सोमवार, 21 जनवरी 2008

बहारों का आया है मौसम सुहाना, नए साज़ पर कोई छेड़ो तराना, हवा का तरन्‍नुम बिखेरे है जादू , कोई गीत तुम भी सुनाओ पुराना

बहरों के बारे में प्रारंभ करने में काफी समय लग रहा है और इसके पीछे कई सारे कारण हैं कुछ अपने कुछ समय के । खैर शनिवार को अभिनव का फोन आया और काफी समय तक बात होती रही काफी सारी बातें हुईं । एक बात जो मुझको लग रही है कि तकतीई को लेकर कुछ लोग उलझन में हैं । जैसा कि अभिनव ने ही बताया कि वो अब जब ग़ज़लें लिखने बैठते हैं तो पहले मात्राओं को संकट सामने आता है सो विचार हवा हो जाते हैं । एक बात मैं यहां कहना चाहता हूं कि अगर आप ग़ज़ल लिखने बैठे हैं तो उस समय आप को दो प्रकार से काम करना होगा एक रा मटेरियल तैयार करना और फिर उस रा मटेरियल को तैयार कर गुड्स बना देना । ठीक वैसे ही जैसे कि ऐ भवन का निर्माण करते समय किया जाता है कि पहले तो ढांचा तैयार किया जाता है और फिर उसके बाद में उस ढांचे पर रंग रोगन कर उसको तैयार कर दिया जाता है । हमें भी वहीं करना है जब आपको अपनी पहली लाइन मिल जाए तो उसे काग़ज़ पर लिख्‍ा लें उसकी तकतीई कर लें और उसकी एक धुन बना लें । उसके बाद भूल जाएं कि तकतीई क्‍या है क्‍योंकि अभी तो आपको केवल रा मटेरियल ही तैयार करना हे और विचार ग्रामर से दूर होते हैं अगर आप ग्रामर को पकड़ेंगें तो विचार भाग जाएंगें और अगर विचार को थामेंगें तो ग्रामर वहां नहीं चलेगी । विचार तो बहती हुई नदी की तरह होते हैं जिसको किसी भी ग्रामर की जरूरत नहीं होती है उसका काम तो बहना है । इसलिये जब विचार आ रहे हों तो उनको अनवरत आने दें भूल जाऐं कि क्‍या बहर है और क्‍या तकतीई है । लिखते जाएं बस लिखते जाएं । और एक बार आपको लगें कि आपके पास काफी रा हो गया है तो फिर तकतीई को उठाऐं और एक एक शेर को उस पर कसने का काम करें । जहां पर जेसी भी गुंजाइश हो उस शेर के साथ वैसे ही करें क्‍योंकि अब विचारों ने अपना काम खत्‍म कर दिया और अब तो जो काम हो रहा है वो ग्रामर का हो रहा है । विचार तो आपके अपने थे पर ग्रामर तो वही है जो सदियों से चली आ रहा है । तो अब कोई गुंजाइश नहीं है । अपने रा मटेरियल को अब ग्रामर का पलस्‍तर लगा कर भवन का स्‍वरूप प्रदान करें ।

आज मैंने देवी नागरानी जी की ग़जल मुखड़े में लगाई है । वैसे मेरा एक मिसरा है जो मैं मिसरा से आगे ही कभी नहीं लिख पाया अगर आप लोग कुछ कर पाएं तो कर के बताएं ।

बता तरकश में तेरे तीर कितने और बाकी हैं

ये मिसरा यूं ही काफी दिनों पहले आ गया था पर इसका ना तो सानी मिसरा ही बन पाया ग़ज़ल तो दूर की बात है ।

