मंगलवार, 25 अगस्त 2009

तरही मुशायरे का परिणाम परम आदरणीय दादा भाई महावीर जी की कलम से उनके ही विस्‍तृत आलेख के साथ । और समीर लाल जी तथा भाभीजी को विवाह की वर्षगांठ की बधाई ।

पिछले दिनों से काफी व्‍यस्‍त हूं इस कारण न तो मेल का जवाब दे रहा हूं और ना ही ब्‍लागों पर कमेंट कर पा रहा हूं । अपने ही ब्‍लाग पर काफी काफी दिनों में पोस्‍ट लगा रहा हूं । आशा है कुछ दिन के लिये मुझे इस व्‍यस्‍तता के कारण क्षमा करेंगें ।

इस बार तरही के निर्णायक पद पर आसीन होने का मेरा अनुरोध परम आदरणीय दादा भाई महावीर शर्मा जी ने स्‍वीकार कर मुझे उपकृत किया । उन्‍होनें बहुत ही बेहतरीन तरीके से पूरे मुशायरे की समीक्षा की है । हालंकि स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर उनको कुछ समस्‍याएं हैं फिर भी नयी प्रतिभाओं को लेकर उनके मन में जो भाव है उसके चलते उन्‍होंने मेरे अनुरोध को स्‍वीकार किया । मैं आभारी हूं । पिछली बार श्रद्धेय प्राण शर्मा साहब ने इस कार्य को हमें उपकृत करते हुए स्‍वीकार किया था और इस बार दादा भाई ने ये कार्य किया है । हमारे तरही मुशायरे की सफलता का और क्‍या सुबूत हो सकता है ।

पहले तो आदरणीय समीर लाल जी और आदरणीया भाभीजी को आज उनकी विवाह की वर्षगांठ के अवसर पर बधाई । पूरे ब्‍लाग जगत की ओर से ईश्‍वर से कामना करते हैं कि इस युगल जोड़ी को अपने आशीर्वाद और करम से नवाजे । समीर लाल जी पूरे ब्‍लाग जगत के चहेते हैं और उनका अपना एक मुकाम है । ये अलग बात है कि इन दिनों काली पैंट और लाल शर्ट में घूम रहें हैं ।

समूचे ब्‍लाग जगत की ओर से युगल को वर्षगांठ की शुभकामनाएं

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तरही मुशायरे का परिणाम :-

इस बार दादा भाई महावीर शर्मा जी ने तरही के निणार्यक का पद स्‍वीकार किया था । वैसे वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं किन्‍तु परम्‍परा है कि परिचय दिय जाता है सो मैं दे रहा हूं ।

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दादा भाई आदरणीय महावीर शर्मा जी

जन्म : 20 अप्रैल 1933 दिल्ली, भारत में। शिक्षा : एम. ए. हिंदी। लंदन यूनिवर्सिटी तथा ब्राइटन यूनिवर्सिटी में मॉडर्न गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स। उर्दू का भी अध्ययन। कार्यक्षेत्र : 1962 से 1964 तक स्व: श्री ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में "भारतीय घुमंतू जन सेवक संघ" के अंतर्गत "राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र" के रूप में कार्य किया। 1965 में इंग्लैंड प्रस्थान। 1982 तक भारत, इंग्लैंड तथा नाइजीरिया में अध्यापन। 1992 स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के बाद लंदन ही मेरा स्थाई निवास स्थान है। 1960 से 1964 तक की अवधि में हिंदी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ और लेख ''महावीर यात्रिक'' नाम से प्रकाशित।

दादा भाई के दो ब्‍लाग हैं महावीर और मंथन जहां विशुद्ध साहित्यिक आयोजन वर्ष भर होते रहते हैं । दादा भाई के बारे में और जानने के लिये आप यहां   और यहां पर देख सकते हैं ।

तो पेश है आदरणीय महावीर जी द्वारा की गई तरही मुशायरे की समीक्षा जस की तस :-

सुबीर जी ने जुलाई का तरही मुशायरा एक अनोखे अंदाज़ से पेश किया है. इस मुशायरे के हासिले मुशायरा शेर के चयन करने का दायित्व मुझे दिया है. सच तो बात यह है कि यह दायित्व पूरी तरह से निभाना एक बहुत कठिन कार्य है.  आप शायद जानते हों कि सुबीर जी मुझे 'दादा भाई' से संबोधित करते हैं. 'दादा भाई' के नाते अनुज सुबीर को मुझ पर पूरा अधिकार है और इसी कारण यह ज़िम्मेदारी लेनी ही पड़ी.

अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार तरही की ग़ज़लों में से सर्वश्रष्ठ शेर चुनने का प्रयत्न करता हूँ.

यह कहना आवश्यक है कि वरिष्ठ साहित्यकारों डॉ. सुधा ढींगरा जी, देवी नागरानी जी और नीरज गोस्वामी जी तथा विख्यात ग़ज़लकार डॉ. मोहम्मद आज़म साहेब को इस प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जा रहा है. ऐसे साहित्यकारों की रचनाएँ तो प्रेरणात्मक  और प्रोत्साहक होती हैं जन्हें पढ़कर कुछ सीखा जाता है.

सामूहिक रूप से तरही की सारी ही ग़ज़लें खूबसूरत, सार्थक और प्रभावशाली हैं, हृदयगत भावनाओं, सुन्दर विचारों, कल्पनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति है, ऐसे तेवर हैं कि क़फ़िये बोल उठे हैं. अधिकाँश ग़ज़लों में यह गुण देखा गया है ग़ज़लकार ने जैसे सोचा-समझा है, पढ़ने वालों तक उसी रूप में संप्रेषित हुई है. अक्सर, अन्दाज़े-बयां दिलकश हैं, शेर के दोनों मिसरे एक दूसरे से संबद्ध हैं और व्याकरण सम्मत हैं. कुछ ग़ज़लें अलिफ़ वस्ल लयात्मक संधि, तक़रार, बहरों की पेचीदगियों की अच्छी मिसालें हैं. 

