बुधवार, 18 नवंबर 2020

आइये आज बासी दीपावली मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी और सुलभ जायसवाल के साथ

दीपावली आती है और चली जाती है, पीछे एक सूनापन छोड़ जाती है। एक सन्नाटा सा छोड़ जाती है। शायद इसी कारण हमारे यहाँ हर त्यौहार का बासी संस्करण मनाने का भी रिवाज़ है। और दीपावली तो ख़ैर देव प्रबोधिनी एकादशी तक मनाई जाती है। हर त्यौहार इसी प्रकार होता है जिससे कि हम उस त्यौहार के जाने के बाद सूनापन महसूस नहीं करें। दीपावली बीत गई है और अब कई त्यौहार उसके बाद आने को हैं। जीवन इसी प्रकार चलता रहता है। जीवन को इसीलिए तो कहा जाता है कि जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम।

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

आइये आज बासी दीपावली मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी और सुलभ जायसवाल के साथ

राकेश खण्डेलवाल जी

 


संस्कृति के पर्याय बदलते लेकिन किसने पहचाना है
दीवाली का अर्थ आज के कितने बच्चों ने जाना है
अपराधी अभिभावक देते प्रोत्साहन इस नव पीढ़ी को
एक था रामा, एक लक्षमना औ वानर इक हनुमाना है
कल ये ही तो गल्प कहेंगे एक समय कोई ऐसा था
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते थे

करता गर्व अपरिचियत होने का अपनी संस्कृतियों से जो
कान्वेंट में भेजा करता है अपने अबोध शिशुओं को
जहां मातृभाषा  के एवज मंदारिन या फ्रेंच सीख कर
दीप  नहीं क्रिसमस की केंडल घर पर रखे जला करके वो
उसके लिए ग्रंथ के वर्णन सिर के ऊपर ही होते है
कहाँ देख पाता दीवाली पर जगमग घर होते हैं

अंध अनुकरण में भूले हैं अपनी पैतृक मर्यादाएँ
ऐसे अज्ञानो को कितना है गहरा दर्शन बतलाएँ
चाटुकारिता में स्तुतियों में कितना है अंतर क्या जाने
जो बस क्षणिक पलों की ख़ातिर अपने जीवनमूल्य भुलाएँ
जान सकेंगे कैसे प्रतिमा में शिल्पित पत्थर होते है
दीवाली पर जगमग जगमग क्यों सारे ही घर होते हैं

राकेश जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे हर बार तरही में पूरी ऊर्जा और पूरे मनोयोग से हिस्सा लेते हैं। यहाँ तक कि तरही की मिसरा घोषित नहीं किए जाने पर वे मेल कर याद भी दिलाते हैं कि दीवाली पास आ गई है और अभी तक तरही मिसरा नहीं दिया गया है। हमने तीन अंकों में उनका एक एक गीत पढ़ा और आज फिर वे अपना एक गीत लेकर उपस्थित हैं। गीत के बारे में क्या कहा जाए, राकेश जी के गीतों को बस मन के कानों से सुना जा सकता है और भाव विभोर होकर चुपचाप बैठा रहा जा सकता है। यह गीत भी एक अलग तरह की बात को लेकर सामने आया है। इसमें बदलते हुए समय के कारण सामने आ रही वे समस्याएँ हैं जो हमारी सभ्यता और संस्कृति को समाप्त करने के लिए सामने आ रही हैं। कवि इसी को लेकर बेचैन है और अपनी भावनाओं को गीत में व्यक्त कर रहा है। तीनों बंदों में अंतिम पंक्ति को क्या कुशलता के साथ परिवर्तित किया गया है कमाल है। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह। 


सुलभ जायसवाल

 

बिन तेरे यह आँगन कैसा खाली सब घर होते हैं
'घर की लक्ष्मी' ना हो घर पर हम भी क्या 'नर' होते हैं

