मंगलवार, 18 सितंबर 2007

तू मेरी बेबसी का हाल मुझसे पूछता क्‍या है, मेरी तक़दीर में ग़म के सिवा लिक्‍खा हुआ क्‍या है, बहुत ही ख़ौफ़ सा रहता है दिल मे ख़ुद की आहट का,..........

दो दिन से मध्‍य प्रदेश विद्युत मंडल आपके और मेरे बीच में आ रहा था और आज जब फिर से लिखने बैठा तो फिर वही हो गया । और मुझे पता नहीं कि दो लाइन का पोस्‍ट कैसे मेरे ब्‍लग पर आ गया । खैर मेरे गुरू कहते थ्‍ो कि अगर किसी काम के करने में कठिनाइयां आ रहीं हैं तो एक बात समझ लो कि ज़रूर वो अच्‍छा काम हैं क्‍योंकि आप जब अच्‍छा काम करते हैं तो ही कठिनाइयां आती हैं । बुरा काम करने में तो कोई कष्‍ट नहीं होता है । उस पर हमारा विद्युत मंडल तो वैसे भी एम (मरा) पी (पड़ा) इ ( इलेक्ट्रिसिटी ) बी ( बोर्ड) है ।

चलो आज कुछ मात्राओं की बात की जाए कि कैसे ऐसा हो जाता है कि कोई दीर्घ मात्रा लघु हो जाती है और दो लघु मात्राएं मिलकर दीर्घ हो जाती हैं । दरअसल में ग़ज़ल में असल खेल तो बस ये ही है ।

चलिये कुछ क्रमांक के हिसाब से बात करें ताकि आसानी रहे

क्रमांक 1 :- दो लघु मिलकर दीर्घ हो जाना

ये हमेशा नहीं होता है पर जहां पर उच्‍चारण में ऐसा हो रहा हो कि दो लघु एक साथ बोले जा रहे हों और दीर्घ की ध्‍वनि उत्‍पन्‍न कर रहे हों वहां पर उन दोनों को एक दीर्घ मान लिया जाता है ।

जान लें कि तुम, हम, दिल, कब, अब, जिस, कर, पर, मिल, खिल, जैसे शब्‍दों को दो लघु नहीं कहा जाता बल्कि एक दीर्घ में गिना जाएगा । जैसे 'मुझसे' में 'मुझ' जो है वो एक दीर्घ है और 'से' पुन: एक दीर्घ अत: मुझसे को दो दीर्घ में गिना जाएगा । हां उच्‍चारण के हिसाब से कभी कभी बाद का जो से है वो गिर कर एक लघु हो सकता है ।

क्रमांक 2 :- दीर्घ का उच्‍चारण में गिरकर लघु हो जाना

आपने देखा होगा कि ग़ज़ल में अक्‍सर 'मेरी' या 'तेरी' को 'मिरी', 'तिरी' लिखा जाता है ये दरअस्‍ल में उच्‍चारण के चलते होता है । बात बहुत सीधी है कि जैसी ज़रूरत हो वहां पर वैसा कर लो । चाहे तो अगर आपको ग़ज़ल में दो दीर्घ एक के बाद एक लग रहे हों तो कहिये 'मेरी' अर्थात दो दीर्घ । अगर एक लघु और एक दीर्घ की ज़रूरत हो तो कहिये 'मिरी' अर्थात एक लघु और फिर एक दीर्घ । कई बार तो एसा भी होता है कि पूरा का पूरा शब्‍द 'और' (एक दीर्घ और फिर एक लघु ) को केवल एक दीर्घ की जगह पर उपयोग करते हैं मगर उच्‍चारण करते समय उसे 'और' न कह कर 'उर' कहते हैं अगर कोई उर कह रहा है तो समझ लिया जाता है कि एक दीर्घ की जगह पर और को लगाया जा रहा है । सबसे ज्‍़यादा जो गिरते हैं वो होते हैं मैं, में, वो, तो, जो, ये इस रतह के शब्‍द इनका कुछ भरोसा नहीं होता कि कब ये दीर्घ हो जाएं और कब लघु ।एक ग़ज़ल है

तू मेरी बेबसी का हाल मुझये पूछता क्‍या है

मेरी तक़दीर में ग़म के सिवा लिक्‍खा हुआ क्‍या है

इसका वज्‍़न है

ललालाला-ललालाला-ललालाला-ललालाला

या

मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन

या

लघुदीर्घदीर्घदीर्घ-लघुदीर्घदीर्घदीर्घ-लघुदीर्घदीर्घदीर्घ-लघुदीर्घदीर्घदीर्घ

या

1222-1222-1222-1222

अब कहने को तो मैंने कह दिया कि 1222 मगर देखा जाए तो शुरूआत ही तू से हो रही है अर्थात दीर्घ सक मगर ये दीर्घ बिचारा गिर गुरा के हो गया है लघु और उच्‍चारण में इसको यूं शुरू किया जाएगा

'तु मेरी बेबसी का हाल.......

