दो दिन की छुट्टी के बाद आज फिर मास्साब हाजिर हैं दरअसल में दो दिन से हमारे इलाके में एन उसी वक़्त बिजली गुम हो जाती थी जो वक़्त क्लास का होता है इसलिय दो दिन की क्लास गुम हो गई । हम ने जहां से छोड़ा था वो आ की मात्रा का क़ाफिया चल रहा था । उस पर अनूप जी ने एक प्रश्न उठायाहै कि क्या केवल आ की मात्रा के क़ाफिये वाली ग़ज़लें लोकप्रिय होती हैं या फि़र शब्द वाले क़ाफिये की उन्होंने कहा है कि ज़्यादातर ग़ज़लें जो बड़े शायरों की हैं वो शब्दों के क़ाफिये की हैं जैसे करता, डरता, भरता आदि । मैं आपको बताना चाहता हूं अनूप जी कि ग़ज़ल में लोकप्रिय होने के लिये जो चीज़ सबसे ज़रूरी है वो है सादगी और मासूमियत । और अतनी ही सादगी और मासूमियत से जब आप व्यंग्य भी कसते हैं तो लोग क़ुर्बान हो हो जाते हैं । जिसपे चोट करनी हो उस पर हो भी जाए और किसी को पता भी नहीं लगे इसे मुहावरे की भाषा में कहते हैं मारो कहीं, लगे वहीं । जैसे आप की ही बात को काटने के लिये मैं ग़ालिब की एक बहुत ही चर्चित ग़ज़ल का उदाहरण देना चाहता हूं
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आखि़र इस दर्द की दवा क्या है
अब इसमें तो ग़ालिब साहब ने आ की मात्रा को ही क़ाफिया बनाया है दवा, हुआ, वफ़ा, माज़रा जैसे शब्दों में आ की मात्रा क़ाफिया बन रही है । अब इस ग़ज़ल की लोकप्रियता के बारे में कुछ भी कहना तो सूरज को चराग़ दिखाने के समान होगा । इसमें जो बात है वो है मासूमियत,
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार
या इलाही ये माज़रा क्या है
शायर कितनी मासूमियत से अपनी बात ऊपर वाले के सामने रख रहा है । तो बात क़ाफिये की कभी नहीं होती बात तो कहन की होती है । हां काफि़या सही मिलाना ज़रूरी है वैसा नहीं जैसा कि उड़नतश्तरी ने बनाया है दम का काफिया मिलाया है वज़न के साथ्ा, नाक कटा के रख दी मास्साब की । मासूमियत के साथ अपनी बात को कह देना ही ग़ज़ल का ख़ास लक्षण है । मशहूर शायर शेरी भोपाली एक बार सीहोर आए थे रेडियो पर मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे, मुझे ग़म देने वाले तू ख़ुशी को तरसे गीत सुन कर बोले ज़रूर किसी कसाई ने लिखा है ये गीत, अरे मुहब्बत भी कभी बद्दुआ देती है, वो तो ये कहती है कि भले ही हम बरबाद हो जाएं पर तू ख़ुश रहे । तो बात वही है कि आप अपना कहन सुधारें और वो ऐसा बनाएं कि हर किसी के दिल में उतर जाए । गज़ल़ कोई भी बात को खुल कर भी नहीं कहती इसीलिये उसे व्यवस्था के खि़लाफ हथियार बना कर अच्छे प्रयोग होते हैं । हमारे यहां भी आपात काल के दौरान दुष्यंत ने वैसे ही प्रयोग किये थे जिनको मारो कहीं, लगे वहीं कहा ज सकता है ।
एक गुडि़या की कई कठपुतलियों में जान है
और शायर ये तमाशा देखकर हैरान है
अब सब को पता था कि कौन है गुडि़या और कौन हैं ये कठपुतलियां पर कोई कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि समझने वाले समझ गए हैं ना समझे वो अनाड़ी है जेसा कुछ था ।
हम आज आ को पूरा करते हैं । एक बात सीधी सी याद रखिये कि जो कुछ भी मतले में दोहरा लिया जात है वो फिर क़फिये का हिस्सा न रह कर रद्दीफ हो जाता है ।
जैसे
इतना क्यूं तू मिमियाता है
तू तो आदम का बच्चा है
अब इसमें आ की मात्रा ही क़ाफिया बन रही है क्योंकि मतला ये ही कह रहा है
मगर इसी को अगर यूं कहा जाता कि
इतना क्यूं रे तू सच्चा है
तू भी आदम का बच्चा है
तो बाद बदल गई।
तो ये है असल में बात कि आपका मतला ही ग़ज़ल का भविष्य तय करता है ।
कल छुट्टी है अत: कुछ समस्याएं दे रहा हूं इनकी पूर्ती करनी है ।
1 अगर मतले में निखरता और बिखरता की क़ाफियाबंदी है तो आगे के शेरों के लिये क्या क़ाफिये होंगे।
2 अगर मतले में चलता और गलता की क़ाफिया बंदी है तो क़ाफिये क्या होगें ।
3 अगर टूटा और फूटा की काफियाबंदी है तो आगे के शेरों के लिये क़फिये क्या होंगें ।
4 हो सके तो एक एक शेर भी बनाने का प्रयास करें
ग़ल़त शेर कहने के कारण उड़नतश्तरी के दस अंक वापस ले लिय जा रहे हैं ।
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यस सर,
जवाब देंहटाएंकाफिया अब न अन्जान है,
पर बहर अब भी वीरान है,
हर ग़ज़ल के किनारे कहीं,
एक शायर की पहचान है,
अच्छी जानकारी दी है,हम भी ऐसी गलतीयां करते हैं..सुधारने की कोशिश करेगें।
जवाब देंहटाएंअरे मास्साब, गलत शेर के लिये क्लास में डांट तो लिया कि नाक कटा कर रख दी. अब १० नम्बर काहे बात के वापस ले रहे हैं.