हमतुम तुमहम इक दूजे से दूर जो पलभर होते हैं
बस इतने में ना जाने कैसे कैसे डर होते हैं
जिस पत्थर पर दुर्भाग्य लिखा जिसको छूना हो वर्जित
नींव उसी का डालो, देखो, तारे  उसपर होते हैं 

सालों साल कठिन मेहनत से मिलते हैं मखमल बिस्तर
सपनों के रस्ते में ढ़ेरो काँटे कंकर होते हैं
भय हरता आशा का दीपक अँधियारे से युद्ध करे
दीवाली में सब दीये मिलकर ऊर्जाघर होते हैं

झिलमिल झिलमिल चकमक चकमक नगरी झूमे नृत्य करे
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं
भक्ति के सागर में डूबा तब गीत-कलश भर कर निकला
हम अनगढ़ मानुष के भीतर सच में दिनकर होते हैं

सुलभ ने बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है। मतले में ही घर की लक्ष्मी और नर की जो बात कही है वह बहुत सुंदर तरीक़े से कही है। हुस्ने मतला में भी बहुत सुंदरता से एक दूसरे से दूर होने पर सामने आने वाले डरों की बात कही गई है। मेहनत को लेकर कहा गया शेर कि मखमली बिस्तर रातों रात नहीं मिलते हैं, उसके लिए बरसों बरस काँटों और कंकर पर चलना होता है। बहुत अच्छी बात कही है। दीपकों का ऊर्जाघर होने का शेर बहुत अच्छा है यहाँ अँधियारे से लड़ाई की बात को बहुत अच्छे से शेर में उपयोग किया गया है। गिरह के शेर में मिसरा ऊला बहुत अच्छे से बाँधा गया है। बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है सुलभ ने वाह वाह वाह।

दीपावली का यह तरही मुशायरा आज का अंक लेकर उपस्थित है दाद दीजिए वाह वाह कीजिए। अब शायद भभ्भड़ कवि भौंचक्के भी आ जाएँ, लेकिन वे तो हमेशा देव प्रबोधिनी एकादशी पर ही आते हैं, तो अभी मुशायरा कुछ दिन और चलने की तो उम्मीद की ही जा सकती है। 


शनिवार, 14 नवंबर 2020

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली आप सबको दीपावली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आइए आज हम पाँच रचनाकारों के साथ दीपावली का यह त्यौहार मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी, गिरीश पंकज जी, तिलकराज कपूर जी, सुधीर त्यागी जी और अश्विनी रमेश जी के साथ


दीपावली का त्यौहार आज आ ही गया है। हर वर्ष आता है और बीत जाता है। लेकिन बीतने के साथ ही उम्मीद दे जाता है कि जो बीत रहा है वो एक बार फिर आएगा। इन त्यौहारों की प्रतीक्षा ही हमें अंदर से ऊर्जावान रखती है। हम इन त्यौहारों से ही आशा के दीपक जलाए रखते हैं। दीपावली हमारे देश का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह किसी धर्म का त्यौहार नहीं है, यह तो प्रकृति का त्यौहार है। यह तो फसल कट कर घर आने का त्यौहार। यह तो आनंद का त्यौहार है। एक त्यौहार जो अमावस को आता है। बाकी सारे त्यौहार पूर्णिमा को आते हैं। लेकिन यह अमावस पूर्णिमा से भी ज़्यादा रौशन हो जाती है। आइए इस दीवाली सारे विश्व के लिए आरोग्य की प्रार्थना करें क्योंकि वही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है आज।

शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं 

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली आप सबको दीपावली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आइए आज हम पाँच रचनाकारों के साथ दीपावली का यह त्यौहार मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी, गिरीश पंकज जी, तिलकराज कपूर जी, सुधीर त्यागी जी और अश्विनी रमेश जी के साथ

राकेश खण्डेलवाल जी


 

