शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका "विभोम-स्वर" का वर्ष : 5, अंक : 19, त्रैमासिक : अक्टूबर-दिसम्बर 2020 अंक का वेब संस्करण

मित्रो, संरक्षक तथा प्रमुख संपादक सुधा ओम ढींगरा एवं संपादक पंकज सुबीर के संपादन में वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका "विभोम-स्वर" का वर्ष : 5, अंक : 19, त्रैमासिक : अक्टूबर-दिसम्बर 2020 अंक का वेब संस्करण अब उपलब्ध है। इस अंक में शामिल है- संपादकीय, मित्रनामा, साक्षात्कार- प्रोफ़ेसर नीलू गुप्ता से सुधा ओम ढींगरा की बातचीत। कथा कहानी- मौसमों की करवट- प्रज्ञा, परदेस के पड़ोसी- अनिल प्रभा कुमार, वह उस्मान को जानता है- रमेश शर्मा, नियर अबाउट डेथ- डॉ. सन्ध्या तिवारी, टी-सैट- उषाकिरण, ढलती शाम का हम सफ़र- मार्टिन जॉन, शहर भीतर गाँव, गाँव भीतर शहर- डॉ. विनीता राहुरीकर, प्रमोशन- सतीश सिंह, व्यस्त चौराहे- मीना पाठक। लघुकथाएँ- सौतेला नागरिक- रीता कौशल, राजनीति के कान- कमलेश भारतीय। भाषांतर- शो-केस में रखा ताजमहल- बलविंदर सिंह बराड़, अनुवाद: सुभाष नीरव। व्यंग्य- एक मुर्दा चर्चा- प्रेम जनमेजय, वर्तमान समय और हम- हरीश नवल, राजनीतिक प्रेरणा- एक विवेचना- कमलेश पाण्डेय। संस्मरण- मेरे हिस्से के शरद जोशी- वीरेन्द्र जैन। शहरों की रूह- रॉले, कैरी तथा मोर्रिस्विल्ल, नॉर्थ कैरोलाइना- बिंदु सिंह, अमृत वाधवा। आलेख- संकटकालीन समय में रचे विश्व साहित्य: एक आत्मविश्लेषण और उम्मीद की किरण- डॉ. नीलाक्षी फुकन। पहली कहानी- ममता की कशिश- ममता त्यागी। ग़ज़ल- अखिल भंडारी। गीत- सूर्यप्रकाश मिश्र, श्याम सुंदर तिवारी। कविताएँ- रचना श्रीवास्तव, डॉ. संगम वर्मा, कल्पना मनोरमा, रेखा भाटिया, नंदा पाण्डेय, आख़िरी पन्ना। आवरण चित्र- पारुल सिंह, रेखाचित्र - रोहित प्रसाद , डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी, शहरयार अमजद ख़ान , आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्क़रण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
ऑनलाइन पढ़ें पत्रिका-
https://www.slideshare.net/vibhomswar/vibhom-swar-oct-dec-2020
https://issuu.com/vibhomswar/docs/vibhom_20swar_20oct_20dec_202020
वेबसाइट से डाउनलोड करें
http://www.vibhom.com/vibhomswar.html
फेस बुक पर
https://www.facebook.com/Vibhomswar
कविता कोश पर पढ़ें
http://kavitakosh.org/kk/विभोम_स्वर_पत्रिका

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

दीपावली का तरही मुशायरा आयोजित किया जाए… बहुत दिन हुए यहाँ कोई गतिविधि नहीं हुई है।

देखते ही देखते दीपावली का त्यौहार सामने आ जाता है। एक वर्ष बीत जाता है। इस बार भी वही हो रहा है। इस बार आप मित्रो ने बीच में कई बार याद दिलाया कि दीपावली के लिए इस बार अभी तक कोई भी तरही मिसरा नहीं दिया गया है। मेरी ग़लती है कि मैं ही देर से आपको मिसरा दे रहा हूँ। असल में कोई मिसरा सूझ ही नहीं रहा था। इस बार इच्छा हो रही थी कि क़ाफिया थोड़ा कठिन दिया जाए। कठिन से मतलब ये है कि जिसको निभाने में थोड़ा दिमाग़ का उपयोग करना पड़े। इसलिए क्योंकि बहुत दिनों के बाद मशक़्क़त करनी पड़ेगी आपको तो काम तो कठिन दिया ही जाए न ? तो बहुत सोचने के बाद ये मिसरा बना। काफिया इतना कठिन भी नहीं है जितना मैं कह रहा हूँ, क्योंकि आप सब लोग तो बहुत गुणी जन हैं। आपके सामने कठिन क्या और सरल क्या। यह जो मिसरा है यह वैसे तो आसान मिसरा है मगर बस ये है कि इसके लिए आपको काफिया तलाशने दूर-दूर तक जाना होगा।

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

फेलुन-फेलुन-फेलुन-फेलुन-फेलुन-फेलुन-फेलुन-फा

22-22-22-22-22-22-22-2

यह हिन्दी के मात्रिक छंद पर आधारित बहर है फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा = 30 मात्रा, जिसमें काफिया है ‘घर’ और रदीफ़ है ‘होते हैं’। अब साधारण रूप से तो कर, शर, घर, भर, तर, नर, मर, जैसे काफिये उपयोग में लाए ही जा सकते हैं लेकिन इसके साथ आखर, बाहर, अंदर, शायर, बंजर, पत्थर जैसे काफिये भी उपयोग में लाए जा सकते हैं।

आप कहेंगे कि कोई तो उदाहरण दीजिए इस बहर का जिससे कि इस पर ग़ज़ल कही जा सके, तो साहब उदाहरण भी लीजिए मीर तक़ी मीर साहब की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल जिसके मतले को 1972 में आई  फिल्म एक नज़र के गीत में उपयोग किया गया “पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है, जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है”। इस बहर पर सबसे ज़्यादा काम मीर साहब ने ही किया है इसलिए इसे “बहरे मीर” के नाम से भी जाना जाता है। 

तो दीपावली में बस अब कुछ ही दिन रह गए हैं, उठाइये कलम और लिख डालिए एक अच्छी सी ग़ज़ल।

परिवार