आप जानते ही हैं कि कभी-कभी बड़े शायरों की ग़ज़लों में भी कोई छोटी सी त्रुटि नज़र आ जाती है. इस प्रतियोगिता में भी कहीं एकाध ग़ज़लों में ऎसी बातें देखी जा सकती हैं जैसे एक जगह ग़ज़ल कहते कहते एक मिस्रा बहर से ख़रिज होगया है. दो जगह ऐसा भी देखा गया है कि शायर ने जिस ख़याल को लेकर मिस्रा लिखा है, अस्पष्टता के कारण पढ़ने वाले के हृदय-पटल पर उसी प्रकार से अंकित नहीं हो सका. ख़याल पाठक तक उसी प्रकार से संप्रेषित नहीं हो पाया. कुछ मिसरे क्रिया-हीन के कारण अपना असर खो बैठे. वचन, लिंग, काल और देश को सभी ने भलीभांति निभाया है.

अब बारी आती है कि कौन सा शेर चुना जाये जो तख़य्युल और तग़ज़्ज़ुल में अपना कमाल दिखा सके, हृदयगत भावनाएं दिल की गहरायी को छू लें, सरल और संयत भाषा हो, शब्द नगीनों की तरह जड़े हों, बहर और वज़न सही रूप में इस्तेमाल किये गए हों.  भाव और शब्दों का मेल ताल ऐसा हो कि ग़ज़ल में तरन्नुम और गेयता हो. तग़ज़्ज़ुल तरन्नुम के बिना अधूरा सा लगता है. ऐसे ही गुणों को ध्यान में रखते हुए अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार अपना मत दे रहा हूँ. यह आवश्यक नहीं है कि आप भी इससे सहमत हों. इस असहमति का आपको पूरा पूरा अधिकार है.

अपनी राय देने से पहले यह भी कहना चाहता हूँ कि कभी कभी नव-शिक्षु ऐसा शेर कह जाता है कि अनायास ही मुंह से 'वाह!' निकल जाता है और बड़े बड़े शायर कुर्सी से उठकर असकी सराहना करने लगते हैं. काफ़ी दिनों की बात है, फ़ोन पर बात करते हुए प्राण शर्मा जी ने  एक किस्सा सुनाया. संभवत: यह घटना १९वी शताब्दी के ८०वे दशक की है. एक महफ़िल में एक बड़े शायर अपना कलाम पढ़ रहे थे. मिस्रा पढ़ा:

'दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग़ से'

लेकिन किस्मत की मार, वो अगला मिस्रा भूल गए, कोशिश के बावजूद भी ज़बान तक नहीं आ पाया. कुछ घबराहट, हलकी सी शर्मिंदगी भी, परेशान होगये. उसी वक़्त एक छोटी उम्र का लड़का उठा और उसी बहर में शेर पूरा कर दिया:

'इस घर को आग लग गयी घर के चराग़ से.'

बुजुर्ग शायर ने लड़के को सीने से लगा लिया और कहा: 'आज से तू मेरा उस्ताद है.'

हो सकता है कि शायद आज भी आपको कुछ ऐसा लगे.

मुझे ऊपर लिखी बातों के आधार पर ३ आशा'र पसंद आये हैं.

रविकांत पाण्डेय जी की ग़ज़ल का मतला:

"मुग्ध होना बाद में उसकी मधुर झंकार से

दर्द पहले पूछना वीणा के घायल तार से."

वीनस केसरी जी का यह शेर:

"हम किताबे-ज़िन्दगी के उस वरक़ को क्या पढ़ें

जो शुरू हो प्यार से औ ख़त्म हो तक़रार से"

(लगता है वीनस जी ने टाइपिंग में  'पढ़ें' की जगह 'पढ़े' लिख दिया है.)  

मेजर संजय चतुर्वेदी की ग़ज़ल का मतला भी बहुत पसंद आया:

"माँ से छत, रिश्तों से चौखट और हद है प्यार से

ईंट गारे से नहीं बनता है घर, परिवार से."

१० के स्केल पर रविकांत पाण्डेय जी और वीनस केसरी जी को १०,१० और मेजर संजय चतुर्वेदी जी को ९ नंबर दिए हैं. यदि सुबीर जी आज्ञा दें तो इस प्रतियोगिता में रविकांत जी और वीनस जी दोनों के उक्त शेरों को 'हासिले मुशायरा शेर' कहे  जायें. 

अंत में मेरी ओर से प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी ग़ज़लकारों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी बेहतरीन ग़ज़लों से इस मुशायरे का मान बढ़ाया है. साथ ही सुबीर जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे निर्णायक की कुर्सी पर आसीन कर दिया. आशा है डॉ. सुधा ढींगरा जी, देवी नागरानी जी, नीरज गोस्वामी जी और डॉ. मोहम्मद आज़म जी जैसे गुणी साहित्यकारों की रचनाओं से नए कवियों/ग़ज़लकारों को प्रेरणा मिलती रहेगी.   महावीर शर्मा

बधाई हो बधाई दोनों को वीनस को भी और रविकांत को भी । दोनों ने मिल कर मैदान मारा है । संजय चतुर्वेदी भी बधाई के हकदार हैं । तो दादा भाई घोषित कर ही चुके हैं कि इस बार तरही के विजेता दो युवा शायर वीनस केसरी और रविकांत पाण्‍डेय हैं । बधाई दोनों को ।

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और मुझे दीजिये आज्ञा ।

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

गुलज़ार साहब और लता मंगेशकर जी की जोड़ी ने कई ऐसे गीत दिये हैं जो कि अविस्‍मरणीय हैं । दोनों की जोड़ी ने कुल 92 गीत दिये हैं क्‍या आप वे सब सुनना चाहेंगें ।

