बुधवार, 30 जनवरी 2008

वो हाथों में लिये काग़ज़ की चिडि़या बेचने वाले, गली में अब नहीं आते खिलौना बेचने वाले, हमारी छत से ऊंचे हो गए अब उनके दरवाज़े, खुली सड़कों पे थे कल तक बताशा बेचने वाले

क्षमा चाहता हूं कि इन दिनों कुछ सुस्‍त हो गया हूं दरअस्‍ल में कुछ काम काज का तनाव है और कुछ और दूसरी परेशानियां जिनके कारण ही इन दिनों कुछ व्‍यस्‍तता बनी है हां पिछले दिनों तीन चार दिनों से तो ननिहाल में था । पूरी तरह से गांव के जीवन का आनंद ले रहा था । गांव जहां पर आज भी अलाव जलता है और देर रात तक उसके आस पास दीन दुनिया की बातें चलती हैं । गांव जहां पर आज भी टी वी का जोर उतना नहीं है । गांव जहां पर आज भी सुबह मामी और नानी मिलकर सुब्‍ह से ही दही को मथने में जुट जाती हैं और मथने के बाद सभी बच्‍चों को रात की ठंडी दो रोटियों पर एक लोंदा नेनू ( ताज़ा मक्‍खन) रख कर दे देती हैं कि नाश्‍ता कर लो । मैंने भी उस सुब्‍ह के कलेवे का खूब आनंद लिया । घर्र घर्र चलती मथानी का शोर और उसको खींचती हुई नानी को देखकर मैंने भी एक दो हाथ मारे । गांव जहां पर आज भी रात होते ही खामोशी बिछ जाती है वो खामोशी जिसकी तलाश हम शहरों में करते रहते हैं । मैं अपने ननिहाल शायद आठ साल बाद गया था । जबकि मेरा ननिहाल केवल सत्‍तर किलोमीटर की ही दूरी पर है मुझे ऐसा लगा कि मैं क्‍यों नहीं आया यहां पर पिछले इतने सालों से जबकि ऐसा भी नहीं हैं कि मैं आ ही नहीं सकता था । दरअस्‍ल में पिछले दिनों से कुछ नैराश्‍य सा आ रहा था और उसके पीछे जब कारण देखा तो ज्ञात हुआ कि मैने अपने को पिछले कई सालों से छुट्टी ही नहीं दी है सो ऐसा हो रहा है । बस निकल पड़ा इस बार अपने को थोड़ा सा मुक्‍त करने और सच बताऊं कि बहुत अच्‍छा लगा । ताज़ा बना हुआ गुड़ आपने भी खाया होगा और आप भी जानते होंगें कि उसका स्‍वाद क्‍या होता है ।

खैर जो भी हो पर ये तो है ही कि छुट्टी के बहाने स्‍वयं को ताज़ा कर लिया और अब कुछ ठीक लग रहा हैं ।

चलिये अपने पाठ की ओर चलते हैं हमने जहां पर छोड़ा था वहां से ही शुरू करते हैं । हमने पिछले सबक में तीन और चार रुक्‍नों के बारे में बात की थी और उनका नाम निकाला था कि उनको क्‍या कहा जाता है । आज हम उनसे ही कुछ और आगे चलते हैं और जानते हैं कि उनके अलावा और क्‍या हो सकता है ।

मुरब्‍बा :-  घर में भले ही आपसे कहा जाऐ कि मुरब्‍बा किसको कहते हैं तो आप एक ही बात कहेंगें कि भाई जो घर में आंवले या आम का बनता है और जिसको खाने के बाद या साथ खाया जाता है उसको मुरब्‍बा कहा जाता है । पर ग़ज़ल के संदर्भ में मुरब्‍बा अलग ही होता है । मुरब्‍बा काह जाता है उस ग़ज़ल को जिसके हर एक मिसरे में दो रुक्‍न हों और कुलमिलाकर पूरे श्‍ोर में चार रुक्‍न हों । जैसे शेर है

मिरे दिल की भी ख़बर है

तुझे ऐ बेख़बर आ तो

मि र दिल की भि ख़ बर है
तु झ ऐ बख बर आ तो
फ ए ला तुन फ ए ला तुन

दरअस्‍ल में ये छोटी बहर हैं जिसमें केवल दो ही रुक्‍न हैं फएलातुन-फएलातुन ।  दो ही रुक्‍न होने के कारण ही इस बहर का नाम है बहरे रमल मुरब्‍बा मख़बून  अब ये रमल नाम तो विशेष रुक्‍न के कारण है जिसकी बात हम आगे करेंगें मगर जो मुरब्‍बा लगा हुआ है उसके पीछे कारण है ये कि ये दो रुक्‍नी मिसरों से बनी हुई ग़ज़ल है और हर मिसरे में दो ही मिसरे आ रहे हैं ।

मुसना :-  अब आता है मुसना ये भी एक विशेष प्रकार का नाम है जो एक खास बहर को ही दिया जाता है । वह  ग़ज़ल जिसके हर एक मिसरे में केवल एक ही रुक्‍न हो उसको कहा जाता है कि ये मुसना है । अब ये मुसना जो है ये नाम के साथ ही लग जाएगा जो कि ये बातएगा कि छोटी बहर है और हर एक मिसरे में एक ही रुक्‍न है ।

मेहर हूं
सहर हूं
फऊलुन

अब इसमें क्‍या हो रहा है कि एक ही रुक्‍न हे पूरे मिसरे में और पूरा काम एक ही से चल रहा है हालंकि ये बहर मुतकारिब है पर इसके नाम में मुसना भी आएगा जो कि ये बात रहा होगा कि ये एक रुक्‍न की ग़ज़ल है । इस तरह के प्रयोग कम ही किये गये हैं क्‍योंकि उसमें स्‍वतंत्रता नहीं है ।

आज के लिये इतना ही । अब तो ऐसा लगने लगा है कि माड़साब के साथ साथ विद्यार्थी भी थक गये हैं तभी तो कुछ काम नहीं हो रहा है । खैर हम अब बहर पर आ गए हैं और धीरे धीरे इस रहस्‍य पर से पर्दा उठ रहा है क‍ि क्‍या है वो जादू जिसको बहर कहा जाता है ।

बुधवार, 23 जनवरी 2008

नदी ख़ामोश सी औंधी पड़ी है, यहां माहौल में कुछ गड़बड़ी है, लगा है कांपने तालाब का जल, किसी ने फैंक दी क्‍या कंकड़ी है

बहर की बातें हम इन दिनों प्रारंभ कर चुके हैं और कुछ थोड़ा बहुत काम हमने किया है उस पर ये जानने का प्रयास किया है कि किस प्रकार से वो काम होता है । रविवार की रात से मेरे शहर सीहोर में सांप्रदायिक तनाव है उस रात तो एकबारगी ऐसा लगा था कि अब दंगा हुआ ही बस पर कुछ लोगों की समझदारी और कुछ प्रशासन की चुस्‍ती काम आ गई और रात बारह बजते बजते माहौल ठीक हो गया । उसी कारण मैंने आज मुनीर बख्‍श आलम की ग़ज़ल की ये लाइनें यहां पर लगाईं हैं । आलम जी की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि हिन्‍दी पर भी काम करते हैं और उर्दू पर भी इनकी एक कृति है यथार्थ गीता जो कि इन्‍होंने उर्दू में लिखी है गीता की टीका का उर्दू में अनुवाद है पर है देवनागरी लिपी में ही । अद्भुत है वो वो इंटरनेट पर भी सुलभ है अवश्‍य पढ़ें ।

पिछला पोस्‍ट कुछ निराशाजनक था कुछ तनाव में था मैं और उसी का प्रभाव पोस्‍ट में भी चला गया । पोस्‍ट के बाद पहले अभिनव फिर रिपुदमन पचौरी और फिर राकेश खंडेलवाल जी के फोन आए तो मन भीग गया । अब कुछ ठीक लग रहा है ।

बहर :- बहर के बारे में मैं कुछ तो प्रारंभ कर चुका ही हूं आज कुछ और आगे की बातें करते हैं ।बातें ये कि किस प्रकार से रुक्‍नों की तरतीब के आधार पर आप किसी बहर का नाम निकालते हैं कि ये वही बहर है और फिर उस पर काम प्रारंभ करते हैं कि अब आगे क्‍या होना है । चलिये सबसे पहले तो हम ये ही जानने का प्रयास करते हैं कि रुक्‍नों की संख्‍या के आधार पर बहरों के नाम किस प्रकार से तय किये जाते हैं । एक बात और मैं बताना चाहता हूं कि शेरों को कहीं पर बैत भी कहा जाता है । और उसी के कारण भोपाल और उसके आस पास के इलाकों में एक प्रकार का मुकाबला किया जाता था जिसको चारबैत कहा जाता था । दरअस्‍ल में डफ लेकर दो टोलियां बैठ जातीं थीं और फिर सवाल जवाब के क्रम में ये मुकाबला होता था ।

मुसमन :- यदि किसी मिसरे में कुल मिलाकर चार रुक्‍न हों अर्थात पूरे शेर में आठ रुक्‍न हों तो उसको कहा जात है कि ये मुसमन बहर है । अब उसका नाम और कुछ होगा पर उसको एक उपनाम तो मुसमन मिल ही चुका है और मुसमन ये बताता है कि आपके शेर के ही मिसरे में चार रुक्‍न हैं ।

