मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

देर मेरी ही तरफ़ से हुई है दीपावली के मुशायरे हेतु, क्षमा के साथ दीपावली के तरही मुशायरे का तरही मिसरा प्रस्तुत है

दोस्तो, यह बात सही है कि ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसा समय आता है, जब दिन भर के चौबीस घंटे भी कम लगने लगते हैं। ऐसा लगता है कि बहुत से काम तो बाक़ी पड़े हैं अधूरे अभी करने को। और ऐसे में होता यह है कि सूरज निकलने और ढलने का समय कब गुज़र जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार तो यह व्यस्तता थका देने वाली हो जाती है। सच है कि व्यस्तता में ही जीवन का सारा आनंद छिपा हुआ है मगर इस व्यस्तता के बीच ‘फ़ुरसत के रात-दिन’ तलाशने को मन भटकने लगता है। ऐसा लगता है कि एक बार फिर से ठण्ड की गुनगुनी दोपहर में कुछ न किया जाए, बस आँगन में डली हुई खाट पर किसी निकम्मे की तरह पूरा दिन काटा जाए। हर स्थिति का अपना आनंद होता है, व्यस्तता का अपना आनंद होता है, तो फ़ुरसत का अपना ।

इस बार दीपावली की तरही के लिए मिसरा देने का काम करने की बात पिछले दस दिन से दिमाग़ में आ रही है; लेकिन पहले दोनो पत्रिकाओं की व्यस्तता बनी हुई थी। शिवना साहित्यिकी और विभोम स्वर पर काम चल रहा था। वह पूरा हुआ, तो ऑफ़िस में दीपावली की वार्षिक सफाई-पुताई प्रारंभ हो गई । एक पूरा सप्ताह उसमें लग गया। अब उससे ज़रा फ़ुरसत मिली, तो याद आया कि अरे ! अभी तक तो मिसरा ही नहीं दिया है। अब तो दीपावली में बस कुछ ही दिन रह गए हैं। आज शरद पूर्णिमा है, तो उस हिसाब से तो बस पन्द्रह ही दिन बचते हैं अब दीपावली में। तो आज सोचा गया कि दीपावली का तरही मिसरा देने का काम आज ही किया जाएगा।

चूँकि समय कम है इसलिए सोचा गया कि आसान बहर पर आसान मिसरा दिया जाए। कुछ ऐसा जिसको करने में बहुत मुश्किल नहीं हो। केवल इसलिए क्योंकि समय कम है और यदि कठिन मिसरा हो गया, तो इस कम समय में ग़ज़ल नहीं कह पाने का एक रेडीमेड कारण कुछ लोगों (नीरज जी की बात नहीं हो रही है) के पास आ जाएगा। तो इस बार सोचा कि सबसे आसान बहर हज़ज की उप बहर का ही चुनाव किया जाए। उसमें भी कोई ऐसी बहर जो आसान भी हो और उस पर काम भी ख़ूब किया गया हो। तो याद आई यह बहर मुफाईलुन-मुफाईलुन-फऊलुन मतलब 1222-1222-122 बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़ुल ​आख़िर। बहर की मात्राओं के विन्यास से कोई गीत या ग़ज़ल याद आई ? नहीं आ रही, चलिए ‘जगजीत सिंह’ की गाई ‘मेराज फ़ैज़ाबादी’ की यह बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल सुन लीजिए –तेरे बारे में जब सोचा नहीं था, मैं तनहा था मगर इतना नहीं था।  इसके सारे शेर मुझे पसंद हैं विशेषकर ये –सुना है बंद कर लीं उसने आँखें, कई रातों से वो सोया नहीं था। और एक फ़िल्मी गीत भी याद आ रहा है जे पी दत्ता की ‘बॉर्डर’ का –हमें तुमसे मुहब्बत हो गई है, ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई है।

