आज से ५९ वर्ष पूर्व, जब देश आजादी की पहली वर्षगांठ मना रहा था, तब एक आवाज चुपचाप से अपनी मौजूदगी का एहसास करा रही थी, हालाँकि सिने संगीत में उस आवाज का पर्दापण तो आजादी के भी लगभग पाँच वर्ष पूर्व हो चुका था, परन्तु 1948 में अचानक उस आवाज ने सारे देश को चमंत्कृत करके रख दिया था, वो गीत था आएगा आने वाला, और फिल्म थी महल। परदे पर भारतीय रजत पट की वीनस मधुबाला, अतृप्त आत्मा का एक छलावा भरा किरदार निभा रही थी, और एक रूहानी आवाज अपनी गूँज से, सारे माहौल को रहस्यमय बना रही थी। कितना बड़ा वरदान है ईश्वर का हम पर, कि आज पचास से अधिक वर्षो के बाद भी वही लता मंगेशकर अपनी जादू भरी आवाज से हमें मदहोश कर रही हैं मुझे ख़बर है वो मेरा नहीं पराया था ‘सादगी’ एलबम में । लता जी को भारत रत्न सम्मान दिया जाना वास्तव में, धन्यवाद ज्ञापन है, उन लाखों करोंड़ों संगीत रसिकों की और से जिन्हें लता जी की दिव्य आवाज तथा जादुई सुरों ने परमानंद की अनुभूति करवाई है।
लगभग 78 वर्ष पूर्व - 28 सितम्बर, 1929 को, रात दस बज कर सैंतालीस मिनट पर, इन्दौर में जब पंडित दीनानाथ जी मंगेशकर के यहां कन्यारत्न की प्राप्ती हुई थी, तब न तो पंडित जी, और ना इन्दौर वासी जानते थे, कि इस शनिवार के दिन ने, उन्हें कैसी गौरवमयी उपलब्धि से जोड़ दिया है। इन्दौर की फिजा में जिस नवजात कन्या का रूदन गूंज रहा है, उसी के कंठ से निकले स्वर, एक दिन सारे भारत, बल्कि सारे विश्व की फिजा में गूंजेगें। पंडित दीनानाथ मंगेशकर, भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक जाना पहचाना नाम थे, अतः उस कन्या के रक्त में सुरों की झंकार तो विरासत में आई थी।
लता जी ने अपने पिता से शास्त्रीय संगीत का ज्ञान प्राप्त करना प्रारंभ किया, उस उम्र में, जबकि बच्चियाँ अपने खिलौने की दुनिया में सीमित रहती हैं, पंडित जी अपने देहान्त के समय, शास्त्रीय संगीत की विरासत, और तीन बहनों एवं एक भाई का बोझ, अपनी ज्येष्ठ पुत्री के किशोर कंधो पर छोड़ गये थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पूंजी के नाम पर बस वे सुर थे, जो पंडित जी अपनी संतानों के कंठ में छोड गये थे। आशा जी ने एक बार किसी इन्टरव्यू में कहा था, कि संघर्ष के उन दिनों में लता दीदी और मैं, पैदल ही रिकार्डिंग स्टूडियो जाया करते थे, तब गर्मी के दिनों में मुंबई की सड़कों का तारकोल पिघला हुआ होता था, अतः हमारी चप्पलों में चिपक जाया करता था, लता दीदी कहीं बैठकर अपनी, और मेरी चप्पलों से तारकोल छुड़ातीं, और फिर हम चल देते। संघर्षो से जूझने का यही वह साहस है, जिसने लता जी को यहां लाकर खड़ा कर दिया। आप आंखे बन्द कर कल्पना कीजिये, एक सीधी -साधी सी, दुबली पतली लड़की सड़क किनारे बैठी, हाथो में पत्थर लिये, अपनी और अपनी बहन की चप्पलों पर लगा तारकोल छुडा रही है, और फिर सोचिंए, आज की लता मंगेशकर के बारे में, एक संघर्ष गाथा, विजय गाथा में कैसे बदली, आप स्वयं जान जायेंगे। लताजी के लिये फिल्मों में पार्श्वगायन उस समय एक मजबूरी थी, क्योंकि सारे परिवार का बोझ उन पर था, परन्तु कौन जानता था, कि यही मजबूरी भारतीय संगीत प्रेमियों के लिये, माँ सरस्वती का सबसे बड़ा वरदान साबित होगी।