शायद ही कोई ऐसा हो जिसके फेवरेट गीतकार की सूची में गुलजार साहब का नाम नहीं आता हो । मेरे लिये तो वो क्‍या हैं मैं बता ही नहीं सकता । उनके गीतों को सुन सुन कर ही बड़ा हुआ हूं । प्रेम पत्र और बंदिनी से लेकर स्‍लमडाग तक का सफर गुलजार साहब का एक ऐसा सफर है जिसमें सब कुछ है । अपनी कहूं तो मैं तो लता जी की आवाज़ का पुजारी हूं  । और उसी कारण लता जी और गुलज़ार साहब के इस मेजीकल काम्बिनेशन के सभी गीत मुझे पसंद हैं । उनकी पहली फिलम बंदिनी थी और रिलीज पहले हुई थी प्रेमपत्र मगर दोनों में ही गीत लता जी के ही थे । मोरा गोरा रंग लई ले तथा सावन की रातों में । आपकी सूचना के लिये बता दूं कि लता जी और गुलजार साहब की जोड़ी ने कुल 90 फिल्‍मी तथा 2 गैर फिल्‍मी गीत दिये हैं । उसमें से भी 6 गीत ऐसे हैं जो कि रिलीज ही नहीं हो पाये इसलिये फिल्‍मी गीत 84 ही उपलब्‍ध हैं । सभी 84 गीत जादुई गीत हैं । मेरे पास कलेक्‍शन में शायद सभी हैं । प्रेमपत्र, बंदिनी, पूर्णिमा, सन्‍नाटा, आशिर्वाद, राहगीर, खामोशी, आनंद, मेरे अपने, परिचय, अनोखा दान, दूसरी सीता,  मौसम, खुश्‍बू, आंधी, घर, खट्टा मीठा, किनारा, पलकों की छांव में, देवता, स्‍वयंवर, गोलमाल, थोड़ी सी बेवफाई, सितारा, बसेरा, मासूम, एक पल, गुलामी, लिबास, लेकिन, माया मेमसाब, रुदाली, माचिस, सत्‍या, दिल से, जहां तुम ले चलो, हुतूतू, लाल सलाम ये वो 38 फिल्‍में हैं जिनमें वे 84 गीत आपको मिलेंगें । एक लता जी का एल्‍बम है ऐ मेरे वतन के लोगों  उसमें 2 गैर फिल्‍मी गीत मिलेंगें । और अभी अभी, देवदास, खुश्‍बू, भरोसा तथा ख्‍वाहिश  ये वो फिल्‍में हैं जिनमें वे अनरिलीज्‍ड 6 गीत हैं । तो कुल मिलाकर 92 गीत लताजी और गुलजार साहब की जोड़ी ने दिये हैं । आपको चाहिये तो पूरी सूची भी उपलब्‍ध करवा सकता हूं 92 गीतों की । इन 92 गीतों में 58 गीत लता जी के सोलो गीत हैं और 34 गीत युगल गीत हैं । ये मेरा अपना अपडेट है यदि आपको लगे कि कोई फिल्‍म छूटी है तो अवश्‍य बतायें । वैसे मैंने सजीव सारथी जी को अपने पसंदीदा लता जी के 10 गीत दिये हैं आवाज़ पर लगाने के लिये उसमें मैंने लता जी और गुलजार साहब के 10 दुर्लभ गीत छांटे हैं । एक बार वहां जाकर   अवश्‍य सुनें और बताएं कि कैसे गीत हैं ।

  तो इस बार हम गुलजार साहब और लता जी का ही एक अनोखा गीत ले रहे हैं संगीत वसंत देसाई का है । गीत के लिये कुछ भी लिखना मेरे लिये असंभव है । ये वो गीत है जिसको सुनकर हमेशा आंखे भर आती हैं अपने पूज्‍य दादाजी की याद आ जाती है, जिनके प्रति एक अपराध मैने किया था लेकिन क्षमा मांगने से पूर्व ही वे चले गये, जीवन भर के लिये मेरे मन पर अपराध बोध का बोझ छोड़कर   । 1968 में आई ऋषिकेश मुखर्जी दादा की फिल्‍म आशीर्वाद का ये गीत सुनें ।  

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और अब देखें इस कार्यक्रम की चित्रमय झांकी जो हम लोग सीहोर में पिछले 15 सालों से लगातार आयोजित कर रहे हैं । 15 अगस्‍त को ये आयोजन हम करते हैं । और इसका उद्देश्‍य है नयी प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना । इसके लिये हम कोई चंदा नहीं करते अपने ही स्‍तर पर ये आयोजन करते हैं । कार्यक्रम का नाम होता है देशभक्ति गीत प्रतियोगिता । इसमें स्‍कूली बच्‍चों के लिये देश भक्ति के गीतों की प्रतियोगिता तीन वर्गों सब जूनियर, जूनियर तथा सूमह वर्ग में आयोजित की  जाती है । पिछले 15 वर्षों से मैं, मेरे मित्र सुनील भालेराव तथा हितेंद्र गोस्‍वामी ये कार्यक्रम करते आ रहे हैं । हमारे स्‍थानीय विधायक श्री रमेश सक्‍सेना जी का भी पूरा सहयोग हमें मिलता है । ये भी संयोग ही है कि वे भी पिछले 15 सालों से हमारे क्षेत्र के विधायक हैं । खैर देखें चित्रमय झांकी ।

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तीन वर्गों सब जूनियर, जूनियर तथा समूह में प्रतियोगिता का आयोजन किया गया ।  तीनों ही वर्गों में शहर के विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थियों ने देशभक्ति गीतों की शानदार प्रस्तुतियां दीं ।

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निर्णायक के रूप में प्रदेश के ख्यात सुगम संगीत कलाकार जुल्फिकार अली, अमजद अली तथा अखिलेश तिवारी उपस्थित थे ।

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नन्हे नन्हे बच्चों ने अपने स्वर कौशल से न केवल हाल में उपस्थित श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया बल्कि निर्णायकों को भी उलझन में डाल दिया ।

