मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

विश्‍व पुस्‍तक मेले से वापसी और अब होली के तरही मुशायरे की तैयारी।

मित्रो कई बर ऐसा कुछ हो जातो है कि हम अभिभूत ही रह जाते हैं। इस बार विश्‍व पुस्‍तक मेले में यही हुआ। शिवना प्रकाशन के स्‍टॉल को जिस तरह से सबका प्‍यार और दुलार मिला उसने मन को भिगो दिया। ऐसा लगा कि मानो एक क़र्ज चढ़ गया है जिसे अब उतारना मुश्किल होगा। हां इस बार अपनी ही एक पुरानी बात याद आ गई जो कि किसी कहानी में उपयोग की थी। बात ये कि हर रिश्‍ते की एक एक्‍स्‍पायरी डेट होती है। और ये भी कि हमें अपने रिश्‍तों के एकाउंट को भी लगातातर अपडेट करते रहना चाहिए कुछ एक्‍स्‍पायर हो चुके रिश्‍तों को हटा कर कुछ नए रिश्‍तों का स्‍वागत करना चाहिए। विश्‍व पुस्‍तक मेले ने भी ऐसा ही करने का अवसर दिया। कुछ पुराने हाथ छूटे तो कुछ बहुत से नए हाथ मिले। कुछ पुराने नाराज लोग फिर मिले और कई गिले शिकवे दूर हुए। सबसे पहले बात दो लोगों की, जिनके बिना मैं समझ ही नहीं पा रहा हूं कि हम वहां क्‍या करते। नीरज गोस्‍वामी जी के बारे में क्‍या कहूं। वे पूरे समय हमारे साथ रहे किसी अभिभावक की तरह। हम कमजोर पड़ते तो हमें थामते। और कहते 'मैं हूं ना ' । उनकी उपस्थिति हमारे लिए किसी मज़बूत आधार की तरह थी। वे पूरे समय हमारे साथ रहे। अंतिम दिन भी जब उनको अपनी फ्लाइट पकड़ने के लिए कुछ देर पहले निकलना था तो भी उसके बाद उनकी टीम हमारे साथ थी। पैकिंग में हमारा साथ देने के लिए। तो ये कि बस हम कुछ नहीं कह सकते ।

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एक और नाम ऐसा है जिनके बिना हम नहीं जानते कि हम वहां क्‍या करते। पहले दिन जब हम तीनों अर्थात मैं शहरयार और सनी दिल्‍ली में पहुंचे तो होटल का खाकर हम तीनों ही लगभग बीमार हो गए। अच्‍छे खासे बीमार। ऐसे में पारुल सिंह जी ने हमारे भोजन की व्‍यवस्‍था संभाली। दोनों समय का भोजन उन्‍होंने इतनी आत्‍मीयता से करवाया कि लौटते समय शताब्‍दी की प्रथम श्रेणी का रॉयल खाना हमें कचरे समान लग रहा था। लौटते समय मैंने देखा कि खा खा कर मेरा पेट भी कुछ बाहर आ गया है। नीरज जी ने हमारे लिए जो कुछ किया वह तो हमारा अधिकार था उन पर। वे सुबीर संवाद सेवा और शिवना दोनों के ही अभिभावक हैं ( बूढ़ा नहीं कह रहा) तो उनको तो वो सब करना ही था। लेकिन पारुल जी तो सुबीर संवाद सेवा से अभी ही जुड़ी हैं। ऐसे में उनकी ये आत्‍मीयता मन को गहरे तक छू गई। हम बिना बीमार हुए लौटे तो उसका श्रेय पारुल जी को है। और हां खाना भी कितना लाती थीं वो। इतना कि हम खा लेते थे। हमारे मेहमान खा लेते थे। और सामने के स्‍टैंड से आकर वीनस केसरी और उनके मित्र भी खा लेते थे। नहीं मानें तो चित्र देखें।

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नीरज जी को तो हम 'टेकन फार ग्राण्‍टेड' ले सकते हैं क्‍योंकि उन पर हमारा पूरा हक़ है। लेकिन पारुल जी को आभार कहना बनाता है। हालांकि आभार शब्‍द उस भार को नहीं उतार सकता जो उन्‍होंने हमारे सिर पर लाद दिया है।

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शिवना प्रकाशन तथा सुबीर संवाद सेवा के कई साथियों की पुस्‍त्‍कों का विमोचन हुआ और कार्यक्रम शानदार रहा। सभी ने अपनी ग़ज़लों का भी पाठ किया। बहुत ही सुखद माहौल में वो कार्यक्रम पूरा हुआ।