ये लता जी के उन पचास गीतों की सूची है जो मैंने छांट कर छ: साल पहले कादम्बिनी में प्रकाशित की थी । और उस पर लता जी का पत्र भी मुझे मिला था जिसमें उन्होंने लिखा था कि मैं आपके कार्य की प्रशंसा करती हूं कि आपने इतनी मेहनत करके ये गीत छांटे हैं ।
एकल फिल्मी
(सर्वश्रेष्ठ सामूहिक प्रभाव वाले गीत)
1हमने देखी है ...- खामोशी
2आप यूं फासलों से... - शंकर हुसैन
3दिल और उनकी ...- प्रेम पर्वत
4माई री मै कासे ... - दस्तक
5खेलो न मेरे दिल से - हकीकत
6दिल तो है...- मुकद्दर का सिकन्दर
7तू चन्दा ... - रेशमा और शेरा
8अजनबी कौन हो तुम - स्वीकार किया मैंने
9ये मुलाकात एक बहाना है - ख़ानदान
10दिखाई दिये यूं - बाजार
युगल फिल्मी
(सर्वश्रेष्ठ सामूहिक प्रभाव वाले गीत)
1तेरे बिना जिन्दगी...- आँधी
2कभी कभी मेरे ... - कभी कभी
3गुलमोहर गर ...- देवता
4सिमटी हुई ये ... - चम्बल की कसम
5मुझे छू रही हैं... -स्वयंवर
6पत्ता-पत्ता ...- एक नजर
7एक प्यार का ...- शोर
8बीती ना बिताई... -परिचय
9दिल ढूंढता है ...- मौसम
10ये कहां आ गये ...-सिलसिला
गैर फिल्मी
1चाला वाही देस - (चाला वाही देस)
2ए मेरे वतन के लोगों -
3निसदिन बरसत नैन - (निस दिन बरसत नैन हमारे)
4मैं केवल तुम्हारे लिए - (प्रेम भक्ति मुक्ति)
5सांझ भई घर आ जा रे पिया
6दर्द से मेरा दामन (सजदा)
7ठुमक चलत रामचन्द्र - (राम रतन धन पायो)
8अनगिनती हैं तेरे नाम - (अटल छत्रा सच्चा दरबार)
9आकाश के उस पार भी - (ए मेरे वतन के लोगो)
10राम का गुणगान करिए - (राम श्याम गुणगान)
सर्वकालिक महान गीत (एकल)
1अल्ला तेरो नाम...- हम दोनों
2मोरा गोरा रंग... - बंदिनी
3मोहे भूल गए...- बेजू बावरा
4रसिक बलमा...-चोरी-चोरी
5हाये रे वो दिन...-अनुराधा
6लग जा गले ...-वो कौन थी?
7ओ सजना बरखा-परख
8ये जिन्दगी उसी...-अनारकली
9आजा रे परदेसी-मधुमती
10है इसी में प्यार...-अनपढ़
सर्वकालिक महान गीत (युगल)
1दिल की गिरह ...- रात और दिन
2तुम गगन के... - सती-सावित्री
3तू गंगा की...- बेजू बावरा
4जरा सामने...-जनम जनम के फेरे
5नैन सो नैन...-झनक झनक पायल बाजे
6प्यार हुआ इकरार ...-श्री 420
7वो जब याद आये-पारसमणी
8दमभर जो उधर...-अवारा
9चलो दिलदार-पाकीजा
10ओ मेरे सनम...-संगम
लगभग 78 वर्ष पूर्व - 28 सितम्बर, 1929 को, रात दस बज कर सैंतालीस मिनट पर, इन्दौर में जब पंडित दीनानाथ जी मंगेशकर के यहां कन्यारत्न की प्राप्ती हुई थी, तब न तो पंडित जी, और ना इन्दौर वासी जानते थे, कि इस शनिवार के दिन ने, उन्हें कैसी गौरवमयी उपलब्धि से जोड़ दिया है। इन्दौर की फिजा में जिस नवजात कन्या का रूदन गूंज रहा है, उसी के कंठ से निकले स्वर, एक दिन सारे भारत, बल्कि सारे विश्व की फिजा में गूंजेगें। पंडित दीनानाथ मंगेशकर, भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक जाना पहचाना नाम थे, अतः उस कन्या के रक्त में सुरों की झंकार तो विरासत में आई थी।