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बच्चों की प्रस्तुतियों पर प्रसन्न होकर श्रोताओं ने खूब नकद पुरस्कार भी प्रदान किये ।

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प्रतियोगिता का परिणाम इस प्रकार रहा सब जूनियर वर्ग में प्रथम समीक्षा जोशी, द्वितीय नमन मेहता तथा तृतीय राधा गुप्ता, जूनियर वर्ग में प्रथम जया मेवाड़ा, द्वितीय शिरोनी पालीवाल तथा तृतीय रूपाली गुप्ता, समूह वर्ग में प्रथम सेंट एन्स स्कूल का दल, द्वितीय सरस्वती शिशु मंदिर का दल तथा तृतीय एंजिल ग्रुप रहा ।

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सभी विजेताओं को संस्कृति की ओर से आकर्षक चमचमाती हुईं ट्राफियां प्रदान की गईं, साथ ही विधायक रमेश सक्सेना ने तीनों वर्गों के प्रथम विजेताओं को इक्कीस सौ, द्वितीय को पन्द्रह सौ तथा तृतीय को ग्यारह सौ रुपये की नकद राशि अपनी ओर से देने की महती घोषणा की ।  श्री सक्सेना ने इस अवसर पर बच्चों को कार्यक्रम में संगत देने वाले संगीतकारों सत्यम, मुकेश कटारे, रितुल, विशाल तथा साउंड सिस्टम के शोएब को पुष्पहार पहना कर सम्मानित किया ।  सीहोर के सुप्रसिध्द वायलिन वादक मोहम्मद रईस को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।

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श्रोताओं के विशेष अनुरोध पर निर्णायकों जुल्फीकार अली तथा अखिलेश तिवारी ने देशभक्ति के गीतों की प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

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कार्यक्रम का संचालन  पंकज सुबीर ने किया । आभार संस्कृति के संयोजक सुनील भालेराव ने किया ।

मिलते हैं अगले अंक में तरही मुशायरे के परिणाम के साथ तथा नयी बहर के साथ ।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

बधाई हो बधाई आदरणीय नीरज गोस्‍वामी जी को आज उनके जन्‍म दिन पर और कृष्‍ण जी को भी उनके जन्‍मदिन पर । सुनिये पंडित नरेंद्र शर्मा जी और लता जी की दुर्लभ जुगल बंदी दो गीतों में ।

परम आदरणीय नीरज जी को आज उनके जन्‍मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं, केक वे कोरियर से भेज सकते हैं और छोटे भाइयों के लिये चाकलेट भी चाहें तो भेज सकते हैं ।

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इस सदी में तेरे ओठों पर तबस्‍सुम की लकीर, हंसने वाले तेरा पत्‍थर का कलेजा होगा

ये ग़ज़ल उनको भेंट

http://www.archive.org/details/AgarNaZohra-jabiinoneKe

आज नीरज जी का जन्‍म दिन है । कहते हैं कि बड़े भाईयों के जन्‍मदिन पर छोटे भाइयों के मजे होते हैं क्‍योंकि उस दिन बड़े भाई अपने छोटे भाइयों को ट्रीट देते हैं और कुछ गिफ्ट शिफ्ट भी देते हैं । सो आज के दिन मैं भी उम्‍मीद से बैठा हूं कि आज तो मेरे भी मजे होने है । आदरणीय नीरज जी मेरे अग्रज हैं । खैर ये तो हुई जन्‍मदिन के दिन ठिठौली की बात । आज नीरज जी के बारे में बातें । नीरज जी को जितना मैंने जाना है उतना ही हैरान होता रहा हूं । नीरज जी से एक बात जो मैंने सीखी है वो ये है कि हर समस्‍या का हल होता है आज नहीं तो कल होता है । वे हर बात को जिंदादिली से लेते हैं । एक और बात जो नीरज जी की मुझे बहुत पसंद आई वो ये कि उनसे बात करने के बाद पूरा दिन अच्‍छा निकलता है और वो इसलिये क्‍योंकि वे बात करते समय खूब हंसते हैं ठहाके लगाते हैं या तो दीवाना हंसे या तू जिसे तौफीक दे । नीरज जी का सबसे बड़ा गुण है उनकी सदाशयता उनकी विनम्रता । दरअसल में तो यही एक गुण है जो उनको भीड़ से अलग किये हुए है । वे इतने विनम्र हैं कि कभी कभी तअज्‍जुब होता है कि ये कौन से ग्रह से उतरा हुआ प्राणी है, कम से कम आज के दौर का पृथ्‍वी का प्राणी तो नहीं हो सकता है । नीरज जी की शायरी के बारे में एक बात बताना चाहता हूं और वो ये कि वे अक्‍सर अपनी ग़ज़लों के साथ मेरा नाम लगा देते हैं कि मैंने उस ग़ज़ल में ये ठीक किया वो ठीक किया । राज की बात ये है कि उनकी ग़ज़लों में कभी कुछ ठीक करने की गुंजाइश उनकी ग़ज़लों में मुझे मिली ही नहीं । उनकी ग़जलें पहले से ही मुकम्‍मल होती हैं । फिर भी ये उनका बड़प्‍पन है कि वे उन ग़ज़लों के सुधार का एक फिजूल का क्रेडिट मुझे दे देते हैं । दरअसल में आज का ये दौर जब इन्‍सान सबसे ज्‍यादा झिझ‍कता है क्रेडिट देने में, उस दौर में नीरज जी जैसे लोग इस भ्रम को तोड़ते हैं । एक मजेदार घटना सुनाना चाहता हूं । एक बार नीरज जी की एक ग़ज़ल मेरे पास आई और संयोग से उसी समय उनसे मेरी बात हुई नीरज जी ने कहा एक ग़ज़ल भेजी है । मैंने उत्‍तर दिया हां मिली है उसका मतला बहुत ही घटिया है । मेरे उत्‍तर पर नीरज जी करीब आधा मिनिट तक ठहाका लगा कर हंसते रहे और बोले वाह मजा आ गया । मैं आश्‍चर्य मे था कि किस माटी का बना है ये शख्‍स । अमूमन तो आज ये होता है कि यदि आप किसी की रचना में बस इतना भी कह दो कि मजा नहीं आया तो  अगला बुरा मान जाता है । और यहां तो में कड़े शब्‍दों में ये कह रहा हूं कि घटिया है और सामने वाला हंस रहा है । खैर यहीं तो वो बाते है जिनके कारण नीरज जी सबके चहेते हैं । मेरी तरफ से और पूरे ब्‍लाग जगत की ओर से उनको जन्‍मदिन की शुभकामनाएं । ( नीरज जी का दूरभाष क्रमांक 09860211911 तथा मेल neeraj1950@gmail.com  है )

