शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

होली का तरही मुशायरा

दोस्तो, अब तो ब्लॉग की दुनिया से जुड़े हुए करीब पन्द्रह बरस हो चुके हैं। और लगभग इतना ही समय हो चुका है हमारे इन तरही मुशायरों को चलते हुए। कई लोग जुड़े, कई लोग टूटे, मगर सिलसिला चलता रहा। चलते हुए जीवन की रफ़्तार में एक लय होती है। कई बार लगता है कि ब्लॉग की यह दुनिया बस ख़त्म होने को है, मगर फिर लगता है कि नहीं अभी कुछ बरस और यह सिलसिला चलता रहेगा। कोई न कोई कारण ऐसा हो जाता है कि बस फिर से सब कुछ शुरू हो जाता है। और इन सबके बीच में वे अवसर आ जाते हैं, जिन अवसरों पर हम तरही के विशेष आयोजन करते रहते हैं। पर्व, त्यौहार, उत्सव के कारण तरही का मौका सामने आ जाता है।

होली का तरही मुशायरा

होली के तरही मुशायरे को लेकर बहुत दिनों से मिसरे को लेकर माथा पच्ची चल रही थी, अचानक बाबा फ़रीद को लेकर कहीं कोई आलेख पढ़ते हुए पता चला कि बाबा जब भी किसी को दुआ देते थे तो कहते थे –“जा तुझे इश्क़ हो”, यह पढ़ा तो एकदम दिमाग़ के तार झनझना गए। लगा कि बस रदीफ़ तो यही होगा, अब इसके बाद क़ाफ़िया क्या होना है यह सोचना है और मिसरा पूरा करना है। चूँकि यह दुआ 212-212 के वज़्न पर है – जातुझे- इश्क़ हो, तो लगा कि आगे 212-212 और जोड़ कर 212-212-212-212 के वज़्न पर मिसरा दिया जा सकता है। मतलब बह्रे मुतदारिक मुसमन सालिम पर। कुछ आसान बहर होती है यह। तो इसी पर इस बार का होली का तरही मुशायरा हम बाबा फ़रीद की दुआ को रदीफ़ बनाते हुए आयोजित करते हैं।

ले गुलाबी दुआ, जा तुझे इश्क़ हो

इसमें जैसा कि पहले बताया कि “जा तुझे इश्क़ हो” तो रदीफ़ है तथा “दुआ” शब्द में जो ‘आ’ की मात्रा है वह क़ाफ़िये की ध्वनि होगी। मतलब यह कि कहा, सुना, उठा, मामला, फासला, रतजगा, बावरा जैसे शब्दों को क़ाफ़िया बनाया जा सकता है। मामला थोड़ा कठिन तो है मगर मुझे विश्वास है कि कठिन क़ाफ़िये को रदीफ़ के साथ आप लोग निभा लेंगे।

तो मिलते हैं होली के मुशायरे में आपकी ग़ज़लों के साथ।

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