पाकिस्तान की शाइरी में इन दिनों वही बात देखने को नज़र आ रही है जो भारत में आपातकाल के दौरान नज़र आती थी । दरअस्ल में कविता की पहचान ही होती है कि वो उन कांच के महलों पर पत्थर बनकर बरस पड़े जिनके पीछे छुपे हैं समाज में फैलने वाले अंधेरे । लेकिन आज हो ये गया है क कविता केवल एस एम एस या लाफ्टर चैलेंज की फूहड़ता में उल्झ गई है । अब नहीं लगता कि कविता कभी चीखकर कह सकेगी
उठो समय के घर्घर रथ का नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
मैंने ऊपर जो पंक्तियां आज शीर्षक में ली हैं वो हैं पाकिस्तान के शाइर जनाब इक़बाल हैदर की । एक बर फि़र पढि़ये उनको और इस बार पाकिस्तान के हालात को ध्यान में रखकर पढि़ये
ऐ हवा-ए-बेयक़ीनी गुल न कर घर के चराग़
चंद लम्हों को ठहर जा कुछ न कुछ होने को है
किसके नक्शे पा को समझें अपनी मंजि़ल का निशां
झाग्ा उड़ाती मौज आकर हर निशां धोने को है
काश, ये कोई सितारा या कोई जुगनू कहे
हर अंधेरा कह रहा है रोशनी होने को है
चलिये आज आपने का़फिये का समापन कर लें ताकि फिर आगे बढ़ा जा सके ।
ते बात जो काफिये से चली थी वो आज विराम लेगी और फिर हम आगे चलेंगें । जैसा कि मैंने ब्लाग वाणी के मैथिली जी को बताया कि मैं ग़ज़ल और फोटोशाप को एक जैसा मानता हूं जितना जानो उतना ही और रास्ता खुल जाता है और फिर ये लगने लगता है कि और भी कुछ बाकी रह गया है । और अभी जो कुछ हमने किया है वो तो ग़ज़ल का केवल एक प्रतिशत है 99 प्रतिशत तो आगे आना है ।
आज हम काफिये को विराम दे रहे हैं तो एक बार विस्तृत विश्लेषण कर लिया जाए । हां एक बात और कुछ छात्र जैसे अभिनव, अनूप, रोहिला, आदि काफी कक्षओं में अनुपसथित रहे हैं ।
काफिया वही है जो कि ग़ज़ल की जान है और अक्सर हम ग़ल़ती भी क़ाफियाबंदी में ही करते हैं । ग़लत काफिया पूरी ग़ज़ल को ख़त्म कर देता है । क़ाफिया दोहराना भी ठीक नहीं होता है ।
अभी तक हमने जो काफिये देखे उनके एक एक उदाहरण के साथ हम काफिया समापन करेंगें
1: सामान्य केवल शब्दों का काफिया
मंजि़ले इश्क़ में हस्ती से गुज़र जाना था
तुमको जीने की तमन्ना है तो मर जाना था
यहां पर केवल धर, घर, हुनर, उतर जैसे शब्दों के ही काफिये लाने होंगें । हां एक बात जो ध्यान में रख्ना है वो ये है कि हर शब्द का अंत अक्षर र के साथ हो ये बात है शब्दों के काफिये की ।
2: मात्रा आ का काफिया
शाम से रास्ता तकता होगा
चांद खिड़की में अकेला होगा
यहां पर आ की मात्रा ही काफिया है अब जो भी होगा वो आ की मात्रा का ही होगा । चेहरा, बेटा जैसे काफिये लिये जा सकते हैं ।
3: मात्रा आ मगर किसी खास अक्षर के साथ ही संयुक्त होकर
जाम आंखों से सरे महफिल पिलाया जाएगा
मयकशी का दोष रिंदों पर लगाया जाएगा
अब यहां पर जो अंतर है वो ये है कि आपने आ की मात्रा को मतले में य के साथ सुयुक्त करके लिया है अत: आपको अब इस बंदिश का पालन करना है और उठाया, गिराया, चलाया जैसे काफिये तलाश करने हैं ।
4: आ की मात्रा किसी खास अक्षर के साथ तथा पूर्व में भी कोई खास अक्षर
धुंआ इतना पसरता जा रहा है
चमन बेरंग करता जा रहा है
यहां पर त वो अक्षर है जो आ की मात्रा के साथ संयुक्त हो रहा है किंतु एक बात और जो हो रही है वो ये है कि पूर्व में र की आवृति हो रही है मतले में अत: आपको लेना होगा र फिर त और फिर आ की मात्रा । मसलन बिखरता, मुकरता, मरता आदि ।