आज कृष्‍ण का भी जन्‍मदिन है । 

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सुनिये परम श्रद्धेय पंडित नरेंद्र शर्मा जी का लिखा हुआ और आदरणीय लता मंगेशकर जी का गाया हुआ ये दुर्लभ गीत ज़रूर सुनें आपने शायद नहीं सुना होगा ये गीत । ( बड़ी दीदी आदरणीया लावण्‍य शाह जी पंडित नरेंद्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं )

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http://www.archive.org/details/NandbhawanNandlal

और कल स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर ये एक और गीत जो पुन: पंडित नरेंद्र शर्मा जी और लता जी की अद्भुत जुगलबंदी है ।

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http://www.archive.org/details/JoSamarMeinHoGayeAmar

कृष्‍ण जो बचपन में मुझे इसलिये भी बहुत प्रभावित करते थे कि उस समय गणेशोत्‍सव और दुर्गा उत्‍सव के नाटकों और झांकियों में मुझे हमेशा कृष्‍ण का ही पात्र मिलता था । सांवला रंग होने के कारण और कुछ कुछ कमनीय काया होने के कारण ये रोल मुझे बिना मांगे मिलता था । एक मजेदार घटना सुनें जब मैं शायद बारह या तेरह साल का था तो एक बार झांकी में मुझे गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाना था । गोवर्धन पर्वत आलरेडी ऊपर इमली के पेड़ से बांध कर लटकाया गया था जिस के नीचे झांकी लगी थी । और मुझे बस नीचे से उंगली लगा कर खड़े रहना था । खैर कुछ देर हुई और दर्शनार्थ आई हुई जनता में मेरे क्‍लास में पढ़ने वाली एक लड़की भी आई जिससे मैं बहुत घबराता था । मेरी नजरें उससे मिलीं और उसने एक हरकत कर दी । मेरे पसीने छूट गये । मैं तुरंत नीचे बैठा और जोर जोर से रोने लगा । जनता हैरान कि ये कृष्‍ण जी नीचे बैठ कर रो रहे हैं ये कौन सा प्रसंग है कृष्‍ण लीला का और ये गोवर्धन पर्वत हवा में कैसे लटका है । उसे तो लटकना ही था वो तो ऊपर इमली के पेड़ से बंधा था । खैर उससे ये हुआ कि हमारी झांकी की पोल खुल गई कि पर्वत को कृष्‍ण ने कैसे उठाया था । मेरे स्‍थान पर तुरंत एक दूसरा कृष्‍ण लाया गया और मैं रोता हुआ घर भाग गया । अब प्रश्‍न ये उठता है कि उस लड़की ने क्‍या हरकत की थी । आंखों ही आंखों में होने वाली एक ही तो हरकत होती है । बाद में धर्मवीर भारती जी के नाटक अंधा युग में भी कृष्‍ण की भूमिका करने का मौका मिला कुछ मार्डन कृष्‍ण बना था उसमें देखिये नीचे चित्र । एक है झांकी का और दूसरा अंधा युग के लिये मेकअप करने के बाद का । इस नाटक के लिये हमने घर से ही सामान एकत्र किया था इसलिये हो सकता है कि कृष्‍ण का मेकअप आपको कुछ फूहड़ टाइप का लगे । इस नाटक में हमने पेंट शर्ट के ही ऊपर कुछ हल्‍का फुल्‍का पहन कर अभिनय किया था ।

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खैर कृष्‍ण के चरित्र पर लिखा शिवाजी सावंत का युगंधर एक अद्भुत ग्रंथ है उसे अवश्‍य पढ़ें । और हां कुछ दिनों के लिये किसी काम में उलझा हूं । इसलिये यदि आपके मेल का जवाब समय पर न दे पाऊं या आपकी किसी पोस्‍ट पर कमेंट नहीं कर पाऊं तो अन्‍यथा न लें । तरही मुशायरे के परिणाम अभी मिले नहीं हैं । मिलते ही घोषित करूंगा और हां तय ये किया है कि इस बार मिसरा तरह के लिये एक पूरा गाना जो कि किसी खास बहर पर हो वो दूंगा और उसकी किसी भी पंक्ति पर गिरह बांधते हुए ग़ज़ल लिखना होगी । किसी भी पंक्ति अर्थात जो आपको पसंद आये । उससे एक वैरायटी मिलेगी हमको ग़ज़लों में ।

तो अगले अंक में तरही के परिणाम और तरही  के लिये वो गाना जिसमें से आपको मिसरा खुद निकालना है ।

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

रक्षा बंधन के अवसर कई सारे गीत सुनिये, ये गीत समर्पित हैं लावण्‍य दीदी, शार्दूला दीदी, सुधा दीदी और अनुजा कंचन को, जिन्‍होंने इस राखी पर एक सूनेपन को मिटा दिया है । : पंकज सुबीर