बंद पड़े कमरों की जैसे सहसा ही खुल गई खिड़कियाँ
चीर कुहासे को चमकी है उगी भोर की प्रखर रश्मियाँ
उत्तर पश्चिम की शरदीली हवा छू गई तन को आकर
झरते पत्तों ने छेड़ी है सारंगी की धुने बजाकर
सुधियों में आकर तिर आए वे पल जो सुखाकर  होते हैं
आतुर हुआ ह्रदय जाने को लौट उन्ही गलियों में फिर से
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे ही  घर होते हैं

लगा कि जैसे छँटने को हैं झुलस रहे बदरंग क़ुहासे
आशाओं के झरे पुष्प, फिर से अंगड़ाई लेकर जागे
उलटे पाँव लौट कर आइ लेकर विदा गई पुरवाई
नदिया की लहरों ने तट पर फिर अपनी पायल खनकाई
स्वप्न सजे वे ही नयनों में, जो बस सुंदर होते हैं
रांगोली से सजे द्वार, दहलीज़ें, अँगनाई सब ही
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

शरद पूर्णिमा ने रच डाली हर द्वारे पर रजत अल्पना
लगी शिल्प में ढलने दिन के सपनो की थी रही कल्पना
बंद पड़े बक्सों ने अपने स्वर्ण कोष की गठरी खोली
गिरी ओस से, चढ़ी अमावस ने अपनी परछाई धो ली
आए लौट वही दिन के पल जो की मनोहर होते हैं
पाँच दिनो के लिए चले मन लौट उन्ही गलियों में फिर
दीवाली पर जहां सभी घर जगमग जगमग होते हैं


वाह वाह वाह, राकेश जी लगातार गीतों की लड़ी सी लगा रहे हैं। यह गीत एकदम अलग तरह का गीत है। इस गीत में दीवाली के साथ साथ शरद ऋतु का भी सौंदर्य बिखरा हुआ है। झरते पत्तों द्वारा छेड़ी गई सारंगी की धुन तो कमाल ही है। और अगले बंद में बदरंग कुहासों के छँटने की आशा का संचार हो रहा है। आशाओं के झरे पुष्प अंग्ड़ाई लेकर जाग रहे हैं। नदियों की लहरों द्वारा तट पर पायल छनकाने का कमाल का बिम्ब इस ही बंद में आया है। अगला बंद शरद पूर्णिमा से प्रारंभ हुए इस दीपोत्सव की बानगी लिए हुए है। पाँच दिनों के लिए मन उन्हीं गलियों में लौट जाना चाहता है जहाँ रौशनी है। बहुत ही सुंदर गीत, दीपावली का पूरा दृश्य सामने आ गया है। वाह वाह वाह। 


गिरीश पंकज जी 



उस पल मुझको लगता उत्सव कितने सुंदर होते हैं
''दीवाली पर जगमग-जगमग जब सारे घर होते हैं''

वक्त पड़े तो जो लोगों की मदद हमेशा कर देते
मिरी नज़र में वे धरती के इक पैगंबर होते हैं
खुशियों को हम जितना बांटें उतना ही होता अच्छा
कभी नहीं खुशबू के केवल खास-खास दर होते हैं

अपने हिस्से का थोड़ा भी दान नहीं जो कर पाते
होंगे वे धनवान भले ही दिल से जर्जर होते हैं
खुद्दारी से जीने वाले कभी नहीं झुकते केवल
एहसानों से दबे रहे तो दबे-दबे स्वर होते हैं