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कई सारे लोगों से मिलना मिलाना हुआ। कई सारे लोगों के साथ कुछ सिलसिले फिर से जुड़े, तो कई पुरानों के प्रति मन में कुछ उदासी आ गई । वही बात जो मैंने पूर्व में भी कही थी कि रिश्‍ते अपनी एक्‍स्‍पायरी डेट लेकर आते हैं और शायद कुछ रिश्‍ते अब अपनी डेट को पूरा कर चुके हैं। मित्रो कई बारे आपके सामने दुविधा तब आ जाती है जब आपको एक साथ दो लोगों से मित्रता निभानी होती है। और उन दोनों लोगों का आपस में मतभेद का रिश्‍ता होता है। तब आपके सामने संकट यह होता है कि आप दोनों के साथ मित्रता कैसे निभाएं। मुझे लग रहा है कि कई लोग मेरे साथ अपने रिश्‍ते इसलिए नहीं निभा रहे हैं कि मेरा वो विरोधी नाराज़ न हो जाए। ऐसे मैं मुझे लगता है कि मैं उन अपनों को अब स्‍वतंत्र कर दूं रिश्‍तों से। ताकी वे कम से कम किसी एक के तो हो के रह सकें। जीवन मे रिवाइव तो होना ही चाहिए ना।  हां ये भी है कि कुछ पुराने रिश्‍ते फिर से जुड़ गए हैं।

तो ये रही एक लम्‍बी चौड़ी बात । आइये अब होली के मिसरे की बात करते हैं। इस बार का मिसरा यह है ।

मैं रंग मुहब्‍बत का, थोड़ा सा लगा दूं तो....?

कई लोगों ने बहर को लेकर कुछ प्रश्‍न किये हैं कि ये कौन सी बहर है। दरअसल यह बहरे हजज की एक मिश्र बहर है जिसका नाम है बहरे हजज मुसमन अखरब । इसके रुक्‍न हैं मफऊल-मुफाईलुन-मफऊल-मुफाईलुन 221-1222-221-1222 । बहुत ज्‍यादा गाई जाने वाली बहर है। बहुत सुंदर धुन पर गाई जाती है । अंजुम रहबर जी की एक ग़ज़ल ''रंगों में रंगी लड़की क्या लाल गुलाबी है!''  जो उन्‍होंने होली  पर लिखी है वो कहीं मिले तो ढूंढ कर सुनिए। उसका रदीफ उन्‍होंने रखा है 'गुलाबी है' और काफिया है ध्‍वनि 'आल' की ध्‍वनि मतलब हाल, ताल, चाल आदि आदि। बहुत सुंदर ग़ज़ल है । मुझे यू ट्यूब पर नहीं मिल रही है यदि आपको मिले तो उसे सुन कर धुन का अंदाज लगाइये। इसको गुनगुनाना है तो ऐसे गुनगुनाइये - लालाललला'लाला-लालाललला'लाला। जहां तक हर मिसरे में दो टुकड़े की बात है तो उसमें ऐसा है कि आपको हर मिसरे में दो उप मिसरे बनाने हैं। मतलब हर वाक्‍य कामा से अलग रहे । जैसे मैंने ऊपर कहा है कि मैं रंग मुहब्‍बत का उसके बाद कामा और फिर थोड़ा सा लगा दूं तो ? तो चलिए जल्‍दी जल्‍दी करिए और भेजिए अपनी गज़लें क्‍योंकि होली बस माथे पर है।

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

होली के लिए तरही मिसरा और विश्‍व पुस्‍तक मेले के अवसर पर आप सबका स्‍वागत है । आप आइये और सहभागी बनिये इस ब्‍लॉग के ऑफिशियल स्‍टॉल क्रमांक 288 का हॉल क्रमांक 12ए में।

होली के तरही मिसरे को लेकर बहुत भागदौड़ के बीच काम हुआ है और अंत में जो बना है वो यह है।

मैं रंग मुहब्‍बत का, थोड़ा सा लगा दूं तो..?

बहर तो आसान है आप लोग समझ ही गए होंगे। बस ये कि मिसरे में दो स्‍पष्‍ट टुकड़े होना चाहिए। काफिया है 'लगा' में आने वाली 'आ' की मात्रा। और रदीफ है 'दूं तो…?' । बस बहर को लेकर सावधानी रखनी है। होली है इस बार मार्च के पहले सप्‍ताह में, तो फरवरी के अंतिम सप्‍ताह तक अपनी ग़ज़ल भेज दीजिए। क्‍योंकि होली का मुशायरा केवल तीन या चार दिन ही चलना है इसलिए समय से आई हुई ग़ज़लों को स्‍थान मिल जाएगा।

मित्रों विश्‍व पुस्‍तक मेले में आप सब से मिलने का असवर सामने है। आप सब आइये और वहां अपनी  सहभागिता दर्ज करवाइये क्‍योंकि वो आप सब का ही स्‍टॉल है। वह सुबीर संवाद सेवा का भी अधिकारिक स्‍टॉल है ।

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