समय में राकेश जी के गीत आते हैं और उन गीतों को सुन कर हमें ज्ञात होता है कि ''तमसो मा ज्‍योतिर्गमय'' का अर्थ क्या होता है । ये गीत हिंदी गीतों के स्वर्णिम दिनों के गीत नहीं हैं, ये तो अंधकार में आए हैं, उस अंधकार में जब कहीं कोई सूरज नहीं, कोई चंद्रमा नहीं, कोई तारा भी नहीं । उस दौर में आए हुए ये गीत आखिरकार अंधेरी रात का सूरज ही तो हैं । और इसीलिये इस संग्रह का नाम अंधेरी रात का सूरज नहीं होता तो क्या होता । ये गीत लिखने के लिये नहीं लिखे गये हैं, ये तो आत्मा के गीत हैं, जिनको सुनने के लिये कान नहीं आत्मा ही चाहिये।

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राकेश जी के गीतों के बारे में लिखने के लिये मैं विनम्रता के साथ स्वीकार करता हूं कि मेरे शब्दकोश की निर्धनता साफ दिखाई देने लगती है । फिर भी ये एक प्रकाशक की हैसियत से मैं ये जरूर कहना चाहूंगा कि शिवना प्रकाशन की परम्परा रही है साहित्य की उन विधाओं का पोषण करना जिन पर संकट है । राकेश जी का साहित्य भी वही तो कर रहा है, साहित्य की उस विधा को बचाने की कोशिश जो लुप्त होने की कगार पर है । इस मायने में देखा जाये तो राकेश जी और शिवना का ये संगम वास्तव में गंगा और यमुना का ही संगम है । राकेश जी के काव्य संग्रह का प्रकाशन शिवना प्रकाशन के लिये भी एक महत्वपूर्ण पड़ाव है । ये शिवना के सात समुंदर पार जाने का प्रयास है आशा है राकेश जी का ये संग्रह उनके गीतों की ही तरह पाठकों के मानस पटल पर अंकित हो जायेगा । राकेश जी को शुभकामनाएँ ।

सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

आइये सप्‍ताह भर श्री राकेश खण्‍डेलवाल जी की चर्चा करके 11 अक्‍टूबर को आने वाले ''अंधेरी रात का सूरज'' का स्‍वागत करें ।

राकेश खण्‍डेलवाल जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है । हिंदी गीतों की परंपरा को जीवित रखने का काम आज उनकी लेखनी पूरे मनोयोग से कर रही है । मेरे जैसे गीतों के दीवानों के लिये तो उनके गीत उपहार की तरह होते हैं । कल बहुत दिनों बाद अभिनव का फोन आया और राकेश जी के बारे में काफी चर्चा हुई  । चूंकि 11 अक्‍टूबर को राकेश जी के काव्‍य संग्रह ''अंधेरी रात का सूरज'' 

