ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात, कितनी सटीक बात है रात जब उदास हो तो फिर तो केवल एक ग़ज़ल ही होती है जो उस उदासी को दूर कर सकती है । मेरे गीतकार मित्र स्व. मोहन राय जिन्होंने पिछले साल फरवरी में मृत्यु का वरण कर लिया था उनकी अंतिम दौर की एक कविता थी कोई गीत नहीं है उपजता कुछ छूट रहा है, । हम सब भी शायद हिंदी साहित्य को बचाने के लिये अंतिम प्रयास कर रहे हैं परिणाम क्या होता है कोई नहीं जानता है ।
चलिये नए साल में हम बात करते हैं बहरों की । दरअसल जिस तरह से हिंदी में छंद होते हैं उसी तरह से ग़ज़ल में बहरें होती हैं । पर यहां पर अंतर ये होता है कि यहां पर तरतीब नहीं बिगड़नी चाहिये । विन्यास जो पहले तय हो गया वो ही पूरी की पूरी ग़ज़ल में चलना चाहिये । हमने देखा कि मिसरे में कई सारे रुक्न होते हैं और रुक्नों का एक क्रम होता है । जैसे तुम्हारी नज़रो में हमने देखा अजब सी चाहत झलक रही है ये एक गाना है पर ये गाना एक प्रसिद्ध बहर पर है जो कि एक सोलह रुक्नी बहर है बहरे मुतकारिब मकबूज असलम और इसका वज़्न है 121-22-121-22-121-22-121-22 या कि फऊलु-फालुन-फऊलु-फालुन-फऊलु-फालुन-फऊलु-फालुन
अब जहां पर भी ये वज़्न आएगा तो हम उसका नाम कहेंगें कि ये बहरे मुतकारिब मकबूज असलम पर है । माड़साब की एक ग़ज़ल है ये बिखरी ज़ुल्फ़ें बता रहीं हैं के क़त्ल कोई तो वो करेगा । ये भी उस ही बहर पर है । ये सारी की सारी बहरे चूंकि फारसी से ली गईं हैं अत: इनके आविष्कारकर्ता के नाम पर ही इनके नाम चलते हैं । ग़ज़ल को कुछ मायनों में मेहबूबा से बातचीत भी कहा जाता है इसलिये बात करने के तरीकों के आधार पर ये बहर बनीं हैं । तहत में जब ग़ज़ल पढ़ी जाती है तो वो ये ही होता हैं कि आप गाए बिना बातचीत की तरह से पढ़ते हैं । जैसे राहत इंदौरी साहब तहत का ही उपयोग करते हैं । तरन्नुम का मतलब होता है गाकर पढ़ना । प्रभाव की बात करें तो तहत का प्रभाव ज्यादा होता है बशर्ते आपकी आवाज़ में बुलंदी हो । उसी तहत को अगर देखें तो तहत में ही पता चलता है कि ग़ज़ल बहर में है या बेबहर हो गई है । तरन्ऩुम में तो क्या होता है कि आप एक दो मात्राएं खींच कर पढ़ देंगें तो पता ही नहीं चलेगा ।
तो बातवीत करते समय काव्यात्मक रूप से वाक्यों के कितने विन्यास हो सकते हैं उसको बहर कहते हैं । ग़ज़ल बातचीत का काव्यात्मक तरीका ही है । जैसे किसी की आंखें लाल होती देख कर हम सामान्य रूप से कहेंगें आंखों से ऐसा लग रहा है आप रात भर सोए नहीं है मगर वहीं बात को बहर में कहना हो तो आंखें बता रहीं हैं जागे हो रात भर ये मिसरा हो गया । मिसरे बातों में ही पैदा होते हैं अगर आपने अमिताभ बचचन की फिल्म शराबी देखी हो तो उसमें ये बात अच्दी तरह से होती है अमिताभ और मुकरी जी बातों में मिसरे निकाल लेते हैं और फिर उस पर शेर कहते हैं । तो हमारे साथ भी वही है बात करते करते अचानक ही कोई वाक्य हमारे मुंह से से ऐसा निकल जाता है जो हमें ऐसा लगता है कि अरे ये तो लय में है और बस वही हमारा पहला मिसरा बन जाता है वहीं से हम ग़ज़ल लिख देते हैं ।
बहरें भी बड़े वैज्ञानिक तरीके से बनाईं गईं हैं और इनको बनाते समय बातचीत के दौरान प्रयुक्त होने वाले वाक्यों के विन्यास को ध्यान में रखा गया है और उस ही आधार पर ये बहरें बनाईं गईं हैं । जैसे माड़साब का एक शेर जो खूब पसंद किया जात है उसको बातचीत में देखें तो युं है कि जो ज़रूरी है वो तो हो नहीं रहा पर जो नहीं होना है वो हो रहा है ये तो हो गया वाक्य अब इसको ही देखें शेर में जो ज़रूरी था नहीं अब तक हुआ वो , और जो होना नहीं था हो रहा है ।
आज के लिये इतना ही अभी कुछ दिनों तक हम विन्यास की बात करेंगें फिर मूल पर आएंगें । सभी को नए साल की शुभ्कामनाएं और आने वाला साल सभी के लिये शुभ हो ।
सूचना : आने वाले रविवार को एक आन लाइन मुशायरा करने की प्लानिंग है, जी टाक के जरिये से । रविवार को शाम 6 बजे ( भारतीय समय के अनुसार ) आयोजन होना है जो लोग जी टाक के द्वारा शामिल हो सकते हैं वे एक स्वीकृति भेजें ताकि हम प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं । अभी केवल प्लानिंग ही चल रही है मूर्त रूप दिया जाना बाकी है ।
guruvar mera naam likh le.n
जवाब देंहटाएंयस सर,
जवाब देंहटाएंविन्यास के बारे में पहली क्लास अच्छी लगी.
बोलचाल में से मिसरे निकलने में हमारे उदय प्रताप सिंह जी भी बहुत आगे हैं. उनकी कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं,
पुरानी कश्ती को पार लेकर फकत हमारा हुनर गया है,
नए खिवैये कहीं न समझें नदी का पानी उतर गया है,
तुम होशमंदी के झूठे वादे किसी मुनासिब जगह पे करते,
ये मैकदा है यहाँ से कोई कहीं गया बेखबर गया है,
अभिनव जी को सुनकर मुझे भी एक शेर याद आ गया जो आज ही पढा है
जवाब देंहटाएंदुआ के रोशन चिराग अपनी हथेलियों पर सजाये जाये हमने
खुदा से लेकिन सवाल करना तुझको आया न मुझको आया
सर जी
जवाब देंहटाएंमेरी भी हाजिरी लगा लीजिये
जब शेरो की बात चली है तो मैं भी अपने एक-दो शेर पेश करता हूँ
तुम्हारी खामोशी पर बडा परेशान है ये दिल
इसको हाँ समझे तो मुश्किल , ना समझे तो मुश्किल
किसी भी झील में कहीं पर ना होता जो कमल कोई
कमल कहता निगाहों को तेरी दुनिया में हर कोई
सर जी ये दोनों शेर सुनने में तो ठीक लगते हैं, लेकिन क्या यह बहर के हिसाब से ठीक है ?
आभार
अजय
सचमुच बहुत उदास है रात...
जवाब देंहटाएंहम तो चाह कर भी कुछ लिख नही पाते
रहते है खड़े राह में मगर चल नही पाते
हाज़िर जनाब ...
जवाब देंहटाएंमेरे पास 'जी टौक' है मैं भी शामिल होना चाहूँगा।
रिपुदमन पचौरी