उदाहरण :-

ना ख़ुदा है हमसे राज़ी ना ये बुत ही हमसे ख़ुश हैं

रहे यूं ही बेठिकाने ना इधर के ना उधर के

1 2 3 4
फा ए ला तु फा ए ला तुन फा ए ला तु फा ए ला तुन
ना खु दा ह हम स रा जी ना य बुत ह हम स खुश हैं
रह यू ह बे ठि का ने ना इ धर क ना उ धर के

अब इसको देखें तो कुल मिलाकर चार रुक्‍न हैं फाएलातु-फाएलातुन-फाएलातु-फाएलातुन चूंकि चार रुक्‍न हैं अत: ये तो तय हो ही गया कि इसके नाम में और के साथ साथ मुसमन शब्‍द का भी प्रयोग करना होगा और मुसमन का प्रयोग होते ही आप समझ जाऐंगें कि चार रुक्‍न वाले मिसरे हैं इस ग़ज़ल में । इस बहर का नाम वैसे है बहरे रमल मुसमन मशकूल अब ये रमल और मशकूल क्‍या है ये बात हम बाद में देखेंगें । पर ये जान लें कि इसके नाम में अब मुसमन लगेगा । दरअस्‍ल में बहरों के नाम बड़े वैज्ञानिक तरीके से रखे गये हैं ताकि नाम सुन कर ही आपको समझ में आ जाए कि कितनी मात्रा वाली ग़ज़ल और किस तरतीब में जमी हुई मात्राओं की बात हो रही है ।

मुसद्दस :- वह शेर जिसके हर मिसरे में तीन रुक्‍न आ रहे हों तो उसको कहा जाता है कि ये बहर मुसद्दस बहर है । अब ये बात अलग है कि उस बहर का वास्‍तव में नाम कोई और ही होगा पर उसे एक उपनाम और भी मिलेगा जिसको कहा जाएगा मुसद्दस ।

उदाहरण :-

तेरे शीशे में मय बाकी नहीं है

बता क्‍या तू मेरा साकी नहीं है

1 2 3
मु फा ई लुन मु फा ई लुन फ ऊ लुन
ति रे शी शे म मय बा की न हीं है
ब ता क्‍या तू मि रा सा की न हीं है

अब यहां पर क्‍या हो रहा है कि रुक्‍नों की संख्‍या गिर कर तीन हो गई है और ये जो तीन रुक्‍न हैं मुफाईलुन-मुफाईलुन-फऊलुन उनके आधार पर ही इस ग़ज़ल को कहा जाएगा कि ये मुसद्दस बहर परहै । नाम तो इसका बहरे हजज़ मुसद्दस महजूफ अल आखिर है पर इसके नाम में लगा हुआ जो मुसद्दस शब्‍द है वो हमे ये बतात है कि इस बहर में तीन रुक्‍नों वाले मिसरे हैं । बहर किसी भी प्रकार की हो अगर उसके नाम के साथ लगा है मुसद्दस तो ये जान लें कि रुक्‍न तीन हैं ।

आज के लिये इतना ही बहुत है कल आगे का काम करेंगें । इन दिनों बहुत ठंड पड़ रही है और एक मेरा जो नियम है वो आज मुझे लग रहा था कि बरसों का नियम आज टूटा । मैं सुबह पांच बजे उठकर साल भर ही ठंडे पानी से स्‍नान करता हूं पर आज की ठंड तो कुछ ऐसी थी कि मुझे एक बाररगी तो सोचना ही पड़ा कि गरम पानी ले लूं क्‍या फिर याद आया कि प्रतिकूल परिस्थिति में ही तो परीक्षा होती है । परीक्षा भी मानो आज ही कड़ी थी रोज तो ट्यूबवेल का पानी होता था पर आज तो वो भी नहीं था रात का रखा हुआ बर्फिला पानी था । खैर स्‍नान भी हुए और जम कर हुए । पर इस बार की ठंड तो बाप रे बाप ।

सोमवार, 21 जनवरी 2008

बहारों का आया है मौसम सुहाना, नए साज़ पर कोई छेड़ो तराना, हवा का तरन्‍नुम बिखेरे है जादू , कोई गीत तुम भी सुनाओ पुराना

बहरों के बारे में प्रारंभ करने में काफी समय लग रहा है और इसके पीछे कई सारे कारण हैं कुछ अपने कुछ समय के । खैर शनिवार को अभिनव का फोन आया और काफी समय तक बात होती रही काफी सारी बातें हुईं । एक बात जो मुझको लग रही है कि तकतीई को लेकर कुछ लोग उलझन में हैं । जैसा कि अभिनव ने ही बताया कि वो अब जब ग़ज़लें लिखने बैठते हैं तो पहले मात्राओं को संकट सामने आता है सो विचार हवा हो जाते हैं । एक बात मैं यहां कहना चाहता हूं कि अगर आप ग़ज़ल लिखने बैठे हैं तो उस समय आप को दो प्रकार से काम करना होगा एक रा मटेरियल तैयार करना और फिर उस रा मटेरियल को तैयार कर गुड्स बना देना । ठीक वैसे ही जैसे कि ऐ भवन का निर्माण करते समय किया जाता है कि पहले तो ढांचा तैयार किया जाता है और फिर उसके बाद में उस ढांचे पर रंग रोगन कर उसको तैयार कर दिया जाता है । हमें भी वहीं करना है जब आपको अपनी पहली लाइन मिल जाए तो उसे काग़ज़ पर लिख्‍ा लें उसकी तकतीई कर लें और उसकी एक धुन बना लें । उसके बाद भूल जाएं कि तकतीई क्‍या है क्‍योंकि अभी तो आपको केवल रा मटेरियल ही तैयार करना हे और विचार ग्रामर से दूर होते हैं अगर आप ग्रामर को पकड़ेंगें तो विचार भाग जाएंगें और अगर विचार को थामेंगें तो ग्रामर वहां नहीं चलेगी । विचार तो बहती हुई नदी की तरह होते हैं जिसको किसी भी ग्रामर की जरूरत नहीं होती है उसका काम तो बहना है । इसलिये जब विचार आ रहे हों तो उनको अनवरत आने दें भूल जाऐं कि क्‍या बहर है और क्‍या तकतीई है । लिखते जाएं बस लिखते जाएं । और एक बार आपको लगें कि आपके पास काफी रा हो गया है तो फिर तकतीई को उठाऐं और एक एक शेर को उस पर कसने का काम करें । जहां पर जेसी भी गुंजाइश हो उस शेर के साथ वैसे ही करें क्‍योंकि अब विचारों ने अपना काम खत्‍म कर दिया और अब तो जो काम हो रहा है वो ग्रामर का हो रहा है । विचार तो आपके अपने थे पर ग्रामर तो वही है जो सदियों से चली आ रहा है । तो अब कोई गुंजाइश नहीं है । अपने रा मटेरियल को अब ग्रामर का पलस्‍तर लगा कर भवन का स्‍वरूप प्रदान करें ।

आज मैंने देवी नागरानी जी की ग़जल मुखड़े में लगाई है । वैसे मेरा एक मिसरा है जो मैं मिसरा से आगे ही कभी नहीं लिख पाया अगर आप लोग कुछ कर पाएं तो कर के बताएं ।

बता तरकश में तेरे तीर कितने और बाकी हैं

ये मिसरा यूं ही काफी दिनों पहले आ गया था पर इसका ना तो सानी मिसरा ही बन पाया ग़ज़ल तो दूर की बात है ।

बहर :-  बहर की अगर बात करें तो बहर दरअसल में ग़ज़ल की नियमावली है जिस पर आपको चलना है । हमने अभी तक रुक्‍न देखे और ये भी देखा कि रुक्‍नों से मिलकर ही ग़ज़ल बनती है । पर एक बात तो ये भी है कि रुक्‍नों का विन्‍यास या उनकी तरतीब तो एक समान ही होता है । तो ये जो तरतीब है ये भी तो किसी ने खोजी ही होगी । और जैसा कि मैं पहले ही बात चुका हूं कि ग़ज़ल का पिंगल अरबी फारसी से लिया गया है और इसीलिये बहरों के जो नाम हैं वो भी वहीं के ही हैं । हम जो फाएलातुन  वगैरह करते हैं वो भी तो फारसी का ही है । अब जैसे हमने कहा फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन  तो ये तो एक क्रम हो गया पर इस क्रम का भी एक नाम होगा और वो नाम उस के नाम पर होगा जिसने उसकी खोज की होगी ।

