मंगलवार, 29 सितंबर 2009

गौतम का पिछली पोस्‍ट पर किया हुआ कमेंट, ब्‍लागवाणी का पुन: प्रारंभ होना, तरही मुशायरे को लेकर काफी कम समय शेष और बहरे मुतदारिक ।

नवरात्रि के पहले दिन की  ही शुरुआत दिल्‍ली के कवि सम्‍मेलन से हुई और पूरे नौ दिन कवि सम्‍मेलनों में ही बीते । इन दिनों सीमा पर तनाव होने के कारण वैसे भी वीर रस के कवियों की पूछ परख थोड़ी बढ़ी हुई है । भारतीय जन मानस आग लगने पर कुंए खोदने में विश्‍वास रखता है । बाद के कुछ कवि सम्‍मेलनों में जब गले ने साथ छोड़ा तो फिर कविताओं को तहत में ही पढ़ना पड़ा । लोगों ने पसंद किया तो लगा कि चलो ये भी ठीक है । दिल्‍ली के कवि सम्‍मेलन में  पहले तो सोचा कि वीर रस ही पढ़ूं फिर लगा कि नहीं यहां पर कुछ प्रबुद्ध श्रोता हैं सो वहां पर चार छंदों वाली भारत कहानी पढ़ी । लोगों ने उसे और उसकी धुन को पसंद किया तो मेहनत सार्थक हो गई ।

गौतम का कमेंट - गौतम की लगन का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि उसने पिछली पोस्‍ट को न केवल पूरा पढ़ा बल्कि उस पर अपना कमेंट भी एसएमएस के माध्‍यम से भेजा ।

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ठीक हूं सर । दर्द कम है । इन्‍फेक्‍शन का पता एक हफ्ते बाद चलेगा । आपको, भाभी मां को और परी पंखुरी को विजया दशमी की समस्‍त शुभकामनाएं । ब्‍लाग पढ़ा है, मोबाइल पे है । तरही का मिसरा बेहद खूबसूरत है सर। रहें रदीफ कुछ मुश्किल पैदा करेगा दो गाने जो अभी याद आते हैं इस बहर पे 'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिये ' और एक मेरा फेवरेट देश भक्ति गीत ' ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम । मेरे एसएमएस को कमेंट में डाल देना गुरूजी ।

बस यही तो वो जज्‍बा है जो गौतम जैसे लोगों को सबसे अलग करता है । इस बीच बहू संजिता से भी मेरी कई बार बात हुई और मैं हैरान हूं कि कितनी सुलझी हुई और धैर्यवान है वो । गौतम ने जो गीत पसंद किया है वो, और एक और गीत जो इसी बहर पर है उसे सुना जाये पहले

पहले गौतम की पसंद का गीत

दूसरा गीत जो मुझे बहुत पसंद है वो भी इसी बहर पर है और वो भी देशभक्ति गीत ही है ।

ब्‍लाग वाणी का बंद होकर प्रारंभ होना -

ब्‍लाग वाणी का बंद होना अर्थात हिंदी ब्‍लागों की वाणी का बंद हो जाना । मेरी सुब्‍ह की रोज की आदत है कि मैं सबसे पहले ब्‍लागवाणी को खोलता हूं फिर अपने ब्‍लाग को । आज जब रोज की तरह खोला तो ज्ञात हुआ कि ब्‍लागवाणी बंद हो गई है । धक्‍का लगा । मगर फिर सोचा कि ब्‍लाग वाणी तो हमारी है उसे मैथिल जी कैसे बंद कर सकते हैं । किया तो प्रेम की अदालत में हम उन पर दोस्‍ती का मुकदमा लगा देंगें । खैर उसकी नौबत नहीं आई और ब्‍लाग वाणी प्रारंभ हो गई । मेरे गुरू कहा करते थे कि जब भी कोई अच्‍छा काम प्रारंभ होता है तो कुछ नहीं करने वाले लोगों को सबसे पहला लक्ष्‍य होता है कि उसका विरोध कर उसको बंद करवा दो । कई बार ये लोग सफल भी हो जाते हैं । मेरा ब्‍लाग वाणी की पूरी टीम से अनुरोध है कि धैर्य न खोयें और कुछ भी ऐसा  न करें जिससे विध्‍न संतोषियों के हौसले बढ़ें । आप अपना काम करते रहें उनके काम को उन्‍हें करने दें ।