तो इस बहर पर जो मिसरा दीपावली के तरही मुशायरे के लिए सोचा गया है वह ये है

ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

ये दीपक रा 1222,  त भर यूँ ही 1222 जलेंगे 122

य दी पक रा त भर यूँ ही ज लें गे
1222 1222 122
मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन

यहाँ पर “ये” को गिरा कर बस “य” कर दिया गया है।

यह बिना रदीफ़ का मिसरा है जिसमें ‘जलेंगे’ क़ाफ़िया है, और क़ाफ़िया की ध्वनि है “एँगे” मतलब करेंगे, सुनेंगे, गिरेंगे, चलेंगे, हटेंगे, लेंगे, देंगे, आदि आदि। हालाँकि इसमें छोटी ईता का मामला है, मगर उसे मतले में बुद्धि का प्रयोग कर निपटाया जा सकता है। यदि आपको लगता है कि सरल काम है, तो आप उसे अपने लिए कठिन भी कर सकते हैं “एँगे” के स्थान पर “लेंगे” की ध्वनि को मतले में बाँध कर। मतलब फिर क़ाफ़िये सीमित हो जाएँगे, फिर आपको चलेंगे, ढलेंगे, खलेंगे, गलेंगे, पलेंगे, फलेंगे, मलेंगे, तलेंगे, दलेंगे, मलेंगे, छलेंगे, टलेंगे, डलेंगे जैसे क़ाफ़िये ही लेने होंगे, हाँ उस स्थिति में ईता का दोष भी नहीं बनेगा। पर यह मामला कुछ कठिन हो जाएगा। नए लोग इस बात को इस प्रकार समझ लें कि यदि आपने मकते में दोनो मिसरों में “लेंगे” की ध्वनि को क़ाफ़िया बनाया है, तो आगे पूरी ग़ज़ल में आपको यही ध्वनि रखना है; मगर यदि आपने ऐसा नहीं किया है, तो आप स्वतंत्र हैं कुछ भी क़ाफ़िया लेने हेतु।

दोस्तो देर तो हो गई है और यह मेरी तरफ़ से ही हुई है, लेकिन मुझे पता है कि आप सब मिलकर मेरी इज़्ज़त रख लेते हैं और कहने का मान रख लेते हैं। तो जल्द से जल्द अपनी ग़ज़ल कहिए और भेज दीजिए जिससे हम हर बार की तरह इस बार भी धूमधाम से दीपावली का यह पर्व मना सकें। चलते चलते यह सुंदर ग़ज़ल सुनना तो बनता है।

बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

शिवना साहित्यिकी का वर्ष : 3, अंक : 11 त्रैमासिक : अक्टूबर-दिसम्बर 2018

मित्रों, संरक्षक एवं सलाहकार संपादक, सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra , प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर Pankaj Subeer , कार्यकारी संपादक, शहरयार Shaharyar Amjed Khan , सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का वर्ष : 3, अंक : 11 त्रैमासिक : अक्टूबर-दिसम्बर 2018 इस अंक में कुछ यूँ... आवरण कविता / परवीन शाकिर, संपादकीय / शहरयार, व्यंग्य चित्र / काजल कुमार Kajal Kumar , विशेष पुस्तक- मुक्तिबोध का मुक्तिकामी स्वप्नद्रष्टा, रमेश उपाध्याय Ramesh Upadhyaya , समीक्षक : डॉ. राकेश कुमार Rakesh Kumar । पीढ़ियाँ आमने-सामने- इस हमाम में / सूर्यबाला @soorybala , समीक्षक : राहुल देव Rahul Dev। विमर्श- पेड़ ख़ाली नहीं है / नरेन्द्र नागदेव Narendra Nagdev , विमर्श : गोविन्द सेन Govind Sen । शोध-आलेख- नारी अस्मिता का प्रश्न / त्रिशिला तोंडारे @trishila tondare । डायरी- नग्गर - रोरिख़ और प्रणव का नगर, पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi । फ़िल्म समीक्षा के बहाने- मुल्क, संजू / वीरेन्द्र जैन Virendra Jain । पुस्तक चर्चा, हत्यारी सदी में ... / गौतम राजऋषि / मुकेश निर्विकार मुकेश निर्विकार , सतरंगी मन @satrangi man / अरुण लाल Arun Lal / शिल्पा शर्मा @shilpa sharma , वह मुक़ाम कुछ और / अशोक ‘अंजुम’ Ashok Anjum / उदय सिंह ‘अनु Kunwar Uday Singh Anuj ’, शतदल / सुरेश सौरभ @suresh saurabh / डाक्टर मृदुला शुक्ला @mridula shukla । समीक्षा अस्सी घाट का बाँसुरी वाला / डॉ. सीमा शर्मा / तेजेन्द्र सिंह लूथरा @tejendra singh luthra , तुम्हारे जाने के बाद / प्रकाश कान्त Prakash Kant / कृष्णकान्त निलोसे @krishnkant nilose , मदारीपुर जंक्शन / ओम निश्चल Om Nishchal / बालेन्दु द्विवेदी Balendu Dwivedi , जो घर फूँके आपना / मलय जैन Maloy Jain / अरुणेंद्र नाथ वर्मा Arunendra Verma , हैश, टैग और मैं / प्रभाशंकर उपाध्याय @prabhashankar upadhyay / अरुण अर्णव खरे Arun Arnaw Khare , यायावरी...यादों की / @समीर लाल ‘समीर’ Udan Tashtari / नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , झीरम का अधूरा सच / अनिल द्विवेदी @anil dwivedi / कुणाल शुक्ला Kunal Shukla और प्रीति उपाध्याय @priti upadhyay , विज्ञप्ति भर बारिश / सवाई सिंह शेखावत Sawai Singh Shekhawat / ओम नागर Om Nagar , चीड़ के वनों में लगी आग / आशा खत्री ‘लता’ / आशा शैली Asha Shailly , सच, समय और साक्ष्य, थोड़ी यादें, थोड़ी बातें, थोड़ा डर’ / डॉ. रामप्रकाश वर्मा / शैलेन्द्र शरण Shailendra Sharan , कर्फ़्यू लगा है / अशोक गुजराती Ashok Gujarati / प्रकाश पुरोहित @prakash purohit , कहत कबीर / सत्यानंद ‘सत्य’ / डॉ. सुरेश पटेल Suresh Patel , जोकर ज़िन्दाबाद / अरविन्द कुमार खेड़े @arvind kumar khede / शशिकांत सिंह शशि ‘शशि’ @shashikant shashi , मूल्यहीनता का संत्रास / सतीश राठी Satish Rathi / डॉ. लता अग्रवाल DrLata Agrawalgrwal । आवरण चित्र राजेंद्र शर्मा बब्बल गुरू Babbal Guru , डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी Sunny Goswami । आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्करण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

