आज हम क़ाफिये की बात करेंगे हालंकि क़ाफिये को लेकर काफ़ी कुछ पिछली क्लास में हो चुका है लेकिन वो जो कुछ भी था वो केवल इंट्रोडक्शन ही था आज बात होगी विस्तार में । उससे पहले कल की क्लास नहीं लग पाने का कारण मास्साब स्पष्ट करना चाहते हैं, दरअसल में कल मप्र उर्दू अकादमी का एक मुशायरा शहर में था जिसमें संचालन भी मास्साब को करना था और साथ में ग़ज़ल भी पढ़नी थी । संचालन की तैयारियां करने में कल मास्साब व्यस्त थे उसलिये कल की क्लास गोल हो गई । सभी स्टूडेंट्स की शुभकामनाओं से कल मास्साब ने अच्छा संचालन किया देश के वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार जनाब इशरत क़ादरी साहब ने ख़ुद मास्साब की पीठ ठौंकी और कहा अच्छी निज़ामत की पंकज । उर्दू में मंच संचालन को निज़ामत कहते हैं । और हां जिस शे'र पर मास्साब को सबसे ज़्यादा दाद मिली ख़ास कर इशरत क़ादरी साहब और रहबर जौनपुरी साहब ने पीठ ठौंकी वो शेर बुज़ुर्गों के बारे में कुछ यूं था:
' मैं कभी दीवारो दर था और छत था
अब तो दरवाज़े से बाहर हो गया हूं
ख़ैर ये तो बात रही कल के मुशायरे की चलिये अब आज की क्लास शुरू करते हैं
तो बात क़ाफिये की क़ाफिया जो ग़ज़ल की जान होता है उसको लेते समय अक्सर ही भूल होती है हमें ऐसा लगता है कि हमने जो क़ाफिया लिया है वो सही है पर वो ग़लत होता है ।
क़ाफिये के बारे में मैं पहले ही बता चुका हूं कि क़ाफिया कुछ भी हो सकता है अक्षर, शब्द या फिर मात्रा मगर बात वही है कि जो भी लो उसका निर्वाहन पूरी ग़ज़ल में करो ।
जैसे इसको देखें
नुसरत मेहदी साहिबा का शे'र है
' दिल की शादाब ज़मीनों से ग़ुरेजां होगी
बेरुख़ी हद से बढ़ेगी तो बयाबां होगी
आज की शब ज़रा ख़ामोश रहें सारे चराग़
आज महफिल में कोई शम्अ फ़रोजां होगी
अब इसमें होगी तो रद्दीफ़ हो गया है क़ाफिया है आ की मात्रा पर अं की बिंदी
अब हमको केवल इसी बात का ध्यान रखना है कि फ़रोज़ां, बयाबां, चराग़ां, परेशां को ही हम क़ाफिया बनाएं और वो भी ऐसा कि उसके साथ होगी रद्दीफ का भी निर्वाहन हो सके ।
इस वाले क़ाफिये में मात्रा आ की थी पर अं की बिंदी के साथ्ा थी अब देखते हैं एक ग़ज़ल जिसमें केवल आ की मात्रा क़ाफिया बन रही है ।
' बिछड़ना है जिसे उस जिस्म को अपना समझ बैठा
ज़्यादा जान से अपना उसे हिस्सा समझ बैठा
वो मेरे साथ था दिन रात अपने काम की ख़ातिर
ग़लत फहमी में उससे मैं कोई रिश्ता समझ बैठा
अब यहां पर केवल आ की मात्रा ही क़ाफिया है जैसे हिस्सा, अपना, सहरा, रिश्ता इस में काफी आसानी हो जाएगी, समझ बैठा रद्दीफ है अत: इस तरह से क़ाफियाबंदी करनी है कि क़ाफिया समझ बैठा को निभा ले जाए ।
अब ऐसा भी नहीं है कि हर ग़ज़ल में रद्दीफ आना ज़रूरी ही है
मास्साब की ग़ज़ल है
'तुम्हारे मंदिरों से मस्जि़दों से इनको लेना क्या
न बच्चों को सिखाओ तुम ख़ुदा और राम का झगड़ा
भरी हो जेब जिसकी भी चला आए यहां वो ही
सियासत हो गई है अब तवायफ़ का कोई कोठा'
अब इसमें केवल आ की मात्रा को ही क़ाफिया बनाया गया है कोई रद्दीफ नहीं है । मगर कहा ये जात है कि रद्दीफ से ग़ज़ल की सुंदरता और कहन में बढ़ोतरी हो जाती है ।
