कई दिनों से तबीयत कुछ ठीक नहीं है मन और तन दोनों में ही समस्याएं चल रहीं हैं मन में अशांति है और तन में वयरल फीवर है । कभी कभी ऐसा हो जात है कि मन और तन दोनों एक साथ ही बीमार होते हैं खैर एक बात अच्छी हुई है कि दैनिक भास्कर ने माड़साब पर एक विशेष समाचार लगाया है और वो भी अच्छी बात शीर्षक से ही लगाया है जिसमें माड़साब की ग़जल़ की क्लासों के बारे में जानकारी दी गई है । मित्रों मैं जानता हूं कि बहरों के बारे में जानने के लिये आप सभी उत्सुक हैं पर कुछ मन की अशांति ने विवश कर रखा है । कभी कभी ऐसा लगता है कि जैसे जीवन कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है । निराशा छाती है और फिर मन डूबने सा लगता है । मगर मैं जानता हूं कि निराशा से तो लड़ना ही होगा और उससे बाहर भी आना होगा क्योंकि जीवन कायरों और कमजोरों के लिये नहीं है । मगर क्या करूं कभी कभी होता है ऐसा कि अंधेरा छाने लगता है और उजाले की कोई किरण नहीं नज़र आती तो ऐसा लगता है अब तो सुब्ह होगी ही नहीं ।
खैर अभिनव बहुत अच्छा काम कर रहे हैं पिछले दिनों एक ग़ज़ल की तकमीई भेजी औश्र बिल्कुल सटीक भेजी मेरी ओर से उनको बधाई ।
रिपुदमन ने भी कुछ अच्छा काम करके भेजा है
जया नर्गिस जी की एक ग़ज़ल के मतले का संभावित बहर:-
याद जब दिल से जुदा हो जाएगी
ज़िंदगी इक हादिसा हो जाएगी
२१२२ ~ २१२२ ~ २१२
२१२२ ~ २१२२ ~ २१२
अजय कानोडिया ने भी कैफी आज़मी जी की ग़ज़ल फ़िल्म अर्थ के इस शेर की तकतई करने की कोशिश की है
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
११ ११२ २ २१२ १२ २
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
११ ११ २ २२ १२ १२ २
प्रयास अच्छा है ग़लती है कोई ठीक कर सके तो ठीक कर के प्रस्तुत करें ।
बहुत जल्द ही फार्म में आकर काम शुरू कर दूंगा ये मेरा वादा है अपनी शुभकामनाएं अवश्य दें कि मैं अपने अंदर की निराशा से लड़ सकूं । क्योंकि आपकी शुभकामनाएं ही मेरा संबल बनेंगीं ।
छ्पने के लिये बधाई और शीघ्र स्वस्थ होने के लिये शुभकामनाऎं.
जवाब देंहटाएंतन की बीमारी को करने ठीक दवायें आप लीजिये
जवाब देंहटाएंलेकिन मन की बीमारी को, केवल दूर करेंगी गज़लें
जैसे भी हो फिर से होकर सक्रिय अपनी पोस्ट दीजिये
जिनको पढ़ें और पढ़ कर हम सब ही लाभान्वित भी होलें
शीघ्र स्वस्थ होने के लिये शुभकामनाऎं.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
कभी ये पंक्तियाँ मन में गूंजी थीं. निराशावादी होते हुए भी कहीं इनमें कहीं ऐसा लगता है मानो हम दुःख को अपने ऊपर हावी नही होने देंगे. आप शीघ्र अच्छे हो जाएँ ऐसी कामना है. समाचार देख कर खुशी हुयी.
जवाब देंहटाएंसाँस भी अब में लेता हूँ तो, ऐसा लगता है एहसान है,
मन के खाली बसेरे में बस, ज़िंदगी एक मेहमान है,
कार दिन और फिर कुछ नही, बात है सिर्फ़ इतनी सही,
काट को मर के या मार के, लोग सब हैं नदी पार के,
दादर सहना ही बस सत्य है, दर्द देना ही बस एक खुशी,
उसपे तुर्रा ये कहते हैं वो, इस ज़माने में सब हैं दुखी,
आज जैसा है कल वो नही, और कल कलकलाती नदी,
बीत जायेगी यूं ही सदी.
कल आपसे बात कर के बहुत अच्छा लगा, आपके आदेशानुसार लीजिये आज का होमवर्क,
जवाब देंहटाएंकब से हूँ क्या बताऊं जहाने ख़राब में,
शब आए हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में,
मुझ तक कब उनकी बज्म में आता था दौर ऐ जाम,
साकी नें कुछ मिला न दिया हो शराब में,
कासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
में जानता हूँ क्या वो लिखेंगे जवाब में,
काफ़ी कसरत के बाद ये बहर निकली है,
२२२-२१२-२१२-२१२-१२
कब से हूँ - क्या बता - ॐ जहाँ - ने खरा - ब में
शब आए - हिज र को - भी रखूँ - गर हिसा - ब में
मुझ तक कब - उन की बज्म - में आता - था दौरे - जाम,
साकी नें - कुछ मिला - ना दिया - हो शरा - ब में
कासिद के - आते आ - ते ख़त इक - और लिख - रखूँ,
मैं जानता - हूँ क्या - वो लिखें - गे जवा - बी में
१. पर इसमें पहले शेर के मिसरा ऊला में आखिरी रुक्न में जाम को १२ कैसे माना जाए ये तो २१ है.
२. एक और बात दूसरे शेर के मिसरा ऊला में लिख को २ माना जा रहा है क्या ये ठीक है.
पिछली टिपण्णी चाहे तो डिलीट कर दीजियेगा उसमें अनेक त्रुटियां हैं.
अजय जी के प्रयास को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ,
संभावित बहर: २२२२-२१२१-२२
तुम इतना जो - मुस्कुरा र - हे हो
क्या गम है जिस - को छुपा र - हे हो,
रेखाओं का - खेल है मु - कद्दर
रेखाओं से - मत खा र - हे हो
जल्दी स्वास्थ्य लाभ करें हुजूर और बतलाएं कि गंडा बंधवाने कब हाजिर होना है। ( गोकि इतना आसान नहीं है)
जवाब देंहटाएंफायलातुन मुफाइलु मुस्तफयलुन
ये तमाम बातें हमें भी सीखनी हैं आपसे । छंद बिना गति कैसी ?