शनिवार, 29 सितंबर 2007

मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोए बड़ी चोट खाई जवानी पे रोए । कभीसोचा है कि ये गाना गुनगुनाने में इतना आसान क्‍यों लगता हैं सोच कर देखें

सबसे पहले तो बात की जाए अनूप जी की अनूप जी ने आते ही पहले तो मुर्गाबने और फिर ऐसा काम किया कि माड़साब ने 'धे छड़ी-धे छड़ी' लाल कर दिया । जनाब फरमा रहे थे
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने
प्यार में हद से गुजर जाने का मज़ा क्या जाने
अब इसमें अगर देखा जाए तो
प्‍या फा, र-ए, में-ला, हद-तुन (फाएलातुन)
से-फ, गु-ए, ज़र-ला, जा-तुन (फएलातुन)
अब आएगा असली मजा
ने-फा, का-फ, म-ए, जा-ला, क्‍या-तुन ( भोत ही गुड भैया आपने तो एक नया ही आविष्‍कार कर दिया है फाफएलातुन) छड़ी छड़ी छड़ी और सजा ये है कि उड़न तश्‍तरी को कंधे पर उठाकर स्‍कूल के पांच चक्‍कर लगाओ ।
दरअसल में एक पूरा का पूरा दीर्घ बढ़ रहा है यहां पर । और खयाल में भी कमजोरी है दिल मे हौले से समाना और प्‍यार में हद से गुजर जाना दोनों दो विपरीत बातें हैं ( लगता है कि मुझे एक ब्‍लाग और शुरू करना पड़ेगा जहां पर प्‍यार के मूलभूत तत्‍व और उसकी नीतिगत विशेषताएं बतानी पड़ेगी ) । ध्‍यान में रखें एक बात कि हुआ है समाने पर खेल अत: आप गुज़र जाने तो ले ही नहीं सकते क्‍योंकि उसमें जाने से ठीक पहले एक दीर्घ गुज़र का ज़र आ रहा है अत: बात फेल हो रही है । आपको जो काफिये लेना हें वे समाने, दिखाने, बताने जैसे ही लेने है और अगर आप जाने माने भी लेना चाहते हैं तो उसके ठीक पहले लघु होना चाहिये दीर्घ नहीं । जैसे
वादा कर कर, के न आने, का मज़ा क्‍या, जाने
अब यहां क्‍या हुआ आने के ठीक पहले आ रहा है जो कि एक लघु है इसलिये ये चल गया है । जहां जहां मैंने कामा लगाए हैं वो रुक्‍न हैं फाएलातुन-फएलातुन-फएलातुल-फालुन
आप भी ऐसा करें कि जब गज़ल लिखें तो यही कामा की पद्धति अपनाएं उससे क्‍या होगा कि आपको ख़द को ही समझ आएगा । कि मात्रा की घट बढ़ कहां पर हो रही है । एक रुक्‍न लिखें और कामा लगा दें ।
अभिनव said...
मुद्दत हुई थी सामने मुर्गा बने हुए,
स्कूल मेरे सामने फिर आके जम गया,
बहर तो ठीक है पर आपको स्‍कूल की जगह पर इसकूल लिखना होगा तो बात बनेगी । क्‍योंक‍ि आपने शुरुआत की है मुद दत से दो दीर्घ से इस और कू से वज्‍न मिल जाएगा ।
नीरज ने लिखा है
राह में गर कहीं वो जो आयें नजर,
देख के उनको नजरे चुराता हूँ मैं
जानता हूँ वो मेरा मुकद्दर नहीं,
उनको पाने की हसरत मिटाता हूँ मैं
दिल में आंसू लबों पे तबस्सुम लिए
दर्द लेके हंसी बाँट आता हूँ मैं
इसको दोनो तरह से चीर फाड़ करने काकाम छात्रों को दिया जाता है पूरा विश्‍लेष्‍ण करें कि इसमें बहर के दोष हैं ये नहीं । खयालों की कमजोरी कहां कहां पर आ रही है । (हिंट -दूसरे शे'र को जरूर देखें ) और हां हो सके तो इसका मतला बनाने का काम करें । ये एक ज़रूरी होमवर्क है सभीको कल संडे की छुट्टी में करने के बाद सोमवार के पहले कापी जमा करवानी हैं । सोमवार से हम बहरों की क्‍लासें चालू करेंगें । ये मेरा अनुरोध है कि नीरज के शे'रों को कापी में उतार कर उनका दिल से पोस्‍टमार्टम करें और फिर उनका उत्‍तर निकालें कि खयाल और बहर में कहां कमजोरी है और रुक्‍न भी निकाल के बताएं । खयाल की कमजोरी पर ज्‍यादा ध्‍यान दें वही महत्‍व पूर्ण है ।
होम वर्क क्रमांक 2
आपने फिल्‍म मुगले आजुम का गीत सुना होगा
मुहब्‍बत, की झूठी, कहानी, पे रोए
बड़ी चो, ट खाई, जवानी, पे रोए
ये ग़ज़ल के प्रारंभिक छात्रों के लिये सबसे आसान बहर है बहरे मुतकारबि मुसमन सालिम
वज्‍़न है
फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन
122-122-122-122
इस पर कसरत करें ये गाने में भी आसान बहर है । काफिया रदीफ ये ना लें मतलब कहानी पे रोए की जगह कुछ और करें
ये सबसे आसान बहर है कुछ भी कहें
मुझे गुल के हंसने पे आता है रोना
के इस तरह हंसने की खू थी किसी की
पर इस पर काम ज़रूर करें अगर कर पाए तो हम सोमवार से प्रारंभ करेंगे बहर का सफर ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. भाई ये पढ़ने में बड़ी दिक़्क़त हो रही है. दो अक्षरों के बीच में गोले-गोले दिख रहे हैं.