इस बहर का नाम है बहरे रमल मुसमन सालिम ।  चलिये अभी तो हम ने बहरों की शुरुआत भी नहीं की है फिर भी ये जान लें कि इस नाम में ये तीन तीन चीजें क्‍या हैं  रमल, मुसमन, सालिम ।  दरअस्‍ल में नाम तो इसका केवल रमल ही है पर बाकी की दो चीजें भी अलग अलग बातें कह रहीं हैं । जैसे मुसमन ये जो शब्‍द है ये किसी भी बहर के नाम में इस बात का सूचक होता है कि बहर में चार रुक्‍न हैं । मतलब अगर नाम में मुसमन है तो आप ये जान लें कि मिसरे में चार रुक्‍न ही होंगें । जैसे ऊपर हैं । अब आया सालिम तो ये भी एक अलग तरह की बात कह रहा है । आप ऊपर का तरतीब देखें फाएलातुन- फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन   अब इसमें क्‍या विशेषता नज़र आ रही है । ये कि चारों ही रुक्‍न एक ही प्रकार के हैं चारों ही फाएलातुन हैं । इसको कहा जाता है सालिम बहर । अर्थात जब मिसरे में चार रुक्‍न हो तो वो मुसमन होता है और जब चारों ही रुक्‍न एक ही प्रकार के हों तो उसको कहा जाता है सालिम । मतलब नाम तो बहर का रमल  ही है पर उसके आगे मुसमन और सालिम  तो केवल ये बताने के लिये लगाए गए हैं कि बहर में चार रुक्‍न हैं और चारों ही रुक्‍न एक ही प्रकार के है। अगर बहर में तीन या दो रुक्‍न हों तों उसका नाम अलग हो जाएगा मतलब फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन  का नाम अलग होगा क्‍या होगा उसकी बातें कल होंगीं ।

शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

माड़साब कई दिनों से बुखार में हैं और इसीलिये कक्षाओं का नागा हो रहा है । दैनिक भास्‍कर ने माड़साब पर विशेष समाचार दिया है जो यहां लगा है

bhaskar

कई दिनों से तबीयत कुछ ठीक नहीं है मन और तन दोनों में ही समस्‍याएं चल रहीं हैं मन में अशांति है और तन में वयरल फीवर है । कभी कभी ऐसा हो जात है कि मन और तन दोनों एक साथ ही बीमार होते हैं खैर एक बात अच्‍छी हुई है कि दैनिक भास्‍कर ने माड़साब पर एक विशेष समाचार लगाया है और वो भी अच्‍छी बात शीर्षक से ही लगाया है जिसमें माड़साब की ग़जल़ की क्‍लासों के बारे में जानकारी दी गई है । मित्रों मैं जानता हूं कि बहरों के बारे में जानने के लिये आप सभी उत्‍सुक हैं पर कुछ मन की अशांति ने विवश कर रखा है । कभी कभी ऐसा लगता है कि जैसे जीवन कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है । निराशा छाती है और फिर मन डूबने सा लगता है । मगर मैं जानता हूं कि निराशा से तो लड़ना ही होगा और उससे बाहर भी आना होगा क्‍योंकि जीवन कायरों और कमजोरों के लिये नहीं है । मगर क्‍या करूं कभी कभी होता है ऐसा कि अंधेरा छाने लगता है और उजाले की कोई किरण नहीं नज़र आती तो ऐसा लगता है अब तो सुब्‍ह होगी ही नहीं ।

खैर अभिनव बहुत अच्‍छा काम कर रहे हैं पिछले दिनों एक ग़ज़ल की तकमीई भेजी औश्र बिल्‍कुल सटीक भेजी मेरी ओर से उनको बधाई ।

रिपुदमन ने भी कुछ अच्‍छा काम करके भेजा है

जया नर्गिस जी की एक ग़ज़ल के मतले का संभावित बहर:-
याद जब दिल से जुदा हो जाएगी
ज़िंदगी इक हादिसा हो जाएगी
२१२२ ~ २१२२ ~ २१२
२१२२ ~ २१२२ ~ २१२

अजय कानोडिया ने भी कैफी आज़मी जी की ग़ज़ल फ़िल्म अर्थ के इस शेर की तकतई करने की कोशिश की है
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
११ ११२ २ २१२ १२ २
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
११ ११ २ २२ १२ १२ २

प्रयास अच्‍छा है ग़लती है कोई ठीक कर सके तो ठीक कर के प्रस्‍तुत करें ।

बहुत जल्‍द ही फार्म में आकर काम शुरू कर दूंगा ये मेरा वादा है अपनी शुभकामनाएं अवश्‍य दें कि मैं अपने अंदर की निराशा से लड़ सकूं । क्‍योंकि आपकी शुभकामनाएं ही मेरा संबल बनेंगीं ।

सोमवार, 14 जनवरी 2008

अवधेशानंद गिरी जी ने कविता सुनाई माड़साब को और फिर कहा अब आप सुनाइये

कविता तो हर एक के अंदर है कौन उसको सुर दे दे बस इतना सा ही फर्क होता है । अवधेशानंद गिरी जी के प्रवचन सीहोर के निकट आष्‍टा में चल रह हैं । माड़साब अपने कार्य ( पत्रकारिता ) के चलते वहां पहुंचे तो परिचय हुआ और जब श्री अवधेशानंद जी को किसी ने माड़साब के बारे में बताया कि ये कवि हैं तो उन्‍होंनें तुरंत अपनी कुछ पंक्तियां पढ़ीं जो सोनेट शैली में थीं । अवधेशानंद जी ने कहा

पहले जीवन के ढंग में तुम भी थे, अब जीने का हर ढंग तुम्‍हारा है

और

तुम्‍हारा जिक्र, जैसे इत्र

अवधेशानंद जी ने अपनी कविता सुनाने के बाद माड़साब से कहा अब आप भी सुनाइये तो माड़साब ने अपनी भारत कहानी  की कुछ पंक्तियां गा दीं । अच्‍छा लगा जानकर कि वे भी कवि हैं ।

खैर तो हम बहरों पर आ गए हैं और ये जानने केा प्रयास कर रहे हैं कि बहर क्‍या होती है । सबसे पहले तो ये जान लें कि बहर की परिभाषा क्‍या है । शे'र में रुक्‍नों की एक निश्चित तरतीब को बहर कहा जाता है । रुक्‍नों के एक पूर्व निर्धारित विन्‍यास को बहर कहा जाता है । और जिन भी महोदय ने उस तरतीब उस विन्‍यास का पता लगाया उन्‍हीं के नाम पर उस बहर को नाम पड़ा है । अब इसमें एक बात ये है कि चूंकि ग़ज़ल फारसी की मूल विधा है अत: ज्‍यादातर बहरों के नाम फारसी विद्वानों के नाम पर ही हैं । जिस भी विद्वान ने जिस तरतीब का पता लगाया और पेश किया वो बहर उनके नाम पर हो गई ।

ग़ज़ल में जैसे कि हम पहले देख चुके हैं शब्‍द होते हैं शब्‍दों से बनते हैं रुक्‍न रुकनों से बनते हैं मिसरे मिसरों से बनते हैं शे'र  और शे'रों से बनती है पूरी ग़ज़ल । अर्थात इंटों से बनती हैं दीवारें और दीवारों से बनता है घर । रुक्‍न का तो विन्‍यास मतले के मिसरा उला में आपने लिया वो ही आपकी ग़ज़ल की बहर हो गई है और अब आपको उसको ही लेकर चलना है । विन्‍यास का मतलब ये हैं कि आपने मिसरा उला में एदि कहा है कि

मिट गए इश्‍क़ में इम्तिहां हो चुका  तो आपने कहा है 212,212,212,212 या कि फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन 

अब ये जो विन्‍यास है ये आपकी बहर हो गई है अब मिसरा सानी से लेकर ये बहर आपको पूरी ग़ज़ल में निभाना हे ये आप पर एक बंदिश है ।  बस सितम हम पे ए आसमां हो चुका  कह कर आप उसको निभाएंगें और निभाते ही चलेंगें ।

ग़ज़ल के बारे में ये बात मशहूर है कि इसकी एक पंक्ति आपकों ऊपर से मिलती है और बाकी आपको बनानी पडद्यती हैं । वो जो आपको मिलती है आपको सबसे पहले उसकी तकतीई करनी है ये जाने के लिये कि उसका विन्‍यास क्‍या है और उसकी बहर क्‍रूा है । जब तकतीई हो जाए तो फिर आप उस पर काम शुरू करें । कई बार हम क्‍या करते हैं कि पहले तो पूरी ग़ज़ल लिख लेते हैं और बाद में बहर निकालने का काम करते हैं । ये कुछ ठीक नहीं हैं क्‍योंकि आपको पूरी मेहनत फिर से करनी होती है । अत: करें ये कि पहले तो मतले के मिसरा उला की बहर निकालें तकतीई करें ऐसे

मिट गए इश्‍ क में इम ति हां हो चु का
2   1   2 2  1  2 2   1   2 2   1   2
फा ए लुन फा  ए लुन  फा ए लुन फा ए लुन

ये लिख कर काग़ज़ के ऊपर बना लें और अब ये आपका नीति निर्धारक हो गया है आने बाली सारे मिसरे आपको इन पर ही चलाने है ये याद रखें । ये सबसे ज़रूरी काम हैं अगर आपने तकतीई करना सीख लिया तो आपका आधा काम तो हो जाएगा । तकतीई करने के बाद उसको सामने रखें ताक‍ि आपको याद रहे कि आपकी बहर क्‍या है । उसके बाद एक एक मिसरा निकालें उसे तकतीई के तराज़ू पर तौलें और ग़ज़ल में शामिल करते जाएं । ये ही सबसे सही तरीका है ।