बचपन का रक्षा बंधन से कुछ खास ही रिश्‍ता होता है । बचपन की यादों में है वो रेडियो पर दिन भर रक्षा बंधन के गीत बजना, कलाइयों पर भरी भरी राखियां लेकर मुहल्‍ले भर में घूमना और जाने क्‍या क्‍या । मेरे लिये ये कभी होता था और कभी नहीं होता था । चाचाजी की पोस्टिंग सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी में थी और हर राखी पर उनका आना नहीं हो पाता था । जब वे आते थे तो हम दोनों भाइयों की कलाइयों पर राखियां बंध जाती थीं और जब वे नहीं आते थे तो हम दोनों यूं ही घूमते थे । बुआ से राखी बंधवा कर मन को शांत करते थे । चाचाजी की तीनों बेटियां गुडि़या, पूनम और लवली, उनकी कितनी प्रतीक्षा  रहती थी हर राखी पर। अब तीनों अपने अपने घर जा चुकी हैं एक मुंबई में है एक बैंगलोर में और एक शिवपुरी में । समय कितनी जल्‍दी बीत जाता है ।

पहले ये गीत सुनें  ( डाउनलोड लिंक http://www.divshare.com/download/8078846-c4e )

ये पहला फोटो भी ऐसी ही एक राखी का है जब हम दोनों भाइयों की कलाई पर राखी बंधी है । छोटा वाला मैं हूं । दूसरे फोटो में लवली राखी बांध रही है वो आजकल बैंगलोर में  साफ्टवेयर इंजीनियर है ।

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आज तो रक्षा बंधन के कुछ गीत सुनाने की इच्‍छा हो रही है । परम आदरणीय श्री महावीर जी के ब्‍लाग पर कल  मेरा एक गीत लगा है उसे सुन कर शार्दूला दीदी ने भी एक गीत भेज दिया अपने स्‍वर में, तो मैंने भी अपने स्‍वर में ये रिकार्ड कर लिया,  सुनिये  मेरी बेसुरी आवाज़ में

( डाउन लोड लिंक http://www.divshare.com/download/8078925-e6a )

लावण्‍य दीदी

और अब बात परम आदरणीय लावण्‍य दीदी की जिनका शुभाशीष से भरा हुआ एक लम्‍बा मेल आज ही मिला । कई सारी बाते उसमें उन्‍होंने लिखी हैं । पर जो खास है वो ये है ।

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रक्षा बंधन की मंगल बेला में.

ये बहन अपने अनुज भ्राता को  अनेकानेक आशिष व शुभकामनाएं भेज रही है -

ईश्वर आपको दीर्घायु , सुखी व स्वस्थ रखें

ये ये मेरी विनम्र कामना है श्री कृष्ण जी से --

फिर लतादी का गीत याद आ रहा है,

  " बहन पराये देस बसी हो, अगर वो तुम तक, पहुँच न पाए, याद का दीपक जलाना ' 

दीदी का आशीष मिल गया और क्‍या चाहिये ये गीत  लावण्‍य दीदी के लिये

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कंचन चौहान

इस बार की राखी मेरे लिये खास है क्‍योंकि इस बार सबसे पहले तो कंचन की भेजी हुई राखी मिली । और फिर उसकी ये फटकार भी खाने को मिली और बार बार ये मत कहा कीजिये कि आपके कोई सगी बहन नही। बहन बस बहन होती है सगी, चचेरी, मुँहबोली कुछ नही। बताइये तो सुभद्रा का कृष्ण से क्या रिश्ता था। सगी तो वो भी नही थी। बार बार ये बात सुनकर आपकी इस शिष्या सह छोटी बहन को कष्ट होता है.....! मेरा कोई वज़ूद ही नही :(

kanchan kanchan rakhi

ये गीत कंचन के लिये

 

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सुधा दीदी

फिर अचानक ही पोस्‍ट से एक लिफाफा मिला आदरणीय सुधा दीदी द्वारा भेजा हुआ उसमें राखी, मिठाई, कुमकुम, दीपक, सिक्‍का और राखी की थाली निकली । मन प्रसन्‍न हो गया । देखिये आप भी चित्र ।

Sudha_Om_Dhingra sudha didi

ये गीत सुधा दीदी के लिये

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शार्दूला दीदी

और फिर दिन बीतते बीतते शार्दूला दीदी द्वारा भेजी गई ये सुंदर पंक्तियां और ये गीत मिला, सुनिये उनकी ही सुरीली आवाज़ में और भूल जाइये मेरी ऊपर सुनी बेसुरी आवाज़ को ।

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Shardula

ये लीजिये कवयित्री दीदी की राखी के दो छंद :)
इन्हें हृदय में बांधिए! सदैव आपका पथ प्रशस्त हो!

". . .हरे हँसी के गहरे जंगल
नील गगन विस्तार खुशी का,
वादा रहा कि बाँटेंगे मिल
जो भी शुभ-सुन्दर सा दीखा !

न्यौछावर तुझ पर पंछी की
सीधी चलती, श्वेत कतारें,
खुशियां आयें, द्वार जमें ज्यों
गाँवों के मेहमान तुम्हारे !. . . "

शुभाशीष !

ये गीत शार्दूला दीदी के लिये

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और ये तीन गीत अपनी तीनों चचेरी बहनों गुडि़या, पूनम और लवली के लिये जिनके साथ बचपन की कुछ राखियां इस प्रकार बीतीं कि आज भी मन के किसी कोने में वो सावन रुका हुआ है ।

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और ये अंतिम गीत सारी बहनों की ओर से अपने आप को दे रहा हूं राखी के अवसर पर ईश्‍वर से यही प्राथना है कि सभी बहनों को सुखी और समृद्ध रखे उनके परिवार पर हमेशा अपनी कृपा बनाये रखे ।

गीत के अनुसार अपना चित्र लगा रहा हूं

me and bhaiyya

 

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शनिवार, 1 अगस्त 2009

रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से, स्‍व. ओम व्‍यास स्‍मृति तरही मुशायरे का समापन आज करते हैं दो उस्‍ताद शायरों श्री नीरज गोस्‍वामी तथा आदरणीय देवी नागरानी जी की ग़ज़लों से ।

