निकले चंदा रात मुस्कराए
झूम-झूम इठलाती है
तारों से आंचल भरकर
फिर दुल्हन सी शरमाती है
चांदनी रात मन भाती है
चम-चम करते रेत के हीरे
किरणों के हार पहनाती है
मन में उल्लास जगाए है
चांद की शीतलता भी अब
मन में आग लगाए है
जा पहुंची अल्हड़ यौवन में
चंदा-चांदनी लुक-छुप खेलें
हर घर के कोने-आंगन में
शीतलता पाती है अब
रेत का आभास जिसे था
चमक-चमक जाती है अब
फिर से शीतल बनाया है
रेत को भी चंद्र किरण ने
चांदी सा चमकाया है
चम-चम चमके तारों से
धवल चांदनी फैली इत-उत
शोभित है मनुहारों से
ब्रह्मांड का गगन मंडल
शीतल, धवल चांदनी में अब
दूध सा श्वेत लगे है जल
चंद्र खिलौना ला दो ना
हाथ बढ़ाकर उसे बुलाता
चंदा मामा आओ ना
वहीं चांदनी जाती है
एक पल को साथ न छूटे
यही चांदनी चाहती है
अगले क्षण भय जुदाई का
धीरे-धीरे छुपता है चंदा
साथ मिला हरजाई का
द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी को
निशा कालिमा डस जाएगी
प्रेमी-प्रियतम चंदा को
संचालक : और दूसरे दौर में पुन: स्वागत करें कंचन जी का
देख रहे हैं ऐसा सपना जो सच होगा कभी नही,
हम जाने को कहते हैं और वो कहते हैं अभी नही!
और हमरी आँखें देखें निर्निमेष सी उनको ही,
और अचानक ही हम दोनो एक दूजे से मिलते है,
आँखें सब कुछ कह जाती है , मगर ज़बानें खुली नही।
एक टक वो देखें हो मुझको और मेरी नज़रें उनको,
दिल की धड़कन हम दोनो की तेज़ ही होती जाती है,
कहे हृदय अब नयन झुका लो, मगर निगाहें झुकी नही।
कवि सम्मेलन जारी हैं भेजते रहें कविताएं ब्लागिया कवि सम्मेलन में ।
वाह वीना जी..बधाई...
जवाब देंहटाएंकंचन जी का दूसरा दौर भी हो गया और हमारा अभी नम्बर आना बाकी है. क्या करें-
अक्सर देर कर देता हूँ मैं.(मुनीर नियाजी)
वाह वाह
जवाब देंहटाएंगुरु जी सदर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंमैं भी इस कवि सम्मलेन में शामिल होना चाहता हूँ क्या करना होगा मुझे ... कृपया सुझाव दे...
आपका विनीत
अर्श