कल आप लोग कुछ तकतीई निकाल कर बताएं ताकि हम और आगे बढ़ सकें ।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2008

बहर को लेकर जो भी उलझनें हैं वो केवल इसलिये हैं क्‍योंकि ग़ज़ल की बहर को लेकर आज तक उस तरीके से नहीं समझाया गया जो आसान हो ।

चलिये बहुत मौज मस्‍ती हो गई अब हम चलते हैं अपने उस काम की ओर जिसको हम छोड़ आए थे । नया साल माथे पर सवार हो गया हे और हमारा संकल्‍प है कि हम इस नए साल में वो सब कुछ कर लें जो पिछले साल में हम नहीं कर पाए थे । ग़जल को लेकर हमने काफी काम किया और काफिया रदीफ रुक्‍न जैसे शब्‍दों के अर्थ जानने का काम हमने पिछले साल में किया । मुझे प्रसन्‍नता है कि कई लोग अब बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं । कुछ लोग जो बाद में कक्षाओं में आना शुरू किये हैं उनके लिये थोड़ा मुश्किल हो रही है पर उनके लिये भी एक सूचना है कि वे लोग प्रारंभ से ग़ज़ल सीखने के लिये यहां पर   जा सकते हैं जहां पर आने वाले सप्‍ताह से माड़साब की ग़ज़ल की कक्षाएं नए सिरे से प्रारंभ हो रहीं हैं और जाहिर सी बात हैं कि यहां पर प्रारंभ से शुरू होने का मतलब हैं बिल्‍कुल ही प्रारंभ से अत: वहां पर आप ठीक से समझ पाऐंगें ।

बहरों को लेकर मैंने जो पहले ही कहा था कि बहर दरअस्‍ल में ग़ज़ल का व्‍याकरण है जो कि ग़ज़ल को मीटर में बनाए रखता है । और इसी कारण ऐसा होता है कि किसी भी ग़ज़ल को कोई भी गायक गा देता है और उसको कोई भी परेशानी नहीं होती है । ऐसा इसलिये होता है कि ग़ज़ल तो पहले से ही रिदम में होती है और ये रिदम ग़ज़ल में स्‍वत: निर्मित होती है । स्‍वत: निर्मित इसलिये क्‍योंकि आपने तो ग़जल़ को एक तय बहर पर लिखा है । तय बहर का मतलब होता है पहले से तय मीटर और ऐसे में आप चाहें न चाहें अगर आपने बहर का ध्‍यान रखा है तो आपकी ग़ज़ल में लय तो पूर्व निर्धारित है ।

लय को ही सारा खेल है जीवन हो याकविता अगर उसमें लय नहीं है तो फिर तो कुछ है ही नहीं । किसी पुराने गीत की पंक्तियां हैं चलते हुए जीवन की रफ्तार में इल लय है इक राग में इक सुर में संसार की हर शै: है । तो उस लय का पकड़ने की विधा ही है बहर । आप जो कुछ भी कह रहे हैं उसको पूरी तरह से लय में कह सके तो समझिये कि आप बहर में हैं । हालंकि बहर को लकर एक बात है कि चूंकि यहां पर तोल तोल कर काम किया जाता है इसलिये यहां पर ज़रा सी भी गुजाइश नहीं है कि आपको छूट मिल सके । बहर को लेकर कई सारी बाते हैं जैसे ये कि कई बार एक या दो शे'र देखकर ये पता नहीं चलता है कि इस ग़ज़ल की बहर क्‍या है । और ऐसा होता है दीर्घ के लघु  होने के कारण अब इस बात को कौन तय करेगा कि दीर्घ गिरा है अथवा नहीं । और पूरी ग़जल़ अगर सामने हो तो तो तय हो जाएगा कि हां दीर्घ गिरा हे अथवा नहीं गिरा है । अब पूरी ग़ज़ल से कैसे पता चलेगा कि गिरा है या नहीं तो उसके लिये एक उदाहरण देंखें ।

सर झुकाओगे तो पत्‍थर देवता हो जाएगा

2122 2122 2122 212

अब यहां पर ये बात कौन तय करे कि तो  शब्‍द की गिनती दीर्घ में करनी है या लघु में । तो उसके लिये देखें दूसरा मिसरा ।

इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा

2122 2122 2122 212

अब क्‍या हुआ इसमें कि हमने देखा कि पहले मिसरे में जहां पर  तो  आया था वहां पर दूसरे मिसरे में   आ रहा है जो कि एक लघु है । बस यहां से तय हो गया कि  तो  गिरा हुआ है । कई बार ऐसा होगा कि मिसरा उला और सानी दोनों में ही वो शब्‍द समान नज़र आएगा उस स्थिति में हम आगे के शेरों को देखेंगें और बहर का अनुमान लगाऐंगें । इसीलिये उस्‍ताद लोग कह गए हैं कि कभी भी केवल मतला या एक श्‍ोर से अनुमान मत लगाओं के बहर क्‍या है । उस्‍तादों की मदद कई बार तब भी लेनी होती है जब बहर में कोई रुक्‍न परेशानी पैदा कर रहा हो और समझ में ही नहीं आ रहा हो कि दीर्घ है या फिर लघु है । उस्‍तादों को चूंकि बहरों और धुनों दोनों का ज्ञान होता हे अत: वे दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं ।

तो बहर का अर्थ होता है पूर्व निर्धारित लय जिस पर आपको अपने शब्‍दों के नगीने जमा कर एक ग़ज़ल तैयार करनी है । 

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

टिप्पणियों के महानगर के जो इकलौते शहज़ादे थे ।। लिखते थे दो शब्द, प्रेरणा वाले वे सीधे सादे थे ।। जाने कितने चिट्ठाकारों के वे रहे बने उत्प्रेरक ।। कहाँ खो गये ? वैसे उनके लिखते रहने के वादे थे ।।

ये जवाब आया है श्री राकेश खंडेलवाल जी का श्री समीर लाल जी के लिये जिनको पूरा का पूरा ब्‍लागिंग जगत बहुत ही शिद्दत के साथ याद कर रहा है । और ये जवाब आया है मेरी इस बात के जवाब में जो मैंने कही थी '' समीर जी से मैंने भी कहा है कि वे लिखना प्रारंभ कर दें उनके बिना सूना है ब्‍लागिंग का पनघट यूं लग रहा है जैसे पनघट की सबसे नटखट पनिहारनि ने घर में नल लगवा लिया है और पनघट पर आना छोड़ दिया है । ''

1 

(श्री लक्ष्‍मीनारायणराय का काव्‍य पाठ)

राकेश जी जाहिर सी बात है एक बेहतरीन कवि हैं सो पनिहारिन को उन्‍होंने अपनी कविता के माध्‍यम से पुकारा है कि वो पनिहारिन घर का नल छोड़ कर वापस पनघट पर आना प्रारंभ कर दे क्‍योंकि पूरा का पूरा पनघट उसके बिना सूना ही नजर आ रहा है । कई लोगों के मेल मिल रहे हैं जो चाह रहे थे क‍ि वे भी सीहोर के आयोजन में शामिल होते । मुझे पहले से नहीं पता था नहीं तो मैं बाकायदा सभीको आमंत्रण दे देता आने का खैर मुझे अफसोस है ।

2

(उड़नतश्‍तरी का काव्‍य पाठ)

आने वाला जो भी कार्यक्रम हम करने जाएंगें वो ब्‍लागिया कवियों का कवि सम्‍मेलन ही होगा औश्र जो आनलाइन ना होकर सीहोर में होगा । सीहोर  के बारे में मैं बता दूं कि सीहोर एक कवि सम्‍मेलनों की नगरी है यहां के कवि सम्‍ममलनों की पूरे भारत में एक समय धाक रही है और बच्‍चन जी सुमन जी भरत व्‍यास जी जैसे दिग्‍ग्‍ज नामों ने यहां पर कविता पाठ किया है और सीहोर के श्रोताओं को सराहा है । यहां का श्रोता अच्‍छे काव्‍य का शौकीन है । और आज भी हम लोग परंपरा को सहेज कर रखने का काम कर रहे हैं ।

3

(और ये रहे माड़साब कविता पढ़ते )

आने वाले समय में हम एक और आयोजन करने जो रहे हैं और वे आयोजन होगा शिवना प्रकाशन की अगली पुस्‍तक का विमोचन । अब ये पुस्‍तक किसकी है ये जानने के लिये थोड़ा सा इंतजार कीजिये क्‍योंकि जब आप नाम सुनेंगें तो आप खुद भी कह उठेंगें कि इस कार्यक्रम में तो हमको भी आना ही आना हे ।

4

(श्री सुभाष जोशी जी की कविता)

मैं चाहता हूं कि उस आयोजन में कंचन जी सुनीता जी नीरज जी नागरानी जी समीर जी आदि सब आएं । एक बार मैं चाहता हूं कि ये सब भी आकर देखें क‍ि सीहोर के लोग कविता की परंपरा को किसा प्रकार निभाते हैं ।

5 

(श्री ओमप्रकाश तिवारी की कविता)