तरही मुशायरा – अनुरोध है कि तरही मुशायरे को लेकर दी गई बहर पर जल्‍दी काम करें । क्‍योंकि अब समय बहुत ही कम है दीपावली के एक सप्‍ताह पहले से मुशायरा प्रारंभ होना है । और अब उसमें समय बहुत कम है । मेरे विचार से यदि दस तारीख तक काम भेज दें तो बहुत ही अच्‍छा रहेगा । अच्‍छी बात ये है कि निर्मला कपिला जी की ग़ज़ल प्राप्‍त हो भी चुकी है । बाकी के लोग भी जल्‍द करें तो अच्‍छा होगा ।

मिसरे में रदीफ 'रहें ' है । अर्थात अं की बिंदी लगी है । यदि आप अं की बिंदी नहीं लेना चाहते हैं अर्थात 'रहे' ही रखना चाहते हैं तो वैसा कर लें लेकिन फिर पूरी ग़ज़ल में वही रखें । ये गौतम के सुझाव पर ।

दीप जलते रहे, झिलमिलाते रहे या दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें

दोनों में से चाहे जो मिसरा रख लें । लेकिन उसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करें । इस बार दीवाली का मुशायरा है इसलिये हमारा प्रयास होगा कि श्री महावीर शर्मा जी, श्री राकेश खण्‍डेलवाल जी, श्री प्राण शर्मा जी, श्री समीर लाल जी, श्री डॉ मोहम्‍मद आज़म, श्री योगेंद्र मोदगिल, लावण्‍य दीदी साहब, देवी नागरानी जी, सुधा ढींगरा दीदी, शार्दूला दीदी, जैसे अतिथि रचनाकारों की रचनाएं भी हमकों मिलें ताकि वे भी सनद की तरह मुशायरे में रहें । भले ही ये रचनाएं मुक्‍तकों के रूप में मिले चाहे एक मतले और एक शेर के रूप में ।

आदरणीय राकेश जी का तो एक गीत है इसी बहर पर जिसे बहन मोनिका हठीला ने अंधेरी रात का सूरज के विमोचन के अवसर पर गाया भी था । उसे सुनिये । ये अंधेरी रात का सूरज  से लिया गया गीत है ।

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गीत को यहां http://www.archive.org/details/BansuriKeAdhure  जाकर डाउनलोड कर सकते हैं ।

बहरे मुतदारिक -  बहरे मुतदारिक गाने वाली बहर है विशेषकर जो बहर हमने ली है वो तो पूरी तरह से इसी प्रकार की है । मुझे अभिनव ने बताया कि कवि श्री विष्‍णु सक्‍सेना तो इसी बहर पर बहुत सुंदर मुक्‍तक पढ़ते हैं । रेत पर नाम लिखने से क्‍या फायदा । विष्‍णु सक्‍सेना बहुत मधुर गीतकार हैं । बहुत ही सुरीले कंठ से गाते हैं । इसी बहर पर उनके गीत को आप यहां पर जाकर सुनें ताकि आपको बहर समझ में आ सके ।

बहरे मुतदारिक का स्‍थाई रुक्‍न तो फाएलुन  है । लेकिन मुजाहिब बहरों में कई और रुक्‍न भी आते हैं ।  जैसे फाएलान, फएलुन, फालुन, फा, ।  इस हिसाब से देखा जाये तो कम ही रुक्‍न होते हैं उसमें । सबसे पहली बहर की तो हम बात कर ही चुके हैं जो इस बार के तरही में मिसरे के रूप में मिली है । बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम ।    फालुन और फएलुन दोनों भले ही मात्रा के हिसाब से एक बराबर रुक्‍न हैं लेकिन उनमें अंतर होता है वो क्‍या होता है उसकी चर्चा आगे करेंगें । तो बहरे मुत‍दारिक का ये सफर आगे की चर्चाओं में जारी रहेगा । फिर से वही बात कि अपनी रचनाएं जल्‍द भेजें ।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