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  2. यस सर।

    होम वर्क का एक भाग पूरा करने का प्रयास कर रहा हूँ, शेष भी सोमवार से पहले जमा करने का प्रयास करूँगा।

    फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन

    धुँआ ही धुँआ है भरा अंजुमन में,
    लगी आग कैसी हमारे चमन में,

    सबूतों के ज़रिए पता लग रहा है,
    वहाँ कौन शामिल था लंका दहन में,

    दिलों में गुलों में नदी के पुलों में,
    नहीं चैन से है कोई अब वतन में,

    भला कैसे पूरा करें काम 'मुन्ना',
    नहीं आ रहा है कोई भाव मन में,

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  3. ये लीजिए सर होम वर्क का दूसरा भाग,

    मतलाः

    खुद को कुछ इस तरह आज़माता हूँ मैं,
    याद कर कर के उनको भुलाता हूँ मैं।

    बात करता नहीं कसमसाता हूँ मैं,
    दूर जाता हूँ मैं पास आता हूँ मैं,

    बहर विश्लेषणः
    (लालला लालला लालला लालला)

    रा ह में - ला ल ला
    ग़र क हीं - ला ल ला
    वो जो आ - ला ल ला
    ए न ज़र - ला ल ला

    दे ख के - ला ल ला
    उन को नज़ - ला ल ला
    रें चु रा - ला ल ला
    ता हूँ मैं - ला ल ला

    राह में गर कहीं वो जो आयें नजर,
    देख के उनको नजरे चुराता हूँ मैं
    जानता हूँ वो मेरा मुकद्दर नहीं,
    उनको पाने की हसरत मिटाता हूँ मैं
    दिल में आंसू लबों पे तबस्सुम लिए
    दर्द लेके हंसी बाँट आता हूँ मैं

    यदि मेरे द्वारा जो मीटर सोचा गया है वह सही है तो कई पंक्तियों में मीटर की गड़बड़ी है। जैसे,

    जा न ता - लालला
    हूँ वो मे - लालला
    रा मु कद्द् - यहाँ लालला की जगह ला ल ल लग रहा है।
    द्दर न हीं, - लालला


    भाव विश्लेषणः
    आखरी शेर में ये पंक्ति (दर्द लेके हंसी बाँट आता हूँ मैं) कुछ अखर सी रही है, इसकी जगह यदि कुछ ऐसा हो।

    दिल में आंसू लबों पे तबस्सुम लिए
    सबको अपनी हंसी बाँट आता हूँ मैं।

    वैसे ये सभी पंक्तियाँ पढ़ने में अच्छी लगीं। नीरज जी के भाव भली प्रकार व्यक्त हुए हैं।

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  4. गुरुवर:

    छड़ी छड़ी और छड़ी तो ठीक है लेकिन "उड़न तश्‍तरी को कंधे पर उठाकर स्‍कूल के पांच चक्‍कर" लगानें को मत कहिये, बहुत नाइंसाफ़ी होगी । न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।

    अनूप

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  5. 122 122 122 122

    jald hi is meter par aapko likh kar kuch bhejugaaa...

    aapka shishy

    tapan dubey

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