सब के जीवन में उजियारा लाए अपनी दिवाली
जो ऐसा सोचेगा उस के भीतर ईश्वर होते हैं


वाह वाह वाह,  क्या बात है वक्त पड़े जो लोगों की ममद करते हैं वही तो पैगंबर होते हैं। यह बात एक कवि ही सोच सकता है। अगले ही शेर में खुशियों को बाँटने का वही पुराना विचार है कि जितना बाँटोगे यह उतनी ही बढ़ेंगीं। और फिर यह बात कि जो किसी दूसरे को ज़रा सा दान भी नहीं दे पा रहा है वह कितना ही धनवान हो लेकिन अंदर से तो जर्जर ही कहलाएगा। वाह क्या बात है। खुद्दार लोगों को परिभाषित करता हुआ अगला ही शेर मानों स्वाभिमानी लोगों की पूरी कहानी कह रहा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है आदरणीय गिरीश जी ने। अलग अलग रंगों को पिरो कर इंद्रधनुष सा बना दिया है। वाह वाह वाह। 


तिलक राज कपूर जी



चूक हुई तो अरमानों के जिनपर जौहर होते हैं
दिखने में आसान वो रस्ते कितने दूभर होते हैं।

वो चेहरे जो दिखने में मासूम मनोहर होते हैं
सोच लिये जहरीली उनमें भी कुछ विषधर होते हैं।
कोई रोश्नी से तो कोई अंधियारे से डरता है
सबके अपने-अपने किस्से अपने ही डर होते हैं।

कुछ हिस्से अंधियारे में डूबे रहते हैं बस्ती में
"दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं।"
बतियाती दुनिया में यूँ तो शब्दों की है भीड़ बड़ी
दिल से दिल का मेल कराते ढाई आखर होते हैं।

होश में रहकर मुंह खोला कर सत्ता के गलियारों में
सच कहने वालों पर इनमें हमले अक्सर होते हैं।
इस नगरी की सड़कें चौड़ी, सोच बहुत संकरी देखी
अधरों पर मुस्कानें लेकिन दिल तो पत्थर होते हैं।


वाह वाह वाह,  क्या मतला कहा है, और उस पर कमाल यह कि काफियाबंदी भी बाकमाल है। उस पर अगला ही शेर मनोहर और विषधर जैसे कठिन काफियों को बाँध कर सामने आया है। रोशनी और अँधियारे वाला शेर तो देर ते दिमाग़ में बचा रह जाने वाला शेर है। क्या ख़ूब तरीक़े से मानव मन के अंदर उतर कर देखा है। गिरह का शेर भी कमाल बन पड़ा है। ढाई आखर वाला शेर तो एकदम ग़ज़ब शेर है। जो बात कई बार कही जा चुकी है उसे कितने नए अंदाज़ में कहा है तिलक जी ने। और सत्ता के गलियारों की पोल खोलता शेर भी सुंदर बना है। सड़कों और सोच की तुलना करने वाला अंतिम शेर महानगरों की पूरी कहानी कह रहा है। वाह वाह वाह क्या सुंदर ग़ज़ल।


सुधीर त्यागी जी



दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते है।
तो हर सू उगता सूरज और तारे ज़मीं पर होते है।

अर्श प बिखरे चाँद सितारे रात के ज़ेवर होते है।
लेकिन दीवाली की रात दिये ही अख़्तर होते है।
कहने को तो प्रेम में केवल ढ़ाई आखर होते है।

प्रेम किसी से हो जाए तो चर्चे घर-घर होते है।
ख़त लिखना, फिर पढ़ना, फिर से पढ़ना बस पढ़ते रहना।
इश्क के अब वो नजा़रे किसको यार मयस्सर होते है।
दुनिया भर में फैली घातक बीमारी कोरोना की।
सूझती कोई राह नहीं, बेबस चारागर होते है।

सहरा में चलने जैसा है ईमां के बदले रोज़ी।
ये वो सफ़र है जिसमें पग-पग कांटे पत्थर होते है।
इश्क ही ईमान-ओ-मज़हब है, तोड़े बंधन नफ़रत के।
इश्क प दुनिया भर में पहरे जाने क्योंकर होते है।