"विभोम-स्वर" का वर्ष : 3, अंक : 11 त्रैमासिक : अक्टूबर-दिसम्बर 2018

मित्रो, संरक्षक तथा प्रमुख संपादक सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra एवं संपादक पंकज सुबीर Pankaj Subeer के संपादन में वैश्विक हिन्दी चिंतन की त्रैमासिक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका "विभोम-स्वर" का वर्ष : 3, अंक : 11 त्रैमासिक : अक्टूबर-दिसम्बर 2018 संपादकीय, मित्रनामा, साक्षात्कार, रेखा राजवंशी Rekha Rajvanshi के साथ सुधा ओम ढींगरा की बातचीत, कथा कहानी- नाच-गान- उर्मिला शिरीष Urmila Shirish , बर्फ के आँसू- डॉ.पुष्पा सक्सेना Pushpa Saxena , गहरे तक गड़ा कुछ- डॉ. रमाकांत शर्मा Ramakant Sharma , तुरपाई- वीणा विज ‘उदित’ Veena Vij , आहटें- सुदर्शन प्रियदर्शिनी @sudershan priyadarshini , अब मैं सो जाऊँ...- डॉ. गरिमा संजय दुबे DrGarima Sanjay Dubey , बस एक अजूबा- नीलम कुलश्रेष्ठ Neelam Kulshreshtha , मजनू का टीला- नीरज नीर Neeraj Neer । लघुकथाएँ ममता- डॉ. आर बी भण्डारकर Dr-rb Bhandarkar , अनन्य भक्त, गोरैया प्रेम, -सुभाष चंद्र लखेड़ा Subhash Chandra Lakhera , पश्चाताप, मुर्दों के सम्प्रदाय- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी Chandresh Kumar Chhatlani , करेले की बेल- किशोर दिवसे Kishore Diwase , रक्षा-बंधन- विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’ , और वह लौट गया- मुरलीधर वैश्णव Murlidhar Vaishnav । भाषांतर संतरा- पोलिश कहानी - वलेरियन डोमेंस्की, अनुवादक- मलय जैन Maloy Jain , जे. तेकुरा मेसन- अनुवादक- डॉ. अमित सारवाल Amit Sarwal । व्यंग्य भाया बजाते रहो- स्वाति श्वेता Swati Shweta । दृष्टिकोण- चिन्तन के पल- शशि पाधा Shashi Padha। व्यक्ति विशेष मुंशी हीरालाल जी जालोरी- मंजु ‘महिमा’ Manju Mahima । शहरों की रूह चिनार ने कहा था- मुरारी गुप्ता Murari Gupta। ग़ज़लें अनिरुद्ध सिन्हा Anirudh Sinha , शिज्जु शकूर Shijju Shakoor , नुसरत मेहदी Nusrat Mehdi । दोहे डॉ. गोपाल राजगोपाल Gopal B Rajgopal । कविताएँ जालाराम चौधरी Jala Ram Choudhary , गीता घिलोरिया Gita Ghiloria , रोहित ठाकुर Rohit Thakur , पंखुरी सिन्हा Pankhuri Sinha , प्रीती पांडे @preeti pande , केशव शरण Keshav Sharan । नवगीत शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ Shivanand Singh Sahyogi , गरिमा सक्सेना Garima Saxena , सोनरूपा विशाल Sonroopa Vishal । समाचार सार बिलासपुर में राष्ट्रीय व्यंग्य महोत्सव प्रेम जनमेजय , ‘चारों ओर कुहासा है’, का लोकार्पण Raghuvir Sharma , ‘नए समय का कोरस’ पर चर्चा Rajni Gupt , मदारीपुर जंक्शन पर चर्चा आयोजित Balendu Dwivedi , व्यंग्य की कलम से आयोजन Farooq Afridy Jaipur , मुंबई में साहित्य समारोह, अनिल शर्मा की पुस्तक का लोकार्पण, चलो, रेत निचोड़ी जाए, आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा शताब्दी समारोह Jawahar Karnavat , ‘सृजन संवाद’ की हीरक जयंति, ‘नव अर्श के पांखी’ का विमोचन, हिंदी कार्यशाला, ‘अभिनव प्रयास’ काव्य समारोह Ashok Anjum , अर्चना नायडू सम्मानित Archana Nayudu , अशोक मिज़ाज की चुनिंदा ग़ज़लें Ashok Mizaj Badr , सुँदर काण्ड : भावनुवाद Lavanya Shah , ‘ओम फट फटाक’ का लोकार्पण , पूरन सिंह को दलित अस्मिता सम्मान Puran Singh , डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी को लमही सम्मान Gyan Chaturvedi Vijai Rai , शांतिलाल जैन को सम्मान Shantilal Jain । आख़िरी पन्ना
आवरण चित्र राजेंद्र शर्मा Babbal Guru डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी Sunny Goswami Shaharyar Amjed Khan , आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्क़रण भी समय पर आपके हाथों में होगा।

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