तु होने के कारण ही ये हो गया है लघु एक मज़ेदार बात देखें जो कि आपको ग़ज़ल की स्‍वतंत्रता समझने में मदद करेगी ऊपर का ही शे'र है तू मेरी बेबसी का हाल मुझसे पूछता क्‍या है, मेरी तक़दीर में ग़म के सिवा लिक्‍खा हुआ क्‍या है
अब मिसरा उला ( पहली पंक्ति) में 'मेरी' का वज्‍़न है 22 दीर्घदीर्घ क्‍योंकि वहां पर फाई है दो दीर्घ ही चाहिये । अब देखें मिसरा सानी (दूसरी पंक्ति ) इसमें मेरी से शुरूआत हो रही है और यहां पर इस मेरी का वज्‍़न हो गया है 12 लघु दीर्घ क्‍योंकि मुफा की आवशयकता है । ये गज़ल आज मैंने इस लिये ही ली है कि आपको शब्‍दों का खेल समझ में आ सके ।
ग़ज़ल को तोड़ कर पढें
तु मेरी बे -मुफाईलुन-ललालाला
बसी का हा - मुफाईलुन-ललालाला
ल मुझसे पू - मुफाईलुन-ललालाला
छता क्‍या है -मुफाईलुन-ललालाला
यहां एक और बात देखें कि 'क्‍या' को यहां पर एक दीर्घ माना जा रहा है ऐसा क्‍यो हो रहा है ये क्रमांक तीन में देखेंगें।
क्रमांक 3 :- आधे अक्षरों का पास वाले में मिल जाना
बात वही है जो ऊपर कही है कि आधा अक्षर कभी कभी अपने से पास वाले में मिल कर उसे एक ही कर देता है । जैसे क्‍या अब वैसे तो उसमें आधा क्‍ है पर उच्‍चारण करते समय इसको का पढ़ा जाता है अर्थात एक दीर्घ । ऐसा अक्‍सर होता है जैसे तुम्‍हारे में होता है तु म्‍हा रे 122 या 121 अब इसमें आधा म्‍ मिल गया हा के साथ ।
इसी में तेरी जन्‍नत है इसी में तेरी दोज़ख़ है
ज़मीं को छोड़कर आखि़र ख़ला में ढूंढता क्‍या है

अब यहां पर जन्‍नत में हो गया है जन्‍ और नत अर्थात दो दीर्घ 22
एक और मज़ेदार बात देखें मिसरा ऊला में दो बार तेरी आया है दोनो ही बार उसका वज्‍़न है 21 अर्थात मेरी या तेरी को आप 22, 12, 21 इनमें से चाहे जो भी वज्‍़न दे सकते हैं वो आप पर निर्भर है कि आपको क्‍या चाहिये । मिरी 12, मेरी 22, मेरि 21 ये स्‍वतंत्रता ही ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाती है ।
वफा दुश्‍मन अनासिर से तिरा झगड़ा है क्‍या स्‍वामी
तू उस पर तंज करता क्‍यूं है आखिर माज़रा क्‍या है
यहां पर तिरा हो गया है ।
अब शायद कुछ वज्‍़न समझने में आपको आसानी हो हम कुछ दिन अब कफिया छोड़कर वज्‍़न पर ही चलेंगें फिर वापस काफिये पर आएंगें ।



4 टिप्‍पणियां:

  1. गुरू जी हमें बड़ी देर से पता चला इस प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के विषय में लेकिन आने के पहले मैने पिछले सारे पाठों की हार्ड कापी निकाल कर दो रात जग कर पढ़ लिया है तभी आये है, अनुमति हो तो हमारा बीच सेशन में प्रवेश ले लीजिये... हम अच्छे बच्चों की तरह कोर्स कंप्लीट कर लेंगे।

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  2. हमारी हाजरी लगा लिजिये मास्साब!!

    कंचन जी को पुराने नोट्स तो नहीं चाहिये? हम तो शुरु से अटेंड कर रहे हैं, अच्छे बच्चों की तरह. मास्साब कई बार शाबासी भी दे चुके हैं. :)

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  3. यस सर,
    ये तो बहुत महत्वपूर्ण पाठ छूट रहा था। इसे दो तीन बार पढ़ना पडेगा।

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  4. यस सर,
    ये तो बहुत महत्वपूर्ण पाठ छूट रहा था। इसे दो तीन बार पढ़ना पडेगा।

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