रिश्तों को अनमोल बनाने की खातिर जीना सीखो।
सिर्फ निभाने की कोशिश में बद से बदतर होते है।
दमखम वाले औरों से हरगिज़ मरऊब नहीं होते।
बरगद के नीचे कुछ जिद्दी पौधे अक्सर होते है।


वाह वाह वाह,  बहुत अलग तेवर में ग़ज़ल कही है। मतले में ही सूरज के उगने और तारों के ज़मीं पर उतर आने की बात बहुत सुंदर तरीक़े से कही है। आगे हुस्ने मतला में क्या कमाल अंदाज़ है चाँद और सितारों का रात का ज़ेवर बनना और मिसरा सानी में चराग़ों का अख़्तर होना, एकदम उस्तादाना अंदाज़ है। अगले हुस्ने मतला में एक शाश्वत सत्य है प्रेम के चर्चे सचमुच इस प्रकार फैलते हैं जैसे कोई दावानल हो। ख़त लिखना शेर का मिसरा ऊला ही ऐसा ग़ज़ब है कि बस ठिठक कर उसी को पढ़ते रहने की इच्छा होती है। सहरा में चलने की कड़वी और आज की सचाई को सामने लाता शेर मिसरा सानी में जाकर और सुंदर हो गया है। रिश्तों को अनमोल बनाने की खातिर जीना सिखाने का शेर भी सुंदर बना है। और बरगद के नीचे जि़द्दी पौधों का होना वाह क्या कमाल है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है वाह वाह वाह। 


 

अश्विनी रमेश जी

हर दम जलती धूप तले सड़कों पर बाहर होते हैं  
और खुले आकाश तले धरती पे बिस्तर होते हैं

नहीं पिघलते दर्द किसी का देख के अपनी आँखों से
उनके सीने में दिल के बदले बस पत्थर होते हैं
मिटे अँधेरा मावस का हर तरफ़ उजाला बस बिखरे
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

सोचा करते  सबका हित अपने हित से ऊपर उठकर
ऐसे लोग जहाँ में गिनती के उँगली पर होते हैं  
इस महंगाई में आसानी से घर कब चल पाता है
मुफ़लिस की आँखों में हरदम फाकों के डर होते हैं

भूखे मरते कब हैं जीवन में मेहनत करने वाले
उनके संघर्षों के आगे पर्वत नत सर होते हैं
अपने मतलब से जीते हैं दुनिया में जीने वाले
जो औरों की ख़ातिर जीते हैं पैग़ंबर होते हैं 

 वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है रमेश जी ने। सबसे पहले तो मतले में ही उन लोगों की ज़िंदगी का बहुत अच्छा चित्र बनाया है जो किसी  घर में नहीं रहते हैं, हरदम बाहर होते हैं। उसके बाद उन लोगों पर बहुत तीखा व्यंग्य किया है जो दूसरों के दुख को देख कर ज़रा भी नहीं पिघलते हैं। और उसके बाद गिरह का शेर भी बहुत ही कमाल का बना है। अगला ही शेर उन लोगों को समर्पित है जो दूसरों के लिए ही हर पल जीते हैं। अगले दो शेर दो अलग तरह के भाव लिए हुए हैं। एक में भूख के सामने हथियार डाल देने का चित्र है तो दूसरे में जीवन के संग्राम में लड़ते रहने की बात है। दोनों ही शेर बहुत सुंदर बने हैं। और अंतिम शेर में बहुत अचछे से सकारात्मकता की बात कही गई है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली आप सबको दीपावली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आप सब को दीवाली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत मंगल कामनाएँ। आपके जीवन में सुख शांति और समृद्धि की बरसात रहे, आप हमेशा जगमगाते रहें, खिलखिलाते रहें। शुभ हो मंगल हो। शुभ दीवाली।



शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

आज रूप चतुर्दशी है, आज का दिन सौंदर्य का दिन होता है आइए आज छोटी दीपावली का यह त्यौहार हम मनाते हैं अपने चार रचनाकारों के साथ। राकेश खण्डेलवाल जी, लावण्या शाह जी , वासुदेव अग्रवाल 'नमन' और गुरप्रीत सिंह की रचनाओं के साथ ।




दीपावली का यह त्यौहार आशाओं और उम्मीदों को साथ लेकर आता है। हम हर बार सोचते हैं कि इस बार दीपावली के त्यौहार पर क्या नया होने जा रहा है। और यह त्यौहार भी हमको निराश नहीं करता है। हर बार कुछ नवल होता है। इसका नाम दीपोत्सव इसीलिए तो रखा गया है क्योंकि यह दीपों का उत्सव है। दीप जो घर की और मन की दोनों देहरियों पर जगमग होते हैं। इस ब्लॉग पर दीपावली का त्यौहार मनाते हुए दस-बारह वर्ष हो गए हैं। हर बार वही आनंद वही उल्लास होता है। इस बार कोरोना काल में भी रचनाकारों ने जिस उत्साह के साथ अपनी रचनाएँ भेजी हैं उससे मन आनंदित है।


 दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं 

आज रूप चतुर्दशी है, आज का दिन सौंदर्य का दिन होता है आइए आज छोटी दीपावली का यह त्यौहार हम मनाते हैं अपने चार रचनाकारों के साथ। राकेश खण्डेलवाल जी, लावण्या शाह जी, वासुदेव अग्रवाल 'नमन' और गुरप्रीत सिंह की रचनाओं के साथ । 

 

राकेश खण्डेलवाल जी


सूरज की किरणें भी लगता असफल होकर रह जाती
संध्या दोपहरी से पढ़ने लगती रजनी की पाती
निशा, दिवस के उगते उगते अपनी चूनर को लहरा कर
विशद गगन के नीलेपन को आ कर धूमिल कर जाती
तब मन के विश्ववास जागकर इक दीपक में जलते हैं
फैले तम तब किसी  गुफा के अंदर जाकर सोते हैं
दीवाली पर जगमग जगमग तब सारे घर होते हैं

 
संस्कृति के अनुराग कातते हैं जब सांसों के धागे
मन की गहराई में आशा की नूतन किरणें जागे
हारा थका हुआ यायावर सजा रखे पाथेय नया
मंज़िल खुद आकर राहों से अपने लिए दिशा माँगे
सोई हुई आस्थाओं के पल फिर दीपित होते हैं
संशय के घिर रहे क़ुहासे सब छू मंतर होते हैं
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं
 
दिन समेटने लगते हैं फैली किरनी की चादरिया
संध्या रख देती उतार कर सुरमे वाली काँवरिया
आगत के पृष्ठो पर अंकित करती हुई सही अपनी
निखराती हैं ज्योति जड़ी इक हीरकनी की झालरिया
घिरे अकेलापन के बादल चली हवा में बहते गफैं
उत्साहों के सहज प्रवाहित उस पल निर्झर होते हैं
दीवाली पर जगमग जगमग अब सारे घर होते हैं

वाह वाह वाह,  क्या सुंदर गीत है, यह गीत और कल का गीत मिलकर एक नई दुनिया की सृष्टि कर रहे हैं। आज के इस गीत में प्रकृति का पूरा चित्रण किया गया है। सूरज की किरणें संध्या, दोपहरी, निशा, दिवस ऐसा लगता है जैसे पूरा का पूरा कैनवास रंग गया है प्रकृति के रंगों से। ऐसे ही तो नहीं कहा जाता है राकेश जी को गीतों का राजकुमार। मंजिल ख़ुद आकर राहों से अपने लिए दिशा माँगे, वाह क्या कल्पना है और क्या सोच है। संध्या रख देती है उतार कर सुरमे वाली काँवरिया… क्या ग़ज़ब का बिंब है बहुत सुंदर। राकेश जी के गीत हमारी हर तरही के माथे पर सजी हुई सुंदर बिंदी होते हैँ। अभी तो उनका एक गीत हमें कल भी सुनना है। वाह वाह वाह क्या सुंदर गीत। 