आज मैं कवि सम्‍मेलन की चित्रावली दे रहा हूं और कल से प्रारंभ हो जाएगी ग़ज़ल की कक्षाएं जिसमें अब तो बहर की जानकारी प्रारंभ भी हो चुकी है । ( किसी ने अभिनव  को देखा है क्‍या कई दिनों से कक्षा में आ नहीं रहा है कहीं बीमार तो नहीं हो गया है । )

6

(श्री द्वारिका बांसुरिया जी )

बहरों के बारे में बताने से पहले मैं ये भी बता देना चाहता हूं कि अब हमारी कक्षाओं का भी दबे जबान में विरोध हो रहा है और लोग कहने लगे हैं अब हमारे बारे में भी । लेकिन मैं तो एक ही बात जानता हूं कि विरोध तो तभी होता है जब आप कुछ करते हैं अगर आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं तो आपका विरोध कोई क्‍यों करेगा । मेरे गुरू का कहना है कि तेज रु्तार से जाती बस से सड़क के किनारे लगे पेड़ कांपते ही हैं ।

8

(श्री विष्‍णु फुरसतिया जी )

और मैंने तो संकल्‍प ले रखा है कि मैं अपने छात्रों और छात्रओं को ग़ज़ल के मास्‍टर बना कर ही छोड़ूंगा । अभिनव ने एक बात बहुत अच्‍छी कही थी जो मुझे अभी तक याद है उसने कहा था कि आप हम लोगों को इतना तराश दें कि फिर उस ज्ञान को हम भी आपके साथ ही आने वाली पीढ़ी को बांट सकें । कई सारी विद्याएं केवल इसलिये ही खत्‍म हो गईं कि जो जानते थे उन लोगों ने उस विद्या को बांटा नहीं अपने साथ ही ले गए ।

7

(श्री रमेश गोहिया जी का काव्‍य पाठ)

हिंद युग्‍म पर भी संभवत: अगले ही सप्‍ताह से कविता की कक्षाएं प्रारंभ हो रहीं हैं माड़साब की पर वहां पर रोज ना होकर सप्‍ताह में दो दिन का समय दिया हे माड़साब ने और वहां पर पद्धति समस्‍या और समाधान वाली रहेगी ।

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( ये पढ़ेंगे कविता तो मैं करूंगा हूट, कवि रमेश हठीला और श्रोता सोनू की नोंक झोंक )

बुधवार, 9 जनवरी 2008

समीर लाल जी के वीडियों लोगों ने देखना चाहे हैं वैसे किसी प्रोफेशनल विडीयोंग्राफर ने तो नहीं पर मेरे एक छात्र ने कुछ वीडियों मोबाइल से लिये हैं

समीर लाल जी ने सीहोर मे क्‍या पढ़ा ये जानने के लिये सभी उत्‍सुक हैं और ये जानना चाह रहे हैं कि आखिर समीर लाल जी ने सीहोर में क्‍या रंग जमाया । वैसे कोई प्रोफेशनल वीडियोग्राफर ने तो नहीं पर हां मेरे एक छात्र ने अपने मोबाइल से कुछ शाट लिये थे वो ही यहां पर दे रहा हूं ।
पहला वीडियो

http://www.youtube.com/watch?v=TYt9gu7rBXw

दूसरा वीडियो

http://www.youtube.com/watch?v=QCIQyWNcyzA

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

और आज सुनिये रपट कवि सम्‍मेलन की जो आयोजित किया गया था शिवना प्रकाशन द्वारा समीर लाल जी के सम्‍मान में ( उड़न तश्‍तरी के ब्‍लाग पर आते ही मेरे ब्‍लाग पर भी टिप्‍पणियों की भरमार , जय हो उड़न तश्‍तरी की )

 

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हमारे देश में परंपरा है कि स्‍वागत के लिये हम वो ही करते हैं जो हमारे अतिथि का विषय है या जिसमें वो पारंगत है । मैं जहां भी जाता हूं तो दो काम होते हैं पहला तो ये कि मेरे जानने वालों को पता है कि में चटोरा हूं सो भांति भांति के व्‍यंजनो से मेरा स्‍वागत होता है और फिर कविता तो होती ही है । भारत की ये परंपरा काफी अच्‍छी लगती है कि मेहमान का उसी प्रकार स्‍वागत करों जिस प्रकार उसे अच्‍छा लगे सो समीर जी के स्‍वागत के लिये हमने सीहोर के कवियों ने एक कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया ।

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आयोजन में सीहोर के सभी कवि एकत्र हुए । और एक सफल आयोजन हुआ जो रात तक चलता रहा । समीर जी एकबारगी तो एक कवि को मिल रही दाद को देख कर घबरा गए पर मैंने उनको समझाया कि यहां पर जो श्रोता हैं उनको श्रोता की जगह सरोता कहा जाता है । ये कविता का अन्रद तो लेते हैं साथ ही घटनाओं का भी आनंद लेते हैं । आगे जो रपट है वो थोड़ा तकनीकी भाषा में है क्‍योंकि उसे पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिये भी जाना है ।

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शिवना प्रकाशन द्वारा कनाडा के अप्रवासी भारतीय कवि श्री समीर लाल के सीहोर आगमन पर उनके सम्‍मान में एक कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया गया । इस कवि सम्‍मेलन की अध्‍यक्षता स्‍थानीय शासकीय महाविद्यालय में पूर्व में हिंदी की विभागाध्‍यक्ष रहीं तथा वर्तमान में कालापीपल कालेज की प्राचार्य डा श्रीमती रामप्‍यारी ध्रुवे ने की । मुख्‍य अतिथि के रूप में कनाडा से पधारे कवि श्री समीर लाल उपस्थित थे । संचालन पंकज सुबीर ने किया । बड़ी संख्‍या में उपस्थित श्रोताओं के बीच ये सम्‍मेलन देर रात तक चलता रहा ।

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सीहोर के ही युवा कवि जोरावर सिंह ने मां सरस्‍वती की वंदना '' सरस्‍वती वर दे चेतना का स्‍वर दे, वीणा की झन झन जग जीवन में भर दे '' के साथ सम्‍मेलन का शुभारंभ किया । उसके पश्‍चात शहर की युवा कवियित्री पूजा जोशी ने पत्‍थर  शीर्षक से अपनी मार्मिक रचना  काश पत्‍थर तुम पत्‍थर न होते '' सुनाकर सम्‍मेलन को शुरूआत दी ।

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व्‍यंग्‍यकार बृजेश शर्मा की व्‍यंग्‍य रचना '' काफी सोच समझ कर एक गधा चुनाव में खड़ा हो गया''  को श्रोताओं ने जम कर सराहा । वरिष्‍ठ शायर असगर ताज़ ने अपनी ग़ज़लों को पाठ किया  '' दिल में तारीकियों के पहरे हैं, फिर भी हम आफताब हैं लोगों''  जैसे शेरों को खूब पसंद किया गया । सीहोर के वरिष्‍ठ कवि हरिओम शर्मा दाऊ ने कविता ''लोग तिनके का सहारा ले पार लग गए एक हम हैं कि कश्‍ती में बैठे रहे और डूब गए'' का पाठ ओजस्‍वी अंदाज में किया ।

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सृजन के संस्‍थापक रमेश गोहिया ने आंसू पर अपनी अनूठी रचना  ''आंसू हैं अनमोल रतन रे आंसू का है देश नयन रे'' पढ़कर भाव विभोर कर दिया । गीतकार रमेश हठीला ने अपना सुप्रसिद्ध गीत '' केश यमुना की लहर रूप तेरा ताजमहल, बनाने वाले ने ली तुझसे अजंता की शकल''  को सुमधुर कंठ के साथ पढ़ा । विष्‍णु त्रिवेदी फुरसतिया ने स्‍वर्ग के मंत्रीमंडल की बानगी अपनी कविता ''राष्‍ट्रपति शिव कहलाते हैं, ऊर्जा मंत्री सूर्य हैं ''  में कुशलता से प्रस्‍तुत की ।

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द्वारिका बांसुरिया ने अपने मुक्‍तक '' विष विश्‍वास को दे रहा है आदमी''  में वर्तमान का कुशलता से चित्रण किया । पंकज सुबीर ने भारत माता की कहानी '' ये भारत कहानी है भारत कहानी सुनो ये कहानी है मेरी जुबानी ''  में भारत के महान सपूतों का चित्रण किया । ओमप्रकाश तिवारी ने भारत माता की आरती ''जय भारती जय मां भारती ''  का सस्‍वर पाठ कर मंत्रमुगध कर दिया। डा रामप्‍यारी ध्रुवे ने  '' मैं फूल नहीं फूलों सी सुगंध फैला सकूं ''  में आत्‍म निवेदन के सुंदर प्रयोग किये ।

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व्‍यंग्‍यकार सुभाष चौहान ने ''कहीं तो अपना दिन कटता है कहीं कटेगी शाम रे ''  में मन के बंजारेपन को रेखांकित किया । कनाडा से पधारे कवि समीर लाल को श्रोताओं ने जमकर सुना और खूब सराहा '' देख रहा हूं उस सूखे हुए ताल को, आंसुओं की धार से कुछ तो नमी हो जाएगी''  जैसे मुक्‍तकों और ग़जलों को श्रोताओं ने खूब मन से सुना और सराहा ।