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का विमोचन होना है जो कि शिवना प्रकाशन सीहोर द्वारा प्रकाशित किया गया है । जैसा कि तय है कि राजधानी मंदिर वर्जीनिया में मुख्‍य कार्यक्रम होगा और सीहोर में भी एक कार्यक्रम उसी दिन होगा । राकेश जी के बारे में कुछ भी कहना हो तो शब्‍द कम पड़ने लगते हैं । मेरी ऐसी इच्‍छा है कि चूंकि इसी सप्‍ताह के आखीर में शनिवार को राकेश जी के काव्‍य संग्रह का विमोचन होना है अत: उनसे जुडे हम सब लोग अपने अपने ब्‍लाग पर राकेश जी के व्‍यक्तिव, कृतित्‍व के बारे में आलेख लगायें और अभिनव ने इसकी शुरूआत भी कर दी है http://ninaaad.blogspot.com/2008/10/blog-post_06.html आज यहां पर उनका आलेख राकेश जी पर लगा है । ये प्रारंभ है और मेरी इच्‍छा है कि हम सब अपने अपने ब्‍लाग पर राकेश जी चर्चा करें इसी प्रकार के लेख लगायें जिसमें संस्‍मरण हो सकते हैं उनकी कविताओं की चर्चा हो सकती है । और जो भी जैसा भी आप राकेश जी के बारे में लिख सकते हैं । वे लोग जो राकेश जी से परिचित नहीं हैं ( कौन होगा ) वे लोग राकेश जी के ब्‍लाग http://geetkalash.blogspot.com पर जाकर उनके काव्‍य से रूबरू हो सकते हैं । राकेश जी के बारे में अपनी पोस्‍ट एक दो दिन में मैं लगाऊंगा किन्‍तु एक बात तो आज कहना ही चाहता हूं कि अंधेरी रात का सूरज ने मुझे दो स्‍तरों पर परेशान किया है पहला तो ये कि मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि कौन सा गीत लूं और कौन सा छोड़ दूं । दूसरा ये कि मैं स्‍वयं भी कभी कभी ग़ज़ल छोड़कर गीतों में हाथ साफ कर लिया करता हूं । किन्‍तु जब संपादन के दौरान राकेश जी के गीत पढ़े तो एक ही बात लगी कि अब मैं क्‍या लिखूं सब कुछ तो राकेश जी ने लिख ही दिया है । राकेश जी के काव्‍य संग्रह का विमोचन 11 अक्‍टूबर को होने जो रहा है किसी भी लेखक के लिये उसकी पुस्‍तक के विमोचन का अवसर एक भावुक पल होता है आइये हम सब मिल कर इस 11 अक्‍टूबर को राकेश जी के लिये यादगार बना दें ।