लता जी ने अपने पिता से शास्त्रीय संगीत का ज्ञान प्राप्त करना प्रारंभ किया, उस उम्र में, जबकि बच्चियाँ अपने खिलौने की दुनिया में सीमित रहती हैं, पंडित जी अपने देहान्त के समय, शास्त्रीय संगीत की विरासत, और तीन बहनों एवं एक भाई का बोझ, अपनी ज्येष्ठ पुत्री के किशोर कंधो पर छोड़ गये थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पूंजी के नाम पर बस वे सुर थे, जो पंडित जी अपनी संतानों के कंठ में छोड गये थे। आशा जी ने एक बार किसी इन्टरव्यू में कहा था, कि संघर्ष के उन दिनों में लता दीदी और मैं, पैदल ही रिकार्डिंग स्टूडियो जाया करते थे, तब गर्मी के दिनों में मुंबई की सड़कों का तारकोल पिघला हुआ होता था, अतः हमारी चप्पलों में चिपक जाया करता था, लता दीदी कहीं बैठकर अपनी, और मेरी चप्पलों से तारकोल छुड़ातीं, और फिर हम चल देते। संघर्षो से जूझने का यही वह साहस है, जिसने लता जी को यहां लाकर खड़ा कर दिया। आप आंखे बन्द कर कल्पना कीजिये, एक सीधी -साधी सी, दुबली पतली लड़की सड़क किनारे बैठी, हाथो में पत्थर लिये, अपनी और अपनी बहन की चप्पलों पर लगा तारकोल छुडा रही है, और फिर सोचिंए, आज की लता मंगेशकर के बारे में, एक संघर्ष गाथा, विजय गाथा में कैसे बदली, आप स्वयं जान जायेंगे। लताजी के लिये फिल्मों में पार्श्वगायन उस समय एक मजबूरी थी, क्योंकि सारे परिवार का बोझ उन पर था, परन्तु कौन जानता था, कि यही मजबूरी भारतीय संगीत प्रेमियों के लिये, माँ सरस्वती का सबसे बड़ा वरदान साबित होगी।
ये लता जी के उन पचास गीतों की सूची है जो मैंने छांट कर छ: साल पहले कादम्बिनी में प्रकाशित की थी । और उस पर लता जी का पत्र भी मुझे मिला था जिसमें उन्होंने लिखा था कि मैं आपके कार्य की प्रशंसा करती हूं कि आपने इतनी मेहनत करके ये गीत छांटे हैं ।
एकल फिल्मी
(सर्वश्रेष्ठ सामूहिक प्रभाव वाले गीत)
1हमने देखी है ...- खामोशी
2आप यूं फासलों से... - शंकर हुसैन
3दिल और उनकी ...- प्रेम पर्वत
4माई री मै कासे ... - दस्तक
5खेलो न मेरे दिल से - हकीकत
6दिल तो है...- मुकद्दर का सिकन्दर
7तू चन्दा ... - रेशमा और शेरा
8अजनबी कौन हो तुम - स्वीकार किया मैंने
9ये मुलाकात एक बहाना है - ख़ानदान
10दिखाई दिये यूं - बाजार
युगल फिल्मी
(सर्वश्रेष्ठ सामूहिक प्रभाव वाले गीत)
1तेरे बिना जिन्दगी...- आँधी
2कभी कभी मेरे ... - कभी कभी
3गुलमोहर गर ...- देवता
4सिमटी हुई ये ... - चम्बल की कसम
5मुझे छू रही हैं... -स्वयंवर
6पत्ता-पत्ता ...- एक नजर
7एक प्यार का ...- शोर
8बीती ना बिताई... -परिचय
9दिल ढूंढता है ...- मौसम
10ये कहां आ गये ...-सिलसिला
गैर फिल्मी
1चाला वाही देस - (चाला वाही देस)
2ए मेरे वतन के लोगों -
3निसदिन बरसत नैन - (निस दिन बरसत नैन हमारे)
4मैं केवल तुम्हारे लिए - (प्रेम भक्ति मुक्ति)
5सांझ भई घर आ जा रे पिया
6दर्द से मेरा दामन (सजदा)
7ठुमक चलत रामचन्द्र - (राम रतन धन पायो)
8अनगिनती हैं तेरे नाम - (अटल छत्रा सच्चा दरबार)
9आकाश के उस पार भी - (ए मेरे वतन के लोगो)
10राम का गुणगान करिए - (राम श्याम गुणगान)
सर्वकालिक महान गीत (एकल)
1अल्ला तेरो नाम...- हम दोनों
2मोरा गोरा रंग... - बंदिनी
3मोहे भूल गए...- बेजू बावरा
4रसिक बलमा...-चोरी-चोरी
5हाये रे वो दिन...-अनुराधा
6लग जा गले ...-वो कौन थी?