इस बार का तरही मुशायरा कई मायनों में बहुत ही अच्‍छा रहा है । कई बहुत ही अच्‍छी ग़ज़लें सुनने को मिली  । इच्‍छा है कि एक आन लाइन काव्‍य पाठ इन सारी ग़ज़लों को लेकर हो । जीटाक पर आडियो कान्‍फ्रेंसिंग की सुविधा नहीं है अन्‍यथा एक अच्‍छा प्रयोग हो सकता है । खैर कोशिश करेंगें कि कुछ कर सकें । इस बार का तरही मुशायरा प्रारंभ हुआ था एक कविता से । हिंदी की शीर्ष कथा कार आदरणीय सुधा ओम ढींगरा जी की एक बहुत ही सुंदर कविता के साथ । कहते हैं ने अच्‍छी शुरुआत का मतलब होता है आधी सफलता । इस बार के मुशायरे को बहुत ही अच्‍छी शुरुआत देकर आदरणीय सुधा दीदी ने आने कवियों के लिये एक बहुत ही अच्‍छा रास्‍ता बना दिया था । मेरे लिये तो व्‍यक्तिगत रूप से ये मुशायरा इसलिये भी महत्‍वपूर्ण रहा कि इसमें मुझे सुधा दीदी जैसी स्‍नेहिल बहन मिलीं । वो भी रक्षा बंधन वाले सावन के महीने में । अब इस मुशायरे का समापन भी उतने ही धमाकेदार तरीके से होना चाहिये जितना कि आगाज हुआ था । सो हम आज इस मुशायरे का समापन कर रहे हैं । दो उस्‍ताद शायरों की ग़ज़लों के साथ । आदरणीय श्री नीरज गोस्‍वामी जी तथा आदरणीय देवी नागरानी जी  का नाम ब्‍लाग जगत तथा साहित्‍य जगत दोनों के लिये ही अपरिचित नहीं है । ये हमारी खुशकिस्‍मती है कि इस बार सुधा दीदी, नीरज जी तथा देवी नागरानी जी जैसी शख्‍सियतों ने तरही के लिये कलम चलाई । मुशायरा तो बस इसी कारण सफल है कि ये तीनों इसमें शामिल हुए ।

बहरे रमल :- इस बार हमने तरही के लिये बहरे रमल मुसमन महजूफ को लिया है । बहरे रमल के बारे में हम ये तो जानते  ही हैं कि ये 2122 फाएलातुन  के स्‍थाई वाली बहर है । इस बहर में कई अच्‍छी मुजाहिफ बहरें हैं । जिनमें से एक तो हम पिछले अंक में देख ही चुके हैं । आज एक और की बात करते हैं । बरहे रमल मुसमन मशकूल । ये भी बहरे रमल की ही एक मुजाहिफ बहर है । जिसमें स्‍थाई रुक्‍न फाएलातुन  के साथ एक और रुक्‍न होता है फाएलातु । मतलब ये है कि मुख्‍य रुक्‍न में केवल एक ही लघु मात्रा की कमी की गई है । फाएलातुन  में से अंत की एक लघु मात्रा हटा कर एक नया रुक्‍न बनाया गया है फाएलातु । अंत का   नहीं है । 2122 यहां पर 2121  हो गया है । ये ही पिछले बार हुआ था वहां भी एक मात्रा हटाई गई थी । वहा पर फाएलातुन  के फा  में सक एक लघु की कमी कर दी गई थी और उसे   कर दिया गया था और रुक्‍न बना था फएलातुन उसका नाम वहां था मखबून। यहां पर ये जो नया रुक्‍न बनाया गया है फाएलातु  इसका नाम है मशकूल । बहरे रमल मुसमन मशकूल  में स्‍थाई रुक्‍न फाएलातुन  तथा फाएलातु  का दोहराव है । 2121-2122-2121-2122 फाएलातु-फाएलातुन-फाएलातु-फाएलातुन । अब ये थोड़ा मुश्किल होता है कि किसी मिसरे को जिसमें दीर्घ को गिरा कर लघु बनाया गया है उसमें कैसे पहचानें कि बहर 2122-2122-2122-2122 है या 2121-2122-2121-2122 । तो उसके लिये हमें पूरी ग़ज़ल को देखना होता है । तब पकड़ में आता है कि कौन सी बहर है । उस्‍ताद लोग इसीलिये किसी ग़ज़ल की बहर बताने के लिये एक से जियादह शेर उस ग़ज़ल के पढ़ते हैं ।

चलिये आज तो हम अपनी ही बहर रमल मुसमन महजूफ  का ये गीत सुनते हैं । गीत मेरे सर्वकालिक पसंदीदा गीतों में हैं । क्‍योंकि उसमें मेरे पसंदीदा सब लोग हैं लता जी हैं, किशोर दा हैं, गुलजार साहब हैं, पंचम दा हैं । इस गीत को मैंने आधार बना कर एक कहानी लिखी थी  दो आंसू तेरे दो आंसू मेरे ।  कहानी के नायक नायिका एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और सोचते हैं कि जब उनकी शादी हो जायेगी तो वे बरसात में लांग ड्राइव पर जायेंगें गाड़ी में पूरे समय ये ही गीत बजेगा । शादी नहीं हो पाती और बरसों बाद कहीं से लौट रहे नायक की गाड़ी में नायिका लिफ्ट लेती है । बरसात बाहर हो रही है अंदर यही गीत बज रहा है  । गाड़ी में अंधेरा है  नायक ने अपना चेहरा छुपा रखा है । किन्‍तु जब गीत एक बार बंद होने के बाद फिर से दुबारा बजना प्रारंभ होता है तो........। खैर कहानी बाद में आज गीत  ।

