गुरुवार, 25 अक्तूबर 2007

दिल थाम के बैठिये अब बारी आ रही है सब की प्‍यारी शरारती उड़न तश्‍तरी की ब्‍लागिया शरद पूर्णिमा कवि सम्‍मेलन में जिस कवि का सबको इंतेज़ार था वो आ रहे हैं तालियों से स्‍वागत कीजिये समीर लाल का

संचालक : जैसे खाने के साथ चटनी की तलब हमेशा ही बनी रहती है वैसे ही ब्‍लाग हों और हमारी नटखट उड़न तश्‍तरी न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता दो लाइन के साथ उनको बुलाता हूं

कविता के इस आंगन में अपनी कविताएं तुम पटको

चमगादड़ की क्‍या मेहमानी हम लटके तुम भी लटको

आइये समीर लाल जी स्‍वागत है आपका

Udan Tashtari वाह वाह देर से आये मगर आनन्द आ गया. अब हमारी बारी. तो पहले यह सुनें-क्या एक ही सुनाना है या जब तक माईक वापस न छीन लिया जाये, याने जैसा आम तौर पर होता है :) ???
यह एक जीवन दर्शन पर आधारित रचना पर ध्यान चाहूँगा-ताली हर मुक्तक के बीच में, अंत में और शुरु में-कहीं भी बजाई जा सकती है. कोई नियम में बंधा न महसूस करे.
वो इक पागल सी चिड़िया
घने घनघोर जंगल में, बहारें खिलखिलाती हैं
लहर की देख चंचलता, नदी भी मुस्कराती है
वहीं कुछ दूर पेड़ों की पनाहों में सिमट करके
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.
कभी वो डाल पर बैठे, कभी वो उड़ भी जाती है
जुटा लाई है कुछ तिनके, उन्हीं से घर बनाती है
शाम ढलने को आई है, जरा आराम भी कर ले
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.
अभी कुछ रोज बीते हैं, मिला इक और साथी है
नीड़ में अब बहारें हैं, चहकती बात आती है
लाई है चोंच में भरके, उन्हें अब कुछ खिलाने को
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.
बड़े नाजों से पाला है, उन्हें उड़ना सिखाती है
बचाना खुद को कैसे है, यही वो गुर बताती है
उड़े आकाश में प्यारे, अकेली आज फिर बैठी
वो इक पागल सी चिड़िया भी, मेरे ही गीत गाती है.
संचालक : भई बहुत बढि़या समीर जी हम भी जानते हैं कि कौन सी चिडि़या की बात आप कर रहे हैं ( भाभी को नहीं बताएंगें वादा रहा )

Udan Tashtari  सारथी जी और अनूप जी दोनों ने ही बेहतरीन कविता पढ़ीं हैं दोनों ही बहुत बेहतरीन.  चलने दिजिये इस कवि सम्मेलन को जोरों में.
संचालक : आपसे पहले बीना जी और मीनाक्षी तथा कंचन भी पढ़ चुकी हैं ।

Udan Tashtari वाह वीना जी..बधाई...वाह मीनाक्षी  जी..बधाई...आप दोनों ने ही शरद पूर्णिमा के कवि सम्‍मेलन को सार्थक कर दिया है तालियाँ...तालियाँ----मीनाक्षी जी और कंचन और वीना जी के लिये.
दोनों ही हमारी बारी में इन तालियों को याद रखें कृप्या. यह भी उधार का स्वरुप होती हैं. :)
वैसे न भी बजायें तो आप दोनों ने इतना बेहतरीन प्रस्तुत किया है कि हमें तो बजाना ही था.
कंचन जी का दूसरा दौर भी हो गया और हमारा अभी नम्बर आना बाकी है. क्या करें-
अक्सर देर कर देता हूँ मैं.(मुनीर नियाजी)

 संचालक : जारी है ब्‍लागिया शरद पूर्णिमा कवि सम्‍मेलन देते रहिये अपनी कविताएं और उनको देखते रहिये कवि सम्‍मेलन में । रात 9 बजे माड़साब संचालन खत्‍म करके सचमुच के कवि सम्‍मेलन में चले जाऐंगें उसके बाद संचालन संभलेंगें समीर लाल जो अपने ब्‍लाग पर कविताओं को प्रका‍शित करके कवि सम्‍मेलन को रात्रि तक चलाऐंगें ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. अवश्य ले ली जायेगी बागड़ोर संचालन की. विश्वास व्यक्त करने का आभार.

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  2. कवि सम्मेलन तो बड़ा ज़ोरदार रहा,

    हमेशा देर कर देतa हूँ मैं भी। :)

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  3. गुरुदेव,
    कवि सम्मलेन में सभी कवितायेँ अच्छी है...
    चमगादड़ की क्या मेहमानी हम भी लटके तुम भी लटको....पसंद आया...

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