लावण्या शाह जी

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं
आँगन द्वार रंगोली सजने के जब  मंज़र, होते हैं।

लिपे पुते घर, चमचम चमचम, स्वागत करते हैं
कहीं पटाखे, तो आले पे, दियना बाती जलते हैं
जल री बाती तू धीरे से जलना रात तुझे  सारी 
गुम है चन्दा का झूमर, तिथि मावस है ये दीवाली

चाँदी की नथनी, में उजियारे के लश्कर होते हैं 

मैया लछमी स्वागत करते, आओ पधारो, हे माई
स्वागत करते राजा परजा, दीवाली जो है आई
सुख देना हे माँ दुःखहरिणी दुर्गा ललिता जगदम्बा   
हाथ जोड़ ये अरज लगाएँ द्वार तेरे हे माँ अम्बा      

गृहस्वामिनी के बुदबुद-बुदबुद मंत्रबद्ध स्वर होते हैं

है ये रात दीवाली की, कुछ कहना, कुछ गुनना साथी 
ये चराग़ आशा के घृत से ही ताकतवर होते हैं

वाह वाह वाह, बहुत ही सुंदर है यह गीत। पूरी गीत मानों दीवापली का चित्र सा खींच दे रहा है सामने। दीपावली और लक्षमी पूजा का पूरा साकार चित्र। लिपे पुते घर, पटाखे, आले पे दियना बाती का जलना, ऐसा लग रहा है जैसे हम पूरे मंज़र को सामने बैठ कर ही देख रहे हैँ। चाँदी की नथनी में उजियारे के लश्कर का बिंब बहुत अनूठा है। और अगले बंद में लक्षमी के दुर्गा रूप के सामने प्रार्थना में खड़ी हुई गृहस्वामिनी जिसके होंठों पर बस केवल अपने घर में सुख और शांति की कामना है। बहुत ही सुंदर गीत लिखा है आदरणीय लावण्या जी ने। पूरा गीत जैसे मंज़रकशी है दीपावली के त्यौहार की। वाह वाह वाह। 

 

वासुदेव अग्रवाल 'नमन'

 

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं,
आतिशबाज़ी धूम धड़ाके हर नुक्कड़ पर होते हैं।

पकवानों की खुशबू छायी, आरतियों के स्वर गूँजे,
त्योहारों के ये ही क्षण खुशियों के अवसर होते हैं।
अनदेखी परिणामों की कर जंगल नष्ट करें मानव,
इससे नदियों का जल सूखे बेघर वनचर होते हैं।

क्या कहिये ऐसों को जो रहते तो शीशों के पीछे,
औरों की ख़ातिर उनके हाथों में पत्थर होते हैं।
कायर तो छुप वार करें या दूम दबा कर वे भागें,
रण में डट रिपु जो ललकारें वे ताकतवर होते हैं।

दुबके रहते घर के अंदर भारी सांसों को ले हम,
आपे से सरकार हमारे जब भी बाहर होते हैं।
कमज़ोरों पर ज़ोर दिखायें गेह उजाड़ें दीनों के,
बर्बर जो होते हैं वे अंदर से जर्जर होते हैं।

पर हित में विष पी कर ही देवों के देव बनें शंकर,
त्यज कर स्वार्थ करें जो सेवा पूजित वे नर होते हैं।
दीन दुखी के दर्द 'नमन' जो कहते अपनी ग़ज़लों में,
वैसे ही कुछ खास सुख़नवर सच्चे शायर होते हैं।

