मंगलवार, 1 जनवरी 2008

और आखिरी में आ रही हैं देवी नागरानी जी अपनी एक ग़ज़ल के साथ ये कहते हुए कि नया साल देखो चला आ रहा

ये नया साल देखो चला आ रहा

मुस्कराकर पुराना चला जा रहा.

बीत कर जो गया वो हमारा था कळ

आज खुशियाँ समेटे नया आ रहा.

है खुशी का नजारा यहाँ हर तरफ

खिलखिलाहट सभी को सुनाता रहा.

घूँट खुशियों के पीता रहा हर कोई

गीत खुशियों भरे दिल ये गाता रहा.

है फिजाँ शोख उसमें है शामिल खुशी

जाम से जाम है वक्त टकरा रहा.

हो मुबारक खुशी, अळविदा ग़म तुम्हें

दिल दुआओं को देवी है छलका रहा.
देवी नागरानी

3 टिप्‍पणियां:

  1. बीत कर जो गया वो हमारा था कळ
    आज खुशियाँ समेटे नया आ रहा.
    सुबीर जी, देवी जी ये ग़ज़ल अब तक की नए साल पर कही ग़ज़लों में सबसे बेहतरीन लगी. जबान की सादगी और भाव दोनों लाजवाब ....वाह.
    नीरज

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  2. pankaj ji aapke blog ki jankari rakhne valon ki kami nahi he lage raho munna bhaiiiii rajesh shamber 6-1-08 aur haan happy new year

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  3. सुबीर जी
    आपकी प्रस्तुति का ढंग भी लाजवाब है, मैं तो डर ही गई थी !!!!!!!!!

    आप नैनिहाल से जो भरपूर ताज़गी समेट लाये हैं वह बरकरार रहे, उसी शुभ कामना के साथ
    देवी

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