बहुत दिनों के बाद वापसी हो रही है, काफी दिनों के बाद । दीपावली के लिये आयोजित होने वाले तरही मुशायरे के लिये मिसरा भी आज और कई सारी बातें भी ।

लगभग एक माह की अनुपस्थिति लग गई है । इस बीच काफी व्‍यस्‍तता रही । अब प्रोजेक्‍ट पूरा हो गया है और सबमिट भी कर दिया है तो आज सबसे पहले तो उन सारे लोगों से क्षमा जिनके पत्रों का उत्‍तर समय पर नहीं दे पाया । वे सारे ब्‍लाग जिन पर नियमित रूप से कमेंट करता था, उन पर कमेंट नहीं कर पाया, उनसे भी क्षमा । कई सारे लोगों से सम्‍पर्क नहीं रख पाया उनसे भी क्षमा । सबसे क्षमा । बस एक बात को संतोष है कि जो प्रोजेक्‍ट हाथ में लिया था उसको ठीक समय पर और ठीक तरीके से कर पाया । अब आगे जो कुछ भी होना है वो भविष्‍य के गर्भ में हैं । मैंने अपने हिस्‍से का काम कर दिया और अब आप सब की दुआओं और आशिर्वादों को उनके हिस्‍से का काम करना है । दूर रहना सचमुच ही पीड़ादायी होता है । और उस पर भी जब रोज ब्‍लागों को देखता था, मेल देखता था और उन पर कमेंट नहीं कर पाता था तो कसमसा कर रह जाता था । पर मैंने अपने पर बंदिश लगा कर रखी थी अर्जुन और चिडि़या की आंख वाली कहानी की तरह । उसी प्रकार से एकाग्र होकर काम करने की कोशिश तो की है लेकिन वही बात है कि अब कितना सफल रहा ये समय ही बतायेगा ।

अब सब ठीक है :  बुधवार की रात को जब वो समाचार मिला तो एक बारगी तो यूं लगा कि शरीर ही सुन्‍न हो गया है । देर रात तक उस समाचार की सत्‍यता के लिये न्‍यूज चैनल देखता रहा लेकिन वहां कुछ नहीं था । खबर थी कि सीमा पर आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में कुछ जवान शहीद हो गये हैं । ( भारतीय फौज की मर्यादाओं तथा किसी की सुरक्षा के चलते मैं समाचार को खोलकर नहीं लिख रहा हूं । । कंचन का जब फोन आया तो वो भी रो रही थी । कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्‍या किया जाये । देर रात 4 बजे कंचन का ही एसएमएस आया कि   पता चला है गोली लगी है हाथ तथा पैर में, फिलहाल आइसीयू में है । गुरूवार को इधर उधर के सूत्र हिलाने पर ज्ञात हुआ की स्‍वास्‍थ्‍य ठीक है किन्‍तु फिलहाल आइसीयू में ही है । इश्‍वर से उसके जल्‍द ठीक होने की कामना करते हैं । और अभी पोस्‍ट लिखते लिखते ही उससे बात भी हो गई है ।