बहर :-  बहर की अगर बात करें तो बहर दरअसल में ग़ज़ल की नियमावली है जिस पर आपको चलना है । हमने अभी तक रुक्‍न देखे और ये भी देखा कि रुक्‍नों से मिलकर ही ग़ज़ल बनती है । पर एक बात तो ये भी है कि रुक्‍नों का विन्‍यास या उनकी तरतीब तो एक समान ही होता है । तो ये जो तरतीब है ये भी तो किसी ने खोजी ही होगी । और जैसा कि मैं पहले ही बात चुका हूं कि ग़ज़ल का पिंगल अरबी फारसी से लिया गया है और इसीलिये बहरों के जो नाम हैं वो भी वहीं के ही हैं । हम जो फाएलातुन  वगैरह करते हैं वो भी तो फारसी का ही है । अब जैसे हमने कहा फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन  तो ये तो एक क्रम हो गया पर इस क्रम का भी एक नाम होगा और वो नाम उस के नाम पर होगा जिसने उसकी खोज की होगी ।

इस बहर का नाम है बहरे रमल मुसमन सालिम ।  चलिये अभी तो हम ने बहरों की शुरुआत भी नहीं की है फिर भी ये जान लें कि इस नाम में ये तीन तीन चीजें क्‍या हैं  रमल, मुसमन, सालिम ।  दरअस्‍ल में नाम तो इसका केवल रमल ही है पर बाकी की दो चीजें भी अलग अलग बातें कह रहीं हैं । जैसे मुसमन ये जो शब्‍द है ये किसी भी बहर के नाम में इस बात का सूचक होता है कि बहर में चार रुक्‍न हैं । मतलब अगर नाम में मुसमन है तो आप ये जान लें कि मिसरे में चार रुक्‍न ही होंगें । जैसे ऊपर हैं । अब आया सालिम तो ये भी एक अलग तरह की बात कह रहा है । आप ऊपर का तरतीब देखें फाएलातुन- फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन   अब इसमें क्‍या विशेषता नज़र आ रही है । ये कि चारों ही रुक्‍न एक ही प्रकार के हैं चारों ही फाएलातुन हैं । इसको कहा जाता है सालिम बहर । अर्थात जब मिसरे में चार रुक्‍न हो तो वो मुसमन होता है और जब चारों ही रुक्‍न एक ही प्रकार के हों तो उसको कहा जाता है सालिम । मतलब नाम तो बहर का रमल  ही है पर उसके आगे मुसमन और सालिम  तो केवल ये बताने के लिये लगाए गए हैं कि बहर में चार रुक्‍न हैं और चारों ही रुक्‍न एक ही प्रकार के है। अगर बहर में तीन या दो रुक्‍न हों तों उसका नाम अलग हो जाएगा मतलब फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन  का नाम अलग होगा क्‍या होगा उसकी बातें कल होंगीं ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. जी.. समझा।

    यह बहुत अच्छी बात बताई है आपने।

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  2. कमाल की जानकारी। साधुवाद। बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।

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  3. abhinav ji ki hi samsya mere sath bhi chal rahi thi...par ab guru ji ne jaisa bataya vaisa kar ke dekhu.ngi

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  4. यस सर,

    अंधेरों की हिमाकत से कोई सूरज नही डरता,
    बता तरकश में तेरे तीर कितने और बाकी हैं,

    बहुत दिन हो चुके हैं अम्मा को गुज़रे हुए लेकिन,
    अभी तक घर के दरवाज़े पे गायें रोज़ आती हैं,

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    मुखड़े की संभावित बहर: १२२-१२२-१२२-१२२
    बहारों का आया है मौसम सुहाना,
    नए साज़ पर कोई छेड़ो तराना,

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  5. परिंदों के परों में जोश कितना और बाकी है????
    hamari aazmaish ke liye yahi misra kafi hai subeer ji. Abhinav to pahli kattar mein aa pahunche hai.

    निहायत ही सुदर पहलू है, जिसका विस्तार अनंत की ओर जाता है!!

    हो जितना ज़ोर उतना जुल्म मुफ़लिस पर किया करना
    बता तरकश में तेरे तीर कितने और बाकी हैं.
    देवी नागरानी

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