वाह वाह वाह,  बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। पकवानों की ख़शबू छाई आरतियों के स्वर गूँजे वाह क्या मिसरा बनाया है। और अगले ही शेर में पर्यावरण की चिंता कवि के मन में उमड़ पड़ी है। और अगले ही शेर में कहावत को क्या ख़ूब अंदाज़ में शेर में ढाला है, शीशे के घर में रहने वालों के हाथों में पत्थर का प्रयोग बहुत सुंदर है। कमज़ोरों पर ज़ोर दिखाएँ में मिसरा सानी बहुत सुंदर बना है बर्बर जो होते हैं वे अंदर से जर्जर होते हैं। वाह क्या काफिया लगाया है और उस पर बर्बर के साथ उसका प्रयोग बहुत सुंदर। शंकर द्वारा विषपान किए जाने का प्रयोग भी बहुत ही सुंदर है, सचमुच जो दूसरों का विष पी लेता है उसे ही शंकर की उपाधि मिलती है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है आदरणीय नमन जी ने बहुत ख़ूब वाह वाह वाह। 

 

गुरप्रीत सिंह

 

इश्क़ में बनने वाले सारे उल्टे मंज़र होते हैं।
कुछ दिखते हैं होते नहीं, कुछ दिखते नहीं पर होते हैं।

पहला सीन : मेरे सपने उड़ने को तत्पर होते हैं।
दूजा सीन : वहीं पर बिखरे कुछ टूटे पर होते हैं।
कहते हैं रब जब देता है छप्पर फाड़ के देता है,
हाँ, पर वो तो उनको ही ना! जिनके छप्पर होते हैं।

ज़ोर से चिल्ला लेते हैं जब हद से अधिक दबाव बने,
हम इंसानों से अच्छे तो प्रैशर कूकर होते हैं।
ये दोनों ही इक दूजे के इलाके में घुसपैठ करें,
ज़हन-ओ-दिल की सरहद पर रोज़ाना फ़ायर होते हैं।

मिलना तो मैं भी चाहूँ लेकिन मैं कैसे आऊँ माँ,
बंटी के पापा तो सन्डे को भी दफ़्तर होते हैं।
इक मुस्कान से पापा की दिनभर की थकावट दूर करें,
ये नन्हे-मुन्ने बच्चे कैसे जादूगर होते हैं।

दिल की बस्ती नाम तुम्हारे कर तो दूँ, पर फ़िर सोचूँ,
ऐसा करता हूँ तो बाकी अरमां बेघर होते हैं।
छत पर चढ़ कर देखो तो क्या ख़ूब नज़ारा दिखता है,
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं।

 

वाह वाह वाह बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है गुरप्रीत ने पहले तो मतले में ही जो उलटबाँसी का सहारा लिया गया है उसने बहुत अच्छा प्रभाव छोड़ा है। फिर पहले ही शेर में पहला सीन और दूजा सीन को वज़न पर बिठा कर मिसरे में शामिल करना कमाल है। छप्पर वाले शेर में मिसरा सानी बहुत अच्छा बना है। इंसानों से प्रेशर कूकर की तुलना बहुत उम्दा है। सच है कि हम इंसान तो चाह कर भी अपना प्रेशर रिलीज़ नहीं कर पाते हैं। दिल और दिमाग के बीच चल रही जंग को बहुत अच्छे से शेर में ढाल दिया है गुरप्रीत ने। दिल की बस्ती नाम तुम्हारे कर तो दूँ पर फिर सोचूँ में मिसरा सानी एकदम छन्न से लग रहा है आकर। और अंत के शेर में गिरह को इस तरह बाँधा गया है कि ख़ूब मंज़रकशी हो गई है। बहुत ही अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह।  


आज चारों ही रचनाकारों ने छोटी दीवाली में उल्लास भर दिया है। ऐसा लग रहा है जैसे चराग़ों की एक कतार सी जगमगा रही है शब्दों के रूप में । आप सब को छोटी दीवाली की मंगल कामनाएँ देते रहिए दाद और इंतज़ार कीजिए कल का। 
 



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