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श्री नीरज गोस्‍वामी जी :  नीरज जी इन दिनों मिष्‍टी के पास छुट्टियों का आनंद ले रहे हैं । नीरज जी के बारे में कुछ कहने के लिये मेरे पास शब्‍दों का टोटा पड़ने लगता है । नीरज जी से जब भी बात होती है तो एक अतिरिक्‍त उर्जा मिलती है । वे बहुत ही सकारात्‍मक रूप से सोचते हैं । उस्‍ताद शायर तो वे ही हैं । उनकी ग़ज़लें धमाके की तरह से आती है । नीरज जी की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे बहुत ही विनम्र हैं ।  ईश्‍वर ने चाहा तो बहुत जल्‍द ही उनके दर्शन का सौभाग्‍य मिल सकता है । नीरज जी की ग़ज़लों की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी ग़जलों में आने वाले आम बोल चाल के शब्‍द । वे आम आदमी के लिये लिखते हैं । नीरज जी के बारे में जानने के लिये यहां और यहां पर जा कर देख सकते हैं।  चलिये उनकी ग़ज़ल का आनंद लीजिये ।

Neeraj1

मुस्कुरा कर डालिए तो इक नज़र बस प्यार से

नर्म पड़ते देखिये दुश्मन सभी खूंखार से

तौल बाजू, कूद जाओ इस चढ़े दरिया में तुम

क्या खड़े हो यार तट पर ताकते लाचार से

वक्त मत जाया कभी करना पलटने में उसे 

गर नहीं मिलता जो चाहा आपको सरकार से

नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये

रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से

फायदा ही हो हमेशा गर ये ही है सोच तो

दूर रहने में भला है, आपका व्यापार से

फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन

सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से

जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही

किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से

दूर से भी दूर है वो पास से भी पास है

आप पर हैं आप करते याद किस अधिकार से

जब तलक है पास कीमत का पता चलता नहीं

आप उनसे पूछिए जो दूर हैं परिवार से

ज़िन्दगी में यूँ सभी से ही मिली खुशियाँ मगर

जो बिताये साथ तेरे दिन थे वो त्यौहार से

वाह वाह वाह । मेरे विचार से फूल, तितली, रंग, खुश्‍बू, जल, हवा, धरती, गगन  ये किसी उस्‍ताद के ही बस का मिसरा है । केवल संज्ञा ही संज्ञा । बहुत बढि़या । तिस पर गिरह तो जानलेवा है । नाम तो लेता नहीं मेरा मगर लगता है ये  । उफ किस कदर का कन्‍ट्रास पैदा किया है । मौन हूं इस ग़ज़ल पर ।

आदरणीय देवी नागरानी जी : देवी नागरानी जी ग़ज़ल विधा की एक बहुत ही सशक्‍त हस्‍ताक्षर हैं । आपके दो ग़ज़ल संग्रह चरागे दिल और दिल से दिल तक   आ चुके हैं । आपका सिंधी ग़ज़लों का भी संग्रह आ चुका है । आपकी ग़ज़लें मानवीय संवेदनाओं से भरी होती हैं । आपका एक ग़ज़ल संग्रह चरागे दिल बहुत ही लोकप्रिय हुआ है जिसमें कई रंगों की ग़ज़लें हैं । कई सारे पुरस्‍कार आपको प्राप्‍त हुए हैं । साथ ही वे मुशायरों आद‍ि में भी खूब लोकप्रिय शायरा हैं । आपके बारे में और जानने के लिये यहां पर जाकर ज्ञात कर सकते हैं । ये हमारा सौभाग्‍य है कि इस बार हमारे मुशायरे का आगाज़ एक शीर्ष साहित्यिक हस्‍ती आदरणीया सुधा दीदी के साथ हुआ और समापन भी हो रहा है एक और शीर्ष  हस्‍ती आदरणीय देवी नागरानी जी  की ग़ज़ल के साथ । और क्‍या चाहिये अब हमें ।

Devi_nangrani

बंद कर दें वार करना अब ज़ुबां की धार से

दोस्ती की आओ सीखें हम अदा गुल-ख़ार से

अपनी मर्ज़ी से कहाँ कोई है टूटा आज तक

होता है लाचार आदम बेबसी की मार से

बोझ उठाकर झुक गया है अब वो बूढ़ा पेड़ भी

रखते हैं उम्मीद कितनी बूढ़े़ उस आधार से

नज़रे-आतिश बस्तियों में कोहरा है छा गया

सॉफ कुछ शायद दिखेगा धुंध के उस पार से

मन की भाषा बोलके-सुनके बिताई उम्र यूँ

याद अमल का पाठ कर लें आओ गीता-सार से

क्या है लेना क्या है देना दर्द से किसको भला

कर लिया ग़म से निबह भी दर्द के इसरार से

बेख़बर खुद से सभी हैं, कौन किसकी ले खबर

सुर्ख़ियों की शोखियां झाँकें हैं हर अख़बार से

वाह वाह वाह । आनंद आ गया । अपनी मर्जी से कहां कोई   है  टूटा आज तक  उस्‍तादाना रंग में रंगी हुई है पूरी ग़ज़ल । हर शेर अपनी कहानी आप कह रहा है । मजा आ गया समापन में । जैसा आगाज़ हुआ था वैसा ही अंजाम हुआ है ।

सभी का आभार जिन्‍होंने तरहीं के लिये ग़ज़लें भेजीं और इसको सफल बनाया । अगली आर हम मिसरे परे काम नहीं करेंगें बल्कि बहर पर काम करेंगें । कुछ लोगों का सुझाव है कि इसमें एक दिक्‍कत ये है कि यदि किसी के पास उस बहर पर पूर्व से ही कुछ तैयार होगा तो वो वही भेज देगा । खैर उसका भी हल ये है कि बहर ही खूब ढ़ूंढ कर निकाली जायेगी । आप लोग क्‍या कहते हैं बहर पर काम करें या मिसरे पर । बताइये ।

परिवार