7ओ सजना बरखा-परख
8ये जिन्दगी उसी...-अनारकली
9आजा रे परदेसी-मधुमती
10है इसी में प्यार...-अनपढ़
सर्वकालिक महान गीत (युगल)
1दिल की गिरह ...- रात और दिन
2तुम गगन के... - सती-सावित्री
3तू गंगा की...- बेजू बावरा
4जरा सामने...-जनम जनम के फेरे
5नैन सो नैन...-झनक झनक पायल बाजे
6प्यार हुआ इकरार ...-श्री 420
7वो जब याद आये-पारसमणी
8दमभर जो उधर...-अवारा
9चलो दिलदार-पाकीजा
10ओ मेरे सनम...-संगम
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जवाब देंहटाएंपंकजभाई;
जवाब देंहटाएंबड़े प्यारे प्यारे गीत चुने आपने.हम सब अपने काम-धाम भूल कर २८ सितम्बर को पूरे दिन सिर्फ़ लता गाथा का यशगान करते रहें तो भी कम है.जिन हालातों में लता दीदी ने काम किया है ...जिन तकनीकी सीमाओं में उन्होने एक विद्यार्थी बन कर अपने संगीतकारों की धुनों अपने कंठ में समोया है वह कालातीत है...आईये लता जी के जन्म दिन का जश्न मनाएँ...जुग जुब जिये से अनमोल स्वर.
जी संजय जी मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैं आपने जीवन में सबसे ज्यादा लता जी की आवाज़ को अपने समीप पाता हूं । मेरे कुछ लेख पिछले सालों में देनिक भास्कर नवभारत कादम्बिनी जज्बात आदि में उन पर प्रकाशित हो चुके हैं तथा समय समय पर लता जी के पत्र भी मुझे प्राप्त होते रहे हैं । मेरे पास उनके 4500 के लग भग गीत आडियों कैसेट में हैं । मैं नहीं बता सकता कि कहां कहां से मैंने उनको इकट्ठा किया है । आपका आदेश है तो कल दिन भर मैं उनके बारे में रोचक जानकारियां देता रहूंगा मेरे पास तो करीब 500 पेजों की सामग्री हे उन पर ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है पंकज भाई.आप तो हमारे सुमन चौरसिया जी जैसे जुनूनी निकले जिनके पास लता जी का आपकी सेवा में गाया गया पहला गीत है..पा लागूँ कर जोरी रे.वे इस रिकॉर्ड को मेरे समवेत श्रवन अनुष्ठान श्रोता बिरादरी में सुनवा चुके हैं.कल(२८ सित) सुमन भाई दोपहर को दीदी के जन्म समय दोपहर १२ बजे इन्दौर के अनेक संगीतप्रेमियों को लताजी के दुर्लभ रेकॉर्ड सुनवाने जा रहे हैं. संगीतप्रेमी ब्लॉगर बिरादरों को बता दूँ कि सुमन भाई के पास ७८ आरपीएम की तकरीबन २८००० रेकॉर्ड्स हैं.कई ऐसे कलाकार हैं जिनके नाम हमने सुने ही नहीं.सुमनभाई मुझे सूची बनाने दे गए हैं जिसे यथासमय जारी करूंगा. सुमन भाई लता दीनानाथ दुर्लभ रेकॉर्ड संग्रहालय बनाने की जद्दोजहद भी कर रहे हैं ...जूझ रहे हैं कि किसी तरह से उनका ख़्वाब पूरा हो जाए...इंशा अल्लाह.
जवाब देंहटाएंहाँ चलते चलते एक गुज़ारिश ...कभी लता दीदी का सुलेख जारी कीजिये न अपने चिट्ठे पर...कल ही के शुभ दिन क्यों नहीं...क्या बढिया रिटर्न गिफ़्ट होगा दीदी के बर्थ डे का हमारे लिये.
http://lavanyam-antarman.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंPlease Do see my BLOG Post with B -day Wishes for Our Didi ( LM )
सुबीर जी,
आपका आलेख दिल को छू गया और सँजय भाई का भी उत्तम लगा! आपके आलेख मेँ , मैँ भी कुछ जोडना चाहती हूँ ~ स ~ स्नेह, लावण्या
लता जी जन्म दिन पर आपने अपनी उम्दा पसंद से हमें परिचित कराया, आभार.
जवाब देंहटाएंसुबीर जी:
जवाब देंहटाएंआप के इस खूबसूरत लेख के लिये धन्यवाद. आप ने गीतों का चयन भी बहुत अच्छा किया है । बस एक गीत की कमी खल रही है । "आप की नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे" - अनपढ फ़िल्म से । राजा मेहदी अली खाँ साह्ब के बोल ,मदन मोहन जी का संगीत और लता जी आवाज़ एक ज़ादू सा ढाती है ।
लेख और गीतों की पसंद लाजवाब है.
जवाब देंहटाएंलता जी को जन्मदिन की शुभकामनायें .