बहरे मुतदारिक : बहरे मुतदारिक को यदि मैं अपनी सबसे पसंदीदा बहर कहूं तो शायद ठीक रहेगा । मेरे जैसे गलेबाज शायर जिनकी शायरी में तो दम नहीं होता लेकिन आवाज़ की पटरी पर ग़ज़ल को दौड़ा देते हैं, उनको गाई जा सकने वाली सारी बहरें पसंद आती हैं । अब जैसे इस बहर की ही बात करें बहरे मुतदारिक । इसका स्‍थाई रुक्‍न है 212 या फाएलुन । इसकी भी सालिम मुझे बहुत पसंद है । सालिम मुसमन जिसमें चार बार स्‍थाई की आवृत्ति होती है । 212-212-212-212 फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन ।  कई सारे गीत और ग़ज़लें हैं जो मुझे बहुत पसंद हैं किन्‍तु फिल्‍म गमन की वो अनोखी ग़ज़ल आपकी याद आती रही रात भर वो तो बहुत ही पसंद है । और गीत वैसा हो भी क्‍यों नहीं उससे जुड़े नाम भी तो वैसे ही थे मखदूम मोइनुद्दीन की शायरी, जयदेव  जी का संगीत, छाया गांगुली का काट देने वाला स्‍वर, मुजफ्फर अली का निर्देशन और क्‍या चाहिये । उस पर फिल्‍मी परदे की सबसे प्रभावशाली अभिनेत्री स्मिता पाटिल । वैसे इस ग़ज़ल को कई लोगों ने गाया है । आबिदा परवीन ने, अहमद जहां ने । लेकिन मुझे पाकिस्‍तानी सुगम गायिका टीना सानी की आवाज़ में ये ग़ज़ल सबसे अच्‍छी लगती है ये ग़ज़ल । उसके पीछे एक कारण ये हो सकता है कि मुझे टीना सानी की आवाज़ बहुत पसंद है विशेषकर उस गीत में गर्म सूरज की तपिश आई घटा से मुझको में । खैर टीना सानी की बात फिर कभी । अभी तो बात हो रही है बहरे मुतदारिक की । मुतदारिक को हम बहुत उपयोग करते हैं । बहुत से कवि भी इस पर गीत लिखते हैं । जैसे कवियित्री अनु शर्मा सपन का एक शेर मुझे बहुत पसंद है  जिंदा रहना है तो जिंदगी से लड़ो, आसमां से नहीं रोटियां आएंगी

खैर तो अब तक तो आप ये समझ ही गए होंगे कि इस बार हम तरही के साथ साथ बहरे मुतदारिक के रहस्‍य खोलेंगे । कई लोगों ने कहा कि मैं बहर के लिये फिल्‍मी गीत दूं । मैंने भी एक बार सोचा । लेकिन फिर लगा कि लोग मेहनत करके जो लिखेंगें वो किसी फिल्‍मी गीत की पैरोडी ही कहलाएगी । कम से कम ऐसा तो हो जो उनका अपना हो जाए । उसी कारण मैंने किसी ग़ज़ल का मिसरा देने के बजाय यूं ही बनाया हुआ मिसरा देना प्रारम्‍भ किया है । इस बार चूंकि दीपावली का तरही मुशायरा होना है तो मिसरा भी वैसा ही बनाया है ।

deepawali दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें  deepawali

बहर -  वही है मुतदारिक मुसमन सालिम । 212-212-212-212

काफिया – आते

रदीफ - रहें

समय बहुत कम है इसलिये जल्‍दी करें । दीपावली की व्‍यस्‍तता भी होनी है । बाकी आपको कोई गाना या ग़ज़ल याद आये इस बहर पर तो बतायें । चलिये मिलते हैं अगले अंक में बहरे मुतदारिक की और बातें लेकर । और दिल्‍ली के कार्यक्रम की जानाकरी लेकर ।

शनिवार, 19 सितंबर 2009

राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की स्‍मृति में आयोजित कवि सम्‍मेलन । दादा गोपालदास नीरज जी को सुनने इस कवि सम्‍मेलन में अवश्‍य पधारें ।

कल ही काम को पूरा करके बैठा हूं और आज दिल्‍ली जाना हो रहा है । रामधारी सिंह दिनकर जी की स्‍मृति में आयोजित होने वाले आयोजन में । आयोजन के अंतिम सत्र में कवि सम्‍मेलन आयोजित होता है । उसी में भाग लेने के लिये जा रहा हूं । आप सब भी पधारिये । दादा गोपाल दास नीरज जी को सुनने के लिये ।

dinkar ji

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