आज हम बात कर रहे हैं केवल आ की मात्रा की और उसे क़ाफियों की
चलिये अब बात करते हैं आ की मात्रा के क़ाफिये की जिसमें अं की बिंदी शामिल है
'नहीं इस जि़दगी की क़ैद को है छोड़ना आसां
दिवाने फि़र भी कहते हैं हथेली पर रखी है जां
जिसे भी देखिये वो दौड़ता है दौड़ता है बस
न जाने कौन सी मंजि़ल पे जाना चाहता इन्सां' यहां पर आ की मात्रा तो है अं की बिंदी के साथ पर रद्दीफ नहीं है केवल आं ही क़ाफिया हे बिना रद्दीफ के ये चौथे तरीके का उदाहरण है । 1 आ रद्दीफ के साथ 2 आ बिना रद्दीफ के 3 आं रद्दीफ के साथ 4 आं बिना रद्दीफ के
ये भी आ की मात्रा का हे पर अंतर ये आ गया है कि आ की मात्रा के साथ अं की बिंदी संयुक्त है अर्थात क़फिया आं है आसां, इन्सां, जैसे ही लेने हैं । तो आ की मात्रा के कुछ प्रयोग हैं जिनमें केवल आ भी है और कहीं पर उसमें अं की बिंदी भी है । कल करेंगें बात ई की मात्रा के क़ाफियें की । जै राम जी की और हां जन्माष्टमी की बधाई मास्साब के इस शे'र के साथ
खड़ी है आज भी जमना के तट पर विरहिनी राधा
कहां वो नंद का लाला गया है भूल कर वादा
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सही जा रहे हैं आप ! पुराना पढ़ा फिर से revise हो रहा है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनीष जी मैं केवल एक प्रयास कर रहा हूं कि लिखने वाले जब लिख ही रहे हैं तो कम से कम व्याकरण में ही लिखें । और मुझे मेरे गुरू ने बताया था कि बांटने से ज्ञान बढ़ता है अत: इसमें मेरा स्वार्थ ही है कि मैं अपना ज्ञान बढ़ाना चाहता हूं । आशा है आपकी प्रतिक्रियाएं मिलती रहेंगीं । पंकज सुबीर
जवाब देंहटाएंसही है
जवाब देंहटाएंबड़ी ठोस क्लास रही. मजा आया.
जवाब देंहटाएंइस शेर पर जरा पीठ लाईये, ठोंक दें..स्टूडेंट हैं तो क्या. बधाई तो दे ही सकते हैं:
मैं कभी दीवारो दर था और छत था
अब तो दरवाज़े से बाहर हो गया हूं
इन्तजार है कल का.
आपको और आपके परिवार जनो को भी श्री कृष्ण जन्माष्ट्मी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामना.
स्टूडेंट तो क्लास में हैं उसके बाहर तो आप मेरे बड़े हैं इसलिये पीठ ठोंकने का पूरा अधिकार है आपको । आपको भी कृष्ण जन्म अष्टमी की बधाई हो । आशा है आपको क्लास से फायदा हो रहा होगा
जवाब देंहटाएंसुबीर जी ! एक बात बताइये ?
जवाब देंहटाएंकाफ़िये अगर आ की मात्रा मान कर चलें तो करना, करता , चलता सभी ठीक है , या
करना , मरना , धरना , हरना ज़रूरी है ?
मात्रा के साथ साथ पूरे शब्द का वज़न भी समान होना चाहिये ?
आप की कक्षा मे आनन्द आ रहा है
जी
जवाब देंहटाएंअच्छी क्लास रही
समझ में आ गया ... जितना जानता हूँ और सुदृढ़ हो रहा है .. इस आधार पर अनूप जी शंका निवारण करता हूँ
अगर मिसरा उला में करना मरना आदि है
और मिसरा सानी में करता डरता आदि है तो काफिया आ की मात्रा हुई .. फिर तो करना करता चलता सब चलेगा
लेकिन उला में करना काफिया है
और सानी में भरना काफिया है
तो फिर आपका काफिया ना होगा न कि आ की मात्रा
... मास्साब ठीक बोला न ?
Bahut achchi class master ji
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