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

जब जब जोड़ लगाता हूं, अक्‍सर खुद घट जाता हूं

हिंदी की ताकत अब दिखाई तो देने लगी है । इस बार की कादम्‍ि‍बनी में श्री विष्‍णु नागर जी का आलेख कुछ ऐसी ही बात कर रहा है कि अब हिंदी कारपोरेट जगत की मजबूरी बनती जा रही है । और सबसे अच्‍छी बात तो ये है कि हिंदी में बोलने वालों की तादाद भी बढ़ रही है । खैर हिंदी तो जन जन की भाषा है । मगर हिंदी में ग़ज़ल कहने वाले एक लम्‍बे समय तक उपेक्षित ही रहे तब तक जब तक कि दुष्‍यंत परिदृष्‍य पर नहीं आ गये । हिंदी में गज़ल कहना ऐसा माना जाता था मानो कोई गुनाह किया जा रहा हो । आज भी हम में से कई सारे लोग फारसी और अरबी के टोले टोले शब्‍द अपनी ग़ज़लों में रखकर अपने का आलिम फाजिल साबित करने का प्रयास करते हैं । अभी कहीं पढ़ रहा था कि क्लिष्‍टता के चक्‍कर में ही संस्‍कृत खत्‍म हुई और हिंदी आ गई और अब क्लिष्‍टता के चक्‍कर में ही उर्दू खत्‍म हो रही है  । क्‍या ज़रूरत है फारसी के मोटे मोटे शब्‍द रखने की जिनके मायने किसी को पता ही नहीं हो । मेरा विरोध कई बार केवल इसी कारण होता है कि मैं ग़ज़ल को हिंदी में लिखे जाने की हिमायात करता हूं । मेरा मानना है कि जो ज़बान जनता बोले और समझे कविता उसी में होनी चाहिये । वाल्मिकी ने रामायण लिखी और तुलसी ने रामचरित मानस, मगर अपेक्षाकृत नई होने के बाद भी तुलसी की मानस ही जन जन तक पहुंची क्‍योंकि वो जनभाषा में लिखी गई है । दुष्‍यंत की जिद ये भी थी कि वो शहर  का वज्‍न 12 ही रखते थे उनका कहना था कि हिंदी में  शहर  को श हर  पढ़ा जाता है उर्दू में शह् र  पढ़ा जाता है इसलिये दोनों जगहों पर वजन अलग अलग है । दुष्‍यंत ने खुद लिखा है कि मैं चाहूं तो इस विवाद का हल  शहर  के स्‍थान पर नगर  का उपयोग करके कर सकता हूं मगर मैं नहीं करना चाहता । आज के शीर्षक में विज्ञान व्रत का मतला लगाया है विज्ञान व्रत भी दुष्‍यंत कर परंपरा के ग़ज़लकार हैं । कुल मिलाकर बात ये है कि अब जनता कि जो भाषा है उसीमें ही बात करनी होगी अगर नहीं करेंगें तो जनता आपकी कविताओं को गुनगुनायेगी ही नहीं और जो जनता ने नहीं गुनगुनाया तो आपकी कविता कहीं नहीं पहुंची ।  बशीर बद्र जैसे शायर खुद ही महफिलों में कहते हैं कि आने वाले समय के मीर और गालिब अब हिंदी से ही आयेंगें । हिंदी में कहना मतलब जनभाषा में कहना । आज के लोग माज़ी  जैसे अपेक्षाकृत सरल शब्‍द का अर्थ भी नहीं जानते तो आपको हिंदी का उपयोग तो करना ही होगा । मुशायरों तक में ये हालत है कि फारसी का कोई क्लिष्‍ट शब्‍द लिया तो उसका अर्थ पहले बताना होता है कि  इसका ये अर्थ ये होता है । पिछले दिनों को एक किस्‍सा है मैंने बताया था कि जनाब बेकल उत्‍साही जी के मुशायरे का संचालन मैंने किया था । बेकल उत्‍साही जी के बारे में तो आप जानते ही होंगे फिर भी ये जान लें कि ये भी हिंदी के हिमायती हैं । उस मुशायरे में ये हुआ के संचालन तो एक उर्दूदां को ही करना था मगर जो श्रोता थे वे हिंदी वाले अधिक थे सो एट द इलेवंथ आवर मुझसे कहा गया कि आपको संचालन करना है । अपने राम तो वैसे भी संचालन के दिवाने हैं । सो कर डाला और वो भी शुद्ध हिंदी में । लोगों ने पसंद भी किया यद्यपि शायरों में कुछ नो भौं सिकोड़ते रहे पर क्‍या करें जनता तो जनार्दन होती है । हिंदी भी वो नहीं जो संस्‍कृत निष्‍ठ हो और उर्दू भी वो नहीं हो जो अरबी फारसी निष्‍ठ हो । हिन्‍ुदस्‍तानी भाषा ये है कि आम आदमी संस्‍कृत के कुन्‍तलों, बोली के बालों और उर्दू की जुल्‍फों में सबसे आसानी से जुल्‍फों को समझता है तो आप जुल्‍फें ही लिखें । तो कुल मिलाकर बात ये कि हिन्‍दुस्‍तानी भाषा में ग़ज़लें कहें । हिन्‍दुस्‍तानी भाषा जिसमें हिंदी हो उर्दू हो और आवश्‍यकता पड़ने पर अरबी, फारसी और अंग्रेजी के आसान और आम फहम शब्‍दों को लिया जाये । आम अर्थात जिनका अर्थ आपको शेर पढ़ने के पहले बताना न पड़े के इसका अर्थ ये होता है ।  कविता अपने चरम पर श्रोता के अंदर रस प्रवाहन करने लगती है और जैसे ही कोई टोला शब्‍द आता है के रस भंग हो जाता है और उसके बाद वो श्रोता आपकी कविता से फिर नहीं जुड़ पाता । टोला शब्‍द अर्थात अरबी फारसी या संस्‍कृत का शब्‍द ।

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एक शुभ सूचना ये है कि वरिष्‍ठ कवि श्री राकेश खण्‍डेलवाल जी का काव्‍य संग्रह '' अंधेरी रात का सूरज''  शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित होकर आ गया है । 11 अक्‍टूबर को एक साथ उसका अमेरिका और भारत में सीहोर में विमोचन होने जा रहा है । संग्रह के बारे में विस्‍तृत जानकारी अगली पोस्‍ट में दी जायेगी । विमोचन के अवसर पर सभी आमंत्रित हैं शिवना प्रकाशन  द्वारा । अमेरिका में वाशिंगटन हिंदी समिति और सीहोर में शिवना द्वारा ये आयोजन किया जा रहा है  । राकेश जी के ये गीत और मुक्‍तक आने वाले समय की थाती हैं । अगली पोस्‍ट में विस्‍तार से चर्चा की जायेगी अंधेरी रात का सूरज की ।

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