जवाब देंहटाएंएक गल्ती पर बच्चे की जान ले लोगे क्या??
अभिनव आपके शे'र पूरी तरह से बहर में हैं वज़्न है फ़ाएलुन-फ़ाएलुन-फ़ाएलुन
जवाब देंहटाएंअच्छा है जारी रखिये
अभिनवजी
जवाब देंहटाएंआपकी बहर का नाम है-
बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम.अरकान हैं-
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
गालगा गालगा गालगा (गुजराती भाषा में इस तरह समझते हैं.)
जैसे-
आस्था के अमलतास दो.
वैष्णवी पूर्ण विश्वास दो.
नीति निर्वासिता घूमती.
आचरण में पुनर्वास जो.(चन्द्रसेन विराट)
मास्टरजी हमारा भी प्रणाम स्वीकार करें.
मास्साब ! आप के प्रश्नो के उत्तर देनें के कोशिश की है, परिणाम से अवगत करायें :
जवाब देंहटाएं1 अगर मतले में निखरता और बिखरता की क़ाफियाबंदी है तो आगे के शेरों के लिये क्या क़ाफिये होंगे।
>> सिहरता, उतरता , बिसरता
>> ठिठुरता शायद चल जाये
2 अगर मतले में चलता और गलता की क़ाफिया बंदी है तो क़ाफिये क्या होगें ।
>> पलता, ढलता, जलता, टलता
3 अगर टूटा और फूटा की काफियाबंदी है तो आगे के शेरों के लिये क़फिये क्या होंगें ।
>> छूटा, बूटा, लूटा, कूटा, खूँटा
4 हो सके तो एक एक शेर भी बनाने का प्रयास करें
>> अभिनव की गज़ल में एक शेर जोड़ने का प्रयास, काफ़िया तो ठीक है लेकिन वज़्न शायद नहीं :
आप रस्ते में मुझे जो मिल गये
राह अब लगती मुझे आसान है ।
और चलते चलते ..
इक मुकम्मल सी गज़ल मैं भी लिखूँ
अब तो बस दिल में यही अरमान है ।
सर जी ,
जवाब देंहटाएंमैं यह क्लास्सेस देर से ले रहा हूँ, मैंने आपको ईमेल भी लिखा है इस विषय पर
पता नहीं अभी भी आपको यह टिपन्निया पढने को मिलेगी, पर मैं सवाल के जवाब लिखने की कोशिश कर रहा हूँ
अजर मौका मिले तो सही या ग़लत बताइयेगा
सवाल
>कल छुट्टी है अत: कुछ समस्याएं दे रहा हूं इनकी पूर्ती करनी है ।
>1 अगर मतले में निखरता और बिखरता की क़ाफियाबंदी है तो आगे के शेरों के लिये क्या क़ाफिये होंगे।
>2 अगर मतले में चलता और गलता की क़ाफिया बंदी है तो क़ाफिये क्या होगें ।
>3 अगर टूटा और फूटा की काफियाबंदी है तो आगे के शेरों के लिये क़फिये क्या होंगें ।
>4 हो सके तो एक एक शेर भी बनाने का प्रयास करें
जवाब
1. अखरता
संवरता
2. संभालता
मचलता
पिघलता
3. लुटा
छुटा
झूटा
हर बार न जाने क्यों रूप तेरा निखरता सा लगे
रात की स्याही पे कुछ रंग तेरा बिखरता सा लगे
उजाड़ गया था जो नज़ारा तेरे जाने के बाद
अब वही नज़ारा हमको फिर सवार्ता सा लगे
जब बंद डिब्बे को खोला मैंने, प्यार का तोफहा फुटा निकला
जब दिल देने की बारी आई, तो दिल भी अपना टुटा निकला
जब रात की बेला ढलने को थी और अंगडाई सूरज ने ली
जब आंख खुली तुमको ना पाया, रात का सपना झूठा निकला
जिस रात डोली का तेरा, काफिला चलता रहा
उस रात आँसुओ से मेरे, ख़त तेरा गलता रहा
रौशनी की चाह में सूरज को तुम पूजा किए
ये नहीं देखा कहीं आस्मां फिघलता रहा
आभार
अजय