5: मात्रा आ का काफिया मगर अं की बिंदी के साथ
ज़ज़्बों के अक़्स मंज़रे इम्कां में रह गए
बिखरे हुए गुलाब शबिस्तां में रह गए
यहां पर भी आ ही है पर अं के साथ संयुक्त होकर आ रहा है । अत: काफिये भी वैसे ही रहेंगें गिरहबां, जां, हां ज्ौसे काफिये तलाश करें क्योंकि आपको अं के साथ सुयुक्त करना है ।
6: मात्रा आ का काफिया अं की बिंदी के साथ्ा किंतु किसी एक ही अक्षर के साथ संयुक्त होकर
जाने अब शख्स वो कहां होगा
खुश ही होगा मगर जहां होगा
यहां पर है तो आ की मात्रा और वो भी अं की बिंदी के साथ ही किंतु केवल ह अक्षर के साथ ही संयुक्त होने की बंदिश है । मसलन यहां, वहां, जहां, कहां, आदि।
7: मात्रा ई का काफिया
जमाने से न पूछूंगा न अपने जी से पूछूंगा
मुहब्बत क्या है तेरे हाथ की मेंहदी से पूछूंगा
यहां पर केवल ई की ही बंदिश है क्योंकि मतले में जी और दी का मिलान किया है अत: शाइर ने अपने को स्वतंत्र कर लिया है कुछ भी काफिया लेने के लिये मसलन नदी किसी आदि
8 : ई का काफिया पर किसी खास अक्षर की बंदिश के साथ ही
जिन्दगी माना हबाबी फूल सी खिलती तो है
बेवफा होते हुए भी बावफा लगती तो है
इसमें आपने ई की मात्रा को त के साथ काफिया बनाया है अत: रहती, चलती, कटती जैसे काफिये तलाश करें ।
9 : मात्रा ई का काफिया मगर दोहराव के साथ
जिन्दगी माना हबाबी फूल सी खिलती तो है
धूप है तो साथ मेरे छांव भी चलती तो है
यहां पर आपने मतले में दोहराव कर के अपने काफिया को लती कर लिया है अब आपको चलती, ढलती, खिलती, जैसे काफिये तलाश करने पड़ेगें ।
10: मात्रा ई अं की बिंदी के साथ
उसको मुझपे कभी यक़ीं होगा
और फिर फासला नहीं होगा
यहां पर वही ई की मात्रा है पर अं की बिंदी की बंदिश है अत: उसका ध्यान रखें ।
11: मात्रा ई अं के साथ तथा एक ही अक्षर की बंदिश के साथ
वो किसीका भी और कहीं होगा
पर वो मेरा कभी नहीं होगा
यहां पर सबसे मुश्किल काफियाबंदी है ह के साथ ई की मात्रा और साथ में अं की बिंदी । नहीं, कहीं, वहीं जैसे मुश्किल काफिया तलाशने होंगें ।
चलिये आज केवल आ और ई को ही लेते हैं कल ए, ओ, उ को लेकर मामला हल कर लेंगें ।
कुछ अच्छे शे'र कहीं पढ़े आपको भी सुना रहा हूं
जनाब मुनव्वर राना साहब ने लिखा है
मुख़ालिफ़ सफ़ (विरोधी पंक्ति) भी ख़ुश होती है लोहा मान लेती है
ग़ज़ल का शे'र अच्छा हो तो दुनिया मान लेती है
मुहब्बत करते जाओ बस यही सच्ची इबादत है
मुहब्बत मां को भी मक्का मदीना मान लेती है
अमीर-ए-शहर का रिश्ते में कोई कुछ नहीं लगता
ग़रीबी चांद को भी अपना मामा मान लेती है
फिर उसको मर के भी ख़ुद से जुदा होने नहीं देती
ये मिट्टी जब किसी को अपना बेटा मान लेती है
सुबीर जी:
जवाब देंहटाएंकक्षा में अनुपस्थित नहीं था । आप नें होमवर्क दिया ही नहीं इसलिये हाज़िरी भी नहीं लगाई । पाठ पूरा पढा था और समझ भी आया । चाहें तो परीक्षा ले कर देख लें ।
मुनव्वर राणा जी की गज़ल अच्छी लगी, एक शेर जोड़नें की कोशिश की है, अभी बहर की जानकारी नहीं हुई है , इसलिये सिर्फ़ काफ़िया मिलानें का प्रयास है :
वो मेरी बात को अक्सर हँसी में टाल जाती है
मैं दिल की बात कहता हूँ वो किस्सा मान लेती है
अनूप जी आपने अच्छा कहा है वज़्न में भी है और बिल्कुल बहर में है । मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
जवाब देंहटाएंललालाला ललालाला ललालाला ललालाला