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लेखक संघ के अध्‍यक्ष सुभाष जोशी ने अपनी सुप्रसिद्ध रचना  सैनिक का हाथ  में सीमा पर घायल सैनिक के हाथ कटने पर मनोदशा का मार्मिक चित्रण किया । वरिष्‍ठ कवि लक्ष्‍मीनारायण राय ने '' दर्दीली जिंदगी घुटन भरी प्रीत रे ''  में एकाकी जीवन की पीड़ा का गान किया ।

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वरिष्‍ठ कवि श्री ओमदीप ने श्रोताओं के अनुरोध पर दर्शन पर आधारित अपनी कविताओं '' जीवन क्‍या है एक कविता है आंसू पीकर मुस्‍काता जा''  का पाठ किया ।

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कार्यक्रम के दूसरे दौर में श्रोताओं के अनुरोध पर श्री समीर लाल जी का एकल काव्‍य पाठ हुआ जिसमें उन्‍होंने कई ग़ज़लें पढ़ीं । अंत में आभार कवि हरीओम शर्मा दाऊ ने व्‍यक्‍त किया । संचालन पंकज सुबीर ने किया ।  

उसके बाद उड़न तश्‍तरी भोपाल भी पहुंची जहां पर अजीत जी ने उनसे सौजन्‍य भेंट की ।

सोमवार, 7 जनवरी 2008

उड़न तश्‍तरी सीहोर में उतरी, सीहोर के कवियों और श्रोताओं का दिल लूटने के बाद उड़ गई ( समीर भाई के स्‍वागत में कवि सम्‍मेलन का आयोजन हुआ देखिये आत्‍मीय आयोजन की रपट )

Image(154) आखिरकार उड़न तश्‍तरी का सीहोर अगमन हुआ और खूब आगमन हुआ । सीहोर के लोगों को अपने मोहपाश में बांध लिया भाई समीर लाल ने । एक कवि सम्‍मेलन भी हुआ जो कि रात तक चलता रहा तब तक जब तक कि कवि सुनाते सुनाते थक नहीं गए । साथ में हुई बंजारे गीत पर एक चर्चा भी जिसमें हिंदी के मनीषी विद्वानों ने भाग लिया और कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाया ।

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माड़साब के लिये ये पहला अवसर था अपने किसी स्‍टूडेंट से मिलने का भाई समीर लाल जी सीहोर आ रहे थे । समीर जी अपनी प्रसिद्धी से भी चार कदम आगे आत्‍मीय और सौजन्‍य निकले । जैसा कि पहले मैंने सूचना दी थी कि सीहोर के कवियों ने भाई समीर के स्‍वागत में एक कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया है जिसमें शिवना प्रकाशन के नए काव्‍य संग्रह सुकवि रमेश हठीला के बंजारे गीत पर चर्चा होनी है और साथ में कविताएं भी । पहले कार्यक्रम श्री हठीला के निवास पर ही होना था पर सुबह के नाश्‍ते पर समीर भाई के साथ सीहोर के सुप्रसिद्ध कचौरियां खाते हुए हठीला जी को लगा कि निवास स्‍थान का हाल भाई समीर की प्रसिद्धी के हिसाब से छोटा रहेगा, आनन फानन में उन्‍होंने घर के पास ही एक नवनिर्मित हाल में सारी व्‍यवस्‍थाएं कर दीं और व्‍यवस्‍थाएं भी क्‍या खूब कि गोष्‍ठी को कवि सम्‍मेलन में बदल दिया साज सज्‍जा बढि़या माइक और चकाचक कार्यक्रम । हठीला जी के बारे में कहा ही जाता है कि धुनी हैं धुन चढ़ जाए तो दस का काम अकेले कर लेते हैं और कल सुबह समीर भाई से मिलकर धुन चढ़ गई थी उनको  ।

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शाम पांच का कार्यक्रम पौने छ: पर प्रारंभ हुआ ( भारत में इतना तो चलता ही है) भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के हेंडीक्राफ्ट बोर्ड के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष श्री अक्षत कासट के मुख्‍य आतिथ्‍य, हिंदी की मनीषी विद्वान कालापीपल कालेज की प्राचार्य डा रामप्‍यारी ध्रुवे की अध्‍यक्षता, हिंदी के वरिष्‍ठ पत्रकार श्री अम्‍बादत्‍त भारतीय जी, समाजसेवी श्री राजकुमार गुप्‍ता और श्री समीर के लाल की विशेष उपस्थिति में आयोजन हुआ । विशेष वक्‍ता के रूप में महाविद्यालय में हिंदी की प्राध्‍यापक और हिंदी की विद्वान डा पुष्‍पा दुबे उपस्थ्ज्ञित थीं ।

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सर्वप्रथम मां सरस्‍वती की प्रतिमा के सम्‍मुख्‍ा अतिथियों ने दीप प्रज्‍जवलित किया और पूजा अर्चना की तथा कार्यक्रम का शुभारंभ किया । शिवना प्रकाशन की और से सभी अतिथियों को पुष्‍प माला पहनाकर तथा अंग वस्‍त्र भेंट कर स्‍वागत किया शिवना के वरिष्‍ठ सदस्‍य श्री हरिओम शर्मा दाऊ जी ने । तत्‍पश्‍चात हिंदी की मनीषी विद्वान द्वय डा पुष्‍पा दुबे और डा रामप्‍यारी ध्रुवे ने श्री हठीला को आशिर्वाद स्‍वरूप शाल श्रीफल भेंट कर सम्‍मानित किया।  डा पुष्‍पा दुबे ने बंजारे गीत की विस्‍तृत समीक्षा करते हुए श्री हठीला को मानवीय संवेदनाओं का कुशलता से रेखांकन करने वाला चितेरा कवि निरूपित किया । अपने उद्बोधन में श्री राजकुमार गुप्‍ता ने कहा कि सीहोर में साहित्‍य की चेतना जगाए रखने के लिये शिवना प्रकाशन जो कार्य कर रहा है वो सराहनीय है उन्‍होंने अपने द्वारा पूरा सहयोग देने की भी बात कही ।

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भाई समीर लाल ने कहा कि सीहोर आकर वे अभिभूत हैं और ऐसा लग ही नहीं रहा है कि वे सीहोर पहली बार आए हैं । श्री हठीला के कृतित्‍व पर प्रकाश डालते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार श्री अम्‍बादत्‍त भारतीय ने उनका समग्र मूल्‍यांकन करते हुए श्री हठीला के काव्‍य की विशद विवेचना की ।  मुख्‍य अतिथि श्री अक्ष्‍त कासट ने कहा कि प्रसन्‍नता का विषय है कि श्री हठीला जी के काव्‍य संग्रह का प्रकाशन किया गया है और आज उस पर विचार भी किया जा रहा है । उन्‍होंने अपनी ओर से पूरा सहयोग भविष्‍य में देने की बात कही । हिंदी की विद्वान डा रामप्‍यारी ध्रुवे ने कहा कि उनको मान होता है कि सीहोर में तीन पीढि़यों को उनहोंने हिंदी पढ़ाई है और पूरा सीहोर उनको ग़रू मानता है और उतना ही सम्‍मान देता है । उन्‍होंने सीहोर की साहित्यिक चेतना की प्रशंसा करते हुए कहा कि मैं सीहोर को साहित्‍य का शहर मानती हूं । श्री हठीला ने इस अवसर पर पुस्‍तक का टंकण करने वाले बालक सनी गोस्‍वामी को सम्‍मानित किया और माड़साब को भी ।

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अध्‍यक्षीय उद्बोधन के साथ ही प्रथम चरण का समापन हुआ और सभी ने श्रीमती गंगा देवी हठीला के द्वारा बनाए गए लजीज़ गाजर के हलवे, खमण, आलूबड़े और चाय का अनंद लिया माड़साब के कम्‍प्‍यूटर के छात्रों अब्‍दुल कादिर, सुरेंद्र सिंह ठाकुर, धर्मेंद्र कौशल, सनी गोस्‍वामी और सुधीर मालवीय ने मनुहार कर कर के अतिथियों को स्‍वल्‍पाहार करवाया ।

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ये थी पहले चरण की रपट कल मिलेंगें दूसरे चरण की रपट अर्थात कवि सम्‍मेलन की रपट के साथ जिसमें समीर भाई ने पूरा मंच लूट लिया और सीहोर वालों को दिल भी । आज के फोटो मोबाइल के हैं कल केमरे के फोटों उपलबध हो जाऐंगें सो वो लगाए जाऐंगें ।

शनिवार, 5 जनवरी 2008

भोपाल से अजीत जी ने भी गोष्‍ठी में आने की स्‍वीकृति प्रदान की है और भी यदि कोई आना चाहें तो समीर लाल जी के सम्‍मान में आयोजित गोष्‍ठी में पधार सकते हैं

मैं पिछले पोस्‍ट में भूल से समय नहीं लगा पाया था मैथिली जी ने भूल सुधार करव दी ये कह कर कि आना तो चाह रहे हैं पर कब और कहां पर आना है । खैर पुन: बता रहा हूं कि समीर लाल जी सीहोर आ रहे हैं और उनके सम्‍मान में एक गोष्‍ठी का आयोजन किया जा रहा है । 6 जनवरी को शाम 5 बजे सीहोर के मुकेरी मोहलले में स्थित श्री रमेश हठीला जी के आवास पर । भोपाल से अजीत जी का फोन आया कि वे भी आ रहे हैं उनके आने से कार्यक्रम की शोभा बढ़ेगी । सीहोर जैसे छोटे से शहर में जहां पर ब्‍लाग की जानकारी रखने वाला शायद मैं अकेला ही हूं वहां पर समीर जी और अजीत जी का आना मेरे लिये प्रसन्‍नता की बात है । एक बात जो अजीत जी ने की कि वे ये समझते थे कि मैं ग्‍वालियर का हूं, अजीत जी मैं ग्‍वालियर चेकअप के लिये जाता रहता हूं ( मनोरोगी चिकित्‍सालय में ) पर हूं नहीं । हा हा हा खैर मेरी ससुराल तो ग्‍वालियर की है सो आधा तो हूं ही ग्‍वालियर का । भोपाल से दैनिक भास्‍कर ने साहित्‍य पर एक अच्‍छा पन्‍ना शुरू किया है अजीत जी उसको ही देखते हैं ।

बाकी तो सब ठीक है समीर जी के स्‍वागत की तैयारियां चल रहीं हैं आशा है आप सब भी आऐंगें ।

उड़न तश्‍तरी के समीर के लाल के स्‍वागत में एक विशेष काव्‍य गोष्‍ठी का आयोजन आप सब भी सादर आमंत्रित हैं

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समीर भाई का वैसे तो सीहोर आने का प्रोग्राम कई दिनों से बन बिगड़ रहा है पर अंतत: अब वे सीहोर आ ही रहे हैं और उनके सम्‍मान में एक विशेष आयोजन 6 जनवरी रविवार को शाम पांच बजे श्री रमेश हठीला जी के निवास पर शिवना प्रकाशन द्वारा किया जा रहा है । आयोजन दो कारणों से किया जा रहा है एक तो समीर भाई के स्‍वागत के लिये और दूसरा अभी शिवना प्रकाशन द्वारा सुकवि रमेश हठीला के काव्‍य संग्रह बंजारे गीत का विमोचन किया गया है उस पर भी एक समीक्षा बैठक इसी गोष्‍ठी में की जा रही है । गोष्‍ठी में बंजारे गीत पर आलेख का पाठ हिंदी की प्रोफेसर डा श्रीमती पुष्‍पा दुबे करेंगीं । कार्यक्रम की अध्‍यक्षता आंचलिक पत्रकार संघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष  तथा पूर्व विधायक श्री शंकरलाल साबू करेंगें । कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के हेंडीक्राफ्ट बोर्ड के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष ( केंद्रीय मंत्री दर्जा ) श्री अक्षत कासट करेंगें । कार्यक्रम के मुख्‍य वक्‍ता के रूप में वरिष्‍ठ पत्रकार तथा पीटीआई के ब्‍यूरो चीफ श्री अम्‍बादत्‍त भारतीय अपना अख्‍यान देंगें । विशेष अतिथि के रूप में श्री राजकुमार गुप्‍ता उपस्थित रहेंगें ।

माड़साब ने इसीलिये दो दिन से कक्षा स्‍थगित कर रखी है क्‍योंकि कार्यक्रम की तैयारी चल रही है । कार्यक्रम पूर्व में और बड़े स्‍तर पर किया जाना था पर कुछ तकनीकी समस्‍यसाएं आ जाने के कारण अब ये कार्यक्रम छोटे स्‍तर पर किया जा रहा है । समीर भाई इन दिनों भारत की यात्रा पर आए हुए हैं और आने के बाद से ही संपर्क में हैं । पर जैसा क‍ि होता है कि घर आने के बाद काफी काम निकल आते हैं और सब की प्राथमिकता होती है । समीर भाई की यात्रा के चलते इन दिनों टिप्‍पणी जगत में सन्‍नाटा छाया हुआ है अन्‍यथा तो उड़नतश्‍तरी सब जगहों पर पाई जाती थी ।

अगस्‍त में जब ग़ज़लों की कक्षाएं प्रारंभ की थीं तो लगा नहीं था कि इतनी लोकप्रियता मिलेगी । मगर आज तो इतने नये मित्र मिले हैं कि अच्‍छा लगता है । दो बार प्रमुख समाचार पत्रों भास्‍कर और जागरण ने विशेष लेख भी छापे हैं । और एक और महत्‍वपूर्ण लेख अभी और भी आने जा रहा है

कल ये कार्यक्रम श्री रमेश हठीला के निवास पर ही किया जा रहा है पूर्व में आनलाइन कव‍ि गोष्‍ठी का भी कार्यक्रम था पर यहां पर लाइट की समस्‍या अचानक ही आ गई है सो अभी वो नहीं हो पा रहा है ।

( नए साल में एक काम जो मैंने किया वो ये किया है कि एक अपने मित्र जिनको मेरे एक कार्य से ठेस लगी थी उनसे बहुत विनम्रता से क्षमा मांग ली और अपनी कोई सफाई नहीं दी केवल ये कहा कि हां मुझसे ग़लती हुई थी और मैं मन से क्ष्‍मा चाहता हूं । किंतु उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया )

गुरुवार, 3 जनवरी 2008

सुना है ऐसे में पहले भी बुझ गए हैं चराग़, दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात, ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात, कितनी सटीक बात है रात जब उदास हो तो फिर तो केवल एक ग़ज़ल ही होती है जो उस उदासी को दूर कर सकती है । मेरे गीतकार मित्र स्‍व. मोहन राय जिन्‍होंने पिछले साल फरवरी में मृत्‍यु का वरण कर लिया था उनकी अंतिम दौर की एक कविता थी कोई गीत नहीं है उपजता कुछ छूट रहा है, ।  हम सब भी शायद हिंदी साहित्‍य को बचाने के लिये अंतिम प्रयास कर रहे हैं परिणाम क्‍या होता है कोई नहीं जानता है ।

चलिये नए साल में हम बात करते हैं बहरों की । दरअसल जिस तरह से हिंदी में छंद होते हैं उसी तरह से ग़ज़ल में बहरें होती हैं । पर यहां पर अंतर ये होता है कि यहां पर तरतीब नहीं बिगड़नी चाहिये । विन्‍यास जो पहले तय हो गया वो ही पूरी की पूरी ग़ज़ल में चलना चाहिये । हमने देखा कि मिसरे में कई सारे रुक्‍न होते हैं और रुक्‍नों का एक क्रम होता है । जैसे  तुम्‍हारी नज़रो में हमने देखा अजब सी चाहत झलक रही है   ये एक गाना है पर ये गाना एक प्रसिद्ध बहर पर है जो कि एक सोलह रुक्‍नी बहर है बहरे मुतकारिब मकबूज असलम और इसका वज्‍़न है 121-22-121-22-121-22-121-22  या कि फऊलु-फालुन-फऊलु-फालुन-फऊलु-फालुन-फऊलु-फालुन

अब जहां पर भी ये वज्‍़न आएगा तो हम उसका नाम कहेंगें कि ये बहरे मुतकारिब मकबूज असलम पर है । माड़साब की एक ग़ज़ल है ये बिखरी ज़ुल्‍फ़ें बता रहीं हैं के क़त्‍ल कोई तो वो करेगा । ये भी उस ही बहर पर है । ये सारी की सारी बहरे चूंकि फारसी से ली गईं हैं अत: इनके आविष्‍कारकर्ता के नाम पर ही इनके नाम चलते हैं । ग़ज़ल को कुछ मायनों में मेहबूबा से बातचीत भी कहा जाता है इसलिये बात करने के तरीकों के आधार पर ये बहर बनीं हैं । तहत  में जब ग़ज़ल पढ़ी जाती है तो वो ये ही होता हैं कि आप गाए बिना बातचीत की तरह से पढ़ते हैं । जैसे राहत इंदौरी साहब  तहत  का ही उपयोग करते हैं । तरन्‍नुम का मतलब होता है गाकर पढ़ना । प्रभाव की बात करें तो तहत  का प्रभाव ज्‍यादा होता है बशर्ते आपकी आवाज़ में बुलंदी हो । उसी तहत को अगर देखें तो तहत में ही पता चलता है कि ग़ज़ल बहर में है या बेबहर हो गई है । तरन्‍ऩुम में तो क्‍या होता है कि आप एक दो मात्राएं खींच कर पढ़ देंगें तो पता ही नहीं चलेगा ।

तो बातवीत करते समय काव्‍यात्‍मक रूप से वाक्‍यों के कितने विन्‍यास हो सकते हैं उसको बहर कहते हैं । ग़ज़ल बातचीत का काव्‍यात्‍मक तरीका ही है । जैसे किसी की आंखें लाल होती देख कर हम सामान्‍य रूप से कहेंगें आंखों से ऐसा लग रहा है आप रात भर सोए नहीं है  मगर वहीं बात को बहर में कहना हो तो  आंखें बता रहीं हैं जागे हो रात भर  ये मिसरा हो गया । मिसरे बातों में ही पैदा होते हैं अगर आपने अमिताभ बचचन की फिल्‍म शराबी देखी हो तो उसमें ये बात अच्‍दी तरह से होती है अमिताभ और मुकरी जी बातों में मिसरे निकाल लेते हैं और फिर उस पर शेर कहते हैं । तो हमारे साथ भी वही है बात करते करते अचानक ही कोई वाक्‍य हमारे मुंह से से ऐसा निकल जाता है जो हमें ऐसा लगता है कि अरे ये तो लय में है  और बस वही हमारा पहला मिसरा बन जाता है वहीं से हम ग़ज़ल लिख देते हैं ।