और काफिया तो खैर मिल ही गया है। सबसे अच्छी बात है कि आपका मिसरा उला और सानी में ग़ज़ब का साम्य है दोनों एक दूसरे का ज़ोरदार प्रतिनिधित्व कर रहे हैं
अब आइये एक दोष की बात करें आपने पहली पंक्ति में जो अंत में 'जाती है ' से समापन किया है वो ग़लत है । जो चीज़ हमारे काफिया या रदीफ का हिस्सा बन चुकी हो उसको नीचे के शे'रों में मिसरा उला (पहली पंक्ति ) में नहीं लेना चाहिये एक एब माना जाता है ।
आप उसको यूं कहें
हंसी में टाल देती है वो मेरी बात को अक्सर
मैं कदल की बात कहता हूं वो किस्सा मान लेती है
नीचे के शेरों में मतले का भ्रम पैदा करने वाली प्रथम पंक्ति नहीं होना चाहिये । हां आप दो मतले कह सकते हैं पर उस स्थिति में दूसरा मतला हुस्ने मतला कहलाता है । आज मैंने काफी विस्तार से कुछ समझाने का प्रयास किया है वो भी काफिया को समेटने के लिये मगर समेट नहीं पाया अगले अंक में समापन हो शायद ।
यस सर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरुवर, मैं क्षमा चाहूँगा कि पिछली कक्षाओं में नहीं आ पाया, अभी जाकर वहाँ भी हाजरी लगा दूँगा। आज के होम वर्क के रूप में हाज़िर हैं ये मेरी एक ग़ज़लनुमा रचना।
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,
प्यार का फर्ज़ निभाने का मज़ा क्या जाने,
शिकस्त जिसने न खाई कभी मोहब्बत में,
याद कर कर के भुलाने का मज़ा क्या जाने,
भागता फिरता है दिन रात जो, 'पैसा पैसा',
भला दिल खोल के गाने का मज़ा क्या जाने,
जिसकी उंगली न कटी हो कभी भी मांझे से,
वो पतंगों को उड़ाने का मज़ा क्या जाने,
पिता के साथ लड़ाता हो जो शराब के जाम,
पिता के पैर दबाने का मज़ा क्या जाने।
अभिनव जी बहर का घोड़ा अभी भी काबू में नहीं आ पा रहा है । और हां अभी बात पूरी करने का तरीका भी ठीक नहीं है
जवाब देंहटाएंदिल में होले से समाने का मज़ा क्या जाने
के साथ्ा दूसरी पंक्ति
प्यार का फर्ज निभाने का मज़ा क्या जाने
भर्ती की हे पहली लाइन अच्छी है दूसरी पर काम होना मांगता है
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने
इसका मिसरा सानी लिखने का काम उड़न तश्तरी को करना है
आपकी बात पूर्णतः सत्य है, वो पंक्ति भर्ती की ही थी। उसे परिवर्तित करने का प्रयास किया है।
जवाब देंहटाएंसामने कुछ ना जताने का मज़ा क्या जाने,
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,
गुरुदेव मैंने इस मतले की बहर का विभाजन करने का प्रयास किया है, कृपया बताइएगा कि क्या ये सही है।
सा म ने कुछ - लाललाला (फाएलातुन)
ना ज ता ने - लाललाला (फाएलातुन)
का म ज़ा - लालला (फाएलुन)
क्या जा ने - लालाला (??)
या द कर कर - लाललाला
के भु ला ने - लाललाला
का म ज़ा - लालला
क्या जा ने - लालाला
अच्छा लिखा है ...अनूठे ढंग से आपने प्रस्तुत किया ..बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंसुबीर जी:
जवाब देंहटाएंआप नें जिस तरह से मेरे शेर को सुधारा है , उस से उसकी सुन्दरता बढ गई है । बहर और वज़्न में शेर ठीक निकला , जान कर आश्चर्य हुआ क्यों कि मुझे अभी भी इस का ज्ञान नहीं है , बस गुनगुनाते हुए ठीक सा लगा तो लिख दिया ।
अभिनव की गज़ल के मतले को अगर ऐसे लिखें तो :
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,
आंख चुपके से चुराने का मज़ा क्या जाने,
present sir!
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