बहरें भी बड़े वैज्ञानिक तरीके से बनाईं गईं हैं और इनको बनाते समय बातचीत के दौरान प्रयुक्‍त होने वाले वाक्‍यों के विन्‍यास को ध्‍यान में रखा गया है और उस ही आधार पर ये बहरें बनाईं गईं हैं । जैसे माड़साब  का एक शेर जो खूब पसंद किया जात है उसको बातचीत में देखें तो युं है  कि जो ज़रूरी है वो तो हो नहीं रहा पर जो नहीं होना है वो हो रहा है  ये तो हो गया वाक्‍य अब इसको ही देखें शेर में  जो ज़रूरी था नहीं अब तक हुआ वो , और जो होना नहीं था हो रहा है ।

आज के लिये इतना ही अभी कुछ दिनों तक हम विन्‍यास की बात करेंगें फिर मूल पर आएंगें । सभी को नए साल की शुभ्‍कामनाएं और आने वाला साल सभी के लिये शुभ हो ।

सूचना : आने वाले रविवार को एक आन लाइन मुशायरा करने की प्‍लानिंग है, जी टाक के जरिये से । रविवार को शाम 6 बजे ( भारतीय समय के अनुसार ) आयोजन होना है जो लोग जी टाक के द्वारा शामिल हो सकते हैं वे एक स्‍वीकृति भेजें ताकि हम प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं । अभी केवल प्‍लानिंग ही चल रही है मूर्त रूप दिया जाना बाकी है ।

मंगलवार, 1 जनवरी 2008

और आखिरी में आ रही हैं देवी नागरानी जी अपनी एक ग़ज़ल के साथ ये कहते हुए कि नया साल देखो चला आ रहा

ये नया साल देखो चला आ रहा

मुस्कराकर पुराना चला जा रहा.

बीत कर जो गया वो हमारा था कळ

आज खुशियाँ समेटे नया आ रहा.

है खुशी का नजारा यहाँ हर तरफ

खिलखिलाहट सभी को सुनाता रहा.

घूँट खुशियों के पीता रहा हर कोई

गीत खुशियों भरे दिल ये गाता रहा.

है फिजाँ शोख उसमें है शामिल खुशी

जाम से जाम है वक्त टकरा रहा.

हो मुबारक खुशी, अळविदा ग़म तुम्हें

दिल दुआओं को देवी है छलका रहा.
देवी नागरानी

अजय कनोडिया जी की दो ग़ज़लें जिनकी बहरों के बारे में तो क्‍या कहा जाए मगर आज सब कुछ माफ है क्‍योंकि खुश है जमाना आज पहली तारीख है

ajay kanodia

1

नया साल जब आता है, मन खुशियों से भर जाता है
और गीत पुराना सा कोई, एक नज्म नई बन जाता है

नया साल आएगा जब, नया सवेरा भी होगा
सोच यहीं देहलीज पे ही भोलू भूका सो जाता है

नया साल यह सुखमय हो, आशाए सबकी पूरी हो
हम भी खुश हो तुम भी खुश हो, मन बार बार दोहराता है

2

चलो फिर दिल से कह दें के, नया कोई गीत ये गाए
बहारों कुछ करो ऐसा, हर कली फूल बन जाए

मिटा दी नाफ्रतें दिल से, मेरा दिल है बहुत खाली
चलो कुछ ढूंढ के लाये बसाए प्यार के साए

चलो फिर दिल से कह दें के, नया कोई गीत ये गाए
बहारों कुछ करो ऐसा, हर कली फूल बन जाए

मिटा दी नाफ्रतें दिल से, मेरा दिल है बहुत खाली
चलो कुछ ढूंढ के लाये बसाए प्यार के साए

खुशी ढूंढी ज़माने में, खुशी इतनी मिली हमको
बड़ा मुश्किल था तय करना किसे खोए किसे पाए

बहुत ही ख़ूबसूरत है, सुनो जीवन की ये राहें
अगर हम ठान ले मन में यहाँ जन्नत उतर आए

अजय कनोडिया

नए साल के मुशायरे में सबसे पहले सुनिये अभिनव शुक्‍ला को जो कहते हैं कि दुनिया तेरे लिये हो नया साल मुबारक ।

abhinav_shukla

बजती रहे जीवन में सदा ताल मुबारक,
दुनिया तेरे लिए हो नया साल मुबारक,

सुख चैन की उड़ान भरें सारे परिंदे,
बरकत हो घोसलों में रहे डाल मुबारक,

नफरत की आँधियों का कोई रहनुमा ना हो,
गलियों में उडे प्यार का गुलाल मुबारक,

उस शख्स की क्या चाल बिगाडेंगी आफतें,
माँ नें कहा ही जिससे मेरे लाल मुबारक.

और ये है आखिरी प्रयास जो की अभी लिखी है. बहर में लिखना सरल नही है उसपर भी यदि आपको किसी विषय विशेष पर लिखना हो तो बात और भी पेचीदा हो जाती है. आपसे इतना सीखने के बाद ग़लत बहर में लिखी रचना ब्लॉग पर पोस्ट करने की हिम्मत नही है इस वजह से आपको इ मेल द्वारा भेज रहा हूँ. आपको तथा आपके परिवार को नव वर्ष की अनेक शुभकामनाएं.

अपने बाज़ार में माल बिल्कुल नया,
लीजिये आ गया साल बिल्कुल नया,

कुछ हुआ बम फटा हर तरफ़ फिर धुआं,
हम सभी थे वही हाल बिल्कुल नया,

जाइए आप भी हैं बड़े नासमझ,
ये नया शेड है लाल बिल्कुल नया,

कुछ भी बोले बिना बात कर लेगा ये,
एक डालेगा फिर जाल बिल्कुल नया,

मैंने टी वी चला कर के भोजन किया,
दाल में फिर दिखा बाल बिल्कुल नया,

प्यार विस्तार ले मुस्कुराये खुशी,
हो मुबारक तुम्हें साल बिल्कुल नया.

तालियां तालियां तालियां

ये कमर छत्तीस से अड़तीस हो गइ सात में, देखना होगा कि जायेगी कहाँ तक आठ में, है हमारे पास जो कुछ वो गुलामी से मिला, मेरे बच्चों को पढाया जा रहा है पाठ में,

TEPA2

नए साल की सभी को शुभकामनाएं हों आप सभी के लिये नया साल सुखद हो और आपके लिये वो सभी रास्‍ते खोल दे जिनको आप खोलना चाह रहे हैं । 2008 के बारे में कहा जा रहा है कि ये काल का साल है पर हम कवि हैं हमारा तो ये ही कहना है कि जो कुछ भी होगा अच्‍छा होगा और सर्वे भवन्‍तु सुखिन: की कामना हमारे मन में हमेशा रहती है । नय साल जो कि हमें कुछ नया करने की प्रेरणा देता है और हमें याद दिलाता है कि जो काम पिछले साल में अधूरे रह गए हैं उनको पूरा करना है साथ में कुछ नए संक्‍ल्‍पों के साथ कुछ और स्‍वप्‍न भी देखने हैं, स्‍वप्‍न जो कि हम अपनी आंखों में संजोएं और प्रयत्‍न करने की राह पर चलें की वो पूरे हों । हम आशाओं के नए दीप जलाकर इस नए साल का स्‍वागत करें । अभिनव  का कहना है कि  ये कमर छत्‍तीस से अड़तीस हो गई सात में, देखना होगा कि जाएगी कहां तक आठ में । मेरा कहना है कि यूं ही दो इंच्‍ा हर साल तरक्‍की भी करो । एक और नया साल अपनी सुनहरी किरणों के साथ आ गया है हम सब हर साल की तरफ आशा भरी नजरों से देखते हैं और सोचते हैं कि देखें ये नया साल हमारे लिये वो सारे स्‍वप्‍न लेकर आया है कि नहीं जो हम देखना चाह रहे हैं । गा़लिब ने कहा था इक बराहमन ने कहा है कि ये साल अच्‍छा है ।

TEPA1

आज मुशायरा है और केवल तीन ही कवियों की ग़ज़लें मिलीं हैं उनको ही आज लगाया जाएगा । किसी शायर की ये पंक्तियां याद आ रही हैं। 

बर्फ छाए तो पहाड़ों को नशा छाता है ,

गीत चलने से चरागों को नशा आता है,

साल गुज़रा है मियां तुम गए गुज़रे न लगो,

जनवरी नाम से हर साल नया आता है ।

रहनुमाओं ने कहा है कि ये साल अच्‍छा है

दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्‍छा है ।

मुशायरा जारी रहेगा ब्रेक के बाद

परिवार